सतत कृषि के लिए रणनीतियां

सतत कृषि के लिए रणनीतियां 

हरित क्रांति में अत्यधिक रासायनिक खाद्य तथा कीटनाशकों से कृषि का अल्पकालीन उत्पादन तो बड़ा, किंतु मृदा उर्वरता में कमी, खाद्य विषाक्त, भूमिगत जल प्रदूषण जैसी समस्याएं सामने आईं; जो भविष्य के लिए खतरा है अतः इनको समायोजित करने के लिए सतत कृषि करने की आवश्यकता है, जिसके लिए सतत कृषि की रणनीतियां अपनाई जा रही है। 

सततकृषि-:

पारिस्थितिकी संतुलन को ध्यान में रखकर, इस प्रकार से पर्यावरण हितैषी कृषि करना ताकि, भविष्य की पीढ़ियां के लिए भी मृदा उत्पादकता बनी रहे। 

सतत कृषि के लाभ 

  • पारिस्थितिकी संतुलन स्थापित करने में सहायक। 

  • सतत कृषि से मृदा की गुणवत्ता एवं उत्पादकता में सुधार होता है  

  • सतत कृषि पर्यावरण प्रदूषण में कमी लाने में भी उपयोगी है। 

  • पौष्टिक आहार की प्राप्ति में सहायक। 

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव में कमी। 

  • सतत विकास लक्ष्यों (12)की प्राप्ति में सहायक। 

सतत किसी के कदम/कार्य-योजना या रणनीतियां-:

  1. मृदा की जांच कर, उपयुक्त फसल लगाना; उदाहरण के लिए नाइट्रोजन कमी वाली मृदा में दालें उगाना। 

  2. उपयुक्त फसल चक्र- वैज्ञानिक फसल चक्र के अनुरूप फसल को उगना; उदाहरण के लिए अधिक सिंचाई वाली फसलों की बाद कम सिंचाई वाले फसलों को उगाना। 

  3. शून्य जताई-: इसके अंतर्गत पूर्ववर्ती फसलों के डंठलों को सड़ा गला कर उसी में नई फसल उगाई जाती है। 

  4. जैविक कृषि- जैविक अवशिष्टों से खाद बनाकर, उससे ऑर्गेनिक कृषि करना। 

  5. फसल अपशिष्ट का नियोजन- पराली ना जलाना, बल्कि उसे आधुनिक उपकरणों के माध्यम से मिट्टी में मिला देना, ताकि मिट्टी में नमी एवं उर्वरता बनी रहे। 

  6. दक्षतापूर्ण सिंचाई-; परंपरा का सिंचाई विधियों के स्थान पर नवीन उन्नत तकनीकी वाली सिंचाई विधियों को अपनाना। 

सतत कृषि के लिए सरकारी पहलें -:

  • 2014-15 में सतत कृषि पर राष्ट्रीय मिशन। 

  • 2015 में परंपरागत कृषि विकास योजना। 

  • 2015 में ही मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना। 

  • 2016 में ए-नाम(E-NAM) प्रोजेक्ट; मंडियों का एकीकरण करने के लिए। 

  • 2018 में जैविक ई-कॉमर्स प्लेटफार्म। 

  • 2019 में पीएम कुसुम योजना; सोलर पंप द्वारा सिंचाई हेतु। 

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