समाजशास्त्र की आधारभूत अवधारणा-
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Toggleसमाज एवं समाजशास्त्र-
सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ संरचना मानव है, मानव की अनुपम कृति समाज है; मानव और समाज के जटिल संबंधों का क्रमबद्ध अध्ययन करने वाला शास्त्र समाजशास्त्र कहलाता है;
इसके जनक अगस्त काम्टे कहलाते हैं।
मैक्स बेखबर के अनुसार-;
समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो सामाजिक क्रियाओं का अर्थ पूर्ण ढंग से बोध कराने का प्रयत्न करता है।
अगस्त काम्ट- इन्हें समाजशास्त्र का पिता कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने समाजशास्त्र के संदर्भ में सबसे पहले सोशियोलॉजी शब्द का प्रयोग किया था।
गोविंद सदाशिव घुरिये- भारत में समाजशास्त्र के जनक।
समाज का सामान्य अर्थ- व्यक्तियों के समूह से है, साधारणता किसी संगठित अथवा संगठित समूह को समाज से संबोधित किया जाता है, जैसे- हिंदू समाज, जैन समाज ब्रह्म समाज।
जबकि समाजशास्त्रीय दृष्टि से समाज, व्यक्तियों का समूह नहीं; बल्कि सामाजिक संबंधों की अमूर्त व्यवस्था है।
मेकाइबर तथा पेज के अनुसार-:
“समाज, सामाजिक संबंधों का जाल है”।
भारतीय समाज-
भारतीय समाज दुनिया के सबसे प्राचीन जटिल एवं समृद्ध समाज में से एक है, इसमें भौगोलिक विविधता, सांस्कृतिक विविधता तथा धार्मिक विविधता मौजूद है; किंतु विश्वासों, अतिथि सत्कार एवं मोक्षप्राप्ति को लेकर सभी में एकता पाई जाती है, इसलिए कहा जाता है विविधता में एकता हिंदी की विशेषता।
परिवार-
परिवार, मानव की समस्त सामाजिक संस्थाओं की आधारभूत इकाई है।
अरस्तु के अनुसार- ‘परिवार, सामाजिक जीवन की प्रथम पाठशाला’।
मेकाइबर एवं पेज के अनुसार-
“परिवार स्थाई यौन संबंध पर आधारित एक ऐसा समूह है, जो बच्चों के जनन एवं पालन पोषण की व्यवस्था करता है”।
परिवार की प्रमुख तत्व-:
परिवार एक वैवाहिक व्यवस्था है।
परिवार में पति-पत्नी बीच यौन संबंध स्वीकृत होते हैं।
परिवार, संतान उत्पत्ति एवं बच्चों का पालन पोषण करता है।
परिवार का नामकरण वंश के आधार पर होता है
परिवार में सामान्य आवास व्यवस्था होती है।
परिवार की विशेषताएं-:
विवाह संबंध- प्रत्येक परिवार का निर्माण विवाह संबंध एवं विवाह के बाद लैंगिक संबंध द्वारा होता है।
वंशनाम की व्यवस्था-: सभी परिवारों में बच्चों के वंश का नामकरण माता या पिता की वंश के आधार पर होता है।
एक सामान्य रहवास-: परिवार के सभी सदस्य का कोई एक निश्चित स्थान होता है, जहां परिवार के सभी सदस्य रहते हैं।
आर्थिक व्यवस्था-प्रत्येक परिवार के भरण पोषण करने के लिए पारिवारिक अर्थव्यवस्था होती है; और इस अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक योगदान पिता का और बड़े भाई-बहनों का होता है।
सार्वभौमिकता-: परिवार एक सार्वभौमिक इकाई है, परिवार का अस्तित्व न केवल मानव समाज में बल्कि अन्य प्राणियों में भी दृष्टिगोचर होता है।
भावनात्मक जुड़ाव-: परिवार के सदस्यों के मत भावनात्मक जुड़ाव जैसे– प्रेम, सहयोग, दया, सहिष्णुता, त्याग, बलिदान की भावनाएं विद्वान होती है।
सदस्यों का उत्तरदायित्व-: परिवार के प्रत्येक सदस्य का परिवार के प्रति कुछ ना कुछ उत्तरदायित्व होता है, और पदानुसार सभी सदस्य परिवार में भूमिका अदाकारते हैं; जिससे परिवार की स्थिरता बनी रहती है।
सामाजिक नियंत्रण एवं नियमन-: परिवार सामाजिक नियमों का पोषक होता है; जैसे- परिवार द्वारा ही यह सिखाया जाता है कि बड़ों के पैर छूना होना चाहिए।
परिवार की उत्पत्ति-:
परिवार की उत्पत्ति का निर्माण विवाह संबंधों के आधार पर होता है; क्योंकि जब पुरुष एवं महिला आपस में विवाह करते हैं तो वह परिवार बन जाता है; बाद में लैंगिक संबंध द्वारा संतान उत्पत्ति होती है, जिससे परिवार का विस्तार होता है।
परिवार के कार्य-:
प्राणी शास्त्रीय कार्य –
यौन इच्छाओं की पूर्ति करना; लैंगिक संबंध द्वारा।
संतान उत्पत्ति करना।
प्रजाति के निरंतरता बनाए रखना।
परंपरागत कार्य -:
शारीरिक रक्षा करना, परिवार के सदस्य अन्य सदस्यों की शारीरिक रक्षा करते हैं।
बच्चों का पालन पोषण करना।
भोजन एवं वस्त्र की व्यवस्था करना।
स्थान एवं आवास की व्यवस्था करना।
सामाजिक कार्य – बच्चों का समाजीकरण करना, अर्थात उन्हें सामाजिक नियमों, क्रियाओं के अनुरूप जीवन संचालित करना सिखाना।
धार्मिक कार्य – धर्म एवं नैतिकता का विकास।
राजनीतिक कार्य – परिवार का मुखिया एक के प्रशासक के रूप में भूमिका निभाता है तथा परिवार से संबंधित विभागों का निराकरण भी करता है।
शैक्षिक कार्य- परिवार का प्राथमिक कार्य बच्चों की शिक्षा देना भी होता है, इसलिए परिवार को प्रथम पाठशाला के नाम से भी जाना जाता है।
परिवार के प्रकार
आकर के आधार पर –
एकल या नाभिक परिवार – यह छोटे आकार का परिवार होता है जिसमें माता-पिता एवं अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं।
संयुक्त परिवार- यह उपेक्षाकृत बड़े आकार का परिवार होता है जिसमें दादा-दादी, नाती पोते सब शामिल होते हैं।
स्थान के आधार पर –
पितृ स्थानीय परिवार – जब विवाह के पश्चात पत्नी पति के घर में जाकर, परिवार बसाती है , तो इसे पितृ स्थानीय परिवार कहा जाता है।
मातृ स्थानीय परिवार – जब विवाह के बाद पति-पत्नी के घर में जाकर परिवार बसाती है, तो इसे मातृ स्थानीय परिवार कहा जाता है।
नव स्थानीय परिवार-जब विवाह के पश्चात पति एवं पत्नी किसी नए स्थान पर जाकर परिवार बसते हैं तो इसे नव स्थानीय परिवार कहा जाता है।
वंश के आधार पर –.
पितृवंशीय परिवार- जब परिवार की नई पीढ़ी का नामकरण पिता के आधार पर होता है तो इसी पितृ वंशीय परिवार कहा जाताहै।
मातृ वंशीय परिवार- जब परिवार में बच्चों के वंश का नामकरण माता के नाम पर होता है।
अधिकार के आधार पर-:
पितृसत्तात्मक परिवार -: जब परिवार में सत्ता एवं अधिकार पिता या पुरुषों के हाथों में होती है, तो इसे पितृसत्तात्मक परिवार कहा जाता है।
मातृ सत्तात्मक परिवार-: जब परिवार में सत्ता एवं अधिकार माता या महिलाओं के हाथों में होती है तो उसे मातृ सत्तात्मक परिवार कहा जाता है।
एकल परिवार -:
यह छोटे आकार का परिवार होता है।
इसमें माता-पिता एवं अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं।
इसमें दादा दादी को नहीं शामिल किया जाता है। ,
एकल परिवार आधुनिक औद्योगिक समाज की प्रमुख विशेषता है।
ऐसे परिवार के सदस्य भावनात्मक आधार पर एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध रखते हैं।
एकल परिवार के गुण -:
धन का अपव्यय नहीं होता।
आवास की समस्या नही।
पारिवारिक कलह से बचाव।
जनसंख्या नियंत्रण में सहायक।
माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को पर्याप्त समय ना दे पाना।
एकल परिवार के दोष-:
बच्चों का पालन पोषण सही ढंग से नहीं हो पाता
समाजीकरण की समस्या
समस्तिवादी के स्थान पर व्यक्तिवादी प्रवृत्ति का विकास।
समाज की अन्य सदस्यों के साथ अंतः क्रिया ना हो पाना।
व्यक्तित्व का उचित तरीके से विकास ना हो पाना।
संयुक्त परिवार -:
संयुक्त परिवार ऐसे परिवार होते हैं जिनमें तीन या तीन से अधिक पीढ़ी के सदस्य एक साथ, एक ही घर में निवास करते हैं, उनकी सामूहिक संपत्ति होती है तथा वह एक ही रसोई में बना भोजन करते हैं।
संयुक्त परिवार की विशेषताएं
यह उपेक्षाकृत बड़े आकार का परिवार होता है।
इसमें माता-पिता और अविवाहित बच्चों के साथ-साथ दादा-दादी, और नाती-पोते भी शामिल होते हैं।
सामान्य निवास-: संयुक्त परिवार में तीन या तीन से अधिक पीढ़ी के सदस्य एक ही स्थान पर,एक साथ निवास करते हैं
सामूहिकसंपत्ति-: संयुक्त परिवार में सदस्यों की संपत्ति सामूहिक होती है, जिसके सभी सदस्य हिस्सेदार होते हैं
संयुक्त परिवार ग्रामीण एवं कृषक समाज की प्रमुख विशेषता होती है।
इसमें कर्ता या मुखिया का नियंत्रण अधिक होता है।
इसमें सदस्यों का अंतर सामाजिक संबंध अधिक होता है।
इसमें रक्त संबंधी के साथ-साथ वैवाहिक संबंधी भी शामिल होते हैं।
संयुक्त परिवारके गुण-:
समाजीकरण-: संयुक्त परिवार में बच्चों का नैतिकता एवं धर्म आधारित उपयुक्त तरीके से समाजीकरण हो पाता है।
मनोरंजन काकेंद्र-: संयुक्त परिवार में भाभी-देवर की हंसी मजाक, बच्चों की किलकारियां तथा ननंद भोजाई की रोकथाम के कारण मनोरंजनकारी वातावरण बना रहता है
संपत्ति का विभाजन से बचाव-: संयुक्त परिवार में साझी संपत्ति होती है जिसके सभी हिस्सेदारी होते हैं।
संस्कृति की रक्षा-: संयुक्त परिवार शुरुआत से ही संस्कृति का स्थानांतरण करते आए हैं।
राष्ट्रीयता की भावना-: संयुक्त परिवार में आपसी सहयोग पर बोल दिया जाता है जो राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने में सहायक है।
संयुक्त परिवार के दोष-:
धन का अपव्यय अधिक होता।
आवास की समस्या।
पारिवारिक कलह अधिक होना।
जनसंख्या नियंत्रण की दृष्टि से अनुपयुक्त।
माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को पर्याप्त समय ना दे पाना।
इरावती कर्वे के अनुसार- “भारत में परिवार का अर्थ संयुक्त परिवार से ही है।”
संयुक्त परिवार एवं एकल परिवार में अंतर
आधार | एकल परिवार | संयुक्त परिवार |
आकर | उपेक्षाकृत छोटा आकार | उपेक्षाकृत बड़ा आकार |
मुखिया का नियंत्रण | उपेक्षाकृत कम नियंत्रण | उपेक्षाकृत अधिक नियंत्रण |
प्रचलन क्षेत्र | आधुनिक औद्योगिक समाजों में। | ग्रामीण एवं कृषि प्रधान समाजों में। |
समाजीकरण | उचित तरीके से नहीं हो पाता | उपेक्षाकृत अधिक उपयुक्त तरीके से होता है। |
पारिवारिक कलह | पारिवारिक कलह नहीं होती | उपेक्षाकृत अधिक पारिवारिक कलह होतीहै। |
बच्चों का पालन पोषण | अधिक के अच्छे तरीके से हो पता है, क्योंकि माता-पिता बच्चों पर ज्यादा ध्यान देते हैं | संयुक्त परिवार में माता-पिता बच्चों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते। |
वर्तमान में परिवारों में परिवर्तन
परिवार का आकार छोटा होता जाना।
परिवार में मुखिया की सत्ता का ह्रास होना।
विवाह के रूप में परिवर्तन, जैसे- प्रेमविवाह, विधवा विवाह की बढ़ोतरी।
परिवार में महिलाओं की शक्ति में वृद्धि होना।
पारिवारिक कृतियों का अंत।
धार्मिक कार्यों में परिवर्तन-: धर्म के स्थान पर भौतिकतावाद।
पारिवारिक संबंधों में औपचारिकता आना आदि।
पारिवारिक परिवर्तनों के लिए जिम्मेदार कारक-:
डॉ. के एम कपाड़िया के अनुसार-
न्याय व्यवस्था
यातायात के नवीन साधन
औद्योगिकरण
शिक्षा का प्रसार
परिवर्तित मनोवृति।
परिवार व्यक्ति की जन्म, पालन पोषण, समाजीकरण, व्यक्तित्व विकास सहित व्यक्ति के प्रत्येक आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक होता है इसीलिए कहा जाता है अच्छे परिवार में जन्म लेना जीवन के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार को प्राप्त कर लेना है।