ग्रामीण विकास से संबंधित मुद्दे
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ग्रामीण क्षेत्र की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में सुधार कर लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाना ग्रामीण विकास कहलाता है।
भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी में कहा कि भारत गांव में बसता है ‘गांव भारत की आत्मा है’ जो कथन आज भी सार्थक है, क्योंकि आज भी भारत की 70 प्रतिशत जनसंख्या गांव में निवासरत है और भारत के विकास तभी होगा जब 70% ग्रामीण जनसंख्या यानी ग्रामीणों का विकास हो।
ग्रामीण विकास के प्रमुख सामाजिक मुद्दे
अशिक्षा जागरूकता में कमी-:
2011 की जनगणना के अनुसार जहां शहरी क्षेत्र में साक्षरता दर, 84% है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता दर मात्र 67% है। तथा ग्रामीण क्षेत्र के लोग तुलनात्मक रूप से अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति कम जागरूक हैं।
गरीबी एवं असमानता का मुद्दा-:
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-05 के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के लगभग 19% लोग गरीबी रेखा में जीवन यापन कर रहे हैं,
बेरोजगारी का मुद्दा-: ग्रामीण क्षेत्र में मौसमी तथा अदृश्य बेरोजगारी पाई जाती है।
विभिन्न सामाजिक कुरीतियों या रूढ़ियों का मुद्दा-ग्रामीण क्षेत्र में आज भी बाल विवाह, पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा,जातिवाद ,अश्पृश्यता जैसी सामाजिक कुरीतियों विघमान है।
बुनियादी सुविधाओं का अभाव-ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल आदि की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।
आवास तथा खाद्य सुरक्षा का मुद्दा-ग्रामीण क्षेत्र में आज भी सभी लोगों को पर्याप्त संतुलित भोजन प्राप्त नहीं हो पता अनेक लोग कुपोषण तथा भुखमरी से ग्रसित है साथ ही अनेकों लोगों के पास अपना पक्का मकान भी नहीं है।
बंधुआ मजदूरी का मुद्दा-:
प्रवासी मजदूरी का मुद्दा-:
ग्रामीण विकास की रणनीतियां-:
सरकार द्वारा ग्रामीण विकास करने के लिए अनेकों प्रकार की रणनीतियां अपनाई जाती हैं, जिनमें से भारत सरकार द्वारा अपनाई गई प्रमुख रणनीतियां निम्नलिखित है-:
बहुउद्देशीय रणनीति-:
इसके अंतर्गत बहुद्देशीय सामाजिक आर्थिक विकास कार्यक्रम लागू किए जाते हैं।
उदाहरण के लिए- 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम।
लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण रणनीति-:
इसके अंतर्गत, स्थानीय स्वशासन का विकास करके स्थानीय स्वशासन के माध्यम से ग्रामीण विकास किया जाता है।
उदाहरण के लिए- पंचायती राज द्वारा ग्रामीण विकास।
अधोमुखी रिसाव रणनीति-
इसके अंतर्गत, केंद्रीय स्तर पर ग्रामीण विकास कार्यक्रम लागू किए जाते हैं और उनके माध्यम से ग्रामीण विकास सुनिश्चित किया जाता है उदाहरण के लिए- योजना आयोग के विकास कार्यक्रम।
जन सहभागिता रणनीति-
इसके अंतर्गत, ग्रामीण विकास कार्यों में प्रशासन के साथ-साथ क्षेत्रीय जनता को भी सहभागी बनाया जाता है।
उदाहरण के लिए- ग्राम विकास समिति के माध्यम से ग्रामीण विकास।
विशिष्ट क्षेत्र विकास रणनीति-:
इसके अंतर्गत विशेष रूप से पिछड़े क्षेत्र के विकास करने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाते हैं, जैसे – मरूस्थलीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम (1977), पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र विकास कार्यक्रम।
गांधीवादी रणनीति-:
इसके अंतर्गत गांधीवादी दृष्टिकोण जैसे स्वदेशी, आत्मनिर्भरता,श्रम आधारित अर्थव्यवस्था आदि अवधारणा के माध्यम से गांव का विकास किया जाता है।
ग्रामीण विकास के घटक-:
सार्वभौमिक शिक्षा।
खाद्य सुरक्षा एवं पेयजल की व्यवस्था।
रोजगार के अवसर की समानता।
निशुल्क कानूनी सहायता।
पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व।
लोगों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता।
लघु तथा कुटीर उद्योग को बढ़ावा।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था का शहरी अर्थव्यवस्था से जुड़ाव।
उन्नत सिंचाई के माध्यम से कृषि का विकास।
ग्रामीण विकास के सरकारी प्रयास-:
संवैधानिक प्रयास-
समानता का मौलिक अधिकार अनुच्छेद (15 से 18)-इसमें जाति ,धर्म ,लिंग ,वंश की समानता तथा अस्पृश्यता का अंत संबंधी प्रावधान है।
नीति निर्देशक तत्व –
अनुच्छेद 40 में पंचायत का गठन।
अनुच्छेद 43 लघु तथा कुटीर उद्योगों को बढ़ावा।
अनुच्छेद 48 कृषि एवं पशुपालन को बढ़ावा।
अनुसूची 11 पंचायती राज से संबंधित 28 विषय।
वैधानिक प्रयास -:
राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम 2005।
शिक्षक अधिकार अधिनियम 2009।
खाद सुरक्षा अधिनियम 2013।
योजनागत प्रयास-:
एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम 1978
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना 2001
मनरेगा योजना 2006
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन 2011।
प्रधानमंत्री ग्राम आवास योजना 2015
ग्रामीण समाज में बदलाव के रुझान
जाति-प्रथा में परिवर्तन
परंपरागत जाति व्यवस्था के कठोर बंधनों में कमी आई है; अस्पृश्यता का महत्व कम हुआ है।
जाति के स्थान पर, योग्यता का महत्व बढ़ता जा रहा है।
धर्म में परिवर्तन
विभिन्न प्रकार की धार्मिक कुरीतियों जैसे बलि प्रथा, देवदासी प्रथा का महत्व कम हुआ है।
धार्मिक नियम उपेक्षाकृत कम कठोर होते जा रहे हैं
महिलाओं की स्थिति में बदलाव
महिला शिक्षा को बढ़ावा मिलता जा रहा है।
पर्दा प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या प्रथा में कमी आई है।
विवाह के स्वरूप में परिवर्तन-
बाल विवाह में कमी आई है।
प्रेम विवाह, अंतर्जातीय विवाह, विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा मिला है।
शिक्षा में बदलाव –
लोगों में शिक्षा एवं जागरूकता का स्तर बढ़ता जा रहा है।
लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं।
संस्कृति में बदलाव -:
ग्रामीण संस्कृति में शहरी या पाश्चात्य संस्कृति का महत्व बढ़ता जा रहा है जैसे- हैप्पी बर्थडे मनाना, टेबल कुर्सी में बैठकर भोजन करना।
प्रकृतिवादी संस्कृति के स्थान पर, उपभोक्तावादी संस्कृति का महत्व बढ़ता जा रहा है।