समास

[ समास]

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दो अथवा दो से अधिक पदों (शब्दों) को जोड़कर एक सार्थक शब्द बनाने की प्रक्रिया समाज कहलाती है। 

जैसे-: रसोई के लिए घर को “रसोईघर” कहना। 

वास्तव में समास का अर्थ – : शब्दों का संक्षिप्तीकरण करना है।  

जैसे-: हम “रसोई के लिए घर” को “रसोईघर” कहना।

समाज के पद

पूर्व पद-:

समास का पहला पद पूर्व पद कहलाता है 

उत्तर पद-:

जबकि दूसरा पद उत्तर पद कहलाता हैं। 

सामासिक पद-

दो या दो से अधिक पदों(शब्दों) के योग से निर्मित नवीन सार्थक पद सामासिक पद कहलाता है। 

समास विग्रह-:

किसी सामासिक पद को ,समाज के नियमों के अनुसार विभिन्न पदों में अलग-अलग करके विस्तारित करना समास विग्रह कहलाता है। 

जैसे -: “रसोईघर” का समास विग्रह होगा -: रसोई के लिए घर। 

संधि और समास में अंतर

  • संधि में दो वर्णों का योग (मेल) होता है

जैसे-: सत्य + आग्रह = सत्याग्रह।  यहां पर अ+ आ मिलने से आ हो गया

जबकि समाज में दो या दो से अधिक पदों का योग होता है। जैसे-: सत्य के लिए आग्रह = सत्याग्रह

  • संधि में वर्णों के योग से वर्ण परिवर्तन भी हो जाता है, (जैसे: सत् + जन= सज्जन)जबकि अधिकांशतः समास में वर्ण परिवर्तन नहीं होता केवल सार्थक शब्द जुड़कर नए सार्थक शब्द का निर्माण करते हैं। (जैसे: रसोई के लिए घर=रसोईघर)

  • संधियुक्त शब्दों को तोड़ने की प्रक्रिया संधि विच्छेद कहलाती है जबकि सामासिक पद को विस्तारित करने की प्रक्रिया समास विग्रह कहलाती है। 

समाज की विशेषताएं -:

  • समाज दो या दो से अधिक पदों का सार्थक योग होता है। 

  • सामासिक पद बनने पर विभक्तियां लुप्त हो जाती हैं। जैसे -: रसोई के लिए घर का सामासिक पद है -:”रसोईघर” इसमें के लिए विभक्ति लुप्त हो गई।  

  • सामासिक पदों के मध्य संधि भी हो सकती है। जैसे-: “प्रत्येक” एक सामासिक पद है इसमें गुण संधि भी है।

समास के प्रकार-:

हिंदी में समाज के 6 प्रकार होते हैं-:

  • अव्ययीभाव समास

  • तत्पुरुष समास

  • कर्मधारय समास

  • द्विगु समास

  • द्वंद समास

  • बहुव्रीहि समास

पदों की प्रधानता के आधार पर समास के प्रकार

  • पूर्व प्रधान समाज-: अव्ययीभाव समास। 

  • उत्तर पद प्रधान समाज-: तत्पुरुष समास -: कर्मधारय समास, दिगु समास। 

  • दोनों पद प्रधान समाज-: द्वंद्व समास। 

  • दोनों पद अप्रधान समाज-: बहुव्रीहि समास। 

अव्ययीभाव समास-:

वह समाज जिसका पूर्व पद प्रधान एवं अव्यय के रुप में होता है उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।  

जैसे-: प्रतिदिन, अव्ययीभाव समास का सामासिक पद है जिसमें “प्रति” अव्यय एवं प्रधान पद है। 

अव्यय -: ऐसे शब्द जिनके रूप में लिंग, वचन ,कारक, काल आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं आता अर्थात जो सदा अपने मूल स्वरूप में रहते हैं। 

विशेषताएं-

  • अव्ययीभाव समास के प्रथम पद में निम्न में से कोई एक अव्यय मौजूद होता है-: आ,भर,हर,प्रति,अनु,यथा,तथा,निर्,नि,उप,बद,बे,ब। 

  • प्रथम पद प्रधान होता है-: जैसे “गंगापार” जहां पर गंगा प्रथम पद /प्रधान पद है। 

  • अथवा पुनरावृति वाले शब्द होते हैं। घर घर, गलीगली, दिनोंदिन एवं रातो रात। 

प्रधान/अव्यय पद

सामासिक पद

समास विग्रह

समास का नाम

आजीवन

जीवन पर्यंत तक

अव्ययीभाव समास

आजन्म

जन्म से लेकर

अव्ययीभाव समास

आमरण

मृत्यु पर्यंत तक

अव्ययीभाव समास

आसमुद्र

समुद्र पर्यंत तक

अव्ययीभाव समास

आगमन

गमन होने तक

अव्ययीभाव समास

भर

भरपेट

पेट भर कर

अव्ययीभाव समास

भर

भरपूर

पूरा भरा हुआ

अव्ययीभाव समास

भर

भरमार

बहुत अधिक मात्रा में

अव्ययीभाव समास

हर

हरदिन

प्रत्येक दिन

अव्ययीभाव समास

हर

हरसाल

प्रत्येक साल

अव्ययीभाव समास

हर

हरबार

प्रत्येक बार

अव्ययीभाव समास

प्रति

प्रतिदिन

प्रत्येक दिन

अव्ययीभाव समास

प्रति

प्रतिव्यक्ति

प्रत्येक व्यक्ति

अव्ययीभाव समास

प्रति

प्रतिलिपि

लिपि की लिपि

अव्ययीभाव समास

प्रति

प्रत्युत्तर

उत्तर के बदले उत्तर

अव्ययीभाव समास

प्रति

प्रतिपल

प्रत्येक पल

अव्ययीभाव समास

अनु

अनुशासन

शासन के अनुरूप

अव्ययीभाव समास

अनु

अनुसार

जैसा सार वैसा

अव्ययीभाव समास

यथा

यथास्थिति

स्थिति के अनुसार

अव्ययीभाव समास

यथा

यथाविधि

विधि के अनुसार

अव्ययीभाव समास

यथा

यथाशक्ति

शक्ति के अनुसार

अव्ययीभाव समास

यथा

यथोचित

जितना उचित हो

अव्ययीभाव समास

तथा

तथागत 

जैसा कहा गया हो वैसा ही

अव्ययीभाव समास

निर्

निर्भय

बिना भय के

अव्ययीभाव समास

निर्

निर्विवाद

बिना विवाद के

अव्ययीभाव समास

निर्

निर्विवेक

बिना विवेक के

अव्ययीभाव समास

नि

निडर 

डर के बिना

अव्ययीभाव समास

नि

निगोड़ा

बिना पैर के

अव्ययीभाव समास

उप

उपवन

बन के समीप

अव्ययीभाव समास

उप

उपगृह

घर (गृह) के समीप

अव्ययीभाव समास

बे

बेवफ़ा

बिना वफ़ा(ईमानदारी) के

अव्ययीभाव समास

बे

बेशर्म

बिना शर्म के

अव्ययीभाव समास

बे

बेरोजगार

बिना रोजगार का

अव्ययीभाव समास

बद

बदनसीब

बुरी नसीब 

अव्ययीभाव समास

बद

बदनाम

खराब नाम का

अव्ययीभाव समास

बद

बदकिस्मत

बुरी किस्मत

अव्ययीभाव समास

बद

बदसूरत

बुरी सूरत

अव्ययीभाव समास

बदौलत

दौलत के साथ

अव्ययीभाव समास

बगैर

गैरों के साथ

अव्ययीभाव समास

 

हाथों हाथ

हाथ ही हाथ में

अव्ययीभाव समास

 

दिनोंदिन

दिन ही दिन में

अव्ययीभाव समास

तत्पुरुष समास-: 

वह समाज जिसका उत्तर पद प्रधान हो तथा सामासिक पद में कारक विभक्तियों का लोप हो  उसे तत्पुरुष समास कहते हैं

विशेषताएं

  • प्रथम पद गौण एवं उत्तर पद प्रधान होता है। 

  • सामासिक पद में दो पदों की बीच की कारक विभक्तयों का लोप हो जाता है। 

तत्पुरुष समास के भेद

कारक विभक्ति के आधार पर तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं-:

  • कर्म तत्पुरुष समास। 

  • करण तत्पुरुष समास। 

  • संप्रदान तत्पुरुष समास। 

  • अपादान तत्पुरुष समास। 

  • संबंध तत्पुरुष समास। 

  • अधिकरण तत्पुरुष समास। 

अर्थात तत्पुरुष समास में 6 कारक विभक्ति का प्रयोग होता है , प्रथमा(कर्ता) एवं अष्टमा(संबोधन) कारक विभक्ति का प्रयोग नहीं होता। 

कर्म तत्पुरुष समास-:

वह समाज जिसके ,सामासिक पद में कर्म कारक की “को”नामक विभक्ति का लोप हो जाता है। 

जैसे-‘

सामासिक पद

समास विग्रह

समाज का नाम

माखनचोर

माखन को चुराने वाला

कर्म तत्पुरुष समास

रथचालक

रथ को चलाने वाला

कर्म तत्पुरुष समास

ग्रंथकार

ग्रंथ को लिखने वाला

कर्म तत्पुरुष समास

गुरुनमन

गुरु को नमन

कर्म तत्पुरुष समास

तिलचट्टा

तिल को चाटने वाला

कर्म तत्पुरुष समास

करण तत्पुरुष समास-:

वह समाज जिसके ,सामासिक पद में करण कारक की “से / के द्वारा”नामक विभक्ति का लोप हो जाता है।

कर्ता ने अपने कर्म को करने के लिए जिस साधन का प्रयोग किया उसे करण कहते हैं। जैसे-: राम साईकिल से बाजार गया, इसमें करण साइकिल है और करण को प्रदर्शित करने के लिए”से/के द्वारा”विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। 

सामासिक पद

समास विग्रह

समाज का नाम

तुलसीरचित

तुलसी द्वारा रचित

करण तत्पुरुष समास

करुणापूर्ण

करुणा से पूर्ण

करण तत्पुरुष समास

रसभरी

रस से भरी

करण तत्पुरुष समास

आंखोंदेखी

आंखों द्वारा देखी

करण तत्पुरुष समास

मनचाहा 

मन से चाहा

करण तत्पुरुष समास

रोगग्रस्त

रोग से ग्रस्त

करण तत्पुरुष समास

अग्निदग्ध

अग्नि से जला हुआ

करण तत्पुरुष समास

श्रद्धापूर्ण

श्रद्धा से पूर्ण

करण तत्पुरुष समास

शोकाकुल

शोक से आकुल

करण तत्पुरुष समास

संप्रदान तत्पुरुष समास-:

वह समास जिसके सामासिक पद में संप्रदान कारक की विभक्ति -“के लिए/हेतु”का लोप हो जाता है। 

करता ने जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कर्म किया उस उद्देश्य को सम्प्रदान कहते हैं और संप्रदान को प्रदर्शित करने के लिए”के लिए/हेतु”विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। 

जैसे-: 

सामासिक पद

समास विग्रह

समाज का नाम

स्नानघर

स्नान के लिए घर

संप्रदान तत्पुरुष समास

रसोईघर

रसोई के लिए घर

संप्रदान तत्पुरुष समास

हथकड़ी

हाथ के लिए कड़ी

संप्रदान तत्पुरुष समास

सत्याग्रह

सत्य के लिए आग्रह

संप्रदान तत्पुरुष समास

विद्यालय

विद्या के लिए आलय(स्थान)

संप्रदान तत्पुरुष समास

सुधारग्रह

सुधार के लिए गृह

संप्रदान तत्पुरुष समास

विश्रामगृह

विश्राम के लिए गृह

संप्रदान तत्पुरुष समास

गौशाला

गाय के लिए शाला

संप्रदान तत्पुरुष समास

देशभक्ति

देश के लिए भक्ति

संप्रदान तत्पुरुष समास

अपादान तत्पुरुष समास-:

वह समास जिसके सामासिक पद में अपादान कारक की विभक्ति “से(अलग होने के भाव में)”का लोप हो जाता है। 

जैसे-:

सामासिक पद

समास विग्रह

समाज का नाम

धर्मविमुख

धर्म से विमुख

अपादान तत्पुरुष समास

पदभ्रष्ट

पद से दृष्ट

अपादान तत्पुरुष समास

देशनिकाला

देश से निकाला

अपादान तत्पुरुष समास

जलहीन

जल से हीन

अपादान तत्पुरुष समास

बलहीन

बल से हीन

अपादान तत्पुरुष समास

चिंतामुक्त

चिंता से मुक्त

अपादान तत्पुरुष समास

ऋणमुक्त

ऋण से मुक्त

अपादान तत्पुरुष समास

संबंध तत्पुरुष समास-: 

वह समास जिसके सामासिक पद में संबंध कारक की विभक्ति “का/ के/की”का लोप हो जाता है। 

जैसे-:

सामासिक पद

समास विग्रह

समाज का नाम

देशभक्त

देश का भक्त

संबंध तत्पुरुष समास

गृहस्वामी

ग्रह का स्वामी

संबंध तत्पुरुष समास

हरिकथा

हरि की कथा

संबंध तत्पुरुष समास

घुड़दौड़

घोड़े की दौड़

संबंध तत्पुरुष समास

राजकुमार

राजा का कुमार

संबंध तत्पुरुष समास

गंगातट

गंगा का तट

संबंध तत्पुरुष समास

अधिकरण तत्पुरुष समास-:

वह समास जिसके सामासिक पद में अधिकरण कारक की विभक्ति “में/पर”का लोप हो जाता है। 

जैसे-:

सामासिक पद

समास विग्रह

समाज का नाम

शोकमग्न

शोक में मग्न

अधिकरण तत्पुरुष समास

पुरुषोत्तम

पुरुषों में उत्तम

अधिकरण तत्पुरुष समास

आपबीती

आप पर बीती

अधिकरण तत्पुरुष समास

गृहप्रवेश

गृह में प्रवेश

अधिकरण तत्पुरुष समास

वनवास

वन में वास

अधिकरण तत्पुरुष समास

घुड़सवार

घोड़े पर सवार

अधिकरण तत्पुरुष समास

Note  -: नञ् तत्पुरुष समास – :

वह समाज जिसके पूर्व पद में नकारात्मक भाव होता है उसे नञ् तत्पुरुष समास करते हैं ।

नञ् तत्पुरुष समास का पूर्व पद निम्न में से कोई एक होता है -:

ना , अ, अन , गैर,

जैसे – :

सामासिक पद

समास विग्रह

समाज का नाम

नापसंद

ना पसद

नञ् तत्पुरुष समास

नालायक

ना लायक

नञ् तत्पुरुष समास

अनपढ

ना पढ़ा हुआ

नञ् तत्पुरुष समास

अनसुना

ना सुना हुआ

नञ् तत्पुरुष समास

ग़ैरकानूनी

कानूनी ना होना

नञ् तत्पुरुष समास

कर्मधारय समास-:

वह समास जिसका उत्तर पद प्रधान हो तथा पूर्व पद और उत्तर पदों के मध्य उपमान-उपमेय अथवा विशेषण-विशेष्य का संबंध हो, उसे कर्मधारय समास कहते हैं। 

विशेषताएं-: 

  • कर्मधारय समास का उत्तर पद प्रधान होता है। 

  • कर्मधारय समास का पूर्व पद उपमान अथवा विशेषण होता है तथा उत्तर पद उपमेय अथवा विशेष्य होता है। 

  • विशेषण-विशेष्य कर्मधारय समास विग्रह पर “है जो”शब्द आता है। 

जैसे-: नीलाम्बर = नीला है जो अंबर। 

जबकि उपमेय-उपमान कर्मधारय समास के विग्रह पर “के समान/रूपी”शब्द आता है। 

जैसे-: कमलनयन = कमल के समान नयन। 

कर्मधारय समास-: 

सामासिक पद

समास विग्रह

समाज का नाम

लालमाणि

लाल है जो मणि

विशेषण-विशेष्य कर्मधारय समास

परमानंद

परम है जो आनंद

विशेषण-विशेष्य कर्मधारय समास

कापुरुष 

कायर है जो पुरुष

विशेषण-विशेष्य कर्मधारय समास

महापुरुष

महान है जो पुरुष

विशेषण-विशेष्य कर्मधारय समास

बहुमूल्य

बहुत है जिसका मूल्य

विशेषण-विशेष्य कर्मधारय समास

कमलाक्षी

कमल के समान अक्षि(आंख)

उपमेय-उपमान कर्मधारय समास

लौहपुरुष

लौह सदृश्य पुरुष

उपमेय-उपमान कर्मधारय समास

चंद्रमुख

चंद्रमा के समान मुख

उपमेय-उपमान कर्मधारय समास

चरणकमल

कमल के समान चरण

उपमेय-उपमान कर्मधारय समास

 

द्विगु समास-: 

वह समास जिसका उत्तर पद प्रधान होते तथा पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। 

विशेषताएं-: 

  • उत्तर पद प्रधान होता है। 

  • प्रथम पद पूर्ण संख्यावाचक(1-9) होता है। 

  • द्विगु समास के सामाजिक पद का समास विग्रह करने पर “का समूह/का समाहार”शब्द आता है।

 जैसे-: चौराहा = चार राहों का समूह। 

सामासिक पद

समास विग्रह

समाज का नाम

चौमासा

चार माहों का समय

द्विगु समास

अष्टाध्यायी

आठ अध्यायों का समूह

द्विगु समास

नौग्रह

नौ ग्रहों का समूह

द्विगु समास

चतुर्भुज

चार भुजाओं का समूह

द्विगु समास

चवन्नी

चार आनों का समूह

द्विगु समास

त्रिफला

तीन फलों का समाहार

द्विगु समास

द्वंद्व समास-:

वह समाज जिसके दोनों पद प्रधान होते हैं, तथा सामासिक पद में योजक चिन्ह(-)लगा होता है, अन्यथा संधि होती है। 

द्वंद्व समास की विशेषताएं-:

  • समाज के दोनों पद प्रधान होते हैं। 

  • सामान्यतः समासिक पद के मध्य योजक चिन्ह होता है। अन्यथा संधि होती है। 

  • द्वंद्व समाज के सामासिक पद का विग्रह करने पर, “और/या/अथवा/आदि शब्द”आता है। 

जैसे-: माता-पिता = माता और पिता। आजकल = आज या कल। 

सामासिक पद

समास विग्रह

समाज का नाम

अमीर-गरीब

अमीर और गरीब

द्वंद्व समाज

दिन-रात

दिन और रात

द्वंद्व समाज

लाभालाभ

लाभ अथवा अलाभ

द्वंद्व समाज

देश-विदेश

देश और विदेश

द्वंद्व समाज

माता-पिता

माता और पिता

द्वंद्व समाज

अन्न-जल

अन्य और जल

द्वंद्व समाज

सुख-दुख

सुखि या दुख

द्वंद्व समाज

भूल-चूक

भूल या चूक

द्वंद्व समाज

जातकुजात

जात या कुजात

द्वंद्व समाज

चाय-पानी

चाय पानी आदि

द्वंद्व समाज

घर-द्वार

घर द्वार आदि

द्वंद्व समाज

मेल-मिलाप

मेल मिलाप आदि

द्वंद्व समाज

बहुव्रीहि समास-:

वह समास जिसमें दोनों पद प्रधान नहीं होते हैं बल्कि, दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे -:नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव। 

विशेषताएं-: 

  • इस समाज में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। 

  • बहुव्रीहि समास के पूर्व पद और उत्तर पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं।

जैसे-: एकदंत में प्रथम पद एक और द्वितीय पद दंत है ,और दोनों मिलकर भगवान गणेश की ओर संकेत कर रहे। 

सामासिक पद

समास विग्रह

समाज का नाम

लम्बोदर

लंबा है उदर जिसका, अर्थात गणेश

 

दशानन

दश है आनन जिसके, अर्थात रावण 

 

महावीर

महान वीर है जो, अर्थात हनुमान

 

चतुर्भुज

चार भुजाएं हैं जिसकी, अर्थात विष्णु

 

पीतांबर

पीला है अंबर जिसका, अर्थात पीतांबर

 

निशाचर

निशा में विचरण करने वाला, अर्थात निशाचर

 

प्रधानमंत्री

मंत्रियों में प्रधान है जो, अर्थात प्रधानमंत्री

 

मृगेन्द्र

मृगों का इंद्र, अर्थात सिंह

 

चक्रपाणि

चक्र है पाणि(हाथ) में जिसके, अर्थात विष्णु

 

विषधर

विष को धारण करने वाला, अर्थात सर्प

 
   

कर्मधारय समास और बहुव्रीहि समास में अंतर-:

  • कर्मधारय समास में उत्तर पद प्रधान होता है जबकि बहुव्रीहि समास में कोई पद प्रधान नहीं होता है। बल्कि बहुब्रीहि समास में प्रथम पद और उत्तर पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं जैसे-:  लंबोदर बहुब्रीहि समास है जिसका समाज विग्रह होगा-: लंबा उदर है जिसका, अर्थात गणेश। यहां पर प्रथम पद लंबा है और द्वितीय पद उदर है और दोनों मिलकर गणेश नामक नवीन पद की ओर संकेत कर रहे।

  • कर्मधारय समास की मुख्य विशेषता यह है कि इसका प्रथम पद विश्लेषण या उपमान होता है, तथा दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है। जैसे-: महावीर का समास विग्रह = “महान है जो वीर”यहां पर महा एक विशेषण है जबकि वीर विशेष्य है। 

जबकि बहुव्रीहि समास में सामासिक पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करता है। जैसे-: महावीर का बहुव्रीहि समास में समास विग्रह होगा “महान है जो वीर, अर्थात हनुमान”यहां पर संज्ञा हनुमान है और हनुमान का विशेषण महावीर है। 

द्विगु समास और बहुव्रीहि समास में अंतर-:

द्विगु समास का उत्तर पद प्रधान होता है जबकि बहुव्रीहि समास का कोई भी पद प्रधान नहीं होता, बल्कि बहुब्रीहि समास में प्रथम पद और उत्तर पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं जैसे-:  लंबोदर बहुब्रीहि समास है जिसका समाज विग्रह होगा-: लंबा उदर है जिसका, अर्थात गणेश। यहां पर प्रथम पद लंबा है और द्वितीय पद उदर है और दोनों मिलकर गणेश नामक नवीन पद की ओर संकेत कर रहे

द्विगु समास की मुख्य विशेषता यह है कि इसका पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण होता है तथा उत्तर पद विशेष्य होता है जैसे-: दिगु समास में चतुर्भुज का अर्थ है-: “चार भुजाओं का समूह”यहां पर चतुर्थ विशेषण है तथा भुज विशेष्य है जबकि बहुव्रीहि समास में सामासिक पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करता है, जैसे-: बहुब्रीहि समास में चतुर्भुज का अर्थ है -: “चार हैं भुजाएं जिसकी अर्थात विष्णु”यहां पर संज्ञा विष्णु है और विष्णु का विशेषण चतुर्भुज है। 

द्विगु समास और कर्मधारय समास में अंतर-:

दिगु समास का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की संख्या बताता है जबकि कर्मधारय समास में पहला पद विशेषण तो होता है किंतु संख्यावाचक विशेषण नहीं। जैसे-: “नवरत्न” द्विगु समास है जिसका अर्थ है- नौ रत्नों का समूह।  जबकि “पुरुषोत्तम” कर्मधारय समास है जिसका अर्थ है- पुरुषों में जो है उत्तम। 

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