समुदाय, संस्था एवं संघ
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समुदाय का अर्थ-:
“निश्चित क्षेत्र में हम की भावना के साथ निवास करने वाला सामाजिक समूह, समुदाय है। –-बोगार्डस।
समुदाय के आवश्यक तत्व-
व्यक्तियों का समूह
निश्चित भौगोलिक क्षेत्र
सामुदायिक भावना
समुदाय की विशेषताएं-:
स्वत: विकसित- समुदाय का निर्माण नियोजित तरीके से नहीं किया जाता, बल्कि ये स्वत ही विकसित हो जाते हैं।
मूर्ति संगठन- समुदाय व्यक्तियों का समूह होता है अतः इसे हम देख सकते हैं; यह मूर्ति संगठन है।
व्यक्तियों का समूह-समुदाय, व्यक्तियों का एक बड़ा समूह होता है।
निश्चित भौगोलिकक्षेत्र- समुदाय का संबंध किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र से होता है।
सामान्य जीवन सामान्य संस्कृत-एक समुदाय के लोगों का खान-पान, रहन-सहन , बोलचाल लगभग समान होता है।
सामुदायिक भावना-समुदाय के लोगों में ‘हम’ की भावना होती है तथा आपसे निर्भरता और दायित्व निर्वहन भी देखा जा सकता है।
विशिष्ट नाम-: प्रत्यक्ष समुदाय का एक विशिष्ट नाम होता है जैसे- भील समुदाय, पंजाबी समुदाय।
आत्मनिर्भरता-: समुदाय आत्म भरा होता है जो अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं ही कर लेता है।
समुदाय और समाज में अंतर-:
आधार | समुदाय | समाज |
अर्थ | व्यक्तियों का समूह। | व्यक्तियों के सामाजिक संबंधों की व्यवस्था। |
मूर्तता | मूर्ति स्वरूप | अमूर्त स्वरूप। |
हम की भावना | पाई जाती है | नहीं पाई जाती। |
पारस्परिक संबंध | समाज का हिस्सा। | समाज में अनेकों समुदाय होते हैं |
विस्तार | उपेक्षाकृत संकुचित विस्तार | उपेक्षाकृत अधिक विस्तार। |
रीतिरिवाज | एक समुदाय के सभी लोगों की रीति रिवाज एक समान होते हैं। | एक समाज में भिन्न-भिन्न रीति रिवाज प्रचलित हो सकते हैं। |
संस्था-
संस्था का अर्थ-:
“समाज की वह संरचना, जिसको सुस्थापित कार्य-विधियों द्वारा व्यक्तियों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए संगठित किया जाता है; उसे संस्था कहा जाता है— बोग़ार्ड्स।
उदाहरण-
परिवार।
विवाह।
सप्तपदीय पद्धति।
पाठशाला।
संस्था की उत्पत्ति-:
संस्थान जनरीतियों से आरंभ होती हैं, बाद में प्रथाएं बन जाती हैं, प्रथाओं में कल्याण का दर्शन मिल जाने से ये रूढ़ियां या लोकाचार में विकसित हो जाते हैं और अंत में यही रूढ़ियां संस्था का रूप ले लेती हैं।
संस्था की उत्पत्ति या विकास के चरण-:
विचार या धारणा-: सर्वप्रथम आवश्यकताओं की पूर्ति या समस्याओं के निराकरण के लिए विचार उत्पन्न होते हैं।
आदत-: विचार की व्यक्ति द्वारा पुनरावृत्ति आदत कहलाती है।
जनरीति-: आदत की समूह द्वारा पुनरावृत्ति या उसका अनुसरण किया जाना।
प्रथा -: जनरीति का पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण होना।
लोकाचार या रूढ़ी-: जब प्रथा में कल्याणकारी भावना का समावेश हो जाता है, तो यह लोकाचार बन जाती है।
एक संरचना-: समाज की कल्याणकारी जोड़ियां की रक्षा के लिए कुछ नियम, कार्य-प्रणाली और कानून आदि निर्मित हो जाते हैं जैसे संरचना कहा जाता है
संस्था-: मानवीय आवश्यकताओं और उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जो नियम, कार्य-विधियां और विधान होते हैं उसी को संस्था कहा जाता है।
संस्था की विशेषताएं-:
एक उद्देश्य-: संस्था के निश्चित उद्देश्य होते हैं और इन्हीं उद्देश्यों को पूरा करने के लिए संस्था का निर्माण किया जाता है जैसे – विवाह नामक संस्था का उद्देश्य- संतान उत्पत्ति है।
सांस्कृतिक व्यवस्था की इकाई-: संस्था संस्कृत व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण इकाई है, जब संस्कृति की इकाइयां जैसे- विचार , विश्वास, लोकनीति, लोकाचार, परंपरा, कार्य-विधियां व्यवस्थित हो जातीं हैं; तब ये संस्था का रूप ले लेती है।
नियम तथा उप नियम-संस्था के अंतर्गत निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति के कुछ नियम एवं उप नियम शामिल होते हैं।
स्थायित्व-: मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के रूप में संस्था का विकास होता है, अतः आवश्यकताओं की भांति संस्था भी लंबे समय तक बनी रहती हैं जैसे –विवाह पद्धति।
परंपराएं – संस्था की कुछ लिखित या अलिखित परंपराएं होती हैं।
सांस्कृतिक उपकरण-प्रत्येक संस्था से संबंधित कुछ भौतिक या भौतिक उपकरण होते हैं जैसे- हिंदू विवाह पद्धति में मंडप , मंत्र, बेदी, कलश, चावल आदि।
एक विरासत-संस्था एक विरासत के रूप में होती है, जिसका पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण होता रहता है।
संस्था के प्रकार-:
सामाजिक संस्थाएं-: विवाह ,परिवार ,नातेदारी आदि।
शैक्षिक संस्थाएं-: स्कूल, पाठ्यक्रम आदि।
आर्थिक संस्थाएं-: बैंक, बाजार, टकसाल आदि।
राजनीतिक संस्थाएं- संविधान ,राज्य ,शासन तंत्र आदि।
धार्मिक संस्थाएं-: मंदिर, मस्जिद, धार्मिक पुस्तकें आदि।
संस्था के कार्य या महत्व-:
मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति- संस्था की उत्पत्ति ही मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होती है; जैसे विवाह नामक संस्था, संतान उत्पत्ति की आवश्यकता की पूर्ति करती है।
व्यक्ति के कार्यों का सरलीकरण-: संस्था मानव जीवन के संघर्ष की स्थिति को सरल बना देती है जैसे- शिक्षा-अर्जन के कार्य को स्कूल नामक संस्था आसान बना देती है।
मानव व्यवहार पर नियंत्रण -: संस्था मानव के अनुच्छेद बिहार को नियंत्रित करती है; उदाहरण के लिए, संविधान नामक संस्था।
संस्कृति का वाहक-: संस्था समाज की पीढ़ी के ज्ञान, कला, साहित्य को अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करती है।
व्यक्तित्व निर्माण में उपयोगी- समाजशास्त्र परिपेक्ष में, संस्था व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत तक किसी न किसी रूप में व्यक्तित्व निर्माण का कार्य करती है।
भूमिका का निर्धारण- संस्था व्यक्ति की स्थिति का निर्धारण करती है; उदाहरण के लिए, विवाह नामक संस्था द्वारा पुरुष को पति और स्त्री को पत्नी की स्थिति प्राप्त होती है।
संस्था एवं समुदाय में अंतर-
आधार | समुदाय | संस्था |
अर्थ- | व्यक्तियों का समूह | नियमों,कानून एवं कार्य प्रणालियों का संकलन। |
मूर्तता | यह मूर्त रूप में होता है। | यह मूर्त या अमूर्त दोनों रूप में हो सकती है |
सामुदायिक भावना | इसमें सामुदायिक भावना का होना आवश्यक है। | इसमें सामुदायिक भावना होना आवश्यक नहीं है। |
भौगोलिक क्षेत्र | इसमें एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र होना आवश्यक है। | इसमें निश्चित भौगोलिक क्षेत्र होना आवश्यक नहीं है। |
परस्परिकसंबंध | समुदाय, संस्था का हिस्सा है। | एक संस्था में आने को समुदाय आ सकते हैं। |
साधन /साध्य | यह साध्य है | यह साधन है। |
संघ/association
संघ का अर्थ-:
निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु, व्यक्तियों द्वारा सहयोग एवं सोच विचार कर निर्मित किया गया संगठन।
उदाहरण- पुलिस संगठन, स्कूल संगठन, बाल उद्धार समिति।
संघ की विशेषताएं-:
व्यक्तियों का समूह- संघ दो से अधिक व्यक्तियों का समूह होता है।
निश्चितउद्देश्य- प्रत्येक संघ का कोई ना कोई एक निश्चित उद्देश्य होता है।
नियोजित स्थापना- संघ स्वत: रूप से विकसित नहीं होता, बल्कि इस सोच-विचार कर, नियोजित तरीके से बनाया जाता है।
ऐच्छिक सदस्यता- संघ की सदस्यता ऐच्छिक होती है, कोई भी अपनी इच्छा एवं आवश्यकता के अनुसार संघ का सदस्य बन सकता है।
नियमोंपर आधारित-: संघ का संचालन नियमानुसार होता है।
सहयोग की भावना-: संगठन के सभी सदस्यों में आपसी सहयोग की भावना होती है।
मूर्त संगठन-: संगठन को देखा जा सकता है, यह मूर्ति संगठन होता है।
अस्थाई प्रकृति-: संघ उद्देश्य प्राप्ति के पश्चात समाप्त हो जाता है, अतः यह अस्थाई प्रकृति का होता है।
संस्था एवं संघ में अंतर
आधार | संस्था | संघ |
अर्थ- | यह नियमों एवं कार्य-विधियों की एक व्यवस्था है। | यह व्यक्तियों का समूह है जो निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए, एकजुट हुआ है। |
मूर्तता | यह अमूर्त प्रकृति की हो सकती है। | यह सदैव मूर्ति रूप में होता है |
स्थायित्व | यह उपेक्षाकृत अधिक स्थाई प्रकृति की होती है। | यह उपेक्षाकृत कम स्थाई प्रकृति का होती है |
सदस्यता | व्यक्ति की सदस्यता का आधार नहीं | इसकी सदस्यता ऐच्छिक होती है |
विकास | इसका विकास स्वत: ही धीरे-धीरे होता है | इसका विकास नियोजित तरीके से किया जाता है। |
महत्व | इसमें नियमों का अधिक महत्व होता है। | इसमें व्यक्तियों का अधिक महत्व होता है। |