सर्वपल्ली राधाकृष्णन के दार्शनिक विचार

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

 

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सर्वपल्ली राधा कृष्ण का जीवन परिचय

भारत के राष्ट्रपति, महान शिक्षाविद ,दार्शनिक एवं भारत रत्न से सम्मानित सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तिरुपति (मद्रास) में ब्रह्मण परिवार में हुआ था। 

उनकी प्रारंभिक शिक्षा तिरुपति के ही हाई स्कूल में पूरी हुई इसके बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की और अपनी योग्यता के बल पर 1909 में मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज के शिक्षक बन गए। 

इसके बाद उन्होंने शिक्षा देने के साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करने की प्रक्रिया को भी जारी रखा और अपने ज्ञान में बढ़ोतरी करते गए। तथा वे अपने ज्ञान के आधार पर,आंध्र प्रदेश व बनारस विश्वविद्यालय के कुलपति, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष, भारत के उपराष्ट्रपति तथा भारत के राष्ट्रपति पद से सुशोभित हुए। इतने बड़े बड़े पद धारण करने के बाद भी उनका स्वभाव साधारण था और वे सांस्कृतिक विरासत से असीम प्रेम करते थे जो उनके व्यक्तित्व में परिलक्षित होता है इस प्रकार वे जीवन भर अध्यात्मिक विकास एवं जन कल्याण के कार्य में लगे रहे और अंततः 1975 को राधाकृष्णन का निधन हो गया। 

प्रमुख रचनाएं:-

  • इंडियन फिलासफी

  • हिंदू व्यू आफ लाइफ

  • आइडियलिस्टिक व्यू ऑफ लाइफ। 

सर्वपल्ली राधा कृष्ण के दार्शनिक विचार:-

सर्वपल्ली राधा कृष्ण एक महान दार्शनिक थे उनके दर्शन पर स्वामी विवेकानंद एवं नव्य वेदांतियों का काफी प्रभाव था उनके दार्शनिक विचार निम्नलिखित हैं:-

नव्य वेदांतवादी:-

सर्वपल्ली राधाकृष्णन अद्वैतवाद में विश्वास रखने वाले नव वेदांती परंपरा के दार्शनिक थे, उन्होंने माना कि मनुष्य ब्रह्म का ही अंश है और जगत मिथ्या ना होकर, जगत ब्रह्मा की ही अभिव्यक्ति है। 

ब्रह्म संबंधी विचार:-

सर्वपल्ली राधाकृष्णन परम सत्य की सत्ता को स्वीकारते हैं और कहते हैं कि परमसत् शाश्वत, पूर्ण, आदरणीय तथा अनंत संभावनाएं युक्त है, और ईश्वर (ब्रह्म) उस परमसत् की श्रेष्ठतम प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है उनके अनुसार इस परमसत को ही भारतीय दर्शन में ब्रह्म और पश्चात दर्शन में निरपेक्ष सत् कहा गया है।

अंतःप्रज्ञावाद:-

सामान्यतः ज्ञान प्राप्ति के दो ही साधन माने जाते हैं- इंद्रियनुभव एवं प्रज्ञा। किंतु राधाकृष्णन के अनुसार इंद्रियनुभव एवं प्रज्ञा (बुद्धि)दोनों से ही प्राप्त ज्ञान पूर्ण सत् नहीं होता है क्योंकि दोनों ही ज्ञान में संदेह निहित हो सकता है 

अतः दोनों के अलावा केवल अंत:प्रज्ञा (चिंतन मनन का आत्मज्ञान) द्वारा प्राप्त ज्ञान ही सत् ज्ञान है उसमें कोई संदेह नहीं किया जा सकता। 

समन्वयवादी दृष्टिकोण:-

राधाकृष्णन एक समन्वयवादी दार्शनिक थे, उनका मानना था कि भारत ने धार्मिक या आध्यात्मिक उन्नति की है और पश्चात जगत ने विज्ञान की उन्नति की है किंतु दोनों उन्नति में ही बुराइयां विद्वान हैं जहां एक ओर विज्ञान ने पूरे विश्व में भौतिकवाद ,उपभोक्तावाद ,प्राकृतिक असंतुलन ,परमाणु खतरा ,बढ़ाकर मानव के महत्व को गिराकर उसको एक साधन बना दिया है,वहीं दूसरी ओर धार्म ने अंधविश्वास, कुरीतियां तथा संप्रदायवाद कट्टरतावाद को जन्म दिया है। 

उन्होंने कहा है- धर्म के अभाव में विज्ञान अंधा है और विज्ञान के अभाव में धर्म पंगु है। 

अतः धर्म एवं विज्ञान दोनों के बीच समन्वयता का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, क्योंकि विश्व को भौतिक व आध्यात्मिक दोनों कल्याण की आवश्यकता है। 

धर्म संबंधी विचार:-

सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनुसार धर्म का तात्पर्य रीति-रिवाजों, कर्मकांडों से ना होकर ऐसी आध्यात्मिक अनुभूति के अनुरूप व्यवहार करने से है जो मानव कल्याण के लिए जरूरी हो। 

उनका मानना था कि धर्म से जो बुराई पैदा हुई है जैसे- संप्रदायवाद, वह धर्म के गलत प्रयोग से पैदा हुई है ना कि धर्म के स्वयं गलत होने से। अतः वे व्यक्ति के जीवन में धर्म को आवश्यक मानते थे क्योंकि धर्म मानवता की ओर ले जाता है।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन के राजनीतिक विचार:-

समानता की पक्षधर:-

सर्वपल्ली राधाकृष्णन आर्थिक एवं सामाजिक समानता को ही वास्तविक न्याय मानते थे। उनका कहना था कि “मैं समानता बादी समाज का पूर्णतः समर्थन करता हूं”। हालांकि उन्होंने समाजवाद की स्थापना के लिए साम्यवाद विचारधारा के अनुरूप क्रांति को कदापि महत्व नहीं दिया।  

स्वतंत्रता पर बल:- 

सर्वपल्ली राधाकृष्णन व्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रबल पक्षधर थे,वे व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं चाहते थे। क्योंकि उनका मानना था स्वतंत्रता नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए जरूरी है। 

जाति व्यवस्था का विरोध:-

राधाकृष्णन पुरातन वादी वर्ण व्यवस्था के समर्थक थे जिसमें व्यक्तियों को उनकी योग्यता के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांटा जाता था किंतु वर्तमान की जन्म आधारित जाति व्यवस्था के विरोधी थे। 

राष्ट्रवाद :-

सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्ट्रवाद के समर्थक थे किंतु वे संकीर्ण राष्ट्रवाद के विरोधी थे। 

सर्वपल्ली राधा कृष्ण की शिक्षा संबंधी विचार:-

सर्वपल्ली राधाकृष्णन भौतिक शिक्षा के स्थान पर आध्यात्मिक शिक्षा को अधिक महत्व देते हैं, उनका मानना था कि आधुनिक युग में भौतिकवादी शिक्षा की प्रधानता है इसलिए वर्तमान में शिक्षा भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन बन गया है। 

उनके अनुसार सच्ची शिक्षा वही है जो-: 

  • विद्यार्थियों के चरित्र का निर्माण करे। 

  • एकता ,अहिंसा, भाईचारा जैसी भावना को उत्पन्न करे।

  • अंतः प्रज्ञा(चिंतन मनन द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त करना) का विकास करें। 

  • जीने की कला सिखाएं

  • विद्यार्थी के अंदर स्वतंत्रता, समानता, प्रजातंत्र की भावना विकास करे।

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