सामाजिक परिवर्तन
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Toggleसामाजिक परिवर्तन का अर्थ-:
“सामाजिक संबंधों में होने वाला परिवर्तन” — मेकाइबर एवं पेज।
सामाजिक परिवर्तन के घटक-:
सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन
सामाजिक प्रथाओं में परिवर्तन
सामाजिक के ढांचा में परिवर्तन
सामाजिक संबंधों में परिवर्तन
सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएं-:
सार्वभौमिक प्रक्रिया-
सामाजिक परिवर्तन एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है, सभी वर्गों, समाजों तथा सभी देशों में सामाजिक परिवर्तन होता है।
स्वाभाविक प्रक्रिया
सामाजिक परिवर्तन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, समय परिस्थिति के अनुरूप स्वाभाविक रूप से समाज में परिवर्तन होता रहता है।
सामाजिक परिवर्तन की गति-
सामाजिक परिवर्तन की गति शहरी समाज में तीव्र और ग्रामीण समाज में धीमी होती है।
स्वरूप–
सामाजिक परिवर्तन व्यक्तिगत ना होकर , सामूहिक होते हैं।
प्रकृति-
सामाजिक परिवर्तन मात्रात्मक ना होकर गुणात्मक होते हैं, अर्थात मूल्य, रिवाजों एवं विश्वास में परिवर्तन होता है।
सामाजिक परिवर्तनों का प्रभाव-;
सामाजिक परिवर्तन का परिवार पर प्रभाव –
परिवारों का आकार छोटा होना, संयुक्त परिवार एकल परिवार में परिवर्तित होते जा रहे हैं।
पारिवारिक मुखिया की भूमिका कम होती जाना।
विवाह में परिवर्तन-: वर्तमान में प्रेम विवाह , विधवा विवाह को बढ़ावा मिल रहा है; बाल विवाह, बहु विवाह काम होते जा रहे हैं।
धार्मिक कार्यों में कमी-: पहले धार्मिक कर्म अधिक होते थे, अब कम होते जा रहे हैं।
नातेदारी का महत्व कम-: अब संबंधों में भी व्यवसायिकता या औपचारिकता को बढ़ावा मिल रहा है।
संबंधों की मधुरता में कमी-: संबंधों में भौतिकतावाद का प्रभाव बढ़ रहा है।
सामाजिक परिवर्तन का शिक्षा पर प्रभाव -:
शिक्षा का निजीकरण होना।
शिक्षा का डिजिटल कारण होना; जैसे- ई-पाठशाला, स्वयं पोर्टल।
साक्षरता दर में वृद्धि।
तकनीकी आधारित शिक्षा जैसे-A.I.की शिक्षा, रोबोटिक की शिक्षा को बढ़ावा।
शिक्षा का व्यवसायीकरण।
सामाजिक परिवर्तन पर स्तरीकरण का प्रभाव
सामाजिक स्तरीकरण-:
समाज का उच्च तथा निम्न स्तरों में विभाजन होना, सामाजिक स्तरीकरण कहलाता है।
उदाहरण के लिए-
उच्च वर्ग – वह वर्ग जो आय एवं शिक्षा की दृष्टि से संपन्न है।
निम्न वर्ग- वह वर्ग जो आय एवं शिक्षा की दृष्टि से निम्न स्थिति में है।
सामाजिक परिवर्तन का स्तरीकरण पर प्रभाव-:
सामाजिक स्तरीकरण का आधार जन्मजात ना होकर, योग्यता आधारित हो गया है।
सामाजिक स्तरीकरण की कठोरता में कमी आई है।
सामाजिक स्तरीकरण में श्रम विभाजन एवं विशेषीकरण को बढ़ावा मिला है।
विभिन्न स्तरों के भेदभाव में कमी हुई है।
विभिन्न सामाजिक स्तरों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिला है।
निम्न सामाजिक स्तर के शोषण में कमी आई है।
द्वि- स्तरीय स्तरीकरण का अभ्युदय हुआ है,
पूंजीपति वर्ग।
श्रमिक वर्ग।