सावित्रीबाई फुले उनके सामाजिक/महिला कल्याण संबंधी विचार

[सावित्रीबाई फुले]

.सावित्रीबाई फुले उनके सामाजिक/महिला कल्याण संबंधी विचार

सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय

देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले का जन्म 1831 को महाराष्ट्र के पुणे में स्थित नायगांव में दलित कृषक परिवार के घर हुआ था,

तत्कालीन समय में प्रचलित बाल विवाह की प्रथा के अनुसार सावित्रीबाई फुले का विवाह मात्र 9 साल की उम्र में ज्योतिबा फुले के साथ हुआ। जो उनसे 4 साल बड़े थे, वे बचपन से ही पढ़ना लिखना चाहती थी किंतु तत्कालीन रूढ़िवादी प्रथाओं के कारण उन्हें पढ़ने नहीं दिया गया हालांकि विवाह के उपरांत उनके प्रति ज्योतिबा फुले ने उन्हें स्वयं पढ़ाया, जिससे वे शिक्षित हो पायी,

सावित्रीबाई फुले तत्कालीन समय की महिलाओं एवं दलितों की दुर्दशा के प्रति चिंतित थी क्योंकि उनके साथ पशुओं की भांति व्यवहार किया जाता था और उन्होंने पाया कि इस स्थिति का मुख्य कारण अशिक्षा एवं परंपरागत रूढ़िवादिता हैं अतः उन्होंने जाति व्यवस्था, सती प्रथा, बाल विवाह, छुआछूत का विरोध करते हुए अनेकों लड़कियों एवं महिलाओं को शिक्षित किया। एवं सदैव समाज सेवा में सक्रिय रहीं अंततः  1897 में प्लेग रोगियों की सेवा करते हुए सावित्रीबाई फुले स्वयं प्लेग की चपेट में आ गईं जिस कारण से 1897 में उनका देहांत हो गया।

सावित्रीबाई फुले के विचार :-

महिला स्वतंत्रता संबंधी विचार:- 

सावित्रीबाई फुले के समय नारियों की स्थिति बद से बदतर हो गई थी उन्हें केवल पुरुषों के पैरों की जूती समझा जाने लगा था, उनका काम केवल चूल्हा चौका करना, बच्चे पैदा करना, और पति के आदेशानुसार पति की सेवा करना था, अतः सावित्रीबाई फुले महिलाओं की स्थिति से काफी दुखी थी, उनका महिलाओं के संबंध में विचार था

  • महिला पुरुष के समान होती है उन्हें पुरूष से निम्नतर नहीं समझा जाना चाहिए।  

  • महिला एवं पुरुष के लिए एक समान कानून,नियम होने चाहिए। 

  • महिलाओं को भी पुरुष की भांति सभी धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त होनी चाहिए। उन्हें धर्म परिवर्तन का भी अधिकार होना चाहिए। 

  • महिलाएं तभी स्वतंत्र हो सकती है जब उन्हें शिक्षित किया जाए, ताकि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सके

अतः उन्होंने महिलाओं की स्वतंत्रता के संबंध में केवल विचार ही प्रकट नहीं किए बल्कि महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए उन्हें शिक्षित किया, संगठित किया और बेसहारा महिलाओं को सहारा दिया। 

इस संदर्भ में सावित्रीबाई फुले के निम्न कृत उल्लेखनीय है:-

  • सर्वप्रथम 1848 में महाराष्ट्र के पुणे के भिडेवाडा़ में देश की पहले बालिका स्कूल की स्थापना की। और इसी क्रम में उन्होंने लड़कियों के लिए लगभग 18 स्कूल खोलें। 

  • उन्होंने महिलाओं को संगठित करने के लिए 1852 में महिला सेवा मंडल का गठन किया जिसका उद्देश्य महिलाओं के अंदर उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाना था। 

  • उन्होंने 1854 में विधवा महिलाओं को शरण देने के लिए विधवा आश्रम की स्थापना की। 

महिला शिक्षा संबंधी विचार:-

सावित्रीबाई फुले महिलाओं की दयनीय स्थिति का मुख्य कारण अशिक्षा को मानती थी क्योंकि अशिक्षा के कारण ही महिलाएं स्वयं को पति एवं समाज की दासी समझने लगती थी और अपने अधिकारों के लिए नहीं लड़ पाती थी अतः उन्होंने महिलाओं को जागरूक करने व स्वतंत्र बनाने के लिए महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया इस संदर्भ में सर्वप्रथम 1848 में महाराष्ट्र के पुणे के भिडेवाडा़ में देश की पहले बालिका स्कूल की स्थापना की। और इसके पश्चात एक के बाद एक 18 महिला स्कूल खोले। जिनका महिला शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान है। 

सामाजिक कुरीतियों का विरोध:-

सावित्रीबाई फुले के समय ब्रह्मणवादी धार्मिक कुरीतियां, पाखंड एवं परंपरागत रूढ़िवादिताएं अपने चरम अवस्था में थी जिस कारण से समाज में महिलाओं एवं दलितों की स्थिति काफी ज्यादा दयनीय थी उनके साथ इंसान की भांति नहीं, बल्कि पशुओं की भांति व्यवहार किया जाता था, अतः सावित्रीबाई फुले ने तत्कालीन सामाजिक कुरीतियों का घोर विरोध किया जिस का विवरण निम्न लिखे है:-

कन्या भूण हत्या का विरोध:-

सावित्रीबाई फुले कन्या भ्रूण हत्या की प्रबल विरोधी थी उनका मानना था कि बेटा बेटी एक समान होते है अतः कन्या भ्रूण हत्या करना गलत है और कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाने के लिए उन्होंने इसका तीव्र विरोध किया तथा भ्रूण हत्या के विरुद्ध महिलाओं को शरण देने हेतु 1853 में बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की। 

सती प्रथा का विरोध:-

सबित्री बाई फुले सती प्रथा को अतार्किक एवं स्त्रियों की पराधीनता का कारण मानती थी अतः उन्होंने सती प्रथा का डटकर विरोध किया उन्होंने विधवाओं को शरण देने के लिए 1854 में विधवा आश्रम की स्थापना भी की। 

छुआछूत का विरोध:-

सावित्रीबाई मानती थी कि सभी व्यक्ति एक समान होते हैं अतः उनके साथ जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए और उन्होंने दलितों की स्थिति को सुधारने के लिए उनको शिक्षित करना सबसे उपयुक्त माध्यम माना और दलित एवं मजदूर किसानों को शिक्षा देने के लिए उन्होंने रात्रि विद्यालय की स्थापना की। 

इसके अलावा उन्होंने अस्पृश्यता के खिलाफ अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर छुआछूत विरोधी अभियान भी चलाया। 

विधवा पुनर्विवाह का समर्थन:- 

सावित्रीबाई फुले के अनुसार जिस प्रकार पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद पति को अपना पुनर्विवाह करने का अधिकार होता है उसी प्रकार पति की मृत्यु हो जाने के उपरांत पत्नी को भी पुनर्विवाह करने का अधिकार होना चाहिए इसलिए वह विधवा पुनर्विवाह का समर्थन करती थी और विधवाओं को शरण देने के लिए उन्होंने विधवा आश्रम की स्थापना भी की। 

ब्रह्माण्डवाद का विरोध:-

सावित्रीबाई फुले ने सभी प्रकार की सामाजिक कुरीतियां एवं भेदभाव व अन्याय ,अत्याचार का कारण ब्राह्मणवाद को माना है, उनके अनुसार ये ब्राह्मण लोग धर्म शास्त्रों का वास्ता देकर महिला, शूद्रों एवं दलितों का शोषण करते हैं अतः वे ब्राह्मणवाद के खिलाफ थी। और ब्राह्मण वादी संस्कृति जैसे- पर्दा प्रथा ,जाति प्रथा, लिंग आधारित शिक्षा, विधवा स्त्रियों के बाल काटने की प्रथा के खिलाफ थी। और उन्होंने इनका डटकर विरोध किया। 

सावित्रीबाई फुले के बारे में अधिकांश लोग अनभिज्ञ क्यों है?

इसके दो कारण हैं-: 

  • ब्रह्मणवादी सत्ता द्वारा सावित्रीबाई फुले के विचारों को दबाया गया है।

  • सावित्रीबाई फुले की रचनाएं विभिन्न भाषा में मौजूद नहीं है जिससे विभिन्न भाषायी क्षेत्रों में इनका प्रचार प्रसार नहीं हो सका। 

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