[स्वास्थ्य योजना एवं कार्यक्रम]
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Toggleभारतीय संविधान के अनुच्छेद 47 में कहा गया है कि-: राज्य का यह कर्तव्य होगा कि वह लोगों के जीवन स्तर, पोषण आहार स्तर तथा लोक स्वास्थ्य में अभिवृद्धि करें एवं मादक पदार्थों के उपयोग पर रोक लगाए।
अर्थात भारतीय संविधान सरकार को यह निर्देश देता है कि वह लोगों के पोषण आहार स्तर तथा लोक स्वास्थ्य में अभिवृद्धि करें।
और इसी प्रावधान के तहत सरकार द्वारा लोक स्वास्थ्य में वृद्धि करने के लिए लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाने के लिए अनेकों कार्यक्रम संचालित हैं।
स्वास्थ्य कार्यक्रम का तात्पर्य-:
स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास एवं विस्तार करके सभी लोगों तक स्वास्थ्य सेवा की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एक सुनियोजित रणनीति के तहत जो सरकारी कदम उठाए जाते हैं उन्हें स्वास्थ्य कार्यक्रम कहा जाता है।
स्वास्थ्य कार्यक्रमों को दो भागों में बांटा जा सकता है-:
निरोधात्मक स्वास्थ्य कार्यक्रम
उपचारात्मक स्वास्थ्य कार्यक्रम।
निरोधात्मक स्वास्थ्य कार्यक्रम-:
ऐसे स्वास्थ्य कार्यक्रम जो पहले से ही, विभिन्न रोग कारकों को समाप्त करके व्यक्तियों को अस्वस्थ होने से बचाने के लिए चलाए जाते हैं
जैसे-: मिशन इंद्रधनुष कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, जननी सुरक्षा योजना।
उपचारात्मक स्वास्थ्य कार्यक्रम-:
ऐसी स्वास्थ्य कार्यक्रम जो अस्वस्थ होने के बाद अस्वस्थ व्यक्ति को उपचार (चिकित्सा सेवा) देकर स्वस्थ करने के लिए चलाए जाते हैं उन्हें उपचारात्मक स्वास्थ्य कार्यक्रम कहते हैं।
जैसे-: मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना, आयुष्मान भारत योजना, राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम।
प्रमुख उपचारात्मक स्वास्थ्य कार्यक्रम-:
राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम(NLEP)
यह लेप्रोसी नामक बैक्टीरिया से फैलने वाला एक संक्रामक रोग है।
पहले कुष्ठ रोग को भगवान का अभिशाप माना जाता था किंतु ऐसा नहीं है बल्कि यह बैक्टीरिया द्वारा फैलने वाला एक संक्रामक रोग है अतः भारत से कुष्ठ रोग का उन्मूलन करने के लिए तथा कुष्ठ रोगियों को पुनर्वास की सुविधा देने के लिए 1955 में राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम चलाया गया।
कार्यक्रम के उद्देश्य
कुष्ठ रोग से ग्रसित रोगियों की पहचान करना।
कुष्ठ रोग के उपचार की सुविधा देने वाले उपचार केंद्रों का विकास व विस्तार करना।
कुष्ठ रोग के कारणों एवं उपचार के प्रति लोगों को जागरूक करना।
घटक -:
कुष्ठ रोगियों को आवश्यक पुनर्वास की सेवा दी गई।
प्रतिरक्षा हेतु टीकाकरण किया गया।
उपलब्धि-:
1983 में प्रत्येक 10000 की जनसंख्या में 57.6 कुष्ठ रोगी मौजूद थे, किंतु इस कार्यक्रम के प्रभाव से 2020 में प्रति 10000 की जनसंख्या में कुछ रोगियों की संख्या 0.6 बची।
आगे की राह-:
भारत में पूर्ण कुष्ठ रोग उन्मूलन का लक्ष्य 2027 तक रखा गया।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम-:
एड्स एचआईवी वायरस द्वारा फैलने वाला एक संक्रामक रोग है।
भारत में एड्स का उन्मूलन करने के लिए 1992 से ही राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
कार्यक्रम के उद्देश-:
एड्स से ग्रसित रोगों की पहचान करना। तथा उन्हें आवश्यक उपचार सेवा देना।
एड्स के उपचार की सुविधा देने वाले उपचार केंद्रों का विकास व विस्तार करना तथा एड्स को समाप्त करने से संबंधित अनुसंधान को बढ़ावा देना।
एड्रेस के कारणों एवं उपचार के प्रति लोगों को जागरूक करना।
घटक-:
इसके अंतर्गत अभी तक चार चरण पूरे हो चुके हैं और पांचवा चरण लागू है जो 2025-26 तक चलेगा
इसी कार्यक्रम के तहत रेड रिबन एक्सप्रेस अभियान चलाया गया।
वर्तमान स्थिति -:
वर्तमान भारत में लगभग 21 लाख एड्स के रोगी हैं।
आगे की राह-:
भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक ऐड्स उन्मूलन का लक्ष्य रखा।
राष्ट्रीय दृष्टिहीनता नियंत्रण कार्यक्रम-:
दृष्टिहीनता का सामान्य तात्पर्य आंखों से दिखाई ना देना है।
प्रारंभ
इस रोग के नियंत्रण के लिए 1976 में राष्ट्रीय दृष्टिहीनता नियंत्रण कार्यक्रम (एनपीसीबी) की शुरुआत की गई।
उद्देश्य -:
नेत्र रोगियों की पहचान एवं उन्हें उपचार की सुविधा देना।
नेत्र उपचार केन्द्रों का विकास विस्तार करना।
लोगों को नेत्र स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करना।
घटक-:
गांव गांव जाकर विभिन्न नेत्र जांच एवं उपचार शिविरों का आयोजन।
मोतियाबिंद के ऑपरेशन के निशुल्क सेवा प्रदान की गई।
वर्तमान स्थिति-:
भारत में लगभग 12 मिलियन लोग अंधत्व की समस्या से ग्रस्त है।
आगे की राह-:
2025 तक भारत को मोतियाबिंद मुक्त बनाना।
पल्स पोलियो प्रतिरक्षण कार्यक्रम-:
पोलियो, पोलियो मेलाइटिस नामक वायरस से होने वाला एक संक्रामक रोग है।
प्रारंभ -:
अतः इसके विरुद्ध प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए वर्ष 1995 को पल्स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम चलाया गया।
उद्देश्य –
5 वर्ष तक के सभी बच्चों का टीकाकरण करना।
भारत से पोलियो का उन्मूलन।
घटक-:
इसके अंतर्गत आंगनबाड़ी एवं स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर-घर जाकर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को पोलियो टीका की ओरल डोज पिलाती है।
उपलब्धि-:
WHO द्वारा, वर्ष 2014 को भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया गया।
राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम-:
क्षय रोग ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया से होने वाला एक बैक्टीरिया जनक संक्रामक रोग है,
भारत से टीवी का उन्मूलन करने के लिए सर्वप्रथम 1962 में राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम चलाए गए थे किंतु इसे विशेष सफलता न मिलने पर 1992 में पुनः राष्ट्रीय तपेदिक नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
कार्यक्रम के उद्देश-:
तपेदिक से ग्रसित रोगों की पहचान करना। तथा उन्हें आवश्यक उपचार सेवा देना।
तपेदिक के उपचार की सुविधा देने वाले उपचार केंद्रों का विकास व विस्तार करना।
तपेदिक के कारणों एवं उपचार के प्रति लोगों को जागरूक करना।
घटक -:
इस कार्यक्रम के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में टीवी के उन्मूलन हेतु टीवी रोगियों की जांच एवं उपचार के लिए डॉट्स (dots)प्रणाली की शुरुआत की गई।
डॉट का पूरा नाम है डायरेक्ट ऑब्जर्वड ट्रीटमेंट शॉर्टकोर्स-: इसमें लगभग 6 माह तक डॉक्टर की निगरानी में रखकर इसका इलाज किया जाता है।
वर्तमान स्थिति –वर्तमान समय में भारत में छय रोग के लगभग 25लाख मरीज है।
लक्ष्य -:
वर्ष 2025 तक भारत में पूर्ण रूप से टीवी उन्मूलन का लक्ष्य रखा गया।
वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम
मच्छर, चूहा या अन्य कीट के काटने से हमारे शरीर में रोगाणु प्रवेश पड़ जाते हैं जिस रोग उत्पन्न होता है।
अतः वेक्टर जनित रोग के नियंत्रण के लिए 2004 में, nvbdcp चलाया गया।
उद्देश्य -:
मच्छरों द्वारा फैलने वाले निम्न छह रोगों का उपचार एवं उन्मूलन-: मलेरिया, डेंगू, कालाजार जापानी इनफ्लुएंजा, चिकनगुनिया, लसीका फाइलेरिया।
घटक –
अनेकों स्थान पर वेक्टर जनित रोग उपचार केंद्र खोले गए।
इसके प्रति लोगों को जागरूक किया गया।
घर घर जाकर डीडीटी का छिड़काव किया गया।
उपलब्धि-:
WHO द्वारा, वर्ष 2020 को भारत को लसीका फाइलेरिया मुक्त घोषित किया गया।
लक्ष्य -:
2025 तक कालाजार उन्मूलन का लक्ष्य।
2027 तक मलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य।
प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम-:
शुरुआत -:
इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1997 को की गई।
उद्देश्य -:
शिशु मृत्यु दर एवं शिशु रुग्णता में कमी।
मातृ मृत्यु दर एवं मातृ रुग्णता में कमी।
परिवार नियोजन को बढ़ावा।
घटक –
अनचाहे गर्भ की रोकथाम के लिए गर्भनिरोधक उपाय।
बच्चे तथा माता के टीकाकरण की व्यवस्था।
बाल पोषण की व्यवस्था।
लक्ष्य –
2030 तक, मातृ मृत्यु दर 70/प्रति लाख तक सीमित करना।
एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम (1975)
समेकित बाल विकास योजना की शुरुआत 2 अक्टूबर 1975 को 33 सामुदायिक विकास केंद्रों से की गई किंतु वर्तमान में यह योजना पूरे भारत में संचालित है।
इस योजना का उद्देश्य-:
0 से 6 वर्ष तक के बच्चों के पोषण आहार एवं स्वास्थ्य स्तर की स्थिति को बेहतर बनाना।
गर्भवती धात्री महिलाओं के पोषण आहार एवं स्वास्थ्य स्तर की स्थिति को बेहतर बनाना।
बाल मृत्यु दर एवं मातृ मृत्यु दर में कमी करना।
इस योजना की प्रमुख सेवाएं-:
पूरक पोषण आहार
6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों तथा गर्भवती महिलाओं को दूध पिलाने वाली महिलाओं की पहचान कर, बच्चों को वर्ष के न्यूनतम 300 दिन 500 कैलोरी प्रतिदिन के हिसाब से तथा महिलाओं को वर्ष के न्यूनतम 300 दिन 600 किलो डी प्रतिदिन के हिसाब से पूरक पोषण प्रदान किया जाता है।
स्वास्थ्य जांच
प्रतिक आंगनवाड़ी केंद्र में प्रत्येक माह के किसी एक दिन (सामान्यतः मंगलवार को,) एएनएम तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा चयनित महिलाओं एवं बच्चों की स्वास्थ्य जांच की जाती है तथा उन्हें आवश्यक होने पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में रेफर किया जाता है।
टीकाकरण
प्रत्येक आंगनबाड़ी केंद्र में प्रत्येक माह के किसी एक दिन (सामान्यता मंगलवार) एएनएम तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता द्वारा चिन्हित महिला एवं बच्चों का टीकाकरण किया जाता है।
भारत में टीकाकरण का परिदृश्य
वैक्सीन भविष्य में होने वाले रोगों को पूर्व से ही समाप्त करने का एक निरोधात्मक उपाय है, किंतु यह सत्य है कि अभी तक सभी संक्रामक रोगों के विरुद्ध वैक्सीन उपलब्ध नहीं हो पाए, अभी कुछ ही लोगों की वैक्सीन उपलब्ध है जैसे-: टीवी, टाइफाइड ,डिप्थीरिया पीलिया पोलियो।
किंतु अभी तक मलेरिया ,कुष्ठ रोग, एचआईवी एड्स आदि के टीके उपलब्ध नहीं।
किंतु हमारे भारत में दुर्भाग्य की बात यह है कि संक्रामक रोगों के ऐसे वैक्सीन जो विकसित किए जा चुके हैं वह भी सभी बच्चों को नहीं लग पा रहे हैं। वर्तमान में भारत के लगभग 30% बच्चे ऐसे हैं जो पूर्ण टीकाकरण से वंचित रह जाते हैं।
हालांकि भारत ने टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए 1978 से ही अनेकों प्रयास किए जा रहे हैं।
जैसे 1978 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया गया।
और जब यह कार्यक्रम पूर्ण रूप से सफल नहीं हुआ तो
1985 में सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया गया।
सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम का उद्देश्य-:
टीकाकरण की कवरेज को प्रत्येक जिले में तेजी से बढ़ाना।
टीका के निर्माण में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
वैक्सीन को सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड चैन सिस्टम स्थापित करना।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत शिशु एवं गर्भवती महिलाओं में होने वाली 10 खतरनाक बीमारियों जैसे ,टीवी ,पोलियो, पीलिया ,डिप्थीरिया आदि का टीकाकरण किया गया।
इसके बाद वर्ष 2014 में इंद्रधनुष मिशन की शुरुआत की गई जिसके तहत बच्चों को टीके लगाए जाते हैं। हालांकि अब इंद्रधनुष मिशन में शामिल टीकों की संख्या 12 कर दी गई।
मिशन इंद्रधनुष के तहत दिए जाने वाले प्रमुख टीका-:
हेपिटाइटिस-बी -: यह टीका जन्म से 24 घंटे के भीतर दिया जाता है।
बीसीजी का टीका-: यह टीवी उन्मूलन के लिए दिया जाता है।
ओपीवी टीका-: यह ओरल टीका है, जो पोलियो उन्मूलन के लिए दिया जाता है।
रोटावायरस वैक्सीन-: यह डायरिया से सुरक्षा के लिए।
पेंटावेलेंट वैक्सीन -:डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनेस तथा इन्फ्लूएंजा से सुरक्षा के लिए दी जाती है।
जेई वैक्सीन -: यह जापानी इन्फ्लूएंजा से सुरक्षा के लिए दी जाती है।
सघन मिशन इंद्रधनुष-: सघन मिशन इंद्रधनुष की शुरुआत 2018 में की गई यह इंद्रधनुष मिशन का ही संशोधित रूप है। इसका उद्देश्य 90% पूर्ण टीकाकरण के लक्ष्य को प्राप्त करना।
राष्ट्रीय आयुष मिशन-:
2014 में राष्ट्रीय आयुष मिशन की शुरुआत की गई।
मंत्रालय-: आयुष मंत्रालय, भारत सरकार।
राष्ट्रीय आयुष मिशन के उद्देश्य
आयुष अस्पतालों या औषधालय हो की संख्या एवं सुविधा में बढ़ोतरी करना।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ,जिला अस्पतालों में आयुष सुविधाओं की सह-स्थापना करना।
औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देना।
आयुष दवाओं का मानको के अनुसार गुणवत्तापूर्ण तरीके से निर्माण को बढ़ावा देना।
सभी लोगों तक आयुष स्वास्थ्य सेवा की जागरूकता एवं पहुंच सुनिश्चित करना।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-:
यह भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा कराया जाने वाला एक घरेलू सर्वेक्षण है।
यह सर्वेक्षण 1992-93 से जारी किया जाता है अभी तक पांच सर्वेक्षण हो चुके हैं।
जिसका उद्देश्य-:
विभिन्न क्षेत्रों के स्वास्थ्य से संबंधित विभिन्न पहलुओं के आंकड़े एकत्रित कर उनका प्रकाशन करना।
इस सर्वेक्षण में निम्न आंकड़ों का संकलन एवं प्रकाशन किया जाता है-:
जन्म दर ,मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर ,शिशु मृत्यु दर आदि।
कुपोषण तथा एनीमिया से संबंधित आंकड़े।
संक्रामक एवं असंक्रामक रोगों की स्थिति।
स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता एवं स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच।
सर्वेक्षण की पद्धति-:
इस सर्वेक्षण के अंतर्गत ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र में घर घर जाकर साक्षात्कार द्वारा विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी जानकारी ली जाती है।
तथा बच्चों के वजन तथा ऊंचाई आदि को मापकर उसे दर्ज किया जाता है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5-:
इस सर्वेक्षण में लगभग 6.1 लाख घरों के आंकड़े एकत्रित किए गए।
जिसके परिणामों को दिसंबर 2020 में जारी किया गया।
प्रमुख आंकड़े-: राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े निम्नलिखित हैं
कुल प्रजनन दर- 2.0
संस्थागत प्रसव- 89 प्रतिशत
टीकाकरण- 77% बच्चों का पूर्ण टीकाकरण।
बाल विवाह- 23% महिलाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हुई।
स्टंटिंग रेट-: 36% (पहले nfhs-4 में 38%)
संक्रामक रोग-
टी.बी. के प्रति 100000जनसंख्या पर,270 मारीज।
मलेरिया के- प्रति 1000 जनसंख्या पर 11 मारीज।
भारत की 19% ग्रामीण जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करतीहै।
स्वच्छ भारत मिशन-:
यह एक देशव्यापी मिशन है।
प्रारंभ-:
इसकी शुरुआत 2 अक्टूबर 2014 को की गई।
उद्देश्य
खुले में शौच से मुक्ति पाना।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार।
स्वास्थ्य के प्रति जन-जागरूकता।
इसके तहत 2019 तक भारत को खुले में शौच मुक्त भारत बनाना था
घटक-
स्वच्छ भारत मिशन के दो कार्य क्षेत्र हैं-
स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण। इसका संचालन जल शक्ति मंत्रालय के तहत किया जाता है।
स्वच्छ भारत मिशन-शहरी।
इसका संचालन अबासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा।
इसके अंतर्गत सरकारी सब्सिडी देकर घर-घर शौचालय बनवाए गए।
दूषित जल के शुद्धीकरण हेतु सीरीज ट्रीटमेंट प्लांट तथा सीवरेज उपचार प्रणाली का विकास।
लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक किया गया।
उपलब्धियां-:
खुले में शौच मुक्त(ODF) पल के तहत लगभग 11 करोड़ शौचालय बना दिए गए हैं।
शहरी क्षेत्र में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की समुचित व्यवस्था की गई।
7लाख से अधिक गांवों तथा 4 करोड़ से अधिक शहरी बार्डों को odf घोषित किया गया।
प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना
आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत 25 सितंबर 2018 को की गई। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के नाम से भी जाना जाता है।
इस योजना का उद्देश्य
महंगी स्वास्थ्य सेवाओं को जनसुलभ बनाना।
आयुष चिकित्सा पद्धति का विस्तार।
इस योजना के प्रमुख प्रावधान-:
10 करोड़ गरीब परिवारों को प्रतिवर्ष ₹500000 तक का मुफ्त इलाज प्रदान करना है।
इस योजना में 1350 बीमारियों का इलाज का प्रावधान है।
इस योजना के तहत अस्पताल में भर्ती होने के पूर्व और भर्ती होने के बाद तक के सभी खर्च शामिल होते हैं।
इस योजना के अंतर्गत सरकारी अस्पतालों के अलावा सरकार से मान्यता प्राप्त निजी अस्पतालों में भी 500000 तक का इलाज मुफ्त में किया जाता है।
परिवार के कितने भी सदस्य इस योजना के लाभ ले सकते हैं।
पात्रता-
गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन वर्ष 2013 में शुरू किया गया इसके दो भाग हैं-:
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन।
राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत भारत सरकार द्वारा 2005 को की गई।
लक्ष्य -:
मातृ मृत्यु दर में 1/1000 कमी लाना।
कुल प्रजनन दर-2.1 लाना
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का उद्देश्य-:
शिशु मृत्यु दर मातृ मृत्यु दर को कम करना।
परिवार नियोजन को बढ़ावा देना
आयुष चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देना
ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल तथा स्वच्छता का वातावरण तैयार करना।
घटक-:
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के संस्थागत ढांचे में विकास विस्तार, जैसे- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, आरोग्य केंद्र की स्थापना।
परिवार नियोजन केदो द्वारा लोगों को गर्भ निरोधक के बारे में जानकारी दीजिए
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता तथा आशा कार्यकर्ता द्वारा संस्थागत प्रसव को बढ़ावा दिया गया।
राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन
राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत 2013 में की गई।
इस मिशन के उद्देश्य-:
शहर के झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों ,गरीब लोगों को रियायती दरों पर प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करवाना।
शिशु मृत्यु दर मातृ मृत्यु दर को कम करना
परिवार नियोजन को बढ़ावा देना
शहरी क्षेत्रों में आयुष केंद्रों का विकास विस्तार करना
शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता शुद्ध पेयजल का विकास विस्तार करना।
मध्य प्रदेश में मातृ मृत्यु दर-:
प्रति एक लाख जीवित जन्मों पर प्रसव पीड़ा के कारण प्रसव के दौरान या प्रसव के 42 दिन के अंदर मरने वाली माताओं की संख्या मातृ मृत्यु दर कहलाती है।
SRS(सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम)-2020 के अनुसार मध्य प्रदेश में मातृ मृत्यु दर 173/प्रति लाख है।
मातृ मृत्यु दर अधिक होने के कारण
बाल विवाह- कम उम्र में विवाह होने पर, महिलाएं अपरिपक्व अवस्था में ही गर्भ धारण कर लेती हैं, परिणामत: प्रसव के दौरान उनकी मृत्यु हो जाती है।
कम समय अंतराल में बच्चे पैदा करना दो बच्चों के बीच पर्याप्त अंतराल न होने पर कुपोषण के कारण माता की मृत्यु हो जाती है।
पर्याप्त पोषण न मिलाना(एनीमिया की समस्या)।
बच्चे पैदा करने का मानसिक तनाव।
माहवारी से संबंधित विसंगतियां,स्तन कैंसर आदि।
गर्भ पूर्व तथा गर्व के बाद पर्याप्त स्वास्थ्य जांच एवं उपचार (टीकाकरण आदि) न कराया जाना।
मध्यप्रदेश में इसके लिए सरकारी प्रयास-:
जननी एक्सप्रेस योजना-:
इस योजना की शुरुआत मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 2006 में की गई।
इस योजना का उद्देश्य गर्भवती माताओं को गर्भ की जांच या प्रसव के लिए 24 घंटे परिवहन की सुविधा उपलब्ध करवाना।
इस योजना के अंतर्गत प्रसव के पूर्व और प्रसव के उपरांत दोनों ही स्थितियों में गर्भवती एवं दूध पिलाने वाली महिलाओं को अस्पताल तक ले जाने के लिए निशुल्क परिवहन सुविधा उपलब्ध करवाई जाती
मंगल दिवस अभियान 2008,
किशोरियों को पूरक पोषण प्रदान किया जाता है तथा गर्भवती महिलाओं की गोदभराई एवं स्वास्थ्य जांच आदि की जाती है।
उदिता अभियान 2015–
महिलाओं में माहवारी की प्रति जागरूकता फैलाने के लिए।
लालिमा अभियान 2016
महिलाओं में एनीमिया की समस्या कम करने हेतु।
अनमोल एप-:
इसमें गर्भवती महिलाएं टेलीमेडिसिन प्राप्त कर सकतीं हैं।
मुख्यमंत्री जीवन जननी योजना 2020
इसके तहत गर्भवती महिलाओं को पोषण हेतु₹4000 की राशि प्रदान की जाती है।
मध्य प्रदेश में वर्ष 2020 को राज्य पोषण नीति 2020 बनाई गई जिसमें मातृ मृत्यु दर को 70/प्रति लाख लाने का लक्ष्य रखा गया।
राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम-:
भारत से मलेरिया का उन्मूलन करने के लिए इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1953 में की गई, इसी कार्यक्रम के तहत 1960 में भारतीय मलेरिया संस्थान की स्थापना की गई जिसे अब राष्ट्रीय लोक नियंत्रण केंद्र के नाम से जाना जाता है।
कार्यक्रम के उद्देश-:
मलेरिया से ग्रसित रोगों की पहचान करना। तथा उन्हें आवश्यक उपचार सेवा देना।
मलेरिया के उपचार की सुविधा देने वाले उपचार केंद्रों का विकास व विस्तार करना।
मलेरिया के कारणों एवं उपचार के प्रति लोगों को जागरूक करना
राष्ट्रीय कालाजार उन्मूलन कार्यक्रम
भारत से कालाजार का पूर्ण उन्मूलन करने के लिए इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1990-91 में की गई,
इस कार्यक्रम के तहत घरों के अंदर डीडीटी का छिड़काव किया जाता है।
इस कार्यक्रम के प्रयास से भारत में वर्ष 2017 में इस बीमारी का उन्मूलन हो गया।
कार्यक्रम के उद्देश-:
कालाजार से ग्रसित रोगों की पहचान करना। तथा उन्हें आवश्यक उपचार सेवा देना।
कालाजार के उपचार की सुविधा देने वाले उपचार केंद्रों का विकास व विस्तार करना।
कालाजार के कारणों एवं उपचार के प्रति लोगों को जागरूक करना।
राष्ट्रीय फाइलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम-:
भारत से फाइलेरिया का उन्मूलन करने के लिए इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1995 में की गई,
इस कार्यक्रम के अंतर्गत यह लक्ष्य रखा गया कि वर्ष 2015 तक भारत में फाइलेरिया के मच्छर के लार्वा को पूरी तरह से समाप्त करना था।
कार्यक्रम के उद्देश-:
फाइलेरिया से ग्रसित रोगों की पहचान करना। तथा उन्हें आवश्यक उपचार सेवा देना।
फाइलेरिया के उपचार की सुविधा देने वाले उपचार केंद्रों का विकास व विस्तार करना।
फाइलेरिया के कारणों एवं उपचार के प्रति लोगों को जागरूक करना।
राष्ट्रीय ओरल हेल्थ कार्यक्रम-:
राष्ट्रीय मौखिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1999 में की गई।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत
मुख से संबंधित बीमारियों से निजात पाने के लिए लोगों में जागरूकता फैलाई जाती है जैसे -:नियमित रूप से उपयुक्त तरीके से मंजन करना। तंबाकू शराब आदि का सेवन ना करना।
मुख से संबंधित बीमारियों का उपचार देने केन्द्रों का विकास एवं विस्तार किया जाता है। जैसे प्रत्येक अस्पताल में दंत चिकित्सा विभाग, मुंह कैंसर विभाग की स्थापना।
एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम-:
रोगों की पहचान करके, उन पर निगरानी रखते हुए उन्हें नियंत्रित करना के लिए वर्ष 2004 में विश्व बैंक की सहायता से भारत सरकार द्वारा एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम चलाया गया। इस कार्यक्रम के अंतर्गत केंद्र में राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र होता है और उसके अधीन प्रत्येक राज्य में स्टेट सर्विलेंस यूनिट और प्रत्येक जिले में डिस्ट्रिक्ट सर्विलांस यूनिट संचालित है।
कैंसर ,मधुमेह, हृदय रोग और सट्रोक नियंत्रण का राष्ट्रीय कार्यक्रम(NPCDCS)
इस कार्यक्रम की शुरुआत भारत सरकार द्वारा वर्ष 2010 में की गई।
इसका मुख्य उद्देश्य गैर संचारी रोगों जैसे कैंसर मधुमेह हृदय रोग स्ट्रोक आदि को नियंत्रित एवं उन्मूलित करना है।
प्रधानमंत्री जन औषधि योजना-:
इस योजना की शुरुआत वर्ष 2015 में भारत सरकार द्वारा की गई।
इस योजना का उद्देश्य नागरिकों को बहिनी है मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध करवाना है।
इस योजना के अंतर्गत सरकारी अस्पतालों के आसपास जन औषधि केंद्र खोला जाता है जहां पर बाजार मूल्य से कम मूल्य पर दवाइयां उपलब्ध होती है।
मध्य प्रदेश की उपचारात्मक स्वास्थ्य योजना-:
दीनदयाल चलित अस्पताल योजना-:
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2001 में शुरू की गई।
इस योजना का उद्देश्य दूरस्थ क्षेत्रों मैं निवास करने वाले व्यक्तियों को उनके कार्यस्थल पर जाकर स्वास्थ सुविधा उपलब्ध करवाना है।
इस योजना के अंतर्गत अनेकों ऐसी एंबुलेंस का संचालन किया जा रहा है जिसमें नर्स ,डॉक्टर ,आवश्यक दवाइयां तथा भर्ती करने आदि की सुविधा होती है और ये एंबुलेंस दूरस्थ क्षेत्रों में जाकर स्वास्थ्य सेवा देती है
दीनदयाल अंत्योदय उपचार योजना
इस योजना की शुरुआत मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 2004 में की गई।
इस योजना का उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को गंभीर बीमारियों का निशुल्क इलाज उपलब्ध करवाना है।
इस योजना के अंतर्गत गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को सरकारी अस्पतालों में प्रति परिवार , प्रतिवर्ष ₹30हजार रुपए तक का निशुल्क इलाज करवाने का प्रावधान है।
मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना-:
इस योजना की शुरुआत मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2011 में की गई।
इस योजना का उद्देश्य बालकों की ह्रदय संबंधी बीमारी के इलाज में सहायता करना।
इस योजना के अंतर्गत ऐसी परिवार जो अपने बच्चों का इलाज कराने में आर्थिक रूप से असमर्थ है उन परिवारों के बच्चों(0-15 वर्ष) का ह्रदय संबंधी रोगों का उपचार निशुल्क किया जाता है।
जैसे-: दिल में छेद होने की बीमारी का इलाज।
मुख्यमंत्री बाल श्रवण उपचार योजना-:
इस योजना की शुरुआत मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2016 में की गई।
इस योजना का उद्देश्य सुनने में अक्षम बच्चों के इलाज में सहायता करना है।
इस योजना के अंतर्गत गरीब परिवारों के श्रवण बाधित बच्चों का मध्यप्रदेश शासन द्वारा निशुल्क उपचार करवाया जाता है।
डायलिसिस योजना-:
इस योजना की शुरुआत 2016 में की
इस योजना के अंतर्गत मध्य प्रदेश के गरीब परिवारों को जिला अस्पताल में निशुल्क डायलिसिस की सुविधा दी जाती है।