जनपदोध्वंश
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Toggleचरक संहिता के विमान स्थान के अध्याय 3 में जनपदोध्वंस का वर्णन मिलता है।
जनपदोध्वंश का अर्थ
जनपदोध्वंस दो शब्द से मिलकर बना है- जनपद और उध्वंश।
अर्थात किसी संक्रामक व्याधि के कारण जन समूह का नाश होना जनपदोध्वंश कहलाता है।
जनपदोध्वंश के कारण-:
विकृत वायु
विकृत जल
विकृत देश
विकृत काल
1.वायु की विकृतियां -:
विकृत वायु के निम्नलिखित लक्षण होते हैं
अत्यधिक तीव्र वायु।
स्थिर वायु।
अत्यधिक शीतल वायु
अधिक गर्म वायु।
अत्यधिक रुक्ष, धूल भरी वायु।
2. जल की विकृतियां-
जल की विकृतियों के लक्षण निम्नलिखित है-
गंध,रस एवं क्लेदयुक्त जल।
जलचर प्राणियों तथा पक्षियों द्वारा परित्यक्त जल।
उस जलाशय का जल जिसमें जलीय प्राणी मर गए हो।
सूखे जलाशयों का जल।
3. देश की विकृतियां-:
देश की विकृतियों के लक्षण निम्नलिखित हैं-:
जिस देश के प्राकृतिक वातावरण का वर्ण, गंध,रस, स्पर्श विकार युक्त हो गया हो।
जिस देश से पशु-पक्षी बेचैन होकर भाग रहे हो।
जहां अत्यधिक हिंसक प्राणी, सर्प ,मच्छर, मक्खी आदि हो गए हों।
जहां फसलें अपने आप नष्ट हो रही हों।
जहां भूकंप, बिजली गिरने आदि की घटना बार-बार हों।
4.काल की विकृतियां–
काल की विकृति का तात्पर्य है कि-विभिन्न ऋतुओं में स्वाभाविक लक्षण की विपरीत लक्षण मौजूद होना। जैसे-ग्रीष्म ऋतु में ठंड लगना।
इन सभी विकृतियों का मूल कारण अधर्म बताया गया है।
जनपदोध्वंश की चिकित्सा (उपचार)
जनपदोध्वंश के पूर्व, संग्रहित औषधीय का उपयोग।
जनपदोध्वंश के समय विकृतियों के लक्षण के विपरीत रसायनों का सेवन।
सदवृत का पालन।
आचार रसायन का पालन तथा धर्म चिंतन (जैसे-सत्य बोलना)।