[भाषा]
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Toggleभाषा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा की “भाष्”धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है-: व्यक्त करना या कहना।
अर्थात भावों एवं विचारों को व्यक्त करने का माध्यम भाषा कहलाता है।
वास्तव में”मनुष्य जिस माध्यम से अपने भावों एवं विचारों को व्यक्त करके, दूसरे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह तक पहुंचाता है उस मध्यम को भाषा कहते हैं। “
भाषा की परिभाषा-:
दुनीचंद नामक भाषा विद्वान ने अपनी पुस्तक हिंदी व्याकरण में भाषा की परिभाषा देते हुए कहा है कि-:”हम अपने मन के भाव प्रकट करने के लिए जिन सांकेतिक ध्वनियों का उच्चारण करते हैं उन्हें भाषा कहते हैं”
भाषा की विशेषताएं-:
भाषा मनुष्य के अर्जित संपत्ति होती है ना की जन्मजात।( अर्थात जब कोई व्यक्ति जन्म लेता है तो उसे किसी भी भाषा का ज्ञान नहीं होता किंतु दीर्घकाल में समाजिककरण प्रक्रिया द्वारा वह भाषा को सीखता है।
प्रत्येक भाषा की एक निश्चित व्याकरण एवं लिपि(वर्णमाला) होती है। जैसे-: हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है।
भाषा परिवर्तनशील होती है, अर्थात समय एवं स्थान के साथ परिवर्तित होती जाती है।
भाषा व्यक्तिगत नहीं होती बल्कि सामूहिक या सामुदायिक होती है। अर्थात किसी विस्तृत क्षेत्र के सभी लोगों की एक भाषा होती है ना कि एक व्यक्ति की एक भाषा।
प्रत्येक भाषा के मुख्यतः दो रूप होते हैं
मौखिक (वाचिक)
लिखित (लिपि)
भाषा के रूप/प्रकार-:
भाषा के मुख्यत: दो रूप होते हैं
वाचिक-: अर्थात भाषा का वह रूप जिसे बोलकर व्यक्त किया जाता है। इसे कथित या मौखिक भाषा भी कहते हैं।
लिखित-: भाषा का वह रूप जिसे लिखकर व्यक्त किया जाता है। इसे लिपि भी कहते हैं
इसके अलावा भाषा का एक और रूप होता है-: सांकेतिक भाषा
संकेतिक भाषा-: भाषा का वह रूप जिसके अंतर्गत हम अपने भाव एवं विचारों को संकेतों के माध्यम से व्यक्त करते हैं।
जैसे-: किसी कार्यक्रम की पसंद आने पर तालियां बजाना, अपने से उच्च अधिकारी को सलाम देना, खुशी प्रकट करने के लिए हंस देना, खुश ना होने पर उदासी का चेहरा बना लेना।
मौखिक भाषा की विशेषताएं-:
भाषा के रूप में भाव व्यक्त करने पर ध्वनि उच्चारित होती है।
यह भाषा का अस्थाई रूप होता है अर्थात व्यक्त करने के उपरांत इसकी अभिव्यक्ति समाप्त हो जाती है।
मौखिक भाषा में भावों एवं विचारों अभिव्यक्ति के लिए वक्ता एवं श्रोता का आमने सामने या आसपास होना आवश्यक होता है।
लिखित भाषा की विशेषताएं-:
भाषा के इस रूप में भाव व्यक्त करने के लिए ध्वनि चिन्हों अर्थात वर्णों का ज्ञान होना आवश्यक है।
यह भाषा का स्थाई रूप है अर्थात इस रूप की भाषा की अभिव्यक्ति लिखित रूप में होती है अतः एक बार की लिखित भाषा को अनेकों बार अभिव्यक्त किया जा सकता है। अर्थात इसे साक्ष्य के रूप में दीर्घकाल तक के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है।
लिखित भाषा में भावो एवं विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए वक्ता एवं श्रोता का आमने सामने होना या आसपास होना अनिवार्य नहीं होता। जैसे -:एक विद्यार्थी पत्र लेखन द्वारा अपने भावों को अपने शिक्षक तक पहुंचा सकता है।
सांकेतिक भाषा-:
भाषा के इस रूप में भाव व्यक्त करने के लिए विशेष संकेतों की आवश्यकता होती है।
यह भाषा का अस्थाई रूप है।
संकेतिक भाषा द्वारा भाव व्यक्त करने के लिए श्रोता की नजर वक्ता पर होना आवश्यक होती है।
note-:कोई पीछे से आ रही गाड़ी द्वारा बजने वाला हॉर्न सांकेतिक भाषा होगी ना कि मौखिक भाषा, क्योंकि हार्न में बोलने योग में किसी स्पष्ट सार्थक शब्द का उच्चारण नहीं किया जाता,
इसी प्रकार हूं,हं कहना भी संकेतिक भाषा है क्योंकि यह सार्थक शब्द नहीं है।
दिशा सूचक चिन्ह संकेतिक भाषा के अंतर्गत आएंगे।
हिंदी भाषा-:
हिंदी भाषा भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की लगभग 43% लोगों की मातृभाषा हिंदी भाषा है, और हिंदी भाषा केवल भारत में ही नहीं बल्कि नेपाल मारीशस दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में भी बोली जाती है, जैसे नेपाल की लगभग 8000000 लोग हिंदी भाषा बोलते हैं।
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किंतु हिंदी मूलतः फारसी भाषा का शब्द है, क्योंकि प्राचीन समय में भारत में आने वाले पारस की खाड़ी क्षेत्र के ईरानियों ने भारतीय क्षेत्र को सिंधु नदी के नाम पर सिंधु क्षेत्र कहा तथा सिंध क्षेत्र के निवासियों द्वारा बोली जाने वाली भाषा को सिंधी भाषा कहा और चूंकि फारसी भाषा में “स”को “ह”और “ध” को “द”उच्चारित किया जाता है, अतः सिंधी को हिंदी कहा जाने लगा और इस प्रकार बाद में हिंदी नाम ही प्रचलित हुआ।
हिंदी भाषा का विकास क्रम-:
हिंदी भाषा का विकास मूलतः संस्कृत भाषा से हुआ है संस्कृत भाषा को हिंदी भाषा की जननी माना जाता है, किंतु संस्कृत से हिंदी भाषा का विकास एक क्रम में हुआ जो निम्नलिखित है-:
भारत में लगभग 500 ईसा पूर्व के पूर्व संस्कृत भाषा का प्रचलन था, संस्कृत भाषा दो रूपों में प्रचलित वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत।
वैदिक संस्कृत में वैदिक ग्रंथों की रचना की गई जबकि लौकिक संस्कृत आमजन में प्रचलित थी।
इसके बाद लौकिक संस्कृत के परिष्करण से पाली भाषा का प्रादुर्भाव हुआ जिसका प्रचलन लगभग 500 ईसा पूर्व इसलिए 1 ईसवी तक रहा।
उसके बाद पाली भाषा के संशोधन से प्राकृत भाषा का प्रादुर्भाव हुआ जिसका प्रचलन 1 ईसवी से 500 ईसवी तक रहा।
प्राकृत भाषा के शब्दों के रूप में संशोधन से अपभ्रंश भाषा का उदय हुआ जिस का प्रचलन लगभग 500 ईसवी से 1000 ईसवी तक रहा।
और लगभग 1000 ईसवी के बाद अपभ्रंश भाषा से हिंदी भाषा का प्रादुर्भाव हुआ।
भाषा ,उपभाषा एवं बोलियां-:
सर्वप्रथम भारत के अंग्रेज अधिकारी जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने 1889 ईसवी में भारत की भाषा का सर्वे करवाकर अपनी पुस्तक”लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया” में हिंदी को 5 उपभाषा एवं 17 बोलियों में वर्गीकृत किया था। किंतु वर्तमान में हिंदी भाषा की 5 उपभाषा तथा 18 बोलियां हैं।
जिसका विवरण अग्रोलिखित है-:
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हिंदी भाषा की उपभाषा एवं बोलियां-:
पूर्वी हिंदी
पश्चिमी हिंदी
बिहारी हिंदी
राजस्थानी हिन्दी
पहाड़ी हिंदी
पूर्वी हिंदी-:
पूर्वी हिंदी का विकास अर्धमागधी अपभ्रंश से हुआ है।
पूर्वी हिंदी के अंतर्गत निम्न बोलीं आती है-:
अवधी-:
यह लखनऊ की क्षेत्र में बोली जाती है
बघेली-:
यह पूर्वी मध्य प्रदेश के क्षेत्र में बोली जाती है।
छत्तीसगढ़ी-:
यह छत्तीसगढ़ के मुख्यतः रायपुर क्षेत्र में बोली जाती है।
पश्चिमी हिंदी-:
पश्चिमी हिंदी का विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है।
पश्चिमी हिंदी उपभाषा की प्रमुख बोलियां -:
खड़ी बोली-:
इसे कौरवी भी कहा जाता है, यह बोली मुख्यतः दिल्ली, मेरठ, बिजनौर क्षेत्र में बोली जाती है
बुंदेली-:
यह बोली मुक्ता बुंदेलखंड के क्षेत्र में बोली जाती है जिसके अंतर्गत झांसी, टीकमगढ़ ,पन्ना आदि का क्षेत्र आता है।
ब्रज भाषा-:
यह बोली मुक्ता मथुरा और आगरा के क्षेत्र में बोली जाती है।
कन्नौजी-:
यह बोली मुख्यतः उत्तर प्रदेश के कन्नौज क्षेत्र में बोली जाती है।
बांगरू-: इसे हरियाणवी भी कहा जाता है यह मुक्ता हरियाणा राज्य में बोली जाती है।
राजस्थानी हिंदी-:
हिंदी की राजस्थानी उपभाषा का विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है।
राजस्थानी उपभाषा के अंतर्गत निम्न बोलियां आती हैं
जयपुरी-:
यह बोली मुख्यतः राजस्थान के जयपुर क्षेत्र में बोली जाती है
निमाड़ी-:
यह बोली मुख्यतः मध्य प्रदेश के निर्माण क्षेत्र जिसके अंतर्गत खंडवा खरगोन पड़ता है मैं बोली जाती है
मालवी-:
यह मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में बोली जाती है।
मारवाड़ी-:
यह बोली मुख्यता राजस्थान के जोधपुर बीकानेर क्षेत्र में बोली जाती है।
भीली-:
यह बोली पश्चिमी मध्य प्रदेश एवं पूर्वी राजस्थान जैसे अलीराजपुर झाबुआ क्षेत्र में बोली जाती है।
बिहारी-:
हिंदी की उपभाषा का विकास मागधी अपभ्रंश से हुआ है।
बिहारी और भाषा के अंतर्गत निम्नलिखित बोलियां आते हैं
भोजपुरी-:
यह बोली मुक्ता पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं पश्चिमी बिहार क्षेत्र में बोली जाती है।
मगही-:
यह बोली मुक्ता बिहार के गया क्षेत्र में बोली जाती है।
मैथिली-:
यह बोली मुख्यतः बिहार के मिथिला क्षेत्र में बोली जाती है।
पहाड़ी हिंदी-:
पहाड़ी हिंदी उपभाषा का विकास भी शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है।
पहाड़ी हिंदी के अंतर्गत निम्न बोली आती है
कुल्लुई
गढ़वाली
कुमाऊंनी
जो मुख्यतः उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में बोली जाती है।
बोली-:
किसी सीमित क्षेत्र में क्षेत्रीय लोगों द्वारा आमतौर पर बोली जाने वाली भाषा बोली कहलाती है।
जैसे-: बुंदेली, बघेली, अवधी, मैथिली।
बोली की मानक लिपि नहीं होती
ना ही बोली की कोई अलग व्याकरण होती है।
मातृभाषा-:
माता या परिवार द्वारा सिखाई जाने वाली भाषा मातृभाषा कहलाती है।
जैसे-: हिंदी , कन्नड़, तेलुगू ,गुजराती मराठी,
बच्चे को मातृभाषा का ज्ञान सामाजिकरण प्रक्रिया के द्वारा होता है।
मानक भाषा-:
परिष्कृत व्याकरण वाली वह भाषा जिसका प्रयोग व्यापक स्तर पर होने लगता है, उसे मानक भाषा मान लिया जाता है।
जैसे -:हिंदी की मानक भाषा खड़ी बोली को माना गया।
राजभाषा-:
किसी देश या राज्य के राजकीय कार्य (शासन ,प्रशासन के कार्य) में प्रयोग की जाने वाली भाषा राजभाषा कहलाती है
हमारी देश एवं प्रदेश की राजभाषा हिंदी है जिसकी लिपि देवनागरी है।
राष्ट्रभाषा-:
किसी राष्ट्र की अधिकांश जनता ( बहुसंख्यकों) द्वारा बोली जाने वाली भाषा राष्ट्र भाषा कहलाती है।
संपर्क भाषा-:
ऐसी भाषा जो दो भाषाओं के मध्य संपर्क सूत्र का कार्य करें उसे संपर्क भाषा कहते हैं जैसे -:स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंदी भाषा, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषा के मध्य संपर्क भाषा रही।
हिंदी भाषा की संवैधानिक स्थिति-:
भारत एक हिंदी भाषीय बाहुल्य लोगों का राष्ट्र है, अर्थात भारत के लगभग 40% से अधिक लोगों की प्रथम भाषा हिंदी है। तथा हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा भी है अतः हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा एवं राजभाषा होना चाहिए,
वर्तमान में हिंदी भारत की राजभाषा तो है किंतु राष्ट्रभाषा नहीं है। और संविधान सभा में हिंदी भाषा को भारत की राजभाषा बनाने का प्रस्ताव सर्वप्रथम गोपाल स्वामी आयंगर ने प्रस्तुत किया था, उन्हीं के प्रयास से राजभाषा समिति का गठन किया गया जिसके सुझाव के आधार पर भारतीय संविधान में भाग 17 जोड़कर हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया।
14 सितंबर 1949 को संवैधानिक रूप से हिंदी भाषा को भारत की राजभाषा का दर्जा दिया गया, इसलिए प्रतिवर्ष 14 सितंबर को “हिंदी दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
भारतीय संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा संबंधी प्रावधान है
अनुच्छेद 343 (1) में कहा गया है कि-: भारतीय संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।
अनुच्छेद 345 में कहा गया है कि-: राज्य को अपनी प्रदेशिक राजभाषा स्वयं चुनने का अधिकार होगा।
इस आधार पर वर्तमान में भारत के 9 राज्यों की राजभाषा हिंदी है। (जैसे मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश बिहार झारखंड राजस्थान हरियाणा उत्तराखंड छत्तीसगढ़)
अनुच्छेद 348 के अनुसार-: उच्चतम न्यायालय उच्च न्यायालय और अधिनियम में प्रयोग की जाने वाली भाषा अंग्रेजी होगी।
अनुच्छेद 351 के अनुसार-: संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रचार एवं विस्तार करें।
राजभाषा अधिनियम 1976-:
इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार के कार्यालयों को तीन भागों में बांटा गया
“क”वर्ग -: इस वर्ग में वे सभी राज्य आते हैं जिनकी प्रथम भाषा हिंदी है जैसे -मध्य प्रदेश ,उत्तर प्रदेश ,बिहार, झारखंड आदि।
“ख” वर्ग-: इस वर्ग में भी राज्य आते हैं जिन की पहली भाषा तो हिंदी नहीं है किंतु अधिकांश लोगों द्वारा हिंदी समझी जाती है जैसे -:पंजाब गुजरात महाराष्ट्र
“ग” वर्ग-: इस वर्ग में ऐसे राज्य आते हैं जिनमें ना तो हिंदी बोली जाती है वह नहीं समझी जाती है जैसे-कर्नाटक ,केरल ,तमिलनाडु ,आंध्र प्रदेश ,तेलंगाना मेघालय ,असम।
इस अधिनियम में कहा गया है कि
“क” वर्ग के केन्द्रीय कार्यालयों में पत्र व्यवहार के लिए हिंदी का प्रयोग किया जाए, अगर अंग्रेजी का प्रयोग किया जाए तो साथ में हिंदी का अनुवाद भी भेजा जाए।
“ख” वर्ग के केंद्रीय कार्यालयों में सामान्यतः अंग्रेजी के साथ हिंदी का भी प्रयोग किया जाए।
“ग” वर्ग के केंद्रीय कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग किया जाना अनिवार्य नहीं है।
देवनागरी लिपि-:
किसी भी भाषा का लिखित रूप (अर्थात लिखावट) लिपि कहलाता है, लिपि में संबंधित भाषा के वर्ण शामिल होते हैं।
जैसे-: हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है।
देवनागरी लिपि मूलतः हिंदी भाषा की लिपि नहीं है, बल्कि यह संस्कृत भाषा की ब्राम्ही लिपि का संशोधित रूप है, वास्तव में देवनागरी लिपि विश्व की वैज्ञानिक लिपियों में से एक प्रमुख वैज्ञानिक लिपि है, क्योंकि इसमें वर्णों की पर्याप्तता ,तारतम्यता एवं एक ध्वनि हेतु, एक वर्ण आदि अन्यान्य विशेषताएं हैं।
जैसे-: हिंदी में “क” ध्वनि के लिए अलग से “क” शब्द है और हमेशा “क” का ही उपयोग किया जाता है। जबकि अंग्रेजी में”क”धनी के उच्चारण के लिए c,k,q, तीनों शब्दों का उपयोग हो सकता है।
देवनागरी लिपि के गुण एवं दोष
गुण-:
देवनागरी लिपि में एक ध्वनि के लिए एक ही वर्ण होता है, जैसे-: “क”ध्वनि के उच्चारण के लिए”क” वर्ण होना, जबकि रोमन लिपि में एक ही ध्वनि के लिए अनेकों वर्ण हो सकते हैं जैसे-:k,c,q से “क” उच्चारण होना
T का उच्चारण “ट” एवं “त” दोनों हो जाना।
देवनागरी लिपि में एक वर्ण से सदैव एक ही ध्वनि उत्पन्न होती है जबकि रोमन लिपि में एक ही वर्ण की ध्वनि अलग अलग हो सकती है जैसे, k की सामान्य ध्वनि “क” होती है किंतु जब”k” के साथ “h”लिख देते हैं तो इसका उच्चारण”ख” हो जाता है।
देवनागरी लिपि में ध्वनि चिन्ह वैज्ञानिक क्रम में व्यवस्थित हैं। जैसे -: वर्णमाला में पहले स्वर हैं फिर व्यंजन जबकि रोमन लैंग्वेज में बीच-बीच में स्वर आ जाते हैं
देवनागरी लिपि में प्रत्येक वर्ण एवं अक्षर का उच्चारण होता है इसमें अंग्रेजी की तरह कोई भी वर्ण मूक या साइलेंट नहीं रहता।
देवनागरी लिपि में मात्रा व्यवस्था है, अर्थात केवल “अ” को छोड़कर प्रत्येक स्वर की मात्रा होती है, जैसे-: “ग” में “आ” स्वर की मात्रा लगाने पर “गा” हो जाएगा, जबकि रोमन लैंग्वेज में g+ a= ga लिखना होगा। अक्षरों की विस्तारित जगह कम हो जाती है।
देवनागरी लिपि के दोष-:
वैज्ञानिक लिपि को वर्णनात्मक होना चाहिए ,आक्षरिक लिपि नहीं जबकि देवनागरी लिपि एक आक्षरिक लिपि है।
देवनागरी लिपि में एक ही ध्वनि के लिए अनेकों चिंह है जिससे इसके वर्णमाला की संख्या अधिक हो जाती है जैसे-: स, ष ,श। रोमन लिपि में इसके लिए केवल S शब्द है।
वर्ण-:
किसी भी भाषा को लिखने के लिए निश्चित किए गए, मानक ध्वनि चिन्ह वर्ण कहलाते हैं।
जैसे-: हिंदी भाषा की देवनागरी लिपि के वर्ण हैं-: अ,आ,क,ख,ग,घ,च।
अंग्रेजी भाषा की रोमन लिपि के वर्ण है-: A,B,C,D,E.