[मानवीय आवश्यकताएं &अभिप्रेरणा]
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Toggleमनुष्य एक लालची प्राणी है जिसके अंदर सदैव अधिकाधिक मात्रा में अच्छी से अच्छी वस्तुएं प्राप्त करने की अभिलाषा रहती है।
और मनुष्य वर्तमान में मौजूद वस्तुओं ,से और अधिक एवं अच्छी वस्तुएं प्राप्त करने की जो चाहत रखता है उसे इच्छा कहते हैं।
जैसे-: अच्छा घर प्राप्त करने की इच्छा, कार प्राप्त करने की इच्छा।
और ऐसी इच्छाएं जिन्हें
व्यक्ति अपने जीवन की जरूरत मानने लगता है।
तथा उसकी पूर्ति के लिए उस व्यक्ति के पास पर्याप्त धन होता है ,और वह अपना धन व्यय करके उस वस्तु को खरीदने के लिए तैयार हो जाता है। उन्हें उस व्यक्ति की आवश्यकता कहते हैं।
उदाहरण के लिए-: एक गरीब व्यक्ति की आवश्यकता कपड़ा, मकान तथा भोजन प्राप्त करना, नींद लेना ही आवश्यकता है, जबकि एक अमीर व्यक्ति की आवश्यकता अच्छा आलीशान मकान लेना, कर लेना हो जाती है। क्योंकि अमीर व्यक्ति के पास कार लेने के लिए पर्याप्त धन भी है और वह धन खर्च करने के लिए तत्पर भी होता है।
मानवीय आवश्यकता की विशेषताएं-:
आवश्यकताएं असीमित होती हैं-:
मानव जीवन एक लालची जीवन है अतः मानव आवश्यकता है कि असीमित होती है एक आवश्यकता पूरी होने पर ,अन्य नई आवश्यकता है जन्म ले लेती है, जैसे यदि किसी गरीब व्यक्ति को पंखा प्राप्त हो जाता है तो वह कूलर प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं लगता है जब उसे कूलर प्राप्त हो जाता है तो वह एयर कंडीशनर की लालच रखता है। बाद में एयर कंडीशन उसकी आवश्यकता बन जाती है।
किसी एक आवश्यकता की तुष्टि कुछ समय के लिए संभव है
किसी एक आवश्यकता की पूर्ति कुछ समय के लिए पर्याप्त होती किंतु बाद में पुनः उस आवश्यकता का अनुभव होता है
जैसे-: एक बार प्यास लगने पर हम दो-तीन गिलास पानी पी लेते हैं तो हमें पानी की आवश्यकता कुछ समय के लिए समाप्त हो जाती है किंतु पुनः प्यास लगने पर पुनः पानी की आवश्यकता होती है
इसी प्रकार जब हम कोई वस्तु जैसे लेपटॉप खरीद लेते हैं तो कुछ समय के लिए तो लैपटॉप की आवश्यकता समाप्त हो जाती है किंतु जब लैपटॉप का नया मॉडल आता है यह हमारे लैपटॉप खराब हो चुका होता है तो पुनः नया लैपटॉप खरीदने की आवश्यकता होती है।
आवश्यकता समय ,स्थान एवं रूचि के अनुसार परिवर्तित होती रहती है
हमें विभिन्न वस्तुओं की आवश्यकता भिन्न-भिन्न में समय भिन्न भिन्न स्थानों और रूचि के अनुसार होती है जैसे-: गर्मी के समय हमें पंखा ,कूलर जैसी वस्तुओं की आवश्यकता होती है जबकि ठंडी के समय ऊनी वस्त्रों की आवश्यकता होती है,
उसी प्रकार स्थान बदलने पर भी आवश्यकता बदल जाती है जैसे शिमला हिमाचल प्रदेश के क्षेत्र में स्वेटर की जरूरत होती है जबकि उसी समय में मध्यप्रदेश जैसे क्षेत्रों में स्वेटर की जरूरत नहीं होती
फैशन या रुचि के बदलने पर भी आवश्यकता बदल जाती है जैसे पहले के लोगों को शर्ट ,पैंट ,कोट तथा मोबाइल की जरूरत नहीं होती थी किंतु अब के लोगों को इसकी आवश्यकता होती।
मानवीय आवश्यकताओं का वर्गीकरण या पिरामिड-:
अब्राहम मैस्लो नामक मनोवैज्ञानिक ने मानवीय आवश्यकताओं का एक सोपान प्रस्तुत किया है, जिसे मैस्लो का पिरामिड भी कहते हैं
शारीरिक या भौतिक आवश्यकताएं-:
भी आवश्यकता है जो मनुष्य के जीवन के लिए अनिवार्य रूप से आवश्यक है जैसे-: भोजन, पानी ,आवास , निद्रा, यौन सुख आदि।
सुरक्षा संबंधी आवश्यकता-:
भौतिक सुरक्षा-: जैसे किसी बीमारी से सुरक्षा, दुर्घटना से सुरक्षा, आक्रमण से सुरक्षा से सुरक्षा।
आर्थिक सुरक्षा-: आय की सुरक्षा, अर्जित संपत्ति की सुरक्षा, वृद्धावस्था के लिए धन की सुरक्षा।
सामाजिक आवश्यकताएं -:
सुख दुख जैसी संवेदनाओं को बांटने के लिए परिवार, मित्र ,पत्नी की आवश्यकता।
सम्मान की आवश्यकता-:
प्रत्येक व्यक्ति सम्मान प्राप्त करने की इच्छा रखता है, इसके लिए वह अच्छे कर्म करता है तथा अच्छी पोस्ट प्राप्त करता है।
आत्म प्रत्यक्षीकरण की आवश्यकता
जब व्यक्ति की उपरोक्त सभी आवश्यकता है पूर्ण हो जाती हैं तो उसे मानसिक संतुष्टि एवं अध्यात्म की आवश्यकता होती है।
सर्वप्रथम व्यक्ति अपनी शारीरिक या भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है उसके बाद जैसे-जैसे उसकी आधारभूत आवश्यकता है पूर्ति होती जाती हैं तो वह शिखरीय आवश्यकता की पूर्ति की ओर बढ़ता है।
नीति शास्त्र में मानवीय आवश्यकताओं के अध्ययन का महत्व
नीति शास्त्र में मानवीय आवश्यकताओं का समावेशन का मुख्य लक्ष्य यह सीख देना है कि मानव को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अपनी नैतिकता का पतन नहीं करना चाहिए।
तथा लोक सेवकों को अपनी मानवीय आवश्यकता पर लगाम लगाकर संतोष एवं कर्तव्य परायण की भावना लानी चाहिए।
अभिप्रेरणा(motivation) -:
अभिप्रेरणा शब्द अंग्रेजी भाषा के motivation शब्द का पर्याय है, जो लैटिन भाषा के movere शब्द से बना है जिसका अर्थ है गतिशील होना।
अभिप्रेरणा वह मनोवैज्ञानिक उत्तेजना (भाव) है, जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती है, या व्यक्ति को कार्यशील बनाती है।
अभिप्रेरणा की विशेषताएं-:
अभिप्रेरणा एक सतत एवं गतिशील प्रक्रिया है। (अर्थात लगातार गतिशील रहने के लिए लगातार अभिप्रेरणा की आवश्यकता होती है, अन्यथा बीच में ही कार्य रुक जाता)
अभिप्रेरणा का संबंध इच्छित मानवीय साधनों की प्राप्ति से होता है।(अर्थात हम उन्हीं साधनों की अभिलाषा से प्रेरित होते हैं जो साधन हमें चाहिए होती है)
अभिप्रेरणा मनुष्य का आंतरिक भाव है जो स्वचेतना से ही जागृत एवं प्रभावी होती है। (उदाहरण के लिए , किसी नशे करने वाले व्यक्ति की पूरी चेतना नशा करने में है तो कोई भी व्यक्ति उस समय प्रेरित करके नशा करने से रोक नहीं सकता)
अभिप्रेरणा मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि का कारण एवं परिणाम दोनों है। (अर्थात् हम उसी कार्य से प्रेरित होते हैं जिस कार्य को करने से हमारी आवश्यकता पूर्ण हो सकती है, अर्थात हमें संतुष्टि मिलती है)
अभिप्रेरणा के उद्देश्य-:
व्यक्तिगत या संगठन के लक्ष्य की प्राप्त करना।
संगठन के कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाना।
कर्मचारियों से स्वैच्छिक सहयोग प्राप्त करना
संगठन के कर्मचारियों की कार्यकुशलता एवं निरंतरता में वृद्धि करना।
मधुर श्रम संबंध स्थापित करना अर्थात कर्मचारियों के मध्य पारस्परिक सहयोग की भावना बढ़ाना।
अभिप्रेरणा का महत्व-:
व्यक्तिगत एवं संगठन के लक्ष्य शीघ्रता से प्राप्त किए जा सकते हैं।
अभिप्रेरणा द्वारा सीमित संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है।
अभिप्रेरणा कर्मचारियों को निराशा एवं असंतोष की स्थिति से निकालकर कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाने में सहायक है।
अभिप्रेरणा कार्मिकों का स्वैच्छिक सहयोग प्राप्त करने का श्रेष्ठ एवं स्वस्थ साधन है।
अभिप्रेरणा के माध्यम से संगठन के के कर्मचारियों की कार्यकुशलता एवं निरंतरता में वृद्धि की जा सकती है, अर्थात यह कर्मचारियों के काम छोड़कर जाने या काम के प्रति उदासीन होने की समस्या का समाधान है।
अभिप्रेरणा सौहार्दपूर्ण मानवीय संबंध स्थापित करने में सहायक है।
अभिप्रेरणा के प्रकार-:
बाह्य एवं आंतरिक अभिप्रेरणा
धनात्मक एवं ऋण आत्मक अभिप्रेरणा।
मौद्रिक और अमौद्रिक अभिप्रेरणा।
बाह्य अभिप्रेरणा-:
वह अभिप्रेरणा जिसके अंतर्गत संगठन के किसी अधिकारी या कर्मचारी को श्रेष्ठ कार्य करने पर अधिक वेतन, अधिक अवकाश, प्रमोशन आदि देकर और अधिक कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
आंतरिक अभिप्रेरणा-:
वह अभिप्रेरणा जिसके अंतर्गत संगठन के किसी अधिकारी या कर्मचारी को अच्छा कार्य करने पर अधिक उत्तरदायित्व ,अधिक मान्यता, अधिक हिस्सेदारी ,अधिक सम्मान देकर और अधिक श्रेष्ठ कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
धनात्मक अभिप्रेरणा-:
वह अभिप्रेरणा जिसके अंतर्गत संगठन के किसी अधिकारी या कर्मचारी को अच्छा कार्य करने पर प्रलोभन देकर और अधिक कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है जैसे-: उसकी प्रशंसा करके, उसी पदोन्नति देकर, पुरस्कार देकर, अधिक अधिकार देकर।
ऋणात्मक अभिप्रेरणा-:
वह अभिप्रेरणा जिसके अंतर्गत संगठन के किसी अधिकारी या कर्मचारी को समय सीमा पर लक्ष्य के अनुरूप कार्य न करने पर दंडित करके , अच्छा कार्य करने हेतु प्रेरित किया जाता है
जैसे-: कर्मचारी की आलोचना, करके पेनाल्टी लगाकर, उसे डांट कर या पद मुक्ति की धमकी देकर।
मौद्रिक अभिप्रेरणा-:
वह अभिप्रेरणा जिसके अंतर्गत संगठन के किसी अधिकारी या कर्मचारी को अच्छा कार्य करने पर वित्तीय प्रोत्साहन देकर और अधिक कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है उसे मौद्रिक अभिप्रेरणा कहते हैं
जैसे-: अच्छा कार्य करने पर अधिक वेतन देना, अधिक बोनस देना, छुट्टियों के समय वेतन देना, रियायती दरों पर सुविधाएं देना, पेंशन देना।
अमौद्रिक अभिप्रेरणा-:
वह अभिप्रेरणा जिसके अंतर्गत संगठन के किसी अधिकारी या कर्मचारी को अच्छा कार्य करने पर विभिन्न अमौद्रिक प्रोत्साहन देकर और अधिक अच्छा कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
जैसे-: अच्छा कार्य करने पर उसकी पदोन्नति करना, अधिक अवकाश देना, कार्यक्षेत्र का विस्तार करना,अधिक सम्मान देना, पद सुरक्षा देना।
अभिप्रेरणा की विचारधारा-:
परंपरागत विचारधारा-:
परंपरागत विचारधारा अभिप्रेरणा की पुरानी विचारधारा है इसमें पुरस्कार एवं दंड की नीति अपनाई जाती है, अर्थात यदि कोई कर्मचारी समय पर उपयुक्त तरीके से काम नहीं करता तो उसे दंड दिया जाता है जैसे उसका वेतन कम कर दिया जाता है उसको नौकरी से निकाल दिया जाता है उसकी आलोचना की जाती है
तथा इसके विपरीत यदि कोई कर्मचारी को किस तरीके से समय पर अच्छा काम करता है, तो उसे अतिरिक्त सम्मान दिया जाता है उसे पुरस्कार दिया जाता है उसकी पदोन्नति कर दी जाती है।
हर्जबर्ग का अभिप्रेरणा सिद्धांत-:
इनके सिद्धांत के अनुसार अभिप्रेरणा में दो घटक शामिल हैं-:
आरोग्य घटक
उत्प्रेरणात्मक घटक
आरोग्य घटक-:
आरोग्य घटक का तात्पर्य कार्यस्थल के ऐसे घटकों से है जो कार्यस्थल में संतुष्टि महसूस करवाते हैं। जैसे-: कार्यस्थल की उपयुक्त दशाएं, कार्यस्थल की उदार नीतियां।
उत्प्रेरणात्मक घटक-:
उत्प्रेरणात्मक घटक का तात्पर्य ऐसे घटकों से है, जो कर्मचारियों को संतुष्टि प्रदान करते हैं, जैसे-: पदोन्नति, कर क्षेत्र में बढ़ोतरी, मान्यता, बधाई देना आदि।
यह दोनों ही घटक अभिप्रेरणा का कार्य करते हैं।
मोस्लो का अभिप्रेरणा सिद्धांत-:
..………..जब व्यक्ति की आधार आवश्यकता है पूर्ण हो जाती हैं तो वह उच्च स्तरीय शिखरीय आवश्यकता की पूर्ति के लिए प्रेरित होकर कार्य करता है।
लोक सेवकों को अभिप्रेरित करने के तरीके
प्रायःयह देखा जाता है कि लोक सेवक अपने कार्यों के प्रति कम प्रेरित होते हैं, जो लोक कल्याणकारी राज्य के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है। अतः लोक सेवकों को अभिप्रेरित करने के लिए नियमित तरीके अपनाए जा सकते हैं
पुरस्कार एवं दंड की नीति अपनाई जाए जैसे-: लोक सेवकों द्वारा अच्छा कार्य किए जाने पर
उन्हें प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाए,
उनके कर क्षेत्र में बढ़ोतरी की जाए
उनको प्रमोशन दिया जाए
पुरस्कार एवं सम्मान प्रदान किया जाए
अधिक सुविधा प्रदान की जाए
तथा उपयुक्त समय पर अच्छा कार्य ना करने पर
पेनल्टी लगाई जाए
वेतन कम कर दिए जाएं
सुविधाओं में कमी की जाए
प्रमोशन रद्द कर दिया जाए
कार्य के लिए उपयुक्त कार्यदशा प्रदान की जाए-:
उन्हें पर्याप्त अवकाश प्रदान किया जाए
प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया जाए(ताकि बे जवाबदेही रूप से कर कर)
पर्याप्त वेतन एवं सुविधा प्रदान की जाए ताकि उन्हें अन्य परिवारिक समस्या की चिंता ना हो।
- लोक सेवकों को प्रशिक्षण के दौरान समाज की वास्तविक दयनीय स्थिति से परिचित करवा कर उनके मन में उनकी स्थिति को सुधारने के लिए प्रेरणा दी जाए।
- लोक सेवकों के मध्य स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जाए।
शब्दावली-:
अनिवार्यतांए-:
ऐसी आवश्यकताएं जो जीवन के अस्तित्व के लिए आवश्यक होती हैं जिनके बिना जीवन का अस्तित्व नहीं रह सकता उन्हें अनिवार्यताएं कहते हैं
जैसे-: सांस लेना , भोजन ,पानी।
सुविधाएं-:
ऐसे साधन जो हमारे जीवन को सरल एवं सुखमय बनाते हैं उन्हें सुविधाएं कहते हैं।
विलासिताएं-:
ऐसी आवश्यकताएं जिनकी पूर्ति हमें आनंद की अनुभूति कराती हैं उन्हें विलासितांए कहते हैं,