[मूल्य]

मूल्य क्या है

मूल्य, व्यक्ति के ऐसे नैतिक गुण(/ आदर्श/विश्वास) हैं जो ,व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के सकारात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक या आवश्यक होते हैं,

जैसे-: बड़ों का आदर करना, ईमानदार होना, परोपकार करना, सत्यनिष्ट होना, कर्तव्य परायण होना आदि आदर्श मानव के मूल्य है। 

यहां पर बड़ों का आदर करना व्यक्तिगत लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक होते हैं क्योंकि बड़ों का आदर करने ,से बड़ों का सहयोग प्राप्त होता है।

उसी प्रकार ईमानदार होना, भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य में सहायक है।

समाज एवं कानून द्वारा स्वीकृत ऐसे आदर्श जो मानव जीवन को शुभ एवं गरिमा पूर्ण बना देते हैं उन्हें मूल्य कहते हैं जैसे-: अनुशासन, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा। 

जब व्यक्ति मूल्यों को अपने अंदर आत्मसात कर लेता है तो वह मूल्यवान या सद्गुणी बन जाता है, जिससे व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन प्राप्त होता है

मूल्य ही मनुष्य को पशुओं से अलग बनाते हैं अन्यथा जन्म लेने पर शुरुआती अवस्था में मनुष्य अन्य जानवरों की भांति ही रहता है। 

मूल्य की विशेषताएं

  1. मूल्य अमूर्त होते हैं लेकिन मूल्य की अभिव्यक्ति मूर्त होती है-: अर्थात मूल्य को देखा नहीं जा सकता है किंतु मूल्य की अभिव्यक्ति को देखा जा सकता है जैसे-: बड़ों का आदर करना एक मूल्य है और इस मूल की अभिव्यक्ति है- बड़ों के पैर छूना जिसे देखा जा सकता है। 

  2. मूल्य ,व्यक्ति का आंतरिक विश्वास होता है-: जैसे-: किसी व्यक्ति के आंतरिक विश्वास के अनुसार अनुशासन में रहकर ही सफलता मिल सकती है जबकि किसी अन्य व्यक्ति की आंतरिक विश्वास के अनुसार अनुशासन के बगैर ही सफलता प्राप्त हो सकती है। यहां पर पहले वाले व्यक्ति का मूल्य अनुशासन है दूसरे वाले का नहीं। 

  3. मूल्य, परिवर्तनशील होते हैं अर्थात मूल्य,समय एवं स्थान के अनुसार बदल जाते हैं-: जैसे कोई व्यक्ति अहिंसक है किंतु यदि कोई दूसरा व्यक्ति उस पर हिंसा करता है तो वह भी अहिंसक बन सकता है। 

उसी प्रकार हिंदू संस्कृति में संस्कार युक्त जीवन जीना व्यक्ति का मूल्य माना जाता है जबकि पश्चिमी देशों में नहीं। 

उसी प्रकार अरब देशों में हवा अधिक चलने से वहां पर महिला द्वारा बुर्का पहना जाना एक सामाजिक मूल्य है, जबकि ग्रीष्म क्षेत्रों में कम वस्त्र पहनना मूल्यहीनता नहीं मानी जाती। 

  1. मूल्य, व्यक्ति के आचरण का मापदंड होते हैं अर्थात मूल्य के आधार पर व्यक्ति की संबंध में उचित या अनुचित होने का निर्णय लिया जाता है। 

उदाहरण के लिए जो व्यक्ति अधिक मूल्यवान होगा अर्थात् अधिक इमानदार है, बड़ों का आदर करता है, कर्तव्यनिष्ठ है, सत्य निष्ठ है, तो उस व्यक्ति के आचरण को उचित माना जाता है और इसके विपरीत आचरण करने वाले व्यक्ति के आचरण को अनुचित माना जाता है। 

  1. मूल व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारक होते हैं,

  2. मूल्य जन्मजात नहीं होते बल्कि अर्जित किए जाते हैं

अर्थात जन्म के समय मनुष्य अन्य जीव जंतुओं के समान होता है, उसे यह भी पता नहीं होता कि ईमानदारी क्या है क्या यह अच्छी है या बुरी है किंतु समाजीकरण की प्रक्रिया तथा शैक्षिक ज्ञान के द्वारा वह मूल्य अर्जित करता है।

मूल्यों का वर्गीकरण-: 

दृष्टिकोण के आधार पर मूल्य-: 

  • सकारात्मक मूल्य

  • नकारात्मक मूल्य

सकारात्मक मूल्य-: 

व्यक्तियों के ऐसे विश्वास जिन्हें समाज में वांछनीय माना जाता है, उन्हें सकारात्मक मूल्य कहते हैं। जैसे-: अहिंसा,ईमानदारी, अनुशासन, शांति, साहस। 

नकारात्मक मूल्य-: 

व्यक्तियों के ऐसे विश्वास जिन्हें समाज में अवांछनीय माना जाता है उन्हें नकारात्मक मूल्य कहते हैं, जैसे-: हिंसा, अन्याय, अनुशासनहीनता, द्वेष, कायरता।

किंतु सदैव नकारात्मक मूल्य नकारात्मक ही नहीं होते हैं, उदाहरण के लिए हत्या एक नकारात्मक मूल्य है किंतु किसी निर्दोष बच्चे महिला को अत्याचार से बचाने के लिए की गई हिंसा या हत्या सकारात्मक मूल्य का परिचायक होती है। 

इसके अलावा कुछ परिस्थितियों में मूल उदासीन भी हो सकते हैं जैसे-: यदि किसी व्यक्ति को न्यायालय द्वारा फांसी की सजा सुनाए जाने पर, जल्लाद द्वारा दी गई फांसी ना तो सकारात्मक मूल्य होगा ना ही नकारात्मक मूल्य।

उद्देश्य के आधार पर मूल्य-: 

  • साध्य मूल्य

  • साधन मूल्य

साध्य मूल्य-: 

वे मूल्य जो हमारा उद्देश होते हैं अर्थात जिन्हें हम सदैव पाना चाहते हैं जैसे-: शांति ,न्याय, स्वतंत्रता, समानता। 

साधन मूल्य-:

बे मूल्य जिनके माध्यम से हम अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं उन्हें साधन मूल्य कहते हैं जैसे-: साहस ,धैर्य, निरंतरता, त्याग, समर्पण, अनुशासन एवं विनम्रता आदि। 

विषय क्षेत्र के आधार पर मूल्य-: 

सामाजिक मूल्य-: 

ऐसे मूल्य जो सभ्य समाज के निर्माण में सहायक हो,

जैसे-: न्यायवादिता, सहयोगात्मक भावना, अनुशासन, कर्तव्य परायण का मूल्य। 

मानव मूल्य-:

ऐसे मूल्य जो मानवता के विकास में सहायक हो। 

जैसे-: प्रेम, दया ,परोपकार ,सत्य ,अहिंसा। 

व्यक्तिगत मूल्य-: 

ऐसी मूल जो व्यक्ति को सुख एवं संतुष्टि प्रदान करते हैं उन्हें व्यक्तिगत मूल्य कहते हैं जैसे-: सजना सवरना, बागवानी करना, खेलना। 

नैतिक मूल्य-: 

ऐसे मूल्य जो व्यक्ति के अच्छे आचरण एवं चरित्र के निर्माण में सहायक हो। 

जैसे-: ईमानदारी, बड़ों का आदर करना, सत्य नष्ट होना, कर्तव्य-परायण होना। 

राजनीतिक मूल्य-: 

देश की शासन व्यवस्था को उपयुक्त तरीके से चलाने में सहायक मूल्य राजनीतिक मूल्य कहलाते हैं, 

जैसे-: जनकल्याण, जन सहभागिता, कर्तव्यों का निर्वहन, संविधान एवं घोषणा के अनुरूप कार्य करना।  

राजनेताओं को राजनीतिक पद ग्रहण करने के पूर्व राजनीतिक मूल्यों की शपथ दिलाई जाती है। 

न्यायिक मूल्य-: 

ऐसे मूल्य जो न्याय व्यवस्था के लिए आवश्यक हो,

जैसे -:निष्पक्षता, निर्भयता, सत्यता का मूल्य। 

प्रशासनिक मूल्य-: 

ऐसे मूल्य जो सुशासन की स्थापना में सहायक हो,

जैसे-: सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, पारदर्शिता, संवेदनशीलता, सहानुभूति आदि। 

मूल्यों का महत्व-: 

  1. मूल्य ,सभ्य समाज के निर्माण में सहायक है अर्थात ऐसे समाज जिसमें एकता हो, सामुदायिक भावना, समानता हो,जागरूकता हो।

  2. मूल्य, व्यक्ति के चरित्र एवं आचरण के निर्माण में सहायक है। अर्थात अच्छे व्यक्तित्व के विकास में सहायक है। 

  3. मूल्य, शासन एवं प्रशासन को उपयुक्त तरीके से संचालित करने के लिए आवश्यक है। अर्थात सुशासन की स्थापना में सहायक है। 

  4. मूल्य, लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक है।  

  5. व्यक्ति के जीवन को गरिमा पूर्ण बनाने में सहायक है।  

  6. मूल्य, बुराइयों जैसे कि भ्रष्टाचार, चोरी, बलात्कार, हिंसा आधी रोकने में सहायक है। 

व्यक्ति से मूल्यों का पालन क्यों करता है ?

  1. सामाजिक दबाव-: जैसे सामाजिक दबाव के कारण नशा नहीं करता। या कम करता है ताकि समाज को पता ना चले। 

  2. नैतिक शिक्षा-: नैतिक शिक्षा के प्रभाव से व्यक्ति गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत करने हेतु नैतिक मूल्यों का पालन करता है। 

  3. आदर्श व्यक्तियों की प्रेरणा से-: व्यक्ति महान व्यक्तियों जैसे महात्मा गांधी, अब्दुल कलाम जैसे बनने के लिए अपने अंदर नैतिक मूल्यों का आत्मसात करता है। 

  4. अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु-: अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु बड़ों का आदर करता है ,अनुशासन में रहता है ,समर्पण का भाव रखता है ,त्याग करता है। 

  5. कानून के डर से-: कानूनी सजा के डर से व्यक्ति हिंसा छोड़कर अहिंसक बनता है, चोरी नहीं करता इमानदार बनता है, बलात्कार जैसे कुकर्म में नहीं करता। 

मूल्यों का विकास-: 

व्यक्ति के अंदर मूल्य जन्मजात नहीं होते हैं बल्कि वह जन्म लेने के उपरांत अर्जित करता है। 

जन्म के समय बालक का मस्तिष्क कोरी स्लेट के समान होता है उसकी अपनी कोई मानसिकता नहीं होती उसे ना तो सदाचार पता होता है और ना ही दुराचार।

उसके मन में सदाचार एवं दुराचार जीवन की परिस्थिति तथा आसपास के वातावरण , माहौल द्वारा भरे जाते हैं। 

हालांकि बालक के मूल्यों के विकास में अनुवांशिक तत्वों की भी भूमिका होती है परंतु अनुवांशिकता का महत्व कच्ची धातु के समान है जिससे वातावरण रूपी कारखाना द्वारा परिशोधित कर दिया जाता है। 

व्यक्ति के मूल्यों का विकास मुख्यतः तीन घटकों द्वारा होता है

  • परिवार

  • समाज

  • शिक्षण संस्थान

मूल्य विकसित करने में परिवार की भूमिका-: 

परिवार बच्चे के अंदर मूल विकसित करने की पहली संस्था होती है, परिवार बच्चे को अच्छा कार्य करने पर प्रोत्साहित करके तथा बुरा कार्य करने पर डांट कर या मारपीट कर बच्चे के अंदर 

  • इमानदारी, 

  • सत्य निष्ठा, 

  • संवेदनशीलता, 

  • सहानुभूति जैसे गुणों का विकास करता है। 

 

हालांकि वर्तमान में परिवार द्वारा बच्चे के अंदर कुछ नकारात्मक मूल्य भी विकसित कर दिए जाते हैं जैसे-: 

विभिन्न प्रतियोगिताओं में अव्वल आने के लिए अपने बच्चों को यह सिखा देना कि अपने नोट्स किसी और को नहीं दिखाना चाहिए। जिससे बच्चे स्वार्थी हो जाते हैं और उनके अंदर स्वार्थपन का नकारात्मक बना जाता है। 

मूल्य विकसित करने में समाज की भूमिका-: 

बच्चे के अंदर मूल्य विकसित करने में समाज की भी अहम भूमिका होती है, क्योंकि समाज में प्रचलित परंपराओं, प्रथाओं तथा रीतियों के माध्यम से बच्चा अनेकों सकारात्मक मूल्य अर्जित करता है, तथा नकारात्मक मूल्यों का त्याग करता है। 

जैसे-:

  • समाज के सदस्यों को देखकर बड़ों का आदर करना ( बड़ों के पैर छूना),

  •  समाजिक दबाव के डर से नशा ना करना,

  •  सामाजिक कार्यक्रमों की प्रेरणा के माध्यम से सामाजिक सहयोग या एकता का मूल्य अर्जित करना।

  •  सामाजिक आलोचना की डर से चोरी ना करना।  

मूल्य विकसित करने में शैक्षिक संस्थानों की भूमिका-: 

परिवार और समाज के बाद बच्चा अपना अधिकांश समय शैक्षिक संस्थानों में ही व्यतीत करता है यहां पर भी बच्चे को शैक्षिक पाठ्यक्रमों के माध्यम से, तथा उपयुक्त दंड एवं पुरस्कार देकर अनेकों मूल्य अर्जित करवाये जाते है, 

जैसे-: 

  • अनुशासन का मूल्य,

  •  कर्तव्य परायण का मूल्य, 

  • देशभक्ति का मूल्य, 

  • ईमानदारी का मूल्य,

  •  सहयोग की भावना का मूल्य ,

  • वाद-विवाद करने का मूल्य, 

  • सहनशीलता एवं धैर्य का मूल्य।

शब्दावली-: 

सद्गुण-: 

सद्गुण का तात्पर्य सकारात्मक मूल्यों को अपने जीवन में आत्मसात कर व्यवहार में लाने से है।  

मूल्यों की तीव्रता-: 

मूल्य की तीव्रता का तात्पर्य-: मूल्यों का व्यवहार में परिलक्षण से है। अर्थात संबंधित मूल्य का व्यवहार में पालन के स्तर से है। 

उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति बहुत ज्यादा इमानदार है, दुकानदार के भूलने पर एक रुपए को भी वापस लौटाने जाता है तो उसकी इमानदारी की तीव्रता अधिक होगी इसके विपरीत यदि कोई दूसरा व्यक्ति कम ईमानदार है तो उसकी इमानदारी की तीव्रता कम होगी।

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