सत्य निष्ठा एवं उत्तरदायित्व

[सत्यनिष्ठा]

सामान्यतः सत्य निष्ठा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है -:सत्य+निष्ठा। 

यहां पर सत्य का अर्थ है-: उचित या नैतिक सिद्धांत और निष्ठा का अर्थ है -:दृढ़ता पूर्ण। 

अर्थात सत्यनिष्ठा व्यक्ति का वह मूल्य है जिसके अंतर्गत वह भय,दबाव ,प्रलोभन, पूर्वाग्रह आदि से मुक्त होकर सदैव नैतिक सिद्धांतों के अनुसार(सत्यता के अनुसार) अपने कर्तव्यों का दृढ़तापूर्वक पालन करता है। 

अर्थात अपने दायित्वों के प्रति ईमानदार होना सत्यनिष्ठा है। 

सत्यनिष्ठा के प्रकार-: 

  • बौद्धिक सत्यनिष्ठा

  • व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा

  • व्यवसायिक सत्यनिष्ठा

बौद्धिक सत्यनिष्ठा-: बौद्धिक सत्यनिष्ठा का तात्पर्य व्यक्ति के उस गुण से है जिसके अंतर्गत वह स्वयं के कार्यों का मूल्यांकन उन्हीं मापदंडों पर करता है जिन मापदंडों पर वह दूसरों के कार्यों का मूल्यांकन करता है। 

जैसे-: यदि दूसरों के लिए शुद्धता का मापदंड स्नान है तो वह अपने लिए भी शुद्धता का मापदंड स्नान को रखकर स्वयं को परखे की वह शुद्ध है या अशुध्द। 

व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा-: अपने व्यक्तिगत आदर्शों या नैतिक सिद्धांतों के अनुसार ही व्यवहार करना व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा कहलाती है। 

जैसे-: व्यक्तिगत रूप से हम यह मानते हैं कि झूठ बोलना उचित या नैतिक नहीं है तो जीवन में कभी झूठ ना बोलना ही व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा होगी। 

व्यवसायिक सत्यनिष्ठा-: अपने व्यवसाय से संबंधित नैतिक सिद्धांतों का उचित तरीके से दृढ़ता पूर्वक पालन करना व्यवसायिक सत्यनिष्ठा कहलाती है। 

जैसे-: वकील द्वारा अपने मुवक्किल को पूरी विधिक सहायता देना, वकील की व्यवसायिक सत्यनिष्ठा होगी। 

प्रशासनिक अधिकारी की सत्यनिष्ठा-: 

वह प्रशासनिक अधिकारी सत्यनिष्ठ कहलाएगा जो सार्वजनिक हित को ध्यान में रखकर प्रशासनिक आचार संहिता के अनुसार दृढ़संकल्पित होकर कार्य करता है। अर्थात जो

  • सदैव सार्वजनिक हित को ध्यान में रखकर ही निर्णय ले, व्यक्तिगत हित के अनुसार नहीं। 

  • भय,दबाव, प्रलोभन, पूर्वाग्रह आदि से मुक्त हो। 

  •  यदि जाने अनजाने में कोई अनुचित कार्य हो गया है तो उसकी गलती स्वीकार करें। 

प्रशासन में सत्यनिष्ठा का महत्व-: 

प्रशासन में सत्यनिष्ठा होने से-:

  • जनकल्याणकारी केंद्रित सुप्रशासन की स्थापना होती है। 

  • प्रशासन में भाई भतीजावाद, परिवारवाद पर लगाम लगती है

  • प्रशासन में भ्रष्टाचार एवं लालफीताशाही का प्रभाव कम होता है

  • पात्र व्यक्ति को समयबद्ध तरीके से योजना का समुचित लाभ प्राप्त होता है अर्थात प्रशासनिक कार्यों में समय प्रतिबद्धता बढ़ेगी। 

  • प्रशासन और जनता के मध्य विश्वसनीयता बढ़ती है।

  • सार्वजनिक धन का समुचित उपयोग होता है। 

  • सार्वजनिक विभिन्न विभागों संस्था एवं अधिकारियों के मध्य सहयोग एवं सामंजस्य की भावना में बढ़ोतरी होगी।

इसके अलावा सत्यनिष्ठ अधिकारी को कुछ व्यक्तिगत लाभ होता है जैसे-: 

  • सत्य नष्ट होने से उसे आत्म संतोष प्राप्त होता है

  • सत्यनिष्ठ होने के कारण उसका सम्मान बढ़ जाता है।

  • सत्य निष्ठा का पालन करने पर संबंधित अधिकारी के प्रति वरिष्ठ और अधीनस्थ अधिकारियों कर्मचारियों उस पर विश्वास बढ़ जाता है परिणाम स्वरूप उसे अधिक सहयोग प्राप्त होने लगता है। 

प्रशासन में सत्यनिष्ठा बढ़ाने के उपाय-: 

लोक सेवकों की चयन प्रक्रिया में सुधार

लोक सेवकों की चयन की प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिक परीक्षण पर विशेष बल दिया जाए और उन्हें अभ्यार्थियों को चयनित किया जाए जो सकारात्मक मनोवृति रखते हैं। 

लोक सेवकों की प्रशिक्षण प्रक्रिया में सुधार

लोक सेवकों को चयन के उपरांत, प्रशिक्षण के दौरान प्रशासनिक आचार संहिता की स्पष्ट उदाहरण सहित जानकारी प्रदान की जाए एवं तथा समय-समय पर उनका परीक्षण किया जाए और तब तक उन्हें पोस्ट नहीं दी जाए जब तक वे नैतिक मनोवृत्ति कि नहीं हो जाते हैं। 

निरीक्षण व्यवस्था में सुधार

पद ग्रहण के उपरांत अधिकारियों का समय-समय पर सतर्कता आयोग जैसी संस्था द्वारा निरीक्षण किया जाए। संदिग्ध विभागों में सीसीटीवी कैमरा एवं माइक भी लगाई जाए जो 24 घंटे एक्टिव हों, तथा अनैतिक कार्य करते हुए पकड़े जाने पर कठोर दंडात्मक कार्यवाही की जाए। 

पुरस्कार की नीति-:

सत्यनिष्ठ आचरण वाली लोक सेवकों को पुरस्कृत करके तथा उनकी प्रशंसा करके उन्हें और प्रोत्साहित किया जाए। 

कार्यस्थल में सत्य निष्ठा का माहौल

अधिकारियों के कार्यस्थल में महान विचारकों के विचारों को उल्लेखित किया जाए, बार-बार अनैतिक आचरण करने वाले सभी कर्मचारियों यहां तक कि चपरासी को भी हटा दिया जाए। 

नैतिकता आधारित कार्यक्रमों का आयोजन-:

समय-समय पर नैतिक मूल्य को बढ़ावा देने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए।

उत्तरदायित्व-: 

उत्तरदायित्व दो शब्दों से मिलकर बना है

  • उत्तर

  • दायित्व

यहां पर उत्तर का अर्थ है जवाबदेह होना अर्थात उत्तर देना, तथा दायित्व का अर्थ है अपने कार्य को करने की नैतिक जिम्मेदारी रखना। 

इस प्रकार अपने दायित्व या कर्तव्यों के पालन के प्रति नैतिक एवं कानूनी रूप से जवाबदेह होना उत्तरदायित्व कहलाता है।

परिभाषा-:

थियो हेमन के अनुसार-: “उत्तरदायित्व उच्चस्थ के प्रति अधीनस्थ द्वारा सत्ता के प्रयोग के संबंध में बंधन है”

जैसे-: एक विद्यार्थी का कर्तव्य पढ़ाई करना है ,अतः वह पढ़ाई करने के लिए उत्तरदाई होता है। 

प्रशासनिक उत्तरदायित्व-:

प्रशासनिक उत्तरदायित्व का तात्पर्य किसी प्रशासनिक अधिकारी द्वारा अपने उच्चस्थ अधिकारी या विधिक संस्था को ,अपने कार्यों तथा अधिकारों के प्रयोग की तर्कपूर्ण व्याख्या देने की बाध्यता से है।  

जैसे -: एक थाना प्रभारी ,अपने थाना क्षेत्र में होने वाले अपराधों लड़ाई झगड़ों को सुलझाने के लिए अपने उच्च अधिकारी के प्रति उत्तरदाई होता है,

इसके अलावा यदि किसी केस को सुलझाते समय कोई डीएसपी किसी अपराधी की हत्या कर देता है तो वह डीएसपी अपने उच्च अधिकारी या किसी विधिक संस्था के कहने पर अपराधी को मारने की तर्कपूर्ण व्याख्या देनें हेतु बाध्य होगा। 

उत्तर दायित्व से जुड़ी आदर्श व्याख्या के बिंदु

  • व्याख्या तर्कपूर्ण होनी चाहिए,

  • व्याख्या में तारतम्यता अर्थात एक निश्चित क्रम होना चाहिए। 

  • उत्तरदायित्व की व्याख्या साक्ष्य आधारित होना चाहिए।

उत्तरदायित्व की विशेषताएं-: 

  • उत्तरदायित्व अपने कार्य को उचित तरीके से निष्पादित करने का नैतिक बंधन होता है। 

  • उत्तरदायित्व किसी पद से जुड़ा होता है जो भी उस पद को धारण करता है उस पद का उत्तरदायित्व भी उसे प्राप्त हो जाता है। 

  • उत्तरदायित्व का हस्तांतरण नहीं किया जा सकता। 

  • उत्तरदायित्व का प्रवाह नीचे से ऊपर की ओर होता है अर्थात निचले स्तर का अधिकारी उच्च स्तर के अधिकारी के प्रति उत्तरदाई होता है। 

उत्तरदायित्व के प्रकार-: 

ऊर्ध्वाधर उत्तरदायित्व-: वह उत्तरदायित्व के अंतर्गत कोई अधिकारी या संस्था अपने से उच्च अधिकारी के प्रति उत्तरदाई होता है उसे ऊर्ध्वाधर उत्तरदायित्व कहते हैं। जैसे-: डीएसपी का एसपी के प्रति उत्तरदायी होना। 

क्षैतिज उत्तरदायित्व-: वह उत्तरदायित्व जिसके अंतर्गत कोई अधिकारी या संस्था अपने स्तर की ही अन्य अधिकारी से या अपने स्तर की संस्था के प्रति उत्तरदाई होती है उसे क्षैतिज उत्तरदायित्व कहते हैं

जैसे -:कार्यपालिका का विधायक के प्रति उत्तरदाई होना, डीएसपी का दूसरे डीएसपी के प्रति उत्तरदाई होना। 

राजनीतिक उत्तरदायित्व-: शासक एवं प्रशासक का उपयुक्त तरीके से शासन एवं प्रशासन चलाने के लिए जनता के प्रति उत्तरदाई होना राजनीतिक उत्तरदायित्व कहलाता है। 

संस्थागत उत्तरदायित्व-: अपनी संस्था संगठन से संबंधित कार्यों के प्रति उत्तरदाई होना। 

व्यवसायिक उत्तरदायित्व-: अपने व्यवसाय से संबंधित कर्तव्यों के प्रति उत्तरदाई होना। 

प्रशासनिक उत्तरदायित्व का महत्व-: 

  1. जनकल्याणकारी केंद्रित सुप्रशासन की स्थापना होती है। 

  2. प्रशासन में भाई भतीजावाद, परिवारवाद पर लगाम लगती है

  3. प्रशासन में भ्रष्टाचार एवं लालफीताशाही का प्रभाव कम होता है

  4. पात्र व्यक्ति को समयबद्ध तरीके से योजना का समुचित लाभ प्राप्त होता है अर्थात प्रशासनिक कार्यों में समय प्रतिबद्धता बढ़ेगी। 

  5. प्रशासन और जनता के मध्य विश्वसनीयता बढ़ती है।

  6. सार्वजनिक धन का समुचित उपयोग होता है। 

  7. सार्वजनिक विभिन्न विभागों संस्था एवं अधिकारियों के मध्य सहयोग एवं सामंजस्य की भावना में बढ़ोतरी होगी। 

 

प्रशासन में उत्तरदायित्व बढ़ाने के उपाय-: 

  1. ई गवर्नेंस को बढ़ावा दिया जाए अर्थात अधिकांश से सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की कार्रवाई को ऑनलाइन किया जाए, ताकि शासन प्रशासन के कार्यों की जानकारी जनता को रहे तथा कार्य ना होने पर जनता संबंधित अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई कर सकें। 

  2. सर्वेक्षण एवं निरीक्षण तकनीक को बढ़ावा दिया जाए, इसके लिए प्रत्येक विभागों में कम समय अंतराल पर निरीक्षण किया जाए तथा सीसीटीवी कैमरे, माइक लगाई जाए जो 24 घंटे एक्टिव हो। 

  3. प्रशासनिक अधिकारियों के विरुद्ध शिकायत निवारण की प्रक्रिया को और भी आसान बनाया जाए, इस दिशा में 181 सीएम हेल्पलाइन अच्छा कदम है। 

  4. सूचना के अधिकार के प्रयोग की जागरूकता बढ़ाई जाए।

  5. प्रशिक्षण के दौरान लोक सेवकों में उत्तरदायित्व की भावना विकसित की जाए इसके बाद ही जॉइनिंग दी जाए।

लोक प्रशासन में नैतिक मूल्यों के पतन के कारण -: 

भौतिकवाद या उपभोक्तावाद का प्रसार-: वर्तमान युग भौतिकवाद का युग है, अर्थात वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति सदाचार की बजाय अधिक से अधिक सुविधाजनक भौतिक वस्तुएं प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील है, और अधिक से अधिक भौतिक वस्तुएं सामाजिक प्रतिष्ठा का भी सूचक बन चुका है, और लोक सेवक भी अधिक भौतिक वस्तुओं` की प्राप्ति की इच्छा रखता है जो उसकी सीमित वेतन से संभव नहीं हो पांती अतः वह नैतिक मूल्यों की सीमा को लागकर धन एवं भौतिक वस्तु की प्राप्ति हेतु अनैतिक कार्य करता है। 

राजनीतिक एवं पूंजीपतियों का दबाव-: लोक सेवकों को बड़े पदों के राजनेताओं के अधीन कार्य करना होता है, और अनेकों राजनेता स्वयं का जेब भरने के लिए तथा बड़े बड़े पूंजीपति अनैतिक धंधे द्वारा अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए लोक सेवकों को नैतिक के विरुद्ध अनैतिक कार्य करने के लिए दबाव डालते हैं, जिस कारण से भी लोक सेवकों की नैतिकता का पतन हो जाता है

लोक सेवकों के अधिकार क्षेत्र में वृद्धि

भारत जैसे विकासशील देशों में अनेकों सार्वजनिक समस्याएं मौजूद है, और इन सार्वजनिक समस्याओं की समाप्ति का जिम्मा लोक प्रशासन के ऊपर होता है जिससे इनका कार्य क्षेत्र भी बढ़ जाता है, परिणाम स्वरुप इनके अधिकार भी बढ जाते हैं, और ये शीघ्रता से सभी कार्य करने में सक्षम नहीं होते परिणाम स्वरूप धनवान लोग अपना कार्य शीघ्रता से करवाने के लिए बिना मंगाए ,घूस देते हैं। जिससे इनका शीघ्रता से काम कर देते हैं

नियंत्रण प्रणाली में खामियां-: 

लोक सेवकों की नैतिकता पर नियंत्रण रखने के लिए अनेकों संस्थाएं करत है जैसे-: सतर्कता आयोग केंद्रीय ,अन्वेषण ब्यूरो किंतु इसकी अधिकारी भी कर्तव्यनिष्ठ एवं सत्य नष्ट नहीं होते जिस कारण से अधिकारियों की जांचकर्ता अधिकारियों के साथ मिलीभगत हो जाती है परिणाम स्वरूप इन पर कोई दांडिक कार्यवाही नहीं हो पाती और अनैतिकता के पथ पर ही चलते रहते हैं

जन जागरूकता में कमी-: 

लोकतांत्रिक देश में जनता को सर्वोपरि माना जाता है जनता का निर्णय को ही तवज्जो दी जाती है किंतु यदि जनता अनपढ़ गवार होती है तो इसका पूरा फायदा शासन प्रशासन को मिलता है और भारत जैसे देशों में अधिकांश जनता जागरूक नहीं है जिस कारण से लोक सेवक अपने मनमाने तरीके से कार्य करते हैं क्योंकि उन पर जनता का दबाव नहीं होता। 

लोक प्रशासन में नैतिक मूल्यों के पतन का प्रभाव-: 

  • भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी,

  • भाई भतीजावाद में बढ़ोतरी,

  • प्रशासनिक न्याय का अभाव,

  • प्रशासन और जनता की मध्य जन सहभागिता में कमी।  

  • राज्य में वास्तविक लोकतंत्र स्थापित ना हो पाना। 

लोक प्रशासन में नैतिक मूल्यों की स्थापना के उपाय-; 

  • लोक सेवकों को पर्याप्त नैतिक प्रशिक्षण दिया जाए तथा उनका परीक्षण भी किया जाए तभी जॉइनिंग दी जाए। 

  • कम से कम समय अंतराल अधिकारियों के निरीक्षण किया जाए। 

  • कार्यस्थल में नैतिकता के अनुसार कार्य करने का माहौल बनाया जाए जैसे -:महान विचारकों के कथन उल्लेखित किया जाए, साक्ष्य मिलने पर अधीनस्थों को भी उच्च पदों के विरुद्ध करवाई करने का अधिकार दिया जाए। 

  • अच्छा कार्य करने वाले अधिकारी को प्रोत्साहित किया जाए तथा अनैतिक कार्य करने वाले को कठोर से कठोर दंड दिया जाए। 

  • जनशिकायत निवारण प्रक्रिया को और भी आसान बनाया जाए। ताकि लोक सेवकों के अनैतिक व्यवहार से पीड़ित व्यक्ति आसानी से उसके विरुद्ध कार्रवाई कर सके। 

  • ई गवर्नेंस को बढ़ावा दिया जाए

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