[भ्रष्टाचार]
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भ्रष्टाचार शब्द दो शब्दों के योग से बना है:- भ्रष्ट + आचरण। भ्रष्ट का अर्थ होता है- अनैतिक या बुरा और आचरण का अर्थ होता है- स्वेच्छा से किया गया व्यवहार। अर्थात् स्वेच्छा से किया गया ऐसा व्यवहार जो बुरा या अनैतिक हो, उसे भ्रष्टाचार कहा जा सकता है।
सामान्यतः भ्रष्टाचार का यह अर्थ लगाया जाता है कि रिश्वत लेना या सार्वजनिक धन का दुरुपयोग करना भ्रष्टाचार है किंतु यह भ्रष्टाचार का सीमित अर्थ है।
वास्तव में “आचार संहिता एवं नैतिक मूल्यों का उल्लंघन करते हुए, अपने सार्वजनिक पद का दुरुपयोग किसी भी व्यक्तिगत लाभ प्राप्ति के लिए करना ही भ्रष्टाचार है”।
प्रमुख परिभाषाएं:-
इलियट एवं मेंरिल के अनुसार:- “प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ के लिए जानबूझकर अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करना भ्रष्टाचार कहलाता है”।
भ्रष्टाचार निरोधक समिति- 1964 के अनुसार:– “सार्वजनिक पद की शक्ति या प्रभाव का अनुचित या स्वार्थपूर्ण प्रयोग ही भ्रष्टाचार है”।
भारतीय दंड विधान की धारा 161 के अनुसार:- “कोई भी व्यक्ति शासकीय सेवा में रहते हुए अपने वैध परिश्रमिक के अतिरिक्त धन स्वीकार करता है , लेने के लिए तैयार हो जाता है या लेने का प्रयत्न करता है अथवा पक्षपात पूर्ण तरीके से सरकारी निर्णय करता है तो उसे भ्रष्टाचार कहते हैं और इससे संबंधित व्यक्ति को भ्रष्टाचारी कहते हैं”
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार:- “सौंपी गई शक्ति का निजी लाभ के लिए दुरुपयोग करना ही भ्रष्टाचार है”।
उपरोक्त परिभाषा और से भ्रष्टाचार की निम्न विशेषताएं ज्ञात होती है:-
भ्रष्टाचार के अंतर्गत सार्वजनिक पद की शक्ति या प्रभाव का दुरुपयोग करना शामिल होता है।
व्यक्तिगत लाभ के लिए अपने कर्तव्यों का इमानदारी से पालन ना करना। भी भ्रष्टाचार की प्रमुख विशेषता है।
भ्रष्टाचार करने वाला व्यक्ति व्यक्तिगत लाभ के आधार पर जनता के साथ पक्षपात पूर्ण या उपेक्षा-युक्त व्यवहार करता है।
भ्रष्टाचार के अंतर्गत जल्दी धन कमाने, प्रलोभन में आने, वैध परिश्रमिक से अधिक पैसा प्राप्त करने या बदला लेने आदि की मनोवृति शामिल होती।
भ्रष्टाचार के अंतर्गत स्वार्थ की भावना निहित होती है।
भ्रष्टाचार साध्य एवं साधन दोनों हो सकता है।
भ्रष्टाचार का प्रचलन:-
वर्तमान में शासन प्रशासन से संबंधित सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार ही है, क्योंकि दैनिक जीवन के कार्यों (ट्रैफिक पुलिस, रेल टिकट चेकिंग) से लेकर प्रशासनिक,राजनीतिक व व्यापारिक कार्यों (टेंडर प्राप्ति, वोट बैंक की राजनीति, सरकारी योजना के क्रियान्वयन) में व्यापक मात्रा में भ्रष्टाचार देखने को मिलता है। इस संदर्भ में हमारे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि यदि हम जनता को ₹1 देना चाहते हैं तो वह अंतिम लाभार्थी तक केवल 10 पैसा (10%) ही पहुंचता है, शेष पैसा भ्रष्टाचारी ले जाते हैं।
किंतु भ्रष्टाचार केवल वर्तमान की समस्या नहीं बल्कि अतीत से चली आ रही समस्या है यदि हम इतिहास में नजर दौड़ाई तो हम पाते हैं कि यूनान तथा रोम के न्यायाधीश अधिकारी व धर्म के ठेकेदार जैसे- पोप आदि रिश्वत लेते ही कार्य करते थे, वहीं भारत की बात करें तो अर्थशास्त्र में लगभग 50 प्रकार के भ्रष्टाचार ओं का वर्णन है,मध्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी मोहम्मद बिन तुगलक के समय भी भ्रष्टाचार के प्रमाण मिलते हैं और आधुनिक काल में तो पूरी “ड्रेन ऑफ वेल्थ थ्योरी” अंग्रेजों के भ्रष्टाचार का नमूना पेश करती।
भ्रष्टाचार का क्षेत्र एवं स्वरूप:-
भ्रष्टाचार लोक जीवन की सबसे बड़ी समस्या है, क्योंकि भ्रष्टाचार का क्षेत्र एवं स्वरूप सीमित न होकर बहुत ही ज्यादा व्यापक है वर्तमान में लगभग हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार होता है अर्थात प्रत्येक क्षेत्र के अधिकारी-कर्मचारी चाहे वह वकील हो, चाहे वह इंजीनियर या डॉक्टर हों, यह प्रशासक हो सभी व्यक्तिगत लाभ के लिए भ्रष्टाचार करते हैं।
भ्रष्टाचार के रूप में हो सकता है जैसे:-
किसी से उपहार प्राप्त करना या पारितोषण मांगना।
भविष्य के लाभों की प्राप्ति के लिए किसी की उपेक्षा करना या पक्षपात करना।
सरकारी धन का घपला करना।
किसी सरकारी कार्य में धांधली या धोखाधड़ी करना।
अपने कर्तव्यों का उपयुक्त निर्वहन ना करके अधिकारों एवं शक्तियों का दुरुपयोग करना।
भ्रष्टाचार के प्रकार:-
प्रशासनिक या राजनीतिक भ्रष्टाचार को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:-
कानून संगत भ्रष्टाचार
कानून विरोधी भ्रष्टाचार
कानून संगत भ्रष्टाचार:-
ऐसा भ्रष्टाचार जिसमें कानून की अवहेलना होना प्रतीत ना होता हो, उसे कानून संगत भ्रष्टाचार कहते हैं, यह भ्रष्टाचार उच्च लेवल पर राजनीतिज्ञों व उच्च प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कानून को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।
जैसे- 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला।
कानून विरोधी भ्रष्टाचार:-
ऐसा भ्रष्टाचार जैसे में कानून का उल्लंघन हुआ एक कानून विरोधी भ्रष्टाचार कहते हैं सामान्य स्तर पर यही भ्रष्टाचार होता है।
जैसे:- रिश्वत लेना, सरकारी धन का वितरण उपयुक्त तरीके से ना करना।
केंद्रीय सतर्कता आयोग के अनुसार भ्रष्टाचार के प्रकार
केंद्रीय सतर्कता आयोग ने भ्रष्टाचारियों के अनेक प्रकार बताए हैं जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:-
शासकीय पद एवं शक्तियों का दुरुपयोग करना। जैसे- अपने पद की शक्ति का प्रयोग किसी से व्यक्तिगत बदला लेने के लिए करना।
सार्वजनिक धन का दुरुपयोग करना। जैसे- किसी विकास परियोजना के लिए जारी की गई धनराशि का कुछ हिस्सा व्यक्तिगत लाभ के लिए उपयोग कर लेना।
निम्न स्तरीय कार्य को स्वीकारना। जैसे- मिड डे मील में निम्न गुणवत्ता का भोजन प्रदान करवाना।
अनैतिक आचरण करना।
आय से अधिक संपत्ति रखना।
उपहार प्राप्त करना। (₹100 से अधिक उपहार लेना)
आयकर, संपत्ति कर को कम बताना या छुपाना।
भर्ती ,नियुक्ति, स्थानांतरण एवं पदोन्नति के संबंध में गैर कानूनी रूप से धन लेना।
शासकीय कर्मचारियों का निजी कार्यों में प्रयोग करना।
भर्ती प्रक्रिया में योग्यता के स्थान पर सगे संबंधियों या परिचितों को प्राथमिकता देना।
जाति प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, मृत्यु प्रमाण पत्र, अन्य जाली प्रमाण पत्र पैसे लेकर बनाना।
झूठे दौरों, भक्तों, बिल ,गृह-किराया का दावा करना।
भ्रष्टाचार के कारण:-
यदि भारत देश की सबसे जटिल तुम समस्याओं को इंगित किया जाए तो भ्रष्टाचार का स्थान पहले पायदान पर होगा, क्योंकि दैनिक जीवन के कार्यों (ट्रैफिक पुलिस, रेल टिकट चेकिंग) से लेकर प्रशासनिक,राजनीतिक व व्यापारिक कार्यों (टेंडर प्राप्ति, वोट बैंक की राजनीति, सरकारी योजना के क्रियान्वयन) में व्यापक मात्रा में भ्रष्टाचार देखने को मिलता है। भ्रष्टाचार की सामाजिक स्वीकार्यता, राजनीतिक समर्थन और प्रशासनिक अकर्मण्यता ने भ्रष्टाचार रूपी दानव का रूप और भी अधिक विशाल बना दिया है, जो देश में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक अपराधों का मूल कारण बन चुका है।
भ्रष्टाचार के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:-
सामाजिक कारण
उपभोक्तावादी एवं भौतिकवादी संस्कृति:-
वर्तमान की संस्कृति ऐसी हो चुकी है कि सभी लोग अधिकतम भौतिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं, और यह अधिकतम भौतिक सुख सीमित आय से संभव नहीं है इसलिए भ्रष्टाचार करते हैं।
अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए:-
प्राचीन समय में उस व्यक्ति को श्रेष्ठ माना जाता था जो नैतिक विचारों वाला एवं ज्ञानी होता था लेकिन अब किस समय में उस व्यक्ति को ऊंचे उहदे का माना जाता है, जिसके पास अधिक भौतिक संपत्ति होती है और उसे ही सम्मान दिया जाता है, अतः व्यक्ति समाज में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए अधिक भौतिक संपत्ति एकत्रित करना चाहता है और जिसके लिए भ्रष्टाचार करता है।
सामाजिक स्वीकार्यता:-
वर्तमान में भ्रष्टाचार को इतना बड़ा अपराध नहीं माना जाता है जितना माना जाना चाहिए सभी लोग भ्रष्टाचार को आसानी से स्वीकार कर लेते हैं यहां तक कि लोग स्वयं ही अपना काम शीघ्रता से करवाने के लिए अधिकारियों को रिश्वत देते हैं,जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है,
हालांकि हाल के वर्षों में यह प्रवृत्ति बहुत कम हुई है।
जन जागरूकता का अभाव:-
साधारण लोगों को भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई करने की पर्याप्त जानकारी नहीं होती और यदि होती भी है तो वह छोटे से काम के लिए पूरे भ्रष्टाचारी तंत्र से टक्कर लेना नहीं चाहते, जिससे वे भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध शिकायत नहीं करते इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
नैतिक मूल्यों में गिरावट:-
वर्तमान में नैतिक मूल्यों का पतन होता जा रहा है जो व्यक्ति ईमानदार एवं सत्यनिष्ठ है उपहास का पात्र बन जाता है और अनैतिक कार्य करने वाला व्यक्ति सम्मान पाता है इस कारण से व्यक्ति अनैतिकता के पथ पर चलते हुए भ्रष्टाचार करता है।
राजनीतिक कारण:-
नेता अधिकारी के बीच सांठगांठ:-
सार्वजनिक धन पर नेता एवं अधिकारी का ही हस्तक्षेप होता है किंतु नेता एवं अधिकारी दोनों आपस में मिलीभगत करके बड़े-बड़े घोटाले को अंजाम देते हैं।
राजनीति का अपराधीकरण:-
राजनेता अपराधियों से व्यापक मात्रा में धन प्राप्त करके, उन्हें कानूनी संरक्षण प्रदान करते हैं यह भी भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण है।
राजनीतिक व्यवस्था का भ्रष्ट होना:-
प्रशासनिक व्यवस्था के भ्रष्ट होने का एक मुख्य कारण राजनीतिक व्यवस्था का भ्रष्ट होना है क्योंकि प्रशासनिक अधिकारी कर्मचारियों को राजनेताओं के अधीन रहकर कार्य करना होता है किंतु राजनीतिक व्यवस्था ही भ्रष्ट होती है इसलिए प्रशासनिक व्यवस्था को भ्रष्ट बनना पड़ता है अन्यथा बार-बार गलत जगह में स्थानांतरण एवं सस्पेंड ऑर्डर का फल भोगना पड़ता है।
सत्ता का केंद्रीकरण:-
सत्ता का केंद्रीकरण भी भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण है क्योंकि यदि केंद्रीकृत व्यवस्था में उच्च स्तर पर बैठा हुआ व्यक्ति भ्रष्ट है तो निम्न स्तरीय अधिकारी कर्मचारी को विवशता पूर्वक ईमानदारी के पथ से हटकर, भ्रष्ट बनना पड़ता।
आर्थिक कारण:-
कम वेतन:-
कई अधिकारी एवं कर्मचारियों को उनके पद अथवा काम की उपेक्षा बहुत कम वेतन दिया जाता है, जिससे उनके समस्त आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पाती इसलिए भी भ्रष्टाचार करते हैं।
व्यापारियों से मिलीभगत:-
बड़े बड़े उद्योगपति एवं व्यापारी सरकारी प्रोजेक्टों का ठेका पाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों से मिलीभगत करते हैं अर्थात टेंडर पाने के बदले, अपने आर्थिक लाभ का कुछ हिस्सा रिश्वत के रूप में लोक सेवकों को दे देते हैं।
प्रशासनिक कारण:-
प्रशासनिक कार्य बोझ अधिक होना:-
भारत जैसे देशों में सरकारी तंत्र की क्षमता के अनुपात में उनका कार्यबोझ काफी भी अधिक होता है, परिणाम स्वरूप कोई भी कर शीघ्रता से नहीं होता इसलिए लोग शीघ्रता से अपना कार्य करवाने के लिए स्वयं ही रिश्वत देते हैं।
विवेकाधीन शक्ति:-
प्रशासनिक अधिकारियों के पास अनेकों स्थिति में अपने विवेकाधीन शक्तियां होती हैं, जब उन्हें मनचाहे निर्णय लेने का अधिकार होता है ऐसी स्थिति में वे प्राप्त हुए पैसे के आधार पर अपना निर्णय लेते हैं या कार्य करते हैं।
जैसे- अनेकों पुलिस स्पेक्टर प्राप्त हुए पैसे के अनुसार ही एफ आई आर की रिपोर्ट बनाते हैं।
इसलिए संथानम समिति ने कहा है कि जितनी कम विवेकाधीन शक्तियां होंगी, भ्रष्टाचार उतना कम होगा।
लोक सेवकों को प्राप्त संरक्षण:-
अनुच्छेद 311 के अनुसार संघीय राज्य लोक सेवकों को केवल वही पद से हटा सकता है जिसने उसे नियुक्त किया है और वह भी तब जब उसके विरुद्ध अपराधिक दोष सिद्ध हो चुका हो, जो काफी जटिल प्रक्रिया है, इस प्रकार के संरक्षण से अधिकारियों के अंदर नौकरी जाने का डर समाप्त हो जाता है और वह भ्रष्टाचार की ओर अग्रसर होते हैं।
पारदर्शिता का अभाव:-
प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता का अभाव होता है, जो भ्रष्टाचार के कार्य को और भी आसान बना देता है। क्योंकि अधिकारी गोपनीयता की आड़ में ऐसे आंकड़े छुपा लेते हैं जो भ्रष्टाचार को सामने ला सकते हैं।
वैधानिक कारण:-
कठोर कानून का अभाव:-
भ्रष्टाचार निवारण हेतु बनाए गए कानूनों में अल्पसजा का प्रावधान है जिससे भ्रष्टाचारियों के अंदर कानून का ज्यादा भय नहीं रहता और वह भ्रष्टाचार की गतिविधि में संलिप्त रहते हैं।
शीघ्र शिकायत निवारण प्रक्रिया का अभाव:-
साधारणतः लोग अपने छोटे से काम के लिए स्वयं ही रिश्वत दे देते हैं भ्रष्टाचार के विरुद्ध नहीं लड़ते लेकिन उनमें से कुछ जागरूक लोग यदि लड़ते भी हैं भ्रष्टाचार के विरुद्ध शिकायत की प्रक्रिया की जांच पड़ताल बहुत ही धीमी गति से होती है और उसे उचित सजा नहीं मिल पाती , इससे भी भ्रष्टाचारी और भ्रष्टाचार करते हैं।
जटिल न्यायिक प्रक्रिया:-
भारत में न्यायिक प्रक्रिया अत्यंत जटिल एवं विलंबकारी है, जिस कारण से भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति को शीघ्र सजा नहीं मिल पाती। परिणाम स्वरूप भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
नियंत्रण प्रणाली में दोष:-
भ्रष्टाचार नियंत्रण के लिए जो नियंत्रण प्रणाली बनी है, उसमें भी राजनीतिक हस्तक्षेप रहता है और यदि राजनीतिज्ञ ही भ्रष्ट है तो भ्रष्टाचार की नियंत्रण प्रणाली भी भ्रष्ट हो जाती है,जिससे भ्रष्टाचार घटता नहीं, बल्कि और बढ़ता है।
भ्रष्टाचार के प्रभाव:-
भ्रष्टाचारी का नैतिक तरफ है इसके दुष्प्रभाव एवं परिणाम आने को है जिसे निम्न वर्गों ने बात कर देखा जा सकता है:-
सामाजिक दुष्प्रभाव:-
सामाजिक असमानता को बढ़ती है- अमीर और अमीर और गरीब और गरीब होता जाता है। क्योंकि गरीबों के हक का पैसा अमीरों को प्राप्त होने लगता है।
सामाजिक असंतोष बढ़ता है- भ्रष्टाचार के कारण ईमानदार एवं प्रतिभाशाली लोगों को उनके अधिकार नहीं मिल पाते जिससे सामाजिक असंतोष बढ़ता है जिस कारण से कुछ लोग आत्महत्या कर लेते हैं तो कुछ लोग को हिंसात्मक आंदोलन करने लगते हैं या आतंकवादी बन जाते हैं।
सामाजिक न्याय में कमी:-
भ्रष्टाचार के कारण अपने वाजिब हक के लिए दौड़ने वाले व्यक्ति को न्याय नहीं मिल पाता। क्योंकि अधिकारी कर्मचारी प्राप्त रिश्वत के अनुसार पक्षपात पूर्ण कार्य करते हैं।
राजनैतिक दुष्प्रभाव:-
शासन प्रशासन के प्रति अविश्वास:-
भ्रष्टाचार के कारण आम जनता में शासन-प्रशासन की संपूर्ण व्यवस्था के प्रति विश्वास बढ़ता है।
अपराधों में बढ़ोतरी:-
भ्रष्टाचार के कारण अपराधियों को राजनेताओं का संरक्षण प्राप्त हो जाता है जिससे अपराधी कानूनी सजा से बचे रहते हैं और अपराध को बढ़ावा देते हैं।
प्रशासनिक दुष्प्रभाव:-
योजनाओं के क्रियान्वयन में बाधा:-
प्रशासन का मुख्य कार्य सरकारी योजनाओं का लाभ पात्र हितकारी तक पहुंचाना होता है किंतु भ्रष्टाचार के कारण गरीबों के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं का लाभ गरीबों को नहीं मिल पाता।
प्रशासनिक कार्य कुशलता में कमी:-
भ्रष्टाचारी प्रशासनिक अधिकारी बिना रिश्वत लिए अपना कार्य नहीं करते जिससे प्रशासन की कार्य कुशलता में कमी आती है।
लालफीताशाही में बढ़ोतरी:-
भ्रष्टाचारी प्रशासनिक अधिकारी उन व्यक्तियों का कार्य शीघ्रता से करते हैं जिनसे उन्हें रिश्वत प्राप्त होती है परिणाम स्वरूप एक सामान्य व्यक्ति जो रिश्वत नहीं देता, उसके कार्य में विलंबता आती है। अर्थात लालफीताशाही बढ़ती है।
आर्थिक दुष्प्रभाव:-
विकास कार्यों में बाधा:-भ्रष्टाचारी अधिकारी व्यापारियों या उद्योगपतियों से मिलकर किसी विकास योजना का टेंडर, उपयुक्त मापदंड पूरा न करने वाले अपने चहेते व्यक्ति को दे देते हैं जिससे संबंधित विकास परियोजना (स्कूल ,सड़क, पुल)की गुणवत्ता निम्न स्तर की होती है परिणाम स्वरूप विकास कार्य बाधित होता है।
निवेश में कमी:- प्रशासनिक भ्रष्टाचार के कारण लोग आर्थिक गतिविधियों में कम भाग लेंगे निवेश कम करेंगे जिससे आर्थिक विकास में कमी आएगी।
सरकारी कोष को नुकसान:- भ्रष्टाचारी अधिकारी किसी भी अवैधानिक कार्य का कानूनी रूप से चलान काटकर, आपसी मिलीभगत करके चालान की रकम अपने जेब में रख लेते हैं जिससे सरकारी कोष को काफी नुकसान होता है।
जैसे- अनेकों ट्रैफिक पुलिसकर्मी ट्रैफिक के नियम का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों का चालान ना काटकर गुप्त रूप से कुछ पैसा अपने जेब में रखकर उन्हें छोड़ देते हैं।
भ्रष्टाचार को अल्पमत करने के उपाय:-
नैतिक शिक्षा:-
बच्चों को बचपन से ही परिवार एवं स्कूल द्वारा भ्रष्टाचार विरोधी नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा दी जाए, एवं उन्हें यह एहसास करवाया जाए कि भ्रष्टाचार सबसे बड़ा अपराध है। ताकि वे बड़े होकर भ्रष्टाचारी ना बने।
जन जागरूकता:-
भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनमानस को जागरूक किया जाए उन्हें भ्रष्टाचार के विरुद्ध शिकायत की प्रक्रिया से अवगत कराया जाए ताकि जनता भ्रष्टाचार को सहन ना करके भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाए, और भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवाए जिससे भ्रष्टाचारियों का मनोबल कम होगा और वे भ्रष्टाचार नहीं करेंगे।
जैसे- लोगों को आरटीआई के बारे में अवगत कराया जाए।
शिकायत निवारण प्रक्रिया आसान बनाई जाए–
ताकि लोग भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध शिकायत करने से डरे नहीं और शिकायत द्वारा अपना हक आसानी से प्राप्त कर सकें, 181 हेल्पलाइन इस दिशा में उल्लेखनीय कदम है।
पारदर्शिता बढ़ाई जाए:-
प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया जाए, जैसे- जनता के समक्ष, सरकारी बजट के व्यय का विवरण,प्रत्येक सरकारी योजना का लेखा जोखा प्रकाशित किया जाए, प्रत्येक विकास परियोजना की वीडियो रिकॉर्डिंग रखी जाए और उसे आरटीआई के अंतर्गत लाया जाए। ताकि जनता यह जान सके कि विकास परियोजना का निर्माण कितनी कोलकाता से किया गया।
ई गवर्नेंस को बढ़ावा दिया जाए:-
प्रशासनिक कार्यों में ई गवर्नेंस को बढ़ावा दिया जाए जिससे जनता ऑनलाइन तरीके से बिना रिश्वत दिए सेवा प्राप्त कर सके और उसे सरकारी योजनाओं का लाभ बिना किसी दलालों के प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त हो सके।
पर्याप्त वेतन:-
प्रशासनिक अधिकारी कर्मचारियों को उनके कार्य एवं पद के अनुसार तत्कालीन महंगाई के आधार पर पर्याप्त वेतन दिया जाए, ताकि दे बेस्ट तरीके से धन प्राप्त करने की कोशिश न करें।
कठोर आचार संहिता
प्रशासनिक अधिकारी एवं राजनेताओं के लिए भ्रष्टाचार विरोधी कठोर आचार संहिता बनाई जाए तथा उसे आचार संहिता का उल्लंघन करने पर से वंचित किए जाने का एवं कठोर सजा दी जाने का भी प्रावधान हो, ताकि अधिकारियों एवं नेताओं के अंदर कानून का डर हो और भी भ्रष्टाचार ना कर सके।
प्रशिक्षण व्यवस्था में सुधार:-
लोक सेवकों को भ्रष्टाचार विरोधी नैतिकता का पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाए तथा उन्हें नियुक्त करने की पूर्व कुछ अधिकार व शक्ति देकर उनके चरित्र का परीक्षण किया जाए उस परीक्षा पर खरा उतरने के बाद ही उन्हें नियुक्त किया जाए।
समयबद्ध समीक्षा:-
लोक सेवकों की आय एवं व्यय के लेखा जोखा की नियमित रूप से समीक्षा की जाए, संदिग्ध पाए जाने पर उनकी जांच की जाए।
निरीक्षण:-
प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरा एवं ऑडियो माइक लगाकर उन पर निगरानी रखी जाए, तथा भ्रष्टाचार निवारक संस्था द्वारा अधिकारियों का निरीक्षण किया जाए।
भ्रष्टाचार निवारण संस्थाओं की स्वतंत्रता-
भ्रष्टाचार निवारण संस्थाओं जैसे-: CBI,CVC, लोकायुक्त आदि को राजनीतिक हास्य से मुक्त रखा जाए ताकि वह अपना कार्य निष्पक्ष तरीके से कर सकें।
मीडिया की भूमिका:-
मीडिया शासन-प्रशासन और जनता के बीच की कड़ी है जो जनता की आवाज को शासन प्रशासन तक पहुंचाती है तथा शासन प्रशासन के नियम कानूनों व योजनाओं से जनता को अवगत करवाती है, अतः प्रशासनिक क्षेत्र में मीडिया की भूमिका को बढ़ावा दिया जाए ताकि प्रशासनिक पारदर्शिता को बढ़ावा मिले और भ्रष्टाचार कम हो।