[गुरुनानक]
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गुरु नानक का जीवन परिचय
सिख धर्म के प्रवर्तक समाज सुधारक एवं नैतिक मार्गदर्शक गुरु नानक देव का जन्म 1469 ईसवी में तलवंडी (ननकाना साहिब ,पाकिस्तान) में हुआ था, 16 वर्ष की उम्र में उनका विवाह सुलक्षणी देवी से हुआ। वे बचपन से ही एक ईश्वर पर विश्वास रखते हुए, जातिगत एवं धार्मिक विवेद की वजह मानव प्रेम को सर्वोपरि समझते थे, और उन्होंने अपने इसी सिद्धांत को आधार बनाकर कबीर की भांति घूम घूम कर उपदेश देने लगे उन्होंने भारत श्री लंका, मक्का-मदीना ,फारस, अफगानिस्तान सहित अनेकों स्थानों में यात्राएं की जिन्हे उदासियां कहा जाता है और अपने धर्म का प्रचार किया।
अंततः 1539 में पाकिस्तान के करतारपुर में उनकी मृत्यु हो गई।
नानक की प्रमुख रचनाएं:-
गुरु नानक जी अपने उपदेश छोटी-छोटी कविताओं के रूप में दिया करते थे उनकी मृत्यु के उपरांत सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव ने उनकी कविताओं को ग्रंथ में संकलित किया, उनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं:-.
जपुजी
तखारी
राग के बारहमाहां
गुरुनानक जी के दार्शनिक विचार:-
ब्रह्म संबंधी विचार:-
गुरु नानक जी मानते थे कि परमात्मा या ईश्वर निर्गुण, निराकार ,अविनाशी ,अनंत है, वह सार्वभौमिक है उसे किसी मंदिर या मस्जिद तक सीमित नहीं किया जा सकता।
इसके अलावा वे एकेश्वरवाद पर विश्वास रखते थे अर्थात् ईश्वर केवल एक ही है राम, रहीम ,खुदा ,गोविंद यह उसकी अलग-अलग उपाधि मात्र है।
आत्मा संबंधी विचार:-
कबीर की भांति गुरु नानक जी भी मानते थे कि आत्मा परमात्मा का ही अंश है,जो अजय एवं अमर होती है। और मृत्यु के बाद यह आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है
जगत संबंधी विचार:-
गुरु नानक जी शंकराचार्य की भांति संसार या जगत को माया या छलावा नहीं मानते थे बल्कि वे जगत की सत्ता को स्वीकारते थे किंतु इस जगत को शाश्वत या नित्य ना मानकर अस्थाई मानते थे।
उनके अनुसार हमें ग्रस्त जीवन में रहते हुए ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए ना कि सन्यास या वैराग्य धारण करके।
मोक्ष संबंधी विचार:-
गुरु नानक देव जी के जब आत्मा इस शरीर को त्याग कर परमात्मा में विलीन हो जाती है तो यही मोक्ष कहलाता है और मोक्ष प्राप्ति के लिए अध्यात्मिक उन्नति एवं ईश्वर की भक्ति दोनों ही जरूरी है।
गुरु नानक देव के नैतिक विचार:-
गुरु नानक देव एक नैतिक मार्गदर्शक थे उन्होंने अनेकों नैतिक सिद्धांत दिए हैं जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं:-
हमें ईश्वर की उपासना करनी चाहिए इससे आध्यात्मिक उन्नति होती है।
हमें बुरे कार्यों के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।
ईमानदारी से मेहनत करके रोटी कमाना चाहिए ना की भीख मांगना चाहिए।
व्यक्ति व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए।
लोभ लालच संग्रह आदि से दूर रहना चाहिए।
हमें अपने अंदर अहंकार नहीं बल्कि सेवा भाव रखना चाहिए।
गुरु नानक देव का सामाजिक चिंतन:-
गुरु नानक देव जी एक समाज सुधारक थे, उनके अंदर तत्कालीन समय के रूढ़ीवादिता से ग्रसित समाज, धर्म, राजनीति के प्रति असंतोष था उनका कहना था कि “यह युग कटार है और राजा कसाई, न्याय ने पंख लगा लिए हैं और भाग गया है”
उन्होंने तत्कालीन समय की सामाजिक रूढ़िवादिता का विरोध किया और अपने नैतिक विचारों को जगह-जगह भ्रमण करके फैलाया। उनके सामाजिक व्यवस्था के प्रति निम्न विचार थे:-
जातिवाद का विरोध:-
गुरु नानक देव जाति प्रथा के प्रबल विरोधी थे, क्योंकि उनका मानना था कि सभी के अंदर एक समान आत्मा निवास करती है केवल जन्म के आधार पर व्यक्ति अलग-अलग जाति का कहलाने लगता है और निम्न जाति के साथ शोषण होता है। अतः उन्होंने जातिवाद की समाप्ति पर बल दिया।
नारी मुक्ति के समर्थक:-
स्त्री और पुरुष की समानता पर विश्वास रखते थे। उनके अनुसार नारी, पुरुष की सहयोगी है ना कि पुरुष से निम्नतर।
संप्रदायिकता का विरोध:-
गुरु नानक जी एकेश्वरवाद पर विश्वास करते थे अर्थात ईश्वर एक ही है राम और रहीम उसकी अलग अलग उपमाएं हैं, अतः हमें धर्म के आधार पर आपसी विभेद नहीं करना चाहिए।
धार्मिक कर्मकांड ओं का विरोध:-
गुरु नानक देव ने परंपरागत अंधविश्वासों का विरोध किया जैसे- मूर्ति पूजा, सती प्रथा, तीर्थ यात्रा आदि। उनके अनुसार व्यक्ति को केवल मन वचन और कर्म से शुद्ध होना चाहिए।
गुरु नानक के धार्मिक विचार:-
गुरु नानक देव सनातन धर्म के कर्मफल सिद्धांत, आत्मा सिद्धांत, मोक्ष सिद्धांत को स्वीकार किया है तथा अवतारवाद, मूर्ति पूजा,स्वर्ग नरक सिद्धांत, एवं धार्मिक कुरीतियों का विरोध किया है।
कर्मफल सिद्धांत:-
गुरु नानक देव कर्म फल सिद्धांत पर विश्वास रखें अर्थात उनका मानना था कि देखती जैसे कर्म करता है वैसे ही फल प्राप्त करता है।
आत्मा सिद्धांत:-
गुरु नानक देव जी मानते थे कि आत्मा परमात्मा का ही अंश है और यह अजय एवं अमर होती।
मोक्ष सिद्धांत:-
गुरु नानक देव जी के अनुसार जब यह आत्मा शरीर को त्याग कर परमात्मा में विलीन हो जाती है तो यह मोक्ष कहलाता है और मोक्ष प्राप्ति के लिए आध्यात्मिक उन्नति एवं भक्ति आवश्यक है।
अवतारवाद:-
गुरु नानक जी अवतारवाद पर विश्वास नहीं रखते थे, उनके अनुसार ईश्वर का मनुष्य के रूप में जन्म लेने की कल्पना करना, ईश्वर को जन्म और मृत्यु के चक्र में बांधना है,जबकि ईश्वर इससे मुक्त होता है।
मूर्ति पूजा का विरोध:-
गुरु नानक देव मूर्ति पूजा के विरोधी थे तथा उनकी किसी भी धर्म में ग्रंथ में आस्था नहीं थी।
धार्मिक रूढ़िवादिता का विरोध
नानक जी ने सनातन धर्म की विभिन्न बुराइयां जैसे- जाति प्रथा, सती प्रथा, छुआछूत, यज्ञ ,तीर्थ-यात्रा जैसे कर्मकांड का विरोध किया।
गुरु नानक के 10 सिद्धांत:-
ईश्वर एक है
जगत के कण-कण में ईश्वर व्याप्त है
हमें एक ईश्वर की उपासना करनी चाहिए।
सर्वशक्तिमान ईश्वर की उपासना करने वालों को भय नहीं रहता।
बुरे कार्य के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।
ईमानदारी से मेहनत करके रोटी कमाना चाहिए, भीख नहीं मांगना चाहिए।
हमें सभी भेदभाव को समाप्त करना चाहिए।
सदैव प्रसन्न रहना चाहिए।
लोभ लालच संग्रह व्रत्ति की बुरी है इससे दूर रहना चाहिए
मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रयत्न करना चाहिए।
गुरु नानक की शिक्षाओं का प्रभाव:-
गुरु नानक मध्यकालीन समय के प्रमुख समाज सुधारक थे उन्होंने अपनी नैतिक विचारों पर आधारित शिक्षाओं का प्रचार करके, जातिवाद, संप्रदायवाद पर प्रहार किया, विभिन्न प्रकार की कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाई और मानव-मानव के मध्य प्रेम की भावना को बढ़ाकर, मानवता की भावना का विस्तार किया। उनके प्रभाव से सिख समुदाय में लंगर प्रथा की शुरुआत हुई जहां पर सभी जाति धर्म के लोगों को बिना किसी भेदभाव के निशुल्क भोजन प्रदान किया जाता है।
गोपीचंद नारंग ने गुरु नानक देव के बारे में लिखा है:-
“गुरु नानक, पंजाब के हिंदुओं को उनकी पूर्व दशा के मुकाबले बहुत अच्छी हालत में छोड़कर सिधारे थे”।