[जलवायु परिवर्तन]
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Toggleकिसी विस्तृत स्थान की दीर्घकालीन मौसमी दशाओं जैसे:- तापमान , वर्षा एवं आद्रता आदि को जलवायु कहते हैं।
और जलवायु के विभिन्न घटकों जैसे :-तापमान, वर्षा, आद्रता आदि के संख्यात्मक मान में शीघ्रता से परिवर्तन होने की घटना को जलवायु परिवर्तन कहते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग:-
पृथ्वी के औसतन तापमान (15° सेल्सियस) में वृद्धि होना ग्लोबल वार्मिंग कहलाता है, और ग्लोबल वार्मिंग जलवायु परिवर्तन का सबसे प्रमुख कारण है।
और ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण, हमारे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, हाइड्रो फ्लोरो कार्बन,जलवाष्प आदि गैसों की मात्रा में वृद्धि होना है। क्योंकि यह ग्रीन हाउस गैसें (भूतल से परिवर्तित होने वाली दीर्घ तरंग विकरण की)ऊष्मा को अवशोषित करती हैं जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ता है।
साक्ष्य:-
औद्योगीकरण के पूर्व हमारी पृथ्वी में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 0.028%(280ppm) थी, जो आज औद्योगीकरण के प्रभाव से बढ़कर,0.040% (400ppm)हो गई।
पृथ्वी के औसतन तापमान में भी साल दर साल वृद्धि होती जा रही है। औद्योगिक काल के पूर्व के स्तर से वर्तमान में 1 डिग्री सेल्सियस वैश्विक तापमान बढ़ गया है।
जलवायु परिवर्तन या वैश्विक तापमान के कारण
प्राकृतिक कारण:-
ज्वालामुखी विस्फोट से व्यापक मात्रा में ग्रीन हाउस गैसों का निकलना जैसे:-कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, जलवाष्प।
महासागरीय धाराओं में होने वाले परिवर्तन। जैसे अलनीनो, ला-नीनो का प्रभाव।
मानवीय कारण:-
व्यापक मात्रा में कोयला के दहन से विद्युत का उत्पादन किया जाना।
औद्योगिक गतिविधियों का विस्तार होना, क्योंकि औद्योगिक गतिविधियों से व्यापक मात्रा में ईंधन का दहन दहन होता है जिससे ग्रीन हाउस गैसें निकलती है।
यातायात के साधनों में अधिक मात्रा में ईंधनों का प्रयोग किया जाना।
जैविक पदार्थों को जलाया जाना, जैसे-पराली जलाना, जैविक कचरा जलाना, जंगलों में आग लगना।
कृषि में रासायनिक दवाओं एवं कीटनाशकों का अधिकाधिक प्रयोग, कृषि उत्पादन क्षेत्र में बढ़ोतरी से मीथेन गैस के उत्सर्जन में भी बढ़ोतरी होती है जैसे- चावल के खेत से मीथेन का उत्सर्जन होना।
वन कटाई एवं नगरीकरण की प्रक्रिया का विस्तार, वृक्ष ऑक्सीजन उत्सर्जित करते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर लेते हैं किंतु वृक्षों की कटाई से ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है।
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विश्व में सर्वाधिक कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन
विश्व की सर्वाधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्पादक देश:-
चीन- यह विश्व की लगभग 27% कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करता है।
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका- यह विश्व की लगभग 17% कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करता है।
भारत- यह विश्व की लगभग 10% कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करता है।
रूस
जापान।
प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन में:-
कतर का प्रत्येक व्यक्ति औसतन रूप से प्रत्येक वर्ष लगभग 37 टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करता है।
कुवैत का प्रत्येक व्यक्ति औसतन रूप से प्रत्येक वर्ष लगभग 25 टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करता है।
भारत का प्रत्येक व्यक्ति औसतन रूप से प्रत्येक वर्ष लगभग 1.5 टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करता है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
बाढ़ आने की समस्या
व्यापक बाढ़ की आनी संभावना। (क्योंकि तापमान वृद्धि से हिमनद पिघलेंगे परिणाम स्वरूप पर्वतीय नदियां जैसे सिंधु ब्रह्मपुत्र भारी बाढ़ आएगी। )
तटीय क्षेत्रों का जलमग्न होना
समुद्र जल स्तर में बढ़ोतरी, एवं तटीय क्षेत्रों का जलमग्न होना। (जैसे -श्रीलंका ,मालदीव ,मुंबई , चेन्नई ,टोक्यो के क्षेत्र)
प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति में वृद्धि
प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी, (क्योंकि जलवायु परिवर्तन से व्यापक मात्रा में बादल फटने, चक्रवात आने, जंगलों में आग लगने की संभावना होती है)
नवीन महामारी की उत्पत्ति
अधिक ताप एवं अधिक वर्षा से नए-नए वायरस बैक्टीरिया जन्म लेंगे जिससे नई नई बीमारी महामारी फैलेंगी मनुष्य का विनाश होगा।
जैव विविधता में दुष्प्रभाव
जलवायु परिवर्तन या तापमान वृद्धि से कोरल रीफ का विनाश होगा जिससे समुद्री जैवविविधता जैसे मत्स्य परिवार का विनाश होगा परिणाम स्वरूप पौष्टिक भोजन की कमी होगी।
कृषि उत्पादकता में नकारात्मक प्रभाव
जलवायु परिवर्तन से वर्षा की अनिश्चितता बढ़ेगी जिससे उत्पादन दुष्ट प्रभावित होगा परिणाम स्वरूप उत्पादकता करने की और खाद्यान्न की कमी होने से भुखमरी, गरीबी, कुपोषण की समस्या उत्पन्न होगी।
जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव:-
वर्षा एवं अन्य मौसमी दशाओं की अनिश्चितता बढ़ेगी जिससे कृषि उत्पादकता दुष्ट प्रभावित होगी।
तापमान में वृद्धि होने से बादल फटने, चक्रवात आने जैसी घटना घटक होगी जिससे , परिणाम स्वरूप फसलें नष्ट हो जाएंगी।
जलवायु परिवर्तन से खरपतवारओं एवं कीटों में वृद्धि होगी जिससे फसल को नुकसान होगा।
तापमान में वृद्धि होने से फसलें जल्दी पक जातीं हैं अर्थात फसल को वृद्धि करने का पर्याप्त समय प्राप्त नहीं हो पाता जिससे उनकी उत्पादकता कम हो जाती है।
जलवायु परिवर्तन से मत्स्य उत्पादन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि तापमान में वृद्धि से कोरल रीफ का विनाश होता है और कोरल रीफ के विनाश से मत्स्य परिवार का भी विनाश होता है।
कार्बन डाइऑक्साइड का उर्वरकीय प्रभाव:-
जलवायु परिवर्तन के समय कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अधिक होती है तथा वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज होने से वातावरण में जलवाष्प भी व्यापक मात्रा में होती है, ऐसी स्थिति में वृक्षों को पनपने के लिए पर्याप्त मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड एवं चल प्राप्त होगा जिससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया में तेजी आएगी परिणाम स्वरूप प्रति पौधे की उत्पादकता बढ़ेगी।
किंतु परिणामी उत्पादकता कम हो जाएगी क्योंकि वृक्षों की संख्या ही कम हो जायगी।
जलवायु परिवर्तन को रोकने के उपाय :-
बिजली का उत्पादन कोयले का दहन करके नहीं ,बल्कि नवीनीकृत ऊर्जा स्त्रोत का उपयोग करके किया जाए।
औद्योगिक गतिविधियों में परंपरागत ईंधन के स्थान पर गैर परंपरागत ईंधन अर्थात नवीनीकृत ऊर्जा का उपयोग किया जाए।
व्यक्तिगत यातायात के साधनों के स्थान पर सामूहिक यातायात के साधनों के प्रयोग पर जोर दिया जाए ताकि परिवहन के साधनों में कम से कम ईंधन का दहन हो।
जैविक पदार्थों को जलाया नहीं जाए बल्कि उनसे जैविक खाद बनाई जाए।
भौतिकवादी जीवन शैली के स्थान पर प्रकृति प्रेम आधारित साधारण जीवन शैली अपनाई जाए।
अधिकाधिक मात्रा में वृक्षारोपण किया जाए।
शैवालों के बीज एवं आयरन विधि
जैसा कि हमें ज्ञात है कि पृथ्वी में लगभग 90% प्रकाश संश्लेषण की क्रिया शैवाल एवं डायटमस नामक जैसे जीव करते हैं और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषण एवं ऑक्सीजन का उत्सर्जन होता है। अतः हम समुद्र में शैवालों के बीज, एवं उनको पनपने के लिए आयरन का छिड़काव कर दे तो समुद्र में शैवालों की मात्रा बढ़ेगी परिणाम स्वरूप उनकी प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा पृथ्वी में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा घटेगी, पर ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ेगी परिणाम स्वरूप पृथ्वी का तापमान कम हो जाएगा।
जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए उठाए गए कदम-:
5 जून 1972 में स्वीडन की स्टॉकहोम में मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुआ, जिसमें पर्यावरण का प्रबंधन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की स्थापना की गई। तथा प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की घोषणा की गई।
1988 में पहली बार जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए इंटर-गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) नामक संस्था बनाई गई जो वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के संबंध में अनुसंधान करके उसको दूर करने की सुझाव देती है।
1992 का रियो डी जेनेरियो सम्मेलन हुआ, इस सम्मेलन में ही जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र समझौता (unfccc) हुआ, जिसके तहत प्रतिवर्ष जलवायु परिवर्तन पर विचार करने के लिए cop(conference of party) सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया गया।
इसके तहत प्रथम COP सम्मेलन 1995 में बर्लिन में हुआ।
1997 में जापान के क्योटो में UNFCCC का तीसरा COP सम्मेलन हुआ, जिसमें 6 ग्रीन हाउस गैसों ( CO 2 , CH4 N2O , HFC)आदि के उत्सर्जन को 2012 तक 1990 के स्तर पर लाने का एक बाध्यकारी समझौता किया गया जिसे क्योटो प्रोटोकोल के नाम से जाना जाता है।
क्यूटो प्रोटोकॉल पूर्ण रूप से वर्ष 2005 के मांट्रियल सम्मेलन से प्रभावी हुआ।
2015 में जलवायु परिवर्तन से संबंधित पेरिस समझौता हुआ जिसमें वैश्विक तापमान को औद्योगिक काल के पूर्व की तुलना में केवल 1.5 सेल्सियस या अधिकतम 2 डिग्री सेल्सियस रखने का लक्ष्य रखा गया। तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने की इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रत्येक देश को अपनी व्यक्तिगत रणनीति अपनायेगा। यह समझौता वर्ष 2021 से लागू हुआ।
कार्बन क्रेडिट
निर्धारित मात्रा से कम मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करने या कार्बन डाइऑक्साइड शोखने की व्यवस्था करने पर क्रेडिट प्राप्त होने की व्यवस्था कार्बन क्रेडिट कहलाती है।
इसके अंतर्गत यदि कोई कंपनी निर्धारित कार्बन उत्सर्जन की मात्रा से कम मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करती है तो उसी क्रेडिट प्राप्त होता है जिसे बेचकर वह आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकती है।
उसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति 1 टन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने प्रकार करता है तो उसे एक क्रिकेट प्राप्त हो जाता है।
कार्बन टैक्स-:
निर्धारित मात्रा से अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करने पर जो टैक्स लगाया जाता है उसे कार्बन टैक्स कहते हैं।