[प्रायद्वीपीय भारत/तटीय मैदान/ दीप समूह]

[प्रायद्वीपीय भारत]

प्रायद्वीपीय भारत, गंगा के मैदान के दक्षिण में त्रिभुजाकार आकृति में फैला हुआ है, जिसका विस्तार-: उत्तर पूर्व में शिलांग की पहाड़ियों तक, उत्तर पश्चिम में अरावली पर्वत तक तथा दक्षिण में कन्याकुमारी तक लगभग 1600000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में है। 

प्रायद्वीपीय भारत गोंडवाना लैंड का हिस्सा है, जिसके निम्न प्रमाण है:- 

  • हिमालय लगातार बढ़ रहा है और इसकी ऊंचाई में बढ़ोतरी का कारण प्रायद्वीपीय प्लेट का उत्तर पूर्वी दिशा में गति करना इससे यह लगता है कि यह दक्षिण-पश्चिम अर्थात अफ्रीका से अलग होकर आई है। 

  • गुजरात के गिर में अफ्रीका की तरह शेर पाए जाते हैं। 

  • प्रदीप भारत का कगारनुमा है और यह कगारनुमा आकृति, भारतीय प्लेट के अफ्रीकी प्लेट से अलग होने के कारण बनी है। 

प्रायद्वीपीय पठार का ढाल ,उत्तर में उत्तर पूर्व की ओर है, इसी कारण से चंबल एवं सोन जैसी नदियां उत्तर पूर्व की दिशा में बहती है तथा दक्षिण में पूर्व की ओर है जिसकी पुष्टि कृष्णा, गोदावरी, कावेरी नदी के बहाव दिशा से होती है।

नर्मदा तथा ताप्ती भ्रंश से घाटी के सहारे प्रायद्वीपीय भारत को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:-

  • मध्य उच्च भूमि

  • दक्कन का पठार क्षेत्र

प्रायद्वीपीय भारत के प्रमुख उच्चावच:-

प्रायद्वीपीय भारत के प्रमुख उच्चावच:-

प्रमुख पर्वत 

  • अरावली पर्वत

  • विंध्य पर्वत

  • सतपुड़ा पर्वत

  • पश्चिमी घाट पर्वत

  • पूर्वी घाट पर्वत

  • नीलगिरी पर्वत

प्रमुख पठार

  • मालवा का पठार

  • बुंदेलखंड का पठार

  • बघेलखंड का पठार

  • छोटा नागपुर पठार

  • दंडकारण्य का पठार

  • शिलांग का पठार

  • दक्कन का पठार

  • कर्नाटक का पठार

  • तेलंगाना का पठार

अरावली पर्वत

.अरावली पर्वत

स्थिति एवं विस्तार:-

अरावली पर्वत गुजरात के पालनपुर से लेकर दिल्ली की मजनूटीले तक लगभग 800 किलोमीटर की लंबाई में फैला हुआ है। इसका विस्तार क्षेत्र गुजरात ,राजस्थान ,हरियाणा व दिल्ली आदि राज्यों में है,किंतु सर्वाधिक विस्तार राजस्थान में

निर्माण:-

इस पर्वत का निर्माण वलित पर्वत के रूप में प्रीकैंब्रियन काल में हुआ था, किंतु वर्तमान में यह अपरदित होकर, अवशिष्ट पर्वत की श्रेणी में आ गया है। 

सर्वोच्च चोटी:-

इस पर्वत की सबसे ऊंची चोटी “गुरु शिखर”जो माउंट आबू नामक पहाड़ी में स्थित है। 

जल संसाधन:-

अरावली पर्वत के पश्चिम से लूनी नदी तथा पूरब से वनास नदी निकलती है। 

अरावली क्षेत्र में लगभग 40 से 50 सेंटीमीटर ही वर्षा होती है क्योंकि यह मानसूनी हवाओं के समांतर दिशा में पड़ता है। 

खनिज संसाधन:-

अरावली पर्वत में तांबा, जस्ता जैसे खनिजों का भंडार है। 

विशेष तथ्य

राजस्थान के लोघ अरावली को जरघा की पहाड़ियां के नाम से भी जानते हैं। 

विंध्य पर्वत

 

.विंध्य पर्वत

स्थिति एवं विस्तार:-

विंध्य पर्वत श्रेणी मध्य प्रदेश के दक्षिणी मालवा से लेकर उत्तर प्रदेश ,बिहार और झारखंड तक लगभग 1100 किलोमीटर की लंबाई में फैली हुई है, देश का सर्वाधिक विस्तार मध्यप्रदेश में ही है। 

निर्माण:-

विंध्याचल पर्वत का निर्माण हर्सीनियन युग में नर्मदा नदी भ्रंश के कारण ब्लॉक पर्वत के रूप में हुआ था, किंतु वर्तमान में यह अवशिष्ट पर्वत का रूप ले चुका। 

सर्वोच्च चोटी:- 

विंध्याचल पर्वत की सर्वोच्च चोटी सद्भावना शेखर है जो दमोह में स्थित है। 

विंध्याचल पर्वत की प्रमुख उप पर्वत श्रेणी निम्न  हैं:-कैमूर श्रेणी, भाण्डे़र श्रेणी। 

जल संसाधन:- 

विंध्याचल पर्वत जल संसाधन की दृष्टि से काफी संपन्न क्षेत्र है क्योंकि इस पर्वत से अनेकों नदियां प्रवाहित होते हैं जैसे:- 

  • चंबल नदी

  • क्षिप्रा नदी

  • पर्वती नदी

  • कालीसिंध नदी

  • बेतवा नदी

  • टोंस नदी

  • केन नदी। 

इसका ढाल उत्तर में दक्षिण की अपेक्षा कम तीव्र है क्योंकि उत्तर में मालवा का पठार, बुंदेलखंड का पठार, मध्य भारत का पठार अवस्थित है, जबकि दक्षिण में नर्मदा भ्रंश घाटी है। 

खनिज संसाधन:- 

यह खनिज संसाधन की दृष्टि से भी काफी संपन्न क्षेत्र है, इस पर्वतीय क्षेत्र में मुख्यतः लाल बलुआ पत्थर ,लाल पत्थर, डोलोमाइट ,चूना पत्थर, कोयला तथा यहां तक कि “हीरा” जैसे खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। 

विशेष तथ्य:-

यह पर्वत श्रृंखला, उत्तर भारत की नदियों को दक्षिण भारत की नदियों से विभाजित करती हैं, 

सतपुडा़ पर्वत

स्थिति एवं विस्तार:-

सतपुड़ा पर्वत श्रेणी नर्मदा नदी घाटी के दक्षिण में समांतर रूप से विस्तृत है, अर्थात इसका विस्तार पूर्वी गुजरात से लेकर लगभग संपूर्ण दक्षिण मध्य प्रदेश में है। 

निर्माण:- 

विंध्याचल पर्वत का निर्माण हर्सीनियन युग में नर्मदा नदी भ्रंश के कारण ब्लॉक पर्वत के रूप में हुआ था, किंतु वर्तमान में यह अवशिष्ट पर्वत का रूप ले चुका। 

सर्वोच्च चोटी:- 

सतपुरा पर्वत को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:- 

  • पश्चिमी सतपुड़ा

  •  पूर्वी सतपुड़ा 

  • मैकल श्रेणी

पश्चिमी सतपुड़ा के अंतर्गत राजपीपला ,अखरानी ,असीरगढ़ की पहाड़ियां आती है,जो बुरहानपुर क्षेत्र में स्थित है। 

पूर्वी सतपुड़ा के अंतर्गत महादेव पर्वत श्रेणी आती है, जो होशंगाबाद क्षेत्र में स्थित है। 

और मैकल श्रेणी सतपुरा का सबसे पूर्वी भाग है जिसके अंतर्गत अमरकंटक की चोटी स्थित है। 

इसकी सर्वोच्च चोटी धूपगढ़ है जिसकी ऊंचाई 1350 मीटर है जो महादेव पर्वत श्रेणी में स्थिति है। 

जल संसाधन:-

जल संसाधन की दृष्टि से यह काफी संपन्न पर्वतीय क्षेत्र है, क्योंकि यहां से नर्मदा नदी के अलावा अनेकों प्रमुख नदियां प्रवाहित होती हैं, जैसे:- ताप्ती नदी, वर्धा नदी, पेंच नदी, बेनगंगा ,सोन नदी। 

तथा पूर्वी सतपुड़ा क्षेत्र में तो 150 मीटर से भी अधिक वार्षिक वर्षा हो जाती है। 

खनिज संसाधन:- 

क्षेत्र खनिज संसाधन की दृष्टि से अधिक संपन्न क्षेत्र है, क्योंकि इस पर्वतीय क्षेत्र में व्यापक मात्रा में तांबा ,मैगनीज, ग्रेफाइट ,कोयला ,संगमरमर आदि पाया जाता है। 

विशेष तथ्य:-

पश्चिमी घाट पर्वत श्रेणी

.पश्चिमी घाट पर्वत श्रेणी

स्थिति एवं विस्तार:- 

पश्चिमी घाट एक कगारनुमा पर्वत श्रेणी है, जो प्रायद्वीपीय भारत के पश्चिमी हिस्से में, उत्तर से दक्षिण की ओर लगभग 1600 किलोमीटर की लंबाई में फैला हुआ है। 

इसका विस्तार उत्तर में ताप्ती नदी से लेकर दक्षिण में नीलगिरी की पहाड़ियां तक महाराष्ट्र, कर्नाटक ,केरल, तमिलनाडु आदि क्षेत्र में है। 

सर्वोच्च चोटी:-इस की सर्वोच्च चोटियों में कालसुबाई( महाराष्ट्र ), कुद्रेमुख (कर्नाटक), अन्नामुण्डी(केरल) शामिल है।

जल संसाधन:- जल संसाधन की दृष्टि से काफी समृद्ध क्षेत्र है क्योंकि पश्चिमी घाट के पश्चिमी क्षेत्र में अरब सागर की मानसूनी शाखा के टकराने से 200 सेंटीमीटर से भी अधिक पर्वतीय वर्षा हो जाती है। पश्चिमी घाट से अनेकों नदियां भी निकलती है जैसे:- कृष्णा ,सावित्री ,कोयना। 

वन संसाधन:-इस पर्वतीय क्षेत्र में अधिक वर्षा होने के कारण सदाबहार वन एवं अधिक जैव विविधता पाई जाती है। 

विशेष तथ्य:-इसे सहयाद्री के नाम से भी जाना जाता है। 

पूर्वी घाट

.पूर्वी घाट

स्थिति एवं विस्तार:-

पूर्वी घाट प्रायद्वीपीय भारत के पूर्व में उत्तर से दक्षिण की ओर लगभग 1300 किलोमीटर की लंबाई में फैला हुआ है। 

इसका विस्तार उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक तमिल नाडु आदि राज्यों में है। 

सर्वोच्च चोटी:- पूर्वी घाट की सर्वोच्च चोटियां अरमाकोंडा(विशाखापट्टनम,उड़ीसा), महेंद्र गिरी (उड़ीसा) है। 

जल संसाधन:- पूर्वी घाट में मुख्यतः मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा से वर्षा होती है ,किंतु कुछ वर्षा शीतकाल में उत्तर-पूर्वी मानसून से भी हो जाती है। 

विशेष तथ्य:- 

पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट में अंतर :-

  • पश्चिमी घाट पूर्वी घाट की अपेक्षा अधिक ऊंचा है। 

  • पश्चिमी घाट पूर्वी घाट की उपेक्षा कम चौड़ा है, पश्चिमी घाट की चौड़ाई लगभग 50 से 80 किलोमीटर है जबकि पूर्वी घाट की चौड़ाई 75 से 190 किलोमीटर तक है। 

  • पूर्वी घाट एक लंबी कगारनुमा संरचना के आकार का दिखते हैं जबकि पूर्वी घाट नदियों के अपरदन के कारण काफी कटा फटा है। 

  • पश्चिमी घाट में दक्षिण-पश्चिम मानसून की अरब सागर शाखा से वर्षा होती है जबकि पूर्वी घाट में दक्षिण-पश्चिम मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा से वर्षा होती है। 

नीलगिरी पर्वत

.नीलगिरी पर्वत

स्थिति एवं विस्तार:- 

नीलगिरी पर्वत पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट का मिलन बिंदु है जिसका विस्तार कर्नाटक तमिलनाडु एवं केरल राज्य में छोटी-छोटी पहाड़ियों के रूप में है। 

सर्वोच्च चोटी:- नीलगिरी पर्वत की सर्वोच्च चोटी “दोदाबेट्टा” है, जो तमिलनाडु राज्य में स्थित है। 2637 मीटर है। 

विशेष तथ्य:- नीलगिरी का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल “ऊटकमंडक(ऊटी)” है। 

छोटा नागपुर का पठार

.छोटा नागपुर का पठार

स्थिति एवं विस्तार:- 

छोटा नागपुर का पठार, भौगोलिक दृष्टि से गंगा के मैदान के दक्षिण में, महानदी के उत्तर में, राजमहल की पहाड़ियों के पश्चिम में तथा रिहंद नदी के पूर्व में अवस्थित है। इसका विस्तार बिहार ,झारखंड ,उड़ीसा ,पश्चिम बंगाल में है किंतु सर्वाधिक विस्तार झारखंड में है। 

धरातलीय स्थिति:- 

इस पठार का ढाल पूर्व की ओर है , जिसकी पुष्टि दामोदर नदी की प्रवाह दिशा से होती है। 

तथा इसकी औसतन ऊंचाई 700 मीटर है। 

जल संसाधन:- इस पठार में दामोदर तथा महानदी की अनेकों सहायक नदियों का अपवाह तंत्र विस्तृत है।  

खनिज संसाधन:- छोटा नागपुर के पठार को खाने संसाधनों की प्रचुरता की दृष्टि से भारत का “रूर” प्रदेश कहा जाता है। छोटा नागपुर के पठार में मुक्ता गोंडवाना क्रम की चट्टाने पाई जाती हैं अतः इसमें कोयला ,लोहा व मैग्नीज आदि प्रचुर मात्रा में मिलता है। 

विशिष्ट तथ्य:- हजारी का पठार और रांची का पठार इसके ही अंग है। 

शिलांग का पठार

शिलांग का पठार

स्थिति एवं विस्तार:- 

किस पठार का विस्तार मुख्यत: मेघालय राज्य में है। 

धरातलीय स्थिति:- 

इस पठार का ध्यान उत्तर की ओर है। इसी पठार में गारो, खासी ,जयंतिया जैसी पहाड़ियां स्थित हैं। 

जल संसाधन:- 

यह जल संसाधन की दृष्टि से सबसे समृद्ध क्षेत्र है क्योंकि विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान “चेरापूंजी”इसी पठार में अवस्थित है। यहां पर लगभग 1177 सेंटीमीटर औसतन वार्षिक वर्षा होती है। 

दंडकारण्य का पठार

यह पठार दक्षिणी छत्तीसगढ़ ,पूर्वी महाराष्ट्र एवं पश्चिमी उड़ीसा के क्षेत्र में अवस्थित है। 

जिसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है, इस पठार में बॉक्साइट,लौह ऑक्साइड एवं मैगजीन जैसे खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। 

दक्कन का पठार

.दंडकारण्य का पठार

स्थिति एवं विस्तार:- 

दक्कन का पठार पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के मध्य स्थित है। 

इसका विस्तार महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में है। 

निर्माण:- दक्कन के पठार का निर्माण दरारीज्वालामुखी उद्भेदन से निकले बेसाल्ट प्रकृति केलावा के निक्षेपण से हुआ। इस पठार में ढक्कनी ट्रैंप की चट्टाने पाई जाती है, जिनके अपक्षय अपरदन से काली मिट्टी का निर्माण हुआ है। 

धरातलीय स्थिति:- 

दक्कन के पठार का ढाल पूर्व की ओर है, तथा दक्कन के पठार के पश्चिमी क्षेत्र-: में सतमाला की पहाड़ी, उत्तरी क्षेत्र में-: अजंता की पहाड़ी, और दक्षिण क्षेत्र में:- हरिश्चंद्र एवं बालाघाट की पहाड़ी पाई जाती है। 

जल संसाधन:- 

इस पठार में गोदावरी एवं एवं कृष्णा की अनेकों सहायक नदियों का अपवाह तंत्र फैला हुआ है। 

कर्नाटक का पठार

.कर्नाटक का पठार

स्थिति एवं विस्तार:- 

कर्नाटक के पठार का विस्तार मुख्यतः कर्नाटक एवं उत्तरी केरल में है। 

निर्माण:- कर्नाटक के पठार का निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों से हुआ है। 

धरातलीय स्थिति:- 

कर्नाटक के पठार का ढाल भी उत्तर की ओर है। 

जल संसाधन:- कर्नाटक के पठार में मुख्यतः कावेरी नदी एवं इसकी सहायक नदियों का अपवाह तंत्र पाया जाता है। 

तेलंगाना का पठार

स्थिति एवं विस्तार:-

यह पठार तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश राज्य में स्थित है। 

निर्माण:- 

इस पठार का निर्माण मुक्ता आर्कियन , धारवाड़ एवं कुटप्पा क्रम की चट्टानों से हुआ है। 

जल संसाधन:- 

इस पठार के मध्य से कृष्णा नदी निकलती है , जो यहां के जल संसाधन का प्रमुख स्त्रोत है। 

प्रायद्वीपीय भारत की पठानों का महत्व:-

  • खनिजों की प्रचुरता

प्रायद्वीपीय भारत के पठार में धार्मिक एवं आध्यात्मिक दोनों प्रकार के खनिजों की प्रचुरता पाई जाती, जैसे मैग्नीज ,लोहा,बाक्साइट ,संगमरमर एवं कोयला आदि। भारत का 98% कोयला भंडार प्रायद्वीपीय भारत में ही पाया जाता है। 

  • खेती की दृष्टि से महत्वपूर्ण:-

प्रदीप भारत के पठारों की बहुत बड़े भाग में काली मिट्टी पाई जाती है जो कपास ,दलहन एवं मक्की की खेती के लिए उपयुक्त होती है, इसके अलावा दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठार में अनेकों बागान है जहां पर व्यापारिक फसलें जैसे- चाय ,कॉफी ,काजू ,मसाले ,रबड़ ,तंबाकू की खेती की जाती है। 

  • वन संपदा का भंडार:-

प्रायद्वीपीय भारत के पठार ओं में खनिज संपदा के साथ-साथ व्यापक मात्रा में उष्णकटिबंधीय पर्णपाती बन भी पाए जाते हैं, 

  • पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण:-

प्रायद्वीपीय भारत के पठार में अनेकों दर्शनीय पर्यटन स्थल पाए जाते हैं जैसे-:  ऊटी, महाबलेश्वर, पचमढ़ी तथा माउंट आबू आदि। 

तटीय मैदान

.तटीय मैदान

प्रायद्वीपीय पठार के दोनों ओर (पूर्व और पश्चिम में) तटीय मैदान अवस्थित है। 

पश्चिमी तटीय मैदान:-

स्थिति:-

यह मैदान पश्चिमी घाट की पहचान में लगभग 30 से 40 किलोमीटर की चौड़ाई में फैला हुआ है जिसका विस्तार उत्तर में गुजरात से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक है। 

निर्माण:-

इसका का निर्माण सागरीय लहरों के अपरदन तथा नदियों के अवसाद के निक्षेपण किंतु अधिकांश भाग अपरदन द्वारा ही निर्मित है। 

विभाजन:-

सुविधा की दृष्टि से पश्चिमी तटीय मैदान को चार भागों में विभाजित किया गया है:-

  • गुजरात तट:- इसका विस्तार गुजरात के सौराष्ट्र प्रांत से लेकर दमन (केंद्र शासित प्रदेश) तक है। 

  • कोंकण तट:-इस तट का विस्तार दमन से लेकर गोवा तक है। 

  • कंकड़ तट:- इस तट का विस्तार गोवा से मंगलुरू (कर्नाटक) तक है। 

  • मालाबार तट:- इस तट का विस्तार मंगलुरू से कन्याकुमारी तक है। 

पश्चिमी तटीय मैदान की नदियां:-

पश्चिमी तटीय मैदान काढाल पूर्वी तट की तुलना में पेपर होने के कारण यहां पर नदियों का वेग अधिक होता है अतः यहां की नदियां ज्वारनदमुख का निर्माण करती है यहां की प्रमुख नदियां निम्न हैं:-

  • नर्मदा नदी

  • ताप्ती नदी

  • साबरमती नदी

  • पेरियार नदी। 

पूर्वी तटीय मैदान:-

स्थिति:- यह मैदान पूर्वी घाट के पूर्व में लगभग 80-100 किलोमीटर की चौड़ाई में फैला हुआ है, जिसका विस्तार उत्तर में स्वर्णरेखा नदी से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक है। 

निर्माण:-

पूर्वी तटीय मैदान का निर्माण बंगाल की खाड़ी में अपना जल गिराने वाली नदियां जैसे- महानदी, गोदावरी, कृष्णा,कावेरी आदि के मलबों के निक्षेपण से हुआ है। 

विभाजन:- सुविधा की दृष्टि से पूर्वी तटीय मैदान को चार भागों में बांटा गया है:- 

  • उत्कल तट- इसका विस्तार स्वर्णरेखा नदी से महानदी तक है। 

  • उत्तरी सरर्कार तक- इसका विस्तार महानदी से लेकर गोदावरी नदी खेलता तक। 

  • गोलकोण्डा तट- इसका विस्तार गोदावरी नदी से कृष्णा नदी तक है। 

  • कोरोमंडल तट- इसका विस्तार कृष्णा नदी से कन्याकुमारी तक है। 

पूर्वी तटीय मैदान की नदियां:-

पूर्वी तटीय मैदान का निर्माण ही नदी द्वारा बहा कर लाए गए मलबों के निक्षेपण से हुआ है, पूर्वी तटीय मैदान में निम्न नदियां अपना डेल्टा बनाती है-

  • महानदी

  • गोदावरी नदी

  • कृष्णा नदी

  • कावेरी नदी। 

आदि। 

पूर्वी तट और पश्चिमी तट में अंतर:-

  • पश्चिमी तटीय मैदान, पूर्वी तटीय मैदान की तुलना में अपेक्षाकृत कम चौड़ा है, पश्चिमी तटीय मैदान की औसतन चौड़ाई 30 से 40 किलोमीटर है,जबकि पूर्वी तटीय मैदान की औसतन चौड़ाई 80 से 100 किलोमीटर है। 

  • पश्चिमी तटीय मैदान, के अधिकांश भाग का निर्माण अपरदन की क्रिया से हुआ है जबकि, पूर्वी तटीय मैदान के अधिकांश भाग का निर्माण नदी के अवसादों के निक्षेपण की क्रिया से हुआ है। 

  • पश्चिमी तटीय मैदान, पूर्वी तटीय मैदान की तुलना में अधिक तीव्र ढाल का है‌, इसीलिए यहां की नदिया तीव्र वेग से प्रभावित होते हुए ‘ज्वारनदमुख’का निर्माण करती हैं। जबकि पूर्वी तटीय मैदान काढाल अपेक्षाकृत कम तीव्र होने के कारण यहां की नदियां डेल्टा का निर्माण करती है।

  • अपरदन के कारण पश्चिमी तट अधिक कटा फटा है जबकि पूर्वी तट कम कटता है। 

  • पश्चिमी तटीय मैदान में पूर्वी तटीय मैदान की तुलना में अधिक लैगून है। 

  • पश्चिमी तटीय मैदान केवल ग्रीष्म काल में मानसून की अरब सागर शाखा से वर्षा प्राप्त करता है, जबकि पूर्वी तटीय मैदान ग्रीष्म काल में बंगाल की खाड़ी शाखा से और शीतकाल में लौटते मानसून दोनों से वर्षा प्राप्त करता है। 

तटीय मैदान का महत्व:-

  • विदेशी व्यापार की दृष्टि से महत्वपूर्ण क्योंकि तटीय मैदान में बंदरगाहों का विकास करके जल मार्ग द्वारा, सस्ता विदेशी व्यापार किया जा सकता है। 

  • आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण

तटीय मैदान देश की आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि सीधे कोई आक्रमण नहीं कर सकता। 

  • पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण

तटीय मैदान क्षेत्र में अनेकों पर्यटक स्थल का विकास हुआ है, जैसे- गोवा बीच, केरल बीच, चेन्नई बीच,चिल्का झील आदि। 

  • ऊर्जा संसाधन की दृष्टि से महत्वपूर्ण– क्योंकि तटीय क्षेत्रों में ही व्यापक मात्रा में पेट्रोलियम एवं गैसों की भंडार होते हैं-जैसे मुंबई पेट्रोलियम क्षेत्र। 

  • आजीविका के साधन के रूप में

तटीय मैदान समुद्र से जुड़े होने के कारण आजीविका के प्रमुख साधन होती है क्योंकि यहां पर -: मत्स्य पालन, नारियल की खेती, चावल की खेती की जा सकती है। 

भारत के द्वीप समूह:- 

स्थल खंड का वह भाग जो चारों तरफ से जल से घिरा हुआ उसे द्वीप कहते हैं। 

भारत के प्रमुख दीप समूह:-

  • अंडमान निकोबार दीप

  • समूह लक्ष्य दीप समूह

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह:-

अंडमान निकोबार, बंगाल की खाड़ी का एक प्रमुख द्वीप समूह है, जो अराकान योमा(हिमालय) पर्वत श्रेणी का ही दक्षिण विस्तार है। 

अंडमान निकोबार में कुल 572 द्वीप हैं, जिन्हें मुख्यतः निम्न भागों में बांटा जा सकता है:-

  • उत्तरी अंडमान

  • मध्य अंडमान 

  • दक्षिणी अंडमान 

  • लघु अंडमान

  • कॉर निकोबार 

  • लिटिल निकोबार

  • ग्रेट निकोबार

.अंडमान-निकोबार द्वीप समूह:-

अंडमान निकोबार की सर्वोच्च चोटी “सैडल पीक” है , इसकी ऊंचाई 734 मीटर है जो उत्तरी अंडमान में स्थित है। 

अंडमान निकोबार में दो ज्वालामुखी है नारकोंडम और बैरम ज्वालामुखी जिसमें बैरन ज्वालामुखी को भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी माना जाता है। 

 

राजनीतिक दृष्टि से अंडमान निकोबार:-

राजनीतिक दृष्टि से अंडमान निकोबार एक केंद्र शासित प्रदेश है जिसकी राजधानी:- पोर्ट ब्लेयर है जो दक्षिणी अंडमान में स्थित है। 

अंडमान निकोबार की कुल जनसंख्या लगभग 3.5 लाख है, किंतु यहां की अधिकांश जनसंख्या आदिवासी या जनजातिय है, 

अंडमान निकोबार की प्रमुख जनजातियां :-

  • अंडमान की जनजाति

    • जरावा जनजाति

    • सेन्टिनिल जनजाति

    • ओंग जनजाति

  • निकोबार की जनजाति

    • शौंपेन जनजाति

    • निकोबारी जनजाति। 

सेल्यूलर जेल:- 

पोर्ट ब्लेयर में स्थिति सेल्यूलर जेल एक ब्रिटिश कालीन जेल है जहां पर विनायक दामोदर सावरकर को रखा गया था वर्तमान में इसे अस्पताल में बदल दिया गया है। 

लक्ष्यदीप समूह 

लक्ष्यदीप अरब सागर में स्थित 36 दीपों का समूह है जिसका निर्माण मुख्यतः मूंगे की चट्टानों से हुआ है। 

लक्ष्य जीत के प्रमुख दीप:-

  • अमीन द्वीप

  • आंद्रोत द्वीप

  • मिनिकाय द्वीप

  • कवारत्ती द्वीप

.लक्ष्यदीप समूह 

राजनीतिक दृष्टि से  लक्ष्यदीप:-

लक्ष्यदीप भारत का एक केंद्र शासित प्रदेश है जिसकी राजधानी “कवारत्ती” है। 

लक्षदीप का कुल क्षेत्रफल 32 वर्ग किलोमीटर है,तथा यहां पर लगभग 65000 जनसंख्या निवास करती है। 

भारत के लिए दीप समूह का महत्व

  • लक्ष्मी पेपर अंडमान निकोबार दीप समूह में अत्यधिक वर्षा होने के कारण यहां पर सदाबहार वन पाए जाते हैं, बताइए क्षेत्र पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। 

  • समुद्र में स्थित होने के कारण है यह जल मार्ग द्वारा विदेशी व्यापार की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है,

  • दोनों ही देशों में विशेषकर लक्ष्यदीप में कोरल मिट्टी पाई जाती है जो जैव-विविधता का केंद्र होते हैं। 

  • दोनों ही दी पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। 

  • दोनों ही द्वीपों में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस के भंडार मौजूद है। 

  • दोनों दीप आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। 

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