[भारत की जलवायु]
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Toggleभारत की जलवायु ‘उष्णकटिबंधीय-मानसूनी’ प्रकार की है,
उष्णकटिबंधीय इसलिए क्योंकि:- भारत के लगभग मध्य से कर्क रेखा गुजरती है जिससे भारत का तापमान उच्च होता है इसलिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्र कहते हैं।
मानसूनी इसलिए क्योंकि:- क्योंकि भारतीय क्षेत्र में मौसम के अनुसार हवाओं की दिशा में भी परिवर्तन हो जाता है अर्थात भारत की हवाएं ग्रीष्म काल में हिंद-महासागर से उत्तर भारत की ओर तथा शीतकाल में उत्तर भारत से हिंद-महासागर की ओर प्रवाहित होती हैं।
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क्या भारत का क्षेत्र शीतोष्ण कटिबंध में नहीं आता?
हां यह बात सत्य है कि भारत के लगभग मध्य से कर्क रेखा गुजरती है कर्क रेखा से मकर रेखा तक के बीच का क्षेत्र उष्णकटिबंधीय कहलाता है और कर्क रेखा से ऊपर का क्षेत्र शीतोष्ण कटिबंध ही कहलाता है इस आधार पर, भारत का लगभग आधा उत्तरी क्षेत्र शीतोष्ण कटिबंध में आना चाहिए, किन्तु उत्तर भारत में हिमालय पर्वती की स्थित है जो शीतकाल में साइबेरियन क्षेत्र की ठंडी हवाओं को रोककर,भरत को गर्म में बनाए रखता है अतः भारत में शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र की पर्याप्त विशेषता नहीं पाई जाती इसीलिए इसे शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र के अंतर्गत नहीं रखा जाता है।
भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
अक्षांशीय स्थिति:-
मोटे तौर पर भारत का अक्षांशीय विस्तार 8°4 से 37°6 तक है, और भारत की लगभग मध्य से कर्क रेखा गुजरती है अतः भारत का दक्षिणी क्षेत्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आता है, जहां का तापमान अधिक एवं तपांतर कम होता है जबकि उत्तरी क्षेत्र उपोष्ण कटिबंध क्षेत्र में आता है अतः यहां का तापमान कम और दैनिक तथा वार्षिक तपांतर अधिक होता है।
हिमालय पर्वत की स्थिति:-
भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत स्थित है जो भारत की सीमा का निर्धारण करता है यह भारत की जलवायु को निर्णय दो तरीके से प्रभावित करता है
वर्षा काल में मानसूनी हवाओं को रोककर, उत्तर भारत में वर्षा कराता है।
शीतकाल में शहरी क्षेत्र से आने वाली ठंडी हवाओं को रोककर, भारत के तापमान को बहुत ज्यादा कम नहीं होने देता है।
समुद्र से दूरी:-
समुद्री क्षेत्र के निकट सम जलवायु पाई जाती है और उस समुद्र से दूरी बढ़ने पर जलवायु की विषमता की बढ़ती जाती है,
और चूंकि भारत का दक्षिणी प्रायद्वीपय भाग तीनों ओर से जल से घिरा है अतः यहां पर सम जलवायु पाई जाती है, इसके विपरीत भारत के अधिक समुद्रिक दूरी वाले आंतरिक क्षेत्रों (राजस्थान, दिल्ली, कानपुर)में विषम जलवायु अर्थात अधिक तापांतर वाली जलवायु पाई जाती है।
समुद्र तल से ऊंचाई:-
ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान में कमी आती जाती है, इसी काम भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में मैदानी क्षेत्रों की तुलना में अधिक ठंड होती है, उदाहरण के लिए आगरा और दार्जिलिंग दोनों एक ही अक्षांश पर स्थित है लेकिन जनवरी माह में जहां आगरा का तापमान 16 डिग्री सेल्सियस होता है वही दार्जिलिंग का तापमान मात्र 4 डिग्री सेल्सियस होता है।
धरातलीय उच्चावच:-
धरातलीय उच्चावच जलवायु को प्रभावित करते हैं, भारत के जिन क्षेत्रों में पवीनाभिमुखी ढाल मैं जाता हूं वहां अधिक वर्षा होती है इसके विपरीत जिस क्षेत्र में पवनाविमुखी ढाल पर जाता है वहां पर अपेक्षाकृत कम वर्षा होती है, जैसे:- पश्चिमी घाट के पश्चिमी क्षेत्र में अधिक वर्षा होती है किंतु पश्चिमी घाट के पूर्वी क्षेत्र में बहुत कम वर्षा होती है।
एल-नीनो एवं ला-नीनो:-
अल-नीनो पुली प्रशांत महासागर के पेरू तट से पश्चिम की ओर चलने वाली गर्म जलधारा है जो भारतीय मानसून को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
इसके विपरीत ला-नीनो पेरू के तट पर चलने वाली ठंडी जलधारा है जो भारतीय मानसून को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
भारत का मानसून
मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के “मौसिम”शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है:- मौसम या ऋतु के अनुसार अपनों की दिशा में परिवर्तन होना।
मानसूनी हवाएं भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा, दक्षिण पूर्व एशिया (इंडोनेशिया ,मलेशिया), मध्य-पूर्वी अफ्रीका आदि क्षेत्रों में चलती हैं।
और भारत की मानसूनी हवाएं,ग्रीष्म काल में हिंद-महासागर से उत्तर भारत की ओर तथा शीतकाल में उत्तर भारत से हिंद-महासागर की ओर प्रवाहित होती हैं।
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इसके दो प्रमुख कारण हैं/भारत में मानसून की उत्पत्ति के सिद्धांत:-
एडमण्ड हैली का तापीय सिद्धांत
फ्लोन का गत्यात्मक सिद्धांत
P कोटेश्वरम का जेटस्ट्रीम सिद्धांत
एडमण्ड हैली का तापीय सिद्धांत:-
ग्रीष्म-काल के समय, सूर्य के उत्तरायण होने के कारण भारत की भूमि का तापमान उच्च रहता है, जबकि इसकी तुलना में हिंद महासागर क्षेत्र का तापमान कम रहता है ,परिणाम स्वरूप भारतीय क्षेत्र में निम्न दाब और हिंद महासागर क्षेत्र में उच्च दाब का क्षेत्र बनता है जिसके कारण हिंद महासागर क्षेत्र की नमीं (आद्रता) युक्त पवने हिमालय क्षेत्र की ओर चलती है और भारत में मानसून वर्षा करातीं हैं।
लौटता मानसून:-
इसके विपरीत शीतकाल में भारतीय भूमि पर उच्च वायुदाब तथा हिंद महासागर क्षेत्र में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनता है जिसके कारण उत्तर पूर्वी भारत की मानसूनी हवाएं दक्षिण पश्चिम की ओर प्रवाहित होती तथा इस लौटती मानसून की कुछ हवाएं बंगाल की खाड़ी से आद्रता लेकर आंध्र प्रदेश तमिलनाडु जैसे क्षेत्र में वर्षा करा देती हैं।
फ्लोन का गत्यात्मक सिद्धांत:-
इस सिद्धांत के अनुसार- समान्यत: विसुवतीय रेखा के नजदीक निम्न दाब के कारण उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) का निर्माण होता है, जहां उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक पवने आकर मिलती हैं, किंतु ग्रीष्म काल में सूर्य के उत्तरायण होने के कारण यह आईटीसीजेड क्षेत्र 30 डिग्री उत्तरी अक्षांश तक खिसक जाता है, परिणाम स्वरूप दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक पवने कोरिओलिस बल के प्रभाव से अपनी दाईं ओर मुड़कर दक्षिण-पश्चिमी देशों से भारत में प्रवेश करके मानसूनी वर्षा करातीं हैं।
लौटता मानसून:-
इसके विपरीत शीतकाल में यह आईटीसीजेट क्षेत्र खिसककर दक्षिणी गोलार्ध में चला जाता है, जिसके कारण उत्तरी गोलार्ध की व्यापारिक पवनें अपना सामान्य स्थान ग्रहण कर लेती है, और उत्तर पूरब से दक्षिण पश्चिम की ओर चलने लगती है।
इसी दौरान कुछ पवनें बंगल की खड़ी शाखा से आद्रता लेकर तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश के क्षेत्र में वर्षा कराती हैं।
P कोटेश्वरम का जेटस्ट्रीम सिद्धांत:-
इस आधुनिक सिद्धांत के अनुसार- भारतीय मानसून की उत्पत्ति उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट हवाओं के प्रभाव से होती है, क्योंकि ग्रीष्म काल में सूर्य के उत्तरायण होने के कारण उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र तिब्बत के पठार पर पहुंचता है परिणाम स्वरूप तिब्बतीय क्षेत्र की गर्म हवाएं ऊपर उठकर शोभ-सीमा पर प्रति चक्रवर्तीय दशाएं बनाती है। और ऊपर उठी हुई हवाई, वार्कर सेल को पूरा करते हुए उष्णकटिबंधीय पूर्वी गेट के रूप में पूरब से पश्चिम की ओर चलती हैं और मेडागास्कर के पास मैस्कैर्नीज में उतरकर उच्च वायुदाब का क्षेत्र बनाती है, जिसके प्रभाव से दक्षिणी गोलार्ध की धरातलीय पवनें, भूमध्य रेखा को पार करते हुए अपनी दाहिनी ओर मुड़कर दक्षिण पश्चिम दिशा से भारत में प्रवेश करके भारत में वर्षा कराती हैं।
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जेट स्ट्रीम:- शुभ मंडल की सीमा पर लगभग 150 से 350 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलने वाली पवनें जेटस्ट्रीम कहलाती है।
शीतकाल में:-
शीत ऋतु में सूर्य के दक्षिणायन होने से सभी पेटियां दक्षिण की खिसक जाती हैं, अतः उसी क्रम में पछुआ जेटस्ट्रीम भी दक्षिण की ओर स्थानांतरित हो जाती है, और यह पछुआ जेड भूमध्य सागर की आद्रता युक्त वायु को भारत में लाकर, उत्तरी भारत में वर्षा कराता है, जिसे मावट के नाम से जाना जाता है।
भारत में मानसून का आगमन:-
भारत में दक्षिण पश्चिम मानसून जून से लेकर सितंबर माह तक वर्षा होती है किंतु अलग-अलग स्थानों में मानसून आने का समय अलग अलग होता है:-
सर्वप्रथम 25 मई को मानसून अंडमान निकोबार में पहुंचता है।
1 जून को तिरुवंतपुरम तथा चेन्नई में पहुंचता है।
5 जून को कर्नाटक क्षेत्र में।
10 जून को मुंबई क्षेत्र में।
15 जून को विंध्याचल के क्षेत्र में।
1 जुलाई को गुजरात के तट में।
15 जुलाई को अरावली व राजस्थान क्षेत्र में।
भारत मानसूनी वर्षा की विशेषताएं:-
भारत में लगभग 75% से अधिक वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून से होती है।
भारत में मानसूनी वर्षा का समय जून से सितंबर तक का हालांकि लौटते मानसून से भी तमिलनाडु आंध्र प्रदेश के क्षेत्र में कुछ वर्षा हो जाती है।
मानसूनी वर्षा को उच्चावच प्रभावित करते हैं जिस क्षेत्र में मानसूनी हवाएं उच्चावच से टकराती हैं वहां वर्षा अधिक होती है, इसके विपरीत पर्वतों की वृष्टिछाया क्षेत्र में मानसूनी वर्षा बहुत कम होती है।
समुद्र से दूरी बढ़ती जाने पर मानसूनी वर्षा की मात्रा में कमी आती जाती है अतः तटीय किनारों में अधिक मानसूनी वर्षा होती है। क्योंकि समुद्र के नजदीक की मानसूनी वायु में आद्रता अधिक होती है
मानसून प्रस्फोट:-
लगभग 1 से 7 जून के मध्य दक्षिण पश्चिम मानसून हवाएं,पश्चिमी घाट से टकराकर मालाबार तट पर गर्जन के साथ तेज वर्षा करते हैं। जैसे मानसून प्रस्फोट कहा जाता है।
मानसून विच्छेद:-
मानसून आने के बाद एक-दो सप्ताह तक बरसात ना होना मानसून विच्छेद कहलाता है।
मानसून विच्छेद का कारण:-
आईटीसीजेट की स्थिति में परिवर्तन।
तापीय विलोमता की स्थिति।
मानसूनी हवाओं का पर्वत के समांतर बहने लगना।
दक्षिण पश्चिम मानसून की शाखाएं:-
दक्षिण पश्चिम मानसून भारत के दक्षिण भाग से टकराकर दो शाखा में व्याप्त हो जाता है:-
अरब सागर शाखा
बंगाल की खाड़ी शाखा
अरब सागर शाखा:-
दक्षिण पश्चिम मानसून की इस शाखा से भारत की लगभग 65% मानसूनी वर्षा होती है।
इसे तीन उपशाखा में विभाजित किया जा सकता है
पहली शाखा पश्चिमी घाट से टकराकर कर्नाटक, केरल,गोवा, महाराष्ट्र के पश्चिमी भाग में वर्षा करवाती है।
दूसरी शाखा गुजरात से प्रवेश करके सतपुरा एवं विंध्य क्षेत्र में वर्षा कराती है।
तीसरी उपशाखा अरावली पर्वत के समांतर चलती हुई पंजाब, हरियाणा ,हिमाचल प्रदेश क्षेत्र में वर्षा कराती है।
बंगाल की खाड़ी शाखा:-
दक्षिण पश्चिम मानसून की इस शाखा से भारत की लगभग 35% मानसूनी वर्षा होती है।
इसे भी तीन उपशाखा में विभाजित किया जा सकता है
पहली शाखा पूर्वी घाट से टकराकर उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, उत्तर पूर्वी तमिलनाडु में वर्षा कराती है।
दूसरी शाखा मेघालय की गारो खासी जयंतिया पहाड़ियां से टकराकर असम ,मेघालय के क्षेत्र में वर्षा कराती है।
तीसरी शाखा हिमालय से टकराकर पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश क्षेत्र में भारी वर्षा कराती है।
मानसून और भारत का आर्थिक जीवन:-
खेती के लिए आवश्यक:-
भारत की लगभग 64% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है भारतीय खेती मानसून पर निर्भर है। अतः यदि अच्छा मानसून आता है तो कृषि की पैदावार अच्छी होती है, इसके विपरीत मानसून अच्छा ना आने पर कृषि पर एवं व्यक्तियों के जीवन स्तर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
फसल विविधता के लिए आवश्यक
भारतीय मानसून में क्षेत्रीय विविधता पाई जाती है और मानसून की विविधता ही फसलों की विविधता का कारण है।
मृदा अपरदन:-
मानसून विस्फोट के कारण अनेकों स्थानों में मृदा अपरदन की समस्या देखी जाती है जिससे कृषि एवं रहवास क्षेत्र को नुकसान होता है।
भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले कारक:-
तापमान:-
जिस वर्ष ग्रीष्म काल में भारतीय भूमि का अधिक होता है उस वर्ष भारतीय भूमि और अन्य महासागरीय जल के बीच तपांतर अधिक पाया जाता है परिणाम स्वरूप हिंद महासागर क्षेत्र से भारतीय भूमि की ओर तीव्र मानसूनी हवा चलती है परिणाम स्वरूप अच्छा मानसून आता है।
अल-नीनो:-
अल-नीनो पूर्वी प्रशांत महासागर के पेरू तट पर पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली गर्म जलधारा है, जो मई-जून के माह में, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में पहुंचकर, निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनाती है जिससे भारतीय मानसून तिब्बतीय क्षेत्र की ओर ना आकर प्रशांत महासागरीय क्षेत्र की ओर चला जाता है और भारत में बहुत कम वर्षा होती।
ऐसी ही स्थिति 1987 में भारत में बनी थी जिसके कारण भारत में सूखा पडा़ था।
ला-नीनो:-
अलनीनो के विपरीत ला-नीनो पूर्वी प्रशांत महासागर के पेरू तट पर चलने वाली ‘हमबोल्ट’ नमक ठंडी जलधारा है, जो प्रशांत महासागर के तापमान को घटा देती है, जिससे प्रशांत महासागर में उच्च वायुदाब का क्षेत्र बनता है परिणाम स्वरूप भारतीय मानसून, प्रशांत महासागर क्षेत्र की ओर न जाकर, तिब्बतीय क्षेत्र की ओर आता है और भारत में पर्याप्त वर्षा होती है।
अल-नीनो और ला-लीनो में अंतर:-
एल नीनो पेरू के तट पर चलने वाली गरम पानी की जलधारा है जबकि ला नीनो ठंडे पानी की जलधारा है।
एल नीनो सामान्य परिस्थिति की विपरीत परिस्थिति है जबकि लानीनो परिस्थिति का बेहतर रूप है।
एल नीनो भारतीय मानसून को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है जबकि ला-नीनो भारतीय मानसून को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
एल नीनो तब आता है जब व्यापारिक पवने कमजोर होती हैं ला नीनो की स्थिति में व्यापारिक पवने अधिक सक्रिय होती है।
एल नीनो की स्थिति में पेरू ,अटाकामा के क्षेत्र में अधिक वर्षा होती है जबकि ला नीनो के क्षेत्र में यह क्षेत्र सूखाग्रस्त होता है।
एल नीनो के कारण पेरू के क्षेत्र में मत्स्य उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जबकि लानुनो के कारण मत्स्य उत्पादन में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
कोपेन के अनुसार भारत का जलवायु वर्गीकरण:-
कोपेन महोदय जर्मनी के प्रसिद्ध जलवायु विज्ञान इन थे जिन्होंने 1900 में निम्न आधार पर जलवायु का वर्गीकरण किया:-
औसतन मासिक एवं वार्षिक वर्षा।
औसतन मासिक एवं वार्षिक तापांतर।
वनस्पति।
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के आधार पर भारत की जलवायु को अग्रोलिखित 9 जलवायु प्रदेशों में बांटा जा सकता है:-
लघु शीत ऋतु वाला मानसूनी प्रदेश [Amw]:-
यह जलवायु प्रदेश मुख्यतः मालाबार तट एवं गोवा के क्षेत्र में पाया जाता है,
इस क्षेत्र में 12 महीने 18 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होता है तथा शीत ऋतु बहुत ही छोटी होती है।
इस प्रदेश में 250 सेंटीमीटर से भी अधिक वार्षिक वर्षा होती है।
यहां पर सदाबहार वन पाए जाते हैं।
शुष्क ग्रीष्म ऋतु वाला मानसूनी प्रदेश [As]:-
यह जलवायु प्रदेश मुख्यतः कोरोमंडल तट में पाया जाता है।
क्षेत्र में भी तापमान उच्च होता है
क्षेत्र में ग्रीष्म ऋतु में वर्षा नहीं होती बल्कि शीत ऋतु में लौटते मानसून द्वारा वर्षा होती है।
सवाना तुल्य जलवायु [Aw]:-
यह जलवायु कोरोमंडल तट और मालाबार तट तथा वृष्टि छाया क्षेत्र को छोड़कर लगभग संपूर्ण प्रायद्वीपीय भारत में पाई जाती है।
इस जलवायु कि शीत ऋतु शुष्क होती है और ग्रीष्म ऋतु में दक्षिण पश्चिम मानसून से वर्षा होती है।
स्टेपी तुल्य जलवायु [BShw]:-
यह जलवायु पर्वतों के वृष्टि छाया क्षेत्र में पाई जाती है। जैसे पश्चिमी घाट के वृष्टि छाया क्षेत्र में, अरावली की वृष्टि छाया क्षेत्र में।
इस जलवायु प्रदेश में 50 सेंटीमीटर से भी कम (लगभग 12 से 25 सेंटीमीटर)वर्षा होती है।
उष्ण मरुस्थलीय जलवायु [BWhw]:-
यह जलवायु मुख्यतः राजस्थान के थार मरुस्थल में पाई जाती है जिसके अंतर्गत जैसलमेर ,बाड़मेर ,बीकानेर आदि जिले आते हैं
इस जलवायु प्रदेश में 25 सेंटीमीटर से भी कम औसत वार्षिक वर्षा होती है।
तथा तापमान उच्च रहता है।
शुष्क शीत ऋतु बाला मानसूनी प्रदेश [Cwg]:-
यह जलवायु प्रदेश उत्तर के विशाल मैदान तथा मालवा की पठारी क्षेत्र में पाया जाता है।
इस जलवायु प्रदेश में शीत ऋतु से उसको होती है तथा वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है।
मध्य प्रदेश इसी के अंतर्गत आता है।
आद्र शीत ऋतु वाला जलवायु प्रदेश[Dfc]:-
यह जलवायु प्रदेश अरुणाचल प्रदेश, उत्तरी असम और सिक्किम क्षेत्र में पाया जाता है।
इस जलवायु प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु लघु काल के लिए होती है और शीत ऋतु आद्र होती है।
टुंड्रा जलवायु प्रदेश [Et]:-
यह जलवायु मुख्यतः उत्तराखंड में पाई जाती है।
इस जनवरी प्रदेश का औसतन तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से भी कम रहता है।
ध्रुवीय जलवायु प्रदेश[E]:-
यह जलवायु जम्मू कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश के उच्च पर्वतीय भागों में पाई जाती है यहां की सबसे गर्म महीने का तापमान भी 10 डिग्री सेल्सियस से भी कम होता है यह प्रायः बर्फ जमी रहती है।.