भारत में खाद्य प्रसंस्करण

खाद्य प्रसंस्करण

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.खाद्य प्रसंस्करण

खाद्य प्रसंस्करण का अर्थ

खाद्य प्रसंस्करण शब्द दो शब्दों का संग्रह है, खाद्य और प्रसंस्करण। 

यहां पर खाद्य का अर्थ है खाने योग्य और प्रसंस्करण का अर्थ है उपयोगिता या मूल्य बढ़ाने की प्रक्रिया। 

अर्थात खाने योग्य कृषिगत पदार्थ का मूल्य एवं उपयोगिता बढ़ाने की प्रक्रिया खाद्य प्रसंस्करण कहलाती है। 

वास्तव में खाद्य प्रसंस्करण एक ऐसी औद्योगिक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत कृषि से प्राप्त कच्चे उत्पादों को भौतिक, रासायनिक एवं जैविक प्रक्रियाओं द्वारा ऐसे पदार्थों में बदल दिया जाता है जो और अधिक उपयोगी एवं तुरंत खाने योग्य हों। 

जैसे-: कृषि से प्राप्त गेहूं को पीसकर आटे में बदलना तथा आटे को बिस्किट में बदलना। 

दूध को पनीर में बदलना। 

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग-: 

कृषिगत एवं पशुगत कच्चे माल को आदर्श भौतिक, जैविक एवं रासायनिक दशाएं देकर और अधिक उपयोगी एवं तुरंत खाने योग्य पदार्थ में बदलने वाले उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग कहलाते हैं। 

जैसे- टमाटर से टमाटर केचप बनाने वाला उद्योग। 

आम से अचार बनाने वाला उद्योग। 

आटे से ब्रेड बनाने वाला उद्योग। 

खाद्य प्रसंस्करण के चरण या प्रकार-:

खाद्य प्रसंस्करण की प्रक्रिया मुख्यतः तीन चरणों में पूरी होती है

प्राथमिक प्रसंस्करण- 

इसके अंतर्गत कच्चे उत्पादों की सफाई ,छनाई,ग्रेडिंग व पैकेजिंग करके उनकी गुणवत्ता बढ़ाई जाती है।

जैसे- मिट्टी लगे आलू को धोने की प्रक्रिया। 

गेहूं से भूसा या अन्य किस्म के गेहूं इत्यादि अलग करने की प्रक्रिया। 

प्याज की जड़ इत्यादि साफ करना। 

द्वितीयक प्रसंस्करण- 

इसके अंतर्गत कृषिगत या पशुगत कच्चे उत्पादों को भौतिक प्रक्रिया द्वारा उनकी भौतिक दशा में बदलाव करके उसे और अधिक उपयोगी बनाया जाता है।

जैसे- 

गेहूं को पीसकर आटा बनाना। 

धान से चावल बनाना। 

तृतीयक प्रसंस्करण- 

इसके अंतर्गत कच्चे उत्पादों को भौतिक,रासायनिक व जैविक प्रक्रियाओं द्वारा तुरंत खाने योग्य बनाया जाता है। 

जैसे- आटा से बिस्किट बनाना। 

चावल से कुरकुरे बनाना। 

खाद्य प्रसंस्करण की आवश्यकता-:

खाद्य प्रसंस्करण की आवश्यकता को निर्णय बिंदुओं से समझा जा सकता है-

  • खाद्य पदार्थों का जीवनकाल बढ़ाकर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, 

  • किसानों की आय बढ़ाने के लिए,

  • खाद्य पदार्थों में विविधता बढ़ाने के लिए,

  • रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी के लिए,

  • कृषिगत खाद्य पदार्थों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए,

खाद्य प्रसंस्करण का महत्व-: 

खाद्य प्रसंस्करण के महत्व को निम्न बिंदुओं से समझा जा सकता है- 

खाद्य सुरक्षा में सहायक-: 

खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से कच्चे खाद्य पदार्थों का जीवनकाल काफी ज्यादा बढ़ जाता है जो लंबे समय तक खाद्यान्न आपूर्ति बनाए रखने अर्थात खाद सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक है। 

जैसे- टमाटर का केचप बनाकर उसका जीवन काल बढ़ाया जा सकता है। 

आम का अचार बनाकर आम का जीवनकाल बढ़ाया जा सकता है। परिणाम स्वरूप पूरे वर्ष भर आम की आपूर्ति संभव हो जाती है। 

कृषि उत्पादन बढ़ाने में सहायक-:

खाद्य प्रसंस्करण से खाद्य पदार्थ का मूल्य बढ़ जाता है जिससे किसानों को अपने कृषि उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त हो पाता है और वह आगे भी कृषि करने के लिए उत्साहित होते हैं और अधिक से अधिक उत्पादन करते हैं। 

खाद्य पदार्थों की विविधता में सहायक-

खाद्य प्रसंस्करण से खाद्य पदार्थों के विविधता में बढ़ोतरी होती है, जैसे- दूध से दही ,मटर ,पनीर, मिठाई आदि बनना। 

रोजगार के विकास में सहायक-:

खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में पानी को रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं वर्तमान में भारत में लगभग 4000 से भी ज्यादा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग कार्यरत हैं जो भारी मात्रा में रोजगार की पूर्ति करते हैं। 

निर्यात वृद्धि में सहायक- 

खाद्य प्रसंस्करण से एक ही कच्चे माल से भिन्न भिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का निर्माण हो जाता है जिसकी विदेशों में काफी ज्यादा मांग होती है अतः खाद्य प्रसंस्करण निर्यात वृद्धि एवं आर्थिक विकास में सहायक है। 

भारत एवं मध्य प्रदेश में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकसित होने की संभावना

भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास की अपार संभावना है जिससे निम्न बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता है-: 

कच्चे माल की पर्याप्त उपलब्धता-:

भारत एक कृषि प्रधान यहां पर किसी के लिए उपयुक्त जलवायु एवं पर्याप्त श्रम संसाधन होने के कारण व्यापक मात्रा में कृषिगत एवं पशुगत कच्चे माल का उत्पादन होता है। जैसे भारत दूध केला डाल के मामले में विश्व में प्रथम स्थान और अनाज एवं सब्जियों के मामले में विश्व में दूसरा सर्वाधिक उत्पादक देश है। अतः भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए कच्चे माल की पर्याप्त उपलब्धता है जो यहां पर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकसित होने की संभावना को दर्शाता है। 

श्रम की आपूर्ति-:

भारत जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश अतः यहां पर पर्याप्त मात्रा में श्रम संसाधन उपलब्ध है जो खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए आवश्यक होता है इससे एक ओर खाद्य पदार्थों की विविधता में बढ़ोतरी होगी दूसरी और बेरोजगारी की समस्या का समाधान होगा। 

व्यापक बाजार की उपलब्धता-:

भारत में आबादी एवं शहरीकरण के साथ उपभोक्तावादी जीवन लगातार बढ़ती जा रही है जिससे प्रसंस्करित खाद्य पदार्थ की मांग भी बढ़ती जा रही है अतः खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए पर्याप्त बाजार भी उपलब्ध है। 

अनाज के सड़ने की समस्या का समाधान -:

भारत में प्रतिवर्ष लगभग ₹92000 करोड़ का खाद्यान्न नष्ट हो जाता है जिसे खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों द्वारा प्रसंस्करित कर के नष्ट होने से बचाया जा सकता है। 

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की प्रमुख चुनौतियां-:

भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की पर्याप्त संभावनाएं होने के बावजूद भी खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विकास में विस्तार पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पा रहा है जिस कारण से लाखों-करोड़ों टन अनाज सड़ कर नष्ट हो जाता है। इसके पीछे के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

पर्याप्तता संरचना का अभाव-

खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास के लिए पर्याप्त मात्रा में कोल्ड स्टोरेज, वेयरहाउस, औद्योगिक गलियारा जैसे सड़क परिवहन तथा बिजली पानी की आवश्यकता होती है किंतु भारत में पर यादव संरचना का अभाव है जिस कारण से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विकास नहीं हो पा रहा है। 

कुशल मानव संसाधन का अभाव-

भारत में श्रम संसाधन तो पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है किंतु कुशल एवं प्रशिक्षित श्रम संसाधन का अभाव है। जो खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए आवश्यक होता है। 

शोध एवं अनुसंधान में कमी

कच्चे माल को नए-नए विविधता पूर्ण उत्पादों में परिवर्तित करने के लिए शोध एवं अनुसंधान की आवश्यकता होती है किंतु इसकी कमी के कारण खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों का विकास एवं विस्तार नहीं हो पा रहा है। 

कृषि उत्पादों की पूर्ति में अंतराल-

भारत की कृषि वर्षा एवं जलवायु पर निर्भर होती है मौसम के अनुसार थी कृषि कि कच्चे उत्पादों का उत्पादन किया जाता है जिससे सभी मौसम में सभी प्रकार के कच्चे उत्पादों की पूर्ति संभव नहीं हो पाती यह भी खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। 

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में निवेश की कमी-

किसी भी उद्योग को स्थापित करने की पूर्व निवेश करने की शक्ति होना आवश्यक है किंतु भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में निवेश करने के लिए आकर्षित करने वाली विशिष्ट योजना एवं नीतियों का अभाव है जिस कारण से इन उद्योगों में पर्याप्त निवेश नहीं हो पाता और उद्योग स्थापित नहीं हो पाते। 

शाकाहार की समस्या- 

भारतीय समाज का बहुत बड़ा वर्ग शाकाहारी जिस कारण से जीव जंतुओं के मांस से संबंधित खाद्य पदार्थों की बाजार में मांग बहुत कम रहती इसलिए इनका पर्याप्त मात्रा में खाद्य प्रसंस्करण नहीं हो पाता।

खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा देने के उपाय-:

  • देश में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास के लिए पर्याप्त अधोसंरचना जैसे औद्योगिक गरियाला कोल्ड स्टोरेज वेयरहाउस बिजली पानी आदि का विकास विस्तार किया जाना चाहिए‌। 

  • देश की सलाह लोगों को शिक्षण प्रशिक्षण देकर कुशल मानव संसाधन में बदला जाएगा चाहिए ताकि खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए पर्याप्त कुशल मानव संसाधन की पूर्ति हो सके। 

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि नए-नए उत्पादों का निर्माण हो सके। 

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार को ऐसी योजना एवं नीतियां लानी चाहिए जो उद्योगों में निवेश के लिए प्रोत्साहित करती हों। जैसे सरकार को इन उद्योगों की स्थापना करने वालों को सब्सिडी एवं करों में छूट देनी चाहिए। 

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के खाद्य उत्पादन को अधिक अधिक मात्रा में निर्यात करना चाहिए ताकि इनकी मांग बढ़ने और विदेशी मुद्रा अर्जित हो सके। 

  • मेगा फूड पार्क मॉडल को बढ़ावा देना चाहिए ताकि कृषि क्षेत्र उद्योग क्षेत्र से जुड़कर,खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा दे सके। 

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए सरकारी कदम-:

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय-:

खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों तथा इससे संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1988 को भारत सरकार के अधीन खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की स्थापना की गई किंतु पहले यह कृषि मंत्रालय के अधीन कार्यरत था जिसे वर्ष 2001 में स्वतंत्र मंत्रालय बना दिया गया। 

वर्तमान में इस मंत्रालय के मंत्री हरसिरमत कौर बादल है। 

प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना-: 

भारत सरकार के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 में 6000 करोड़ के वित्तीय निवेश से प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना लागू की गई जो एक अंब्रेला योजना है। 

उद्देश्य-

  • खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देना तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों का आधुनिकीकरण करना। 

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास हेतु पर्याप्त आधारभूत संरचना का विकास करना।

  • किसानों की आय में बढ़ोतरी करना। 

  • कृषि उत्पादों को क्लस्टर के माध्यम से औद्योगिक क्षेत्र से जोड़ना। 

  • खाद्य पदार्थों की बर्बादी को रोककर,खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना। 

  • ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना। 

इस योजना के अंतर्गत संचालित प्रमुख स्कीमें

  • मेगा फूड पार्क योजना

  • कोल्ड चैन योजना

  • खाद्य प्रसंस्करण एवं परिरक्षण क्षमता सृजन विस्तार योजना। 

  • बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंकेज का सर्जन योजना। 

मेगा फूड पार्क योजना-:

खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2008 को भारत सरकार के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा मेगा फूड पार्क योजना की शुरुआत की गई। जिसका उद्देश्य किसानों प्रसंस्करण कर्ताओं एवं खुदरा व्यापारियों को एक साथ लाकर, कृषि उत्पादन को बाजार से जोड़ने के लिए तंत्र उपलब्ध कराना है। 

इस योजना के तहत पहले पूरे भारत में 30 मेगा फूड पार्क स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया था जिसे बढ़ाकर 42 कर दिया गया है जिसमें से वर्तमान में लगभग 18 मेगा फूड पार्क कार्यशील हैं। 

कोई भी मेगा फूट पार्क लगभग 50 से 100 एकड़ की भूमि में स्थापित किया जाता है जिसमें लगभग 250 करोड़ से अधिक के निवेश की जरूरत होती है जिसमें से 50 करोड सरकार सब्सिडी के रूप में देती है

मेगा फूड पार्क की प्रक्रिया-

इन मेगा फूड पार्क में किसान अपने कृषि उत्पाद कलेक्टर सेंटर (CC)में जमा करते हैं, फिर वह कृषि उत्पाद प्राइमरी प्रोसेसिंग सेंटर में जाता (PPC) जहां पर उस उत्पाद की सफाई ,धुलाई , ग्रेडिंग एवं पैकेजिंग होती है फिर यह पैकिंग उत्पाद सेंट्रल प्रोसेसिंग सेंटर (CPC)में जाता है जहां पर इसे अन्य उत्पादों में प्रसंस्करित किया जाता है और इसके बाद यह प्रसंस्करित उत्पाद कोल्ड स्टोरेज में वो कोल्ड स्टोरेज से परिवहन द्वारा रिटेलर तक पहुंचता है। 

मेगा फूड पार्क के लाभ-:

  • खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा मिलता है क्योंकि मेगा फूड पार्क से किसान एवं रिटेलर दोनों जोड़े होते हैं अर्थात एक तरफ किसान अपना कच्चा माल देता है तो दूसरी तरफ रिटेलर उत्पादित माल प्राप्त करता है। 

  • किसानों की आय में बढ़ोतरी होती हैं, क्योंकि किसान मेगा फूड पार्क के जरिए औद्योगिक क्षेत्र से जुड जाते हैं। 

  • खाद्य पदार्थों की बर्बादी को में कमी आती है,खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है

  • ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है, 1 मेगा फूड पार्क लगभग 30000 लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करता है। 

.मेगा फूड पार्क

मध्य प्रदेश के मेगा फूड पार्क

मध्य प्रदेश में वर्तमान 2 मेगा फूड पार्क तथा 7 फूडपार्क संचालित है-

  • मनेरी, मंडला

  • मालनपुर, भिंड

  • बाबई, होशंगाबाद

  • पिपरिया होशंगाबाद

  • बोरगांव, छिंदवाड़ा

  • निमरानी ,खरगोन

  • जगाखेड़ी, मंदसौर

  • मेगा फूड पार्क देवास

  • मेगा फूड पार्क खरगोन

राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन

भारत सरकार के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा वर्ष 2012 को राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन की शुरुआत की गई जिसका उद्देश्य राज्य एवं संघ शासित प्रदेशों के सक्रिय सहयोग से पूरे भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा देना है। 

ताकि……। 

मध्य प्रदेश खाद्य प्रसंस्करण नीति-: 

मध्यप्रदेश में खाद्य प्रसंस्करण के लिए उपलब्ध सभी आदर्श स्थितियों एवं संभावनाओं का उपयोग करते हुए खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2012 में राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन के अनुरूप मध्य प्रदेश खाघ प्रसंस्करण नीति बनाई गई,

जिसके तहत फूड पार्क स्थापित करने के लिए एक यूनिट की दर से बिजली तथा खाद्य प्रसंस्करण से संबंधित परिवहन पर 10 लाख तक की सीमा पर 30% अनुदान का प्रावधान है। 

अन्य

इनके अलावा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा अन्य प्रयास भी किए गए जैसे-:

  • कोल्ड चैन का विकास एवं विस्तार किया जा रहा है। 

  • निवेशकों को बढ़ावा देने के लिए निवेशक पोर्टल की शुरूआत की गई। 

  • बुनियादी ढांचे का विकास एवं विस्तार किया गया। 

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग हेतु वित्तीय छूट दी गई है। जैसे- खाद्य प्रसंस्करण पैकेजिंग उत्पाद शुल्क को 10% से 6% कर दिया गया। 

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की कागजी कार्रवाई को सीमित करने के लिए, सिंगल खिड़की प्रोग्राम की शुरुआत की गई। 

मांग पूर्ति श्रंखला प्रबंधन

खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन का तात्पर्य उन सभी क्रियाओं के प्रबंधन से है जो कच्चे माल के संग्रहण से लेकर, प्रसंस्करित (उत्पादित) माल को उपभोक्ता तक पहुंचाने में शामिल होती हैं

जैसे-

  • कच्चे माल को एकत्रित करके पैकेजिंग करने की प्रक्रिया का प्रबंधन

  • पैकेजिंग वालों को भंडार गृह तक पहुंचाने की प्रक्रिया का प्रबंधन। 

  • भंडार ग्रह की माल को प्रसंस्करित करने की प्रक्रिया का प्रबंधन। 

  • प्रसंस्करित माल को रिटेलर तक पहुंचाने की प्रक्रिया का प्रबंधन।   

खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की पूर्ववर्ती एवं अग्रवर्ती आवश्यकताएं-:

पूर्ववर्ती आवश्यकताएं-:

किसी खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में उत्पादन करने के पूर्व की आवश्यकताएं, पूर्ववर्ती आवश्यकताएं कहलाती हैं इसके अंतर्गत उन सभी संसाधनों एवं क्रियाओं की आवश्यकता शामिल होती हैं जो कच्चे माल को किसानों के यहां से प्राप्त करके,उसे उद्योगिक मशीन में डालने के लिए आवश्यक होते है। 

जो निम्न हैं-:

  • कच्चे माल की आवश्यकता। 

  • प्राप्त कच्चे माल की सफाई ,धुलाई ,ग्रेडिंग एवं पैकेजिंग करने की आवश्यकता। 

  • कच्चे माल को स्थानीय स्तर उद्योग तक पहुंचाने हेतु परिवहन की आवश्यकता। 

  • कच्चे माल की लगातार पूर्ति सुनिश्चित करने हेतु, कच्चे माल को भंडारित करने के लिए भंडार ग्रह की आवश्यकता। 

  • उद्योग संचालन के लिए सस्ते श्रम की आवश्यकता। 

  • बिजली, पानी ,संचार आदि की आवश्यकता। 

  • कम लागत पर गुणवत्तापूर्ण उत्पादन हेतु अनुसंधान एवं शोध की आवश्यकता। 

अग्रवर्ती आवश्यकताएं-:

किसी खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में माल उत्पादित हो जाने के उपरांत, की आवश्यकताएं अग्रवर्ती आवश्यकताएं कहलाती है, अर्थात इसके अंतर्गत उद्योगों में उत्पादित माल को अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचाने के लिए आवश्यक क्रियाएं शामिल होती है। 

जो निम्नलिखित हैं-:

  • उत्पादित माल की पैकेजिंग करने की आवश्यकता। 

  • उत्पादित माल को बिक्री होने तक भंडारित करने हेतु कोल्ड भंडार ग्रह की आवश्यकता।  

  • उत्पादित माल को रिटेलर तक पहुंचाने के लिए उपयुक्त परिवहन के संसाधनों की आवश्यकता। 

  • उत्पाद की बिक्री हेतु विज्ञापन एवं उनकी फीडबैक संग्रहण की आवश्यकता। 

किसानों की पूर्ववर्ती एवं अग्रवर्ती आवश्यकताएं-

पूर्ववर्ती आवश्यकताएं

  • खेती में निवेश करने के लिए पूंजी की आवश्यकता। 

  • बीज, खाद की आवश्यकता। 

  • पर्याप्त जल संसाधन की आवश्यकता। 

  • कृषि यंत्रों की आवश्यकता। 

  • उपयुक्त मौसम की आवश्यकता। 

अग्रवर्ती आवश्यकताएं-

  • उत्पादित माल का प्राथमिक प्रसंस्करण करने की आवश्यकता। 

  • उपयुक्त परिवहन के संसाधनों की आवश्यकता। 

  • विक्रय मंडी की आवश्यकता। 

  • बाजार भाव की जानकारी की आवश्यकता। 

भारत सरकार ने पूर्ववर्ती एवं अग्रवर्ती आवश्यकताओं के मध्य कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए ,बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंकेज सर्जन योजना संचालित की है। 

मांग आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन का महत्व-:

  • मांग आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता लाने में सहायक है। 

  • यह लोगों को निरंतर रूप से रोजगार देने में सहायक है। 

  • खाद्य उत्पादों की बर्बादी रोकने में सहायक। जैसे टमाटर से कैचप बनना। 

  •  विदेशी आयात में कमी तथा निर्यात में बढ़ोतरी करने में सहायक है। 

खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों का स्थानीयकरण-:

 उद्योगों के स्थानीयकरण का तात्पर्य किसी क्षेत्र (स्थान)विशेष में अनेकों उद्योगों के स्थापित होने तथा लंबे समय तक निरंतर रूप से संचालित रहने की प्रवृत्ति से है। 

उद्योगों के स्थानीयकरण को प्रभावित करने वाले कारक-:

  • अधोसंरचना का विकास-जिस क्षेत्र में अधोसंरचना का पर्याप्त विकास होता है वहां उद्योगों का स्थानीयकरण होता है क्योंकि उद्योगों के लिए सड़क, बिजली, पानी जैसी अधोसंरचना की मूलभूत रूप से आवश्यकता होती है। 

  • कच्चे माल की उपलब्धता-जिस क्षेत्र में कच्चा माल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है उस क्षेत्र में उसी कच्चे माल से संबंधित उद्योग विकसित होते हैं जैसे-कटनी मैहर क्षेत्र में सूचना की पर्याप्त उपलब्धता की का यहां पर सीमेंट उद्योग का विकास विस्तार हुआ। 

  • कुशल श्रमिक की उपलब्धता-उद्यमों के लिए कुशल श्रम की आवश्यकता होती है अतः जिस क्षेत्र में संस्था एवं कुशल श्रम प्राप्त होता है वहां पर उद्योगों का सकेन्द्रण होता है। 

  • बिक्री हेतु बाजार की उपलब्धता- उद्योगों के लिए उत्पादित माल देखने हेतु बाजार की आवश्यकता होती है जिस क्षेत्र में व्यापक बाजार होता है उस क्षेत्र में अधिक उद्योग स्थापित होते हैं क्योंकि उद्योग,बाजार के पास स्थित होने के कारण रिटेलर तक उत्पादित माल पहुंचाने में परिवहन व्यय कम होता है। 

  • वित्तीय सुविधाएं-जिस क्षेत्र में बैंकिंग जैसी वित्तीय सुविधाएं तथा कर व्यवस्था में छूट होती उस क्षेत्र में उद्योग अधिक विकसित होते हैं क्योंकि कंपनी अधिकाधिक मुनाफा चाहती हैं। 

FSSAI-: फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया। 

इस संस्था की स्थापना वर्ष 2008 को, खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के तहत नई दिल्ली में की गई। जो परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय के अधीन कार्य करती है। 

इसका मुख्य कार्य-:

  • यह खाद्य पदार्थों के मानकीकरण करना,

  • खाद्य पदार्थ की जांच करके गुणवत्ता सुनिश्चित करना। 

वर्तमान में प्रत्येक खाद उत्पादक एवं निर्यातक को फसाई का लाइसेंस लेना अनिवार्य है।  



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