पृथ्वी की आंतरिक संरचना

.prathvi ki sanrachna

पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जानकारी देने वाली स्त्रोत-: 

अभी तक पृथ्वी की आंतरिक संरचना की स्पष्ट रूप से प्रमाणिक जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई है, क्योंकि वर्तमान तक में हम अधिकतम 12 किलोमीटर तक गहराई की खुदाई कर पाए हैं जबकि पृथ्वी की के कोर की गहराई 6370 किलोमीटर है। 

हालांकि विभिन्न स्त्रोतों से पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जानकारी प्राप्त होती है जिनका विवरण निम्नलिखित-: 

  • ज्वालामुखी से निकला लावा का अध्ययन करके, पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अनुमान लगाया जाता है। जैसे-: पृथ्वी के अंदर कौन से पदार्थ हैं?

  • पृथ्वी के अंदर खुदाई करने से तापमान में वृद्धि होती है इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि पृथ्वी के अंदर करोड का भाग काफी ज्यादा तप्त होगा। 

  • उल्कापिंड भी पृथ्वी की भांति ही सौर परिवार के सदस्य हैं अतः इनका अध्ययन करके पृथ्वी की संरचना का अनुमान लगाया जाता है। 

  • भूकंपीय तरंगों के अध्ययन के माध्यम से पृथ्वी की आंतरिक संरचना ज्ञान प्राप्त होता है। 

जैसे-

  • भूकंपीय तरंगे (p,s) सीधी ना चलकर वक्राकर मार्ग में चलती है जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि पृथ्वी के अंदर सभी भागों का घनत्व एक समान नहीं है बल्कि अलग-अलग है।  

  • गहराई बढने पर P and S भूकंपीय तरंगे की गति भी बढ़ जाती है जिससे यह स्पष्ट होता है की गहराई बढ़ने पर पृथ्वी का घनत्व बढ़ता है। 

  • P and S भूकंपीय तरंगे की गति तीन स्थानों पर बहुत अधिक परिवर्तित होती है इसका अर्थ यह है कि पृथ्वी के अंदर तीन अलग-अलग घनत्व की परतें पाई जाती है

  • S भूकंपीय तरंगों के छायाचित्र से यह स्पष्ट होता है कि पृथ्वी के अंदर एक तरल अवस्था की परत है तभी तो द्वितीय तरंगे प्रथ्वी के केंद्र को पर नहीं कर पाती हैं।   

पृथ्वी की परतें

विभिन्न स्त्रोतों तथा वैज्ञानिकों के मतों के अनुसार पृथ्वी के अंदर पृथ्वी की मुख्य तीन परतें पाई जाती है-: 

  • कृस्ट। 

  • मेंटल। 

  • कोर। 

कृस्ट या भूपर्पटी

यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी एवं ठोस परत है जो मुख्यत: सिलिकॉन (27%)और एलुमिनियम (8%)से बनी हुई होती है, अतः इसे”स्वेस”नामक वैज्ञानिक ने सियाल कहा।  

गहराई-: IUGG के अनुसार कि क्रस्ट की मोटाई 30 किलोमीटर है, जबकि अनेक स्त्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इसकी मोटाई 100 किलोमीटर तक बताई गई है।

घनत्व-: इस परत का घनत्व अन्य परत की तुलना में सबसे कम यानी 2.7 से 3 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है। 

आयतन-: भूपर्पटी का आयतन पृथ्वी के समस्त आयतन का लगभग 1% है।  

भाग-:  भूकंपीय तरंगों की गति में आए तीव्र परिवर्तन के आधार पर भूपर्पटी को दो भागों में बांटा गया है 

ऊपरी क्रस्ट और निचली क्रस्ट। 

  • ऊपरी क्रस्ट-: यह लगभग 30 किलोमीटर की गहराई तक पाई जाती है हालांकि पर्वतों में इसकी जगह अधिक होती है और महासागरों में कम। 

ऊपरी क्रस्ट अवसादी चट्टानों तथा ग्रेनाइट चट्टानों से बनी हुई होती है।

  • निचली क्रस्ट-: यह लगभग 30 किलोमीटर से 100 किलोमीटर की गहराई तक पाई जाती है यह मुख्यतः बेसाल्टिक चट्टानों से बनी हुई होती है। 

तथा इन दोनों(ऊपरी क्रस्ट और निचली क्रस्ट) परतों के बीच कानकार्ड असंबद्धता पाई जाती है। 

दुर्बलता मंडल (एस्थेनोस्फेयर)-: 

पृथ्वी के अंदर लगभग 100 किलोमीटर से 200(400) किलोमीटर तक की गहराई में, मैग्मा की अर्थतरल अवस्था वाली पायी जाती है इस परत को दुर्बलता मंडल कहते हैं। 

मेंटल

यह भूपर्पटी परत के नीचे पाई जाने वाली पृथ्वी की दूसरी परत है। जो मुख्यतः सिलिकॉन और मैग्नीशियम से मिलकर बनी होती है अतः इसे”स्वेस”नामक वैज्ञानिक ने “सिमा “कहा।  

गहराई-: इस परत की गहराई लगभग 200 किलोमीटर से 2900 किलोमीटर तक है। 

घनत्व-: इस परत का औसतन घनत्व 4.6 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है। 

आयतन-: मेंटल का आयतन पृथ्वी के समस्त आयतन का लगभग 83% है। 

भाग-:  मेंटल को दो भागों में बांटा गया है

ऊपरी मेंटल और निचला मेंटल। 

  • ऊपरी मेंटल-: यह परत लगभग 200 किलोमीटर की गहराई से 700 किलोमीटर की गहराई तक पाई जाती है, इस परत में रेडियोएक्टिव पदार्थों की सक्रियता के कारण संवहनीय धाराएं प्रवाहित होती है। 

  • निचला मेंटल-:यह परत लगभग 700 किलोमीटर की गहराई से 2900 किलोमीटर की गहराई तक पाई जाती है। 

ऊपरी मेंटल को निचली मेंटल से विभाजित करने वाली परत” रेपटी असंबद्धता “है। 

क्रोड

यह मेंटल के नीचे पाई जाने वाली पृथ्वी की तीसरी केंद्रीय परत है। जो मुख्यतः निकिल और लोहा से बनी है अतः इसे “नामक वैज्ञानिक ने “निफे “कहा जाता है।

गहराई-: इस परत की लगभग 2900 किलोमीटर से 6371 किलोमीटर तक पाई जाती है। 

घनत्व-: इस फल का औसतन घनत्व 11 से 13 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है। 

आयतन-: इस परत का आयतन पृथ्वी के समस्त आयतन का लगभग 16% है। 

भाग-: क्रोड को भी घनत्व के आधार पर दो भागों में बांटा गया है। 

  • बाहरी क्रोड -: यह परत लगभग 2903 मीटर से 5150 किलोमीटर तक की गहराई में पाई जाती है। इस परत का तापमान अधिक होने के कारण यह परत तरल अवस्था में पाई जाती है। 

  • आंतरिक क्रोड-: यह परत लगभग 5150 किलोमीटर से 6371 किलोमीटर की गहराई तक पाई जाती है। इस परत में ताप तो अधिक होता है किंतु दाब बहुत अधिक होने के कारण दाब ताप निष्क्रिय कर देता अतः यह ठोस अवस्था में पाई जाती है। 

बाहरी क्रोड और आंतरिक कोड को विभाजित करने वाली रेखा “लेहमन असंबद्धता “कहलाती है। 

Note-: पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 प्रति ग्राम घन सेंटीमीटर है। 

.पृथ्वी की आंतरिक संरचना

असंबद्धता (discontinuity)-:

घनत्व के आधार पर , पृथ्वी की किन्ही दो परतों को विभाजित करने वाली रेखा असंबद्धता कहलाती है। 

जैसे-: 

मोहो असंबद्धता-: निचली क्रस्ट और ऊपरी मेंटल को विभाजित करने वाली असंबद्धता मोहो असंबद्धता कहलाती है। 

गुटेनबर्ग असंबद्धता-: निचली मेंटल और बाहरी क्रोड को विभाजित करने वाली असंबद्धता गुटेनबर्ग असंबद्धता कहलाती है। 

पृथ्वी के अंदर तापमान

पृथ्वी के अंदर की गहराई में तापमान लगातार बढ़ता जाता है किंतु तापमान बढ़ने की दर एक समान नहीं होती। 

सामान्य रूप से 8 किलोमीटर की गहराई तक प्रति 32 मीटर में 1 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान बढ़ता है अर्थात 1000 किलोमीटर में लगभग 30 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ जाता है, जबकि 8 से 100 किलोमीटर की गहराई में प्रति 1 किलोमीटर में 12 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ता है, और 100 से 300 किलोमीटर की गहराई में प्रत्येक किलोमीटर पर केवल 2 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ता है और उससे भी अधिक गहराई पर प्रत्येक एक किलोमीटर की गहराई पर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ता है।  

अर्थात पृथ्वी के अंदर तापमान में वृद्धि की दर घटती जाती है।

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