वायु द्वारा निर्मित स्थलाकृतियां-:
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Toggleवायु के अपरदन से निर्मित लैंडफॉर्म
इंसेलबर्ग-:
जब मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवन के अपरदन से कठोर चट्टानों के आसपास की कोमल चट्टानों का अपरदन हो जाता है जिससे कठोर चट्टाने टापू के समान दिखाई देने लगते हैं तो इसे इंसलबर्ग कहते हैं।
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मशरूम शिला-:
जब किसी मरुस्थली चट्टान का ऊपरी हिस्सा अधिक कठोर होता है और निचला हिस्सा अपेक्षाकृत अधिक मुलायम होता है तो वायु के अपरदन से निचले हिस्से का अपरदन हो जाता है किंतु ऊपरी हिस्सा छत की भांति लगा रहता है जिससे मशरूम की भांति आकृति बनती है इसे मशरूम शिला कहते हैं।
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भू स्तंभ-:
जब मरुस्थलीय क्षेत्रों में कोमल चट्टानों के ऊपर कठोर शैलों का आवरण होता है तो कठोर सेल के दबाव से नीचे की लंबवत कोमल शैल का अपरदन नहीं हो पाता जबकि आसपास की रेत का अपरदन हो जाता है जिससे स्तंभनुमा की स्थिति का निर्माण होता है।
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ज्यूजेन-:
जब पवन के अपरदन से दवातनुमा आकृति की चट्टानों का निर्माण होता है तो इसे ज्यूजेन कहते हैं।
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यारडांग-:
जब पवन के अपरदन से मरुस्थलीय क्षेत्र में नाली नुमा आकृति की चट्टानों का निर्माण होता है तो इससे यारडांग कहते हैं।
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मरुस्थलीय खिड़की-:
जब किसी मरुस्थलीय चट्टानों की कठोरता में भिन्नता पाई जाती है तो पवन चट्टान का कम कठोर भाग अपरदन कर देती है जिससे उस शैल में छिद्र दिखाई देने लगते हैं, इसे मरुस्थली खिड़की कहते हैं
वायु के निक्षेपण से बनने वाली आकृति-:
बालुका स्तूप-:
पवन द्वारा उड़ा कर लाई गई रेत या बालू के निक्षेपण से जिन स्तूपों का निर्माण होता है उसे बालुका स्तूप कहते हैं।
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बरखान-:
जब पवन द्वारा उड़ा कर लाई गई रेत या बालू निक्षेपण से चंद्रा कार्य धनुषाकार आकृति का निर्माण होता है तो इसे बरखान कहते हैं।
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लोयस-:
पवन द्वारा उड़ाकर लाए गए रेत के कणों द्वारा विकसित मैदान लोएस मैदान कहलाते हैं।
बालसन-:
मरुस्थलीय भागों में पर्वत पहाड़ियों से घिरे हुए बेसिन को बालसन कहा जाता है।
प्लाया-:
जब बालसन का जल सूख जाता है तो बालसन की तली समतल एवं ऊंची हो जाती है जिसे प्लाया कहते हैं।