पर्यावरण प्रदूषण, पर्यावरण इसके प्रकार, कारण प्रभाव उपाय

 [पर्यावरण प्रदूषण]

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पर्यावरण प्रदूषण-:

पर्यावरणीय घटकों में होने वाला ऐसा अवांछनीय परिवर्तन, जिसका जैव-जगत के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े तो उसे पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं। 

प्रदूषक-:

ऐसी तत्व जो पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं उन्हें प्रदूषक कहा जाता है जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि। 

प्रदूषकों के प्रकार

.प्रदूषकों के प्रकार/pradushan ke prakar

उत्पत्ति स्त्रोत के आधार पर-:

  • प्राकृतिक प्रदूषक

  • मानवजनित प्रदूषक

प्राकृतिक प्रदूषक-: ऐसे प्रदूषक, जिनकी उत्पत्ति प्राकृतिक स्त्रोतों से होती है उन्हें प्राकृतिक प्रदूषक कहा जाता है, जैसे- ज्वालामुखी से निकलने वाली गैसें- SO2,NOx इत्यादि। 

मानव जनित प्रदूषण-: ऐसे प्रदूषक जिनकी उत्पत्ति मानवीय गतिविधियों से होती है उन्हें मानवजनित प्रदूषक कहते हैं। जैसे- परिवहन के साधनों से निकलने वाली गैसें- कार्बन डाइऑक्साइड ,कार्बन मोनोऑक्साइड इत्यादि। 

अवस्था के आधार पर-:

  • ठोस प्रदूषक

  • तरल प्रदूषक

  • गैसीय प्रदूषक

ठोस प्रदूषक-:

ऐसे प्रदूषक जो ठोस अवस्था में पाए जाते हैं जैसे- धूल, शीशा ,पारा आदि के प्रदूषण फैलाने वाले कण(PM)। 

तरल प्रदूषक-:

ऐसे प्रदूषक जो तरल अवस्था में पाए जाते हैं जैसे- यूरिया ,अमोनिया। 

गैसीय प्रदूषक-:

ऐसे प्रदूषक जो गैसीय अवस्था में पाए जाते हैं जैसे- कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड ,सल्फर डाइऑक्साइड गैसें इत्यादि। 

स्वरूप के आधार पर-:

  • प्राथमिक प्रदूषक 

  • द्वितीयक प्रदूषक

प्राथमिक प्रदूषक-:

ऐसे प्रदूषक जो अपने मूल स्वरूप में रहकर ही प्रदूषण फैलाते हैं उन्हें प्राथमिक प्रदूषक कहते हैं जैसे- CO, CO2,SO2, DDT. 

द्वितीयक प्रदूषक-:

ऐसे प्रदूषक जो पर्यावरणीय घटकों के साथ अंतः क्रिया करके पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं वे द्वितीयक प्रदूषक कहलाते हैं। जैसे- क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस, SO3,सल्फ्यूरिक अम्ल। 

अपघटन के आधार पर-:

  • जैव निम्नीकरणीय

  • जैव अनिम्नीकरणीय

जैव निम्नीकरणीय-:

ऐसे प्रदूषक पदार्थ जो सूक्ष्मजीवों द्वारा विघटित हो जाते हैं उन्हें जैव निम्नीकरणीय प्रदूषक कहते हैं जैसे- सीवेज के कण। 

जैव अनिम्नीकरणीय-

ऐसे प्रदूषक पदार्थ जो सूक्ष्म जीवों द्वारा विकसित नहीं हो पाते उन्हें जैव अनिम्नीकरणीय प्रदूषक कहते हैं जैसे- प्लास्टिक, शीशा, पारा तथा आर्सैनिक के कण।

प्राकृति में स्थिति के आधार पर-:

  • मात्रात्मक प्रदूषक

  • गुणात्मक प्रदूषक

मात्रात्मक प्रदूषक-:

ऐसे तत्व जिनकी मात्रा बढ़ने के कारण,पर्यावरण प्रदूषित होता है तो उन्हें मात्रात्मक प्रदूषक कहते हैं। जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अधिक बढ़ जाने के कारण वर्तमान में इसे एक प्रदूषक के रूप में जाना जाता है। 

गुणात्मक प्रदूषक-:

ऐसे प्रदूषक तत्व जो समान्यत: पर्यावरण में मौजूद नहीं होते, बल्कि उन्हें मानव द्वारा विकसित किया जाता है तो उन्हें गुणात्मक प्रदूषक कहते हैं जैसे- कीटनाशक दवाई DDT। 

किसी तत्व को कब प्रदूषक कहा जाता है?

किसी तत्व को तब प्रदूषक कहा जाता है जब जब हमारे पर्यावरण में उस तत्व की मात्रा इतनी अधिक बढ़ जाती है कि पर्यावरण में अवांछनीय परिवर्तन होता है जिसका नकारात्मक प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है।  

जैसे- वर्तमान में कार्बन डाइऑक्साइड को एक प्रदूषक के रूप में देखा जाता है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से ग्लोबल वार्मिंग जैसे पर्यावरणीय परिवर्तन हुए जिसका नकारात्मक प्रभाव मानव जीवन पर पड़ा है। 

पर्यावरण प्रदूषण के कारण-:

जनसंख्या वृद्धि-:

वर्तमान में जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है जिससे प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो रहा है, परिणाम स्वरूप जहां एक ओर वनों का विनाश हुआ है तो वहीं दूसरी को व्यापक मात्रा में घरेलू अपशिष्टों का उत्सर्जन होता है जिससे जल, वायु और मृदा प्रदूषित होती है। 

औद्योगिकरण-: 

वर्तमान में आर्थिक विकास के लिए तीव्र औद्योगीकरण हुआ है जिसके कारण जहां एक ओर औद्योगिक धुंआ से वायु प्रदूषण हुआ है, तो वहीं दूसरी औद्योगिक अपशिष्ट से मृदा प्रदूषण व जल प्रदूषण हुआ है। 

शहरीकरण-:

शहरीकरण के विस्तार से वनों की अंधाधुंध कटाई हुई है जो पर्यावरण प्रदूषण का एक सबसे प्रमुख कारण है। 

आधुनिक जीवन शैली-:

हमारे भारत की प्राचीन जीवन शैली पर्यावरण हितैषी थी किंतु वर्तमान जीवन शैली पर्यावरण को दुष्प्रभावित कर रही है जैसे- 

  • वर्तमान में अनेकों घरों में अनेकों घंटे ऐ.सी. व रेफ्रिजरेटर चलते रहते हैं जिससे क्लोरोफ्लोरोकार्बन निकलती है परिणाम स्वरूप ओजोन परत का ह्रास हो रहा है।

  • आजकल प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तिगत वाहन से चलना चाहते हैं जिससे वाहनों की संख्या में वृद्धि हुई है और वाहनों की वृद्धि होने से बहनों से निकलने वाली जहरीली गैसों से पर्यावरण व्यापक वायु प्रदूषण हो रहा है। 

रसायनिक कृषि-:

हरित क्रांति के दौर की बाद से फसलों को उपजाने में व्यापक मात्रा में रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है जिससे हमारी मृदा और भूमिगत जल प्रदूषित हो रहा है। 

पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव-:

पर्यावरण प्रदूषण से विभिन्न क्षेत्रों में अनेकों दुष्प्रभाव पड़े हैं जिसका विवरण निम्नलिखित है-

जलवायु परिवर्तन-: पर्यावरण प्रदूषण के कारण ही पृथ्वी के वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा बढ़ी है जिससे ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन की समस्या उत्पन्न हुई है। 

ओजोन का क्षरण-: पर्यावरण प्रदूषण के कारण ओजोन परत का क्षरण हो रहा है। 

कृषि उत्पादकता में कमी-: मृदा प्रदूषण से कृषि की उर्वरता कम हुई है परिणाम स्वरूप किसी की फसल उत्पादन क्षमता भी कम हो गई है। 

खाद्य पदार्थ में विषाक्तता-: पर्यावरण प्रदूषण होने से कृषि उपज में विषाक्तता बढी़ है

मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव-: पर्यावरण प्रदूषण के कारण ही हैजा, तपेदिक, टाइफाइड तथा श्वसन संबंधी विभिन्न बीमारियां फैली हैं तथा मानव की जीवन प्रत्याशा कम हो गई। 

जैव-विविधता का ह्रास-: पर्यावरण प्रदूषण से ना सिर्फ मानव को दुष्प्रभाव झेलने पड़ रहे हैं बल्कि इससे अन्य जीवों पर भी दुष्प्रभाव पड़ा है जिससे जैव-विविधता का ह्रास हुआ है। 

भूमिगत जल स्तर में कमी -:

पर्यावरण प्रदूषण (क्षरण) को रोकने के उपाय-:

  • अधिक अधिक मात्रा में वृक्षारोपण किया जाए। 

  • वाहनों में गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा का प्रयोग किया जाए। 

  • रासायनिक कृषि के स्थान पर जैविक कृषि को बढ़ावा दिया जाए। 

  • उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्टों का शोधन करके ही पर्यावरण में विसर्जित किया जाए जैसे- औद्योगिक जल को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट द्वारा शुद्धीकरण करके जल तंत्र में मिलाया जाए। 

  • अधिक जनसंख्या पर्यावरण क्षरण का एक प्रमुख कारण है अतः जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए परिवार नियोजन को बढ़ावा दिया जाए। 

  • पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकी का विकास करके उसे अपनाया जाए। 

  • लोगों को पर्यावरण शिक्षा देकर पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाए। 

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार-:

  • वायु प्रदूषण

  • जल प्रदूषण

  • मृदा प्रदूषण

  • ध्वनि प्रदूषण

  • रेडियोधर्मी प्रदूषण

[वायु प्रदूषण]

परिभाषा-:

वायु के अनुपात में होने वाला ऐसा अवांछनीय परिवर्तन, जिसका जीव-जगत के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े,उसे वायु प्रदूषण कहते हैं। 

कारण-:

  • प्राकृतिक कारण

  • मानव जनित कारण

प्राकृतिक के कारण-

  • ज्वालामुखी उद्गार से निकलने वाली विषैली गैसों (SO2,H2S,CO, CO2) का उत्सर्जन। 

  • वनाग्नि से निकलने वाली CO, CO2 गैसों का उत्सर्जन। 

  • कार्बनिक पदार्थों के सडा़व से निकलने वाली गैसों जैसे-मीथेन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन

मानव जनित कारण-

  • उद्योग- वर्तमान में उद्योगों का तेजी से विकास हो रहा है और उद्योगों से व्यापक मात्रा में CO, CO2,SO2, H2S,NO2 जैसी गैसे निकलते हैं जो पर्यावरण को प्रदूषित करती है। 

  • वाहन-: जीवाश्म ईंधन से चलने वाली सभी परिवहन के साधनों से भारी मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड ,सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसे निकलती है जो वायु को दूषित करती हैं।  

  • वनों का विनाश-आधुनिक समय में शहरीकरण के विस्तार हेतु वनों की व्यापक मात्रा में कटाई की जा रही है जिससे परिमंडल में ऑक्सीजन की तुलना में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है। 

  • विद्युत ताप गृह-: हमारे देश की लगभग 67% विद्युत का उत्पादन ताप ग्रहों से होता है जिसमें व्यापक मात्रा में कोयला जलाया जाता है जिससे कार्बन डाइऑक्साइड कार्बन मोनोऑक्साइड कैसे निकलती है जो वायु को प्रदूषित करती है। 

  • घरेलू धुंआ-भारत में अभी भी अधिकांश ग्रामीण लोग लकड़ी को जलाकर खाना बनाते हैं जिससे धुआं निकलता है जो वायु को प्रदूषित करता है। 

  • अन्य-: उपरोक्त कारणों के अलावा फसलों में स्प्रे द्वारा कीटनाशकों के छिड़काव के कारण, पराली जलाने के कारण तथा विस्फोटक पदार्थों के विस्फोट से भी वायु प्रदूषण होता है। 

प्रभाव-: 

मानव पर प्रभाव-: वायु प्रदूषण का मानव के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है क्योंकि प्रदूषित वायु ग्रहण करने से अस्थमा, टीबी ,सिरदर्द तथा अन्य श्वसन रोग हो जाते हैं। 

डब्लू एच ओ के अनुसार प्रतिवर्ष दुनिया में लगभग 70लाख लोग वायु प्रदूषण के कारण मर जाते हैं। 

वनस्पति पर प्रभाव-: 

वायु प्रदूषण के कारण पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है जिससे वे कमजोर या नष्ट हो जाते हैं। 

जीव जंतुओं पर प्रभाव-

प्रदूषित वायु की सांस लेने से जीव जंतु के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 

वायुमंडल पर प्रभाव

  • वायु में क्लोरोफ्लोरोकार्बन की मात्रा बढ़ने से ओजोन परत का क्षरण होता है। 

  • वायु में ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न होती है

  • वायु में सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से अम्ल वर्षा की समस्या देखने को मिलती है

निदान-: 

  • उद्योगों में वायु प्रदूषण न्यूनीकरण की तकनीकों जैसे- एयर प्यूरीफायर टावर, इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर का उपयोग किया जाए। 

  • वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए निम्न कदम महत्वपूर्ण होंगे-, वाहनों में अच्छे स्टैंडर्ड के इंजन का प्रयोग किया जाए, वाहनों में सीएनजी तथा एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए, इलेक्ट्रिसिटी से चलने वाली वाहनों को बढ़ावा दिया जाए। 

  • खाली पड़ी जमीन में, सड़कों के किनारे तथा उद्योगों के आसपास अधिक अधिक वृक्षारोपण किया जाए। 

  • कोयला से विद्युत निर्माण के स्थान पर गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों से विद्युत का निर्माण किया जाए। 

  • प्रत्येक घर में खाना बनाने के लिए स्वच्छ ईंधन के प्रयोग को सुनिश्चित किया जाए। इस दिशा में प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के उल्लेखनीय कदम है। 

वायु-प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयास-:

  • वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए 1981 में वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम बनाया गया। 

  • वृक्ष वायु प्रदूषण को कम करने के यंत्र होते हैं इसलिए सरकार द्वारा प्रदूषण कम करने के लिए समय समय पर वृक्षारोपण कार्यक्रम सलवार पर अनेकों वृक्ष लगवाए गए। 

  • वाहनों द्वारा होने वाली वायु प्रदूषण को कम के लिए BS 4 इंजन प्रतिबंध लगाकर उसके स्थान पर BS 6 इंजन के प्रयोग को बढ़ावा दिया गया। 

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम चलाया जा रहा है। 

  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा ग्रीन पटाखों का निर्माण किया गया। 

[जल प्रदूषण]

परिभाषा-:

जल की भौतिक ,रासायनिक एवं जैविक विशेषताओं में होने वाला ऐसा अवांछनीय परिवर्तन, जिससे जल की गुणवत्ता का ह्रास होता है,उसे जल-प्रदूषण कहते हैं। 

कारण-:

  • प्राकृतिक कारण

  • मानवजनित कारण

प्राकृतिक कारण-:

  • ज्वालामुखी उद्गार से निकले हानिकारक तत्वों का जल में घुल जाना। 

  • जीव जंतुओं का मल-मूत्र तथा जहरीले पेड़ पौधों की पत्तियां जल में घुल जाना। 

  • किसी स्थान में संग्रहित जल में, आसपास की भूमि के विषाक्त तत्व जैसे- शीशा, पारा, कैडमियम, नाइट्रेट अधिक मात्रा में घुल जाना। 

मानवजनित कारण-:

जल प्रदूषण का मुख्य कारण मानवीय गतिविधियां ही हैं,

  • उद्योगों से निकले अपशिष्ट जल को शुद्धिकरण किए बिना, सीधे स्वच्छ जल में छोड़ दिया जाना। 

  • घरेलू कार्यों के अपशिष्ट जल जैसे कपड़े धोने के उपरांत प्राप्त होने वाला अपमार्जक युक्त जल, घरेलू सीवेज को सीधे नालियों द्वारा स्वच्छ जल के स्त्रोतों में छोड़ दिया जाना। 

  • कृषि में अत्यधिक रसायनों एवं उर्वरकों के प्रयोग होने से कृषि भूमि में नाइट्रेट एवं फास्फेट की मात्रा बढ़ जाती है जिसका धीरे-धीरे भूमि का जल मेरे सा होता है परिणाम स्वरूप भूमिगत जल प्रदूषित हो जाता है। 

  • मृत शरीरों,मृत पशुओं तथा अन्य पूजा संबंधी सामग्री को सीधी जल में बहा दिया जाना। 

  • जल आपूर्ति करने वाली लाइन नालियों के आसपास से निकाला जाता है तथा उनकी उपयुक्त समय-समय पर निरीक्षण कि नहीं किया जाता परिणाम स्वरूप पेयजल की आपूर्ति करने वाले पाइपों में गंदे जल का रिसाव होने लगता है। 

प्रभाव-:

प्रदूषित या अशुद्धि युक्त जल के सेवन से जहां एक ओर मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है क्योंकि दूषित जल के सेवन से हैजा, पीलिया ,अतिसार ,तपेदिक, टाइफाइड एवं पेचिश जैसे रोग हो जाते हैैं वहीं दूसरी ओर जलीय जैव विविधता खत्म होने लगती है। 

प्रमुख जल प्रदूषकों का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव-:

  • जल में हानिकारक बैक्टीरिया वायरस से-: हैजा, पीलिया, टाइफाइड ,टीवी ,अतिसार जैसे रोग हो सकते हैं। 

  • जल में पारा, शीशा एवं कैडेमियम की अधिकता से-: क्रमशः मिनीमाता, एनीमिया तथा इटाई इटाई रोग हो जाता है। 

  • जल में आर्सेनिक की अधिकता से-: ब्लैकफुट रोग हो जाता है

  • जल में नाइट्रेट की अधिकता से-: बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम हो जाता है जिससे रक्त परिसंचरण तंत्र में बाधा उत्पन्न होती। 

  • जल में फ्लोरीन की अधिकता से-: फ्लोरोसिस नामक बीमारी हो जाती है जिसमें दांत एवं हड्डी कमजोर होने लगती है।

जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय-:

  • किसी भी पानी को एक जगह एकत्रित होने से रोका जाए उसे प्रवाह के लिए मार्ग बनाया जाए क्योंकि संग्रहित जल में विभिन्न सूक्ष्मजीवों की वृद्धि होती है जो जल को दूषित करते हैं। 

  • उद्योग एवं घरेलू कार्यों से निकलने वाले जल को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट द्वारा, शुद्ध करके ही, किसी जलस्रोत में मिलाया जाए। इसके लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का विकास एवं विस्तार किया जाए। 

  • कृषि कार्य में कीटनाशक एवं रसायनों का संतुलित मात्रा में प्रयोग किया जाए। 

  • मृत शरीरों तथा पशुओं को सीधे जल में बहाने पर पूर्णता रोक लगाई जाए। 

  • जल की आपूर्ति करने वाले पाइप लाइनों की समय प्रतिबद्धता के साथ निगरानी की जाए ताकि उस पानी में लीकेज द्वारा अशुद्धियां ना घुल सकें। 

  • अशुद्ध पानी को शुद्ध करने के लिए पेयजल स्त्रोतों में समय-समय पर रोगाणुरोधी दवाइयां जैसे- क्लोरीन, पोटेशियम परमैग्नेट का छिड़काव किया जाए। 

इन सभी उपायों के अलावा लोगों को स्वच्छ पेयजल के प्रति जागरूक किया जाए। अर्थात उन्हें बताया जाए कि प्रदूषण युक्त जल को कैसे प्रदूषण मुक्त बनाया जाए।  

जल प्रदूषण को रोकने के लिए किए गए सरकारी प्रयास-:

  • जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए 1974 में जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम बनाया गया।

  • जल प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार द्वारा अनेकों सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगवाए गए। 

  • वर्ष 2014 में केंद्र सरकार द्वारा नमामि गंगे कार्यक्रम चलाया गया,जो अभी भी कार्यशील है। 

[मृदा प्रदूषण]

मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में होने वाला ऐसा अवांछनीय परिवर्तन, जिससे मृदा की गुणवत्ता का ह्रास होता है उसे मृदा-प्रदूषण कहते हैं। 

कारण-:

  • प्राकृतिक कारण

  • मानव जनित कारण

प्राकृतिक कारण-:

  • मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया- के कारण मृतक के भौतिक गुणों में ह्रास होता है। 

  • अत्यधिक बाढ़- के कारणमृदा का अपरदन होता है जिससे मृदा की उर्वरता क्षमता कम हो जाती है। 

मानव जनित कारण-:

  • कृषि में अत्यधिक कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों का छिड़काव- मृदा की अम्लीयता बढ़ती है तथा उर्वरा शक्ति नष्ट होती है। 

  • अत्यधिक जलभराव- के कारण मृदा लवणीय हो जाती है। 

  • औद्योगिक अपशिष्ट को सीधे मृदा में छोड़ दिया जाना। जिससे औद्योगिक अपशिष्ट के विषैले तत्व मृदा में घुलकर मृदा को दूषित करते हैं। 

  • घरेलू अशिष्ट भी मृदा प्रदूषण का एक प्रमुख स्त्रोत है, क्योंकि घरों से निकला अवशिष्ट जिसमें प्लास्टिक, डिब्बे तथा धातु शामिल होते हैं वह सीधे  छोड़ दिए जाते हैं। परिणाम स्वरूप आसपास की मृदा प्रदूषित हो जाती है। 

  • वनों का विनाश- वर्तमान आधुनिकीकरण के दौर में वनों का तेजी से विनाश किया जा रहा है जिससे मृदा की जल अवशोषण क्षमता तथा उर्वरक क्षमता कम होती जा रही है। 

  • अन्य-: उपरोक्त कारणों के अलावा पराली जलाने,खनन कार्य करने तथा परमाणु परीक्षण करने से भी मृदा प्रदूषण होता है।  

प्रभाव-:

  • मृदा की उत्पादन क्षमता कम हो होना। 

  • प्रदूषित मृदा से प्रदूषित उपज प्राप्त होना। जिसका सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। 

  • प्रदूषित मृदा के संपर्क वाला भूमिगत जल दूषित होना। 

  • मृदा में पाई जाने वाली सूक्ष्मजीवों की जैव-विविधता समाप्त होना। 

निदान-:

  • रसायनिक खाद के स्थान पर जैविक खाद का उपयोग किया जाए। 

  • खेतों में जलभराव की समस्या को दूर करने के लिए खेतों को समतल बनाया जाता था जल निकासी की उचित व्यवस्था की जाए। 

  • औद्योगिक एवं घरेलू अपशिष्ट को सीधे मिटाने ना छोड़ा जाए बल्कि वह सबसे सबसे पहले जैविक कचरे द्वारा खाद बनाई जाए तथा अजैविक कचरे को पुनः चक्रण किया जाए। 

  • खाली पड़ी जमीनों जैसे खेत की मेढ़ तथा बंजर भूमि में अधिकाधिक वृक्षारोपण किया जाए। 

  • खेतों में पराली जलाने, परमाणु परीक्षण करने इत्यादि पर युक्तियुक्त रोक लगाई जाए।

ध्वनि प्रदूषण-:

जब हमारे आस पास के वातावरण में उच्च तीव्रता वाली ध्वनि का शोर होता है जिससे हमें अशांति या बेचैनी होती है तो उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। 

कारण-:

  • प्राकृतिक कारण

  • मानव जनित कारण

प्राकृतिक कारण-:

  • तेज वर्षा होना

  • बिजली कड़कना

  • ज्वालामुखी विस्फोट

  • प्राकृतिक झरना द्वारा ध्वनि उत्पन्न होना। 

मानव जनित कारण-:

  • परिवहन के साधनों(ट्रैक्टर, बस, गाड़ी) द्वारा ध्वनि प्रदूषण होता है। 

  • उद्योग में चलने वाली मशीनों द्वारा ध्वनि प्रदूषण होता है। 

  • विशेष त्यौहार में बजाए जाने वाले साउंड से भी ध्वनि प्रदूषण हो रहा है। 

  • विस्फोटक पदार्थों के विस्फोट से। 

प्रभाव-: 

  • मनोवैज्ञानिक प्रभाव-: मानव का स्वभाव चिड़चिड़ापन हो जाता है स्मृति शक्ति का ह्रास होता है। 

  • शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव-: कान के पर्दे फट जाना, उच्च रक्तचाप, अनिद्रा तथा गर्भवती महिला में गर्भपात जैसी समस्याएं उत्पन्न होती है। 

निदान-:

  • ऐसी तकनीक विकसित की जाए जिससे वाहनों की आवाज को कम किया जा सके। 

  • उद्योगों को गांव एवं शहरों से बहुत दूर स्थापित किया जाए। 

  • अधिक आवाज देने वाली पुरानी इंजन के वाहनों के प्रयोग पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाया जाए। 

  • वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जाए क्योंकि वृक्ष ध्वनि को अवशोषित करते हैं। 

  • लोगों में ध्वनि प्रदूषण के प्रति जागरूकता फैलाई जाए। 

रेडियोधर्मी प्रदूषण-:

जब हमारे पर्यावरण में रेडियोएक्टिव विकिरणें(अल्फा बीटा गामा) उत्सर्जित होने लगती हैं, जिसका जीव-जगत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तो इसे रेडियोधर्मी प्रदूषण कहते हैं। 

कारण-:

  • रेडियोधर्मी पदार्थों का सुरक्षित तरीके से खनन एवं प्रबंधन ना किया जाना। 

  • परमाणु परीक्षण या परमाणु विस्फोट किया जाना।  

  • रेडियोधर्मी पदार्थों से विद्युत निर्माण करने वाले परमाणु रिएक्टरों के अपशिष्ट द्वारा भी रेडियोधर्मी प्रदूषण फैलता है। 

प्रभाव-:

रेडियोएक्टिव प्रदूषण का जीव जगत के जीवन में काफी ज्यादा दुष्प्रभाव होता है जैसे-

  • रेडियोएक्टिव विकिरण से शरीर की स्वस्थ कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। 

  • कैंसर तथा चर्म-रोग जैसी प्राणघातक बीमारी उत्पन्न होती है। 

  • रेडियोएक्टिव प्रदूषण के प्रभाव से गर्भस्थ शिशुओं की मृत्यु तथा जन्म लेने वाले शिशु के अपंग होने की संभावना रहती है। 

  • रेडियोएक्टिव प्रदूषण से आसपास की जल मृदा और वायु प्रदूषित हो जाती है। 

निदान-:

  • रेडियोएक्टिव पदार्थों का सुरक्षित तरीके से खनन एवं भंडारण किया जाना चाहिए, ताकि इनका रिसाव ना हो सके। 

  • रेडियोएक्टिव पदार्थों से विद्युत निर्माण के रिएक्टरों को कई लेयरों से सुरक्षित करना चाहिए। तथा इन्हें शहर से बहुत दूर स्थापित किया जाना चाहिए।

तापीय प्रदूषण-:

जब हमारे आसपास का जलीय पारिस्थितिकी तंत्र का तापमान वांछित सीमा से बहुत अधिक बढ़ जाता है जिससे जलीय जैव-विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तो इसे तापीय प्रदूषण कहते हैं

तापीय प्रदूषण का मुख्य कारण उद्योगों या घरेलू कार्यों से निकले गर्म जल को सीधे जलीय तंत्र में छोड़ देना है। 

तापीय प्रदूषण के प्रभाव से जलीय जैव विविधता का ह्रास होने लगता है। 

अम्लीय वर्षा-:

जब विभिन्न मानवीय गतिविधियों के कारण निकलने वाले सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड वायुमंडल में पहुंचकर जल के अणुओं से मिलकर क्रमशः सल्फ्यूरिक अम्ल एवं नाइट्रिक अम्ल का निर्माण करते हैं और वर्षा के रूप में धरातल पर गिरते हैं तो इसे अम्लीय वर्षा कहा जाता है। 

अम्लीय वर्षा के प्रभाव -:

  • फसलों की उत्पादकता कम हो जाती है। 

  • जलीय जैव-विविधता का ह्रास होता है। 

  • पत्थर तथा इमारतों का क्षरण होता है जैसे- वर्तमान में अम्ल वर्षा से ताज महल ,लाल किला का क्षरण हो रहा है।

पर्यावरण क्षरण-:

पर्यावरण क्षरण का तात्पर्य-: प्राकृतिक मानवीय कारणों से पर्यावरणीय घटकों जैसे- जल, वायु और भूमि की गुणवत्ता में होने वाले ह्रास से है।  

[पर्यावरण प्रदूषण और पर्यावरण क्षरण-: सामान्य रूप से पर्यावरण प्रदूषण एवं पर्यावरण को एक दूसरे का पर्यायवाची मान लिया जाता है किंतु सूक्ष्मता से अध्ययन करने पर उनके मध्य अंतर ज्ञात होता है, जहां पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ केवल मनुष्य के कार्यों द्वारा स्थानीय स्तर पर पर्यावरण की गुणवत्ता के ह्रास से होता है, वही पर्यावरण क्षरण का तात्पर्य मानव अथवा प्राकृतिक प्रकृमों से व्यापक स्तर पर पर्यावरण की गुणवत्ता में ह्रास से होता है। ]

पर्यावरण क्षरण के कारण-:

बढ़ती जनसंख्या-:

वर्तमान में जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है जिससे प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो रहा है, परिणाम स्वरूप जहां एक ओर वनों का विनाश हुआ है तो वहीं दूसरी को व्यापक मात्रा में घरेलू अपशिष्टों का उत्सर्जन होता है जिससे जल, वायु और मृदा की गुणवत्ता का ह्रास होता है। 

औद्योगिकरण-: 

वर्तमान में आर्थिक विकास के लिए तीव्र औद्योगीकरण हुआ है जिसके कारण जहां एक ओर औद्योगिक धुंआ से वायु प्रदूषण हुआ है, तो वहीं दूसरी औद्योगिक अपशिष्ट से मृदा प्रदूषण व जल गुणवत्ता में कमी आई है। 

शहरीकरण-:

शहरीकरण के विस्तार से वनों की अंधाधुंध कटाई हुई है जो पर्यावरण क्षरण का एक सबसे प्रमुख कारण है। 

आधुनिक जीवन शैली-:

हमारे भारत की प्राचीन जीवन शैली पर्यावरण हितैषी थी किंतु वर्तमान जीवन शैली पर्यावरण को दुष्प्रभावित कर रही है जैसे- 

  • वर्तमान में अनेकों घरों में अनेकों घंटे ऐ.सी. व रेफ्रिजरेटर चलते रहते हैं जिससे क्लोरोफ्लोरोकार्बन निकलती है परिणाम स्वरूप ओजोन परत का ह्रास हो रहा है।

  • आजकल प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तिगत वाहन से चलना चाहते हैं जिससे वाहनों की संख्या में वृद्धि हुई है और वाहनों की वृद्धि होने से बहनों से निकलने वाली जहरीली गैसों से पर्यावरण व्यापक वायु की गुणवत्ता का ह्रास हो रहा है। 

रसायनिक कृषि-:

हरित क्रांति के दौर की बाद से फसलों को उपजाने में व्यापक मात्रा में रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है जिससे हमारी मृदा उर्वरक क्षमता और भूमिगत जल की गुणवत्ता में कमी आ रही है। 

पर्यावरण क्षरण के प्रभाव-:

  • जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हुई। 

  • ओजोन परत का लगातार ह्रास हो रहा है। 

  • कृषि की उत्पादक क्षमता में कमी आई है। 

  • खाद्य पदार्थों में विषाक्तता बढी़ है। 

  • मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 

  • जैव-विविधता का ह्रास हुआ है। 

  • भूमिगत जल स्तर में कमी आई है। 

पर्यावरण प्रदूषण (क्षरण) को रोकने के उपाय-:

  • अधिक अधिक मात्रा में वृक्षारोपण किया जाए। 

  • वाहनों में गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा का प्रयोग किया जाए। 

  • रासायनिक कृषि के स्थान पर जैविक कृषि को बढ़ावा दिया जाए। 

  • उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्टों का शोधन करके ही पर्यावरण में विसर्जित किया जाए जैसे- औद्योगिक जल को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट द्वारा शुद्धीकरण करके जल तंत्र में मिलाया जाए। 

  • अधिक जनसंख्या पर्यावरण क्षरण का एक प्रमुख कारण है अतः जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए परिवार नियोजन को बढ़ावा दिया जाए। 

  • पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकी का विकास करके उसे अपनाया जाए। 

  • लोगों को पर्यावरण शिक्षा देकर पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाए। 

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