सुदूर संवेदन प्रणाली

सुदूर संवेदन प्रणाली

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अंतरिक्ष-:

पृथ्वी से परे वह त्रिविमीय क्षेत्र जिसके विस्तार का कोई अंत ही ना हो, उसे अंतरिक्ष कहते हैं अंतरिक्ष के अंतर्गत ब्रह्मांड के सभी पिण्ड (ग्रह ,उपग्रह, तारे)एवं ऊर्जा शामिल है। 

ग्रह-:

सूर्य के चारों ओर दीर्घ वृत्ताकार पथ में परिक्रमा करने वाले खगोलीय पिण्ड को ग्रह कहते हैं। 

जैसे-पृथ्वी,मंगल, बुध, शुक्र, शनि, बृहस्पति आदि। 

उपग्रह-:

ग्रह के चारों ओर एक निश्चित पथ में परिक्रमा करने वाले पिण्ड को उपग्रह कहते हैं। 

उपग्रहों के प्रकार-:

मोटे तौर पर उपग्रह दो प्रकार के होते हैं-

  • प्राकृतिक उपग्रह- ऐस उपग्रह जो मानव द्वारा निर्मित ना होकर पहले से ही प्रकृति में मौजूद है,जैसे- चंद्रमा। 

  • कृत्रिम उपग्रह-: ऐसे उपग्रह जो मानव द्वारा अंतरिक्ष में छोड़े गए हैं, जैसे- आर्यभट्ट सैटेलाइट, इनसेट सैटेलाइट।

कृतिम उपग्रहों के प्रकार-:

कृत्रिम उपग्रहों को दो भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं

  • कक्षीय स्थिति के आधार पर कृत्रिम उपग्रहों के प्रकार

  • प्रयोग के आधार पर कृत्रिम उपग्रह के प्रकार

कक्षीय स्थिति के आधार पर कृत्रिम उपग्रहों के प्रकार

  • भू-स्थैतिक उपग्रह(geostationary satellite)

  • भू-तुल्यकालिक उपग्रह(geosynchronous satellite)

  • ध्रुवीय उपग्रह(polar satellite)

भू-स्थैतिक उपग्रह-:

ऐसे उपग्रह जो, पृथ्वी की भूमध्य रेखा के समकक्ष घूमते हुए पृथ्वी की गति के बराबर वेग से पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं। 

.सुदूर संवेदन प्रणाली- भू-स्थैतिक उपग्रह-:

भू-तुल्यकालिक उपग्रह

ऐसे उपग्रह जो, पृथ्वी की गति के वेग से पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं किंतु भूमध्य रेखा के समकक्ष ना घूमते हुए, भूमध्य रेखा के कुछ कोणीय झुकाव पर घूमते हैं

भू-तुल्यकालिक उपग्रह

ध्रुवीय उपग्रह

ऐसी उपग्रह जो, पृथ्वी के दोनों ध्रुवों के समकक्ष घूमते हुए पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं उन्हें ध्रुवीय उपग्रह कहते हैं 

.ध्रुवीय उपग्रह

भू-स्थैतिक उपग्रह और ध्रुवीय (सूर्य तुल्यकालिक)उपग्रह में अंतर-:

कक्षा की स्थिति-:

भू-स्थैतिक उपग्रह पृथ्वी की भूमध्य रेखा के समकक्ष घूमते हुए पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं

जबकि ध्रुवीय उपग्रह पृथ्वी के दोनों ध्रुवों के समकक्ष घूमते हुए पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं। 

ऊंचाई-

भू-स्थैतिक उपग्रह पृथ्वी की समुद्र सतह से लगभग 36000 किलोमीटर ऊंचाई की कक्षा पर स्थापित किया जाता है। 

जबकि ध्रुवीय उपग्रह लगभग 700 से 900 किलोमीटर ऊंचाई की कक्षा (लोवर अर्थ आर्बिट) पर स्थापित किया जाता है। 

कक्षीय अवधि-:

भू-स्थैतिक उपग्रह 24 घंटे में एक बार पृथ्वी की परिक्रमा कर पाता है,

जबकि सूर्य तुल्यकालिक उपग्रह 2 से 3 घंटे में पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेता हैं 

पृथ्वी के सापेक्ष स्थिति-

भू-स्थैतिक उपग्रह सदैव ( 24 घंटे) पृथ्वी के किसी एक स्थान को कवर करते हैं

जबकि ध्रुवीय उपग्रहों कि पृथ्वी के सापेक्ष स्थिति में परिवर्तन होता रहता है, अर्थात ये 24 घंटे में ही पृथ्वी के विभिन्न स्थान को कवर करते हैं।

अनुप्रयोग-

भू-स्थैतिक उपग्रह का उपयोग रेडियो, दूरदर्शन जैसे संचार के साधनों में, जीपीएस में , बॉर्डर सुरक्षा के क्षेत्र में , मौसम की मॉनिटरिंग में तथा पृथ्वी की ऊपरी सतह व आकृति का अध्ययन करने में किया जाता है। 

जबकि ध्रुवीय उपग्रह का उपयोग रिमोट सेंसिंग तकनीकी द्वारा पृथ्वी के संसाधनों का अवलोकन करने में किया जाता है। 

प्रयोग के आधार पर कृत्रिम उपग्रहों के प्रकार-

संचार उपग्रह-

ऐसे उपग्रह जो रेडियो टेलीविजन आदि संचार उपकरणों के लिए सिग्नल प्रदान करते हैं उन्हें संचार उपग्रह कहते हैं। संचार उपग्रह पृथ्वी के किसी एक निश्चित स्थान से ही 24 घंटे अपने सिग्नल प्राप्त करते एवं छोड़ते रहते हैं। 

जैसी भारत के संचार उपग्रह हैं –

  • एप्पल उपग्रह (1981)

  • इनसेट-1, इनसेट-2, इनसेट-4

  • जीसैट-1, जीसेट-30

अंतरिक्ष अन्वेषण उपग्रह-:

ऐसे उपग्रह जिन्हें अंतरिक्ष एवं अंतरिक्ष के खगोलीय पिंडों से संबंधित अनुसंधान के लिए स्थापित किया जाता है उन्हें अंतरिक्ष अन्वेषण उपग्रह कहते हैं। 

जैसे- चंद्रयान प्रथम, चंद्रयान द्वितीय ,मंगलयान। 

नेविगेशन उपग्रह-

ऐसे उपग्रह जो वैश्विक कवरेज के साथ भू स्थानिक स्थिति की जानकारी प्रदान करने के लिए भू स्थैतिक कक्षा में स्थापित किए जाते हैं उन्हें नेविगेशन उपग्रह कहते हैं। 

जैसे- IRNSS श्रंखला के उपग्रह। 

भारत का नाविक उपग्रह। 

सुदूर संवेदन उपग्रह- 

ऐसे उपग्रह जो अपना संवेदी उपकरणों के माध्यम से दूर से ही धरातल की संवेदना को ग्रहण करके धरातल की प्राकृतिक संसाधनों , पर्यावरण तथा अन्य धरातलीय घटनाओं का मानचित्र तैयार करते हैं, उन्हें सुदूर संवेदन उपग्रह करते हैं

जैसे- भारत के सुदूर संवेदन उपग्रह हैं-

कार्टोसैट, भास्कर उपग्रह,IRN श्रंखला के सेटेलाइट। 

सुदूर संवेदन उपग्रह को पृथ्वी की ध्रुवीय कक्षा पर स्थापित किया जाता है। 

नेविगेशन उपग्रह-:

ऐसे उपग्रह जो नेवीगेशन अर्थात जीपीएस सुविधा प्रदान करते हैं उन्हें नेविगेशन उपग्रह कहते हैं। 

जैसे- भारत के IRNSS श्रंखला के उपग्रह।

सुदूर संवेदन

सुदूर संवेदन का शाब्दिक अर्थ है- किसी दूर की वस्तु को स्पर्श किए बिना उसके बारे में सूचना प्राप्त करना। 

इस प्रकार हम दूर की वस्तु को अपनी आंखों से देख कर, अपनी आंखों द्वारा सुदूर संवेदन का कार्य करते हैं। किंतु हमारी आंखों की एक सीमा होती है अर्थात हम अपनी आंखों से बहुत बड़े भौगोलिक धरातलीय भूभाग को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते। इसी कमी को पूरा करने के लिए सुदूर संवेदन तकनीक का विकास हुआ। 

“वास्तव में सुदूर संवेदन विज्ञान की वह आधुनिक तकनीक है जिसके द्वारा दूर से(अंतरिक्ष से) ही बहुत बड़े धरातलीय भूभाग की पर्यावरणीय घटनाओं या संसाधनों की सूचनाओं को ग्रहण करके उनका मापन , अभिलेखन व मानचित्रण किया जाता है”

सुदूर संवेदन तकनीक की आधारभूत संकल्पना ,सिद्धांत या इसकी कार्यप्रणाली-:

सुदूर संवेदन की तकनीक धरातल की संवेदना को ग्रहण करके, उनको मानचित्र या सारणी के रूप में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया पर आधारित है। जो निम्न चरणों में पूरी होती है-:

  • सर्वप्रथम धरातल की किसी भी भाग कि सूचना प्राप्त करने के लिए उस धरातलीयभाग में ऊर्जा की तरंगे (विद्युत चुंबकीय विकिरण) पहुंचना आवश्यक है अतः ऊर्जा स्त्रोत के रूप में या तो सूर्य की विकिरण का या कृत्रिम उर्जा स्त्रोत का उपयोग किया जाता है। 

  • फिर यह विद्युत चुंबकीय विकिरण (उर्जा तरंगे) धरातल के विभिन्न स्थानों (जल जंगल बंजर भूमि बर्फ फसलों) से टकराकर धरातलीय वस्तुओं की परावर्तन एवं अवशोषण प्रवृत्ति के अनुसार भिन्न-भिन्न वेग एवं मात्रा में परावर्तित होती हैं। जैसे-भरत की सतह पर विकिरण ऊर्जा का अधिक वेग से एवं अधिक मात्रा में परावर्तन होता है काली मिट्टी का बहुत कम परावर्तन होता है। 

  • इसके बाद इन परावर्तित ऊर्जा विकरणों को लगभग 700 से 900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सेटेलाइट (या वायुयान) में लगे संवेदकों (रेडियोमीटर, मैग्नेटोमीटर, इलेक्ट्रो ऑप्टिकल सेंसर (कैमरा)) द्वारा रिकॉर्ड कर लिया जाता है,

  • और अंततः इस डिजिटल रिकॉर्ड को धरातल के सुपर कंप्यूटर केंद्र में भेजा जाता है और यह सुपर कंप्यूटर इन आंकड़ों को समझने योग्य प्रतिबिम्ब या तालिका में बदल देता है जिसके माध्यम से वैज्ञानिक संबंधित क्षेत्र की सूचना का विश्लेषण कर पाते हैं। 

सुदूर संवेदन तकनीक की आधारभूत संकल्पना ,सिद्धांत या इसकी कार्यप्रणाली-:

.सुदूर संवेदन तकनीक की आधारभूत संकल्पना ,सिद्धांत या इसकी कार्यप्रणाली-:

सुदूर संवेदन प्रणाली के प्रकार-:

सुदूर संवेदन प्रणाली दो प्रकार की होती है-:

  • सक्रिय सुदूर संवेदन प्रणाली(active remote sensing)

  • निष्क्रिय सुदूर संवेदन प्रणाली(passive remote sensing)

सक्रिय सुदूर संवेदन प्रणाली-‘

वह सुदूर संवेदन प्रणाली जिसमें ऊर्जा स्त्रोत के रूप में सूर्य की ऊर्जा का नहीं बल्कि कृत्रिम उर्जा स्त्रोत का उपयोग किया जाता है, अतः यह सदैव सक्रिय रहता है इसलिए इसे सक्रिय सुदूर संवेदन प्रणाली कहते हैं। 

जैसे- रिसेट श्रंखला की सेटेलाइट। 

निष्क्रिय सुदूर संवेदन प्रणाली-:

वह सुदूर संवेदन प्रणाली जिसमें ऊर्जा स्त्रोत के रूप में सूर्य की विद्युत चुंबकीय विकिरण का उपयोग किया जाता है उसे निष्क्रिय सुदूर संवेदन प्रणाली कहते क्योंकि सूर्य की विकिरणें रात के समय या खराब मौसम के समय ठीक से प्राप्त नहीं हो पाती, ऐसी स्थिति में यह प्रणाली निष्क्रिय हो जाती है इसलिए इसे निष्क्रिय सुदूर संवेदन प्रणाली कहते हैं। 

जैसे- कार्टोसैट श्रंखला के सैटेलाइट। 

निष्क्रिय सुदूर संवेदन प्रणाली की सीमाएं-

  • यह केवल दिन के समय या तभी काम करेगी जब सूर्य की किरणें धरातल तक पहुंचेगी, रात के समय खराब मौसम में नहीं। 

  • इस प्रणाली से ऐसे स्थानों जहां पर सूर्य प्रकाश नहीं पहुंचता जैसे पर्वतों के छायाक्षेत्र, घाटी की सूचनाओं का पता नहीं लगाया जा सकता। 

.सक्रिय सुदूर संवेदन प्रणाली(active remote sensing) निष्क्रिय सुदूर संवेदन प्रणाली(passive remote sensing)

सुदूर संवेदन के घटक-:

सुदूर संवेदन की प्रक्रिया में निम्न घटक शामिल होते हैं

  • ऊर्जा स्त्रोत-  ऊर्जा स्त्रोत परावर्तित विकरणों के माध्यम से संवेदको को सूचना प्रदान करते हैं यह दो प्रकार के हो सकते हैं

    • सूर्य से प्राप्त विद्युत चुंबकीय विकिरण 

    • कृतिम ऊर्जा स्त्रोत जैसे-कृत्रिम तरीके से छोड़ी गई अवरक्त किरणें। 

  • प्लेटफार्म – यहां पर प्लेटफार्म का तात्पर्य संवेदकों के वाहन से है जैसे- वायुयान या सेटेलाइट

  • सेंसर-ऐसे यंत्र या उपकरण जो धरातलीय वस्तुओं की परिवर्तित विकिरणों को रिकॉर्ड करते हैं जैसे कैमरा ,स्कैनर, रेडियोमीटर, मेग्नोमीटर आदि

  • सुपर कंप्यूटर- यह रिकॉर्डिंग सिग्नलों को समझने योग्य प्रतिबिंबों जैसे-मानचित्र सारणी में परिवर्तित करता है

  • संस्थान या अनुसंधान केंद्र- संबंधित- अनुसंधान केंद्र द्वारा प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण किया जाता है, जैसे भारत में यह कार्य भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान देहरादून द्वारा किया जाता है।

विद्युत चुंबकीय विकिरण

विद्युत चुंबकीय विकिरण का तात्पर्य ऐसी गतिमान तरंगीय ऊर्जा से है जिसमें चुंबकीय क्षेत्र एवं विद्युत क्षेत्र दोनों एक दूसरे के लंबवत मौजूद होते हैं। 

.विद्युत चुंबकीय विकिरण

जैसे-सूर्य के नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया से लगातार विद्युत चुंबकीय विकिरण के रूप में ऊर्जा निकलती रहती है। 

और विद्युत चुंबकीय विकिरण में भिन्न-भिन्न आवृत्ति एवं भिन्न-भिन्न तरंग धैर्य की विद्युत चुंबकीय तरंगे होती हैं

विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम

विद्युत चुंबकीय विकिरण की विभिन्न तरंगों का उनकी आवृत्ति एवं तरंग धैर्य के अनुसार व्यवस्थित क्रम विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम कहलाता है। 

.विद्युत चुंबकीय विकिरण/विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम

.विद्युत चुंबकीय विकिरण/विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम

 

Natural colour composite and false colour composite

.Natural colour composite and false colour composite

सुदूर संवेदन प्रणाली का उपयोग-:

सुदूर संवेदन प्रणाली एक आधुनिक तकनीक है जिसका वर्तमान में काफी ज्यादा महत्वपूर्ण उपयोग है क्योंकि इस प्रणाली के माध्यम से बहुत ही कम समय में धरातल के प्राकृतिक संसाधनों का सर्वेक्षण ,निगरानी व अवलोकन तो किया ही जा सकते हैं साथ ही साथ यह तकनीक आपदा प्रबंधन में भी सहायक है। 

सुदूर संवेदन प्रणाली का विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न उपयोग है जिसका विवरण निम्न लिखित है-:

कृषि के क्षेत्र में उपयोग-

  • सुदूर संवेदन प्रणाली द्वारा धरातल की मृदा के वर्गीकरण का मानचित्र तैयार किया जा सकता है अर्थात यह पता लगाया जा सकता है कि किस क्षेत्र में, किस मृदा का, कितना विस्तार है?

  • धरातल की अम्लीय तथा क्षारीय मृदा का वर्गीकरण किया जा सकता है। 

  • किसी विशेष मौसम की फसल का विस्तार क्षेत्र जाना जा सकता है। 

  • फसलों के वर्गीकरण का मानचित्र तैयार किया जाता है अर्थात यह पता लगाया जा सकता है कि किस क्षेत्र में कौन सी फसल बोई गई है?

वन संसाधन के क्षेत्र में-:

  • किसी देश के वनाच्छादित क्षेत्र का मानचित्र तैयार किया जा सकता है। 

  • यह पता लगाया जा सकता कि किस क्षेत्र में कौन सी वनस्पति मौजूद है। 

  • वनों की सघनता का पता लगाया जा सकता है

  • जंगलों में लगी आग का पता लगाया जा सकता है। 

जल संसाधन के क्षेत्र में-:

  • जल की उपलब्धता का मानचित्र तैयार करने में। 

  • किसी क्षेत्र की मृदा में आद्रता की मात्रा का अनुमान लगाने में सहायक है। 

  • नदी के अपवाह तंत्र,झील एवं डेल्टा की मॉनिटरिंग करने में। 

  • बाढ़ एवं सूखाग्रस्त क्षेत्रों का मानचित्र तैयार करने में। 

  • बर्फ पिघलने की घटना का अवलोकन करने में। 

 भूगर्भ क्षेत्र में

  • इस तकनीकी के द्वारा किसी क्षेत्र के खनिज संसाधनों की उपलब्धता का मानचित्र तैयार किया जा सकता है। 

  • धरातलीय सतह के अंदरजीवाश्म ईंधनों की उपलब्धता का पता लगाया जा सकता है

  • धरातल में होने वाली हलचल या भू आकृतिक बदलाव का पता लगाया जा सकता है। 

महासागरीय क्षेत्र में

  • महासागरों का मानचित्र तैयार करने में

  • महासागरीय संसाधनों की सूचना देने में

  • महासागरों में आने वाले चक्रवातों की जानकारी देने में उपयोगी है। 

इसके अलावा

रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग

  • स्थल के विभिन्न उच्चावचों का मानचित्र तैयार करने में,

  • बड़े शहरों की बसावट एवं उसके विस्तार क्षेत्र का मानचित्र तैयार करने में,

भी उपयोगी है।

सुदूर संवेदन प्रणाली का विकास-:

“सुदूर संवेदन विज्ञान की वह आधुनिक तकनीक है जिसके द्वारा दूर से(अंतरिक्ष से) ही बहुत बड़े धरातलीय भूभाग की पर्यावरणीय घटनाओं या संसाधनों की सूचनाओं को ग्रहण करके उनका मापन एवं अभिलेखन व मानचित्रण किया जाता है”

और इस सुदूर संवेदन प्रणाली का विकास तभी से शुरू हुआ जब से हवाई जहाज या हवा में उड़ने वाले बलून के माध्यम से कैमरा द्वारा बहुत बड़े धरातलीय क्षेत्र की फोटो लेना प्रारंभ हुआ। 

सर्वप्रथम 1858 में गैसयर्ड फेलिक्स टूर्नाचन ने एक बहुत बड़े गुब्बारे में लगभग 1200 फीट की ऊंचाई से उड़ते हुए पेरिस की फोटो ली। 

1882 ईस्वी में आर्कीबाल्ड नामक अंग्रेज मौसम विज्ञानी ने पतंग के माध्यम से कैमरा द्वारा धरातलीय क्षेत्र का फोटो लिया गया। 

1903 को बीपी क्रॉप ने कबूतर में कैमरा लगाकर धरातल क्षेत्र की फोटो ली। इसके अलावा भी अनेकों वैज्ञानिकों ने अनेकों फोटो खींचकर धरातल की स्थिति का अवलोकन किया। 

इसके बाद प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में हेलीकॉप्टर में कैमरा लगाकर धरातलीय युद्ध की स्थिति का खूब अवलोकन किया गया था, किंतु अभी तक सेटेलाइट का निर्माण नहीं हुआ था, सर्वप्रथम 1957 में रूस ने अपना स्पूतनिक प्रथम सेटेलाइट भेजा किंतु इसमें पृथ्वी की धरातलीय स्थिति का अवलोकन नहीं किया गया,

अंततः सर्वप्रथम 1972 को अमेरिका द्वारा लगभग 900 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी का अवलोकन उपग्रह लैंडसेट-1 प्रक्षेपित किया गया, जो आधुनिक रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट था। 

इसके उपरांत पृथ्वी की धारातलीय स्थिति का अवलोकन करने के लिए अनेकों सुदूर संवेदन के अनेकों उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किए गए जिनमें से भारत के इंडियन रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट (IRS)भी प्रमुख हैं। 

भारत में सुदूर संवेदन प्रणाली -:

भारत की सुदूर संवेदन प्रणाली , विश्व की सबसे बड़ी सुदूर संवेदन प्रणालियों में शामिल है, और भारत सुदूर संवेदन तकनीक के विकास के लिए होमी जहांगीर ,भाभा विक्रम साराभाई, पी.रामा पिशरोती , सतीश धवन, कृष्णस्वामी कस्तूरी रंजन जैसी महान वैज्ञानिकों का सदैव ऋणी रहेगा क्योंकि इनके अथक विज्ञानिक प्रयासों से ही भारत में सुदूर संवेदन प्रणाली का विकास एवं विस्तार हो पाया है। 

प्रोफेसर रामा पिशरोथ को भारत की सभी संवेदन प्रणाली का जनक माना जाता है क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम नारियल की खेती में लगने वाली रोग को पहचानने के लिए सुदूर संवेदन तकनीक का प्रयोग किया था। 

भारत में सुदूर संवेदन प्रणाली का विकास 1970 के दशक से हुआ, क्योंकि भारत भारत की अंतरिक्ष संस्था- इसरो द्वारा सबसे पहले प्रायोगिक तौर पर 1979 को पृथ्वी की धरातलीय सतह का अवलोकन करने के लिए भास्कर-1 नामक रिमोट सेंसिंग उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में भेजा गया।  इसके 2 वर्ष बाद अर्थात 1981 इसरो द्वारा पुन: भारत का दूसरा रिमोट सेंसिंग उपग्रह “भास्कर-2” निम्न भू कक्षा में भेजा गया। 

इन प्रायोगिक रिमोट सेंसिंग उपग्रहों की बाद 1988 में भारत IRS-1A नामक सुदूर संवेदी उपग्रह लगभग 900 किलोमीटर की ऊंचाई वाली ध्रुवीय कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। जिसके द्वारा भारत के कृषि क्षेत्र, जल संसाधन ,खनिज संसाधन,वनसंसाधन के मानचित्र प्राप्त हुए। 

इसके पश्चात-

  • विशिष्ट कैमरों के साथ भारत के धरातलीय संसाधनों का मानचित्रण करने के लिए, IRS(Indian remote sensing satellite) श्रंखला के अनेकों सुदूर संवेदी उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किए गए। जैसे- IRS-1A,IRS-1E,IRS-P6. 

  • भारत के विभिन्न क्षेत्रों की धरातलीय स्थिति की निगरानी रखने के लिए, कार्टोसैट श्रंखला के 9 सेटेलाइट पृथ्वी की निम्न भ-कक्षा में स्थापित किये गये हैं। 

  • भारत के प्राकृतिक संसाधनों पर निगरानी रखने एवं उनका सर्वेक्षण व व प्रबंधन करने के लिए,रिसोर्ससैट श्रंखला के 3 सेटेलाइट कार्यरत् हैं। 

  • पृथ्वी के समुद्र का मानचित्रण करने तथा समुद्री संसाधनों का सर्वेक्षण करने के लिए, इसरो द्वारा ओशनसेट श्रंखला के दो सेटेलाइट अंतरिक्ष में स्थापित किए गए हैं।  

  • इनके अलावा रिसैट(राडार इमेजिंग सेटेलाइट) श्रंखला के सेटेलाइट भी लोबर अर्थ ऑर्बिट में स्थापित किए गए हैं जो रडार प्रणाली द्वारा धरातलीय संवेदना को रिकॉर्ड करते हैं। 

 

भारत में भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो द्वारा ही सभी रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट को निर्मित एवं अंतरिक्ष में स्थापित किया जाता है, किंतु रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट के रिकॉर्ड को प्राप्त करके, उन रिकॉर्डरों की मशीनी भाषा से समझने योग्य भाषा में बदलने तथा विश्लेषण करने के लिए भारत में 2 संस्थान संचालित हैं

  • भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान- देहरादून

  • राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र- हैदराबाद। 

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