भूस्थिर उपग्रह एवं प्रक्षेपण यान

भूस्थिर उपग्रह एवं प्रक्षेपण यान

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उपग्रह-:

ग्रह के चारों ओर एक निश्चित पथ में परिक्रमा करने वाले पिण्ड को उपग्रह कहते हैं। 

उपग्रहों के प्रकार-:

मोटे तौर पर उपग्रह दो प्रकार के होते हैं-

  • प्राकृतिक उपग्रह- ऐस उपग्रह जो मानव द्वारा निर्मित ना होकर पहले से ही प्रकृति में मौजूद है,जैसे- चंद्रमा। 

  • कृत्रिम उपग्रह-: ऐसे उपग्रह जो मानव द्वारा अंतरिक्ष में छोड़े गए हैं, जैसे- आर्यभट्ट सैटेलाइट, इनसेट सैटेलाइट।

कृतिम उपग्रहों के प्रकार-:

कृत्रिम उपग्रहों को दो भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं

  • कक्षीय स्थिति के आधार पर कृत्रिम उपग्रहों के प्रकार

  • प्रयोग के आधार पर कृत्रिम उपग्रह के प्रकार

कक्षीय स्थिति के आधार पर कृत्रिम उपग्रहों के प्रकार

  • भू-स्थैतिक उपग्रह(geostationary satellite)

  • भू-तुल्यकालिक उपग्रह(geosynchronous satellite)

  • ध्रुवीय उपग्रह(polar satellite)

भू-स्थैतिक उपग्रह-:

ऐसे उपग्रह जो, पृथ्वी की भूमध्य रेखा के समकक्ष घूमते हुए पृथ्वी की गति के बराबर वेग से पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं। 

 

 

.भू-स्थैतिक उपग्रह-:

भू-तुल्यकालिक उपग्रह

ऐसे उपग्रह जो, पृथ्वी की गति के वेग से पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं किंतु भूमध्य रेखा के समकक्ष ना घूमते हुए, भूमध्य रेखा के कुछ कोणीय झुकाव पर घूमते हैं। 

.भू-तुल्यकालिक उपग्रह

ध्रुवीय उपग्रह

ऐसी उपग्रह जो, पृथ्वी के दोनों ध्रुवों के समकक्ष घूमते हुए पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं उन्हें ध्रुवीय उपग्रह कहते हैं 

.ध्रुवीय उपग्रह

भू-स्थैतिक उपग्रह और ध्रुवीय (सूर्य तुल्यकालिक)उपग्रह में अंतर-:

कक्षा की स्थिति-:

भू-स्थैतिक उपग्रह पृथ्वी की भूमध्य रेखा के समकक्ष घूमते हुए पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं

जबकि ध्रुवीय उपग्रह पृथ्वी के दोनों ध्रुवों के समकक्ष घूमते हुए पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं। 

ऊंचाई-

भू-स्थैतिक उपग्रह पृथ्वी की समुद्र सतह से लगभग 36000 किलोमीटर ऊंचाई की कक्षा पर स्थापित किया जाता है। 

जबकि ध्रुवीय उपग्रह लगभग 700 से 900 किलोमीटर ऊंचाई की कक्षा (लोवर अर्थ आर्बिट) पर स्थापित किया जाता है। 

कक्षीय अवधि-:

भू-स्थैतिक उपग्रह 24 घंटे में एक बार पृथ्वी की परिक्रमा कर पाता है,

जबकि सूर्य तुल्यकालिक उपग्रह 2 से 3 घंटे में पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेता हैं 

पृथ्वी के सापेक्ष स्थिति-

भू-स्थैतिक उपग्रह सदैव ( 24 घंटे) पृथ्वी के किसी एक स्थान को कवर करते हैं

जबकि ध्रुवीय उपग्रहों कि पृथ्वी के सापेक्ष स्थिति में परिवर्तन होता रहता है, अर्थात ये 24 घंटे में ही पृथ्वी के विभिन्न स्थान को कवर करते हैं।

अनुप्रयोग-

भू-स्थैतिक उपग्रह का उपयोग रेडियो, दूरदर्शन जैसे संचार के साधनों में, जीपीएस में , बॉर्डर सुरक्षा के क्षेत्र में , मौसम की मॉनिटरिंग में तथा पृथ्वी की ऊपरी सतह व आकृति का अध्ययन करने में किया जाता है। 

जबकि ध्रुवीय उपग्रह का उपयोग रिमोट सेंसिंग तकनीकी द्वारा पृथ्वी के संसाधनों का अवलोकन करने में किया जाता है। 

-: ध्रुवीय कक्षा के अधिकांश उपग्रह सूर्य तुल्यकालिक होते हैं अर्थात सदैव पृथ्वी के उस हिस्से में विद्यमान रहते हैं जिस हिस्से में सूर्य का प्रकाश पड़ता है। अर्थात जैसे भारत का ध्रुवीय उपग्रह, उसी समय भारत में रहेगा जब भारत में दिन होगा। तथा रात के समय ब्यूरो अमेरिका के क्षेत्र में रहेगा क्योंकि वह दिन होगा। 

प्रयोग के आधार पर कृत्रिम उपग्रहों के प्रकार-

संचार उपग्रह-

ऐसे उपग्रह जो रेडियो टेलीविजन आदि संचार उपकरणों के लिए सिग्नल प्रदान करते हैं उन्हें संचार उपग्रह कहते हैं। संचार उपग्रह पृथ्वी के किसी एक निश्चित स्थान से ही 24 घंटे अपने सिग्नल प्राप्त करते एवं छोड़ते रहते हैं। 

जैसी भारत के संचार उपग्रह हैं –

  • एप्पल उपग्रह (1981)

  • इनसेट-1, इनसेट-2, इनसेट-4

  • जीसैट-1, जीसेट-30

अंतरिक्ष अन्वेषण उपग्रह-:

ऐसे उपग्रह जिन्हें अंतरिक्ष एवं अंतरिक्ष के खगोलीय पिंडों से संबंधित अनुसंधान के लिए स्थापित किया जाता है उन्हें अंतरिक्ष अन्वेषण उपग्रह कहते हैं। 

जैसे- चंद्रयान प्रथम, चंद्रयान द्वितीय ,मंगलयान। 

नेविगेशन उपग्रह-

ऐसे उपग्रह जो वैश्विक कवरेज के साथ भू स्थानिक स्थिति की जानकारी प्रदान करने के लिए भू स्थैतिक कक्षा में स्थापित किए जाते हैं उन्हें नेविगेशन उपग्रह कहते हैं। 

जैसे- IRNSS श्रंखला के उपग्रह। 

भारत का नाविक उपग्रह। 

सुदूर संवेदन उपग्रह- 

ऐसे उपग्रह जो अपना संवेदी उपकरणों के माध्यम से दूर से ही धरातल की संवेदना को ग्रहण करके धरातल की प्राकृतिक संसाधनों , पर्यावरण तथा अन्य धरातलीय घटनाओं का मानचित्र तैयार करते हैं, उन्हें सुदूर संवेदन उपग्रह करते हैं

जैसे- भारत के सुदूर संवेदन उपग्रह हैं-

कार्टोसैट, भास्कर उपग्रह,IRN श्रंखला के सेटेलाइट। 

सुदूर संवेदन उपग्रह को पृथ्वी की ध्रुवीय कक्षा पर स्थापित किया जाता है। 

नेविगेशन उपग्रह-:

ऐसे उपग्रह जो नेवीगेशन अर्थात जीपीएस सुविधा प्रदान करते हैं उन्हें नेविगेशन उपग्रह कहते हैं। 

जैसे- भारत के IRNSS श्रंखला के उपग्रह। 

कृतिम उपग्रह की घटक

.कृतिम उपग्रह की घटक

अंतरिक्ष में उपग्रह की कक्षाएं-:

किस ग्रह के चारों ओर का वह वृत्ताकार कल्पनिक पथ जिस पर घूमते हुए उपग्रह ग्रह (पृथ्वी) का चक्कर लगाता है, उसी उपग्रह की कक्षा कहते हैं,

अंतरिक्ष में कृत्रिम उपग्रहों की मुख्यतः तीन कक्षाएं होती-

  • निम्न भू-कक्षा(loafer Earth orbit)

  • मध्यम भू-कक्षा(middle Earth orbit)

  • भू-स्थैतिक कक्षा(geostationary orbit)

निम्न भू-कक्षा(loafer Earth orbit)-

यह कक्षा पृथ्वी के धरातल से लगभग 200 किलोमीटर से 2000 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है। 

किंतु इस कक्षा की ज्यादातर सेटेलाइट 700 से 900 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होते है। 

मध्यम भू-कक्षा(middle Earth orbit

यह कक्षा पृथ्वी के धरातल से लगभग 2000 किलोमीटर की ऊंचाई से 35000 किलोमीटर की ऊंचाई तक पाई जाती है किंतु इस कक्षा के ज्यादातर उपग्रह लगभग 20000 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होते हैं। 

भू-स्थैतिक कक्षा(geostationary orbit)

यह कक्षा पृथ्वी के धरातल से 36000 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होती है, इस कक्षा में स्थापित उपग्रह पृथ्वी की गति के समान गति से पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं।

[भूस्थिर उपग्रह]

ऐसे उपग्रह जो, पृथ्वी की भूमध्य रेखा के समकक्ष घूमते हुए पृथ्वी की गति के बराबर वेग से पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं। क्योंकि यह सदैव पृथ्वी के किसी एक ही स्थान पर स्थित रहते हैं

 

 

.[भूस्थिर उपग्रह]

भूस्थिर उपग्रह की विशेषताएं-:

  • भूस्थिर उपग्रह क परिक्रमण काल लगभग 24 घंटे का होता है अर्थात ये सदैव पृथ्वी के साथ घूमते हुए पृथ्वी के किसी एक स्थान को कवर करते रहते हैं। 

  • भूस्थिर उपग्रह पृथ्वी की भूमध्य रेखा के समांतर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमते हुए पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं। 

  • भूस्थिर उपग्रह को पृथ्वी की धरातल से लगभग 36000 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया जाता है। 

  • भूस्थिर उपग्रह का प्रयोग- 

    • संचार साधनों में,

    • जीपीएस में,

    • बॉर्डर सुरक्षा के क्षेत्र में

    • मौसम की मॉनिटरिंग करने आदि में किया जाता है। 

भारत में दो प्रकार के भू-स्थिर उपग्रह प्रक्षेपित किए जाते हैं-

  • INSAT श्रंखला के उपग्रह जैसे-: 

    • Inset-1A

    • Inset-1C

    • Inset-2B

    • Inset- 3A

 

  • GSAT श्रंखला के उपग्रह जैसे-

    • Gsat-8

    • Gsat-10

    • Gsat-19.

हाल ही में जनवरी 2020 को जीसैट-30 भू-स्थिर सैटेलाइट 36000 किलोमीटर की ऊंचाई पर जियोसिंक्रोनस कक्षा में लांच किया गया है। जो एक संचार उपग्रह है,

इनसेट या जीसैट सेटेलाइट के उपयोग-:

  • रेडियो एवं टेलीविजन के सिग्नल प्रदान करने में। 

  • भारतीय भू-भाग(विशेषकर भारतीय सीमा) की निगरानी रखने में। 

  • भारतीय क्षेत्र के मौसम की मॉनिटरिंग करने में। 

  • वायुयान व जलयानो को नेविगेशन सुविधा प्रदान करने में,

  • प्राकृतिक आपदा की चेतावनी देने में।

प्रक्षेपण यान एवं उनकी पीढ़ियां-:

प्रक्षेपण यान-:

कृत्रिम उपग्रहों को अंतरिक्ष (की विभिन्न कक्षाओं) में प्रक्षेपित करने वाले वाहन प्रक्षेपण यान कहलाते हैं। 

प्रक्षेपण यान के छोटे से ऊपरी हिस्से में सेटेलाइट रखे होते हैं तथा निचले हिस्सों में रॉकेट ईंधन (प्रमोदक) भरा होता है, इस ईंधन के जलने से, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के विपरीत बल या धक्का उत्पन्न होता है जिसके माध्यम से प्रक्षेपण यान अंतरिक्ष की ओर गति कर पाते हैं। 

अतः जिस प्रक्षेपण यान में जितना अधिक एवं गुणवत्तापूर्ण रॉकेट फ्यूल होता है, वह प्रक्षेपण यान उतनी ही अधिक ऊंचाई पर जाने की क्षमता रखता है। 

भारत में प्रक्षेपण यान-:

भारत का प्रथम सेटेलाइट आर्यभट्ट था जो 1975 को रूस के प्रक्षेपण यान से अंतरिक्ष में भेजा गया था, इसके अलावा अनेकों भारतीय सैटेलाइट विभिन्न देशों के प्रक्षेपण यानों से भेजे गए क्योंकि भारत के पास स्वयं के प्रक्षेपण यान नहीं थे, हालांकि भारत की अंतरिक्ष संस्था इसरो ने 1970 के दशक से ही स्वयं के प्रक्षेपण यान विकसित करने का कार्य प्रारंभ कर दिया था,

जिसके फलस्वरूप भारत के प्रक्षेपण यानों का विकास हुआ भारत का पहला सफल प्रक्षेपण यान SLV-3 था, जिसने 1980 में भारतीय उपग्रह rohni को पृथ्वी की निम्न भू-कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया था। 

भारत के प्रक्षेपण-यानों को निम्न पीढ़ियों में विभाजित किया जा सकता है-:

SLV श्रृंखला के प्रक्षेपण यान

ASLV श्रृंखला के प्रक्षेपण यान

PSLV श्रृंखला के प्रक्षेपण यान

GSLV श्रृंखला के प्रक्षेपण यान

और भविष्य में आने वाले हैं-

RSLV श्रृंखला के प्रक्षेपण यान

SLV प्रक्षेपण यान-:

  • इन प्रक्षेपण यान में 4 चरणों में भरा होता है प्रत्येक चरण का प्रणोदक ईंधन ठोस ईंधन के रूप में होता है। 

  • इस प्रक्षेपण यान की ऊंचाई 22 मीटर होती है। 

  • इस प्रक्षेपण यान की पैलोड क्षमता 40 किलोग्राम की होती है। अर्थात यह 40 किलोग्राम वजन तक के पेलोड(सैटेलाइट कैमरा अन्य उपकरण) को अंतरिक्ष में ले जा सकता है। 

  • यह प्रक्षेपण यान केवल निम्न भू-कक्षा तक ही जा सकता है। 

भारत का पहला सफल SLV-: “SLV-3” था जो 1980 में भारतीय उपग्रह rohni को पृथ्वी की निम्न भू-कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर पाया था।

ASLV प्रक्षेपण यान-:

  • इन प्रक्षेपण यान में 5 चरणों में ईंधन भरा होता है प्रत्येक चरण का प्रणोदक ठोस ईंधन के रूप में होता है। 

  • इस प्रक्षेपण यान की ऊंचाई  लगभग 24 मीटर होती है। 

  • इस प्रक्षेपण यान की पैलोड क्षमता 150 किलोग्राम की होती है। 

  • यह प्रक्षेपण यान केवल निम्न भू-कक्षा तक ही जा सकता है।

भारत का पहला सफल ASLV प्रक्षेपण यान -: “ASLV-D3” था जो 1992 को अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। 

PSLV प्रक्षेपण यान-:

  • इन प्रक्षेपण यान में 4 चरणों में ईंधन भरा होता है, किंतु प्रथम चरण में ठोस प्रणोदक , द्वितीय चरण में द्रव प्रणोदक, तृतीय चरण में ठोस प्रणोदक, चतुर्थ चरण में द्रव्य प्रणोदक भरा होता है। 

  • इस प्रक्षेपण यान की ऊंचाई  लगभग 44 मीटर होती है। 

  • इस प्रक्षेपण यान की पैलोड क्षमता 1750 किलोग्राम की होती है। 

  • यह प्रक्षेपण यान 1750 किलोमीटर तक के उपग्रह को पृथ्वी की निम्न भू-कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर सकता है। इससे कम वजन वाली उपग्रह को इससे भी ऊंचाई पर स्थापित कर सकते हैं,

भारत का पहला सफल PSLV प्रक्षेपण यान- “PSLV-D2” था, जो 1994 को IRS सैटेलाइट के साथ पृथ्वी की ध्रुवीय कक्षा में सफलतापूर्वक छोड़ा गया था। 

चंद्रयान-1 ,मंगलयान तथा भारत के जीपीएस सैटेलाइट अर्थात IRNSS को इसी प्रक्षेपण यान से भेजा गया है। 

GSLV प्रक्षेपण यान-:

  • इन प्रक्षेपण यान में 3 चरणों में ईंधन भरा होता है, किंतु प्रथम चरण में ठोस प्रणोदक , द्वितीय चरण में द्रव प्रणोदक, तृतीय चरण में क्रायोजेनिक इंजन होता है, जिसमें ईंधन के रूप में द्रवित हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन गैस भरी होती है।

  • इस प्रक्षेपण यान की ऊंचाई  लगभग 49 मीटर होती है। 

  • इस प्रक्षेपण यान की पैलोड क्षमता 4000 किलोग्राम की होती है। 

  • यह प्रक्षेपण यान भू-स्थैतिक कक्षा में संबंधित उपग्रह को स्थापित करता है। 

भारत का पहला एवं सफल GSLV प्रक्षेपण यान- “GSLV-D1” था, जो 2001 को GSAT-1 को पृथ्वी की भू-स्थैतिक कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया था।

.प्रक्षेपण यान एवं उनकी पीढ़ियां-:

भारत के भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान की पीढ़ियां-:

जीएसएलवी प्रक्षेपण यान भारत की सबसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान है क्योंकि इसमें ठोस द्रव प्रणोदक के साथ शक्तिशाली क्रायोजेनिक इंजन का भी प्रयोग किया जाता है,

अतः जीएसएलवी प्रक्षेपण यान 2000 किलोग्राम से भी अधिक वजन के उपग्रहों को 36000 किलोमीटर की भू-स्थिर अंतरिक्ष कक्षा में स्थापित करने में सक्षम होते हैं। 

भारत के भूस्थिर उपग्रह की तीन पीढ़ियां है

  • जीएसएलवी मार्क-1 यह 1500 किलोग्राम वजन तक के उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा में स्थापित करने के लिए सक्षम होता है। 

  • जीएसएलवी मार्क-2 यह 2500 किलोग्राम वजन तक के उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा में स्थापित करने के लिए सक्षम होता है। 

  • जीएसएलवी मार्क-3 यह 4000 किलोग्राम वजन तक के उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा में स्थापित करने के लिए सक्षम होता है। 

वर्तमान में INSAT, GSAT तथा बड़े-बड़े अंतरिक्ष उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए जीएसएलवी मार्क-3 पीढ़ी के प्रक्षेपण यानों उपयोग किया जाता है।

भारत के चंद्रयान द्वितीय उपग्रह को जीएसएलवी मार्क-3 M1 प्रक्षेपण यान द्वारा ही प्रक्षेपित किया गया था। 

भारत के प्रमुख जीएसएलवी प्रक्षेपण यान-:

.भारत के प्रमुख जीएसएलवी प्रक्षेपण यान-:

क्रायोजेनिक इंजन-:

GSLV उपग्रह प्रक्षेपण यान में प्रयोग किए जाने वाले क्रायोजेनिक इंजन ऐसे इंजन होते हैं, जिनमें अत्यधिक निम्न ताप (लगभग -200 °C) में संपीड़ित की गई हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन भरी हुई होती है, जिसमें से हाइड्रोजन गैस ईंधन का कार्य करती है और ऑक्सीजन गैस ईंधन के दहन के लिए ऑक्सीकारक का कार्य करती है और जब इस निम्न ताप वाली द्रवित हाइड्रोजन गैस को द्रवित ऑक्सीजन प्राप्त होती है तो इसका तेजी से दहन होता है, परिणाम स्वरूप ठोस ईंधन से कई गुना अधिक उर्जा बहुत तीव्र गति से निकलती है। 

इसका लाभ-:

  • क्रायोजेनिक इंजन का आयतन छोटा होता है। 

  • बहुत ही अधिक मात्रा में तीव्रता के साथ थ्रस्ट(धक्का) पैदा करता है। 

.क्रायोजेनिक इंजन-:

.क्रायोजेनिक इंजन-:

स्क्रैमजेट-:

वर्तमान में प्रक्षेपण यान के इंजन के लिए इसरो द्वारा स्क्रैमजेट इंजन का निर्माण किया जा रहा है स्क्रैमजेट इंजन, वह इंजन होता है जो वायुमंडल की ऑक्सीजन का ही उपयोग करके स्वयं के इधन को जलाने में सक्षम होता है। 

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