[प्रमुख आपदाएं उनका प्रबंधन]
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[भूकंप]
पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों द्वारा उत्पन्न ऊर्जा तरंगों से भू-पृष्ठ का कंपन होना, भूकंप कहलाता है। और भूकंप एक प्रमुख प्राकृतिक आपदा है जिसका मापन सिस्मोग्राफ नामक यंत्र द्वारा किया जाता है। और भूकंप की तीव्रता को मापने के लिए सामान्यतः रिक्टर स्केल का प्रयोग होता है जिसमें 0 से 9 तक अंक होते हैं
भूकंप की तीव्रता यदि-:
3 से कम है तो इससे कोई नुकसान नहीं होता।
3 से 5 के बीच है तो पुरानी कमजोर बिल्डिंगों में दरार आ जाती है।
5 से 7 है तो रोड में दरार पड़ने लगती है।
7 से अधिक है तो भवन इत्यादि गिरने लगते हैं।
भूकंप आने के कारण-
प्लेट विवर्तनिकी घटनाएं, जिसमें प्लेटों की अभिसारी, अपसारी एवं संरक्षी गति शामिल है।
विस्फोटक ज्वालामुखी का उद्गार होना।
उल्कापात होना।
बड़े बांधों के निर्माण के कारण जला सके दबाव द्वारा प्लेटों के खिसकने से।
परमाणु परीक्षण या खनन कार्य।
भूकंप के प्रभाव-‘
जान-माल को हानि होती है।
आधारभूत अधोसंरचना जैसे- भवन, फैक्ट्री ,पुल आदि ध्वस्त हो जाते हैं।
संचार तंत्र ,जल तंत्र ,विद्युत तंत्र तथा परिवहन तंत्र को क्षति पहुंचती है।
भूकंप के कारण अन्य आकस्मिक दुर्घटना घटित होती हैं, जैसे-
बांध टूटने से बढ़ा आना
उद्योगों के ध्वस्त होने से रसायनों का रिसाव।
जलीय क्षेत्र में भूकंप आने से सुनामी आना।
हिमस्खलन, भूस्खलन होना।
भूकंप का प्रबंधन-:
भूकंप के दुष्प्रभावों को न्यूनतम करने के लिए निम्न तरीके से भूकंप का प्रबंधन किया जाना चाहिए
भूकंप आने की पूर्व-:
भूकंप संवेदनशील क्षेत्रों का मानचित्र तैयार करना चाहिए।
भूकंप से संबंधित अनुसंधान एवं शोध कार्य करके संभावित आगामी भूकंप के स्वरूप एवं उसकी तीव्रता का आकलन करना चाहिए।
भूकंप संवेदनशील क्षेत्रों में भूकंप रोधी इमारतें बनवाना चाहिए। जैसल लकड़ी के घर, रबड़ इस्पात की दीवारें, स्प्रिंग वाले विद्यालय।
भूकंप से बचने के लिए लोगों को प्रशिक्षण देना चाहिए, इसके लिए उन्हें निम्न सावधानियों से अवगत करवाना चाहिए, कि वे भूकंप के दौरान-
बाहर खुले मैदान में जाएं
लिफ्ट का प्रयोग ना करें
बिजली उपकरणों तारों एवं कांच आदि से दूर रहें।
मजबूत बीम के नीचे घुस जाएं।
भूकंप के दौरान-:
एनडीआरएफ की टीम ले जाकर भूकंप में फंसे लोगों को बचाना चाहिए।
एंबुलेंस ले जाकर भूकंप से घायल लोगों को उपचार की सुविधा देना चाहिए।
लोगों को अल्पकालीन समय के लिए सुरक्षित स्थान पर ले जाना चाहिए। तथा उन्हें आवश्यक मूलभूत सामग्री जैसे खाना ,पानी ,संचार सेवा देनी चाहिए।
भूकंप के पश्चात-:
भूकंप से प्रभावित क्षेत्र में पुनर्निर्माण करवा कर जनजीवन को पहले की भांति सामान्य बनाना चाहिए।
भारत में भूकंप की स्थिति-:
भारत में भूकंप के खतरे की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए भारत की भूकंप क्षेत्रों को चार जोनों में विभाजित किया गया है-
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कच्छ(भुज)का भूकंप -2001
26 जनवरी 2001 को गुजरात के भुज (कच्छ) क्षेत्र में लगभग 6.9 रीक्टर की तीव्रता का भूकंप आया था।
जिसका कारण इंडियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट के मध्य टकराव का होना था।
कच्चे कि भूकंप से लगभग 20 हजार लोगों की मृत्यु हो गई और लगभग 4 लाख घर नष्ट हो गए।
[सुनामी]
अधिक ऊंचाई वाली ऐसी सागरीय तरंगे जो तटीय बंदरगाहों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं उन्हें सुनामी कहते हैं।
सुनामी का प्रबंधन-:
सुनामी के दुष्प्रभावों को न्यूनतम करने के लिए निम्न तरीकों से सुनामी का प्रबंधन किया जा सकता है-:
सुनामी आने के पूर्व-:
सुनामी संभावित क्षेत्रों का मानचित्रण करना।
सुनामी आने के पूर्व संभावित सुनामी इलाके के लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाना।
सुनामी वार्निंग सिस्टम (TWS)केंद्रों की स्थापना करके आगामी सुनामी स्वरूप एवं तीव्रता का आकलन करना।
सुनामी की लहरों से स्थल खंड को सुरक्षित रखने के लिए तटीय क्षेत्र में मैंग्रोव वनस्पति की दीवार , बालुका स्तूप आदि बनाना।
सुनामी के दौरान-:
सुनामी आने के दौरान एनडीआरएफ की टीम द्वारा सुनामी में फंसे लोगों को आपदा स्थल से निकालकर सुरक्षित स्थान पर ले जाना।
सुनामी के पश्चात-:
सुनामी से प्रभावित लोगों को मूलभूत वस्तुएं एवं सेवाएं देना जैसे- भोजन ,जल, संचार-सेवा आदि।
सुनामी क्षेत्र की संचार व्यवस्था ,जल व्यवस्था, विद्युत व्यवस्था तथा परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करना।
मानसिक और भौतिक पुनर्वास द्वारा लोगों के जनजीवन को पहले की भांति सामान्य बनाना।
वर्ष 2004 में आई सुमात्रा सुनामी-:
भारतीय प्लेट का वर्मी प्लेट के नीचे नीचे क्षेपण होने से, 26 दिसंबर 2004 को इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में लगभग 9 रिक्टर तीव्रता का भूकंप आया।
जिसके प्रभाव से भूकंप अधिकेंद्र के चारों ओर ऊंची समुद्री लहरें उठीं जो तटीय क्षेत्र में जाकर सुनामी का रूप ले ली थी, जिससे सुनामी की उत्पत्ति हुई,
सुमात्रा सुनामी की अधिकतम ऊंचाई 33 मीटर थी सुनामी से इंडोनेशिया मलेशिया भारत श्रीलंका सहित 11 देश नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए तथा लगभग 230000 लोगों की मौत हो गई थी।
सुनामी आपदा की न्यूनीकरण के उपाय-:
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चक्रवात-:
चक्रवात निम्न वायुदाब अलावा केंद्र होता है जिसमें चारों ओर की अपेक्षाकृत अधिक वायुदाब वाली हवाएं तीव्रता के साथ चक्कर लगाते हुए सकेंद्रित होती है।
और उष्णकटिबंधीय चक्रवात भारत की एक प्रमुख प्राकृतिक आपदा है,
चक्रवात के प्रभाव-:
चक्रवात एक प्रकार का बहुत तीव्र घुमावदार तूफान होता है जिसके प्रभाव से विभिन्न अधोसंरचना जैसे बिजली के खंभे वृक्ष भवन आदि नष्ट हो जाते हैं यहां तक कि अनेकों लोगों की मौत भी हो जाती है।
चक्रवात का प्रबंधन-:
सुनामी के प्रबंधन की भांति
[बाढ़]
जब अत्यधिक वर्षा होने के कारण नदी या किसी बड़े जलाशय का जल अपने टच बंधुओं का अतिक्रमण करके तीव्र वेग से आवासीय क्षेत्र में फैलता है तो इस स्थिति को बाढ़ कहा जाता है, जो एक प्रमुख प्राकृतिक आपदा है।
बाढ़ आने के कारण-:
किसी क्षेत्र विशेष में अत्यधिक वर्षा होना।
नदियों तथा जलाशयों में मलबा जमा हो जाने से उनकी जल समायोजन क्षमता कम हो जाना।
वन तथा हरियाली भूमि का विनाश होने से भूमि की जल अवशोषण क्षमता कम हो जाना।
तटबंधों का समुचित रखरखाव ना होना।
जल निकासी की समुचित व्यवस्था ना होना।
बाढ़ का प्रभाव-:
जान माल की हानि होना।
विभिन्न अधोसंरचना जैसी भवन स्कूल का विनाश होना।
परिवहन तंत्र ,विद्युत तंत्र ,संचार तंत्र ध्वस्त हो जाना।
भारत प्रभावित क्षेत्र में स्वच्छ पेयजल एवं खाद्यान्न का संकट उत्पन्न हो जाना।
कृषि उपज नष्ट हो जाना तथा मृदा अपरदन होना।
हालांकि बाढ़ के कारण कुछ सकारात्मक बदलाव भी आते हैं जैसे बाढ़ के मलबे के जमा होने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है तथा भूमिगत जलस्तर बढ़ता है।
बाढ़ प्रबंधन या बाढ़ नियंत्रण के उपाय
बाढ़ आने की पूर्ण-:
बाढ़ क्षेत्रों की पहचान कर, उन क्षेत्रों का मानचित्रण किया जाए।
मौसम विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देकर आगामी बाढ़ के स्वरूप एवं तीव्रता की संभावना का अवलोकन किया जाए।
लोगों को बाढ़ संभावित क्षेत्रों में आवास बनाने से रोक कर उन्हें सुरक्षित स्थान पर आवास बनाने के लिए जगह दी जाए।
वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जाए, ताकि भूमि की जल अवशोषण क्षमता बढ़े।
नदी एवं जलाशयों की मलबा को निकालकर उनकी साफ-सफाई की जाए ताकि उनकी जल समायोजन क्षमता बढ़े।
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों को नेहरू के माध्यम से सूखा क्षेत्र से जोड़ा जाए।
शहरों की बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए जल निकासी की उपयुक्त व्यवस्था की जाए।
बाढ़ के समय-:
एनडीआरएफ की टीम द्वारा बाढ़ में फंसे लोगों को निकालकर ऊंचे स्थानों पर पहुंचाना।
बाढ़ में फंसे लोगों को नौकाओं के माध्यम से सुरक्षित स्थान में ले जाना।
लोगों को मूलभूत वस्तुएं एवं सेवाएं जैसे खाना जल सेवा प्रदान करना।
शीघ्रता से जल निकासी का प्रबंध करना।
बाढ़ के पश्चात-:
लोगों को छति पूर्ति के लिए आर्थिक मुआवजा देना।
बाढ़ से ध्वस्त हुए अवसंरचना का पुनर्निर्माण करवाना।
भारत में बाढ़ की स्थिति-:
भारत-बांग्लादेश के बाद विश्व का दूसरा सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित देश है।
भारत के प्रमुख बाढ़ प्रभावित क्षेत्र-:
गंगा ब्रह्मपुत्र बेसिन-:
यह भारत का सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है जहां पर देश की लगभग 60% बाढ़ आती है।
इसके अंतर्गत असम ,पश्चिम बंगाल, बिहार ,उत्तर प्रदेश राज्य शामिल है।
मध्यवर्ती व प्रायद्वीपीय क्षेत्र-:
क्षेत्र के अंतर्गत मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ उड़ीसा महाराष्ट्र गुजरात कर्नाटक तेलंगाना तमिलनाडु जैसे राज्य आते हैं इस क्षेत्र में सामान्यतः दो से 5 वर्षों में एक बार बाढ़ आती है।
राजस्थान क्षेत्र-:
चूंकि राजस्थान क्षेत्र एक रेतीली भूमि का क्षेत्र है जहां पर जल अवशोषण की क्षमता बहुत कम होती है अतः यहां पर कम वर्षा होने पर भी बाढ़ आ जाती है।
मध्य प्रदेश के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र-:
मध्यप्रदेश में नदियों का काफी ज्यादा जाल है अतः नदियों के किनारे बाढ़ आने की संभावना रहती है जैसे नर्मदा नदी चंबल नदी केन नदी दशान नदी आदि के किनारे।
उत्तराखंड की बाढ़ 2013-:
जून 2013 को उत्तराखंड के केदारनाथ धाम में बादल फटने के कारण बहुत भयंकर बाढ़ आई, इसके प्रभाव से केदारनाथ क्षेत्र के लगभग 5000 से ज्यादा लोग लापता हो गए तथा सड़कों एवं पौधों के ध्वस्त होने से लगभग 70000 पर्यटक फंस गए।
राहत एवं बचाव-:
बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने के लिए थल सेना वायु सेना और जल सेना ने आपस में मिलकर “सूर्य होप” एवं “गंगा प्रहर” ऑपरेशन चलाया।
प्रधानमंत्री ने बाढ़ प्रभावित लोगों को आर्थिक सहायता देने के लिए ₹1000 करोड़ राशि आवंटित करने की घोषणा की।
इसके अंतर्गत
मृतक के परिवार को ₹200000
घायलों को ₹50000
ऐसे व्यक्ति जिनका घर नष्ट हो गया है उनके लिए ₹100000 की सहायता राशि दी गई।
जम्मू कश्मीर की बाढ़ 2014-:
सितंबर 2014 को जम्मू कश्मीर राज्य में मूसलाधार वर्षा होने के कारण झेलम और चिनाव नदी का जलस्तर काफी बढ़ गया जिससे बहुत भयानक बाढ़ आ गई। इस बाढ़ से लगभग भारत के 200 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो गई।
राहत एवं बचाव-:
भारतीय सेना द्वारा बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने के लिए “ऑपरेशन सहायता” तथा “ऑपरेशन मेघराहत” चलाया गया।
बाढ़ प्रभावित लोगों को चिकित्सीय सहायता देने के लिए “आपरेशन सद्भावना” चलाया गया।
शहरी बाढ़-:
शहरी क्षेत्र में मानवीय कारणों से आने वाली बाढ़ को शहरी बार कहते हैं भारत में आने वाली शहरी बालों में 2001 की अहमदाबाद की बाढ़ 2005 की मुंबई की बाढ़ और 2015 की चेन्नई की बाढ़ प्रमुख हैं।
कारण-:
वनों का विनाश होने से उस क्षेत्र की भूमि की जलअवशोषण क्षमता कम हो जाना।
जल क्षेत्रों का अतिक्रमण होना।
जल निकासी की समुचित व्यवस्था ना होना।
[सुखा]
जब किसी क्षेत्र में लंबे समय से अपर्याप्त वर्षा होने के कारण , जल की उपलब्धता उस क्षेत्र की जल संबंधी नियत आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए पर्याप्त ना हो तो ऐसी संकटकालीन स्थिति को सूखा कहा जाता है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार यदि किसी क्षेत्र में सामान्य वर्षा से 25% कम वर्षा होती है तो क्षेत्र में सामान्य सूखा की स्थिति रहती है।
और यदि 25% से 50%कम वर्षा होती है तो उस क्षेत्र में मध्यम सूखा की स्थिति होती है
और यदि किसी क्षेत्र में सामान्य वर्षा से 50% से भी अधिक कम वर्षा होती है तो वहां पर भयंकर सूखा की स्थिति होती है।
सूखा के कारण-:
अल नीनो के प्रभाव से वर्षा की कमी।
वनों का विनाश होने से भूमिगत जलस्तर में कमी आना।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण उपलब्ध जल का अधिक वाष्पीकरण होना।
सूखा के प्रभाव-:
कृषि उत्पादकता बहुत कम जाती है जिससे की जीविका पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो जाता है। जिसके कारण किसान आत्महत्या करने के लिए विवश हो जाते हैं।
खाद्यान्न का उत्पादन बहुत कम हो जाता है परिणाम स्वरूप भुखमरी एवं कुपोषण की समस्या उत्पन्न होती है।
कृषि पर आधारित उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
बेरोजगारी की बढ़ती है।
लोग शहरों में प्रवासित होने लगते हैं।
सुखा नियंत्रण के उपाय-:
सूखा संभावित क्षेत्र में नहरों के माध्यम से बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का जल लाया जाए।
सूखा के क्षेत्र में अधिकाधिक वर्षा जल संरक्षण करने के लिए बड़े बड़े जलाशयों बांधों का निर्माण किया जाए लोगों को जागरुक किया जाए।
सूखा प्रभावित क्षेत्र में ऐसी फसलें उगाई जाए जो कम पानी में अधिक उत्पादन दे सकें।
वनों का विकास किया जाए।
उपयुक्त सिंचाई प्रणाली से सिंचाई की जाए ताकि जल का अपव्यय न हो।
भारत में सूखा की स्थिति-:
भारत का लगभग 33% क्षेत्र सूखा प्रभावित है।
मध्य प्रदेश में सुखा की स्थिति-:
वर्ष 2015-16 में मध्य प्रदेश के 52 जिलों में से 46 जिलों को सूखा प्रभावित जिला घोषित किया गया है मध्यप्रदेश के विशेषकर उत्तर पूर्वी जिले सूखा प्रभावित जिले हैं।
[भूस्खलन]
असमतल या पर्वतीय इलाकों में, भूमि(चट्टानों) का खिसकना भूस्खलन कहलाता है।
भूस्खलन के कारण-:
अत्यधिक तेज वर्षा।
पर्वतीय इलाकों में खनन कार्य।
सड़क निर्माण कार्य
वनों का विनाश।
भूस्खलन का प्रभाव-:
भूस्खलन एक विनाशकारी प्राकृतिक आपदा है जिसके प्रभाव से आसपास के क्षेत्रों में जानमाल की हानि होती है तथा विभिन्न प्रकार की भौतिक अवसंरचना जैसे- भवन, सड़क ,विद्युत तंत्र ध्वस्त हो जाता है।
भूस्खलन के नियंत्रण के उपाय-:
भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में अधिकाधिक वृक्षारोपण किया जाए।
पर्वतीय क्षेत्रों में समोच्च रेखीय कृषि की जाए।
जल प्रवाह की उचित व्यवस्था की जाए ताकि जलीय वेग से भूस्खलन ना हो।
सड़क एवं बस्तियों के किनारे मजबूत दीवार बनाई जाएं।
वनाग्नि-:
वनों में लगने वाली व्यापक आग को वनाग्नि या दावानल कहा जाता है।
इसके कारण-:
जंगलों में आग लगने की अनेकों कारण हो सकते हैं जिसमें कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
भूस्खलन से पत्थर के टकराने से उत्पन्न चिंगारी द्वारा आग लग सकती है।
गर्मी में चलने वाली लपटों द्वारा सूखे जंगल में आग लग सकती है।
बिजली के तारों की फाइल द्वारा,
मानवीय भूलों की वजह से भी जंगलों में आग लग जाती है ,जैस-जलती हुई पीढ़ी को जलती हुई लकड़ी को बिना बुझाए छोड़ आना।
प्रभाव-:
जान माल की हानि होती है।
अनेकों वनस्पति में जलकर नष्ट हो जाती है।
जंगलों की जैव-विविधता का ह्रास होता है।
वनों की अंधाधुंध आग से व्यापक मात्रा में विषैली गैसें जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड कार्बन मोनोऑक्साइड सल्फर डाइऑक्साइड निकलती है जिसके प्रभाव से वायु प्रदूषण होता है।
वनाग्नि के नियंत्रण के उपाय-:
वनाग्नि बुझाने के लिए वर्षा करवानी चाहिए।
आग वाले स्थान को चारों तरफ से नाली द्वारा घेरकर उस नाली में पानी भर देना चाहिए ताकि, उस सीमा के बाद आग आगे ना बड़े।
वनों किन आरक्षण की प्रणाली को दुरुस्त बनाना चाहिए।
वनों में हरियाली वाले वृक्षों का विकास एवं विस्तार करना चाहिए।
प्रमुख मानव जनित आपदाएं-:
नगरीय आग-:
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जब किसी रिहायसी क्षेत्र में आग लगने से जानमाल की हानि होती है, तो उसे एक मानव जनित आपदा के रूप में जाना जाता है।
नगरीय आग लगने के कारण-:
माचिस की दियासलाई या सिगरेट को बिना बुझाए कहीं भी फेंक देना।
बिजली के तारों में शार्ट सर्किट ,ओवर लोडिंग होना।
एलपीजी सिलेंडर या केरोसिन स्टोर जैसे ज्वलनशील जैसी वस्तुओं का असावधानीपूर्वक प्रयोग।
त्यौहार उत्सव में बड़े-बड़े पटाखे या विस्फोटक पदार्थ अनियंत्रित तरीके से जलाना
प्रभाव-:
व्यापक जानमाल की हानि होती है।
बड़ी बड़ी बिल्डिंग के यहां तक की पूरी बस्ती भी जलकर नष्ट हो सकती है।
आप के जलने से धुआं निकलता जैसे वायु प्रदूषण होता है।
नियंत्रण के उपाय या प्रबंधन-:
लोगों में यह जागरूकता फैलाई जाए कि-:
जलती हुई सिगरेट या दियासलाई को कहीं भी ना फेंके उनको बुझाकर भी कहीं जाए।
बिजली के तारों में शार्ट सर्किट से बचने के लिए कट आउट लगवाएं।
खाना बनाने वाली चूल्हा जैसे-एलपीजी सिलेंडर का सावधानी पूर्वक उपयोग करें।
एलपीजी सिलेंडर तथा केरोसिन स्टॉप जैसे खाना बनाने वाले यंत्रों के आसपास जलन सील पदार्थ ना रखें।
त्योहारों एवं उत्सव की सीमाएं विस्फोटकों का सावधानीपूर्वक प्रयोग करें।
आग लगने के दौरान तुरंत 101 नंबर पर कॉल करें।
संभव हो सके तो घर ऑफिस और फैक्टरी में अग्निशामक यंत्र रखें।
आग के प्रकार-:
घरेलू क्षेत्र में लगने वाली आग 4 श्रेणी की हो सकती है-:
A श्रेणी की आग-:
कपड़ा, लकड़ी, प्लास्टिक जैसी ठोस चीजों में लगने वाली आग।
B श्रेणी की आग-:
पेट्रोल, डीजल ,मिट्टी तेल आदि लिक्विड चीजों में लगने वाली आग।
C श्रेणी की आग-:
एलपीजी ,सीएनजी जैसी ज्वलनशील गैस से लगने वाली आग।
D श्रेणी की आग-:
बिजली के शॉर्ट सर्किट से या रासायनिक कारणों से लगने वाली आग।
[औद्योगिक आपदाएं या दुर्घटनाएं]
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औद्योगिक दुर्घटनाओं का तात्पर्य ऐसी दुर्घटनाओं से है जो औद्योगिक गतिविधियों में प्रयोग किए जाने वाली खतरनाक रसायनों के परिवहन ,भंडारण तथा उपयोग के दौरान आग,विस्फोट एवं जहरीली गैसों के रिसाव के रूप में घटित होती हैं।
जैसे-:
भोपाल गैस त्रासदी 1984
कोरबा चिमनी दुर्घटना 2009
औद्योगिक दुर्घटनाओं के कारण-:
तकनीकी कारण-:
उद्योगों में पुरानी या घटिया किस्म की खराब मशीनों का का प्रयोग किया जाना।
वैक्यतिक कारण-:
रसायनों का रखरखाव करने वाले लोगों का पर्याप्त निपुण ना होना या उनकी कर्तव्यनिष्ठा में कमी होना।
सीमित भंडारण क्षमता-:
कम भंडारण-क्षमता में अधिक रसायनों का संग्रह किया जाना।
निरीक्षण में कमी-:
औद्योगिक क्षेत्र की सभी गतिविधियों एवं मशीनों का उचित समय पर उपयुक्त तरीके संरक्षण ना किया जाना।
ओवरलोडिंग तथा शॉर्ट सर्किट की समस्या होना।
नियंत्रण के उपाय-:
औद्योगिक क्षेत्र में निम्न किस्म की या खराब मशीनों के प्रयोग पर पाबंदी लगाई जाए।
मशीनों तथा उद्योग की विभिन्न गतिविधियों का समय-समय पर विभिन्न तरीके से निरीक्षण किया जाए।
उद्योगों में भंडारण क्षमता से कम मात्रा में ही प्रश्नों का भंडारण किया जाए जबरदस्ती अधिक भंडार किया जाए।
उद्योग बिजली पहुंचाने वाले तंत्र को दुरुस्त रखा जाए। ताकि शॉर्ट सर्किट होने की संभावना न रहे।
उद्योगों में आग इत्यादि से निपटने के लिए फायर बिग्रेड जैसी सुविधाएं हैं।
उद्योगों को रिहायशी क्षेत्र से दूर स्थापित किया जाए।
प्रमुख औद्योगिक आपदाएं
भोपाल गैस त्रासदी-:
2-3 से दिसंबर 1984 की रात्रि को भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड नामक कीटनाशक बनाने वाले कारखाने में, मिथाइल आइसोसायनाइड नामक गैस का रिसाव होने लगा, जिसकी वजह से लगभग 783 लोगों की मृत्यु हो गई इस औद्योगिक दुर्घटना को भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है।
मुख्य कारण-:
प्रशिक्षित एवं कर्मठ कर्मचारियों द्वारा समय-समय पर उपयुक्त परीक्षण का अभाव
कंपनी के पास पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों का अभाव।
कंपनी की मशीनों एवं टैंकों का जंगयुक्त होना।
चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना-:
26 अप्रैल 1986 को तत्कालीन सोवियत संघ के अधीन आने वाले यूक्रेन के चेर्नोबिल नामक स्थान पर परमाणु रिएक्टर में आग लगने से गंभीर घटना हुई जिसे चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना कहा जाता है।
इसका मुख्य कारण बिजली के उपकरणों की जांच के दौरान परमाणु रिएक्टर के सुरक्षा उपकरण कुछ समय के लिए बंद कर दिया जाना था।
इस घटना से रेडिएशन के कारण लगभग 4000 लोगों की मौत हो गई।
परिवहन दुर्घटनाएं -:
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सड़क परिवहन न केवल मानवीय जीवन को सरल बनाने में उपयोगी है बल्कि यह हमारी औद्योगिक तथा आर्थिक विकास में भी सहायक है, किंतु वर्तमान में सड़क दुर्घटना एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है क्योंकि सड़क दुर्घटना से भारत में प्रतिवर्ष लगभग 1.5 लाख लोगों की मौत हो जाती है इस आधार पर लगभग 9000 लोगों में से 1 व्यक्ति की मौत सड़क दुर्घटना से होती है।
सड़क दुर्घटना के कारण-:
सड़कों का असुरक्षित होना-:
हमारे देश की सड़कों में काफी ज्यादा गड्ढे होते हैं घाटीदार मुड़ाव होते हैं जो सड़क दुर्घटना का एक प्रमुख कारण है।
व्यस्त जीवन शैली-:
आधुनिक जीवन शैली काफी ज्यादा तीव्र होगी प्रत्येक व्यक्ति तेज रफ्तार से शीघ्रता के साथ गंतव्य स्थल में पहुंचना चाहता है जिसके कारण बहुत तेज गति से गाड़ी चलाता है जो सड़क दुर्घटना का सबसे प्रमुख कारण है।
औद्योगीकरण एवं नगरीकरण-:
वर्तमान में औद्योगीकरण एवं नगरीकरण बढ़ता जा रहा है जिससे वाहनों की संख्या में भी वृद्धि हुई है जो भी सड़क दुर्घटना का एक प्रमुख कारण है।
प्राकृतिक कारण-:
सड़कों में आवारा पशु-पक्षी आ जाने या वर्षा तथा कोहरा जैसी स्थिति होने के कारण भी सड़क दुर्घटना हो जाती हैं।
लोगों में जागरूकता का अभाव
शराब पीकर गाड़ी चलाना।
हेलमेट लगाकर गाड़ी ना चलाना।
वाहन चलाते समय मल्टीटास्किंग करना।
ट्राफिक के नियमों का पालन न करना।
सड़क दुर्घटना के नियंत्रण के उपाय-:
सुरक्षित सड़कों का विकास किया जाए जैसे-
सड़कों में गड्ढा ना हो,
सड़क कम घुमावदार हो,
सड़कों में संकेतक लगे हो,
बड़े वाहनों के लिए प्रत्येक क्षेत्र में बाईपास रोड बनाया जाए।
अलग-अलग स्थानों पर वहां की परिस्थिति के अनुसार वाहनों की स्पीड निश्चित की जाए तथा निर्धारित की स्पीड से तेज गति पर वाहन चलाने पर शक्त कार्रवाई की जाए।
उच्च सुरक्षा वाले वाहनों को ही सड़क पर चलाने की अनुमति दी जाए।
सड़कों पर घूमने वाली आवारा पशुओं को उचित संरक्षण दिया जाए।
लोगों को यातायात के नियमों के बारे में शिक्षित प्रशिक्षित किया जाए।
हाल ही में सितंबर 2019 को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मोटर व्हीकल एक्ट 2019 पास किया गया है।
भगदड़-:
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सामान्यतः भीड़भाड़ वाले इलाकों में किसी प्रकार की अफवाह फैलने पर उपस्थित लोग उस स्थान से बाहर निकलने के लिए भागदौड़ करते हैं जिसे भगदड़ कहा जाता है।
भगदड़ से अनेक लोग घायल हो जाते हैं तथा अनेकों लोग दब जाते हैं जिससे उनकी मृत्यु तक हो जाती है।
जैसे- 2013 में इलाहाबाद कुंभ का मेला में मची भगदड़।
उज्जैन त्रासदी 1996।
उज्जैन त्रासदी 1996-:
15 जुलाई 1996 को मोनी अमावस्या के दिन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के गर्भ गृह में संकरे द्वार पर अनियंत्रित भीड़ जमा होने के कारण भगदड़ मच गई जिससे लगभग 40 श्रद्धालुओं की मौत हो गई और अनेकों लोग घायल हो गए।
इलाहाबाद महाकुंभ की भगदड़ 2013-:
2013 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जंक्शन में कुंभ का मेला होने के कारण लगभग 2000000 लोगों की भीड़ एकत्रित हो गई और उसी समय किसी ने रेलवे के पैदल पुल टूटने की दहशत फैला दी जिससे लोगों में भगदड़ मच गई।
इस घटना से लगभग 39 लोग गंभीर रूप से घायल हुए और 36 लोगों की मौत हो गई।
जैविक आपदाएं
जैविक घटकों के कारण जो आपदाएं आती हैं उन्हें जैविक आपदाएं कहते हैं, जैसे-: कोविड-19, बर्ड फ्लू स्वाइन फ्लू का प्रकोप, हैजा का प्रकोप।
महामारी-:
जब कोई बीमारी कई देशों के व्यापक क्षेत्र में फैल जाती है तथा उसे नियंत्रित करना मुश्किल होता है तो उसे महामारी कहा जाता है।
जैसे-: कोविड-19।
इसे 11 मार्च 2020 को महामारी घोषित किया गया।
व्यापकता के आधार पर बीमारी के प्रकार-:
Endemic-: जब कोई बीमारी सीमित क्षेत्र (जिला एवं राज्य स्तर पर) में फैलती है तथा उसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। तो उसे एंडेमिक कहते हैं। जैसे- चिकन पॉक्स ,टीवी, मलेरिया।
Epidemic-; जब कोई बीमारी किसी क्षेत्र राज्य या देश स्तर पर तीव्र गति से फैलती है तथा उस पर नियंत्रण करना काफी मुश्किल होता है, तो उसे एपिडेमिक कहते हैं।
जैसे-: चिकनगुनिया, डेंगू बुखार, अफ्रीका में इबोला वायरस।
Pandemic-:
जब कोई बीमारी संपूर्ण विश्व के विभिन्न देशों में फैल जाती है और उस पर नियंत्रण पाना काफी मुश्किल होता है तो उसे पेनडेमिक कहते हैं, जैसे- कोविड-19।
महामारी के कारण-:
निम्न कारणों से कोई भी संक्रमित बीमारी महामारी का रूप ले सकती हैं-:
स्वच्छता का उचित प्रबंधन ना होना।
दूषित जल दूषित खाद्य पदार्थों को ग्रहण किया जाना ,कुपोषण की समस्या होना।
विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाल चक्रवात भूकंप आदि के कारण दबे मलबे के सड़ने के परिणाम स्वरुप।
बदलते मौसम के समय रोगाणुओं की प्रजनन दर अधिक होने के कारण।
सार्वजनिक स्थानों में अधिक भीड़ होने के कारण।
कोरोना महामारी
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