[सामुदायिक आपदा प्रबंधन]

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[सामुदायिक आपदा प्रबंधन]

सामुदायिक भागीदारी या सहयोग पर आधारित आपदा प्रबंधन सामुदायिक आपदा प्रबंधन कहलाता है। 

सामुदायिक आपदा प्रबंधन के अंतर्गत संभावित आपदा से निपटने के लिए सामुदायिक योजना का निर्माण, संसाधन मानचित्रण, सुरक्षित निर्माण

 वैकल्पिक संचार तथा जीवन रक्षा हेतु दक्षता शामिल होता है। 

सामुदायिक योजना-:

समुदाय की योजना का तात्पर्य समुदाय की भागीदारी या आपसी सहयोग पर आधारित ऐसी योजना से है,जो किसी आगामी आपदा या दुर्घटना से निपटने या उसको नियंत्रित करने के लिए बनाई जाती है। 

सामुदायिक योजना के अंतर्गत समुदाय भागीदारी के आधार पर यह निर्धारित किया जाता है कि आपदा के दौरान, समुदाय के लोग आपदा की प्रतिक्रिया किस प्रकार से देंगे जैसे-: कौन क्या करेगा? कब करेगा?किस प्रकार से करेगा? क्या नहीं करेगा? , 

उदाहरण के लिए-:

किसी आगामी बाढ़ से निपटने के लिए समुदाय की भागीदारी के आधार पर यह योजना बनाना कि बढ़ाने के दौरान, सभी लोग ऊंचे स्थान पर जाएंगे, जो लोग निचले स्थान पर फंसे हुए हैं उन्हें पूर्व सैनिक या सक्रिय युवा बचा कर लायेंगे, के साथ लो अपने खाद्यान्न को उचित स्थान पर ले जाकर सभी लोगों के लिए खाद्यान्न उपलब्ध करवाएंगे, चिकित्सक वर्ग चिकित्सा सेवा देगा आदि। 

समुदायिक योजना की आवश्यकता/महत्व-:

किसी भी आगामी आपदा का प्रबंधन करने के लिए सामुदायिक योजना अत्यंत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि

  • किसी भी क्षेत्र की आपदा का प्रभावी प्रबंधन करने के लिए उस क्षेत्र की ताकत एवं कमजोरियों का ज्ञान होना आवश्यक होता है, जिसकी सटीक जानकारी उस क्षेत्र के स्थानीय निवासियों को होती है। 

  • आपदा के दौरान समुदाय के लोग, आपदा प्रबंधन टीम पहुंचने के पहले ही तुरंत जवाबी कार्रवाही कर सकते हैं।  

  • आपदा के दौरान राहत एवं बचाव के लिए बड़े स्तर पर कार्य-बल की आवश्यकता होती है, जिसकी पूर्ति समुदाय के लोग कर सकते हैं। 

  • आपदा से निपटने के लिए विभिन्न संसाधनों जैसे खाद्यान्न, स्वच्छ जल, तकनीकी उपकरणों की आवश्यकता होती है जो समुदाय योजना के माध्यम से समुदाय के लोगों से प्राप्त हो सकते हैं। 

  • सामुदायिक योजना किसी भी आपदा के दुष्प्रभाव को न्यूनतम करने में सहायक होती है क्योंकि सहायक योजना के अंतर्गत लोगों को आपदा से बचने का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। 

  • इसके अतिरिक्त सामुदायिक योजना लोगों में आगामी आपदा का भय कम करने तथा आपसी एकजुटता बढ़ाने में सहायक है। 

सामुदायिक योजना निर्माण के चरण-:

आपदा प्रबंधन की जागरूकता-:

सर्वप्रथम जनसभाओं का आयोजन करके, स्थानीय लोगों को आगामी आपदा के स्वरूप एवं उसके दुष्प्रभावों से अवगत कराना ताकि आपदा प्रबंधन के प्रति जागरुक हो सके। 

ग्रामीण आपदा प्रबंधन समिति का गठन-:

प्रत्येक आपदा संवेदनशील क्षेत्र में स्थानीय लोगों की भागीदारी पर आधारित ग्रामीण आपदा प्रबंधन समिति का गठन करना जिसमें निम्न लोग शामिल हों-

  • स्थानीय प्रतिनिधि

  • अनुभवी एवं वरिष्ठ नागरिक

  • स्थानीय स्तर के सरकारी कर्मचारी

  • युवा क्लब एवं स्व सहायता समूह के सदस्य

  • गैर सरकारी संगठनों के सदस्य। 

संभावित आपदा की रूपरेखा बनाना-:

स्थानीय लोगों के सहयोग से विचार विमर्श करके संभावित आपदा से निपटने रूपरेखा तैयार करना। 

इसके अंतर्गत पूर्व में आई आपदा की समीक्षा करना, आपदाओं के बारे में मौसम संबंधी कैलेंडर बनाना, आपदा से निपटने की रणनीति तैयार करना आदि शामिल है। 

संसाधन मानचित्रण-:

आपदा से निपटने के लिए सामुदायिक योजना में संसाधन मानचित्रण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है , क्योंकि संसाधन मानचित्र के द्वारा स्थानीय लोगों को आपदा प्रबंधन के सभी उपयोगी संसाधनों तथा सुरक्षित और आज सुरक्षित स्थानों की जानकारी हो जाती है जो सभी स्थानीय लोगों को आपदा के दुष्प्रभाव से बचाने में सहायक है।  

संसाधन मानचित्रण के अंतर्गत विभिन्न संसाधनों का मानचित्रण तैयार किया जाता है जिसमें से कुछ प्रमुख संसाधन निम्नलिखित हैं

  • भौतिक संसाधनों का मानचित्रण-: इसके अंतर्गत क्षेत्र के सभी भौतिक संसाधन जैसे- पर्वत ,पठार ,मैदान, नदी ,सड़क एवं सार्वजनिक स्थलों को मानचित्र के रूप में दर्शाया जाता है। 

  • सामाजिक मानचित्र-: इसके अंतर्गत कच्चे-पक्के मकानों अन्य सामाजिक संरचना जैसे- स्कूल ,मंदिर ,मस्जिद ,पीने के पानी की व्यवस्था ,चिकित्सालय संचार व्यवस्था, को मानचित्र के रूप में दर्शाया जाता है। 

  • सुरक्षित और असुरक्षित स्थलों का मानचित्र-: इसके अंतर्गत मानचित्र में यह दर्शाया जाता है कि आपदा के दौरान आपदा से बचने के लिए कौन सा स्थल सुरक्षित है कौन सा स्थल असुरक्षित है। 

  • सुरक्षित एवं वैकल्पिक मार्गों का मानचित्र-: इसके अंतर्गत आपदा से बचने के लिए वैकल्पिक या सुरक्षित मार्ग मानचित्र में दर्शाया जाता है। 

आपदा प्रबंधन दलों का निर्माण-:

समुदाय की योजना के अंतर्गत आपदा के दौरान, राहत एवं बचाव कार्य करने के लिए विभिन्न आपदा प्रबंधन दलों का निर्माण किया जाता है, जैसे-:

  • आपदा में फंसे लोगों को बचाने के लिए स्थानीय स्थानीय पुलिसकर्मियों, तैराकों, भूतपूर्व सैनिकों का दल। 

  • आपदा से प्रभावित लोगों को चिकित्सीय सहायता देने के लिए नर्स व डॉक्टरों का दल।

  • आपदा के कारण मानसिक आघात के निवारण के लिए परामर्श दल। 

  • आपदा के दौरान खाद्यान्न एवं स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति करने वाला दल। 

प्रशिक्षण-: 

सामुदायिक योजना के अंतर्गत आगामी आपदा से बचने एवं दूसरों को बचाने के लिए सभी लोगों को आपदा प्रशिक्षण भी दिया जाता है जिसमे साधारण प्रशिक्षण के साथ साथ मॉक ड्रिल प्रशिक्षण भी शामिल होता है। 

सामुदायिक आपदा प्रबंधन की चुनौतियां-:

सामुदायिक आपदा प्रबंधन के लिए सभी समुदाय के लोगों में आपसी सहयोग होना आवश्यक है किंतु भारत में विभिन्न कारणों से लोगों में एकजुटता नहीं रहती जो सामुदायिक आपदा प्रबंधन की प्रमुख चुनौतियां हैं,

जैसे-: 

  • जातिगत भेदभाव के कारण समाज के विभिन्न समुदायों में आपसी वाद विवाद होना।

  • ग्रामीण क्षेत्रों में ऊंच-नीच एवं छुआछूत की भावना होना। 

  • लोगों के अंदर सहयोग की भावना किस स्थान पर स्वार्थ की भावना होना। 

 इन चुनौतियों की अतिरिक्त प्रशासनिक क्रियाशीलता में कमी तथा आपदा प्रबंधन में लगे लोगों को पर्याप्त वित्त न मिल पाना भी सामुदायिक आपदा प्रबंधन की प्रमुख चुनौतियां हैं। 

आपदा प्रबंधन में एनजीओ की भूमिका-:

गैर-लाभकारी संगठन ऐसे संगठन होते हैं जो लाभ के लिए नहीं बल्कि समुदाय के सहयोग तथा सामाजिक सहायता के लिए कार्य करते हैं, और आपदा प्रबंधन भी एक प्रमुख सामाजिक सहयोग है अतः आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में एनजीओ की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिसे निम्न बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता है-:

  • एनजीओ स्थानीय स्तर पर शोध करके आपदा प्रबंधन की रणनीति बनाने तथा आपदा प्रबंधन से संबंधित उपयुक्त आंकड़े जुटाने में सहायक है। 

  • एनजीओ पर लोगों की विश्वसनीयता होती है अतः एनजीओ आपदा प्रबंधन के लिए सामुदायिक सहयोग प्राप्त करवाने में सहायक सिद्ध होते हैं। 

  • एनजीओ समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा स्थानीय लोगों को आपदा से बचने के लिए उपयोगी प्रशिक्षण दे सकते हैं। 

  • एन जी ओ स्थानीय क्षेत्र सभी लोगों तक उपलब्ध खाद्य सामग्री तथा पेयजल और आवश्यक दवाइयां पहुंचा सकते हैं।

वैकल्पिक संचार प्रणाली-:

आपदा के दौरान आपदा पीड़ितों की सहायता करने वाले लोगों (एनडीआरएफ टीम, प्रशासनिक अधिकारियों) के मध्य संचार संपर्क चालू रखना नितांत आवश्यक है ताकि सही संसाधन का प्रयोग सही स्थान वाह सही समय पर करके अधिकतम लोगों को बचाया जा सके, किंतु बाढ़, भूकंप ,चक्रवात ,भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान परंपरागत संचार प्रणाली बाधित हो जाती है क्योंकि सिग्नल भेजने वाले टावर तथा संचार सेवा देने वाली केबल्स ध्वस्त हो जाती हैं, ऐसी स्थिति में परंपरागत संचार प्रणाली के स्थान पर वैकल्पिक संचार प्रणाली की आवश्यकता होती है। 

वैकल्पिक संचार प्रणाली के साधन-:

आपदा के समय, जब परंपरागत संचार प्रणाली ध्वस्त हो जाती है तो संचार संपर्क बनाए रखने के लिए निम्न साधनों का उपयोग किया जाता है-:

रेडियो संचार-:

इसके अंतर्गत सबसे अधिक वेवलेंथ वाली रेडियो तरंगों का प्रयोग करके एक सीमित क्षेत्र में संचार नेटवर्क बनाकर, संचार संपर्क किया जाता है, जैसे-: वॉकी टॉकी ,हैम रेडियो का प्रयोग करके संचार स्थापित करना। 

सेटेलाइट संचार प्रणाली-:

इसके अंतर्गत अंतरिक्ष में स्थापित सेटेलाइट के माध्यम से संचार संपर्क किया जाता है जैसे- सेटेलाइट फोन द्वारा संचार संपर्क स्थापित करना।  

सुरक्षित निर्माण-:

सुरक्षित निर्माण का तात्पर्य आपदा के प्रकोप को कम करने के लिए, आपदा रोधी अवसंरचनाओं व इमारतों के निर्माण से है। 

क्योंकि भूकंप, भूस्खलन ,चक्रवात तथा बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रकोप से विभिन्न इमारतें ध्वस्त हो जाती हैं जिसके कारण जान तथा माल की हानि होती है अतः इन आपदाओं के प्रभाव को न्यूनतम करने के लिए, सुरक्षित अवसंरचनाओं का निर्माण आवश्यक है। और विभिन्न आपदाओं से निपटने के लिए सुरक्षित निर्माण की तकनीक अलग-अलग होती हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है-:

भूकंप रोधी सुरक्षित निर्माण-:

भूकंप के दौरान धरातल पर तिरंगे उठने लगती हैं जिसके प्रभाव से इमारतों में हलचल होती है और इमारतें ध्वस्त हो जाती है, अतः भूकंप के प्रभाव को न्यूनतम करने के लिए इमारतों का निर्माण निम्न तकनीक से किया जाना चाहिए-:

  • इमारतों का नक्शा आयताकार होना चाहिए। 

  • इमारतों का बेस बहुत गहरा एवं मजबूत होना चाहिए। 

  • इमारतों की कॉलम कंक्रीट की होनी चाहिए। 

  • जहां तक हो सके तो इमारतें T,L,U,X अकड़ के नक्शों की बनाई जानी चाहिए। 

  • जहां तक संभव हो सके तो इमारतों की सभी दीवारों एवं छतों को लोहे के एक मजबूत बैंड से जोड़ा जाना चाहिए। 

  • इनके अतिरिक्त भारतीय मानक 2002 द्वारा निर्धारित किए गए अन्य भूकंप रोधी मांगों को अपनाकर इमारतें बनाना चाहिए। 

.भूकंप रोधी सुरक्षित निर्माण-:

बाढ़ रोधी सुरक्षित निर्माण-:

बाढ़ के प्रभाव से इमारतों के ध्वस्त होने की घटना को न्यूनतम करने हेतु,

  • बाढ़ संक्रमण गलियारों से कम से कम ढाई सौ मीटर दूर ही इमारतें बनानी चाहिए। 

  • अपेक्षाकृत ऊंचे स्थान पर घर बनाना चाहिए,

  • इमारतों का बेस (नींव)बहुत गहरा ,मजबूत एवं ऊंचा होना चाहिए। 

  • इमारतों की कॉलम कंक्रीट की होनी चाहिए, ना कि घास-फूस या मिट्टी की। 

  • घरों के निर्माण में आधुनिकतम रोधी तकनीक का उपयोग किया जाना चाहिए जैसे- घरों के देश में “एयरसेल” का उपयोग।  

भूस्खलन रोधी सुरक्षित निर्माण-:

जमीन का खिसकना भूस्खलन कहलाता है और जमीन के खिसकने से उस पर बनी इमारतें ध्वस्त हो जाती हैं, अतः भूस्खलन के प्रभाव को नियंत्रण करने के लिए नई तकनीकों का प्रयोग किया जाना चाहिए-:

  • इमारतों का निर्माण समतल मैदानी क्षेत्र में किया जाना चाहिए ना की ढलान वाले क्षेत्र में। 

  • घरों के आसपास अधिक अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए ताकि, आसपास की जमीन बंधी ही रहे और भूस्खलन का दुष्प्रभाव कम से कम हो। 

  • इमारतों का बेस अधिक मजबूत एवं गहरा होना चाहिए ताकि छोटे-मोटे भूस्खलन से इमारतें ध्वस्त ना हों। 

  • आसपास के बहते पानी की निकासी की पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि वह जल एकत्रित होकर भूस्खलन का कारण ना बने। 

चक्रवात रोधी इमारतें-:

चक्रवात के दुष्प्रभाव से इमारतों को ध्वस्त होने से बचाने के लिए,

  • इमारतों का निर्माण ऊंचे स्थान पर किया जाना चाहिए,

  • इमारतों का बेस काफी मजबूत एवं गहरा होना चाहिए,

  • इमारतों का आकार आयताकार ना होकर गोलाकार होना चाहिए। 

  • घर का डिजाइन इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि हवा आर पार हो जा सके। 

  • घरों का डिजाइन नुकीला तथा हवा की दिशा के अनुकूल होना चाहिए। 

  • ज्यादा ऊंची इमारतें नहीं बनाना चाहिए। 

  • इमारतों के आसपास वृक्षारोपण करना चाहिए,ताकि हवा का पूरा दबाव सीधे इमारतों पर ना पड़े। 

[जीवन रक्षा हेतु दक्षता]

सामान्यत: प्राकृतिक आपदाएं मानव के नियंत्रण से बाहर होती हैं अतः उन्हें रोका तो नहीं जा सकता है, किंतु स्थानीय लोगों को प्राकृतिक आपदा का सामना करने या उससे बचने का प्रशिक्षण देकर, आपदा के दुष्प्रभाव को न्यूनतम किया जा सकता है। 

अर्थात किसी भी आपदा के दुष्प्रभाव को न्यूनतम करने के लिए, यह आवश्यक है कि स्थानीय लोगों को आपदाओं से बचने के लिए, जीवन रक्षा का प्रशिक्षण दिया जाए, ताकि वे आपदा के दौरान स्वयं के जीवन की तथा आस-पड़ोस के असहाय व्यक्तियों के जीवन की रक्षा कर सकें। 

आपदा प्रशिक्षण आवश्यकता-:

  • आपदा के दौरान एनडीआरएफ टीम की अनुपस्थिति में भी आपदा का उपयुक्त तरीके से सामना करने हेतु। 

  • आपदा के दौरान आसपास के लोगों को आपदा से बचाकर अधिकतम लोगों के जीवन की रक्षा हेतु। 

  • आपदा के प्रबंधन के लिए आवश्यक कुशल मानव शक्ति की पूर्ति हेतु। 

  • लोगों के अंदर आगामी आपदा के भय को कम करने हेतु,

आपदा के दौरान क्या करें?

  • सर्वप्रथम असुरक्षित स्थान से सुरक्षित स्थान की ओर जाएं, जैसे भूकंप की स्थिति में खुले मैदान की ओर आग की स्थिति में हरियाली क्षेत्र की ओर बाढ़ की स्थिति में ऊंचे टीले की ओर।  

  • संबंधित आपदा के बारे में एनडीआरएफ टीम ,एंबुलेंस, फायर बिग्रेड, पुलिस को सूचित करें। 

  • यदि संभव हो सके तो संबंधित आपदा के कारण को समाप्त करने का प्रयास करें जैसे- आग लगने पर अग्निशामक यंत्र का उपयोग, करंट लगने पर स्विच बंद करना, बाढ़ की स्थिति में पानी निकलने का रास्ता खोलना। 

  • चिकित्सक के आने तक घायल व्यक्ति को जीवित रखने के लिए मूलभूत उपाय करें जैसे- यदि घायल व्यक्ति का खून बह रहा है तो उसे रक्तस्राव के स्थान को बांधकर उसे बंद करें, यदि सांस नहीं चल रही हो तो कृत्रिम सांस दें, हृदय की धड़कन बंद हो गई हो तो सीपीआर दें। 

  • सरकारी या एनडीआरएफ टीम के सुझावों का अनुपालन करें। 

बाढ़ के समय सावधानी?

  • यदि पानी आने वाली है तो सभी आवश्यक डॉक्यूमेंट तथा आपातकालीन आपूर्तिया जैसे- स्वच्छ पानी, टॉर्च, प्राथमिक उपचार किट आदि को एक पेटी में रखकर उसे अपने साथ रखें। 

  • बिजली का स्विच व गैस लाइन बंद कर दें। 

  • यदि बाढ़ आ गई हो तो,मजबूत खंबे के पास उसको खड़े हो जाएं,

  • रेडियो सुनते रहे तथा चेतावनी मिलने पर घर से बाहर उनके स्थान पर जाने का प्रयास करें। 

  • यदि बाल की दवा पानी पीने की व्यवस्था ना हो तो बरसात के पानी को उबाल कर पीएं। 

भूकंप के समय क्या करें क्या ना करें?

यदि घर के अंदर हैं तो-

  • घर के किसी कोने में किसी मजबूत डेक्स या अन्य मजबूत लोहे की वस्तुओं के नीचे छिप जाएं,

  • खिड़की, दरवाजे या विद्युत सप्लाई बोर्ड से दूर रहें। 

  • यदि लेटे हैं तो सिर के ऊपर तकिया एवं पल्ली ओढ़ लें। 

यदि वाहन में हैं तो,

  • वाहन से उतरकर खुले स्थान में खड़े हो जाएं। 

  • किंतु यदि आसपास खुला स्थान नहीं है तो उस बहन को बंद करके वाहन में ही बैठे रहें। 

आग लगने के दौरान सावधानी-:

  • सबसे पहले इमरजेंसी गेट से घुटनों के बल निकलने का प्रयास करें। ताकि आपकी धुंआ से सांस लेने में दिक्कत ना हो। 

  • यदि संभव हो सके तो अग्निशामक यंत्र से आग को बुझाने का प्रयास करें। 

  • यदि कपड़ों में आग लगती हो तो उसे पानी डालकर हो जाएं अन्यथा बार-बार लुढ़कते रहे ताकि आप बुझ जाए। 

  • आग लगने के दौरान ऊपर की ओर ना चड़े ना ही लिफ्ट का प्रयोग करें। 

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