स्वास्थ्य से संबंधित विभिन्न आयाम एवं स्वच्छता

[स्वास्थ्य]

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[स्वास्थ्य]

स्वास्थ्य का तात्पर्य केबल रोगों से मुक्त होना नहीं है बल्कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार “स्वास्थ” व्यक्ति की वह पूर्ण स्थिति है, जिसमें वह व्यक्ति शारीरिक ,मानसिक एवं सामाजिक रूप से दुरुस्त होता है। 

अर्थात स्वास्थ्य का तात्पर्य शारीरिक एवं मानसिक एवं सामाजिक बाधाओं(समस्याओं) की मुक्ति से है।

स्वास्थ्य एक सापेक्षिक अवधारणा है क्योंकि संस्कृति सामाजिक समूह एवं आयु वर्ग के अनुरूप में स्वास्थ्य के मानदंड भी परिवर्तित हो जाते हैं। 

उदाहरण के लिए 10 वर्ष के बालक के लिए 30 किलोग्राम वजन होना स्वस्थ माना जाएगा किंतु यदि 20 वर्ष की आयु का बालक मात्र 30 किलोग्राम का है तो वह अस्वस्थ माना जाएगा। 

अच्छे स्वास्थ्य के लक्षण-: 

  • एक स्वस्थ व्यक्ति प्रसन्न , सक्रिय एवं प्रतिक्रियाशील होता है। 

  • स्वस्थ व्यक्ति का अपनी भावनाओं पर नियंत्रण होता है एवं वह अपनी आकांक्षाओं लक्ष्य और विचारों के मध्य संबंध बैठा पाता है। 

  • स्वस्थ व्यक्ति में आत्मविश्वास एवं सहयोग की भावना रहती। 

  • स्वस्थ व्यक्ति जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है।

  • स्वस्थ व्यक्ति का पूर्ण शारीरिक विकास होता है उसमें ठिगनापन या दुबलेपन जैसी समस्या नहीं होती। 

स्वास्थ्य के संकेतक

  • जीवन प्रत्याशा-: जीवन प्रत्याशा अधिक होने का अर्थ है कि देश में स्वास्थ व्यवस्था अच्छी स्थिति में है।  

  • प्रति लाख जनसंख्या पर अस्पतालों एवं अस्पतालों में अवसंरचना की स्थिति-: 

  • प्रति लाख जनसंख्या पर चिकित्सकों की संख्या-: 

  • शिशु एवं मातृ मृत्यु दर-: यदि अधिक है तो इसका अर्थ है कि देश में स्वस्थ व्यवस्था की स्थिति खराब है

व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक-: 

  • संतुलित आहार, या पोषण की स्थिति। 

  • आसपास के वातावरण में स्वच्छता की स्थिति।   

  • व्यायाम या योग का अभ्यास। 

  • नियमित नींद या आराम की मात्रा। 

  • धूम्रपान या नशा का सेवन। 

  • सामाजिक संबंध या सामाजिक वातावरण। 

सार्वजनिक स्वास्थ्य-: 

सार्वजनिक स्वास्थ्य का तात्पर्य देश की समस्त जनता के स्वास्थ्य से है। 

सार्वजनिक स्वास्थ्य के अंतर्गत 

समस्त जनता को वहनीय कीमतों पर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने

तथा एपिडेमिक या पेंडेमिक स्तर के रोंगों का निदानात्मक या उपचारात्मक प्रबंध करने का कार्य किया जाता है 

जैसे -:कोरोना महामारी का निदानात्मक प्रबंध करना। 

नैदानिक चिकित्सा-: 

नैदानिक चिकित्सा का तात्पर्य किसी एक मरीज के रोगों का उपचार करने से है। 

जैसे-: किसी एक मरीज का पथरी का ऑपरेशन करना। 

भारत एवं मध्य प्रदेश में जन स्वास्थ्य की स्थिति-:

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 47 में भीा गया है कि-: राज्य का यह कर्तव्य होगा कि वह लोगों के जीवन स्तर, पोषण आहार स्तर तथा लोक स्वास्थ्य में अभिवृद्धि करें एवं मादक पदार्थों के उपयोग पर रोक लगाए।  किंतु भले ही भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गया हो लेकिन जब स्वास्थ्य की बात आती है तो भारत बहुत ही नीचे पायदान पर खड़ा मिलता है। 

भारत में एवं मध्य प्रदेश में जन स्वास्थ्य की स्थिति या चुनौतियां-

  1. पर्याप्त स्वास्थ्य संस्थाओं का अभाव-: 

मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य संस्थाओं की काफी ज्यादा कमी है मानक के अनुसार समतल क्षेत्रों में प्रत्येक 5000 की जनसंख्या पर एक उप स्वास्थ्य केंद्र 30,000 की जनसंख्या पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 120000 की जनसंख्या में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किया जाना चाहिए तथा पर्वतीय जनजातीय क्षेत्रों में प्रत्येक 3000 की जनसंख्या पर उप स्वास्थ्य केंद्र 20000 की जनसंख्या पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा 80000 की जनसंख्या पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किया जाना चाहिए 

.मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य संस्थाओं

किंतु मध्यप्रदेश की लगभग 8 करोड जनसंख्या में मात्र 330 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र 1203 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 10226 उप स्वास्थ्य केंद्र हैं। 

  1. स्वास्थ्य संस्थाओं में आधारभूत संरचना की कमी-:

भारत में एक तो स्वास्थ्य संस्थाओं की कमी है और यदि स्वस्थ संस्थाएं हैं अभी तो उन स्वास्थ्य संस्थाओं में पर्याप्त अधोसंरचना की कमी है ,जैसे -लैबोरेट्री ,मेडिसिन ,बिस्तर आदि की कमी।

  • भारत में लगभग 1700 व्यक्तियों की जनसंख्या पर एक बेड(सरकारी + निजी =अस्पतालों में कुल 10 लाख बेड) है। जबकि चीन में 1000 जनसंख्या पर 4.2 बेड अमेरिका में 1000 जनसंख्या पर 2.8 बेड हैं। 

  1. चिकित्सकों की संख्या में कमी-:

भारत में चिकित्सकों की भी काफी ज्यादा कमी है,

  •  दिसंबर 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 10 लाख एलोपैथिक डॉक्टर भारतीय चिकित्सा परिषद में रजिस्टर्ड थे, किंतु इनमें से सरकारी डॉक्टरों की संख्या लगभग 150000 थी।  अर्थात भारत में लगभग 11000 जनसंख्या में औसतन रूप से एक सरकारी डॉक्टर है जबकि डब्ल्यूएचओ के अनुसार 1000 जनसंख्या पर एक डॉक्टर होना चाहिए। 

  • और यदि हम सामान्य (निजी प्लस  सरकारी)डॉक्टरों की बात करें तो प्रति 1000 जनसंख्या पर 0.7 डॉक्टर उपलब्ध है जबकि वैश्विक स्तर पर प्रति 1000 जनसंख्या पर 1.3 डॉक्टर उपलब्ध है। 

  • भारत के 8% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त  डॉक्टर एवं मेडिकल स्टाफ नहीं है तथा 39% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में लैब टेक्नीशियन की नहीं है

  • मानक के अनुसार एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 4 विशेषज्ञों का होना आवश्यक है किंतु वर्ष 2017 के अंत तक भारत के कुल 5624 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में केवल 4156 विशेषज्ञ डॉक्टर ही मौजूद थे, अर्थात सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में लगभग 81.6% विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है

  1. महंगी स्वास्थ्य सेवाएं-: 

हमारे देश में निजी स्वास्थ्य संस्थान व्यवसाय रूप लेते जा रहे हैं जो स्वास्थ्य के बदले मरीजों से भारी मात्रा में रकम वसूल करते हैं यथा सरकारी चिकित्सालय में भी लगभग 86% लोगों को अपनी जेब से ही चिकित्सा व्यय चुकाना पड़ता है। हालांकि इस दिशा में आयुष्मान भारत जैसी महायोजना उल्लेखनीय कदम है। 

  1. जीवन प्रत्याशा एवं शिशु मृत्यु दर-: 

किसी देश के लोगों का औसत जीवनकाल जीवन प्रत्याशा कहलाता है भारत में जीवन प्रत्याशा 68 वर्ष है। जो काफी कम है क्योंकि जापान जैसे देशों में जीवन प्रत्याशा लगभग 84 वर्ष है। 

वही उपयुक्त डिलीवरी की सुविधा ना होने के कारण भारत में शिशु मृत्यु दर तथा मातृ मृत्यु दर अधिक है भारत में शिशु मृत्यु दर 29 प्रति हजार जीवित जन्म है वही मध्यप्रदेश में 48 प्रति हजार जीवित जन्म है। 

जबकि भारत की  मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख जन्मों पर 122 है और मध्य प्रदेश में 173 है। 

  1. कुपोषण का स्तर

भारत की लगभग 40% बच्चे कुपोषित हैं।

मध्य प्रदेश की मानव विकास रिपोर्ट के परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार केवल 5% महिलाएं ही रोज फल खा पाते हैं। 

  1. संस्थागत प्रसव-: 

 मध्य प्रदेश में लगभग 65% प्रसव ही संस्थागत होते हैं। 

भारत एवं मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य की दुर्दशा के कारण-:

  • चिकित्सा पर कम व्यय किया जाना। –: डब्ल्यूएचओ के अनुसार स्वास्थ्य पर जीडीपी का 5% खर्च किया जाना चाहिए किंतु भारत ने स्वास्थ्य पर जीडीपी का मात्र 1.5% ही खर्च किया जाता है जिस कारण से स्वास्थ्य केंद्रों एवं उनमें अधोसंरचना की कमी रहती है। 

हालांकि नई स्वास्थ्य नीति-2017 के तहत स्वास्थ्य पर जीडीपी का 2.5% व्यय किए जाने का प्रावधान है। 

  • चिकित्सा शिक्षा की अनुपलब्धता के कारण चिकित्सकों की कमी-: भारत में गुणवत्तापूर्ण एवं पर्याप्त चिकित्सा शिक्षण संस्थानों की कमी, एवं समय पर चिकित्सकों की नियुक्ति ना होने के कारण अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी बनी रहती है वर्तमान में भारत में 11000 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर है जबकि 1000 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर होना चाहिए। 

  • जनसंख्या का अधिक होना -: भारत के मात्र 1 राज्य मध्य प्रदेश की जनसंख्या इटली की भी जनसंख्या से अधिक है अतः इतनी विशाल जनसंख्या के लिए स्वास्थ सुविधा करना मुश्किल होता है। क्योंकि स्वास्थ्य सुविधाएं तो बढ़ रही है लेकिन जनसंख्या उससे अधिक गति से बढ़ रही है। जिससे प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता कम होती जा रही हैं। 

  • चिकित्सकों द्वारा भ्रष्टाचार-: सरकारी चिकित्सक अधिकाधिक लाभ कमाने के लिए सरकारी चिकित्सालय के अतिरिक्त अपना निजी चिकित्सालय भी खोल लेते हैं और सरकारी चिकित्सालय में मरीजों का उपयुक्त इलाज नहीं करते ताकि वे उनके यहां आए, साथ ही सरकार द्वारा प्रदान की गई दवाइयों को बेचकर भी लाभ कमाते हैं। 

  • स्वास्थ्य योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन ना होना-:  स्वास्थ्य योजना के प्रभावी क्रियान्वयन ना होने के कारण अनेकों हितग्राहियों को लाभ नहीं मिल पाता, तथा उन्हें भारी पैसा देकर इलाज करवाना होता है जिससे भी गरीब हो जाते हैं, उदाहरण के लिए प्रसव हेतु परिवहन एवं उपचार योजना के लिए 1.03 करोड़ रुपए का बजट रखा गया था किंतु केबल 32लाख रुपए ही खर्च हो पाए। 

तथा इस योजना के अवलोकन के आधार पर निकाली गई रिपोर्ट के अनुसार 53% वास्तविक हितग्राही ऐसे थे जिन्हें इस योजना के बारे में जानकारी नहीं थी। 

  • स्वास्थ्य के प्रति सजगता में कमी

भारत के लोग स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीचिकित्सीय व्यय को बढ़ाकर , मानक स्तर पर स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना की जाए तथा उनमें पर्याप्त अधोसंरचना का विकास कियाल सजग नहीं रहते बीमार पड़ने के कुछ दिन बाद ही तब स्वास्थ्य केंद्र जाते हैं जब ज्यादा बीमार पड़ जाते हैं जिससे उनका खर्च अधिक आता है इसके अतिरिक्त अधिकांश लोग तो तांत्रिक विद्या के द्वारा बीमारी को खत्म करने का प्रयास करते हैं जो अवैज्ञानिक कदम होता है। 

  • नशाखोरी की समस्या-: धूम्रपान या नशा आदि के कारण व्यक्तियों को भयंकर बीमारियां हो जाती हैं जैसे कैंसर की बीमारी स्वसन तंत्र में बाधा। 

स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार हेतु सुझाव-: 

  • चिकित्सा व्यय को बढ़ाकर स्वास्थ्य केंद्र एवं उनमें अधोसंरचना का विकास विस्तार किया जाए। 

  • चिकित्सा शिक्षा में सुधार करके चिकित्सकों की समय पर नियुक्ति की जाए ताकि अस्पतालों में पर्याप्त एवं गुणवत्तापूर्ण चिकित्सकों की कमी ना हो। 

  • परिवार नियोजन के प्रति लोगों को जागरूक किया जाए ताकि पालक अपनी कम आय  के माध्यम से भी अपने बच्चों को पर्याप्त पोषण उपलब्ध करवा सकें और कुपोषण की समस्या ना हो। 

  • चिकित्सीय भ्रष्टाचार को रोकने के लिए चिकित्सा शिक्षा में नैतिकता की शिक्षा भी दी जाए साथ ही प्रत्येक अस्पताल का समय-समय पर प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा निरीक्षण किया जाए। 

  • लोगों को स्वास्थ्य के प्रति सजग बनाया जाए अर्थात उन्हें स्वाश्य शिक्षा दी जाये , उन्हें यह समझाया जाए कि जादू टोना से बीमारियां और भी बढ़ जाती हैं अतः बीमारी के बढने से पहले ही उसका अस्पतालों में जाकर इलाज करवाना चाहिए। 

  • स्वच्छता कार्यक्रमों के माध्यम से आसपास के वातावरण को स्वच्छ बनाया जाए, लोगों को व्यायाम एवं योग करने के लिए प्रेरित किया जाए, खतरनाक नशा एवं धूम्रपान आदि पूर्णता रोक लगाई जाए। 

  • सभी तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के लिए चलित अस्पताल का विकास का विस्तार किया जाए एवं मोहल्ला क्लीनिक की अवधारणा को व्यावहारिक रूप दिया जाए। 

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज-: 

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का तात्पर्य देश में रहने वाले सभी लोगों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाना है। 

भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रदायगी के स्तर-:

  • प्राथमिक स्तर

प्राथमिक स्तर का तात्पर्य आशा कार्यकर्ता, usha कार्यकर्ता, ANM द्वारा प्रदान की गई स्वास्थ्य सुविधाओं से है। 

  • द्वितीयक  स्तर

द्वितीय स्तर का तात्पर्य प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ,सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जिला अस्पतालों द्वारा प्रदान की गई स्वास्थ सुविधाओं से है। 

  • तृतीयक स्तर

रतिया के स्तर का तत्व राज्य अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों राष्ट्रीय अस्पतालों जैसे एम्स द्वारा प्रदान की गई स्वास्थ्य सेवाओं से है। 

भारत में स्वास्थ्य केंद्र का स्तर-:

  • उप स्वास्थ्य केंद्र

  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र

  • माध्यमिक स्वास्थ्य केंद्र

  • सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र

  • जिला अस्पताल

उप स्वास्थ्य केंद्र-: 

सामान्यता प्रत्येक 5000 से अधिक जनसंख्या वाले समतलीय, ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 3000 से अधिक जनसंख्या वाले पर्वतीय जनजातीय क्षेत्रों में एक उप स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की जाती है। 

उप स्वास्थ्य केंद्र में कम से कम एक एएनएम या महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता एवं एक पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्ता का होना अनिवार्य होता है

स्वास्थ्य केंद्र के कार्य-: 
  • सामान्य रोगों का इलाज करना। 

  • गर्भवती महिलाओं की जांच एवं प्रसव सुविधाएं देना। 

  • टीकाकरण एवं पल्स पोलियो अभियान चलाना।

  • सरकार द्वारा संचालित स्वास्थ्य संबंधी योजना एवं कार्यक्रमों की जानकारी लोगों को पहुंचाना तथा उनका क्रियान्वयन करना। 

  • लोगों के मध्य स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता बढ़ाना।

वर्तमान में मध्यप्रदेश में 10226 उप स्वास्थ्य केंद्र हैं। 

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र

प्रत्येक 30,000 से अधिक जनसंख्या वाले समतलीय ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 20 हजार से अधिक जनसंख्या वाले पर्वतीय जनजातीय क्षेत्रों में 1 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की जाती है। 

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में न्यूनतम एक मुख्य चिकित्सा अधिकारी तथा उसकी सहायता के लिए 14 पैरामेडिकल स्वास्थ्य कर्मचारी होना आवश्यक है। 

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के कार्य-: 
  • सामान्य रोगों के उपचार से संबंधित चिकित्सीय सेवा देना। 

  • गंभीर मामलों में प्राथमिक उपचार के बाद तुरंत मरीज उच्च सुविधा वाले स्वास्थ्य केंद्र में स्थानांतरित करना। 

  • गर्भवती महिलाओं की जांच एवं प्रसव सुविधा देना

  • स्थानीय स्तर पर फैलने वाली संक्रामक बीमारी की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण निरोधात्मक एवं उपचारात्मक उपाय अपनाना। 

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजनाओं का स्थानीय स्तर पर क्रियान्वयन करना। 

  • स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता फैलाना जैसे स्वच्छता की जागरूकता परिवार नियोजन की जागरूकता। 

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र-: 

सामान्यतः प्रत्येक120000 हजार से अधिक जनसंख्या वाले समतल क्षेत्रों में तथा 80,000से अधिक जनसंख्या वाले जनजातीय पर्वतीय क्षेत्रों में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की जाती है। 

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में न्यूनतम चार विशेषज्ञ चिकित्सक जैसे -: सर्जन ,फिजीशियन ,स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सक, बाल चिकित्सक एवं उनकी सहायता के लिए 21 पेरामेडिकल स्वास्थ्य कर्मचारी होना आवश्यक है। 

मध्य प्रदेश में वर्तमान में लगभग 334 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। 

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के कार्य-: 
  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र द्वारा रेफर किए गए मरीजों का इलाज करना। 

  • ऑपरेशन, एक्स-रे जैसी चिकित्सीय सुविधाएं देना। 

  • ……….।

जिला अस्पताल-: 

प्रत्येक जिले के स्तर पर एक जिला चिकित्सालय बनाया जाता है, इसमें अनेकों विशेषज्ञ मौजूद होते हैं -: सर्जन ,फिजीशियन ,स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सक, बाल चिकित्सक, दंत चिकित्सक, हड्डी रोग विशेषज्ञ। 

यहां पर एक्स-रे अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी ब्लड बैंक जैसी सुविधाएं मौजूद होती हैं और पृथक पृथक विषय के रोगियों के लिए पृथक पृथक कक्ष होते हैं। 

चलित अस्पताल-: 

दूरस्थ क्षेत्र के लोगों को उनके कार्यस्थल में जाकर स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं देने के लिए, चलित अस्पताल की सेवा शुरू की गई, इसके अंतर्गत एंबुलेंस में ही मरीज को भर्ती करने उसकी खून जांच करने उसका इलाज करने की सुविधा होती है। 

Doctor and paramedical staff-:

चिकित्सक-: चिकित्सक वह व्यक्ति होता है जिसके पास बीमारियों का उपचार करने,तथा स्वास्थ्य संबंधी सलाह देने की योग्यता होती है। 

सहयोगी चिकित्सक-: सहयोगी चिकित्सक का तात्पर्य उन स्वास्थ्य कर्मचारियों से है जो अस्पताल में मुख्य चिकित्सक द्वारा दिए गए निर्देश के अनुसार रोगियों के उपचार में एवं अस्पतालों की प्रशासनिक कार्य में सहायक होते हैं। जैसे-: लैबोरेट्री चिकित्सक, एक्स-रे टेक्नीशियन, पर्ची बनाने वाला स्वास्थ्य कर्मचारी, कंपाउंडर।

पैरामेडिकल स्टाफ के कार्य-:

  • रोगियों की व्यक्तिगत जानकारी का रिकॉर्ड रखना। 

  • चिकित्सक के निर्देश पर रोगी की जांच करना। 

  • चिकित्सक के निर्देश पर रोगी को इंजेक्शन एवं अन्य दवाइयां देना।

ग्रामीण स्वास्थ्य-: 

भारत की लगभग 70% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत है जहां पर न्यूनतम दूरी पर स्वास्थ्य केंद्रों के अभाव एवं स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त प्रशिक्षित चिकित्सकों की कमी है जिस कारण से ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश लोग समय पर मूलभूत स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने में भी वंचित रह जाते हैं। 

  • गांव के स्वास्थ्य केंद्रों में 88% विशेषज्ञ डॉक्टरों की तथा 53% नर्सों की कमी है।

  • भारत के 8% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त डॉक्टर एवं मेडिकल स्टाफ नहीं है तथा 39% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में लैब टेक्नीशियन की नहीं है

  • 31% ग्रामीण जनता ऐसी है जिसे स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 30 किलोमीटर से अधिक यात्रा करनी पड़ती है। 

ग्रामीण स्वास्थ्य की दुर्दशा के कारण

  • स्वास्थ्य केंद्रों की भौगोलिक दूरी। 

  • स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त अधोसंरचना एवं सुविधाओं का अभाव जैसे खून की जांच का अभाव।   

  • पर्याप्त डॉक्टर एवं सहायक स्टाफ की कमी। या डॉक्टरों का देर से आना। 

  • ग्रामीण लोगों ने सजगता की कमी। 

  • औषधीयों का वहनीय कीमतों पर उपलब्ध ना होना। चिकित्सकों द्वारा गुप्त ने रूप से औषधियों का बैंचा जाना। 

  • ग्रामीण क्षेत्र में चिकित्सकों के इच्छाशक्ति की कमी। 

ग्रामीण स्वास्थ्य प्रणाली को सुधारने के लिए सरकारी प्रयास-: 

  • दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण आरोग्य केंद्र स्थापित किए गए। 

  • सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में महिला तथा बच्चों की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनेकों आंगनबाड़ियों एवं आशा कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की गई। 

  • ग्रामीण क्षेत्रों में पोलियो जैसी टीकाकरण अभियान चलाए जा रहे हैं। 

  • ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास विस्तार करने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की गई। 

  • ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को उनके कार्यस्थल तक स्वास्थ सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए चलित अस्पताल एवं जननी एक्सप्रेस(108) की योजना शुरू की गई। 

महिला एवं बाल स्वास्थ्य-: 

भारतीय समाज में महिला एवं बच्चों की हर क्षेत्र में दयनीय स्थिति होती है क्योंकि महिला एवं बच्चे पुरुषों पर आश्रित रहते हैं। अतः स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी महिला एवं बच्चों की स्थिति संतोषजनक नहीं है। 

महिला स्वास्थ्य-:

भारत व मध्य प्रदेश में महिला स्वास्थ्य की स्थिति संतोषजनक नहीं है،इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि जहां अमेरिका एवं चीन जैसे देशों में मातृ मृत्यु दर प्रति लाख जीवित जन्मों पर लगभग 17-18 है वहीं भारत की मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख जीवित जन्मों पर लगभग 122 है। और मध्य प्रदेश में तो लगभग 173 है। 

महिला स्वास्थ्य की स्थिति खराब होने के कारण
  • महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम स्वास्थ्य सुविधा प्राप्त होना-: क्योंकि एक तो महिला आत्मनिर्भर नहीं होती हैं वह स्वास्थ्य सुविधा पाने के लिए पति या पिता पर निर्भर होती है दूसरा उनका इलाज देर से करवाया जाता है

  • बाल विवाह-: कम उम्र में विवाह हो जाने से महिलाओं को मातृत्व संबंधी अनेकों समस्या होती है। 

  • कुपोषण एवं एनीमिया-: पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कुपोषण एवं एनीमिया की समस्या अधिक होती है। 

  • महिलाओं को मासिक धर्म एवं स्तन कैंसर से संबंधित अनेकों समस्याएं होती हैं जिससे उनकी जान भी चली जाती है।

महिला स्वास्थ्य के लिए चलाई जाने वाले कार्यक्रम -: 

भारत सरकार द्वारा चलाई जाने वाली कार्यक्रम-:

  • जननी सुरक्षा योजना। 

  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना।

  • एड्स नियंत्रण कार्यक्रम। 

  • मातृत्व लाभ संशोधित अधिनियम 2017। 

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा चलाए जाने वाले कार्यक्रम-: 
  • ममता अभियान,-: इसके तहत प्रसव के पूर्व प्रसव के दौरान एवं प्रसव के बाद माता को निशुल्क उपचार दिया जाता है। 

  •  लालिमा अभियान। -: गर्भवती महिलाओं किशोरियों में होने वाली खून की कमी(एनीमिया) को दूर करने के लिए। 

  • प्रसव हेतु परिवहन एवं उपचार योजना।

  • किलकारी योजना। -: इसके तहत मोबाइल के जरिए प्रसव के पूर्व बच्चे की देखभाल की समस्त जानकारी दी जाती है। 

  • रोशनी क्लीनिक। 

बाल स्वास्थ्य

बाल स्वास्थ्य का तात्पर्य बच्चे के जन्म से लेकर 5 साल की उम्र तक के स्वास्थ्य से है। 

भारत एवं मध्य प्रदेश में बाल स्वास्थ्य की स्थिति गंभीर है क्योंकि भारत में बाल शिशु मृत्यु दर 1000 जीवित जन्मों पर लगभग 29 है एवं मध्य प्रदेश में तू 48 से जबकि चीन में लगभग 8 और अमेरिका में लगभग 6.5 है। 

बालकों से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं

  • जन्म के समय वजन कम होना। 

  • कुपोषण की समस्या। 

  • पूर्ण टीकाकरण ना होने की समस्या

  • विभिन्न भयंकर रोगों की समस्या , जैसे हृदय में छेद ,विकलांगता ,कालाजार आदि रोग होना। 

बाल स्वास्थ्य में सुधार हेतु किए गए सरकारी प्रयास-: 

भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयास-: 

  • एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम(1975)। 

  • राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम(2013)-: इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों की मुख्य बीमारियों का पता लगाकर उनका उपचार करना जैसे -: जन्मजात विकृति की बीमारी ,बाल रोग, विकलांगता। 

  • राष्ट्रीय आयरन एवं फोलिक एसिड पूरक कार्यक्रम (2013)-: इसका मुख्य उद्देश्य 10 से 19 वर्ष के बच्चों में होने वाली आयरन एवं फोलिक एसिड की कमी को दूर करना है। 

  • पल्स पोलियो अभियान। 

  • इंद्रधनुष मिशन(2014)-

इस मिशन की शुरूआत वर्ष 2014 में भारत सरकार द्वारा की गई। 

इस मिशन का उद्देश्य टीकाकरण के माध्यम से बच्चों में विभिन्न रोगों से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करना। 

इस मिशन के अंतर्गत नवजात बच्चों को निम्नलिखित 7 प्रकार के टीके लगाए जाते है

  • डिप्थीरिया

  • टिटनेस

  • पोलियो

  • हेपेटाइटिस

  • खसरा

  • काली खांसी

  • टीवी

हालांकि बाद में विभिन्न बीमारियों के संक्रमण को देखते हुए मिशन इंद्रधनुष में 5 टीकों को और जोड़ दिया गया है इस प्रकार अब इस मिशन में टीकों की संख्या 12 हो गई है। 

  • राष्ट्रीय बाल नीति-: इसके तहत बच्चों के लिए स्वच्छ पेयजल स्वच्छता पोषण एवं अन्य स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने का प्रावधान है। 

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा चलाए जाने वाले कार्यक्रम-: 
  • मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना (2011)-: इस योजना के अंतर्गत गरीब परिवारों के ऐसे शिशु जिनके हृदय में कुछ समस्या उत्पन्न है उन्हें निशुल्क इलाज उपलब्ध करवाया जाता है। 

  • दस्तक अभियान(2019)-: इस अभियान की शुरुआत मध्यप्रदेश शासन की महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा वर्ष 2017-18 में की गई। 

  • इस अभियान का उद्देश्य एएनएम आशा कार्यकर्ता एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के माध्यम से घर घर जाकर बच्चों के स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता फैलाई जाती है एवं उन्हें आवश्यक पोषण संबंधी दवाइयां दी जाती है। 

  • मंगल दिवस अभियान-: इस अभियान के अंतर्गत आंगनबाड़ी में महीने के प्रत्येक मंगलवार को गर्भवती महिला एवं बच्चे की सेहत सुरक्षा हेतु निम्न कार्य किए जाते हैं

    • प्रथम सप्ताह की मंगलवार को संबंधित ग्राम की सभी महिलाओं की गोद भराई के कार्यक्रम किया जाता है। 

    • द्वितीय मंगलवार को बच्चों का अन्नप्राशन संस्कार किया जाता है। 

    • तृतीय मंगलवार को बच्चों का बर्थडे सेलिब्रेट किया जाता है। 

    • चौथी मंगलवार को किशोरियों को फोलिक एसिड, एनीमिया से संबंधित गोलियां दी जाती है एवं रचनात्मक कार्य करवा जाते हैं। 

पारिवारिक स्वास्थ्य-: 

पारिवारिक स्वास्थ्य दो शब्दों से मिलकर बना है परिवार और स्वास्थ्य। 

यहां पर परिवार का सामान्य अर्थ-: एक निश्चित स्थान में रहने वाले माता-पिता एवं उनकी संतानों के समूह से है। 

जबकि स्वास्थ्य का अर्थ -: व्यक्ति की उस पूर्ण स्थिति से है जिसके अंतर्गत व्यक्ति शारीरिक मानसिक एवं सामाजिक रुप से दुरुस्त रहता है। 

इस प्रकार परिवारिक स्वास्थ्य का अर्थ निम्नलिखित है -: परिवार के सभी सदस्यों का शारीरिक मानसिक और सामाजिक रूप से दुरुस्त होना पारिवारिक स्वास्थ्य कहलाता है। 

और परिवारिक स्वस्थ के अध्ययन का उद्देश्य परिवार को स्वस्थ रखने के लिए  परिवार में होने वाले संभावित रोगों का या गंदी आदतों का निदान करना तथा प्रत्येक सदस्य की बीमारी का समय पर उपचार करना है। क्योंकि परिवार के एक सदस्य के स्वास्थ्य एवं स्वास्थ संबंधी आदतों का प्रभाव अन्य सदस्यों पर भी पड़ता है

जैसे-: परिवार का कोई एक सदस्य रोज व्यायाम करता है तो उसके प्रभाव से अन्य सदस्य भी व्यायाम करने के लिए प्रेरित होंगे जिससे पूरे परिवार का स्वास्थ्य अच्छा होगा। 

इसके विपरीत यदि परिवार का कोई एक सदस्य नशा करता है तो उसके प्रभाव से अन्य सदस्य भी धीरे-धीरे नशा करने लगते हैं। 

परिवार स्वास्थ्य को निर्धारित करने वाले कारक-: 

  1. अनुवांशिकी-: अनुवांशिक कारक परिवारिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है क्योंकि परिवार की अनुवांशिक बीमारियां उनके बच्चों में स्थानांतरित हो जाती हैं इससे उनका पूरा परिवार संबंधित बीमारी से ग्रसित हो जाता है।   उदाहरण के लिए जिस परिवार के माता-पिता दोनों मधुमेह से पीड़ित हैं तो उनके बच्चों में मधुमेह होने की संभावना अधिक होती है। 

  2. पोषण की उपलब्धता-: यदि परिवार में सभी पोषक तत्व युक्त पोषक आहार उपलब्ध रहता है तो परिवार में कुपोषण संबंधी समस्या उत्पन्न नहीं होती ,परिवार स्वस्थ रहता है। 

  3. स्वच्छता-: यदि परिवार के आसपास स्वच्छता रहती है तो पारिवारिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है। 

  4. व्यक्तिगत आदतें-: यदि परिवार के सदस्यों में स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतें हैं जैसे नियमित व्यायाम करना समय पर भोजन करना तो परिवारिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है इसके विपरीत यदि परिवार के सदस्य नशा करते हैं या समय पर भोजन नींद नहीं लेते परिवारिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं लगता। 

  5. स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता-: यदि परिवार में स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता है अर्थात कम या छोटी बीमारी होने पर भी उसका उपचार करने की आदत है तो परिवार का स्वास्थ्य अच्छा रहता है इसी प्रकार यदि स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता है जैसे कि संतुलित भोजन के प्रति जागरूकता, बीमारी होने के पहले बीमारी के निदान की जागरूकता, तो स्वास्थ्य अच्छा रहता है अन्यथा नहीं। 

परिवारिक स्वास्थ्य की समस्या-: 

  1. परिवार के बच्चों में अनुवांशिक बीमारी की समस्या। 

  2. गरीबी के कारण पर्याप्त पोषक आहार की अनुपलब्धता के कारण परिवार में कुपोषण की समस्या। 

  3. परिवार में स्वच्छता का अभाव। 

  4. अच्छी व्यक्तिगत आदतों जैसे व्यायाम नियमित भोजन आदि का अभाव। 

  5. परिवार के सदस्यों द्वारा नशाखोरी या नशीली दवाओं के दुरुपयोग की समस्या।  

  6. स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता एवं जागरूकता का अभाव। 

  7. बाल मृत्यु दर एवं मातृ मृत्यु दर अधिक होने की समस्या।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में परिवार की जिम्मेदारी-

  1. गर्भवती महिलाओं की नियमित गर्भ जांच तथा संस्थागत प्रसव करवाना। ताकि मातृ मृत्यु न हो। 

  2. जन्म के बाद बच्चे का पूर्ण टीकाकरण करवाना। ताकि उन्हें रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो वे जल्द बीमार ना पड़े। 

  3. परिवार नियोजन को अपनाना। ताकि सभी बच्चों का ठीक प्रकार से पालन पोषण किया जा सके। 

  4. सभी सदस्यों को पर्याप्त पोषण युक्त आहार उपलब्ध करवाना। ताकि उन्हें कुपोषण की समस्या ना हो। 

  5. आसपास का वातावरण स्वच्छ एवं खुशनुमा बनाए रखना। ताकि गंदगी से होने वाली बीमारियां ना फैले और बच्चों का पूर्ण मानसिक विकास हो। 

  6. किसी सदस्य के बीमार होने की स्थिति में उसे भावनात्मक सहयोग देना तथा उसका तुरंत उपचार करवाना। 

पारिवारिक स्वास्थ्य में तकनीकी का उपयोग

  • टेलीमेडिसिन के रूप में-: टेलीफोन या इंटरनेट आदि के माध्यम से दूर के चिकित्सक से चिकित्सीय सलाह लेना टेलीमेडिसिन कहलाता है टेलीमेडिसिन के प्रयोग से घर बैठे ही, शीघ्रता से उपचार प्राप्त हो जाता है। 

  • विभिन्न उपकरणों के रूप में-:  घर में विभिन्न चिकित्सीय मशीन जैसे थर्मामीटर ,ऑक्सीमीटर, ग्लूकोस मीटर आदि के माध्यम से प्रत्येक सदस्य का स्वास्थ्य चेकअप आसानी से किया जा सकता है। 

  • इलेक्ट्रॉनिक फिटनेस उपकरण-: जैसे फिटनेस घड़ी के माध्यम से शरीर को आवश्यक मानक के अनुसार फिट रखा जा सकता है।

परिवार नियोजन-: 

परिवार कल्याण के लिए उपयुक्त समय पर, आदर्श संख्या में संतान उत्पन्न करने का नियोजन , परिवार नियोजन कहलाता है। 

अर्थात परिवार नियोजन के अंतर्गत यह प्लानिंग की जाती है कि कब कितने समय अंतराल पर और कितनी संतान उत्पन्न की जाए। 

भारत में परिवार नियोजन का समानता अर्थ 2 वर्ष के अंतराल पर केवल दो संतान उत्पन्न करने से है। 

परिवार नियोजन का महत्व-: 

  • माताओं, एवं बच्चों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है क्योंकि परिवार नियोजन के अंतर्गत डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही तभी बच्चा पैदा किया जाता है जब माता बच्चा पैदा करने के लिए परिपक्व हो जाती है जैसे जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं। 

  • परिवार नियोजन से मातृ मृत्यु दर एवं शिशु मृत्यु दर कम हो जाती है क्योंकि परिवार नियोजन के अंतर्गत डॉक्टर की सलाह पर एक निश्चित समय अंतराल का बच्चा पैदा किया जाता है 

  • बच्चों का अच्छी तरह से पालन पोषण होता है-: परिवार नियोजन के अंतर्गत कम से कम संतान उत्पन्न करने का प्रयास किया जाता है जिससे कम आय में भी सभी बच्चों का उपयुक्त तरीके से पालन पोषण हो जाता है क्योंकि बच्चों की संख्या कम होती है। 

  • परिवार नियोजन जनसंख्या वृद्धि के नियंत्रण में सहायक है

भारत में परिवार नियोजन की असफलता के कारण-: 

भारत में जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए 1951 से ही परिवार नियोजन विकास कार्यक्रम चलाया जा रहा है प्रत्येक जनसंख्या नीति में परिवार नियोजन को महत्व दिया जा रहा है किंतु इसके बावजूद भी भारत में परिवार नियोजन के कार्यक्रम पूर्ण रूप से सफल नहीं हुए जिसके पीछे निम्न वजह है-: 

  • अशिक्षा या परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता में कमी। 

  • सामाजिक एवं धार्मिक रूढ़िवादिता-: जैसे पुत्र प्राप्ति की चाहत में अधिक से अधिक संतान उत्पत्ति करना, संतान को ईश्वर की देन समझना। 

  • ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को गर्भनिरोधक तरीकों के बारे में पर्याप्त जानकारी ना होना। 

  • पर्याप्त चिकित्सा केंद्र एवं परिवार नियोजन केंद्र की कमी।

परिवार नियोजन की तरीके-; 

परिवार नियोजन के तरीकों का सामान्य तत्व यौन संबंध के बाबजूद बच्चा पैदा होने से रोकने के उपायों से है। 

अस्थाई तरीके -: 

  • गर्भनिरोधक गोलियां या इंजेक्शन का इस्तेमाल। 

  • पुरुषों द्वारा कंडोम या महिलाओं द्वारा डायग्राम का इस्तेमाल करके। 

  • महिलाओं द्वारा गर्भाशय की दीवार में आई यू डी या copper-t लगवाकर। 

स्थाई तरीके-: 

  • महिला नसबंदी। 

  • पुरुष नसबंदी।

भारत में परिवारिक स्वास्थ्य हेतु चलाई जाने वाली योजनाएं एवं कार्यक्रम-: 

  • परिवार कल्याण कार्यक्रम-: 

भारत में परिवार कल्याण कार्यक्रम की शुरुआत 1952 में की गई, इसका उद्देश्य जन्म दर एवं मृत्यु दर दोनों में कमी लाना तथा अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं की क्षमता के अनुरूप जनसंख्या को स्थिर रखना है। 

इसके अंतर्गत लोगों के बीच परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता फैलाई जाती है एवं परिवार नियोजन के उपकरण वितरित किए जाते हैं

  • मिशन परिवार विकास-: 

मिशन परिवार विकास की शुरुआत सितंबर 2016 में हुई। इसका मुख्य उद्देश्य जनसंख्या वृद्धि में नियंत्रण एवं परिवार के कल्याण हेतु प्रजनन दर को कम करने के लिए परिवार नियोजन को बढ़ावा देना है। 

इस मिशन के अंतर्गत कुल प्रजनन दर(TFR) 3 से अधिक वाले 7 राज्य जिसमें मध्यप्रदेश भी शामिल है मैं परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता बढ़ाना तथा परिवार नियोजन के उपकरण प्रदान किये जाते हैं। 

इसके अलावा परिवारिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा अनेकों कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं जैसे-: 

  • समेकित बाल विकास योजना। 

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन। 

  • इंद्रधनुष मिशन।

  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना। 

  • प्रधानमंत्री जननी सुरक्षा योजना। 

  • आयुष्मान भारत योजना। 

  • भारत स्वच्छता अभियान

  • ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन। 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पारिवारिक स्वास्थ्य की स्थिति का अवलोकन करने के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण किया जाता है जिससे हमें विभिन्न क्षेत्रों के परिवारों की स्वास्थ्य संबंधी जानकारी प्राप्त होती है जैसे-: प्रजनन दर ,शिशु मृत्यु दर ,परिवार नियोजन संबंधी आंकड़े। 

हाल ही में वर्ष 2017 को राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण किया गया था। 

स्वास्थ्य शिक्षा-: 

स्वास्थ्य शिक्षा का तत्व पर लोगों को स्वास्थ्य संबंधित जानकारी देकर उनके स्वास्थ्य स्तर में सुधार करने से है। 

स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य -:

  • लोगों को स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील एवं सजग बनाना। जैसे स्वास्थ्य खराब होने पर तुरंत डॉक्टर से दिखाने या प्राथमिक उपचार देने का ज्ञान देना। 

  • लोगों की स्वास्थ्य आदतों में सुधार करना। जैसे नियमित स्नान नियमित समय पर खाना खाना नियमित नींद लेना। नशा इत्यादि ना करना। जंक फूड ना लेना। 

  • व्यक्तियों को संक्रामक और असंक्रामक रोगों से मुक्त बनाना।

स्वच्छता-: 

जिस मानव की कुशलता के स्तर को बढ़ाने के लिए शिक्षा अनिवार्य एवं आवश्यक है उसी प्रकार लोगों के स्वास्थ्य स्तर में सुधार लाने के लिए स्वच्छता अनिवार्य एवं आवश्यक है। 

स्वच्छता का सामान्य अर्थ है स्वयं को एवं आसपास के वातावरण को साफ-सुथरा तथा गंदगी मुक्त रखना स्वच्छता कहलाती है। 

स्वच्छता का महत्व-:

  • स्वच्छता से विभिन्न प्रकार की बीमारियों में रोक लगाई जा सकती है जैसे-: डायरिया, टाइफाइड। 

  • स्वच्छता से आसपास खुशनुमा माहौल बनता है जिससे मानसिक सुख की प्राप्ति होती है। 

  • स्वच्छता आर्थिक उन्नति में भी सहायक है क्योंकि जिस क्षेत्र में स्वच्छ वातावरण होता है उस क्षेत्र में निवेश भी बढ़ता है एवं पर्यटन सेवा को भी बढ़ावा मिलता है। 

  • जैविक कचरे के अपघटन से खाद प्राप्त हो जाती है। 

  • जीवन प्रत्याशा की वृद्धि में सहायक। 

स्वच्छता के प्रकार -:

  1. व्यक्तिगत स्वच्छता-अपने शरीर को स्वच्छ रखना; जैसे- नाखून काटना, बाल कटवाना, स्नान करना आदि

  2. सामुदायिक स्वच्छता- अपने आसपास के वातावरण या समुदाय को स्वच्छ रखना; जैसे- कॉलोनी में कचरा एकत्रित नहीं होने देना, आसपास के नालों का समुचित प्रबंध करना। 

  3. पर्यावरणीय स्वच्छता-  ठोस अपशिष्ट का समुचित प्रबंधन, एवं नदी,सरोवर आदि की स्वच्छता। 

स्वच्छता बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम

  • आसपास के अव्यवस्थित कचरे को एकत्रित करके , जैविक खाद बनाना चाहिए। 

  • आसपास की गंदे पानी को एकत्रित ना होने दें। 

  • अस्वच्छ स्थानों में एसिड से धुलाई की जाए। 

  • आसपास के स्थानों में पेड़ पौधों के रोपण को बढ़ावा दिया जाए। 

  • लोगों में यह जागरूकता फैलाई जाए कि नियमित रूप से-:

    • स्नान करें ,मुंह साफ करें। 

    • बाल एवं नाखून काटे। 

    • सोच के बाद एवं खाना खाने के पहले हाथ धोए। 

    • धुले हुए कपड़े एवं धुले हुए बिस्तर का ही इस्तेमाल करें। 

स्वच्छता हेतु उठाए गए सरकारी कदम-: 

  • केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम 1986। 

  • संपूर्ण स्वच्छता अभियान 1999। 

  • निर्मल ग्राम पुरस्कार-2005, स्वच्छता को प्रोत्साहित करने के लिए। 

  • निर्मल भारत अभियान- 2012। 

  • स्वच्छ भारत अभियान-  2 अक्टूबर 2014। 

  • नमामि गंगे कार्यक्रम 2014

  • डोर टू डोर कचरा संग्रहण प्रणाली।

भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए किए गए सरकारी प्रयास-:

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 47 में कहा गया है कि-: राज्य का यह कर्तव्य होगा कि वह लोगों के जीवन स्तर, पोषण आहार स्तर तथा लोक स्वास्थ्य में अभिवृद्धि करें एवं मादक पदार्थों के उपयोग पर रोक लगाए।

अर्थात भारतीय संविधान सरकार को यह निर्देश देता है कि वह लोगों के पोषण आहार स्तर तथा लोक स्वास्थ्य में अभिवृद्धि करें। 

और इसी प्रावधान के तहत सरकार द्वारा लोक स्वास्थ्य में वृद्धि करने के लिए लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाने के लिए अनेकों कार्यक्रम संचालित है जिनका विवरण निम्नलिखित है-: 

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017-:

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