जन्म मृत्यु समंक(vital statistics)-:
This page Contents
Toggleजन्म मृत्यु समंक एक वार्षिक जनांकिकी सर्वेक्षण है जिसमें जन्म दर ,मृत्यु दर ,मातृ मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर, विवाह, तलाक आदि से संबंधित आंकड़े होते हैं।
और भारत में जन्म मृत्यु समंक की गणना सैंपल रजिस्ट्रीकरण प्रणाली द्वारा की जाती है।
भारत में सर्वप्रथम जन्म मृत्यु समंक को एकत्रित करने का प्रयास प्रायोगिक तौर पर 1964-65 में महापंजीयक कार्यालय द्वारा किया गया, इसके पश्चात 1969 70 से नियमित तौर पर पूरे भारत में जन्म मृत्यु समंक एकत्रित किए जाने लगे।
जन्म मृत्यु समंक का महत्व या उपयोग-:
जन्म मृत्यु समंक किसी क्षेत्र विशेष, की जनसंख्या की संरचनात्मक स्थिति को समझने में सहायक है जैसे जन्म मृत्यु संबंधी से हमें यह पता चल जाता है कि हमारे देश में आश्रित जनसंख्या और युवा जनसंख्या का अनुपात कितना है? लिंगानुपात की स्थिति क्या है? अप्रवास और उत्प्रवास की स्थिति क्या है? जनांकिकी लाभांश कितना है?
जन्म मृत्यु सामान देश में बच्चों महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति को समझने में सहायक है जैसे यदि मातृ मृत्यु दर और बाल मृत्यु दर अधिक है तो इसका अर्थ है कि महिला एवं बच्चों के स्वास्थ्य की स्थिति उपयुक्त नहीं है।
जन्म मृत्यु समंक संबंधित क्षेत्र की औद्योगिक प्रवृत्ति एवं सामाजिक सुरक्षा की स्थिति को समझने में सहायक है उदाहरण के लिए जन्म मृत्यु समय से प्राप्त जानकारी के अनुसार यदि हमारे क्षेत्र में उत्प्रवास अधिक है इसका अर्थ है कि हमारे क्षेत्र में औद्योगिक प्रगति एवं सामाजिक सुरक्षा की स्थिति अच्छी नहीं है इसीलिए लोग अन्य क्षेत्रों में प्रवासित हो रहे है।
जन्म मृत्यु समंक नीतियों के निर्माण में सहायक है उदाहरण के लिए जन्म मृत्यु समंक से प्राप्त जानकारी के अनुसार यदि हमारे देश में लिंग अनुपात कम है तो हम ऐसी नीति बनाएंगे जिससे महिलाओं की संख्या बढ़ाई जा सके।
जन्म मृत्यु समंक नीतियों के क्रियान्वयन में भी सहायक है उदाहरण के लिए जन्म मृत्यु समय से प्राप्त जानकारी के अनुसार यदि किसी क्षेत्र का जन घनत्व अधिक है तो उस क्षेत्र में किसी भी सरकारी योजना के क्रियान्वयन के लिए अधिक सरकारी व्यय की आवश्यकता होगी।
जन्म मृत्यु समंक नीतियों का या कार्यक्रमों का मूल्यांकन करने में सहायक है।
जैसे यदि किसी योजना में प्रजनन दर को 2.1 करने का लक्ष्य रखा गया किंतु इसके बाद भी निर्धारित समय में भजन अंदर 2.1 नहीं होती तो इसका अर्थ है वह योजना असफल रही।
जन्म मृत्यु सामान्य के स्त्रोत-:
जनगणना-: किसी देश में एक निश्चित समय अंतराल के उपरांत की जाने वाली लोगों की गणना जनगणना कहलाती है। और जनगणना जन्म मृत्यु समंक का मुख्य स्त्रोत क्योंकि जनगणना से हमें व्यक्तियों की आयु, धर्म, लिंग, आय, व्यवसाय, साक्षरता आदि की जानकारी होती है।
स्वास्थ्य का रिकॉर्ड-: अस्पतालों में प्रशासनिक उद्देश्य विभिन्न स्वास्थ सेवा रिकॉर्ड रखे जाते हैं और इन रिकार्डों से संबंधित क्षेत्र की जन्म दर, मृत्यु दर ,मातृ मृत्यु दर, बाल शिशु मृत्यु दर ,टीकाकरण ,आदि की जानकारी प्राप्त होती है।
रोग रजिस्टर-: अस्पतालों में रोगियों की जानकारी रखने के लिए रोक रजिस्टर बनाए जाते हैं जिसमें रोगियों का नाम जाति आयु तथा रोगियों से संबंधित रोगों का विवरण होता है इससे हमें लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति की जानकारी होती है।
आंगनबाड़ी एवं स्कूल-:
आंगनबाड़ी एवं स्कूल के रिकॉर्ड से संबंधित क्षेत्र की शिक्षा का स्तर, पोषण का स्तर आदि की जानकारी होती है।
राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन-:
विभिन्न क्षेत्र के लोगों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति से संबंधित आंकड़े एकत्रित करने के लिए राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन द्वारा समय-समय पर सर्वेक्षण किया जाता है। जिससे हमें व्यक्तियों की गरीबी ,बेरोजगारी, उनके व्यवसाय एवं जीवन स्तर आदि की जानकारी होती है।
विशिष्ट सर्वेक्षण-: न्यूज़ एजेंसी गैर सरकारी संगठन एवं शोध विद्यार्थियों द्वारा किसी विशिष्ट विषय से संबंधित सर्वेक्षण किया जाता है जिस से भी हमें जन्म मृत्युके के लिए आवश्यक जानकारी प्राप्त होती है। झं/
जनांकिकी संरचना-:
जनांकिकी संरचना का तात्पर्य इस अध्ययन से है कि कुल जनसंख्या में आयु वर्ग, ग्रामीण शहरी वर्ग, पुरुष महिला वर्ग का अनुपात कितना है?
भारत में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार कोई जनसंख्या में कार्यशील जनसंख्या (15-64 वर्ष) लगभग 65% थी, जबकि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या लगभग 30% एवं 65 वर्ष से अधिक उम्र के वृद्धों की संख्या लगभग 5% थी।
.
भारत की कुल जनसंख्या में लगभग 69% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्र में रहती है अर्थात ग्रामीण जनसंख्या है और मात्र 31-32 प्रतिशत जनसंख्या शहरी जनसंख्या है।
भारत में प्रति एक हजार पुरुषों पर औसतन रूप से महिलाओं की संख्या 943 है।
प्रजनन दर-:
एक निर्धारित वर्ष में प्रति 1000 जनन योग्य (15-49) महिलाओं द्वारा जीवित पैदा किए जाने वाले बच्चों की संख्या के औसत अनुपात को प्रजनन दर कहते हैं।
तथा प्रति महिला द्वारा जीवित जन्म दिए गए बच्चों की औसतन संख्या को टोटल प्रजनन दर कहते हैं।
और वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की टोटल फर्टिलिटी रेट 2.4 एवं मध्य प्रदेश की टोटल फर्टिलिटी रेट 3.1 थी।
भारत में प्रजनन दर को प्रभावित करने वाले कारक-:
सामाजिक रूढ़िवादिता-:पुत्र प्राप्ति की लालसा।
परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता।
गरीबी दूर करने के लिए अधिक बच्चे पैदा करने की विचारधारा रखना।
विवाह की उम्र।
परिवार नियोजन कार्यक्रमों की सफलता या असफलता।
जलवायु-: भारत की जलवायु उपोष्ण कटिबंधीय है जिसमें महिलाएं जल्द गर्भ धारण कर लेती है।
जन्म दर-:
1 वर्ष की समय अवधि में प्रति 1000 जनसंख्या पर जीवित जन्म लेने वाले शिशुओं की संख्या को जन्म दर कहते हैं।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जन्म दर 21.4 शिशु प्रति 1000 जनसंख्या थी।
जबकि मध्यप्रदेश की जन्म दर 26.3 प्रति 1000 जनसंख्या थी।
मृत्यु दर-:
1 वर्ष की समय अवधि में प्रति एक हजार जनसंख्या पर मरने वाले लोगों की संख्या को मृत्यु दर कहते हैं।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की मृत्यु दर 7 प्रति 1000 जनसंख्या थी,
वहीं मध्यप्रदेश की मृत्यु दर 8 प्रति 1000 जनसंख्या थी।
प्राकृतिक वृद्धि दर-:
एक निश्चित समय अवधि में (समानता 1 वर्ष) किसी क्षेत्र विशेष के निवासियों की कुल अशोधित जन्म दर तथा कुल अशोधित मृत्यु दर के अंतर को प्राकृतिक वृद्धि दर कहते हैं।
इसमें अप्रवास एवं उत्प्रवास शामिल नहीं किया जाता।
प्राकृतिक वृद्धि दर = कुल जन्म दर-कुल मृत्यु दर।
जनसंख्या वृद्धि दर-:
एक निश्चित समय अवधि में (समानता 1 वर्ष) किसी क्षेत्र विशेष के निवासियों की कुल अशोधित जन्म दर तथा कुल अशोधित मृत्यु दर के अंतर को प्राकृतिक वृद्धि दर कहते हैं।
और जब प्राकृतिक वृद्धि दर में निवल प्रवास दर जोड़ दी जाती है तो इसे जनसंख्या वृद्धि दर कहते हैं।
जनसंख्या वृद्धि दर = अशोधित जन्म दर-अशोधित मृत्यु दर +(अप्रवासी – उत्प्रवास)
शिशु मृत्यु दर-:
1 वर्ष की समय अवधि में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर मरने वाले शिशुओं(1 वर्ष तक के) की संख्या को शिशु मृत्यु दर कहते हैं।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की शिशु मृत्यु दर 33/प्रति हजार, तथा मध्य प्रदेश की शिशु मृत्यु दर 47/1000 थी।
शिशु मृत्यु दर के अधिक होने के कारण
कम उम्र में मां बनकर बच्चा पैदा करना।
2 वर्ष से कम समय अंतराल में बच्चे पैदा करना।
माता द्वारा किसी कारणबस दूध न पिलाया जाना। (जैसे-: स्तन कैंसर
गरीबी के कारण पर्याप्त पोषण की व्यवस्था ना होना।
आसपास स्वच्छता एवं बीमारी मुक्त माहौल ना होना।
शिशु का टीकाकरण ना होना।
उपाय-:
पूर्ण परिपक्व होने की अवस्था के पूर्व बच्चा पैदा करने पर रोक लगाई जाए।
लोगों में है जागरूकता फैलाई जाएगी कम से कम 2 वर्ष के अंतराल पर ही अगला बच्चा पैदा किया जाए।
स्तन कैंसर जैसी स्थिति में दूध बैंक के माध्यम से बच्चों को दूध पिलाया जाए।
परिवार नियोजन को बढ़ावा दिया जाए ताकि लोग कम से कम संतान पैदा करें और सभी बच्चों का उपयोग तरीके से पालन पोषण कर पाए।
मां एवं बच्चे के आसपास स्वच्छता का माहौल बनाया जाए।
मातृ मृत्यु दर-:
प्रति एक लाख जीवित जन्मों पर प्रसव पीड़ा के कारण प्रसव के दौरान या प्रसव के 42 दिन के अंदर मरने वाली माताओं की संख्या मातृ मृत्यु दर कहलाती है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में मातृ मृत्यु दर 130 प्रति एक लाख जीवित जन्म थी। जबकि मध्यप्रदेश की मातृ मृत्यु दर 173/100000 थी।
भारत में मातृ मृत्यु दर उच्च होने के कारण-:
जहां भारत में मातृ मृत्यु दर लगभग 122 प्रति लाख जीवित जन्म है वहीं अमेरिका एवं चीन जैसे देशों में यह आंकड़ा मात्र 17-18 प्रति एक लाख जीवित जन्म है।
जिसके पीछे निम्नलिखित कारण है-:
महिलाओं का परिपक्व होने के पूर्व कम उम्र में मां बनना।
कम समय अंतराल में बच्चे पैदा करना।
महिला को प्रसव के दौरान पर्याप्त पोषण ना मिलना।
विभिन्न प्रकार की बीमारियां हो ना जैसे-: एनीमिया, मासिक धर्म से संबंधित बीमारियां।
गर्भ पूर्व तथा गर्व के बाद पर्याप्त स्वास्थ्य जांच एवं उपचार (टीकाकरण आदि) न कराया जाना।
मध्यप्रदेश में इसके लिए सरकारी प्रयास-:
जननी एक्सप्रेस योजनाइस योजना की शुरुआत मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 2006 में की गई।
इस योजना का उद्देश्य गर्भवती माताओं को गर्भ की जांच या प्रसव के लिए 24 घंटे परिवहन की सुविधा उपलब्ध करवाना।
इस योजना के अंतर्गत प्रसव के पूर्व और प्रसव के उपरांत दोनों ही स्थितियों में गर्भवती एवं दूध पिलाने वाली महिलाओं को अस्पताल तक ले जाने के लिए निशुल्क परिवहन सुविधा उपलब्ध करवाई जाती
मंगल दिवस अभियान 2008, किशोरियों को पूरक पोषण प्रदान किया जाता है तथा गर्भवती महिलाओं की गोदभराई एवं स्वास्थ्य जांच आदि की जाती है।
उदिता अभियान 2015– महिलाओं में माहवारी की प्रति जागरूकता फैलाने के लिए।
लालिमा अभियान 2016 महिलाओं में एनीमिया की समस्या कम करने हेतु।
अनमोल एप-: इसमें गर्भवती महिलाएं टेलीमेडिसिन प्राप्त कर सकतीं हैं।
मुख्यमंत्री जीवन जननी योजना 2020
इसके तहत गर्भवती महिलाओं को पोषण हेतु₹4000 की राशि प्रदान की जाती है।
मध्य प्रदेश में वर्ष 2020 को राज्य पोषण नीति 2020 बनाई गई जिसमें मातृ मृत्यु दर को 70/प्रति लाख लाने का लक्ष्य रखा गया।
लिंगानुपात-:
किसी देश या प्रदेश में 1000 पुरुषों के सापेक्ष महिलाओं की संख्या को वहां का लिंग अनुपात कहा जाता है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का लिंगानुपात 943 था जबकि मध्य प्रदेश का निर्माण उपाधि 931 था।
.
लिंगानुपात को प्रभावित करने वाले कारक-:
कन्या भ्रूण हत्या-: जिस क्षेत्र में परंपरागत पुत्र प्राप्ति की रूढ़िवादी चाहत अधिक होती है उस क्षेत्र में टेबल पुत्र प्राप्ति हेतु कन्या भ्रूण हत्या भी अधिक होती है परिणाम स्वरूप वहां का लिंगानुपात निम्न रहता है।
बाल विवाह-: जिन क्षेत्रों में (ग्रामीण क्षेत्र) बाल विवाह की प्रथा प्रचलित होती है उन क्षेत्रों में लिंग अनुपात कम होता है क्योंकि कम उम्र में शादी से महिलाओं को कम उम्र में ही मदद का बोझ उठाना पड़ता है जिससे प्रसव पीड़ा के दौरान की मृत्यु हो जाती है।
महिला शिक्षा-: जिन क्षेत्रों में महिला शिक्षा की स्थिति अच्छी होती है उस क्षेत्र में महिला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती है परिणाम स्वरूप उनके साथ घरेलू हिंसा नहीं होती और घरेलू हिंसा के कारण उनकी मृत्यु नहीं होती जिससे स्त्रियों की संख्या लगभग पुरुषों के बराबर ही बनी रहती है।
और क्योंकि भारत के केरल तमिलनाडु आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में सामाजिक जागरूकता , बाल विवाह प्रथा का कम प्रचलन एवं महिला शिक्षा की बढ़ोतरी के कारण यहां पर लिंग अनुपात अधिक है।
साक्षरता-:
भारतीय जनगणना आयोग के अनुसार भारत में साक्षर व्यक्ति उसे कहा जाता है जो 7 वर्ष से अधिक आयु का हो तथा किसी एक भाषा के साधारण वाक्य को पढ़ने लिखने एवं समझ में की योग्यता रखता है।
इस आधार पर वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल साक्षरता दर 73% एवं मध्य प्रदेश की साक्षरता दर 69.32% थी।
साक्षरता को प्रभावित करने वाले कारक-:
लोगों की आर्थिक स्थिति।
शिक्षण संस्थानों की उपलब्धता
संचार एवं यातायात के साधनों का विकास।
शिक्षा के प्रति परिवार की मानसिकता।
सरकारी नीति।
.
जीवन प्रत्याशा-:
किसी देश में व्यक्तियों के जीने की औसत आयु ( औसतन जीवनकाल) जीवन प्रत्याशा कहलाता है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जीवन प्रत्याशा 65.48 थी।
जीवन प्रत्याशा को प्रभावित करने वाले कारक-:
आर्थिक स्थिति एवं स्वास्थ्य के प्रति सजगता।
लोगों के खानपान का स्तर।
योग व्यायाम एवं स्वच्छता का स्तर।
स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता।