[ऊर्जा] परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत,गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत

[ऊर्जा]

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[ऊर्जा] ऊर्जा के पारंपरिक एवं गैर पारंपरिक नवीनीकरण स्रोत

किसी भी जैविक एवं भौतिक अभिक्रिया को संपन्न करने में जो शक्ति लगती है उसे उर्जा कहते हैं। अर्थात ऊर्जा किसी कार्य को करने की क्षमता है। 

ऊर्जा स्त्रोत-:

ऐसे संसाधन जिनसे ऊर्जा की प्राप्ति होती है उन्हें ऊर्जा स्त्रोत कहते हैं। और ऊर्जा स्त्रोतों को दो भागों में बांटा जा सकता है-:

  • परंपरागत ऊर्जा स्रोत

  • गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत। 

परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत-:

ऊर्जा प्राप्ति के ऐसे स्त्रोत, जिनका उपयोग परंपरागत तौर पर लंबे समय से ऊर्जा प्राप्ति के लिए होता आ रहा है उन्हें परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत कहते हैं, जैसे-: कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, लकड़ी- सूखा गोबर, खनिज तेल आदि। 

गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत-:

ऊर्जा प्राप्ति के ऐसे स्त्रोत, जिनका प्रयोग प्राचीन समय से नहीं, बल्कि आधुनिक काल से ही नवाचारों द्वारा प्रारंभ हुआ है। जैसे-: सौर्य उर्जा, पवन ऊर्जा, बायोगैस ,बायोमास ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा,। 

परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत एवं गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत में अंतर-:

  • परिभाषा

  • सामान्यतः परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत अनवीनीकरण होते हैं अर्थात इनका एक बार प्रयोग करने के बाद पुनः सतत रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता। जबकी गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत नवीनीकरण होते हैं अर्थात इनका एक बार उपयोग करने के बाद पुनः या सतत रूप से उपयोग किया जा सकता है। 

  • परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत की उपलब्धता सीमित होती है। जबकि गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत तो की उपलब्धता असीमित होती है ये कभी समाप्त नहीं हो सकते हैं। 

  • परंपरागत ऊर्जा स्रोत प्रदूषणकारी होते हैं। गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत प्रदूषण रहित होते हैं अर्थात इनके दोहन से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता है

  • परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत के दोहन के लिए विशिष्ट तकनीक की आवश्यकता नहीं होती है।  गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत के दोहन के लिए विशिष्ट तकनीक की आवश्यकता होती है जैसे- सौर ऊर्जा के दोहन के लिए सोलर पैनल सिस्टम की, वायुऊर्जा के दोहन के लिए पवन चक्कियों की। 

  • परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत के प्रमुख उदाहरण है-: कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, लकड़ी- सूखा गोबर आदि।

प्रमुख परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत-:

  • कोयला

  • पेट्रोलियम

  • प्राकृतिक गैस

कोयला

कोयला काले अथवा भूरे रंग का ज्वलनशील ठोस कार्बनिक पदार्थ होता है। 

जिसका निर्माण, भूगर्भ में वनस्पतियों के दबने से लाखों करोड़ों वर्षों में होता है। 

कोयला विद्युत निर्माण का आधार है भारत की लगभग दो तिहाई विद्युत कोयले से ही निर्मित होती है। 

पेट्रोलियम-:

पेट्रोलियम शब्द का शाब्दिक अर्थ है शैलों या खनिजों से प्राप्त तेल। इसलिए पेट्रोलियम को ‘खनिज तेल’ भी कहा जाता है। 

पेट्रोलियम रासायनिक रूप से तरल रूप में पाया जाने वाला ज्वलनशील हाइड्रोकार्बन है। 

जिसका निर्माण, भूगर्भ में जीव जंतुओं के अवशेषों के दबने से लाखों करोड़ों वर्षों में होता है। 

पेट्रोलियम आज के परिवहन तंत्र का प्रमुख ही ईधन है क्योंकि लगभग सभी सड़क में चलने वाले वाहन पेट्रोलियम से ही चलते हैं। 

पेट्रोलियम के उत्पाद- डामर, मोम, स्नेहक, डीजल, केरोसिन, पेट्रोल, एलपीजी, सीएनजी। 

भारत के प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र-:

असम मेघालय क्षेत्र-: माकूम क्षेत्र, डिगबोई क्षेत्र, सूरमा घाटी क्षेत्र। 

गुजरात तट तेल क्षेत्र-: खंभात क्षेत्र, अंकलेश्वर क्षेत्र, सानंद घाटी क्षेत्र। 

पश्चिमी अपतटीय क्षेत्र-: मुंबई हाई तेल क्षेत्र, बसीन तेल क्षेत्र। 

पूर्वी अपतटीय तेल क्षेत्र-: रब्बा अपतटीय तेल क्षेत्र(आंध्र प्रदेश)। 

प्राकृतिक गैस-:

प्राकृतिक गैस विभिन्न हाइड्रोकार्बन गैसों जैसे- मीथेन ,एथेन, प्रोपेन, ब्यूटेन  का मिश्रण है जिसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है। 

यह धरातल के अंदर खनिज तेल के भंडार के ऊपर तैरती हुई अवस्था में पाई जाती है। 

इसका निर्माण भी जीवाश्मों से होता है। 

वर्तमान में मुख्यतः दो प्रकार की प्राकृतिक गैस का उपयोग होता है-:

  • कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (CNG)

  • लिक्विड पेट्रोलियम गैस (LPG)

कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (CNG)

यह संपीड़ित प्राकृतिक गैस है, जो रंगहीन गंधहीन एवं विषहीन होती है। इसके मुख्य अवयव मेथेन, एथेन ,प्रोपेन हैं। इसका प्रयोग वाहनों के ईंधन के रूप में किया जाता है। 

सी एन जी से प्रयोग के लाभ-:

  • सी एन जी के दहन से पेट्रोल की तुलना में कम प्रदूषण होता है। 

  • सी एन जी प्रयोग से पेट्रोलियम पर निर्भरता कम होती है। 

लिक्विड पेट्रोलियम गैस (LPG)

यह एक पेट्रोलियम गैस है जिसे क्रूड ऑयल से रिफाइनरी द्वारा प्राप्त किया जाता है, यह भी रंगहीन एवं गंधहीन गैस होती है, किंतु इसके रिसाव का पता लगाने के लिए इसमें गंधक पदार्थ मिला दिया जाता है, इसके मुख्य अवयव प्रोपेन ब्यूटेन है। 

प्रमुख गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत एवं उनका वर्तमान परिदृश्य और भविष्य की चुनौती-:

 

[सौर ऊर्जा]

सूर्य के विकिरण से प्राप्त होने वाली ऊर्जा सौर ऊर्जा कहलाती है। जो ऊर्जा प्राप्ति का एक गैर-परंपरागत एवं नवीनीकरण स्त्रोत है। 

वर्तमान में निम्न दो तकनीकों के माध्यम से सौर्य उर्जा को उपयोग में लाया जा रहा है-

  • सौर तापीय तकनीक (solar thermal technique)

  • सोलर फोटोवॉल्टिक तकनीक Solar photovoltaic technique

सौर तापीय तकनीक-: इस तकनीक के अंतर्गत सूर्य से प्राप्त विकिरणों को तापीय ऊर्जा अर्थात ऊष्मा में बदलकर, उसका उपयोग भोजन पकाने, पानी गर्म करने, पानी को लवणमुक्त बनाने आदि में किया जाता है। 

सोलर फोटोवॉल्टिक तकनीक-: इस तकनीक के अंतर्गत सूर्य से प्राप्त विकिरणों को सिलिकॉन के बने फोटोवॉल्टिक सेल द्वारा विद्युत में बदलकर विद्युत ऊर्जा प्राप्त की जाती है। जिसका उपयोग मुख्यत: पानी का पंप चला है तथा दूर दराज के घरों को प्रकाशित करने में किया जाता है। 

भारत में सौर ऊर्जा की प्रासंगिकता/संभावनाएं-:

  • भारत उष्णकटिबंधीय बेल्ट के क्षेत्र में स्थित है जिसके कारण भारत को वर्ष के लगभग 300 दिन सूर्य प्रकाश प्राप्त होता है, अतः भारत में सौर ऊर्जा से विद्युत निर्माण की अपार संभावना है। 

  • भारत के उत्तर पश्चिमी मरुस्थलीय क्षेत्र में सौर ऊर्जा की प्राप्ति हेतु सोलर प्लांट लगाने के लिए व्यापक स्थान भी उपलब्ध है। अतः भारत में सौर ऊर्जा से विद्युत निर्माण की अपार संभावना है। 

  • भारत एक ग्रामीण जनसंख्या वाला देश है भारत के अनेकों ऐसे पिछड़े गांव एवं जनजातीय इलाके हैं जहां पर अभी तक विद्युत की आपूर्ति संभव नहीं हो सकी है अतः उन दुर्गम क्षेत्रों में सौर ऊर्जा द्वारा विद्युत की आपूर्ति की जा सकती है। 

  • भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां पर दूरदराज के खेतों में कृषि के लिए काफी ज्यादा विद्युत की आवश्यकता होती है किंतु उन खेतों में विद्युत लाइन पहुंचाना मुश्किल है अतः वहां पर सौर ऊर्जा के विकास द्वारा विद्युत की आपूर्ति की जा सकती है। 

  • भारत ऊर्जा का एक प्रमुख उपभोक्ता देश है ऊर्जा की बढ़ती मांग से जहां एक ओर सीमित जीवाश्म ईंधन का तेजी से दोहन हो रहा है वहीं दूसरी और प्रदूषण भी बढ़ रहा है, इन दोनों समस्या का समाधान सौर ऊर्जा के विकास में निहित है। 

सौर ऊर्जा की वर्तमान स्थिति-:

वर्तमान में भारत की कुल सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन क्षमता लगभग 70 गीगावॉट है, जो देश की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता का 15% है।

हालांकि भारत में सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है इस संदर्भ में भारत सरकार द्वारा 

  • राष्ट्रीय सोलर मिशन , 

  • सोलर पार्क योजना,

  • रूफटाप सौर ऊर्जा योजना,

  • एवं पीएम कुसुम योजना जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं 

जिसके परिणामस्वरूप भारत में सौर ऊर्जा विद्युत उत्पादन क्षमता में बढ़ने की व्यापक संभावना नजर आ रही है। हाल ही में मध्य प्रदेश के रीवा में एशिया का सबसे बड़ा सोलर ऊर्जा प्लांट लगाया गया जिसकी कुल विद्युत उत्पादन क्षमता 750 मेगा वाट है। 

सौर ऊर्जा के विकास की चुनौतियां-:

  • सौर ऊर्जा की प्राप्ति केवल दिन के समय एवं स्वच्छ मौसम में ही की जा सकती है रात के समय एवं खराब मौसम में नहीं। 

  • सोलर प्लांट लगवाने की प्रारंभिक लागत एवं उसके रखरखाव का खर्चा अधिक आता है। 

  • सोलर प्लांट लगाने के लिए बहुत बड़े गैर कृषि-क्षेत्र की आवश्यकता होती है। जो सभी स्थानों में आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती। 

  • सौर ऊर्जा से प्राप्त विद्युत को स्टोर करने के लिए सस्ती बैटरियों की उपलब्धता का अभाव।

[पवन ऊर्जा]

गतिमान वायु द्वारा टरबाइन घुमाकर प्राप्त की गई ऊर्जा(विद्युत) पवन ऊर्जा कहलाती है। जो ऊर्जा प्राप्ति का एक गैर-परंपरागत एवं नवीनीकरण स्त्रोत है। पवन ऊर्जा के विकास के लिए पवन का वेग 8 से 9 मीटर प्रति सेकंड होना चाहिए, और भारत में पवन का औसतन वेग 9.4मीटर सेकंड है भारत में पवन ऊर्जा के विकास की व्यापक संभावना है। विशेषकर निम्न क्षेत्रों में-:

  • कच्छ क्षेत्र में। 

  • राजस्थान की मरुस्थलीय क्षेत्र में। 

  • अन्य खुले तटीय क्षेत्रों में। 

भारत में पवन ऊर्जा की वर्तमान स्थिति-:

वर्ष 2021 के आंकड़ों के अनुसार भारत की कुल पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन क्षमता लगभग 45 gw है। और पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन क्षेत्र में चीन, अमेरिका और जर्मनी के बाद विश्व में भारत का चौथा स्थान है। और वर्तमान में सरकार द्वारा पवन ऊर्जा के विकास के लिए

  • राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति, 2015,

  • राष्ट्रीय पवन सौर्य हाइब्रिड नीति,2018 बनाई गई है इससे भारत में पवन ऊर्जा के विकास की व्यापक संभावना नजर आ रही हैं

हाल ही में गुजरात के कच्छ क्षेत्र में 1100 मेगा वाट की पवन ऊर्जा इकाई स्थापित की जा रही है, जो एशिया की सबसे बड़ी पवन ऊर्जा परियोजना है। 

पवन ऊर्जा के विकास की चुनौतियां-:

  • भारत के हर क्षेत्र में तथा हर मौसम में एक समान रूप से एक दिशा में पवन नहीं चलती। 

  • पवन चक्कियां काफी ज्यादा शोर करती हैं अतः इन्हें किसी बस्ती वाले इलाके के आसपास नहीं लगाया जा सकता। 

  • पवन चक्की के पंखों से को छोटे जीव कटकर मर जाते है जिससे जब देखता को नुकसान होता है दूसरी ओर मानवता पर भी सवाल उठते हैं। 

  • पवन चक्की की स्थापना की लागत काफी अधिक आती है इन्हें एक साधारण व्यक्ति नहीं लगा सकता है। 

[जल विद्युत ऊर्जा]

नदियों के बहते हुए जल को बांध के माध्यम से टरबाइन घुमाकर जो विद्युत बनाई जाती है उसे जलविद्युत कहते हैं। जो ऊर्जा प्राप्ति का एक गैर-परंपरागत एवं नवीनीकरण स्त्रोत है।

भारत में जल विद्युत की संभावनाएं-:

भारत की भूमि में प्रकृति ने विशाल जल संसाधन उपलब्ध कराए हैं एक आंकड़े के अनुसार भारत में लगभग 10,000 छोटी-बड़ी नदियां हैं अतः भारत में जल-विद्युत की अपार संभावनाएं विद्वान हैं। 

भारत में जल विद्युत की वर्तमान स्थिति-:

वर्तमान में भारत में बांध परियोजनाओं द्वारा लगभग 50000 मेगावाट(50gw) विद्युत का उत्पादन हो रहा है, जो देश की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता का लगभग 15% है।

इसके अलावा वर्तमान में भारत सरकार द्वारा जल विद्युत को बढ़ावा दिया जा रहा है इसके लिए वर्ष 1975 में राष्ट्रीय जल विद्युत निगम की स्थापना की थी भारत में जल विद्युत विकास के लिए लगातार कार्यशील है, जिस के प्रयासों से भारत विश्व में जल विद्युत उत्पादन के मामले में पांचवा स्थान ले पाया है। और इस के प्रयासों से भविष्य में जल विद्युत के विकास की व्यापक संभावनाएं नजर आ रही हैं। 

जल विद्युत की सीमाएं-:

  • जल विद्युत के लिए बांध बनाना होता है जिसमें व्यापक पर्यावरण क्षेत्र जलमग्न हो जाता है एवं अनेकों लोगों को पुनर्वासित होना पड़ता है। 

  • जल विद्युत संयंत्र इच्छाअनुसार किसी भी स्थान में नहीं लगाया जा सकता केवल नदियों के मार्ग में स्थापित किया जा सकता है। 

[महासागरीय ऊर्जा]

महासागरीय तरंगों तथा महासागरीय जल के तापांतर का प्रयोग करके बनाई गई विद्युत ऊर्जा महासागरीय ऊर्जा कहलाती है। जो ऊर्जा प्राप्ति का एक गैर-परंपरागत एवं नवीनीकरण स्रोत है। 

वर्तमान में निम्न दो रूपों में महासागरीय जल से विद्युत का निर्माण किया जा रहा है-:

  • तरंग उर्जा(ocean wave energy)

  • समुद्री तापीय ऊर्जा(Ocean thermal energy)

तरंग उर्जा(ocean wave energy)

समुद्री जल की लहरों के प्रवाह वेग द्वारा जो विद्युत बनाई जाती है उसे तरंगीय उर्जा कहते हैं, और भारत के अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के तटीय भागों में तरंगीय उर्जा अपार संभावनाएं है। इस संभावना को ध्यान में रखते हुए हाल ही में निकोबार के ‘मूंस पॉइंट’ में 1 मेगावाट का तथा केरल के ‘थनगेसरी’ में 1.5 मेगावाट के विद्युत संयंत्र लगाए गए हैं। जो अभी परीक्षण स्तर पर हैं। 

समुद्री तापीय ऊर्जा(Ocean thermal energy)-:

समुद्र के जल में सूर्य का प्रकाश पड़ने से समुद्र की ऊपरी सतह अधिक गर्म हो जाती है, जबकि निचली सतह का तापमान कम होता है जिसके कारण समुद्र की विभिन्न परतों में तपांतर पाया जाता है और इसी तापांतर का उपयोग करके विद्युत बनाने की तकनीक OTEC(Ocean thermal energy conversion) कहलाती है। 

हाल ही में अमेरिका की “सी सोलर पावर कंपनी” की मदद से चेन्नई के पास OTEC तकनीक पर आधारित, 100 मेगावाट विद्युत उत्पादन क्षमता वाला विद्युत संयंत्र स्थापित किया गया है। जो इस तकनीक की सफलता व्यापक संभावना को दर्शाता है। 

भूतापीय ऊर्जा

भूतापीय उर्जा का तात्पर्य- पृथ्वी के गर्भ से रेडियोधर्मी तत्वों के विघटन के कारण, धरातल पर निकलने वाली तापीय ऊर्जा से है। और वर्तमान में विज्ञान एवं तकनीकी के विकास से इसका प्रयोग विद्युत उत्पादन में किया जा रहा है। जो एक ऊर्जा प्राप्ति का गैर परंपरागत एवं नवीनीकरण स्त्रोत है। 

भारत के प्रमुख भूतापीय उर्जा स्थल-:

  • लद्दाख में- पुगा घाटी। 

  • हिमाचल प्रदेश में- मणिकरण। 

  • उत्तराखंड में- तपोवन। 

  • छत्तीसगढ़ में- तातापानी। 

  • मध्यप्रदेश में- अनहोनी। 

अतः इन भूतापीय स्थलों से विद्युत उत्पादन की व्यापक संभावना विद्यमान है। 

हाल ही में हिमाचल प्रदेश के मणिकरण भूतापीय ऊर्जा स्थल पर प्रायोगिक विद्युत निर्माण संयंत्र की स्थापना की गई है। 

[बायोमास ऊर्जा]

जैविक पदार्थों (पादप तथा जंतुओं के अवशिष्टों) में निहित ऊर्जा को बायोमास ऊर्जा कहते हैं, जो ऊर्जा प्राप्ति का एक नवीनीकरण स्त्रोत है।

बायोमास ऊर्जा प्राप्ति के प्रमुख स्त्रोत निम्नलिखित हैं-

  • मृत पेड़ पौधों एवं जंतुओं के अवशेष। 

  • पशुओं द्वारा निष्कासित अवशिष्ट जैसे- गोबर। 

  • कृषिगत कार्यों से निकले अपशिष्ट जैसे- पराली। 

  • घरेलू एवं औद्योगिक क्षेत्र के जैविक अपशिष्ट जैसे-: सीवेज ,मल-मूत्र। 

और भारत एक कृषि प्रधान तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था वाला देश है जहां पर व्यापक मात्रा में पशुपालन होता है तथा जीव जंतु व पेड़ पौधों का अपशिष्ट निकलता है अतः भारत जैसे देशों में बायोमास ऊर्जा की व्यापक संभावना है। एक अनुमान के अनुसार भारत में बायोमास ऊर्जा से लगभग 18000 मेगा वाट उत्पादन किया जा सकता है , किंतु वर्तमान में भारत में बायोमास ऊर्जा की कुल उत्पादन क्षमता 4700 मेगावाट है।  

बायोमास ऊर्जा के रूप-:

  • बायोगैस

  • बायोडीजल

  • बायोएथेनॉल

बायोगैस-:

गोबर मल मूत्र तथा अन्य घरेलू जैविक अपशिष्ट (सब्जियों के छिलके, बचा हुआ खाना) को ऑक्सीजन रहित प्रक्रिया (anaerobic) द्वारा सड़क बायोगैस का निर्माण किया जाता है जिसमें 75% तक मीथेन होती है। ‌इसका उपयोग खाना बनाने में किया जाता है। 

बायोडीजल-:

विभिन्न जैविक अपशिष्टों जैसे वनस्पति तेल ,पशुओं की वसा एवं बचे हुए तेलीय खाद्य पदार्थों द्वारा जो डीजल बनाया जाता है उसे बायोडीजल कहते हैं। और भारत में बायोडीजल बनाने का संयंत्र ऑस्ट्रेलिया के सहयोग से आंध्र प्रदेश के “काकानाडा़ सेज” में लगाया गया है। 

बायोएथेनॉल-: 

शर्करा युक्त जैविक पदार्थ जैसे- गन्ना ,मक्का के अपशिष्टों को सड़ाकर बायोएथेनॉल का निर्माण किया जाता है, जिसका प्रयोग पेट्रोल में मिलाकर ईंधन के रूप में किया जाता है। 

बायोमास ऊर्जा के लाभ-:

  • बायोमास ऊर्जा एक नवीनीकरण ऊर्जा स्त्रोत है, अर्थात यह कभी खत्म नहीं होगा। 

  • बायोमास ऊर्जा के उपयोग से जहां एक और बेकार पड़े जैविक अवशिष्टों का निपटान हो जाएगा वहीं दूसरी ओर हमें व्यापक मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होने लगेगी। 

  • बायोगैस संयंत्र के अपशिष्ट का उपयोग उर्वरक के रूप में किया जा सकता है। 

जैविक ईंधन

पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं एवं उनके अवशेषों से प्राप्त ईंधन को जैविक ईंधन कहते हैं। 

 जैविक ईंधन मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-:

  • बायोगैस

  • बायोडीजल

  • बायोएथेनॉल….।

[परमाणु ऊर्जा]

विभिन्न रेडियोधर्मी पदार्थ जैसे- यूरेनियम ,थोरियम, प्लूटोनियम आदि के परमाणुओं के विघटन से उत्पन्न ऊर्जा परमाणु ऊर्जा कहलाती हैं, और परमाणु ऊर्जा परंपरागत ऊर्जा का एक वैकल्पिक स्त्रोत है क्योंकि भारत में थोरियम एवं यूरेनियम जैसे रेडियोधर्मी पदार्थ मौजूद हैं जिनकी बहुत कम मात्रा से बहुत अधिक ऊर्जा उत्पादित की जा सकती है। 

वर्तमान में भारत में परमाणु ऊर्जा से विद्युत बनाने की 22 रियेक्टर कार्यशील है जिनकी कुल विद्युत उत्पादन क्षमता 6780 मेगावाट है। 

भारत में ऊर्जा परिदृश्य-:

विश्व में सर्वाधिक ऊर्जा का उत्पादन संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में मेगावाट  होता है,   वर्ष 2023 के आंकड़ों के अनुसार भारत की कुल विद्युत संस्थापित क्षमता 412 गीगावॉट है।

देश में उत्पादित होने वाली कुल विद्युत में से 

  • 58% विद्युत- कोयले से उत्पादित होती है।

  • 15% विद्युत- बांध परियोजना से उत्पादित होती है। 

  • 9.5% विद्युत- पवन ऊर्जा से उत्पादित होती है। 

  • 15% विद्युत- सौर्य ऊर्जा से उत्पादित होती है।

  • 2% विद्युत- परमाणु ऊर्जा से उत्पादित होती है। 

वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोत-:

ऊर्जा प्राप्ति के ऐसे स्त्रोत जो अनवीनीकरण होते हैं तथा जिनका उपयोग जीवाश्म ईंधन के स्थान पर किया जा सकता है, उन्हें वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोत कहते हैं। जैसे- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा ,जल विद्युत ऊर्जा ,भू-तापीय ऊर्जा। 

भारत में वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों की स्थिति-:

परंपरागत एवं अनवीनीकरण ऊर्जा स्त्रोतों की सीमित उपलब्धता एवं प्रदूषण संबंधी दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों को बढ़ावा दिया है इस संदर्भ में 1992 को नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय बनाया गया, राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन चलाया गया, तथा समय-समय पर वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों को बढ़ावा देने के लिए अनेक और नीतियां एवं कार्यक्रम लागू किए जा रहे हैं जिसके परिणाम स्वरूप वर्तमान में भारत की लगभग एक तिहाई ऊर्जा का उत्पादन वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों से होने लगा है और वर्ष 2030 तक 50% ऊर्जा उत्पादन वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों से किए जाने की संभावना है। 

वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोत-: ऊर्जा प्राप्ति के ऐसे स्त्रोत जो अनवीनीकरण होते हैं तथा जिनका उपयोग जीवाश्म ईंधन के स्थान पर किया जा सकता है, उन्हें वैकल्पि

 

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