[ऊर्जा सुरक्षा]
This page Contents
Toggleऊर्जा सुरक्षा का तात्पर्य है- देश की सभी लोगों तक ऊर्जा की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने से है।
ऊर्जा सुरक्षा के अंतर्गत 3 आयाम शामिल है-:
सभी लोगों तक ऊर्जा की पर्याप्त उपलब्धता हो।
सभी लोगों तक ऊर्जा की पहुंच हो।
सभी लोगों को वहनीय कीमतों पर ऊर्जा प्राप्त हो।
ऊर्जा सुरक्षा संबंधित प्रमुख सरकारी योजनाएं-:
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना।
प्रधानमंत्री सौभाग्य योजना।
अटल ज्योति योजना।
प्रधानमंत्री ग्रामीण उजाला योजना।
मध्य प्रदेश की इंदिरा ग्रह ज्योति योजना।
भारत में ऊर्जा सुरक्षा से संबंधित चुनौतियां-:
जनसंख्या वृद्धि-: वर्तमान में भारत किचन संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और जनसंख्या के बढ़ने से भारत में प्रतिवर्ष लगभग 12% ऊर्जा की मांग बढ़ रही है किंतु इस गति से ऊर्जा की पूर्ति नहीं बढ़ पा रही है जो भारत की ऊर्जा(सुरक्षा) प्रबंधन से संबंधित प्रमुख चुनौती है।
परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत पर निर्भरता-: भारत में लगभग 67% विद्युत का उत्पादन परंपरागत ऊर्जा स्रोतों से होता है, जबकि भारत में परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों के बहुत ही सीमित भंडार है जो समाप्त हो सकते हैं परिणाम स्वरूप ऊर्जा संकट जैसी समस्या देखने को मिलती है ऊर्जा(सुरक्षा) प्रबंधन के मामले में सबसे बड़ी चुनौती है।
विदेशों पर निर्भरता-: भारत के पास भारत की मांग के अनुसार जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधन पर्याप्त मात्रा में मौजूद नहीं यही कारण है कि भारत को पेट्रोलियम, कोयला एवं रक्त गैस के लिए विदेशों पर निर्भर होना पड़ता है, वर्तमान में भारत की कुल जरूरत का लगभग 80% कच्चा तेल, 25% कोयला, तथा लगभग 30% प्राकृतिक गैस विदेशों से आयात होता है। इस कारण से हमें अपनी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का पर्याप्त विकास में होना-: भारत में विभिन्न गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों जैसे- सौर ऊर्जा, बायोमास ऊर्जा की व्यापक संभावनाएं मौजूद हैं, लेकिन प्रजाति तकनीकी एवं अधोसंरचना के अभाव में विभिन्न ने गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों से उर्जा उत्पादन का पर्याप्त विकास एवं विस्तार नहीं हो पा रहा है,
जन जागरूकता का अभाव-: भरत के अधिकांश लोग ऊर्जा के महत्व को ना समझते हुए ऊर्जा का अपव्यय करते हैं जैसे- अनावश्यक होने पर भी टीवी ,पंखा चलाना। जो भी ऊर्जा सुरक्षा एवं ऊर्जा प्रबंधन की एक प्रमुख चुनौती है।
समाधान-:
गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों का तेजी से विकास एवं विस्तार किया जाए। विशेषकर सौर ऊर्जा एवं बायोमास ऊर्जा।
डीजल एवं पेट्रोल से चलने वाली गाड़ी के स्थान पर सोलर इलेक्ट्रिसिटी, बायोडीजल या सीएनजी से चलने वाली बहनों का विकास किया जाए ताकि पेट्रोलियम तेल की मांग कम हो।
लोगों को ऊर्जा के समुचित प्रयोग के प्रति जागरूक किया जाए।
ऊर्जा के दक्षता पूर्ण उपकरणों का विकास विस्तार किया जाए।
हमें ऐसी संस्कृति के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए जिसमें कम से कम ऊर्जा की खपत होती हो। ताकि ऊर्जा की बचत हो सके।
ऊर्जा संकट-:
जब ऊर्जा की मांग के अनुसार ऊर्जा की आपूर्ति नहीं हो पाती जिसके कारण सामाजिक एवं आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है तो इसे ऊर्जा संकट कहते हैं।
भारत में ऊर्जा संकट के कारण-:
लगातार जनसंख्या वृद्धि होना, जिससे प्रतिवर्ष लगभग 12% ऊर्जा मांग बढ़ रही है।
भारत में गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों की व्यापक संभावना है लेकिन पर्याप्त तकनीकी एवं अवसंरचना के अभाव में गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों का विकास एवं विस्तार ना हो पाना।
लोगों द्वारा ऊर्जा का अनावश्यक प्रयोग या अपव्यय किया जाना।
भारतवासियों द्वारा कम ऊर्जा दक्षता वाले उपकरणों का प्रयोग किया जाना।
वर्तमान जीवन शैली अधिक भौतिकवादी एवं उपभोक्ता है, जिसके कारण पहले की तुलना में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत बढ़ गई है।
औद्योगीकरण में वृद्धि होने से ऊर्जा की मांग बढ़ना।
भारत में परमाणु ऊर्जा स्त्रोत (यूरेनियम) के सीमित भंडार होना। जिसके करण भारत को परमाणु ऊर्जा उत्पादन हेतु यूरेनियम के लिए अमेरिका कनाडा ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
ऊर्जा संकट के प्रभाव-:
ऊर्जा जीवन का अनिवार्य ऐसा है अतः ऊर्जा संकट या ऊर्जा की कमी से विभिन्न क्षेत्रों में नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जैसे-:
कृषि क्षेत्र में-: सिंचाई पंप नहीं चल सकेंगे जिससे उत्पादन कम होगा।
उद्योग क्षेत्र में-: औद्योगिक मशीनें ऊर्जा से चलती है किंतु ऊर्जा की कमी होने से मशीन नहीं चल सकेंगी इससे उद्योग बंद होने लगेंगे, परिणाम स्वरुप आर्थिक विकास रुक जाएगा।
घरेलू क्षेत्र में-: विभिन्न घरेलू सुख सुविधाओं जैसे- लाइट पंखा टीवी एलपीजी गैस के उपयोग को कम करना पड़ेगा।
अर्थात हम यह कह सकते हैं कि ऊर्जा संकट से हमारा सामाजिक एवं आर्थिक विकास रुक जाएगा।
भारत में ऊर्जा संकट की स्थिति-:
इंडिया एनर्जी आउटलुक रिपोर्ट के अनुसार जिसके अनुसार भारत 2030 तक यूरोपीय संघ को पीछे छोड़कर दुनिया का तीसरा बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता देश बन जाएगा। तथा भारत में प्रतिवर्ष लगभग 10 से 12% ऊर्जा की मांग पड़ रही है यह सलाह पर केवल 10 साल बाद ऊर्जा की मांग वर्तमान से दुगनी हो जाएगी जो भारत के ऊर्जा संकट की ओर संकेत कर रहा है।
अतः भारत को ऊर्जा संकट की स्थिति से बचाने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं
ऊर्जा संकट दूर करने के लिए सरकारी प्रयास-:
ऊर्जा संकट को दूर करने के लिए ऊर्जा की मांग करना तथा ऊर्जा की पूर्ति बढ़ाना आवश्यक है इसके लिए सरकार ने निर्णय प्रयास किए हैं-:
सरकार ने ऊर्जा दक्षता पर आधारित उपकरणों के विकास को बढ़ावा दिया है इस संदर्भ में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो की स्थापना एक महत्वपूर्ण कदम है।
सरकार ने उजाला योजना के तहत लोगों को बहुत ही कम मूल्य पर एलईडी वितरित की है ताकि ऊर्जा की मांग कम हो सके।
सरकार ने ऊर्जा की पूर्ति बढ़ाने हेतु गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों जैसे- सौर ऊर्जा ,पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा ,परमाणु ऊर्जा के विकास को बढ़ावा दे रही है इस दिशा में हाल ही में मध्य प्रदेश के रीवा में 750 मेगा वाट का एशिया का सबसे बड़ा सोलर पैनल प्लांट लगाया गया।
गोवर्धन योजना- भारत एक पशु धन समृद्ध देश है जहां पर पशुओं की पर्याप्त मात्रा में अपशिष्ट प्राप्त होते हैं इन्हीं पशुओं के अपशिष्ट से बायोगैस ऊर्जा बनाने के लिए भारत सरकार द्वारा गोवर्धन योजना चलाई गई है।
इन प्रयासों के अतिरिक्त भी सरकार ने ऊर्जा संकट से निपटने के लिए अन्य कार्य किए हैं जैसे- BS-4 मानक वाले इंजन की बिक्री पर रोक लगाकरBS-6 मानक इंजन वाले वाहनों की बिक्री को बढ़ावा दिया है ताकि प्रदूषण एवं ऊर्जा की खपत कम हो सके, राष्ट्रीय पवन एवं सौर्य हाइब्रिड नीति लागू की है।