मध्यप्रदेश में वन संपदा

मध्यप्रदेश में वन संपदा

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वन अधिनियम 1927 के अनुसार भूमंडल का वह भाग जो वृक्षों से ढका हुआ है वन कहलाता है,

वन किसी भी राज्य की अमूल्य संपदा होती है जो न केवल प्रकृति को खूबसूरत बनाते हैं बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी सुदृढ़ता प्रदान करते हैं। 

मध्यप्रदेश में वन की स्थिति-:

भारत की वन स्थिति रिपोर्ट 2019 के अनुसार मध्य प्रदेश का लगभग 77482 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनाच्छादित है जो मध्य प्रदेश की कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 25% है। और वनाच्छादित क्षेत्र के मामले में मध्य प्रदेश राज्य का भारत में प्रथम स्थान है। 

जबकि राज्य अभिलेख अनुसार मध्य प्रदेश का लगभग 94689 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनाच्छादित है जो मध्य प्रदेश की कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 30.72% है। 

जिसमें से-

  • अति सघन वन 9.50% है। 

  • मध्यम सघन वन 47% हैं। 

  • विरल वन 43% हैं। 

.मध्यप्रदेश में वन की स्थिति-:

मध्य प्रदेश में वनों का वर्गीकरण-:

मध्य प्रदेश के वनों को निम्न पांच आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है-:

  • जलवायु के आधार पर

  • प्रशासनिक विभाजन के आधार पर

  • प्रजाति के आधार पर

  • प्रादेशिक वितरण के आधार पर

  • वन विभाग के आधार पर

जलवायु के आधार पर-:

मध्यप्रदेश में सामान्यतः उष्णकटिबंधीय वन पाए जाते हैं जिन्हें 3 भागों में बांटा जा सकता है-:

  • उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन। 

  • उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन। 

  • उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन। 

उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन-:

  • यह वन मध्य प्रदेश के उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां पर 100 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होती है। 

  • और मध्य प्रदेश की लगभग 9% क्षेत्रफल पर उष्णकटिबंधीय आर्द पर्णपाती वन पाए जाते हैं। 

  • इन वनों का विस्तार क्षेत्र मध्य प्रदेश के दक्षिण पूर्वी जिलों में है जिसके अंतर्गत- सीधी, शहडोल, उमरिया, अनूपपुर ,डिंडोरी ,बालाघाट ,मंडला आदि जिले आते हैं। 

  • इन वनों के प्रमुख वृक्ष है- साल, बांस, बीजा, हर्रा, महुआ। 

उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन-:

  • यह वन मध्य प्रदेश के उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां पर 75 सेंटीमीटर 100 सेंटीमीटर के मध्य वर्षा होती है। 

  • और मध्य प्रदेश की लगभग 88% क्षेत्रफल पर उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन पाए जाते हैं। 

  • मध्य प्रदेश की अधिकांश भाग में इन्हीं वनों का विस्तार है जिसके अंतर्गत दक्षिण पूर्वी तथा उत्तर पश्चिमी जिलों को छोड़कर लगभग सभी जिले आते हैं। जैसे- भोपाल वनवृत, सागर वन वृत्त, जबलपुर वन वृत्त, शिवपुरी वन वृत्त आदि। 

  • इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं- सागौन ,शीशम ,हल्दु, आम, पलाश आदि। 

उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन-:

  • यह वन मध्य प्रदेश के उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां पर 75 सेंटीमीटर से भी कम वर्षा होती है।

  • और मध्य प्रदेश की लगभग 2.38% क्षेत्रफल पर उष्णकटिबंधीय आर्द पर्णपाती वन पाए जाते हैं। 

  • इन वनों का विस्तार क्षेत्र मध्य प्रदेश की उत्तर पश्चिमी जिलों में जैसे- भिंड ,मुरैना, श्योपुर, रतलाम, मंदसौर, नीमच आदि। 

  • इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं- बबूल, खैर, प्लास,तेंदू। 

.मध्यप्रदेश में सामान्यतः उष्णकटिबंधीय वन पाए जाते हैं जिन्हें 3 भागों में बांटा जा सकता है-: उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन।  उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन।  उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन। 

प्रशासनिक विभाजन के आधार पर-:

भारतीय वन अधिनियम 1927 के तहत मध्यप्रदेश में प्रशासनिक आधार पर वनों को 3 वर्गों में बांटा गया है-:

  • आरक्षित वन

  • संरक्षित वन

  • अवर्गीकृत वन

 

आरक्षित वन-:

  • भारतीय वन अधिनियम 1927 के तहत आरक्षित वन,प्रथम श्रेणी के वन होते हैं जिसमें दुर्लभ वन संपदा शामिल होती है। 

  • इस प्रकार के वनों में लकड़ी काटने, बिना पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य आवागमन करने तथा पशु चारण करने पर पूर्ण प्रतिबंध होता है। 

  • यह  मध्य प्रदेश के कुल वन क्षेत्र के लगभग 65.36 प्रतिशत भाग पर पाए जाते हैं।

संरक्षित वन-:

  • भारतीय वन अधिनियम 1927 के तहत संरक्षित वन,प्रथम श्रेणी के वन होते हैं जिसमें बचा लिए ग‌ए दुर्लभ प्रजाति के वन तथा सामान्य प्रजाति के वन शामिल होते हैं। 

  • इस प्रकार के वनों में आरक्षित वनो की तुलना में प्रशासन के नियम कम कठोर होते हैं किंतु अनावश्यक रूप से लकड़ी काटने पर रोक होती है। हालांकि स्थानीय निवासियों को इन वनों में लकड़ी काटने के लिए कुछ मात्रा में छूट भी  होती है। 

  • संरक्षित पर मध्य प्रदेश के कुल वन क्षेत्र के लगभग 32% भाग पर पाए जाते हैं।

अवर्गीकृत वन-:

  • ये ऐसे वन हैं,जिन्हें प्रशासनिक दृष्टि से वर्गीकृत नहीं किया गया है,इनमें सुरक्षित प्रजाति के वन पाए जाते हैं। 

  • इन दिनों में प्रशासन का बहुत कम नियंत्रण होता है तथा पशु चारण करने और लकड़ी काटने की अनुमति होती। 

  • मध्य प्रदेश के लगभग 2% भाग पर अवर्गीकृत वन पाए जाते हैं। 

प्रजाति के आधार पर वनों का वर्गीकरण-:

जब किसी क्षेत्र में किसी विशेष प्रजाति की वनस्पति की सघनता 20% से अधिक होती है तो उस क्षेत्र को उस विशेष वनस्पति का क्षेत्र कहते हैं। 

और प्रजाति के आधार पर मध्य प्रदेश के वनों को मुख्यतः तीन भागों में बांटा जा सकता है 

  • साल वन

  • सागौन वन

  • मिश्रित वन

साल वन-:

  • साल वृक्ष की बहुलता वाले वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां पर 100 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होती है। 

  • मध्यप्रदेश में साल की बहुलता वाले वन मुख्यत: मंडला, बालाघाट, सीधीष शहडोल, उमरिया क्षेत्र में पाए जाते हैं। 

  • साल के वनो का उपयोग रेलवे स्लीपर बनाने तथा इमारतों के निर्माण में किया जाता है। 

सागौन वन-:

  • सागवान वृक्ष की बहुलता वाले वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां 75 से 100 सेंटीमीटर के मध्य वर्षा होती है। 

  • मध्यप्रदेश में सागौन की बहुलता वाले वन मुख्यत: भोपाल वनवृत, सागर वन वृत्त, जबलपुर वन वृत्त, शिवपुरी वन वृत्त आदि क्षेत्र में पाए जाते हैं। 

  • सागौन के वनो का उपयोग इमारती लकड़ी के रूप में तथा अन्य फर्नीचर निर्माण में किया जाता है। क्योंकि यह काफी मजबूत लकड़ी मानी जाती है। 

मिश्रित वन-:

ऐसे वन क्षेत्र जहां पर किसी एक विशेष प्रकार की प्रजाति के वन नहीं पाई जाते बल्कि विभिन्न प्रजाति है के वृक्षों के मिश्रण वाली वनस्पति पाई जाती है उन्हें मिश्रित वन क्षेत्र कहते हैं। मिश्रित क्षेत्रों में तेंदू, महुआ, बांस, पलाश, बबूल, साल पर मध्य प्रदेश के लगभग 58% भाग पर मिश्रित प्रजाति के वन क्षेत्र पाये जाते हैं। 

प्रादेशिक वितरण के आधार पर वनोंका वर्गीकरण-:

प्रादेशिक आधार पर मध्य प्रदेश के वनों को चार भागों में विभाजित किया गया है-:

  • सतपुड़ा मैकल श्रेणी की पेटी। 

  • विन्ध्यन-कैमूर की पेटी। 

  • मुरैना- शिवपुरी पेटी।

सतपुड़ा मैकल श्रेणी की पेटी-:

इस पेटी में प्रदेश के सबसे घने वन पाए जाते हैं। 

नर्मदा-पेटी का विस्तार नर्मदा-सोन घाटी के समांतर दक्षिण में है। इसके अंतर्गत मुख्यता बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी ,बालाघाट ,अनूपपुर जिले आते हैं। 

विन्ध्यन-कैमूर की पेटी-:

इस पेटी में मध्यम सघन वन पाए जाते हैं। 

तथा इस पेटी का विस्तार रीवा पन्ना पठार एवं बुंदेलखंड के पठार क्षेत्र में है

इस प्रदेश को तेंदुपत्ता बेल्ट भी कहते हैं

मुरैना- शिवपुरी पेटी-:

स्पीति में सबसे विरल वन पाए जाते हैं

तथा इस पेटी का विस्तार शिवपुरी मुरैना भिंड श्योपुर जैसे जिलों में है। 

वन विभाग के आधार पर वनों का वर्गीकरण-:

  • राजकीय वन- ऐसे बन जिसमें राज्य सरकार के नियंत्रण होता है। 

  • निगम निकाय वन- ऐसी बन जिसमें नगर पालिका एवं नगर निगम का नियंत्रण होता है। 

  • निजी वन- ऐसी वन क्षेत्र जिसमें व्यक्तिगत लोगों का नियंत्रण एवं अधिकार होता है। 

मध्य प्रदेश वन संपदा-:

प्रदेश की वन संपदा से शासन को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से करोड़ों रुपए की आय होती है। 

और राजस्व की दृष्टि से मध्यप्रदेश की वन संपदा को दो भागों में बांटा गया है

  • मुख्य वन संपदा

  • गौण वन संपदा। 

मुख्य वन संपदा-

ऐसी वन संपदा जो राजस्व की दृष्टि से अधिक लाभप्रद हो तथा वनोपज के रूप में लकड़ी प्राप्त होती हो, उसे मुख्य वन संपदा कहते हैं। जैसे- साल, सागौन, बांस। 

साल-:

साल उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन का वृक्ष है जिसकी लकड़ी का उपयोग मुख्यतः फर्नीचर निर्माण एवं रेलवे स्लीपर निर्माण होता है। 

यह मुख्यता मध्य प्रदेश के दक्षिण पूर्वी जिलों में पाया जाता है जैसे- डिंडोरी, मंडला ,होशंगाबाद, अनूपपुर। 

सागौन-:

यह उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन का वृक्ष है जिस की लकड़ी का उपयोग मुख्यत; इमारत निर्माण एवं फर्नीचर निर्माण में होता है। 

जो मुख्यत: नर्मदा घाटी के उत्तरी भाग में पाया जाता है। 

बांस-:

बस भी एक इमारती लकड़ी है जो मुख्य वन संपदा में शामिल है। मध्यप्रदेश में सर्वाधिक बांस बालाघाट ,अनूपपुर, होशंगाबाद, डिंडोरी जैसे दक्षिण पूर्वी जिलों में पाया जाता है। 

इसका उपयोग कागज निर्माण चटाई निर्माण खिलौना उद्योग हस्तशिल्प उद्योग में अधिकाधिक होता है। 

मध्यप्रदेश में बांस का वार्षिक उत्पादन 18000 नौसलन टन के आसपास है। 

गौण वन-संपदा-

इसके विपरीत वह वन-संपदा जिससे लकड़ी प्राप्त नहीं होती, लेकिन दैनिक जीवन में प्रयोग की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण हो उसे गौण वन-संपदा कहते हैं। जैसे- तेंदूपत्ता, खैर, हर्रा, गोंद, आंवला। 

तेंदूपत्ता-:

  • उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन का वृक्ष है जिसका उपयोग मुख्यतः बड़ी उत्पादन में होता है। 

  • देश के लगभग 60% तेंदूपत्ता का उत्पादन मध्यप्रदेश में ही होता है। 

  • मध्यप्रदेश में तेंदूपत्ता का सर्वाधिक उत्पादन सागर ,जबलपुर ,दमोह ,कटनी, रीवा ,टीकमगढ़ आदि क्षेत्रों में होता है।

खैर-:

  • यह उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन का वृक्ष है जिसका उपयोग मुख्यतः कत्था बनाने ,चमड़ा साफ करने में होता है। 

  •  मध्यप्रदेश में खेर का सर्वाधिक उत्पादन शिवपुरी,मुरैना, गुना सागर ,जबलपुर में होता है। 

हर्रा-:

  • यह उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन का वृक्ष है, जिसका उपयोग चर्म शोधन में, स्याही में ,पेंट निर्माण में तथा औषधि के रूप में होता है। 

  • इस का सर्वाधिक उत्पादन छिंदवाड़ा, होशंगाबाद ,सिवनी ,बालाघाट, जबलपुर, मंडला आदि जिलों में होता है। 

गोंद-:

  • गोंद को बबूल, फुल्लू तथा सलाई वृक्ष में फांट लगाकर प्राप्त किया जाता है।

  • प्रदेश में तीन प्रकार की गोंद पाई जाती है-:

    • अरेविक गोंद-यह बबूल के वृक्ष से प्राप्त की जाती है इसका उपयोग खाद्य सामग्री में मिठास के लिए होता है। 

    • फुल्लू गोंद- यह फुल्लू वृक्ष से प्राप्त की जाती है जिसका उपयोग सुगंध बनाने में होता है। 

    • सलाई गोंद- इस सलाई वृक्ष से प्राप्त किया जाता है जिसका उपयोग पेंट एवं वानिस से बनाने में होता है। 

  • मध्यप्रदेश में गोंद का सर्वाधिक उत्पादन मुख्यतः धार ,झाबुआ, खंडवा ,खरगोन ,शिवपुरी ,मुरैना क्षेत्र में होता है। 

आंवला-:

  • यह भी एक गौण वनसंपदा है जिसका उपयोग औषधि निर्माण में तेल निर्माण में अचार निर्माण होता है। 

  • यह मुख्यतः दक्षिण पूर्वी मध्य प्रदेश विशेषकर पन्ना जिले में पाया जाता है। 

लाख-:

  • लाख का उत्पादन एक विशेष प्रकार के कीड़े की लार से होता है जिसे मुख्यत: पलास,बेर, अरहर के पौधों में पाला जाता। 

  • इसका उपयोग चूड़ियां निर्माण में, औषधि निर्माण में, सौंदर्य सामग्री एवं खिलौने निर्माण में होता है। 

  • लाख का सर्वाधिक उत्पादन शहडोल ,उमरिया ,डिंडोरी जैसे क्षेत्रों में होता है। 

महुआ-:

  • महुआ का उपयोग औषधि एवं अल्कोहल निर्माण में होता है। 

  • मध्यप्रदेश में महुआ का सर्वाधिक उत्पादन झाबुआ, अलीराजपुर, शहडोल ,सीधी जिले में होता है।

मध्यप्रदेश में वन क्षरण के कारण-:

वन किसी भी राज्य की अमूल्य संपदा होती है जो न केवल प्रकृति को खूबसूरत बनाते हैं बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी सुदृढ़ता प्रदान करते हैं। 

और एक प्रमाणिक आंकड़े के अनुसार किसी भी भूभाग में न्यूनतम 33% वन होने चाहिए जबकि मध्य प्रदेश राज्य अभिलेखागार के अनुसार मध्य प्रदेश की भूमि में मात्र 30.7% ही वनों का विस्तार है और भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट के अनुसार तो यह आंकड़ा और भी कम लगभग 25% है मध्य प्रदेश राज्य के पर्यावरण एवं अर्थव्यवस्था दोनों के लिए हानिकारक है मध्य प्रदेश में वनों की चरण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-:

  • जनजातीय क्षेत्रों में आदिवासियों द्वारा झूमिंग कृषि किया जाना। 

  • ईंधन एवं इमारती लकड़ी के लिए वनों का अति दोहन किया जाना। 

  • वन क्षेत्र में अनियंत्रित अति-चारण किया जाना। 

  • विभिन्न मानवीय या प्राकृतिक कारणों से वनों में आग लग जाना। 

  • वन संरक्षण के संबंध में प्रशासन की सक्रियता में कमी होना। 

  • सरदार सरोवर बांध जैसी बहुउद्देशीय परियोजना के प्रभाव से व्यापक क्षेत्र के वनों का विनाश होना। 

  • प्रदेश के पश्चिमी भागों में वर्षा की अनिश्चितता से बार-बार सूखा पड़ना। 

वनों के संरक्षण हेतु उपाय-:

वनों की अंधाधुंध कटाई से उपजाऊ क्षेत्र बंजर क्षेत्र में बदलता जा रहा है, मृदा की ऊपरी सतह का अपरदन बढ़ रहा है,वर्षा की अनियमितता बरती जा रही है इसके अलावा अनेकों अन्य दुष्परिणाम भी सामने आए हैं अतः इन दुष्परिणामों को रोकने के लिए हमें वन संरक्षण की ओर कदम बढ़ाने चाहिए इसके लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं-:

  • स्थानांतरण कृषि पर रोक लगाई जाए। 

  • वन संरक्षण के क्षेत्र में प्रशासन की सक्रियता बढ़ाई जाए ताकि बनो का अत्यधिक दोहन ना हो सके

  • जलाऊ लकड़ी के विकल्प के रूप में बायोगैस सौर ऊर्जा तथा एलपीजी चूल्हा के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए।

  • वनों की आग से निपटने के लिए उचित प्रबंध किया जाए। 

  • खाली पड़े क्षेत्रों में अधिक अधिक मात्रा में वृक्षारोपण किया जाए। 

  • वन संरक्षण के क्षेत्र में सामाजिक वानिकी को बढ़ावा दिया जाए। 

वन संरक्षण के क्षेत्र में सरकार द्वारा उठाए गए कदम-:

वनों का राष्ट्रीयकरण-:

मध्यप्रदेश के वनों को सरकारी संरक्षण देने के लिए 1970 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वनों का राष्ट्रीयकरण किया गया। 

मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम-:

मध्य प्रदेश की वनों का संरक्षण एवं संवर्धन करने हेतु मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 24 जुलाई वर्ष 1975 को 20 करोड़ की पूंजी के साथ मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम का गठन किया गया। 

सामाजिक वानिकी कार्यक्रम-:

वन संरक्षण में सामाजिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए 1976 को मध्यप्रदेश में सामाजिक वानिकी कार्यक्रम का प्रारंभ किया गया। जिसके तहत प्रदेश की खाली पड़ी सरकारी भूमि में सामाजिक सदस्यों द्वारा वृक्षारोपण करने को प्रोत्साहित किया जाता है। 

संयुक्त वन प्रबंधन-:

वन संरक्षण में जन भागीदारी बढ़ाने के लिए, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2001 को संयुक्त वन प्रबंधन संकल्प पारित किया गया, जिसमें  वन संरक्षण हेतु तीन प्रकार की वन समितियों के गठन का प्रावधान है-:

  • वन सुरक्षा समिति

  • ग्राम वन समिति

  • इको विकास समिति

मध्यप्रदेश वन नीति 2005-:

मध्य प्रदेश में वनों का वैज्ञानिक ढंग से विकास एवं संरक्षण करने के लिए 4 अप्रैल 2005 को मध्य प्रदेश की नवीन बनने की बनाई गई। 

राज्य वन विकास अभिकरण-:

मध्यप्रदेश में संयुक्त वन प्रबंधन के माध्यम से वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2010 को राज्य वन विकास अभिकरण का गठन किया गया। 

पर्यावरण संरक्षण पुरस्कार-:

वन संरक्षण के प्रति लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए मध्य प्रदेश सरकार भी  पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक पुरस्कार भी देती है जैसे-:

  • शहीद अमृता देवी बिश्नोई पुरस्कार

  • बसामन मामा स्मृति प्राणी संरक्षण पुरस्कार

  • टायलर पुरस्कार

वन संरक्षण योजनाएं-:

उपरोक्त प्रयासों के अलावा मध्य प्रदेश सरकार ने वन संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं भी संचालित की हैं जैसे-

  • पंचवन योजना- इसका उद्देश्य से जिले जहां पर 33% से भी कम वन क्षेत्र है वहां वनीकरण को बढ़ावा देना है। 

  • विद्या वन योजना-इसका उद्देश्य स्कूल परिसर के क्षेत्र में छोटे-छोटे जंगल लगाकर उनकी रक्षा की जिम्मेदारी विद्यार्थियों को सौंपकर विद्यार्थी के अंदर वन संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। 

  • अंकुर अभियान-अंकुर वृक्षारोपण अभियान की शुरुआत 2021 को की गई। 

मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम-:

मध्य प्रदेश की वनों का संरक्षण एवं संवर्धन करने हेतु मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 24 जुलाई वर्ष 1975 को 20 करोड़ की पूंजी के साथ मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम का गठन किया गया। जिस के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

  • सागौन, साल एवं बांस आदि के वृक्षों वाली मुख्य वन संपदा का रिक्त स्थानों में वृक्षारोपण करके, इसका संवर्धन करता है।  

  • यह निगम पर आधारित उद्योगों के विकास में सहायता करता है ताकि वनों का विकास हो सके जैसे- इटारसी में नर्मदा प्लाईवुड फैक्ट्री का निर्माण करवाया। 

  • इस निगम द्वारा ‘व्यवसायिक वन रोपनी कार्यक्रम’ का संचालन किया जा रहा है जिसके तहत व्यवसायिक लाभ पर आधारित वनों के विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है। 

मध्य प्रदेश की वन नीति 2005-:

मध्यप्रदेश में वर्णों का वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन एवं संवर्धन करने के लिए अप्रैल 2005 को मध्य प्रदेश की नई वन नीति बनाई गई जिसके प्रमुख बिंदु निम्न हैं-(हालांकि इसके पहले मध्य प्रदेश की प्रथम वन नीति 1995 को आई थी)

  1. वन आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना। 

  2. वनों के संरक्षण एवं विकास में जन भागीदारी को बढ़ावा देना। 

  3. वन ग्राम को,राजस्व ग्राम में बदलना। 

  4. संवेदनशील क्षेत्रों में विशेष सुरक्षा बल की व्यवस्था सुदृढ़ करना। 

  5. अनियंत्रित एवं अत्यधिक पशु चराई पर नियंत्रण लगाना। 

  6. वन अपराध के शीघ्र निराकरण के लिए विशिष्ट जिला अदालतों की स्थापना। 

  7. इको टूरिज्म को बढ़ावा देना ताकि वनों के संरक्षण को बढ़ावा मिले। 

  8. वन क्षेत्र में अतिक्रमण पर रोक। 

इसके अतिरिक्त वर्ष 2018 को मध्य प्रदेश नई वन नीति बनाई गई

मध्यप्रदेश में संयुक्त वन प्रबंधन-:

संयुक्त वन प्रबंधन का अर्थ है-: मध्य प्रदेश शासन के वन विभाग और स्थानीय नागरिकों दोनों के सहयोग से वनों का संरक्षण एवं विकास करना। 

और मध्य प्रदेश में संयुक्त वन प्रबंधन की अवधारणा को अक्टूबर 2001 में संकल्पित किया गया। जिसमें मध्यप्रदेश में जन भागीदारी के साथ वन संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए तीन प्रकार की वन समितियों के गठन का प्रावधान है-:

  • वन सुरक्षा समिति

  • ग्राम वन समिति

  • इको विकास समिति

वन सुरक्षा समिति –

वन सुरक्षा समिति सघन वन क्षेत्रों के वनखंड सीमा से 5 किलोमीटर दूर तक के विस्तृत ग्रामों में गठित की जाती है। 

ग्राम वन समिति-

ग्राम वन समिति विरल वन क्षेत्रों में वनखण्ड सीमा से 5 किलोमीटर दूरी तक के विस्तृत गांव में गठित की जाती है। 

इको विकास समिति-

राष्ट्रीय उद्यान एवं अभयारण्य क्षेत्रों से 5 किलोमीटर दूरी तक की सीमा के गांव में गठित की जाती है। 

इन संयुक्त वन समितियों में वन विभाग के अधिकारी तथा स्थानीय ग्रामीण लोग शामिल होते हैं जो वनों के संरक्षण का कार्य करते हैं तथा वनों से प्राप्त उपज का राजस्व वन विभाग के साथ-साथ स्थानीय लोगों को भी दिया जाता है।  

मध्यप्रदेश में कुल 15228 वन समितियां हैं जिनके द्वारा मध्यप्रदेश के लगभग 66874 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्र का संरक्षण एवं प्रबंधन किया जा रहा है। 

मध्यप्रदेश में सामाजिक वानिकी कार्यक्रम-:

सामाजिक वानिकी कार्यक्रम-: सामाजिक वानिकी कार्यक्रम हुआ कार्यक्रम है जिसमें समाज के लोगों को खाली पड़ी सरकारी जमीनों विशेषकर रेल लाइन , सड़क, नदी, नहर के पास की जमीनों में वृक्षारोपण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है इसमें पंचायत शिक्षण संस्थान व स्वयंसेवी संगठन के सदस्य शामिल होते हैं। 

और मध्यप्रदेश में सामाजिक वानिकी कार्यक्रम की शुरुआत 1976 को की गई।  जिसका नारा था- “हमारा संदेश हरा-भरा मध्य प्रदेश”

मध्य प्रदेश में लोक वानिकी कार्यक्रम-:

मध्यप्रदेश में 1999 में विश्व बैंक की सहायता से लोकवाणी की कार्यक्रम का प्रारंभ किया।   

जिसका उद्देश्य जनता को आवश्यक वृक्ष प्रदान करते हुए, स्वयं की खाली पड़ी भूमि पर वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहन करना है। तथा इसके बाद वर्ष 2001 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मध्यप्रदेश लोक-वानिकी अधिनियम बनाया गया, जिसके तहत लोक-वानिकी के लिए उपयुक्त धन राशि प्रदान की जाती है। 

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