मध्यप्रदेश में खनिज संसाधन

[मध्यप्रदेश में खनिज संसाधन]

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खनिज

निश्चित भौतिक एवं रासायनिक संरचना वाले ऐसे प्राकृतिक तत्व या पदार्थ जिन्हें भू-गर्भ से खोदकर निकाला जाता है उन्हें खनिज कहते हैं। जैसे-कोयला, मैंगनीज, चूना पत्थर आदि। 

और खनिज संपदा की दृष्टि से मध्यप्रदेश भारत का एक संपन्न राज्य है मध्य प्रदेश में पाए जाने वाले प्रमुख खनिजों में लौह अयस्क, ताम्र अयस्क,मैग्नीज, चूना पत्थर ,डोलोमाइट ,बॉक्साइट , कोयला एवं हीरा आदि शामिल है। इसके अतिरिक्त कुछ मात्रा में ग्रेफाइट ,यूरेनियम ,अभ्रक, रॉक फास्फेट जैसे खनिज भी पाए जाते हैं। 

किंतु मध्यप्रदेश की संपूर्ण भूमि में खनिजों का वितरण एक समान ना होगा अलग-अलग है मध्यप्रदेश में सर्वाधिक खनिज पूर्वी-भाग विशेषकर बुंदेलखंड बघेलखंड पूर्वी सतपुड़ा में पाये जाते हैं। जबकि मालवा का क्षेत्र खनिज संसाधन की दृष्टि से बहुत कम संपन्न क्षेत्र है। 

मध्य प्रदेश में पाए जाने वाले खनिजों का विवरण-:

मैग्नीज

मैग्नीज लोह धात्विक खनिज है जो मुख्यतः लोहे के साथ ही मिलता है, मैग्नीज मुख्यतः कायंतरित क्रम की चट्टानों में पाया जाता है।

.मैग्नीज मैग्नीज लोह धात्विक खनिज है जो मुख्यतः लोहे के साथ ही मिलता है, मैग्नीज मुख्यतः कायंतरित क्रम की चट्टानों में पाया जाता है।

मैग्नीज के प्रमुख अयस्क-: 

  • साइलोमेलीन

  • ब्रोनाइट

मैग्नीज के गुण-: 

  • मैग्नीज एक क्रियाशील धातु है जो जल और वायु के आयनो के साथ  क्रियाशील हो जाती है

  • मैग्नीज बहुत ही कठोर लेकिन शीघ्र नष्ट होने वाली धातु है। 

मैग्नीज के उपयोग-: 

  • मैग्नीज का उपयोग रसायनिक उद्योगों में ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएं ,शुष्क बैटरी आदि के निर्माण में किया जाता है। 

  • मैगनीज का उपयोग इस्पात बनाने के लिए मिश्र धातु के रूप में किया जाता है,

  • स्वास्थ्य संबंधी दबाव बनाने के लिए किसका उपयोग किया जाता है। 

मध्यप्रदेश में मैग्नीज का वितरण-: 

मैगनीज उत्पादन में मध्यप्रदेश का प्रथम स्थान है, इंडियन नेशनल बुक की वर्ष 2016-17 की रिपोर्ट के अनुसार देश के 27% मैगनीज का उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है। 

मध्यप्रदेश में मैगनीज का सर्वाधिक उत्पादन निम्न क्षेत्रों में होता है-

बालाघाट क्षेत्र-: मध्यप्रदेश में सर्वाधिक मैगनीज बालाघाट क्षेत्र में पाया जाता है इसलिए बालाघाट को मैग्नीस की नगरी भी कहा जाता है बालाघाट की प्रमुख मैग्नीज खदानें है-

  • भार्वेली खदान

  • तिरोड़ी खदान

  • सीतापाथर खदान। 

छिंदवाड़ा क्षेत्र-: बालाघाट के बाद सर्वाधिक मैग्नीज का उत्पादन छिंदवाड़ा क्षेत्र में होता है छिंदवाड़ा क्षेत्र की प्रमुख खदान हैं- 

  • सीतापुर खान

  • गोवारी खान

  • बधाना खान। 

 तांबा-:

तांबा भी एक धात्विक (अलौह) खनिज है, जो आग्नेय ,अवसादी एवं कायांतरित तीनों प्रकार की चट्टानों में पाया जाता है। 

तांबा के प्रमुख अयस्क-:

  • सल्फाइड के रूप में -: चेल्कोपाइराइट, चेल्कोसाइट। 

  • ऑक्साइड के रूप में-: क्यूप्राइट। 

  • कार्बोनेट के रूप में-: एजुराइट। 

.तांबा-: तांबा भी एक धात्विक (अलौह) खनिज है, जो आग्नेय ,अवसादी एवं कायांतरित तीनों प्रकार की चट्टानों में पाया जाता है।

तांबा के गुण-: 

  • यह जंग विरोधी है।

  • इसमें आघातवर्धता एवं तन्यता का गुण पाया जाता है

  • यह विद्युत का अच्छा सुचालक होता है। 

  • यह भी लचीला होता है इसे किसी भी आकार में डाला जा सकता है। 

उपयोग-: 

  • इसका उपयोग व्यापक मात्रा में मिश्र धातु बनाने में किया जाता है, जैसे-: तांबा के साथ टिन को मिलाने से कांसा बनता है। तांबा के साथ जस्ता मिलाने से पीतल बनता है। 

  • बिजली के तार तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। 

  • बर्तन निर्माण में भी तांबा का उपयोग किया जाता है। 

मध्यप्रदेश में तांबा का वितरण-:

तांबा उत्पादन में मध्यप्रदेश का देश में प्रथम स्थान है, और मध्य प्रदेश के प्रमुख तांबा उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं-

  • मलाजखंड तांबा उत्पादक क्षेत्र बालाघाट। 

  • स्लीमनाबाद उत्पादक क्षेत्र, जबलपुर। 

  • नरसिंहपुर क्षेत्र, होशंगाबाद क्षेत्र।

मध्यप्रदेश के मलाजखंड में तांबे के उत्खनन एवं संशोधन के लिए हिंदुस्तान कॉपर प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है। 

लौह अयस्क-: 

लोहा अयस्क एक धात्विक खनिज है, जो आग्नेय ,अवसादी एवं कायांतरित तीनों प्रकार की शैलों में पाया जाता है। 

लौह अयस्क के प्रकार-: 

मैग्नेटाइट (fe3O4)-:
  • यह सर्वोत्तम किस्म का लौह अयस्क है इसमें 72% तक लौह धातु का अंश पाया जाता है। 

  • इसका रंग काला होता है अतः इसे काला लौह अयस्क भी कहते हैं। 

.मैग्नेटाइट (fe3O4)-:

 

हेमेटाइट (fe2O3)-:

  • यह मैग्नेटाइट के बाद दूसरा सर्वोत्तम किस्म का लौह अयस्क है इसमें लोहे का अंश 60 से 70% तक पाया जाता है। 

  • इसका रंग लाल-गेरुआ होता है। 

.हेमेटाइट (fe2O3)-:

लिमोनाइट (feO.H2O)-:

  • यह निम्न कोटि का लौह अयस्क है इसमें लौह धातु के अंश की मात्रा 40 से 60% तक होती है। 

  • इसका रंग पीला होता है। 

.लिमोनाइट (feO.H2O)-:

सिडेराइट(feCO3)-:

  • यह सबसे निम्न किस्म का लौह अयस्क है इसमें न्यू धातु के अंश की मात्रा मात्र 30 से 45% तक होती है। 

  • इस अयस्क कारण भूरा-राख की तरह होता है। 

.सिडेराइट(feCO3)-:

लौह अयस्क के गुण-: 

  • इसमें तीव्र चुंबकीय गुण पाया जाता है। 

  • यह काफी कठोर एवं आघातवर्ध्य होता है। 

  • सुचालकता का गुण पाया जाता है

  •  इसे किसी भी आकार में मोड़ा जा सकता है। 

उपयोग-: 

  • चुंबक निर्माण में लोहे का उपयोग किया जाता है। 

  • इसका उपयोग विभिन्न प्रकार की मिश्र धातुओं के निर्माण में किया जाता है।   जैसे -:स्टील निर्माण में। 

  • बर्तन एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में। 

  • भवन एवं सड़क निर्माण में। 

  • परिवहन के साधनों के निर्माण में।

मध्यप्रदेश में लौह अयस्क के प्रमुख क्षेत्र-:

मध्य प्रदेश लोहे के उत्पादन में देश में पांचवा स्थान रखता है, मध्य प्रदेश के प्रमुख लौह अयस्क उत्पादक क्षेत्र निम्न हैं-

  • जबलपुर की  बिजोरी,कनबारा, धर्मपुर खान का क्षेत्र। 

  • बैतूल की अमदाना, कामदपुरी खान का क्षेत्र। 

  • बालाघाट क्षेत्र, मंडला क्षेत्र। 

बॉक्साइट अयस्क-:

बॉक्साइट एलुमिनियम का अयस्क है जो आग्नेय ,अवसादी एवं कायांतरित सभी प्रकार की चट्टानों में पाया जाता है। 

.बॉक्साइट अयस्क-: बॉक्साइट एलुमिनियम का अयस्क है जो आग्नेय ,अवसादी एवं कायांतरित सभी प्रकार की चट्टानों में पाया जाता है।

एलुमिनियम के गुण

  • यह बहुत हल्की धातु होती है अर्थात उसका भार कम होता है। 

  • यह भी जंग विरोधी होती है। 

  • यह विद्युत एवं ऊष्मा के सुचालक होती है

  • एलुमिनियम के शोधन में कम खर्च आता है।  

एलुमिनियम का उपयोग

  • यह कठोर धातु के साथ मिलकर लचीली धातु का निर्माण करती है। 

  • इसका उपयोग विद्युत उपकरणों के निर्माण में किया जाता है। 

  • एलुमिनियम का उपयोग बर्तन निर्माण में भी किया जाता है। 

  • यातायात के साधनों यहां तक कि अंतरिक्ष यान वायुयान में भी इसका उपयोग होता है।  

बॉक्साइट का वितरण-: 

बॉक्साइट उत्पादन में मध्यप्रदेश का देश में पांचवा स्थान है, मध्यप्रदेश की प्रमुख बॉक्साइट उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं

  • शहडोल जिला ‌

  • कटनी जिला

  • अनूपपुर जिला

  • बालाघाट का पठार

  • रीवा क्षेत्र। 

.मध्यप्रदेश की प्रमुख बॉक्साइट उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं शहडोल जिला ‌ कटनी जिला अनूपपुर जिला बालाघाट का पठार रीवा क्षेत्र। 

हीरा-: 

यह अधात्विक खनिज है जो कार्बन से मिलकर बना होता है। यह मुख्यतः कायांतरित चट्टानों में पाया जाता है। 

.हीरा-:  यह अधात्विक खनिज है जो कार्बन से मिलकर बना होता है। यह मुख्यतः कायांतरित चट्टानों में पाया जाता

हीरा के अयस्क-: 

  • किंबर लाइट हेराजन

  • किंबर लाइट ब्रेसिया।

हीरा के गुण-: 

  • यह सर्वाधिक चमकदार होता है क्योंकि इसमें प्रकाश का अपवर्तन होता है। 

  • यह क्रिस्टलीय संरचना में पाया जाता है। 

  • यह सबसे कठोर खनिज है। 

  • यह ऊष्मा एवं विद्युत का कुचालक होता है। 

  • यह आंशिक रूप से पारदर्शी होता है। 

हीरा का उपयोग-: 

  • बहुमूल्य आभूषणों के निर्माण में

  • कांच को तथा अन्य हीरे को काटने में, चट्टानों में छेद करने में। 

  • सजावटी पॉलिश करने में। 

मध्यप्रदेश में हीरा का वितरण-:

हीरा उत्पादन में मध्यप्रदेश का देश में प्रथम स्थान है, मध्य प्रदेश के प्रमुख हीरा उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं-

पन्ना जिले का क्षेत्र-पन्ना जिला के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है पन्ना जिले में हीरे का कुल अनुमानित भंडार लगभग 976 हजार कैरेट है। पन्ना जिले की प्रमुख हीरा खदान है-

  • हिनौता क्षेत्र। 

  • रामखरिया क्षेत्र। 

छतरपुर जिले का क्षेत्र- पन्ना के बाद छतरपुर जिले भी हीरा के लिए प्रसिद्ध है छतरपुर की प्रमुख खाने हैं- 

  • अंगोरा खान। 

  •  बांडेर खान। 

इसके अतिरिक्त सतना के मझगवां क्षेत्र में भी हीरे के भंडार मौजूद है। 

मध्यप्रदेश में हीरे के उत्खनन का कार्य “राष्ट्रीय खनिज विकास निगम” द्वारा किया जाता है।

संगमरमर-:

संगमरमर एक प्रकार की कायांतरित चट्टान है जो मुख्यत: आर्कियन क्रम की होती है। 

संगमरमर का उपयोग-:

  • इमारतों के निर्माण में

  • मूर्ति बनाने में

प्राप्ति स्थल-:

  • सफेद संगमरमर- भेड़ाघाट जबलपुर। 

  • लाल संगमरमर- जबलपुर। 

  • लाल पीला हरा संगमरमर- ग्वालियर। 

  • हरा संगमरमर- सिवनी में। 

  • रंगीन संगमरमर- बेतूल, नरसिंहपुर ,छिंदवाड़ा में। 

रॉक फास्फेट

रॉक फास्फेट एक नवीनतम अधात्विक खनिज है जिसका उपयोग उर्वरक(विशेषकर सुपर फास्फेट) निर्माण में किया जाता है। 

मध्य प्रदेश में लोक प्रोस्टेट का सबसे बड़ा उत्पादक जिला झाबुआ है इसके बाद क्रमशः सागर छतरपुर क्षेत्र में भी रॉक फास्फेट के भण्डार मौजूद हैं। 

चूना पत्थर-:

चुना पत्थर एक अधात्विक खनिज है जो मुख्यता विन्ध्यन क्रम की अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। 

मध्यप्रदेश में पाया जाने वाला चूना पत्थर उत्तम श्रेणी का चूना पत्थर है इसका उपयोग मुख्यतः सीमेंट बनाने में उर्वरक उर्वरक बनाने आदि में किया जाता है। 

मध्यप्रदेश में चूना पत्थर का सर्वाधिक उत्पादन सतना, कटनी, दमोह, रीवा ,नरसिंहपुर ,होशंगाबाद जैसे क्षेत्रों में होता है इसी की वजह से इन क्षेत्रों में सीमेंट की फैक्ट्रियों का विकास एवं विस्तार हुआ है।

डोलोमाइट-:

जब चूना पत्थर में मैग्नीशियम कार्बोनेट की मात्रा 40 से 50% तक होती है तो उसे डोलोमाइट कहते हैं। 

डोलोमाइट का उपयोग मुख्यत: सीमेंट निर्माण एवं स्टील उद्योग में होता है। 

मध्यप्रदेश डोलोमाइट के उत्पादन में देश में प्रथम स्थान रखता है, और में डोलोमाइट का सर्वाधिक उत्पादन झाबुआ, अलीराजपुर , कटनी, सिंगरौली, छतरपुर जैसे जिलों में होता है। 

यूरेनियम-: 

यूरेनियम एक ईंधन खनिज है, जो मुख्यतः आग्नेय एवं कायांतरित चट्टानों में पाया जाता है।  

यूरेनियम-:  यूरेनियम एक ईंधन खनिज है, जो मुख्यतः आग्नेय एवं कायांतरित चट्टानों में पाया जाता है।

यूरेनियम के प्रमुख अयस्क

  • यूरेनाइट

  • मोनोजाइट 

यूरेनियम के गुण एवं उपयोग-: 

  • यूरेनियम एक रेडियो सक्रिय पदार्थ है। 

  • यूरेनियम का उपयोग परमाणु हथियार तथा रियेक्टरों में विद्युत ऊर्जा बनाने के लिए किया जाता है। 

  • यूरेनियम का उपयोग रेडियोमेट्रिक डेटिंग में भी किया जाता है। 

  • यूरेनियम का उपयोग इलाज में भी किया जाता है। 

मध्यप्रदेश में यूरेनियम का सर्वाधिक भंडार छतरपुर जिले की बाक्सवाहा के आसपास पाया जाता है। 

कोयला-: 

कोयला काले या भूरे रंग का ज्वलनशील एवं कार्बनिक पदार्थ होता है जो मुख्यतः गोंडवाना क्रम(कार्बोनिफरस कल्प) की अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। 

कोयला के प्रकार-:

कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयला को चार भागों में बांटा जा सकता है-: 

एंथ्रेसाइट कोयला-: 
  • उत्तम किस्म का कोयला है जिसमें कार्बन की मात्रा 80 से 90% तक होती है

  • यह सबसे ज्यादा गहराई में पाया जाता है, अर्थात इसकी रचना सबसे पहले हुई। 

  • यह बहुत कठोर होता है। 

  • यह काले रंग का होता है। 

  • इसमें चलते समय धुंआ भी कम निकलता है एवं जल जाने के बाद राख भी कम मात्रा में ही निकलती है। 

.एंथ्रेसाइट कोयला-: 

बिटुमिनस कोयला-: 
  • यह एंथ्रेसाइट के बाद, दूसरा सर्वोत्तम किस्म का कोयला होता है जिसमें कार्बन की मात्रा 70% से 80% तक पाई जाती है। 

  • यह चमकीले काले रंग का होता है,

  • यह कोयला एंथ्रेसाइट कोयले की तुलना में राख एवं धुंआ अधिक देता है। 

  • भारत में यही कोयला सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है। 

.बिटुमिनस कोयला-: 

लिग्नाइट कोयला-: 
  • यह निम्न कोटि का कोयला होता है जिसमें कार्बन की मात्रा 40 से 60% तक होती है। 

  • यह एंथ्रेसाइट, बिटुमिनस कोयला की अपेक्षाकृत कम गहराई पर पाया जाता है। 

  • यह भूरे रंग का होता है,

.लिग्नाइट कोयला-: 

पीट कोयला -:
  • यह सबसे निम्न कोटि का कोयला होता है इस में कार्बन की मात्रा 40% से भी कम पाई जाती है। 

  • यह कोयला सबसे ऊपर अर्थात कम गहराई पर प्राप्त होता है

  • यह कोयला जलने पर सर्वाधिक धुंआ छोड़ता है एवं जलने के बाद भी सर्वाधिक राख छोड़ता है। 

  • यह हल्के भूरे रंग का होता है। 

.

 

पीट कोयला -:

कोयला निर्माण की प्रक्रिया-: 

कोयला एक जीवाश्म ईंधन है अतः कोयले का निर्माण जीवो( विशेषकर पेड़ पौधों) के अवशेष से होता है, दरअसल में जब पेड़ पौधे समाप्त होकर जमीन पर गिर जाते हैं तो उन पेड़ पौधों के अवशेषों के ऊपर मिट्टी धूल कंकड़ के अवसाद जमा होते रहते हैं जिससे पेड़ पौधों के अवशेष गहराई पर चले जाते हैं, और गहराई पर अत्यधिक दाब एवं ताप होने के कारण लाखों करोड़ों वर्षों में वे संपीड़ित होकर कोयला में परिवर्तित हो जाते हैं। 

वर्तमान में प्राप्त होने वाला कोयला कार्बोनिफरस(लगभग 30 करोड वर्ष पूर्व) युग में बना था। 

कोयला के गुण एवं उपयोग

  • हाइड्रोकार्बन से निर्मित शैल है, जिस के दहन से ऊष्मा तथा ऊर्जा प्राप्त होती है। 

  • कोयले का व्यापक मात्रा में उपयोग ताप विद्युत ग्रहों में विद्युत बनाने के लिए किया जाता है।

  • कोयला का उपयोग ईटों के भक्तों में ईंटों को पटाने के लिए भी किया जाता है, पहले इसका उपयोग रेल इंजन को चलाने में किया जाता था।  

कोयले का वितरण एवं उत्पादन-: 

कोयला मध्यप्रदेश में ऊर्जा का सबसे प्रमुख संसाधन है मध्यप्रदेश की लगभग दो तिहाई ऊर्जा का उत्पादन कोयला द्वारा ही होता है। कोयला उत्पादन के मामले में मध्यप्रदेश का देश में चौथा स्थान है मध्य प्रदेश में लगभग 27000 मिलियन टन कोयले के भंडार मौजूद है। 

मध्य प्रदेश के कोयला उत्पादक क्षेत्र को दो भागों में बांटा गया है-:

  • मध्य भारत का कोयला क्षेत्र। 

  • सतपुड़ा का कोयला क्षेत्र। 

मध्य भारत का कोयला क्षेत्र-:

इसे विंध्यान कोयला उत्पादन क्षेत्र भी कहते हैं इस क्षेत्र को पुनः निम्न कोयला क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है-:

  • सुहागपुर कोयला क्षेत्र- यह शहडोल जिले में स्थित प्रदेश का सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र है जो लगभग 4142 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।   जो है

  • सिंगरौली कोयला क्षेत्र- इस कोयला क्षेत्र में एशिया की सबसे मोटी कोयला परत है जिसकी मोटाई 136 मीटर है या कोयला क्षेत्र सिंगरौली जिले से लेकर मिर्जापुर तक फैला हुआ है। 

  • उमरिया कोयला क्षेत्र- यह प्रदेश का सबसे छोटा कोयला क्षेत्र है इसके अंतर्गत निम्न स्थानों से कोयला उत्पादन होता है-

    • जोहिला कोयला खदान। 

    • केरार कोयला खदान। 

सतपुड़ा का कोयला क्षेत्र-:

यह कोयला उत्पादक क्षेत्र मध्य प्रदेश के दक्षिण में एक अर्धचंद्राकार कोयला-पेटी के रूप में विस्तृत है। 

इस कोयला क्षेत्र को पुनः निम्न कोयला क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है-:

  • मोहपानी कोयला क्षेत्र-यह कोयला क्षेत्र नरसिंहपुर तथा होशंगाबाद जिले में स्थित है यहां पर 5 मीटर मोटी कोयला की चादर पाई जाती है। 

  • कन्हन घाटी कोयला क्षेत्र-यह कोई अच्छे-अच्छे निवाड़ी जिले में स्थित है इस कोयला क्षेत्र के परत की मोटाई 3 से 5 मीटर है। 

  • पेंच-घाटी कोयला क्षेत्र-इस कोयला क्षेत्र का विस्तार छिंदवाड़ा सिवनी जिले में है, इस क्षेत्र में 1.5 से 3 मीटर मोटी कोयला परत पाई जाती है। 

  • शाहपुर तवा कोयला क्षेत्र-यह बैतूल और होशंगाबाद जिले में स्थित है इसी कोयला क्षेत्र में सारणी ताप विद्युत केंद्र संचालित है। 

मध्यप्रदेश में खनिज उत्पादन से संबंधित प्रमुख समस्या एवं समाधान-:

खनन क्षेत्रों के सर्वेक्षण का अभाव-खनिज प्राप्ति के लिए खनिज क्षेत्र का सर्वेक्षण किया जाना प्राथमिक शर्त है, किंतु संपूर्ण सरकारी प्रयासों के पश्चात भी राज्य के लगभग आधे भाग का भी उपयुक्त खनिज सर्वेक्षण नहीं हो पाया है। 

खनिज उत्खनन में नवीनतम तकनीकों के प्रयोग का अभाव-मध्यप्रदेश में आज भी खनिज उत्पादन के लिए परंपरागत तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है जिससे एक और खाने चरण की लागत भी अधिक आती है दूसरी ओर रात खनिजों की गुणवत्ता भी नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। 

पर्याप्त परिवहन व्यवस्था का अभाव-: मध्य प्रदेश की आज की अनेकों खनिज क्षेत्र ऐसे हैं जो सड़कों से काफी दूर हैं जिससे इन खनिजों का उत्खनन एवं उपभोग करना काफी ज्यादा मुश्किल हो जाता है। 

विद्युत एवं पेयजल की समस्या-खनिजों की विदोहन में विद्युत आपूर्ति एवं पेयजल की उपलब्धता आवश्यक होती है किंतु इनकी कमी से खनिजों का उपयोग तरीके से पर्याप्त मात्रा में उत्खनन नहीं हो पाता। 

कुशल मानव संसाधन की कमी-कुशल मानव संसाधन के अभाव में खनन कार्य कुशलता के साथ नहीं हो पाता जिससे व्यापक खनिज व्यर्थ नष्ट हो जाता है। 

अशोधित खनिजों का निर्यात-मध्य प्रदेश राज्य खनिजों की दृष्टि से काफी समृद्ध एवं संपन्न राज्य है किंतु सरकार अशोधित खनिजों को बाहर निर्यात कर देती है जिससे उसका कम मूल्य मिलता है एवं रोजगार के अवसरों में भी कमी आती है। 

समाधान-:

  • सरकार को भूवैज्ञानिक मानचित्र तैयार करके संपूर्ण मध्यप्रदेश की भूमिका ने सर्वेक्षण करवाना चाहिए ताकि खनिज की सटीक उपलब्धता का पता चल सके और उसका उपयोग हो सके। 

  • खनिज उत्खनन के लिए नवीनतम तकनीकी का विकास एवं विस्तार किया जाए। 

  • परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करके क्षेत्रों तक पहुंचाया जाए। 

  • खनिज क्षेत्र में पर्याप्त विद्युत की आपूर्ति की जाए ताकि उपयुक्त तरीके से खनिज का उत्खनन हो पाए। 

  • खनिज उत्खनन के लिए लोगों को प्रशिक्षित कर के कुशल मानव संसाधन का विकास एवं विस्तार किया जाए। 

  • सरकार को चाहिए कि वह अशोधित खनिजों के निर्यात के स्थान पर अपने राज्य में ही खनिज आधारित उद्योगों का विकास एवं विस्तार करके उनको शोधित करके उत्पादों का निर्यात करीना की अशोधित खनिजों का एक और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी और खनिजों का उचित मूल्य भी प्राप्त हो सकेगा। 

मध्य प्रदेश राज्य खनिज नीति 2010-:

पर्यावरण और पारिस्थितिकी का विशेष ध्यान रखते हुए मध्यप्रदेश में खनिजों का सुनियोजित एवं वैज्ञानिक ढंग से उत्पादन और विकास करने के लिए वर्ष 2010 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा नवीन खनिज नीति 2010 बनाई गई। 

इसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-:

  • नवीन खनिजों की खोज एवं उनके भंडारण का आकलन करना। 

  • खनिजों के सर्वेक्षण हेतु भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग तथा मध्य प्रदेश राज्य खनिज विभाग के मध्य सामंजस्य स्थापित करना। 

  • खनिज अन्वेषण हेतु खनिज विकास कोष का गठन करना। 

  • बहुमूल्य धातु जैसे सोना हीरा प्लेटिनम आदि के सर्वेक्षण को प्राथमिकता देना। 

  • खनिजों के अवैध उत्खनन को समाप्त करना। 

  • प्रदेश में खनिज उत्खनन के लिए ठेकेदारों द्वारा किए जाने वाले आवेदन की प्रक्रिया को पारदर्शी(इ-परमिट)बनाना। 

  • खनिज के उत्खनन करते समय पर्यावरण एवं परिस्थिति तंत्र को ध्यान में रखा जाएगा ताकि पर्यावरण को न्यूनतम हानि पहुंचे। 

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