मध्य प्रदेश की कृषि एवं फसल `

मध्य प्रदेश की कृषि एवं फसल `

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मध्य प्रदेश कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाला प्रदेश से क्योंकि मध्य प्रदेश की लगभग 72% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है जो कृषि एवं कृषि से संबंधित गतिविधियों में संलग्न है तथा वर्ष 2011 के आंकड़े के अनुसार प्रदेश की कुल जनसंख्या का लगभग 70% भाग कृषि क्षेत्र में कार्यरत है। 

तथा राज्य की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान 25.86% है।

वर्ष 2015-16आंकड़े के अनुसार मध्य प्रदेश कल बोया गया कृषि क्षेत्र 240 लाख हेक्टेयर था जिसमें से 154 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र पर एक फसल उगाई गई थी तथा शेष 86 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल दो फसलें उगाई गई थी। 

मध्य प्रदेश की कृषि का स्वरूप

  • मानसून पर निर्भर कृषि

मध्य प्रदेश की कुल कृषि भूमि के लगभग 40% भाग पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है बाकी शेष भाग मानसून पर निर्भर इसलिए यहां की कृषि को मानसून का जुआ भी कहा जाता है। 

  • कृषि जोतों का छोटा आकार

मध्यप्रदेश में कृषि जोत का औसतन आकार 1.78 हेक्टेयर भूमि /प्रति किसान है। तथा उसमें से भी सीमांत कृषकों की संख्या 41% है कृषि जोत का आकार छोटा होने से आधुनिक तकनीकों का प्रयोग संभव नहीं हो पाता परिणाम स्वरूप कृषि की लागत अधिक आती है और उत्पादन कम होता है। 

  • आधुनिक तकनीक का अभाव-: 

वर्तमान युग में भी मध्यप्रदेश में कृषि क्षेत्र में परंपरागत तकनीकों का उपयोग किया जाता है आधुनिक तकनीकों का प्रयोग पंजाब ,हरियाणा,केरल जैसे प्रदेशों की तुलना में बहुत कम किया जाता है 

  •  निर्वाह कृषि

मध्यप्रदेश में कृषकों द्वारा मुख्यतः निर्वाह कृषि की जाती है अर्थात अपनी आजीविका चलाने के लिए कृषि करते हैं ना कि व्यवसायिक लाभ कमाने के लिए

  • फसलों का विविधीकरण

मध्यप्रदेश में क्षेत्रीय विषमता तथा जलवायु की विषमताओं के कारण भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग फसलें बोई जाती है जैसे पूरी मध्यप्रदेश में चावल इत्यादि का सर्वाधिक उत्पादन होता है जबकि मालवा के क्षेत्र में सोयाबीन गेहूं चना आदि का उत्पादन होता है परिणाम स्वरुप मध्यप्रदेश की कृषि में फसलों की विविधता पाई जाती है। 

मध्यप्रदेश में कृषि के पिछड़ेपन का कारण

  • कृषि जोतों का आकार छोटा होना (सीमांत एवं लघु किसानों की संख्या अधिक होना)

  • कृषि के लिए छोटे किसानों को पर्याप्त वित्त प्राप्त ना हो पाना (क्योंकि बैंक एवं सहकारी संस्थाओं का लाभ केवल बड़े किसानी उठा पाते हैं)

  • सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था ना होना। 

  • कृषि में उन्नत तकनीकों का अभाव होने से कृषि उत्पादकता कम होना

  • कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास की कमी एवं अनुसंधान की जानकारी की पहुंच किसानों तक ना होने के कारण की कमी से किसान वैज्ञानिक विधि एवं श्रेष्ठ फसल चक्र अपना का कैसे नहीं करते जिससे उन को भारी नुकसान होता है उनकी उत्पादकता कम होती है।

मध्यप्रदेश एवं भारत में कृषि के विकास के लिए किए गए सरकारी सुधार

.मध्यप्रदेश एवं भारत में कृषि के विकास के लिए किए गए सरकारी सुधार

मध्यप्रदेश में कृषि की प्रवृत्तियां

  • कृषि क्षेत्र में वृद्धि-: 

1955-56 में मध्य प्रदेश में कुल बोया गया क्षेत्र 117 लाख हेक्टेयर था जो अब (वर्ष 2012-13 में) बढ़कर 240 लाख हेक्टेयर हो गया। 

  • खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि-: 

1955-56 में मध्यप्रदेश में खाद्यान्न का कुल उत्पादन 84 लाख मीट्रिक टन था जो अब (वर्ष 2018-19 मैं) बढ़कर 4.50 करोड़ मीट्रिकटन हो गया। वर्तमान में मध्य प्रदेश खाद्यान्न का निर्यातक राज्य बन गया। 

  • सिंचाई क्षेत्र में वृद्धि-: 

1955 -56 में मध्य प्रदेश राज्य का कुल सिंचित क्षेत्र 5.3 लाख हेक्टेयर था, जो अब में बढ़कर लगभग 110 लाख हेक्टेयर हो गया है। 

  • रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में वृद्धि 

1974-75 में मध्य प्रदेश में प्रति हेक्टेयर लगभग 5 किलोग्राम रसायनिक खाद का प्रयोग होता था जो अब बढ़कर 85 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गया।

मध्य प्रदेश की कृषि प्रदेश(कृषि क्षेत्र)

कृषि विभाग द्वारा मध्य प्रदेश को फसलों के आधार पर पांच कृषि क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। 

 .मध्य प्रदेश की कृषि प्रदेश(कृषि क्षेत्र)1

मध्य प्रदेश की कृषि प्रदेश(कृषि क्षेत्र)2

मध्यप्रदेश में कृषि जोत

वह कृषि भूमि जिस पर किसान फसल का उत्पादन करते हैं उसी कृषि जोत कहते हैं,

एक किसान द्वारा बोयी गई कृषि भूमि को उस किसान की कृषि जोत कहते हैं,

और मध्य प्रदेश में कृषि जोत का औसतन आकार 1.78 हेक्टेयर भूमि प्रति किसान है। 

मध्यप्रदेश में कृषि जोत की स्थिति

  • सीमांत कृषि जोत-:

1 हेक्टेयर से कम भूमि की कृषि जोत को सीमांत कृषि जोत कहते हैंऔर सीमांत कृषि जोत वाले किसान को सीमांत किसान कहते हैं मध्यप्रदेश में 41% सीमांत किसान है। 

  • छोटी जोत -:

1 हेक्टेयर से 2 हेक्टेयर की भूमि की कृषि जोत को छोटी जोत कहते हैंऔर मध्य प्रदेश में छोटी जोत के किसानों की संख्या 27% है

  • उप मध्यम जोत-:

2 हेक्टेयर से 4 हेक्टेयर भूमि की जोत को उप मध्यम जोत कहते हैंऔर मध्य प्रदेश की 19% किसान उप मध्यम जोत वाले किसान है।

  • मध्यम जोत-:

4 हेक्टेयर से 10 हेक्टेयर भूमि की कृषि जोत को मध्यम जोत कहते हैं  और मध्य प्रदेश के 9% किसान मध्यम जोत वाले हैं

  • बड़ी जोत -:

10 हेक्टेयर से अधिक भूमि की कृषि जोत बड़ी ज्योत कहलाती हैऔर मध्य प्रदेश के केवल 3% किसान ही बड़ी जोत वाले हैं। 

मध्य प्रदेश के 68% किसान 2 हेक्टेयर से कम कृषि जोत वाले हैं अर्थात सीमांत एवं लघु किसान हैं। 

जो कृषि उत्पादकता निम्न होने का एक प्रमुख कारण है क्योंकि -:

छोटी चोट वाले किसान अपनी छोटी जोतने बड़े-बड़े कृषि उपकरण यंत्रों का उपयोग नहीं कर पाते जिससे उनकी उत्पादकता कम होती है 

साथ ही सीमांत किसानों के पास किसी के पर्याप्त संसाधन नहीं होते इसलिए उन्हें पर्याप्त उपज नहीं मिल पाती और वह कृषि करने में हतोत्साहित होते हैं

फसल प्रतिरूप

फसल प्रतिरूप का आशय किसी मौसम विशेष में कुल कृषि भूमि में विभिन्न फसलों के बोये गए अनुपातिक क्षेत्र से है,

और जब पहले की तुलना में ,विभिन्न फसल क्षेत्र के अनुपात में परिवर्तन आता है तो उसे  फसल प्रतिरूप में परिवर्तन कहा जाता है

जैसे -: उदाहरण के लिए पहले चावल कुल कृषि भूमि के 10% भाग पर बोया जाता था अब 12% भाग पर बोया जाने लगा तो इसे फसल प्रतिरूप में परिवर्तन कहा जाएगा। 

मध्यप्रदेश में फसल प्रतिरूप की स्थिति(2018-19) -: 

  • चावल का फसल क्षेत्र -: 2485 हजार हेक्टेयर। (कुल बोए गए क्षेत्र का लगभग 10%)

  • गेहूं का फसल क्षेत्र-: 5900 हजार हेक्टेयर। (कुल भूल गए क्षेत्र का लगभग 23%)

  • दालों का फसल क्षेत्र-: 6727 हजार हेक्टेयर। (कुल भूल गए क्षेत्र का लगभग 26%)

  • तिलहन का फसल क्षेत्र-: 7264 हजार हेक्टेयर। (कुल भूल गए क्षेत्र का लगभग 29%)

कुल बोया गया क्षेत्र(2018-19) 250 लाख हेक्टेयर है। 

फसल प्रतिरूप को प्रभावित करने वाले कारक

  • सिंचाई की व्यवस्था-: सिंचाई की व्यवस्था में बढ़ोतरी होने से नमी वाली फसलों के क्षेत्र में वृद्धि होती है जैसे चावल की फसल क्षेत्र में। 

  • फसलों के मूल्य-: जिन फसलों की मूल्य में वृद्धि होती है उन फसलों की फसल क्षेत्र में भी वृद्धि होती है क्योंकि अधिक मूल्य वाली फसलों के उत्पादन से किसान को अधिक लाभ होता है। जैसे – मध्यप्रदेश में तिलहन की उत्पादन में बहती हुई क्योंकि तिलहन की फसलों में बढ़ोतरी हुई। 

  • कृषि तकनीकी का विकास कृषि तकनीकी के विकास से ऐसी फसलों के क्षेत्र में वृद्धि होती है जिन फसलों की हार्वेस्टिंग  करने में कठिनाई होती थी क्योंकि हर वेस्टिंग का काम तकनीकी उपकरणों द्वारा आसानी से किया जा सकता है जैसे कपास।

फसल चक्र

किसी निश्चित कृषि योग्य छेत्रफल फसलों को ऐसे सुनियोजित क्रम में उगाना जिससे कि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे ,फसल चक्र कहलाता है। 

फसल चक्र के लाभ

  • मिट्टी की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है। 

  • कीटों पर नियंत्रण किया जा सकता है। 

  • फसल उत्पादकता बनती है। 

  • मृदा अपरदन को रोकने में सहायक है(बरसात के समय ऐसी फसलें देना जो मृदा अपरदन को रोकती हों)

मध्य प्रदेश के प्रमुख फसल चक्र

  • धान-गेहूं-सब्जियां का फसल चक्र-: यह फसल चक्र मुख्यत:, कैमूर पठार तथा मिश्रित लाल मिट्टी के क्षेत्र में अपनाया जाता है जैसी पन्ना सतना रीवा कटनी क्षेत्र में। 

  • सोयाबीन-गेहूं-मूंग का फसल चक्र -: यह फसल चक्र मुख्यतः मालवा क्षेत्र में अपनाया जाता है

  • कपास-ज्वार-मक्का का फसल चक्र-: फसल चक्र मुख्यतः झाबुआ अलीराजपुर बड़वानी क्षेत्र में अपनाया जाता है। 

  • ज्वार-गेहूं-सरसों का फसल चक्र-:

 यह फसल चक्र मुख्यतः भिंड मुरैना शिवपुर जैसे उत्तरी जिलों में अपनाया जाता है।

मध्यप्रदेश में हरित क्रांति

उन्नत बीज , उर्वरक, कीटनाशक, एवं आधुनिक के कृषि उपकरणों का उपयोग करके कृषि-उत्पादन में आमूल चूल वृद्धि करना हरित क्रांति कहलाता है। 

और मध्य प्रदेश सहित पूरे भारत में खाद्यान्न उत्पादन की वृद्धि हेतु वर्ष 1967 में एमएस स्वामीनाथन के निर्देशन से हरित क्रांति का सूत्रपात हुआ जिसके सकारात्मक प्रभाव आश्चर्यजनक रहे। 

हरित क्रांति के अंतर्गत मध्यप्रदेश में किए गए प्रयत्न-: 

कुम्हारी में-: हरित क्रांति के समय मध्यप्रदेश में रसायनिक उर्वरकों की पूर्ति हेतु तत्कालीन मध्य प्रदेश के कुम्हारी,( किन्तु वर्तमान में कुम्हारी छत्तीसगढ़ में है ) में “सुपर फास्फेट प्लांट “स्थापित किया गया। 

रसलपुर में–: हरित क्रांति के समय होशंगाबाद की रसलपुर गांव में “दानेदार खाद बनाने की इकाई “स्थापित की गई। 

भिलाई में-: हरित क्रांति के समय तत्कालीन मध्य प्रदेश के भिलाई (वर्तमान छत्तीसगढ़)नामक स्थान पर” सल्फेट प्लांट ‘स्थापित किया गया। 

भोपाल में -: जीवाणु खाद संयंत्र स्थापित किया गया। 

  • इसके अलावा हरित क्रांति को प्रभावी रूप से सफल बनाने के लिए पर्याप्त बीज की उपलब्धता हेतु 1980 में “मध्य प्रदेश बीज विकास निगम” की स्थापना की गई। 

  • जगह जगह पर उन्नत कृषि उपकरण को विकसित करने के लिए “कृषि अभियंत्रिकी विश्वविद्यालय” की स्थापना हुई, 

  • किसानों को कृषि की वैज्ञानिक विधि सिखाने के लिए” प्रशिक्षण कार्यक्रम “भी चलाए गए

हरित क्रांति का प्रभाव

मध्यप्रदेश में हरित क्रांति का सर्वाधिक प्रभाव उत्तर पश्चिमी मध्य प्रदेश में ही पड़ा जबकि पूर्वी मध्य प्रदेश विशेषकर बालाघाट मंडला शहडोल सीधी में इसका प्रभाव न के बराबर ही रहा। 

यदि हम संपूर्ण मध्यप्रदेश में देखें तो हरित क्रांति का प्रभाव बहुत ज्यादा सकारात्मक रहा। हरित क्रांति के प्रभाव से 1966 67 में मध्यप्रदेश में गेहूं का उत्पादन लगभग 1900 हजार मेट्रिक टन था ,जो बढ़कर वर्तमान में 20020 हजार मैट्रिक टन हो गया। 

वही 1966-67 में, मध्यप्रदेश में चावल का कुल उत्पादन लगभग 3200 हजार मीट्रिक टन था, जो अब बढ़कर लगभग 7305 हजार मैट्रिक टन हो गया। 

और मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा सर्वाधिक गेहूं उत्पादक राज्य बन गया है। 

मध्यप्रदेश में जैविक खेती

 

जैविक खेती-:

जैविक खेती खेती की पद्धति है जिसमें रसायनिक कीटनाशकों उर्वरकों का प्रयोग ना करके जैविक अवशिष्टों से बनी जैविक खाद का उपयोग किया जाता है।  

जैविक खेती के लाभ-: 

  • मिट्टी की उर्वरा शक्ति घटने की बजाय बढ़ती है।

  • फसलों व सब्जियों की गुणवत्ता बढ़ती है भी रसायन मुक्त होती है। 

  • जैविक खेती पर्यावरण हितैषी विधि है क्योंकि इससे एक और हमारे कचरे का निपटान हो जाता है दूसरी ओर उत्पादन बढ़ता है। 

मध्यप्रदेश में जैविक कृषि की स्थिति

और मध्य प्रदेश जैविक खेती के मामले में देश के अग्रणी राज्यों में से एक है, क्योंकि वर्ष 2015 में भारत में जैविक खेती का कुल प्रमाणिक क्षेत्र 7.23 लाख हेक्टेयर था जिसमें से मध्यप्रदेश में जैविक खेती का प्रमाणिक क्षेत्र 2.32 लाख हेक्टेयर था जो देश की कुल जैविक खेती का 40% क्षेत्र है। 

जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए मध्यप्रदेश में अनेकों जैविक खेती इकाई स्थापित की गई है,तथा हाल ही में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर द्वारा मंडला जिले में जैविक खेती अनुसंधान केंद्र स्थापित किया गया है। 

इसके अलावा वर्ष 2011 में मध्यप्रदेश में जैविक कृषि नीति बनाई गई जिसका उद्देश्य जैविक खेती को बढ़ावा देना है।  

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