मध्यप्रदेश में औद्योगिक क्षेत्र का परिदृश्य
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Toggleउद्योग-:
उद्योग वह संस्थान होता है जहां पर यांत्रिक या शारीरिक शक्ति के द्वारा वस्तुओं का व्यापक मात्रा में मूल्यवर्धन या उत्पादन होता है।
औद्योगिकरण-
औद्योगिकरण वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत प्राथमिक उत्पादों को द्वितीयक उत्पादों में परिवर्तित करके देश की जीडीपी में विनिर्माण-क्षेत्र का योगदान तुलनात्मक रूप से तेजी से बढ़ाया जाता है।
मध्य प्रदेश में औद्योगिक क्षेत्र की स्थिति
वर्ष 2018-19 के आंकड़ों के अनुसार प्रचलित भावों पर मध्य प्रदेश राज्य के सकल राज्य मूल्यवर्धन ()में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान 19.80% है।
द्वितीय क्षेत्र में, विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 42%, निर्माण क्षेत्र का योगदान 39%, और विद्युत ,जलापूर्ति तथा अन्य सेवाओं का 17% योगदान।
तथा औद्योगिक विकास की दृष्टि से मध्यप्रदेश का देश में सातवां स्थान है।
औद्योगिक नीति संवर्धन विभाग की रिपोर्ट 2018 के अनुसार व्यापार सुगमता में भी मध्यप्रदेश का सातवां स्थान है।
मध्य प्रदेश का औद्योगिक विकास में सातवां स्थान है,
औद्योगिक निवेश में मध्य प्रदेश का चौथा स्थान है।
ईच ऑफ़ डूइंग बिजनेस में मध्य प्रदेश का पांचवा स्थान है।
मध्य प्रदेश में कारखाने की संख्या-: मध्य प्रदेश में 2018-19 में सकल कारखाने की संख्या 4640 रही।
और विगत वर्ष में कारखाने की संख्या में 16.34% की वृद्धि देखी गई।
मध्य प्रदेश में औद्योगिक विकास की संभावना-:
व्यापक श्रम शक्ति-
मध्य प्रदेश में 2011 की जनगणना के अनुसार 7.26 करोड़ लोग हैं जिनमें से 43% जनसंख्या कार्य जनसंख्या है।
व्यापक प्राकृतिक भंडार-
मध्य प्रदेश में भारत के लगभग 10% वन, तथा व्यापक मात्रा में कोयला, तांबा, मैंगनीज, चूना, व डोलोमाइट आदि मौजूद है।
व्यापक बाजार-
मध्य प्रदेश पांच बड़े राज्यों से जुड़ा हुआ राज्य है अतः देश की लगभग 50% जनसंख्या तक पहुंच है।
पर्याप्त विद्युत उपलब्धता-
मध्य प्रदेश में प्रदेश की जरूरत के अनुसार पर्याप्त विद्युत का उत्पादन हो रहा है, यहां तक कि हम दूसरे राज्यों को भी विद्युत एक्सपोर्ट कर रहे हैं।
उपजाऊ भूमि-
मध्य प्रदेश में व्यापक मात्रा में उपजाऊ भूमि होने से हम खाद्यान्न उत्पादन में भी अग्रणी राज्य हैं (दलहन तथा सोयाबीन में प्रथम;गेहूं, मक्का,चना में द्वितीय,) अतः कृषिगत कच्चा माल आसानी से प्राप्त हो जाता है।
मध्यप्रदेश में औद्योगिक विकास तेजी से ना होने के कारण-:
मध्य प्रदेश खनिज संसाधनों की उपलब्धता की दृष्टि से एक धनी राज्य है मध्य प्रदेश हीरा तथा मैगनीज उत्पादन में देश ने प्रथम, चूना पत्थर तथा रॉक फास्फेट उत्पादन में द्वितीय तथा कोयला उत्पादन में चौथा स्थान रखता है। तथा मध्य प्रदेश में जनशक्ति भी प्रचुर मात्रा में है किंतु इसके बावजूद भी औद्योगिक विकास की दृष्टि से मध्य प्रदेश पिछड़ा हुआ राज्य है जिसके अनेकों कारण है-
पर्याप्त अधोसंरचना का अभाव-:
उद्योगों के विकास के लिए पर्याप्त आधोसंरचना की व्यवस्था प्रथम शर्त होती है, किंतु मध्य प्रदेश के कुछ बड़े शहरों जैसे इंदौर भोपाल पीथमपुर उज्जैन जबलपुर अधिक को छोड़ दिया जाए तो अन्य क्षेत्रों में औद्योगिक संरचना की स्थिति बहुत खराब है और औद्योगिक संरचना के अभाव से एक तो विदेशी निवेश कम होता क्योंकि उत्पादन लागत अधिक आती है दूसरा प्रदेश के उद्योगपति अन्य राज्यों में निवेश करते हैं। जिससे मध्य प्रदेश में उद्योगों का विकास नहीं हो पा रहा।
आधुनिक तकनीक का अभाव-:
मध्य प्रदेश राज्य में महाराष्ट्र गुजरात तमिलनाडु केरल जैसे राज्यों की तुलना में अधिक तकनीकों का काफी अभाव है जिससे एक तो प्राकृतिक संसाधनों का समुचित कुशल दोहन नहीं हो पाता और दूसरा परंपरा के तकनीकी के उत्पादन से उत्पादकता की दर कम रहती है। जिसके परिणाम स्वरूप मध्यप्रदेश से कच्चे माल का निर्यात और औद्योगिक माल का आयात हो रहा है।
कुशल श्रम का अभाव-:
मध्य प्रदेश में जनसंख्या तो लगभग 8 करोड से अधिक है किंतु उद्योग उन्मुख शिक्षण तथा प्रशिक्षण की व्यवस्था के अभाव में कुशल श्रमिकों की कमी रहती है जिसके कारण तीव्र औद्योगिक विकास नहीं हो पाता है।
पूंजी निर्माण की दर निम्न होना-:
मध्य प्रदेश के अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक एवं वित्तीय व्यवस्था ना होने तथा उद्यमशीलता की जागरूकता की कमी के कारण संपूर्ण बचत का निवेश के रूप में उपयोग नहीं हो पाता जिससे पूंजी निर्माण दर कम होती है परिणाम स्वरूप उद्योगों का विकास एवं विस्तार नहीं हो पाता जो भी उद्योग विकास ना होने का एक प्रमुख कारण है।
राजनीतिक एवं प्रशासनिक शिथिलता-:
औद्योगिक विकास के प्रति राजनीतिक इच्छाशक्ति कमी तथा निवेश संबंधी प्रक्रिया में प्रशासनिक शिथिलता एवं भ्रष्टाचार के कारण औद्योगिक विकास नहीं हो पा रहा है।
उदाहरण के तौर पर ग्लोबल इन्वेस्टर सम्मिट, इंदौर- 2016 में 2630 निवेश के प्रस्ताव मिले थे परंतु प्रशासनिक शिथिलता के कारण केवल 10% निवेश की ही रूपरेखा निर्धारित हो पाई।
अन्य कारण-:
प्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों का असमान वितरण, जैसे मध्य प्रदेश के दक्षिण पूर्वी क्षेत्र में वनों की तथा खनिज पदार्थों की अधिकता है किंतु वहां पर कार्यशील पूंजी एवं कुशल जनसंख्या नहीं है जबकि मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में पर्याप्त खनिज संसाधन नहीं है।
बहुराष्ट्रीय कंपनी की प्रतिस्पर्धा से मध्य प्रदेश की लघु तथा सूक्ष्म उद्योगों का धीरे-धीरे पतन होना ।
मध्यप्रदेश में तीव्र औद्योगिक विकास के सुझाव
मध्य प्रदेश की सभी क्षेत्रों में पर्याप्त आधोसंरचना का विकास एवं विस्तार करना ताकि विदेशी निवेश एवं घरेलू निवेश को बढ़ावा मिले और उद्योगों का विस्तार हो।
अनुसंधान तथा विकास करके औद्योगिक विकास की नवीनतम तकनीकों का विकास एवं विस्तार किया जाना चाहिए ताकि राज्य के प्राकृतिक संसाधनों का कुशलता दोहन हो सके। और हम कच्चे माल के आयातक एवं निर्मित मालिक की निर्यातक बन सके।
मध्यप्रदेश जनसंख्या को औद्योगिक उन्मुख शिक्षा तथा प्रशिक्षण देकर, उसको कुशल मानव संसाधन बनाया जाए,
विभिन्न सरकारी योजना के माध्यम से निवेश तथा पूंजी निर्माण को बढ़ावा दिया जाए इसके लिए उद्योग स्थापित करने हेतु कम ब्याज दरों पर ऋण एवं उद्यमशीलता की प्रेरणा दी जाए ताकि उद्योगी करण को बढ़ावा मिले।
उद्योगों का विकास पीपीपी मॉडल पर किया जाए। ताकि प्रशासनिक भ्रष्टाचार से उद्योगों का विकास बाधित ना हो।
लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धा से संरक्षण दिया जाए।
मध्य प्रदेश में उद्योगों का नियोजित विकास/मध्यप्रदेश में उद्योगों के विकास की प्रवृत्ति-:
1 नवंबर 1956 में मध्यप्रदेश राज्य का पुनर्गठन हुआ , तभी से लेकर अब तक मध्य प्रदेश में उद्योगों का लगातार नियोजित विकास जारी रहा जिसका विकास क्रम अग्रोलिखित है-:
1956 से 1961 के मध्य मध्य प्रदेश सहित पूरे भारत में द्वितीय पंचवर्षीय योजना लागू रही जिसमें औद्योगिक विकास को प्राथमिकता दी गई, अतः द्वितीय पंचवर्षीय योजना के प्रभाव से मध्यप्रदेश में अनेकों उद्योगों का विकास हुआ जैसे-: भारत हेवी इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड ,भोपाल(1964)।
भिलाई लौह इस्पात कारखाना, छत्तीसगढ़। भोपाल पावर अल्कोहल प्लांट, रतलाम कॉटन सीड प्लांट
तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961-65)में-: मध्य प्रदेश में लघु उद्योगों के विकास हेतु मध्य प्रदेश लघु उद्योग निगम तथा मध्यम एवं भारी उद्योगों के विकास हेतु मध्य प्रदेश औद्योगिक विकास निगम की स्थापना की गई।
1968 में होशंगाबाद में सिक्योरिटी पेपर मिल की स्थापना की गई।
1983 में मध्य प्रदेश के उज्जैन में एशिया का सबसे बड़ा सोयाबीन कारखाना स्थापित हुआ।
1987 में मध्य प्रदेश में औद्योगिक विकास केंद्र की स्थापना हेतु औद्योगिक केंद्र विकास निगम ,भोपाल की स्थापना की गई। इसके बाद समय-समय पर मध्यप्रदेश में अनेकों भारी उद्योगों की स्थापना की गई।
और मध्य प्रदेश सरकार वर्तमान में भी उद्योगों के विकास के लिए लगातार प्रयासरत है।
मध्य प्रदेश सरकार ने उद्योगों के विकास हेतु वर्ष 2014 में उद्योग संवर्धन नीति बनाई,
वर्ष 2017 में मध्यप्रदेश एमएसएमई विकास नीति बनाई गई।
मध्य प्रदेश के उद्योगों की प्रमुख समस्याएं क्या है-:
अधोसंरचना के अभाव से उत्पादन लागत अधिक आना।
उत्पादन में आधुनिक तकनीकी के अभाव से उत्पादकता कम होने की समस्या। ।
कुशल श्रम बल का अभाव या कमी।
लगातार कच्चे माल की आपूर्ति का अभाव।
विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से प्रतिस्पर्धा की समस्या
मध्य प्रदेश के प्रमुख उद्योग एवं उनकी स्थिति
मध्यप्रदेश के उद्योगों को मुख्यतः चार भागों में बांटा जा सकता है-:
खनिज आधारित उद्योग।
कृषि आधारित उद्योग।
वन आधारित उद्योग।
लघु एवं कुटीर उद्योग।
खनिज आधारित उद्योग
ऐसे उद्योग जिनको कच्चा माल खनिजों से प्राप्त होता है उन्हें खनिज आधारित उद्योग कहते हैं। जैसी सीमेंट उद्योग चीनी मिट्टी उद्योग आदि
सीमेंट उद्योग-:
मध्य प्रदेश के खनिज आधारित उद्योगों में सीमेंट उद्योग का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि सीमेंट उत्पादन का प्रमुख अव्यव चूना पत्थर है और चूना पत्थर के उत्पादन में मध्यप्रदेश का देश में दूसरा स्थान है अतः मध्य प्रदेश में सीमेंट उद्योग का व्यापक विकास हुआ है वर्तमान में मध्य प्रदेश में सीमेंट का उत्पादन लगभग 25,000 हजार मैट्रिक टन हो गया। तथा सीमेंट उत्पादन के मामले में मध्यप्रदेश का देश में तीसरा स्थान है।
मध्य प्रदेश के प्रमुख सीमेंट कारखाने-:
बानमोर सीमेंट फैक्ट्री-: इस फैक्ट्री की स्थापना वर्ष 1922 में मुरैना के बानमौर और नामक स्थान पर हुई, जो मध्य प्रदेश का प्रथम सीमेंट कारखाना है। यहां पर एसोसिएटेड सीमेंट कंपनी द्वारा साधारण पोर्टलैंड सीमेंट का निर्माण किया जाता है।
कैमूर सीमेंट फैक्ट्री-:
यह फैक्ट्री वर्ष 1923 में कटनी के समीप स्थापित की गई थी यहां पर भी एसोसिएटेड सीमेंट कंपनी द्वारा साधारण पोर्टलैंड सीमेंट का निर्माण किया जाता है।
सतना सीमेंट वर्क्स-: इस कंपनी की स्थापना वर्ष 1959 में सतना में की गई, यहां पर बिरला जूट मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड कंपनी द्वारा पोर्टलैंड सीमेंट का निर्माण किया जाता है।
मैहर सीमेंट फैक्ट्री-: यह कंपनी 1980 ने मध्यप्रदेश के सतना जिले में स्थापित की गई जहां पर बिरला कंपनी द्वारा सीमेंट का उत्पादन किया जाता है।
नीमच सीमेंट फैक्ट्री-: यह कंपनी वर्ष 1981 में नीमच में स्थापित की गई , जहां पर सीमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया कंपनी द्वारा सीमेंट का निर्माण किया जाता है।
सीमेंट उद्योगों के स्थानीयकरण के कारण-:
मध्यप्रदेश के दो तिहाई सीमेंट कारखाने उत्तरी तथा उत्तर पूर्वी मध्य प्रदेश में स्थित है जबकि इन क्षेत्रों में सीमेंट की मांग 50% ही है।
उत्तर पूर्वी क्षेत्र में सीमेंट के स्थानीयकरण के कारण निम्नलिखित हैं-:
कच्चे माल की उपलब्धता-: सीमेंट उद्योग के लिए कच्चे माल के रूप में चुना पत्थर एवं जिप्सम की आवश्यकता होती है और मध्य प्रदेश की उत्तर पश्चिमी क्षेत्र विशेषकर दमोह कटनी सतना रीवा सीधी जबलपुर जिले में विंध्य क्रम की चट्टानों में चूने की पर्याप्त उपलब्धता है, अतः यही कारण है कि इन क्षेत्रों में अधिकाधिक मात्रा में सीमेंट उद्योग स्थापित है।
सस्ते श्रम की उपलब्धता-: उत्तर पूर्वी मध्य प्रदेश तथा बुंदेलखंड सस्ती दरों पर पर्याप्त श्रम प्राप्त हो जाता है जिस कारण से इस क्षेत्रों में सीमेंट उद्योग स्थापित है
परिवहन के साधन-: उत्तर पूर्वी मध्य प्रदेश में रेल परिवहन की सघनता काफी ज्यादा है जो कम दरों पर भारी माल ढोने का कार्य करती यही कारण है कि इस क्षेत्र में सीमेंट उद्योग की सघनता ज्यादा है।
पानी की उपलब्धता-: सीमेंट कारखानों के लिए भारी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है और मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र से ज्यादा पूर्वी क्षेत्र में बरसात होती है अतः यहां जल की पर्याप्त उपलब्धता रहती है।
सीमेंट उद्योग की प्रमुख समस्याएं
अधोसंरचना के अभाव में सीमेंट उत्पादन की लागत अधिक आना।
परंपरागत मशीनों के प्रयोग से सीमेंट उद्योग की उत्पादकता कम होना।
पर्याप्त कुशल श्रम के अभाव में इन उद्योगों की उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपयोग ना हो पाना।
क्षेत्रीय असंतुलन की समस्या मध्यप्रदेश में अधिकांश सीमेंट उद्योग उत्तर पूर्वी क्षेत्र में है जबकि इस क्षेत्र में सीमेंट की मांग केवल 50% ही है जबकि दक्षिण पश्चिमी क्षेत्र में उद्योगों की भारी मांग है किंतु यहां पर उत्पादन नहीं होता।
चीनी-मिट्टी उद्योग-:
मध्यप्रदेश में चीनी मिट्टी तथा फायर क्ले की उपलब्धता के कारण चीनी मिट्टी अनेकों उद्योग संचालित है। मध्यप्रदेश में सर्वाधिक चीनी-मिट्टी उद्योग जबलपुर कटनी रीवा ग्वालियर आदि क्षेत्र में है।
जबलपुर कटनी के चीनी मिट्टी उद्योगों से मुख्यता चीनी मिट्टी की आचार पोट प्याले तश्तरी आदि बनाए जाते हैं तथा ग्वालियर के चीनी मिट्टी उद्योगों से मुख्यत चाय और दूध की प्याले बनाए जाते हैं।
भारी लौह उद्योग-:
मध्यप्रदेश में द्वितीय पंचवर्षीय योजना की घोषणा के अनुसार वर्ष 1964 को ब्रिटेन के सहयोग से भारत हेवी इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड भोपाल की स्थापना की गई, जहां पर हेवी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का निर्माण किया जाता है जैसे टरबाइन जनरेटर ट्रांसफॉर्मर विद्युत मोटर रेलवे ट्रेक्शन।
इसके अलावा पीतमपुर ( धार), मंडीदीप (रायसेन)जैसे औद्योगिक केंद्रों में धात्विक खनिजों के अनेकों उद्योग संचालित है।
कृषि आधारित उद्योग
ऐसे उद्योग जिन्हें कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है उन्हें कृषि आधारित उद्योग कहते हैं जैसे शक्कर उद्योग वनस्पति घी उद्योग सूती कपड़ा उद्योग सोयाबीन उद्योग आदि।
चीनी उद्योग-:
मध्य प्रदेश के कृषि आधारित उद्योगों में चीनी उद्योगों की प्रधानता है क्योंकि चीनी का कच्चा माल या अव्यव गन्ना है और मध्यप्रदेश में सर्वाधिक मात्रा में उगाई जाने वाली नगदी फसल गन्ना ही है अतः मध्य प्रदेश में चीनी उद्योग काफी ज्यादा विस्तार है।
मध्यप्रदेश में पहला चीनी का कारखाना 1934 में रतलाम के जावरा में लगाया गया था।
वर्तमान मध्यप्रदेश में चीनी मिलों की कुल संख्या लगभग 27 है।
जिनमें से कुछ प्रमुख चीनी मिलें निम्न हैं-:
डबरा शुगर मिल ,ग्वालियर।
कैलारस शुगर मिल ,मुरैना।
पीतांबरा शुगर मिल ,दतिया।
सेठ गोविंदराव शुगर मिल ,उज्जैन।
बरलाई शुगर मिल , इंदौर।
भोपाल शुगर मिल ,सीहोर
मध्यप्रदेश में शुगर मिल के स्थानीयकरण के कारण-:
कच्चे माल की उपलब्धता- शक्कर का निर्माण करने के लिए कच्चे माल के रूप में गन्ना की आवश्यकता पं परहोती है और मध्य प्रदेश के उज्जैन इंदौर भोपाल ग्वालियर मुरैना आदि क्षेत्रों में गन्ना का सर्वाधिक उत्पादन होता है पता है यहां पर सर्वाधिक शक्कर की मिलें हैं।
सस्ते श्रम की उपलब्धता-: मध्य प्रदेश के उन्हीं क्षेत्रों में चीनी मिल स्थापित की गई है जहां सस्ता श्रम उपलब्ध रहता है।
परिवहन के साधन-: गन्ने का परिवहन काफी महंगा होता है अतः यह उन्हीं क्षेत्रों में स्थापित की जाती है जहां पर परिवहन के साधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते है।
बाजार की उपलब्धता-:: मध्यप्रदेश के भोपाल ग्वालियर उज्जैन इंदौर क्षेत्रों में शक्ल एवं गुड़ के बाजार की बड़ी मात्रा उपलब्ध है अतः इसीलिए यहां पर शक्कर मिल स्थापित है।
चीनी उद्योग की समस्याएं-:
अधोसंरचना के अभाव में सीमेंट उत्पादन की लागत अधिक आना।
परंपरागत मशीनों के प्रयोग से सीमेंट उद्योग की उत्पादकता कम होना।
पर्याप्त कुशल श्रम के अभाव में इन उद्योगों की उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपयोग ना हो पाना।
चीनी उद्योग का कच्चा माल बनना है और गन्ने को लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता यदि सुरक्षित रखते भी है तो सुरक्षित रखने की लागत काफी ज्यादा आ जाती है अतः चीनी उद्योग लगातार कच्चे माल की आपूर्ति की समस्या बन जाती है।
सूती कपड़ा उद्योग-:
सूती कपड़ा उत्पादन की दृष्टि से मध्य प्रदेश महाराष्ट्र गुजरात के बाद तीसरा सबसे बड़ा सूती कपड़ा उत्पादक राज्य है।
मध्यप्रदेश में सर्वाधिक सूती वस्त्र का उत्पादन इंदौर उज्जैन ग्वालियर आदि क्षेत्र में होता है वर्तमान में सूती वस्त्र उत्पादन की लगभग 65 मिले संचालित है।
मध्यप्रदेश में पहली सूती वस्त्र मिल 1906 बुरहानपुर में स्थापित की गई किंतु वह असफल रही इसके बाद 1907 में इंदौर में प्रथम सफल सूती वस्त्र मिल स्थापित की गई।
सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के कारण-:
मध्यप्रदेश में सूती वस्त्र के कारखानों का सकेन्द्रन मुखयत इंदौर उज्जैन बुरहानपुर ग्वालियर आदि क्षेत्र में है जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित है-:
कच्चे माल की उपलब्धता-: सूती वस्त्र उत्पादन करने के लिए कपास की आवश्यकता होती है मध्य प्रदेश के दक्षिण पश्चिमी जिलों जैसे खंडवा खरगोन बुरहानपुर धार इंदौर अधिक क्षेत्र में सर्वाधिक कपास का उत्पादन होता है इसलिए इस क्षेत्र में सूती वस्त्र मिलों का सकेन्द्रण है।
सस्ते श्रम की उपलब्धता-: मध्य प्रदेश के पश्चिमी एवं उत्तरी क्षेत्र में मध्य प्रदेश के अलावा क्रमशः राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश के श्रमिक कम मजदूरी दरों पर काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं पता है यहां पर सस्ता श्रम उपलब्ध है इसीलिए क्षेत्र में सूती वस्त्र उद्योगों का विकास है।
परिवहन के साधन-: इंदौर उज्जैन जैसे शहर परिवहन से विशेषकर रेल परिवहन से जुड़े हैं अतः इन क्षेत्रों से आसानी से सूती वस्त्र उद्योग का माल किसी भी क्षेत्र में भेजा जा सकता है एवं कच्चा माल प्राप्त किया जा सकता है इसलिए इन क्षेत्रों में सूती वस्त्र उद्योग का विकास हुआ।
पर्याप्त बाजार की उपलब्धता-: मध्य प्रदेश के पश्चिमी एवं उनके क्षेत्रों में मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश के व्यापक बाजार उपलब्ध है अतः यहां के सूती वस्त्रों को आसानी से बेचा जा सकता है इसलिए इन क्षेत्रों में सूती वस्त्र उद्योगों का विकास हुआ।
सूती वस्त्र उद्योग की समस्या-:
अधोसंरचना के अभाव से लागत अधिक आना।
आधुनिक तकनीकों के अभाव से अर्थ परंपरागत तकनीकों के प्रयोग से उत्पादकता कम होने की समस्या।
लगातार कच्चे माल की आपूर्ति की समस्या-: क्योंकि कपास की फसल एक खरीफ की फसल है खरीद के मौसम के बाद कपास की उपलब्धता में कमी होती है और इसे भंडारित करके रखना आर्थिक दृष्टि से लाभकारी नहीं होता।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों से प्रतिस्पर्धा की समस्या।
कृतिम रेशे के कपड़ा उद्योग-:
वर्तमान में मध्यप्रदेश में सूती वस्त्र उद्योग धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं जबकि उनके स्थान पर कृत्रिम रेशे से कपड़ा उत्पादन करने वाले उद्योगों का विस्तार व विकास हो रहा है क्योंकि कृत्रिम रेशे से निर्मित कपड़े सस्ते एवं सर्वत्र सुलभ होते है
कृत्रिम रेशों से कपड़ा उत्पादन के प्रमुख उद्योग नागदा, देवास, इंदौर ,ग्वालियर में है।
वनस्पति घी एवं तेल उद्योग
मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र बैतूल छिंदवाड़ा क्षेत्र मध्य नर्मदा घाटी क्षेत्र और चंबल क्षेत्र में तिलहन का सर्वाधिक उत्पादन होता है अतः इन क्षेत्रों में सर्वाधिक वनस्पति घी एवं तेल उत्पादन भी होता है। और धर्मप्रदेश में वनस्पति तेल उत्पादन करने के लगभग 65 कारखाने हैं तथा वनस्पति घी उत्पादन करने के लगभग 10 कारखाने संचालित वनस्पति घी उत्पादित करने का सबसे बड़ा कारखाना गंजबासौदा में है।
मध्य प्रदेश में सोयाबीन तेल उद्योग मध्य प्रदेश में देश का लगभग 82% सोयाबीन उत्पादन होता है अतः मध्य प्रदेश को सोया प्रदेश भी कहा जाता है मध्य प्रदेश में सोयाबीन तेल निकालने के लिए अनेकों सॉल्वेंट एक्ट्रैक्शन प्लांट लगाए गए। एशिया का सबसे बड़ा सोयाबीन कारखाना उज्जैन में स्थित है।
कृषि को उन्नत बनाने हेतु संचालित उद्योग
जीवाणु खाद संयंत्र भोपाल-: यहां पर कृषि का विकास करने के लिए कृषि के लिए जीवाणु खाद तैयार की जाती है तथा उत्पादित जीवाणु खाद कम मूल्य पर किसानों को प्रदान किया जाता है।
दानेदार मिश्रित खाद्य संयंत्र होशंगाबाद-: यहां पर एमपी एग्रो मुरारी जी फर्टिलाइजर कारखाने द्वारा दानेदार मिश्रित खाद का निर्माण किया जाता है।
कीटनाशक संयंत्र बिना-: जसवंत सागर जिले के बीना नामक स्थान पर स्थित है जहां पर कीटनाशक पाउडर एवं कीटनाशक रसायन जैसे डीडीटी बीएचसी बनाए जाते हैं।
यंत्रीकरण कृषि प्रक्षेत्र, बाबई
यह प्रक्षेत्र मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले की बाबई नामक स्थान पर स्थित है यहां पर उन्नत किस्म के बीज एवं रेशम आदि का उत्पादन किया जाता है।
वन आधारित उद्योग-:
वन आधारित उद्योगों को तत्पर ऐसे उद्योगों है जिन्हें कच्चा माल वनों से प्राप्त होता है।
जैसे -: कागज उद्योग, बीड़ी उद्योग, लकड़ी उद्योग, लाख उद्योग आदि।
कागज उद्योग-:
कागज उद्योग एक वन आधारित उद्योग है क्योंकि कागज के निर्माण के लिए हमें बांस जैसी लकड़ी की आवश्यकता होती है जो वनों से प्राप्त होती है।
और मध्य प्रदेश एक वन अच्छा क्षेत्र है अतः यहां पर कागज उद्योगों को काफी विकास हुआ है
वर्तमान में मध्यप्रदेश में कागज बनाने की 9 कारखाने पंजीकृत हैं जहां अलग-अलग प्रकार की कागज बनाए जाते हैं जिनमें से कुछ प्रमुख निम्न हैं-:
नेशनल न्यूज़ प्रिंट एंड पेपर मिल नेपानगर, बुरहानपुर-: यहां पर अखबारी कागज का उत्पादन किया जाता है।
सिक्योरिटी पेपर मिल होशंगाबाद-: यहां पर करेंसी नोट के कागज छापे जाते।
ओरिएंटल पेपर मिल अमलाई-: यह अमलाई अनूपपुर में स्थित बिरला कंपनी का निजी कागज कारखाना है।
कागज उद्योग के स्थानीयकरण के कारण-:
कच्चा माल की उपलब्धता-: मध्य प्रदेश के सतपुड़ा क्षेत्र में बांस तथा यूकेलिप्टस जैसे वृक्ष पाए जाते हैं जिनका उपयोग कागज निर्माण किया जाता है अतः इसीलिए यहां पर कच्चे माल की उपलब्धता के कारण कागज निर्माण के कारखाने संचालित हैं।
सस्ते श्रम की उपलब्धता-: सतपुड़ा क्षेत्र में भी उन क्षेत्रों में कागज उद्योग संचालित है जहां पर सत्संग उपलब्ध है जैसे -: अमलाई ,नेपानगर।
परिवहन के साधन-: कागज उद्योगों की इकाइयां वही स्थापित की गई है जहां पर परिवहन के पर्याप्त साधन है जैसे नेपानगर कारखाना के पास इटारसी मुख्य रेलवे लाइन स्थित।
ऊर्जा की उपलब्धता-: ताकत उद्योगों के लिए काफी ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होती है अतः कागज उद्योग उन स्थानों में स्थापित किए जाते हैं जहां पर ऊर्जा की पर्याप्त आपूर्ति उपलब्ध हो जैसे ओरिएंटल पेपर मिल अमलाई के पास विद्युत पूर्ति के लिए चांदनी ताप विद्युत केंद्र के निकट स्थापित है।
बीड़ी उद्योग-:
जो कि मध्य प्रदेश में भारत का 60% तेंदूपत्ता उत्पादित होता है और तेंदूपत्ता बीड़ी निर्माण का कच्चा माल है अतः मध्य प्रदेश में घरेलू बीड़ी उद्योगों का काफी विकास व विस्तार हुआ।
मध्यप्रदेश में बीड़ी का सर्वाधिक कारखाने जबलपुर सागर कटनी दमोह सतना आदि क्षेत्र में हैं।
प्लाईवुड उद्योग-:
मध्य प्रदेश में प्लाईवुड का प्रथम कारखाना होशंगाबाद के इटारसी में 1964 को स्थापित हुआ था।
मध्यप्रदेश में सर्वाधिक प्लाईवुड उद्योग छिंदवाड़ा बैतूल क्षेत्र में है।
मध्यप्रदेश में लघु एवं कुटीर उद्योग
लघु एवं कुटीर उद्योग का तात्पर्य ऐसे उद्योगों से है जो छोटे आकार के(एक करोड़ से कम पूंजी निवेश वाले) एवं श्रम प्रधान होते हैं,
जैसे-: बांस की लकड़ी से टोकनी सूपा चटाई कूलर की जाली बनाने का कुटीर उद्योग, हथकरघा कपड़े का उपयोग, पापड़ उद्योग, अचार उद्योग, अगरबत्ती बनाने का लघु उद्योग, ब्रेड टमाटर सॉस बनाने का लघु उद्योग।
लघु एवं कुटीर उद्योग कम पूंजी निवेश में अधिकाधिक लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाते हैं।
जबकि बृहद उद्योग पूंजी प्रधान होते हैं किंतु कम रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाते हैं।
अतः बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए लघु एवं कुटीर उद्योग को बढ़ावा दिया जाता है।
मध्य प्रदेश में स्थिति-:
उधम पोर्टल के अनुसार मध्य प्रदेश में 31 जनवरी 2023 तक एमएसएमई की संख्या 2.75 लाख थी। इन इकाइयों में लगभग 14.4 लाख नौकरियां उत्पन्न करने की क्षमता है।
मध्य प्रदेश में लघु एवं कुटीर उद्योगों की प्रमुख समस्याएं
कच्चे माल की समस्या-: लघु उद्योगों को कम मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता होती है जैसे हथकरघा उद्योग के लिए मिलों की सूत आवश्यक होती है अतः लघु उद्योगों के संचालक थोक माल का क्रय नहीं करते परिणाम स्वरूप इन्हें ऊंची कीमत पर घटिया किस्म का माल प्राप्त होता है।
वित्त की समस्या-: लघु उद्योगों के संचालक पूंजीपति नहीं होते अतः उन्हें अपना लघु उद्योग संचालित करने के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है किंतु वे कागजी कारवाही के जंजाल से बचने के लिए तथा शीघ्रता से पैसा प्राप्त करने के लिए संस्थागत ऋण नहीं देते बल्कि साहूकारों से ऋण लेना पसंद करते हैं जिससे उन्हें ऊंची ब्याज का भुगतान करना पड़ता है।
तकनीकी की समस्या-: लघु एवं कुटीर उद्योग आज भी परंपरागत तकनीकी से ही उत्पादन करते हैं फल स्वरुप उत्पादन की लागत अधिक आती है। जबकि उसकी तुलना में विक्रय मूल्य कम प्राप्त होता है।
व्यवसायिक सूचना का अभाव-: लघु एवं कुटीर उद्योग के संचालकों के पास व्यवसाय की प्रगति के लिए आवश्यक विभिन्न सूचनाओं की जानकारी नहीं होती है जैसे-: लोगों की रुचि किस तरह के उत्पाद पर है, कच्ची सामग्री का मूल्य कब कम या ज्यादा हुआ, उत्पादक मूल्यों की मांग कब अधिक होती है। जिसके कारण उनके उत्पाद उचित कीमत पर नहीं बिक पाते और उन्हें लाभ नहीं होता परिणाम स्वरुप यह बंद होने की कगार पर आ जाते हैं।
विपरण की समस्या-: लघु उद्योगों के पास भंडारण एवं परिवहन की सुविधा नहीं होती है और ना ही उनकी अलग से विक्रय दुकान होती है जिसके कारण उन्हें अपना माल बिचौलियों की सहायता से ही बैचना पड़ता है परिणाम स्वरूप उन्हें अपने उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल पाता।
बड़े उद्योगों से प्रतियोगिता-: बड़े उद्योगों से निर्मित वस्तुएं आकर्षक एवं सस्ती होती हैं जबकि लघु उद्योगों की उतनी आकर्षक एवं
सस्ती नहीं होती परिणामस्वरूप बड़े उद्योगों की प्रतियोगिता से लघु उद्योग का उत्पादन उचित समय एवं उचित कीमत पर नहीं बिक पाता।
मध्य प्रदेश में लघु एवं कुटीर उद्योगों की समस्याओं के समाधान-:
सहकारी विपरण समितियों का विस्तार
लघु एवं कुटीर उद्योग से संबंधित सहकारी समितियों का विकास एवं विस्तार किया जाए जो क्षेत्र के विभिन्न लघु एवं कुटीर उद्योगों को आपस में संगठित करके उन्हें कम कीमत पर कच्चा माल उपलब्ध करवाएं तथा उनके उत्पादों को अत्यधिक मांग वाले उपयुक्त बाजार में उचित कीमत पर बेचने का कार्य करें।
वित्तीय सुविधाओं का विस्तार
ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग एवं वित्तीय सुविधाओं का विस्तार किया जाए, ताकि लघु एवं कुटीर उद्योग संचालकों को कम ब्याज दरों पर ऋण प्राप्त हो सके ,और वे साहूकारों से ऊंची ब्याज दरों पर ऋण लेने के लिए विवश न हों।
शोध एवं अनुसंधान-:
लघु एवं कुटीर उद्योग के लिए शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाए ताकि उन्हें उत्पादन की नवीनतम तकनीक प्राप्त हो सके।
सलाहकारी संस्थाओं का विकास-:
लघु एवं कुटीर उद्योगों को उनके उत्पादों की मांग पूर्ति बाजार में उपभोक्ताओं की रूचि आदि की जानकारी देने तथा उनके उद्योगों के विकास के लिए उपयुक्त सलाह देने के लिए सलाहकारी संस्थाओं का विकास किया था, इस दिशा में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित मध्य प्रदेश लघु उद्योग निगम का संचालन उल्लेखनीय कदम है।
भंडार ग्रहों एवं विक्रय केंद्रों की स्थापना-: लघु एवं कुटीर उद्योग के उत्पादन को सुरक्षित रखने के लिए भंडार ग्रहों की स्थापना की जाए तथा उनके उत्पादों को सीधे उपभोक्ताओं को बेचने के लिए विक्रय केंद्रों की स्थापना की जाए ताकि उनके उत्पाद सीधे उपभोक्ता को प्राप्त हो और मध्यस्थ व्यापारी इसका लाभ न उठा सकें।
बड़े उद्योगों से प्रतियोगिता में संरक्षण-:
लघु एवं कुटीर उद्योग के उत्पादों का विज्ञापन करने के लिए प्रदर्शनी कार्यक्रम आयोजित किए जाएं तथा इनके विक्रय कर पर तुलनात्मक रूप से अधिक छूट दी जाए।
सूक्ष्म एवं लघु मध्यम उद्योग के विकास के लिए मध्यप्रदेश सरकार द्वारा किए गए प्रयास-:
लघु एवं कुटीर उद्योग कम पूंजी में ना केवल अधिकाधिक के रोजगार प्रदान करने में सहायक है क्षेत्रों के विभिन्न आवश्यक उत्पादों की पूर्ति में भी सहायक है परिणाम स्वरूप आयात में कमी एवं निर्यात में वृद्धि होती है।
अतः मध्य प्रदेश सरकार द्वारा सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों के विकास के लिए अनेकों कदम उठाएगा जिसका विवरण निम्न है-
मध्य प्रदेश सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग विभाग
मध्य प्रदेश में लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों का विकास करने के लिए वर्ष 2016 को मध्य प्रदेश सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग विभाग की स्थापना की गई।
जिसके अंतर्गत लघु एवं कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने वाले दो निगम एवं एक प्राधिकरण शामिल हैं-:
मध्य प्रदेश लघु उद्योग निगम।
राज्य वस्त्र निगम।
ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण।
इस विभाग द्वारा वर्ष 2017 में लघु कुटीर एवं सूक्ष्म उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग विकास नीति 2017 जारी की गई।
इस विभाग द्वारा 2018-19 में एमएसएमई के विकास में 13224 करोड़ रुपए निवेश किया गया।
संत रविदास मध्यप्रदेश हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास निगम-:
वर्ष 1981 में मध्य प्रदेश लघु उद्योग निगम की सहायक कंपनी के रूप में इस निगम की स्थापना की गई। इस निगम द्वारा हथकरघा एवं हस्तशिल्प उद्योगों के बुनकरों एवं शिल्पकारों को उन्नत प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
मुख्यमंत्री कारीगर स्वरोजगार योजना
इस योजना के तहत स्वयं का रोजगार स्थापित करने के लिए सरकार द्वारा निम्न ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध करवाया जाता है।
‘मेक इन एमपी’ पहल-
विभिन्न निवेश को नवाचार्यों तथा उद्यमियों को मध्य प्रदेश की भूमि में उद्यम स्थापित करने हेतु प्रोत्साहित करने तथा मध्य प्रदेश की भूमि को विनिर्माण का हब बनाना।
एमएसएमई विकास नीति 2021-
एमएसएमई सेक्टर में नए रोजगार का सृजन करने के लिए यह नीति लाई गई।
मुख्यमंत्री उद्यम क्रांति योजना 2022-
इसके तहत नवीन उद्यम स्थापित करने पर युवाओं को 1 लाख से 50 लाख तक का ऋण दिया जाएगा।
मध्यप्रदेश स्टार्टअप नीति 2022-
स्मृति में मध्य प्रदेश के स्टार्टअपऑन तथा इनक्यूबेटर ऑन के मध्य पारिस्थितिक तंत्र विकसित करने और उनकी सहायता करने का प्रावधान है।
ODOP-
मध्य प्रदेश में औद्योगिक अधोसंरचना का विकास-:
उद्योगों के विकास के लिए औद्योगिक संरचना का अहम योगदान होता है मध्य प्रदेश में औद्योगिक संरचना के विकास के लिए अनेकों कदम उठाए गए हैं-:
विशेष आर्थिक क्षेत्र
विशेष आर्थिक क्षेत्र का तात्पर्य उन भौगोलिक क्षेत्र से है जिन क्षेत्रों में आर्थिक नियमों में रियायत देकर , तथा आर्थिक संरचना का विकास करके उत्पादन एवं निर्यात को प्रोत्साहित किया जाता है
जैसी-: पीथमपुर विशेष आर्थिक क्षेत्र इंदौर।
भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्र को नियमित करने के लिए वर्ष 2005 में विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम 2005 बनाया गया।
मध्य प्रदेश में अब तक 10 विशेष आर्थिक क्षेत्र अनुसूचित किए गए।
मध्य प्रदेश के प्रमुख विशेष आर्थिक क्षेत्र-
पीथमपुर ग्रीनफील्ड SEZ- धार
मल्टी प्रोडक्ट SEZ- धार, ग्वालियर।
मिनेरल एण्ड एग्रीकल्चर SEZ- छिंदवाड़ा और जबलपुर
एलुमिनियम सपेशिफिक SEZ- सीधी।
फूड पार्क-:
फूड पर ऐसा स्थान होता है जहां पर आसपास के क्षेत्रों से विनिर्मित उत्पादों को संग्रहित एवं भंडारित किया जाता है एवं उन भंडारित उत्पादों को आवश्यकतानुसार विभिन्न बाजारों में पहुंचाया जाता है।
मध्य प्रदेश में सर्वप्रथम खरगोन कसरावद में मेगा फूड पार्क स्थापित किया गया था। तथा वर्तमान में अनेकों स्थानों पर मेगा फूड पार्क स्थापित है जैसे-: बाबई (होशंगाबाद) कटनी , निमरानी(खरगोन)।
वर्ष 2018 में देवास में अवंती मेगा फूड पार्क नामक पहला निजी क्षेत्र का मेगा फूड पार्क स्थापित हुआ।
इंडस्ट्रियल कॉरिडोर-:
औद्योगिक माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने तथा ले जाने के लिए बनाए गए विशिष्ट हाईवे, इंडस्ट्रियल कॉरिडोर कहलाते हैं।
मध्य प्रदेश के प्रमुख इंडस्ट्रियल कॉरिडोर-
भोपाल इंदौर इंडस्ट्रियल कॉरिडोर-:यह 190 किलोमीटर लंबा है।
मुरैना ग्वालियर शिवपुरी गुना इंडस्ट्रियल कॉरिडोर-: यह शरीर और 255 किलोमीटर लंबा है।
भोपाल बीना इंडस्ट्रियल कॉरिडोर-:यह अभी प्रस्तावित है जो 140 किलोमीटर लंबा होगा।
जबलपुर सिंगरौली कटनी इंडस्ट्रियल कॉरिडोर -: यह भी प्रस्तावित है जो 300 किलोमीटर लंबा होगा।
लॉजिस्टिक हब-:
लॉजिस्टिक हब वह कारोबारी केंद्र होता है जहां पर विभिन्न ने व्यावसायिक गतिविधियों का एक साथ संचालन किया जाता है।
मध्यप्रदेश में लॉजिस्टिक हब बनाने की संभावना है-:
मध्य प्रदेश 5 बड़े राज्यों की सीमा से लगा हुआ राज्य है अतः मध्य प्रदेश से देश की लगभग 50% आबादी प्रत्यक्ष संपर्क में है अतः यहां पर पर्याप्त बाजार उपलब्ध है
मध्यप्रदेश में लॉजिस्टिक हब बनाने के लिए पर्याप्त जमीन भी उपलब्ध है अकेले मध्य प्रदेश औद्योगिक विकास निगम के पास 1.20 लाख एकड़ जमीन उपलब्ध है।
मध्यप्रदेश में बिजली भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो रही है।
ड्राई पोर्ट-:
ड्राई पोर्ट एक ऐसा इनलैण्ड (जमीन से ही गिरा हुआ) टर्मिनल होता है, जो सड़क या रेलवे द्वारा सीधे बंदरगाह से जुड़ा होता है।
तथा यहां पर आयात एवं निर्यात शुल्कों का भुगतान करने की भी सुविधा होती है।
और चूंकि मध्य प्रदेश लैंडलॉक्ड राज्य है मध्यप्रदेश में निर्यात के लिए बंदरगाहों का तो नहीं किंतु बंदरगाहों के स्थान पर ड्राई पोर्ट का विकास किया जा सकता है।
मध्य प्रदेश के औद्योगिक केंद्र
औद्योगिक केंद्र-:
वह भौगोलिक क्षेत्र जहां पर काफी संख्या में उद्योगों का संचालन हो रहा हो।
मध्यप्रदेश में औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए औद्योगिक केंद्रों का विकास एवं विस्तार करने के लिए वर्ष 1987 में मध्य प्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम की स्थापना की गई, जिसका मुख्यालय भोपाल में स्थित है।
इसके द्वारा वर्तमान में मध्य प्रदेश में 231 औद्योगिक विकास केंद्र संचालित है जिसमें से 6 उद्योगिक विकास केंद्र , केंद्रीय सरकार द्वारा संचालित हो चुके हैं -:
पीथमपुर औद्योगिक केंद्र, धार।
पुराना औद्योगिक केंद्र ,पन्ना।
पीलूखेड़ी औद्योगिक केंद्र ,राजगढ़।
मेघनगर औद्योगिक केंद्र ,झाबुआ।
मालनपुर औद्योगिक केंद्र ,भिंड।
मनेरी औद्योगिक केंद्र, मंडला।
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा उद्योगों के विकास के लिए किए गए प्रयास
मध्य प्रदेश सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग विभाग
मध्य प्रदेश में लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों का विकास करने के लिए वर्ष 2016 को मध्य प्रदेश सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग विभाग की स्थापना की गई।
जिसके अंतर्गत लघु एवं कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने वाले दो निगम एवं एक प्राधिकरण शामिल हैं-:
मध्य प्रदेश लघु उद्योग निगम (1961)।
राज्य वस्त्र निगम।
ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण।
इस विभाग द्वारा वर्ष 2017 में लघु कुटीर एवं सूक्ष्म उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग विकास नीति 2017 जारी की गई।
इस विभाग द्वारा 2018-19 में एमएसएमई के विकास में 13224 करोड़ रुपए निवेश किया गया।
संत रविदास मध्यप्रदेश हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास निगम–:
वर्ष 1981 में मध्य प्रदेश लघु उद्योग निगम की सहायक कंपनी के रूप में इस निगम की स्थापना की गई। इस निगम द्वारा हथकरघा एवं हस्तशिल्प उद्योगों के बुनकरों एवं शिल्पकारों को उन्नत प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
मध्य प्रदेश औद्योगिक विकास निगम
तृतीय पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत मध्यप्रदेश में मध्यम एवं भारी उद्योगों का विकास करने के लिए वर्ष 1965 को मध्य प्रदेश औद्योगिक विकास निगम की स्थापना की गई।
यह उद्योगों के विकास के लिए अधोसंरचना विकसित करने का कार्य करता है।
मध्य प्रदेश वित्त निगम
उद्योगों के विकास हेतु उन्हें आवश्यक वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाने के लिए राज्य अधिनियम 1951 के अंतर्गत वर्ष 1955 में मध्य प्रदेश वित्त निगम की स्थापना की गई।
मध्य प्रदेश माइनिंग कॉरपोरेशन
मध्यप्रदेश में खनिजों की खोज उनका उत्खनन करके खनिज आधारित उद्योगों का विकास करने के लिए वर्ष 1962 में मध्य प्रदेश माइनिंग कॉरपोरेशन की स्थापना की गई जिसका मुख्यालय भोपाल में है
मध्य प्रदेश एग्रो इंडस्ट्री कॉरपोरेशन-:
मध्यप्रदेश में कृषि आधारित उद्योगों का विकास करने के लिए वर्ष 1969 में मध्य प्रदेश एग्रो इंडस्ट्री कॉरपोरेशन की स्थापना की गई जिसका मुख्यालय भोपाल में है।
जिला उद्योग केंद्र-:
मध्य प्रदेश के प्रत्येक जिले में जिला उद्योग केंद्र संचालित है जो उद्योगों को वित्तीय सहायता एवं कच्चा माल उपलब्ध करवाने का कार्य करता है।
मध्य प्रदेश में औद्योगिक विकास से संबंधित नीतियां एवं योजनाएं
दीनदयाल रोजगार योजना-:
इस योजना की शुरुआत मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2004 में की गई।
इस योजना का उद्देश्य शिक्षित युवाओं द्वारा स्वरोजगार की स्थापना को बढ़ावा देना है
इस योजना के तहत मध्य प्रदेश के शिक्षित बेरोजगार युवक को रियायती दरों पर ऋण प्रदान किया जाता है।
मुख्यमंत्री कारीगर स्वरोजगार योजना
इस योजना के तहत स्वयं का रोजगार स्थापित करने के लिए सरकार द्वारा लघु उद्यमियों को निम्न ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध करवाया जाता है।
शिल्पी कल्याण योजना-:
इस योजना के तहत शिल्पकार ओ तथा बुनकरों की बेटियों को निशुल्क उच्च शिक्षा प्रदान की जाती है।
मध्यप्रदेश निवेश प्रोत्साहन योजना 2014-:
यह योजना मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2014 में लागू की गई।
इस योजना का उद्देश्य लघु एवं वृहद निवेशकों को प्रोत्साहित करना है।
इस योजना के तहत लघु निवेशकों को निवेश करने पर कुल लागत का 10 से 40% तक तथा बृहद निवेशकों को निवेश करने पर उनकी कुल लागत का 10% अनुदान दिया जाता है।
उद्योग संवर्धन नीति 2014-:
मध्य प्रदेश में उद्योगों के विकास हेतु मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2014 में उद्योग संवर्धन नीति बनाई गई जिसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-:
निवेशकों को सिंगल विंडो की सुविधा देना।
ऑनलाइन इन्वेस्टर मीटिंग सिस्टम लागू करना।
एमएसएमई सेक्टर के लिए ब्याज अनुदान की अधिकतम सीमा को 20 लाख से बढ़ाकर 30 लाख किया गया।
100 एकड़ से अधिक औद्योगिक क्षेत्र में 20% भूमि आवास के लिए सुरक्षित रखी जाएगी।
एमपी इन्वेस्टर सम्मिट 2019-:
एमपी ग्लोबल इन्वेस्टर्स सम्मिट 2019 इंदौर में आयोजित हुई जिसमें लगभग 900 उद्योगों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया इस सम्मिट में मध्यप्रदेश में 7 देशों के लगभग 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के निवेश को मंजूरी दी गई।
नवीन नीतियां-
मध्य प्रदेश उद्योग संवर्धन नीति 2021
एमएसएमई विकास नीति 2021
मध्य प्रदेश स्टार्टअप नीति 2022
मध्य प्रदेश नवीनीकरण ऊर्जा नीति 2022
मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री उद्यम क्रांति योजना 2022
मध्य प्रदेश एमएसएमई विकास नीति 2021
पीपीपी मॉडल पर एमएसएमई के लिए अधोसंरचना का विकास।
ऑनलाइन सेवा के माध्यम से प्रक्रियात्मक सहायता देना।
निजी विकासकर्ताओं के माध्यम से बेहतर अधो-संरचना का निर्माण एवं रखरखाव
पत्र एमएसएमई इकाइयों को रियायती दर पर सहयोग।
युवा उद्यमियों को नए अवसर प्रदान करना।