भारत में जनांकिकी की स्थिति

जनांकिकी 

This page Contents

जनांकिकी-: 

जनांकिकी शब्द अंग्रेजी भाषा के demography शब्द का हिंदी रूपांतरण है और यह demography यूनानी भाषा के 2 शब्दों demos+graphy से मिलकर बना है. यहां पर demos का अर्थ है -: लोग या जन। तथा graphy का अर्थ है-:  वर्णन. 

अर्थात जनांकिकी वह विषय है जिसमें जनसंख्या तथा जनसंख्या की प्रवृत्तियों से संबंधित वर्णन होता है। 

चूंकि थॉमस रॉबर्ट नामक वैज्ञानिक ने जनांकिकी को एक सामाजिक विज्ञान के व्यवस्थित विषय के रूप में स्थापित किया इसलिए इन्हें जनांकिकी का पिता कहा जाता है। 

जनांकिकी की परिभाषा

गुइलार्ड के अनुसार जनांकिकी जनसंख्या की गतिशीलता तथा उससे संबंधित शारीरिक ,सामाजिक, नैतिक एवं बौद्धिक दशाओं का गणितीय अध्ययन है। 

जनसंख्या-: 

किसी क्षेत्र विशेष में निवास करने वाले व्यक्तियों (स्त्री पुरुष बच्चे बूढ़े सभी) की कुल संख्या उस क्षेत्र की जनसंख्या कहलाती है। 

जनगणना-:

किसी क्षेत्र विशेष में निवास करने वाली जनसंख्या की एक निश्चित समय अवधि में की जाने वाली गणना जनगणना कहलाते हैं। 

और भारत एवं मध्य प्रदेश में वर्ष 1881 से प्रत्येक 10 साल की समय अवधि में जनगणना की जाती है। हाल ही में वर्ष 2011 को भारत की जनगणना हुई। 

भारत में जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियां-: 

भारत में जनसंख्या वृद्धि की अवस्थाएं

1901 से लेकर वर्तमान तक भारत की जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है, 1901 में भारत की जनसंख्या मात्र 23.83 करोड थी, जो आज बढ़कर लगभग 130 करोड़ हो गई है। 

भारत में जनसंख्या वृद्धि को निम्न अवस्था में विभाजित करके देखा जा सकता है-: 

  1. 1901 से 1921 के मध्य की अवस्था-: इस अवस्था में जनसंख्या वृद्धि दर बहुत ही कम थी क्योंकि इस समय काल में जन्म दर के साथ-साथ मृत्यु दर भी उच्च थी। 1901 में भारत की कुल जनसंख्या23.83 करोड़ थी, जो 1921 में बढ़कर 25 करोड़ हो गई। हालांकि 1911 से 1921 के मध्य जनसंख्या वृद्धि दर -0.3% रही। 

  2. 1921 से 1951 की अवस्था-: 

इस अवस्था में जनसंख्या वृद्धि दर लगातार बढ़ती गई, क्योंकि जन्म दर निरंतर उच्च ही रही लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण मृत्यु दर में कमी आई  ,1921 में भारत की कुल जनसंख्या 25.13 करोड़ थी, जो 1951 में बढ़कर 36.10 करोड़ हो गई। 

  • 1951 से 2000 तक की अवस्था-: यह अवस्था सर्वाधिक तीव्र जनसंख्या वृद्धि दर व्यवस्था थी, 1961 से 1971 के मध्य तो दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर 24.8% तक पहुंच गई, 1951 में भारत की कुल जनसंख्या 36.10 करोड़ थी जो 2001 में बढ़कर 102 करोड हो गई। क्योंकि जन्म तक उतनी ही रही लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं एवं खाद्यान्न आपूर्ति के कारण मृत्यु दर कम हो गई। 

  • 2000 से अब तक की अवस्था-: 2000 के बाद से जनसंख्या वृद्धि दर लगातार कम हो रही है क्योंकि सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों के द्वारा जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। 1991 से 2001 के मध्य दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर 21.54 थी जो 2011 में घटकर 17.7% ही रह गई। 

.भारत में जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियां-:  भारत में जनसंख्या वृद्धि की अवस्थाएं.

.भारत में जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियां-:  भारत में जनसंख्या वृद्धि की अवस्थाएं1

जनसंख्या वृद्धि का जनसांख्यिकी संक्रमण सिद्धांत

किसी देश प्रदेश या समाज की जनसंख्या वृद्धि की प्रकृति को समझने के लिए तथा भविष्य की जनगणना का अनुमान लगाने के लिए डब्ल्यू यस थॉमसन ने 1929 में जनसांख्यिकी संक्रमण सिद्धांत दिया। 

इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी क्षेत्र में जन्म दर और मृत्यु दर की परिवर्तनशीलता के कारण जनसंख्या वृद्धि का एक चक्र चलता है जिसे जनसंख्या चक्र कहते हैं। 

जनसंख्या चक्र के अंतर्गत चार अवस्थाएं आती हैं-: 

  • प्रथम अवस्था-: 

इस अवस्थ में जन्म दर एवं मृत्यु दर दोनों उच्च होती हैं जंतर इसलिए उच्च होती है क्योंकि इस अवस्था में समाज ग्रामीण कृषि प्रधान रूढ़िवादी एवं निरक्षर होता है, और अधिक बच्चे पैदा करता है जबकि मृत्यु दर इसलिए उच्च होती है क्योंकि पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं एवं खाद्यान्न आपूर्ति का अभाव होता है अतः जनसंख्या बहुत धीमी गति से बढ़ती है। 

यह स्थिति मुख्यतः विकसित देशों में पाई जाती है। 

जैसे-:  भारत की 1951 के पहले की स्थिति। 

  • द्वितीय अवस्था-:

इस अवस्था में जन्म दर तो उच्च बनी रहती है किंतु स्वास्थ्य सुविधाओं ,पर्याप्त खाद्यान्न आपूर्ति की बढ़ोतरी के कारण मृत्यु दर निम्न हो जाती है। अतः जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ने लगती है। जैसे 1951 के बाद 1971 तक की स्थिति। 

यह स्थिति मुख्यता अल्प विकसित देशों में पाई जाती है। 

  • तृतीय अवस्था-:

इस अवस्था में शिक्षा तकनीकी ज्ञान आधुनिकीकरण तथा रूढ़िवादिता की समाप्ति आदि के कारण जन्म दर कम हो जाती है तथा स्वास्थ्य सुविधा एवं खाद्यान्न आपूर्ति की सुविधा के कारण मृत्यु दर कम हो जाती है और जन्म दर एवं मृत्यु दर के निम्न होने से जनसंख्या वृद्धि दर निम्न हो जाती है। स्थिर हो जाती है

यह स्थिति मुक्ता विकसित देशों में पाई जाती है। 

जैसे 1971 के बाद भारत की स्थिति। 

.जनसंख्या वृद्धि का जनसांख्यिकी संक्रमण सिद्धांत

भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण

भारत में 1951 के पूर्व से लेकर वर्तमान तक लगाता संख्या बढ़ती जा रही है

जनसंख्या वृद्धि के लिए अनेकों कारण जिम्मेदार हैं जिनका विवरण अधोलिखित है-: 

पुत्र प्राप्ति की लालसा-: हमारे देश (प्रदेश) के समाज में अधिकांश परिवार निम्न कारणों से पुत्र प्राप्ति की लालसा रखते हैं

  • मोक्ष प्राप्ति हेतु पुत्र को अवश्यक माना जाना,

  • पुत्र को बुढ़ापे का सहारा एवं धन कमाने वाला माना जाना। 

  • पुत्र को भगवान की देन माना जाना। 

और पुत्र प्राप्ति की लालसा में अधिक से अधिक बच्चे पैदा करते हैं। 

अशिक्षा एवं अज्ञानता -: 

अशिक्षा एवं अज्ञानता के कारण लो परिवार नियोजन के महत्व को नहीं समझते एवं अज्ञानी लोग इस रूढ़िवादी विचारधारा को मानते हैं कि बच्चे भगवान की देन है और प्रत्येक बच्चे अपने साथ अपना भाग्य लेकर आता है। 

गरीबी-: गरीब लोग यह मानते हैं कि उनकी जितनी अधिक बच्चे पैदा होंगी उतना ही धन कमा कर लाएंगे अतः वे इस विचारधारा के तहत अधिक अधिक बच्चे पैदा करते हैं। 

कम उम्र में विवाह-: कम उम्र में विवाह होने से एक तो महिलाओं की प्रजनन काल अवधि लंबी हो जाती है तथा कम उम्र एवं कम समझ के कारण वे अधिक से अधिक बच्चे पैदा कर देते हैं। 

परिवार नियोजन की विफलता: जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए परिवार नियोजन से संबंधित अनेकों सरकारी योजना संचालित है किंतु उनका उचित तरीके से क्रियान्वयन ना किया जाना भी जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख कारण है। 

जलवायु-: भारत की जलवायु उष्ण कटिबंधीय है जिसके प्रभाव से यहां की औरतें जल्दी गर्भ धारण कर लेती हैं परिणाम स्वरूप जन्म दर अधिक है और जिससे जनसंख्या भी लगातार बढ़ रही है। 

खाद्य पूर्ति एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण प्राकृतिक वृद्धि दर में बृद्धि-: 

1951 के पहले पर्याप्त खाद्य आपूर्ति एवं स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं होती थी इस वजह से जन्म दर तो उच्च थी ही साथ ही साथ मृत्यु दर भी उच्च थी ,जिसके परिणाम स्वरूप वास्तविक जनसंख्या वृद्धि की दर काफी निम्न थी, किंतु अब स्वास्थ्य सुविधाओं एवं खाद्य पूर्ति की पर्याप्तता के कारण मृत्यु दर कम हो गई है तथा जन्म दर यथावत बनी हुई है जो भी जनसंख्या वृद्धि का तत्कालीन कारण है। 

जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव-: 

जनसंख्या वृद्धि से सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के परिणाम सामने आते हैं 

जैसे-: 

सकारात्मक परिणाम-:

  • जनसंख्या वृद्धि से देश या प्रदेश की श्रम शक्ति बढ़ती है। परिणाम स्वरूप सस्ता श्रम प्राप्त हो जाता है। 

  • जनसंख्या वृद्धि से मांग में भी बढ़ोतरी होती है जिससे उत्पादन बढ़ता है और देश का समग्र आर्थिक विकास होता है। 

 नकारात्मक परिणाम-: 

  • निर्धनता-: जनसंख्या बढ़ने से राज्य की समस्त आय अर्थात जीडीपी तो बढ़ती है किंतु उस राज्य की आय में अधिक लोगों का हिस्सा होने पर प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती है अर्थात लोग गरीब हो जाते हैं जिससे उनके रहन-सहन का जीवन स्तर निम्न स्तर का हो जाता है परिणाम स्वरूप कार्यकुशलता भी कुप्रभावित होती है

  • बेरोजगारी-:

जनसंख्या की वृद्धि के साथ रोजगार के अवसरों में वृद्धि ना होने से बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होती है। मध्य प्रदेश के साथ यही स्थिति है इसीलिए मध्य प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि के साथ बेरोजगारी भी बढ़ती जा रही है। 

  • खाद्य आपूर्ति की समस्या-:

जनसंख्या के बढ़ने से प्रति व्यक्ति कृषि भूमि या अन्य संसाधनों की उपलब्धता कम हो जाती है जिससे खाद्य आपूर्ति की समस्या उत्पन्न होती। 

  • विनियोग में कमी-: जनसंख्या के बढ़ने से पारिवारिक खर्च  भी बढ़ता है क्योंकि प्रत्येक परिवार अपने सभी बच्चों को शिक्षा स्वास्थ्य खान-पान वेशभूषा , मकान आदि उपलब्ध करवाता है जिससे परिवारिक बसते कम होती है बचत कम होने से विनियोग कम होता है जिससे अर्थव्यवस्था का विकास मंद या स्थिर हो जाता है

  • पर्यावरण प्रदूषण-:

जनसंख्या वृद्धि से जल, मृदा, वायु प्रदूषण लगातार बढ़ता जाता है जिससे पर्यावरण असंतुलन उत्पन्न होता है। परिणाम स्वरूप संक्रमण रोग फैलते। 

जनसंख्या नियंत्रण के उपाय-: 

  • परिवार नियोजन से संबंधित जागरूकता

जनसंख्या नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन के संबंध में जागरूकता फैलाई जाए, इस हेतु शैक्षिक पाठ्यक्रमों में जनसंख्या नियंत्रण का महत्व एवं जनसंख्या वृद्धि के हानिकारक प्रभाव समझाए जाएं सामुदायिक कार्यक्रमों के माध्यम से जागरूकता फैलाई जाए,

  • पुरुषों से ज्यादा महिलाओं को महत्व दिया जाए

ग्रामीण रूढ़िवादी समाज में पुत्र प्राप्ति की लालसा को समाप्त करने के लिए महिलाओं के महत्व को बढ़ाया जाए इस हेतु हर योजना या कार्यक्रम में महिलाओं की भागीदारी को प्राथमिकता दी जाए। ताकि लोग पुत्र और पुत्रियों को एक समान समझने लगे एवं पुत्र प्राप्ति के लिए अधिक से अधिक बच्चे पैदा ना करें। 

  • गर्भाधान संबंधी शिक्षा -: ग्रामीण क्षेत्र की कपल को गर्भनिरोधक तरीके की जानकारी ही नहीं होती जिसकी वजह से अधिक से अधिक संतान पैदा हो जाती है, अतः नवविवाहित कपल को इसकी शिक्षा दी जाए।

  • कठोर नियम

संतान उत्पत्ति की कठोर सीमा निर्धारित कर दी जाए, जिसके अंतर्गत निर्धारित सीमा से अधिक संतान उत्पत्ति करने पर उन्हें सभी सरकारी योजनाओं से वंचित कर दिया जाए तथा सरकारी नौकरियां भी ना दी जाए।   जैसे चीन में जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए 1979 में एक बच्चे की नीति बनाई थी।

  • गोद लेने जैसे सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा दिया जाए। -: क्योंकि भारत में जहां एक और अनाथ बच्चों की संख्या काफी ज्यादा है वहीं दूसरी ओर अनेकों ऐसे कपल हैं जिनकी संतान नहीं होती। 

जनसंख्या नियंत्रण करने हेतु किए गए सरकारी प्रयास-:

  • जनसंख्या नियंत्रण दिवस जनसंख्या वृद्धि नियंत्रण के संबंध में जागरूकता फैलाने के लिए पूरे विश्व में 11 जुलाई को तथा मध्य प्रदेश में 11 मई को मध्यप्रदेश जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। 

  • चिकित्सीय उपचार-: सरकार द्वारा महिलाओं को पैसे देकर गर्भ विरोधी ऑपरेशन तथा iucd लगवाए जाते हैं। 

  • परिवार नियोजन केंद्र-: जनसंख्या वृद्धि की नकारात्मक प्रभावों को बताकर परिवार नियोजन से संबंधित उपयुक्त जानकारी देने के लिए सरकार द्वारा अनेकों परिवार नियोजन केंद्र संचालित। 

  • जनसंख्या नीति-: जनसंख्या नियंत्रण हेतु भारत सरकार द्वारा वर्ष 2000 में जनसंख्या नीति- 2000 बनाई गई ,तथा मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश जनसंख्या नीति 2000 बनाई गई।

जनसंख्या का वितरण

विभिन्न स्थानों में जनसंख्या के फैलाव को जनसंख्या का वितरण कहते हैं और सभी स्थानों में जनसंख्या का घनत्व या फैलाव एक समान नहीं होता क्योंकि जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले अनेकों कारक होते हैं जिनका वितरण अधोलिखित है-: 

भौतिक कारक

  • स्थलाकृति-: 

जिन क्षेत्रों में तुलनात्मक रूप से समतल स्थलाकृति होती है उन क्षेत्रों में जन घनत्व अधिक होता है इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में स्थलाकृति उबर-खाबर, ढाल युक्त या पहाड़ी पर्वतीय होती है उन क्षेत्रों में जन घनत्व कम होता है क्योंकि वहां पर कृषि करना एवं परिवहन का विकास करना काफी कठिन होता है यही कारण है कि -: गंगा यमुना की समतल मैदान में जन घनत्व अधिक है जबकि उत्तराखंडला, अनुनाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय राज्य में जन घनत्व कम है 

तथा मध्य प्रदेश के समतल मैदानी भाग जैसे-: राजगढ़ शाजापुर उज्जैन आदि समतल क्षेत्रों का जन घनत्व, पन्ना दमोह उमरिया डिंडोरी जैसे उबर खाबर क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। 

  • जल की उपलब्धता-: 

जिन क्षेत्रों में जल की पर्याप्त उपलब्धता होती है क्षेत्र में जन घनत्व अधिक होता है क्योंकि जल ना केवल जीवन के लिए अपितु कृषि कार्य एवं औद्योगिक कार्य के लिए भी महत्वपूर्ण होता है यही कारण है कि-: भारत के राजस्थान क्षेत्र में जहां पर जल की कमी पूर्ति है वहां पर जनघनत्व कम है जबकि पश्चिम बंगाल एवं उत्तर प्रदेश में जल की पर्याप्त उपलब्धता के कारण यहां पर जन घनत्व अधिक है। 

तथा मध्य प्रदेश में नदियों के किनारे वाले क्षेत्र में जैसे- चंबल नदी घाट की नर्मदा नदी घाटी क्षेत्र में जन घनत्व अधिक है जबकि नदियों से दूर के क्षेत्रों में जैसे- दमोह जिला आदि में जन घनत्व कम है। 

बुंदेलखंड क्षेत्र मैं पानी की उपलब्धता कम होने के कारण यहां पर जनघनत्व कम है

  • उपजाऊ मृदा-: 

जिन क्षेत्रों में गहरी एवं उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है उन क्षेत्रों में जन घनत्व अधिक होता है क्योंकि वहां पर कृषि की उत्पादकता अधिक होती है इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में कम उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है क्षेत्र में जन घनत्व कम होता है जैसे डेल्टा क्षेत्रों में अधिक उपजाऊ होने के कारण यहां पर जन घनत्व अधिक होता है इसके विपरीत रेगिस्तानी क्षेत्रों में कम उपजाऊ मृदा होने के कारण यहां पर जनघनत्व कम होता है। 

तथा मध्य प्रदेश में मालवा के क्षेत्र में उपजाऊ काली मिट्टी पाई जाती है इसलिए यहां पर जनघनत्व अधिक है

जबकि बालाघाट सिवनी छिंदवाड़ा बेतूल आदि क्षेत्र में कम उपजाऊ छिछली तथा लेटराइट मिट्टी पाई जाती है इसलिए यहां पर जनघनत्व कम है। 

आर्थिक कारक

  • औद्योगीकरण-: 

जिन क्षेत्रों में उद्योगों का सर्वाधिक विस्तार होता है उन क्षेत्रों में जन घनत्व अधिक होता है इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में उद्योगों का कम विस्तार होता है उन क्षेत्रों में जन घनत्व कम होता है क्योंकि लोग रोजगार की तलाश में औद्योगिक क्षेत्र के आसपास प्रवासित होकर बस जाते हैं। परिणाम स्वरूप वहां का जन घनत्व अधिक हो जाता है। जैसे गुजरात महाराष्ट्र पश्चिम बंगाल आदि क्षेत्र में उद्योगों का अधिक विस्तार होने से यहां पर जन घनत्व अधिक है इसके विपरीत अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर जैसे क्षेत्रों में उद्योगों को कम विस्तार होने से जहां पर जन घनत्व कम है। 

उसी प्रकार मध्यप्रदेश में इंदौर उज्जैन भोपाल ग्वालियर जबलपुर जैसे क्षेत्र में औद्योगिक विस्तार अधिक होने से यहां पर जन घनत्व अधिक है इसके विपरीत पन्ना डिंडोरी उमरिया जैसे जिलों में उद्योगों का कम विस्तार होने से यहां का जन घनत्व कम है। 

  • अधोसंरचना एवं नगरीकरण-: 

जिन नगरों के आसपास परिवहन संचार शिक्षा स्वास्थ जैसी अधोसंरचना अधिक विकसित होती हैं उन क्षेत्रों में जन्म घनत्व अधिक होता है इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में अधोसंरचना एवं नगरीकरण कम होता है उन क्षेत्रों में जन्म घनत्व कम है, क्योंकि जनसंख्या अधिक सुख सुविधाओं वाले क्षेत्रों में ही रहना पसंद करती है। 

जैसे मुंबई दिल्ली मद्रास बेंगलुरु जैसे शहरों में अधोसंरचना के विकास के कारण इनके आसपास जन घनत्व अधिक है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना के अभाव में यहां पर जनघनत्व कम है। 

इसी प्रकार मध्य प्रदेश के भोपाल इंदौर ग्वालियर जबलपुर जैसे शहरों के आसपास जन घनत्व सर्वाधिक है इसके विपरीत डिंडोरी पन्ना जैसे सर्वाधिक ग्रामीण प्रतिशत जनसंख्या वाले जिलों में जन घनत्व कम है। 

  • खनिज संसाधन

जिन क्षेत्रों में खनिज उत्खनन प्रकार किया जाता है उन क्षेत्रों में जन घनत्व अधिक होता है क्योंकि खनिज संसाधन वाले क्षेत्रों में लोगों खनन से संबंधित पर्याप्त रोजगार मिलता है अतः वे वही बस जाते हैं जैसे-: मध्य प्रदेश के सिंगरौली क्षेत्र में कोयला खनन के कारण यहां का जन घनत्व उमरिया शहडोल जिले से अधिक है। 

राजनीतिक कारण-: 

जहां पर राजनीतिक केन्द्र होता है वहां पर जन घनत्व तुलनात्मक रूप से अधिक होता है इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में कोई संस्थान नहीं होते वहां पर जन घनत्व कम होता है। जैसे मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के पास सर्वाधिक जनघनत्व है तथा बहुत से सरकारी विभागों का मुख्यालय इंदौर में होने पर इंदौर में भी जन घनत्व अधिक है, जबलपुर में हाईकोर्ट होने पर जबलपुर का जन घनत्व अधिक है। 

 

 

भारत में जनसंख्या वितरण

भारत की कुल जनसंख्या लगभग 130 करोड़ है किंतु भारत के सभी क्षेत्रों में जनसंख्या का वितरण समान नहीं है, जहां एक और दिल्ली का जन घनत्व 11,000 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है तो वहीं दूसरी ओर अरुणाचल प्रदेश में प्रति वर्ग किलोमीटर में मात्र 17 लोग रहते हैं। 

जनसंख्या घनत्व के वितरण की दृष्टि से भारत को चार भागों में बांटा जा सकता है

अत्यधिक जनघनत्व वाले क्षेत्र-: 

जहां का घनत्व 1000 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है उन्हें अधिक जनघनत्व वाले क्षेत्र कहा जा सकता है और इसके अंतर्गत भारत के निम्न क्षेत्र आते हैं दिल्ली , चंडीगढ़, लक्ष्यदीप, पांडुचेरी,पश्चिम बंगाल बिहार। 

अधिक जनघनत्व वाले क्षेत्र-: 

ऐसे क्षेत्र जहां पर जनघनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से 1000 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर के मध्य है

इसके अंतर्गत मुख्यतः उत्तर प्रदेश ,पंजाब ,हरियाणा ,केरल, तमिलनाडु आदि के क्षेत्र आते हैं। 

मध्यम जन घनत्व वाली क्षेत्र-: 

ऐसे जिनका जन घनत्व 200 से 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। 

इसके अंतर्गत मुख्यतः मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ ,गुजरात ,राजस्थान आदि क्षेत्र आते हैं।  

निम्न घनत्व वाले क्षेत्र-: 

ऐसे क्षेत्र जहां का जन घनत्व 200 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से भी कम है,

इसके अंतर्गत मुख्यतः अरुणाचल प्रदेश ,हिमाचल प्रदेश सउत्तराखंड लद्दाख सजम्मू कश्मीर ,मिजोरम ,नागालैंड ,मणिपुर आदि क्षेत्र आते हैं। 

भारत में जनसंख्या वितरण

  लिंगानुपात-: 

प्रति 1000 पुरुषों के सापेक्ष महिलाओं की संख्या को पुरुष महिला अनुपात या लिंगानुपात कहते हैं। 

जैसे भारत का लिंगानुपात 940 है। इसका अर्थ है कि भारत में औसतन प्रति 1000 पुरुषों के सापेक्ष महिलाओं की संख्या 940 है। 

लिंगानुपात का अध्ययन हमें यह बताता है कि किसी देश या समाज में महिलाओं की सामाजिक स्थिति कैसी है? श्रम बल कैसा है? वैवाहिक स्थिति कैसी है? आदि। 

जिस क्षेत्र में लिंगानुपात अधिक होता है वह क्षेत्र अपेक्षाकृत रूढ़िवादी मुक्त, शिक्षित एवं महिलाओं को सम्मान देने वाला क्षेत्र होता है। 

भारत में लिंगानुपात-: 

भारत में लिंगानुपात की ऐतिहासिक प्रवृत्ति-: 

1901 में भारत का लिंगानुपात 972 था, किंतु 1901 के बाद 1951 में घटकर 946 हो गया ,

और 1951 से 1991 में लगभग 19 घटकर 927 हो गया, हालांकि 1991 के बाद सरकारी प्रयासों एवं सामाजिक जागृति के कारण लिंग अनुपात में लगातार बढ़ोतरी हो रही है 1991 में लिंगानुपात 927 था जो अब बढ़कर 940 हो गया। 

किंतु अभी भी बच्चों का लिंग अनुपात 918है। 

.भारत में लिंगानुपात की ऐतिहासिक प्रवृत्ति-: 

भारत में लिंगानुपात का वितरण-: 

  • 950 से अधिक-: केरल उत्तराखंड हिमाचल प्रदेश असम नागालैंड मिजोरम मेघालय। 

  • 900 से 950-: मध्य प्रदेश राजस्थान उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र गुजरात। 

  • 900 से कम-: जम्मू कश्मीर पंजाब हरियाणा। 

.भारत में लिंगानुपात का वितरण-: 

 

भारत में लिंगानुपात कम होने के कारण-:

  • कन्या भ्रूण हत्या-:भारतीय समाज के लोग पुत्र प्राप्ति की चाहत के कारण भ्रूण का परीक्षण करवाकर कन्या भ्रूण की हत्या कर देते हैं। 

  • बाल विवाह-: ग्रामीण इलाकों में आज भी बाल विवाह की प्रथा प्रचलित है जहां पर छोटी आयु में ही लड़कियों की शादी कर दी जाती है परिणाम स्वरूप उन्हें छोटी आयु में ही मातृत्व का बोझ उठाना पड़ता है कई बार उनकी डिलीवरी के समय ही मृत्यु हो जाती है। 

  • घरेलू हिंसा या कुपोषण-: भारतीय समाज में लड़कों को ज्यादा श्रेष्ठ मानकर महिलाओं को केवल उपयोग की वस्तु माना जाता है अतः महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है उन्हें मारा-पीटा जाता है उन्हें पर्याप्त तक खाना नहीं दिया जाता है जिस कारण से कुपोषण या घरेलू हिंसा के परिणाम स्वरूप महिलाओं की मृत्यु हो जाती है। 

 लिंगानुपात को बढ़ाने के उपाय

  • कन्या भूण हत्या एवं कन्याओं के साथ किए जाने वाले भेदभाव पूर्ण व्यवहार के विरुद्ध जागरूकता फैलाई जाए। 

  • महिलाओं के महत्व को बढ़ाया जाए इसके लिए प्रत्येक योजना तथा कार्यक्रम में महिलाओं को प्राथमिकता दी जाए,

  • महिलाओं के लिए सभी सरकारी विभागों के साथ-साथ गैर सरकारी औद्योगिक संस्थानों में स्थान आरक्षित किए जाएं ताकि महिलाएं आत्मनिर्भर एवं धन कमाने वाली बने। ताकि उनका महत्व बढ़े। 

लिंग अनुपात कम होने के प्रभाव-: 

  • बहुमूल्य, तथा बहुपति विवाह जैसी प्रथा का प्रचलन होता है। 

  • वेश्यावृत्ति को बढ़ावा मिलता है। 

  • बलात्कार जैसी घटनाएं देखने को मिलती है। 

साक्षरता-: 

शिक्षा ही मानव को कुशल मानव संसाधन एवं सभ्य इंसान बनाती है अतः किसी देश या प्रदेश में शिक्षा का स्तर वहां के मानव संसाधन की गुणवत्ता का सूचक है। 

भारतीय जनगणना आयोग के अनुसार साक्षर उस व्यक्ति को माना जाता है जो 7 वर्ष से अधिक उम्र का होता था किसी एक भाषा के सामान्य संदेश को पढ़ने लिखने और समझने में सक्षम हो।

इस आधार पर वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर लगभग 73% है, जिसमें से-:

  • महिलाओं की साक्षरता दर 64% तथा पुरुषों की साक्षरता दर 81% है। 

  • ग्रामीण क्षेत्रों की साक्षरता दर लगभग 67% है जबकि शहरी क्षेत्रों की साक्षरता दर 84%

हालांकि यह साक्षरता दर बीसवीं शताब्दी में लगातार बढ़ती आ रही है क्योंकि 1901 भारत की साक्षरता दर मात्र 5.9% थी जो 1951 में बढ़कर 18% और अब बढ़कर 73 प्रतिशत हो गई। 

भारत में साक्षरता का वितरण-: 

80 %से अधिक-: केरल गोवा मिजोरम त्रिपुरा महाराष्ट्र तमिलनाडु हिमाचल प्रदेश। 

70 से 80 के मध्य-: मध्य प्रदेश , पंजाब हरियाणा उत्तराखंड गुजरात आदि। 

70 से कम-:    बिहार उत्तर प्रदेश अरुणाचल प्रदेश राजस्थान झारखंड आंध्र प्रदेश। 

.भारत में साक्षरता का वितरण-: 

जनजातीय जनसंख्या-: 

ऐसे लोग जो मुख्यतः गांव या शहरों से दूर जंगलों में निवास करते आए हैं उन्हें आदिवासी या जनजातीय लोग कहते हैं, तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 में भारत की जनजातियों को अनुसूचित किया गया है अतः इन्हें संविधानिक दृष्टि से अनुसूचित जनजाति भी कहते हैं। 

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या कुल जनसंख्या का 8.6% है। 

अनुसूचित जाति की जनसंख्या का लिंगानुपात 990 है। 

भारत की प्रमुख जनजातियों में भील, गोंड, संथाल ,मुंडा आदि शामिल है। 

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की कुल संख्या 21% है। 

मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या का लिंगानुपात 975 है

मध्यप्रदेश की प्रमुख  जनजाति में भील, गोंड,कोरकू, कोल,सहरिया ,बेगा। 

ग्रामीण एवं शहरी जनसंख्या

किसी देश या प्रदेश की कुल जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या एवं नगरीय जनसंख्या के अनुपात को ग्रामीण नगरीय संघटन कहते हैं। 

भारतीय जनगणना आयोग के अनुसार नगरीय जनसंख्या वह जनसंख्या है जो नगरों में निवास करती है और नगर व क्षेत्र होता है जहां-: 

  • 50000 से अधिक जनसंख्या हो,

  • 75% से अधिक जनसंख्या गैर कृषि कार्य में संलग्न हो,

  • जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से अधिक हो।

अतः सामान्य तौर पर हम यह कह सकते हैं कि नगरीय जनसंख्या वह है जो मुख्यतः प्राथमिक क्षेत्र में कम बल्कि द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र में कार्यरत है जबकि ग्रामीण जनसंख्या वह है जो मुख्यतः प्राथमिक क्षेत्र में ही कार्यरत है। 

और इस आधार पर वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या का अनुपात क्रमशः- 68.8 : 31.2 है। 

जबकि मध्यप्रदेश में यह अनुपात क्रमशः- 72.37 : 27.63 है। 

भारत में नगरीय एवं ग्रामीण जनसंख्या का वितरण

भारत के सर्वाधिक नगरीय जनसंख्या घनत्व वाले राज्य-: 

  • गोवा-: 62% नगरीय जनसंख्या। 

  • मिजोरम-: 52% नगरीय जनसंख्या। 

  • तमिल नाडु-: 48% नगरीय जनसंख्या। 

भारत के सर्वाधिक ग्रामीण जनसंख्या घनत्व वाले राज्य-: 

  • हिमाचल प्रदेश-: 90% ग्रामीण जनसंख्या। 

  • बिहार-: 88.7% ग्रामीण जनसंख्या। 

  • असम-: 86% ग्रामीण जनसंख्या।

जबकि केंद्र शासित प्रदेशों में सर्वाधिक नगरीय जनसंख्या है जैसे दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश में 97.5% जनसंख्या लग रही है जनसंख्या है चंडीगढ़ में 97.3% नगरीय जनसंख्या है 78.1% जनसंख्या है। 

नगरीय जनसंख्या एवं ग्रामीण जनसंख्या-: 

 अंतर

  • निवास-: नगर में निवास करने वाली जनसंख्या को नगरीय जनसंख्या कहते हैं जबकि गांव में निवास करने वाली जनसंख्या को ग्रामीण जनसंख्या कहते हैं नगर का तात्पर्य ऐसे स्थान से है जहां पर जनघनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से अधिक हो, जनसंख्या 50,000 से अधिक हो,75% से अधिक आबादी गैर कृषि कार्य में संलग्न हो।

  • आवासीय संरचना-: नगर में आवासीय संरचना व्यवस्थित होती है अर्थात नगरों में व्यवस्थित अधोसंरचना विकसित होती है जैसे बिजली पानी शिक्षा स्वास्थ्य सुविधाएं सड़क सार्वजनिक टॉयलेट एवं यात्री प्रतीक्षालय आदि की व्यवस्था। जबकि ग्रामीण क्षेत्र में पर्याप्त आधा संरचना विकसित नहीं होती है। अतः नगरीय जनसंख्या का जीवन कम कष्टमय होता है

  • व्यवसाय-: नगरीय जनसंख्या मुख्यतः द्वितीय एवं तृतीय क्षेत्र में व्यवसाय करती है जबकि ग्रामीण जनसंख्या प्राथमिक क्षेत्र में संलग्न रहती है। 

  • सामाजिक स्थिति-: नगरीय जनसंख्या में सामुदायिक भावना नहीं होती तथा उनकी दिनचर्या तीव्र होती है जबकि ग्रामीण जनसंख्या में सामुदायिक भावना होती है तथा दिनचर्य आरामदायक होती है

अर्थात नगरीय जनसंख्या के मध्य केवल औपचारिक संबंध होते हैं जबकि ग्रामीण जनसंख्या के मध्य सामुदायिक संबंध होते हैं। 

  • पर्यावरण-: नगरीय क्षेत्रों में जन घनत्व एवं औद्योगिक अधिक होने के कारण पर्यावरण प्रदूषित रहता है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में तुलनात्मक रूप से पर्यावरण स्वच्छ रहता है। 

नगरीकरण

किसी देश या समाज में नगरों का ,नगरीय जनसंख्या एवं नगरीय संस्कृति का विकास व विस्तार होना नगरीकरण कहलाता है

नगरीकरण की विशेषताएं-: 

  • औद्योगिक गतिविधियों में वृद्धि।

  • जन घनत्व वृद्धि। 

  • सामुदायिक संबंधों का औपचारिक संबंधों में बदलना। 

  • शिक्षा एवं जागरूकता में वृद्धि। 

नगरीकरण के प्रभाव-: 

सकारात्मक प्रभाव

  • जन्म दर में कमी आती है। 

  • विभिन्न प्रकार की कुप्रथा जैसे जाति प्रथा बाल विवाह पर्दा प्रथा समाप्त होने लगती हैं। 

  • औद्योगीकरण को बढ़ावा मिलता है जिससे आर्थिक विकास होता है। 

  • लोगों के जीवन स्तर उनकी अर्थात उनकी शिक्षा स्वास्थ्य में सुधार आता है। 

नकारात्मक प्रभाव-: 

  • पर्यावरण की हानि होती है क्योंकि नगरीकरण से उद्योगों एवं जन घनत्व का विस्तार होने से जल , वायु , ध्वनि एवं मृदा प्रदूषण होता है। 

  • आवासीय समस्या उत्पन्न होती है क्योंकि शहरी क्षेत्रों में जन घनत्व अधिक होता है परिणाम स्वरूप प्रति व्यक्ति भूमि कम होती है। 

  • ग्रामीण संस्कृति एवं सामुदायिक ताकि भावना का पतन होता है।

भारत की जनांकिकी व्यवस्था की विशेषताएं

  • अत्यधिक जनसंख्या-: भारत के पास विश्व का केवल 2.4% क्षेत्र है किंतु यहां पर विश्व की 17.7% जनसंख्या निवासरत है, तथा जनसंख्या की मामले में भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश,

  • जनांकिकी लाभांश-:

हालांकि भारत की जनसंख्या में युवाओं की जनसंख्या 65% है। अतः भारत के लिए जनांकिकी लाभांश  की स्थिति है। 

  • ग्रामीण जनसंख्या की अधिकता-: भारत की लगभग 69% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और जो मुख्यतः कृषि या कृषि से संबंधित कार्य में संलग्न है। 

  • निम्न लिंगानुपात-: जहां विश्व का औसत लिंगानुपात 986 है वही भारत का लिंगानुपात सिर्फ 940 है। 

 

जनांकिकी से संबंधित शब्दावली-: 

प्राकृतिक वृद्धि दर-:

एक निश्चित समय अवधि सामान्यतया 1 वर्ष में किसी क्षेत्र विशेष के निवासियों की कुल जन्म दर तथा कुल मृत्यु दर के अंतर को प्राक्रतिक वृद्धि दर कहते हैं अर्थात इसमें अप्रवास और उत्प्रवास को शामिल नहीं किया जाता। 

प्राकृतिक वृद्धि दर = कुल जन्म दर -कुल मृत्यु दर। 

जन्म दर-:

1 वर्ष की समय अवधि में प्रति 1000 की जनसंख्या में जीवित जन्म लेने वाले शिशुओं की संख्या को जन्म दर कहते हैं, 

वर्ष 2011 की जन्गारना के अनुसार भारत की जन्म दर 21.4 शिशु प्रति 1000 जनसंख्या थी (अब 18)। 

मृत्यु दर-:

1 वर्ष की समय अवधि में प्रति 1000 की जनसंख्या में मरने वाले लोगों की संख्या मृत्यु दर कहलाती है। 

वर्ष 2011 की जन्गारना के अनुसार भारत में मृत्यु दर 7 व्यक्ति प्रति 1000 जनसंख्या है।    

बाल शिशु मृत्यु दर-:  

प्रति 1000 जीवित जन्मों पर मरने वाले शिशुओं (1 वर्ष के अंदर)की संख्या। शिशु मृत्यु दर कहलाती है। 

वर्ष वर्ष 2011 की जन्गारना के अनुसार भारत की शिशु मृत्यु दर 33(अब 29) थी

मातृ मृत्यु दर-:

प्रति एक लाख जीवित जन्मों पर प्रसव पीड़ा के कारण प्रसव के दौरान या प्रसव के 42 दिन के अंदर, मरने वाली माताओं की संख्या मातृ मृत्यु दर कहलाती है। 

2018 में भारत की मातृ मृत्यु दर 130 थी। 

जबकि मध्यप्रदेश में मातृ मृत्यु दर 173 थी।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *