शिक्षा का अर्थ, प्रकार,

[ शिक्षा ]

शिक्षा का अर्थ महत्व प्रकार

शिक्षा का अर्थ-: 

शिक्षा को अंग्रेजी में education कहते हैं,जो लैटिन भाषा के educare शब्द से बना है जिसका अर्थ है आंतरिक गुणों का विकास करना। 

तथा शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा के शिक्ष् धातु से बना है जिसका अर्थ है सीखना अथवा सिखाना। 

अर्थात शिक्षा सीखने एवम सिखाने की प्रक्रिया है

शिक्षा ज्ञान प्राप्त करके अपने आंतरिक गुणों का विकास करने की प्रक्रिया है। 

शिक्षा का संकुचित अर्थ-: 

शिक्षा के संकुचित अर्थ का अभिप्राय उस शिक्षा से है जो शिक्षा किसी एक निश्चित स्थान या विद्यालय में, योजनाबद्ध तरीके से एक निश्चित समय में दी जाती है। 

शिक्षा का व्यापक अर्थ-: 

जबकि व्यापक शिक्षा का अर्थ उस शिक्षा से है जो हमें जीवन पर्यंत विभिन्न अनुभवों से प्राप्त होती है। 

जैसे-: यदि हम किसी तालाब में तैरते हैं और तैरने से हमें यह अनुभव होता है कि पानी को पीछे धकेलने पर हम आगे बढ़ते हैं तो यह भी एक शिक्षा है। 

शिक्षा की प्रकृति या विशेषताएं-:   

  • शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है क्योंकि हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक हमें अनेकों अनुभव होते हैं जिससे हम ज्ञान प्राप्त करते हैं

  • शिक्षा अनवरत(कभी न समाप्त होने वाली) प्रक्रिया है क्योंकि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को शिक्षा का स्थानांतरण करती जाती है।

  • शिक्षक विकासात्मक प्रक्रिया है क्योंकि जैसे जैसे व्यक्तियों के अनुभव बढ़ते जाते हैं वैसे वैसे शिक्षा का विकास होता जाता है उदाहरण के लिए पहले व्यक्तियों को यही समझ नहीं थी की पृथ्वी कहां पर स्थित है किंतु धीरे-धीरे शिक्षा के विकास से अब पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों की स्थिति एवं उनकी संरचना कर दी ज्ञान हो गया।   

  • शिक्षा द्विध्रुवीय प्रक्रिया है-: क्योंकि शिक्षा की प्रक्रिया दो लोगों के बीच चलती है एक जो दूसरों को ज्ञान देता है अ दोर्थात शिक्षक और दूसरा जो ज्ञान अर्जित करता है अर्थात शिक्षार्थी।

 जबकि जॉन डीवी ने शिक्षक को त्रिमुखी प्रक्रिया बताया है जिसमें शिक्षक, पाठ्यवस्तु और शिक्षार्थी शामिल है

  • शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है-: क्योंकि हम शिक्षा समाज के माध्यम से ही प्राप्त करते हैं समाज में ही शिक्षक ,शिक्षार्थी  एवं अनुभव शामिल है 

  • शिक्षा एक उद्देश्य पूर्ण प्रक्रिया है।

शिक्षा के उद्देश्य या महत्व-: 

  • व्यक्ति का नैतिक विकास करना, जैसे व्यक्ति की चरित्र, आचरण , मनोवृति आदि ने सकारात्मक परिवर्तन लाना उसमें मानवता की भावना विकसित करना

  • व्यक्ति का शारीरिक विकास करना-: शिक्षा के माध्यम से ही हमें शारीरिक विकास के तरीके पता चलते हैं तथा शारीरिक विकास के लिए शारीरिक शिक्षा दी जाती है जैसे वर्तमान में एनसीसी की शिक्षा। पोषाण आहार की शिक्षा

  • व्यक्तियों की क्षमताओं का विकास कर सामग्री राष्ट्र का आर्थिक विकास करना-: इसके लिए व्यावसायिक  एवं तकनीकी शिक्षा प्रदान करके लोगों की क्षमता का विकास किया जाता है। 

  • व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाना-: शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति को अपनी समस्याओं का समाधान करने तथा दूसरों पर निर्भर हुए बिना अपना जीवन यापन उपयुक्त तरीके से करने का ज्ञान प्राप्त होता है।  

  • वर्तमान सामाजिक समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक बनाना।

शिक्षा ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करती है तथा एक साधारण मानव को कुशल मानव संसाधन बनाते हैं

इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा आयोग ने शिक्षा के संबंध में कहा है कि

“शिक्षा राष्ट्र के आर्थिक सामाजिक विकास का शक्तिशाली साधन है तथा शिक्षा राष्ट्रीय संपन्नता एवं राष्ट्र कल्याण की कुंजी है”

शिक्षा के प्रकार-: 

  • औपचारिक शिक्षा

  • अनौपचारिक शिक्षा

औपचारिक शिक्षा-: 

वह शिक्षा जो किसी शिक्षण संस्थान जैसे विद्यालय आदि में, योजनाबद्ध तरीके से, निश्चित समय अवधि के दौरान दी जाती है उसे औपचारिक शिक्षा कहते हैं। 

अनौपचारिक शिक्षा-: 

वह शिक्षा जो हमें बिना किसी औपचारिक संस्थान के विभिन्न अनुभवों , या वार्तालाप से प्राप्त होती है उसे अनौपचारिक शिक्षा कहते हैं

औपचारिक शिक्षा और अनौपचारिक शिक्षा में अंतर-: 

  • औपचारिक शिक्षा प्राप्ति का एक निश्चित स्थान (विधालय)होता है

जबकि अनौपचारिक शिक्षा प्राप्ति का कोई एक निश्चित स्थान नहीं होता। 

  • औपचारिक शिक्षा एक निश्चित समय अवधि में तथा सुनियोजित पाठ्यक्रम के तहत दी जाती है

जबकि अनौपचारिक शिक्षा कि कोई निश्चित पाठ्यक्रम एवं समय अवधि नहीं होती यह जीवन पर्यंत प्राप्त होती रहती है। 

  • औपचारिक शिक्षा कष्ट साध्य या बंधन युक्त होती है क्योंकि इसमें दिया गया वर्क पूरा करना होता है जबकि अनौपचारिक शिक्षा स्वता ही सरलता प्राप्त हो जाती है। 

दूरस्थ शिक्षा-:

वह शिक्षण प्रणाली जिसमें शिक्षक शिक्षार्थी को ऑनलाइन या बुक प्रोवाइड करके दूर से ही शिक्षा प्रदान करता है। उसे दूरस्थ शिक्षा कहते हैं जैसे वर्तमान में इग्नू स्वयं प्रभा ऐप आदि द्वारा दी जाने वाली शिक्षा। 

भारत में शिक्षा की स्थिति

शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट 2019 के अनुसार-: 

  • 4 से 8 वर्ष आयु वर्ग के 90% से अधिक बच्चों का शैक्षिक संस्थानों में नामांकन है। इसमें से 4 वर्ष के लगभग 91% बच्चे और 8 वर्ष के लगभग 99.5% बच्चों का नामांकन है। 

  • सरकारी संस्थानों में लड़कियां तथा निजी संस्थानों में लड़के अधिक नामांकित है। इस रिपोर्ट में बताया गया कि 4 से 5 वर्ष के बच्चों में से कुल लड़कियों में 56.8 प्रतिशत लड़कियां सरकारी संस्थानों में है तथा कुल लड़कों में से केवल 50.4% लड़के की सरकारी स्कूलों में नामांकित है। 

  • प्रथम एनजीओ की रिपोर्ट 2014 के अनुसार तीसरी कक्षा के सभी बच्चों में से  75% बच्चे तथा पांचवी कक्षा के सभी बच्चों में से 50% बच्चे एवं आठवीं कक्षा के सभी बच्चों में से  25% बच्चे हैं दूसरी कक्षा की पुस्तक पढ़ने में असमर्थ हैं।

भारत में शिक्षा की समस्याएं

  1. शैक्षिक संस्थानों तथा शैक्षिक संस्थानों में उपयुक्त आधारभूत संरचना जैसे प्रयोगशाला, जल व्यवस्था, पुस्तकालय की कमी। 

  2. गुणवत्तापूर्ण पर्याप्त शिक्षकों की कमी। 

  3. शैक्षिक संस्थानों के निरीक्षण तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण का अभाव। 

  4. समावेशी शिक्षा प्रणाली का अभाव। 

  5. व्यावहारिक, व्यवसायिक एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी।

भारतीय शिक्षा प्रणाली के दोष-: 

  • अनौपचारिक शिक्षा को महत्व ना दिया जाना जैसे खेलकूद की शिक्षा ,संगीत की शिक्षा। 

  • शैक्षिक संस्थानों में छात्र-छात्राओं के मध्य प्रतिस्पर्धा पूर्ण वातावरण होना, ना कि सहयोगात्मक वातावरण। 

  • आसपास से संबंधित व्यवहारिक ज्ञान देने की बजाय रट्टा प्रणाली को महत्व दिया जाना।

शिक्षा प्रणाली में सुधार के समाधान-: 

  • शिक्षा पर व्यय को बढ़ाकर पर्याप्त मात्रा में शैक्षिक संस्थान तथा शैक्षिक संस्थानों में आधारभूत संरचना का विकास किया जाए। 

  • शिक्षकों के खाली पदों को भरने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की नियुक्ति की जाए। 

  • शैक्षिक संस्थानों का समय-समय पर निरीक्षण किया जाए एवं पुराने शिक्षकों को वर्तमान आवश्यकता के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाए। 

  • समावेशी शिक्षा प्रणाली का विकास किया जाए। 

  • शिक्षक पाठ्यक्रमों को ऐसा बनाया जाए जो व्यावहारिक व्यवसाय एवं गुणवत्तापूर्ण हो। 

  • औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ अनौपचारिक शिक्षा को भी महत्व दिया जाए। 

शैक्षिक प्रणाली में सुधार करने के लिए हाल ही में नई शिक्षा नीति 2020 लाई गई जो इस दिशा में उल्लेखनीय कदम है। 

इसके अलावा शिक्षा के विकास के लिए 1985 में भारत सरकार के अंतर्गत मानव संसाधन विकास मंत्रालय बनाया गया, जो 2 विभागों के माध्यम से कार्य करता है-:

  • स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग। -: 

स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता को बढ़ावा देने के उद्देश्य कार्य करता है। 

  • उच्चतर शिक्षा विभाग। 

यह उच्चतर शिक्षा के विकास हेतु उत्तरदाई है

वर्तमान में मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। 

नई शिक्षा नीति 2020-: 

भारतीय शिक्षा प्रणाली में वर्तमान परिस्थितियों की आवश्यकता के अनुसार उपयुक्त सुधार करने के लिए, वर्ष 2020 में कस्तूरीरंगन समिति की सिफारिशों के आधार पर नवीन शिक्षा नीति लाई गई जिसे नई शिक्षा नीति 2020 कहा जाता है। 

क्या आवश्यकता थी?

भारत में शिक्षा में सुधार हेतु सर्वप्रथम 1968 में शिक्षा नीति बनाई गई थी इसके बाद 1986 में शिक्षा नीति बनाई गई किंतु 1986 के बाद व्यापक बदलाव की कोई नई शिक्षा नीति नहीं लाई गई अतः वर्तमान में वर्तमान युग की परिस्थितियों के अनुसार शिक्षा प्रणाली में सुधार करने के लिए उपयुक्त शिक्षा नीति की आवश्यकता थी। 

नई शिक्षा नीति का उद्देश्य-: 

  • शिक्षा पर व्यय को 3% से बढ़ाकर 6% करना ताकि शिक्षण संस्थाएं एवं शिक्षण संस्थाओं में उपयुक्त आधारभूत संरचना का विकास एवं विस्तार हो सके। 

  • तकनीकी, व्यावहारिक एवं वोकेशनल शिक्षा को बढ़ावा दिया जा सके,

  • बच्चों के पढ़ाई से संबंधित बोझ को कम किया जा सके। 

  • संपूर्ण भारत में शिक्षा के एकीकरण के लिए,

नई शिक्षा नीति के प्रमुख प्रावधान-: 

  • शिक्षा पर व्यय बढ़ाया गया-: वर्तमान में शिक्षा पर जीडीपी का 2.7 प्रतिशत हिस्सा खर्च किया जाता है जिसे बढ़ाकर 6% करने का प्रावधान रखा गया। 

  • स्कूली शिक्षा संरचना में परिवर्तन -: नई शिक्षा नीति 2020 के तहत 10+2 की शिक्षा संरचना के स्थान पर 5+3+3+4 की स्कूली शिक्षा संरचना को अपनाया गया। 

इसके अंतर्गत बच्चों को 3 वर्ष में भी स्कूल में प्रवेश दिया जाएगा, 

फाऊंडेशनल स्टेज

स्कूल में प्रवेश के उपरांत 5 वर्षों तक फाउंडेशन स्टेज होगा, जिसमें 3 वर्ष प्रीस्कूल एवं 2 वर्ष क्लास 1 ऑफ क्लास 2 होगा

प्रीपेटरी स्टेज

यह स्टेज 3 साल का होगा जिसके अंतर्गत पहली दूसरी और तीसरी कक्षा होगी,

मिडिल स्टेज

स्टेज भी 3 साल का होगा जिसके अंतर्गत छठवीं सातवीं और आठवीं कक्षा होगी। 

सेकेंडरी स्टेज

यह स्टेज 4 साल का होगा जिसके अंतर्गत 9वीं से लेकर 12वीं तक की कक्षा होगी। 

  • मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा

बच्चों को पांचवी तक की शिक्षा मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में दी जाएगी। 

  • वोकेशनल स्टडी

मिडिल स्टेज के बच्चों को पाठ्यक्रम की शिक्षा के अलावा उनकी पसंद अनुसार वोकेशनल शिक्षा भी दी जाएगी जैसे बागवानी, लकड़ी का काम की शिक्षा मिट्टी के बर्तन बनाने की शिक्षा, बिजली के काम की शिक्षा।  

  • सेमेस्टर वाइज कक्षाए

नई शिक्षा नीति के तहत सेकेंडरी स्टेज की कक्षाओं में 1 वर्ष में दो बार परीक्षा होगी अर्थात सेमेस्टर सिस्टम लागू होगा। 

  • विभिन्न स्ट्रीम की पढ़ाई एक साथ न‌ई शिक्षा नीति के तहत नवी कक्षा के बाद छात्रों को वर्तमान की भांति इस सट्रीम का चयन नहीं करना होगा बल्कि वे एक साथ विभिन्न स्ट्रीम के सब्जेक्ट बढ़ सकते हैं जैसे फिजिक्स के साथ हिस्ट्री।

  • ग्रेजुएशन-: 

नई शिक्षा नीति के तहत ग्रेजुएशन 3से4 वर्ष का होगा तथा ग्रेजुएशन के प्रथम वर्ष की पढ़ाई पूरी करने पर कुछ वर्ष का प्रमाण पत्र दिया जाएगा 2 वर्ष की पढ़ाई पूरी करने पर डिप्लोमा प्रमाण पत्र दिया जाएगा 3 वर्ष की पढ़ाई पूरी करने पर डिग्री दी जाएगी और 4 वर्ष की पढ़ाई पूरी करने पर बैचलर डिग्री दी जाएगी। इसके साथ ही यदि कोई व्यक्ति बीच में पढ़ाई छोड़ देता है तो वह पिछली पढ़ाई के बाद पुनः बाद में पढ़ाई स्टार्ट कर सकता है। 

  • एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट-: 

नई शिक्षा नीति के तहत एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट का गठन किया जाएगा जिसमें छात्रों द्वारा परीक्षा में प्राप्त किए गए क्रेडिट को डिजिटल रखा जाएगा एवं उनके क्रेडिट को अंतिम वर्ष की डिग्री में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। 

  • छात्रों के लिए-: 

छात्रों का बैग उनकी कुल भजन से 10% से अधिक नहीं होना चाहिए तथा किताबी वजन को कम करने के लिए ई पाठशाला की व्यवस्था की जाएगी तथा फाउंडेशन स्टेज के बच्चों को कोई होमवर्क नहीं दिया जाएगा और ना ही उनकी कोई परीक्षा ली जाएगी। 

  • अध्यापकों के लिए-: 

b.ed का कोर्स न्यूनतम 4 वर्ष का होगा तथा शिक्षकों का समय-समय पर निरीक्षण किया जाएगा एवं उनके कार्य प्रदर्शन के आधार पर उनकी पदोन्नति की जाएगी। 

  • राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच

शैक्षिक पाठ्यक्रम का मूल्यांकन करने के लिए राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच की एक स्वायत्त निकाय की स्थापना की जाएगी

  • उच्च शिक्षा संस्थान-: 

उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक जिले में उच्च शिक्षा संस्थान का निर्माण किया जाएगा।

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