भारत में उद्योग क्षेत्र के मुद्दे
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Toggleउद्योग-: उद्योग वह संस्थान होता है जहां पर व्यापक मात्रा में उत्पादन का कार्य किया जाता है।
उद्योगीकरण
औद्योगिकरण वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत प्राथमिक उत्पादों को द्वितीयक उत्पादों में परिवर्तित करके देश की जीडीपी में विनिर्माण-क्षेत्र का योगदान तुलनात्मक रूप से तेजी से बढ़ाया जाता है।
और किसी भी अल्प विकसित या विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था के विकास के लिए औद्योगीकरण अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व है क्योंकि औद्योगीकरण से ही उस राष्ट्र की आर्थिक समृद्धि (increase GDP)होती है.
भारत में औद्योगीकरण का ऐतिहासिक स्वरूप
भारत प्राचीन काल से ही शिल्प वस्त्र रत्न आभूषण एवं मसालों आदि के उद्योगों तथा व्यापार के लिए प्रसिद्ध था किंतु ब्रिटिश काल के दौरान ब्रिटिश उपनिवेशवाद की नीतियों के कारण भारतीय उद्योगों पतन हुआ किंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हमारे देश के आर्थिक विकास के लिए उद्योगों को योजनाबद्ध तरीके से विकसित करने का प्रयास किया गया, रुपए का अवमूल्यन किया गया ताकि आयात महंगा व निर्यात सस्ता हो सके, तथा 1991 की औद्योगिक नीति के तहत उदारीकरण निजीकरण वैश्वीकरण जैसे दृष्टिकोण को अपनाने से भारत में उद्योगों का तेजी से विकास हुआ और भारत की अर्थव्यवस्था और भी समृद्ध हुई।
आर्थिक सुधार
आर्थिक सुधारों का तात्पर्य अर्थव्यवस्था के विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में किए गए ऐसे नीतिगत परिवर्तनों से है जिनके द्वारा अर्थव्यवस्था में विद्वान विसंगतियों को दूर किया जाता है तथा अर्थव्यवस्था का तीव्र विकास सुनिश्चित किया जाता है।
भारत में आर्थिक सुधारों के लिए समय-समय पर विभिन्न औद्योगिक नीतियां लागू की गई जिनका विवरण अग्रोलिखित है-:
औद्योगिक नीति-1948
इस भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वरूप को निर्धारित किया गया, इस नीति के तहत भारत सरकार ने समाजवादी और पूंजीवादी अर्थव्यवस्था दोनों के ही सम्मिलित रूप अर्थात मिश्रित-अर्थव्यवस्था को अपनाया , इस मॉडल के तहत भारत के भारी उद्योग का नेतृत्व व नियंत्रण सरकार करेगी जबकि निजी क्षेत्र पूरक के रूप में भूमिका निभायेंगे।
औद्योगिक नीति 1956
औद्योगिक नीति 1980
इस नीति की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं
नया उद्योग स्थापित करने के लिए तथा औद्योगिक इकाई का विस्तार करने के लिए सरकारी लाइसेंस लेना अनिवार्य था।
एकाधिकार तथा प्रतियोगिता विहीन उद्योगों पर रोक लगाई गई,
बैंकिंग क्षेत्र में निजी एवं विदेशी कंपनियों की 51% से अधिक भागीदारी पर रोक लगाई गई
औद्योगिक नीति 1991
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में औद्योगिक विकास के लिए जितने भी आर्थिक सुधार किए गए उनमें से सबसे बड़ा आर्थिक सुधार 1991 की नई औद्योगिक नीति थी,
1991 की नई औद्योगिक नीति मैं उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति को बढ़ावा दिया गया,
1991 की औद्योगिक नीति के प्रमुख प्रावधान-:
उदारीकरण को बढ़ावा देने के लिए
औद्योगिक लाइसेंसिंग प्रणाली की समाप्ति-: इसके तहत सरकार ने उदारीकरण की नीति अपनाते हुए अधिकांश उद्योगों के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता समाप्त कर दी, केवल 18 उद्योगों को ही लाइसेंस लेना अनिवार्य कर दिया
वर्तमान में केवल 5 मदों के उद्योगों को ही लाइसेंस लेना अनिवार्य है
एल्कोहलिक पेय पदार्थ के उद्योग
तंबाकू सिगरेट संबंधित वस्तुओं के उद्योग
बारूद औद्योगिक विस्फोट आदि के उद्योग
अंतरिक्ष में प्रयोग होने वाली इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का निर्माण करने वाले उद्योग
जोखिम रसायन वाले उद्योग
एमआरटीपी की सीमा समाप्त कर दी गई
एमआरटीपी एक्ट के तहत ऐसी कंपनियां जिनकी संपत्ति ₹100 से अधिक थी उन्हें एमआरटीपी कंपनी कहा जाता था तथा एमआरटीपी कंपनियों पर अनेकों प्रतिबंधित लगाए जाते थे, इस नीति के तहत इस सीमा को समाप्त कर दिया गया ताकि उद्योगों के विलय एवं अधिग्रहण को आसान बनाया जा सके,
निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए
उद्योगों को अनारक्षित करना
1991 की औद्योगिक नीति के तहत सरकार ने आरक्षित उद्योगों की संख्या को घटाकर सीमित कर दिया,
वर्तमान में केवल 2 उद्योग ही ऐसे हैं जो संपूर्ण या आंशिक रूप से केंद्र सरकार के लिए आरक्षित है
नाभिकीय अनुसंधान एवं परमाणु ऊर्जा से संबंधित गतिविधियों के उद्योग
रेल परिवहन
चरण बद्ध उत्पादन की अनिवार्यता की समाप्ति
1991 की औद्योगिक नीति के तहत निजी उद्योगों के लिए चरणबद्ध उत्पादन की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई जिससे निजी कंपनियां अनेक वस्तुओं एवं मॉडलों का एक साथ उत्पादन करने लगी
वैश्वीकरण को बढ़ावा देने के लिए
विदेशी निवेश को प्रोत्साहन
इस औद्योगिक नीति के तहत 51% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को स्वीकृति दी गई,
आयात और निर्यात पर परिमाणात्मक प्रतिबंध समाप्त किए गए
उदारीकरण ,निजीकरण,वैश्वीकरण
उदारीकरण
उदारीकरण वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत सरकार द्वारा आर्थिक क्षेत्रों में लगाए गए विभिन्न प्रतिबंध या नियामक नियंत्रण कम या समाप्त कर दिए जाते हैं
अर्थात आर्थिक नीतियों की कठोरता को कम करते हुए उदार बनाना उदारीकरण कहलाता है
निजीकरण
निजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत सार्वजनिक उपक्रम या उद्योगों का स्वामित्व निजी क्षेत्र को सौंप दिया जाता है।
वैश्वीकरण
वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत देश की अर्थव्यवस्था को, विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ विदेशी व्यापार के माध्यम से जोड़ दिया जाता है ।
अर्थात -: आयात-निर्यात तथा विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया जाता है।
आर्थिक सुधार के प्रभाव
सकारात्मक प्रभाव
सकल घरेलू उत्पाद की दर में वृद्धि-: 1985 से 1990के मध्य सकल घरेलू उत्पाद(gdp) में औसतन वृद्धि दर 5.5 %थी जो ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007 से 2012)में बढ़कर 8% तक पहुंच गई,
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि-: 1990-91 में भारत में विदेशी निवेश केबल 100 मिलियन डॉलर था जो 2016-17 में बढ़कर 36 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जिसे देश के रोजगार एवं उत्पादन में काफी ज्यादा वृद्धि हुई।
महंगाई दर में कमी-: 1991 मैं भारत की महंगाई दर लगभग 14% थी जो 2017 में घटकर मात्र 2.5% रह गई। क्योंकि उत्पादकों के मध्य प्रतिस्पर्धा होने से उपभोक्ताओं को वस्तुएं और सेवाएं कम कीमत पर प्राप्त हुई, हालांकि करोना के प्रभाव से पुनः महंगाई दर बढ रही।
भारत के निर्यात में वृद्धि
आर्थिक सुधारों के अंतर्गत वैश्वीकरण के प्रभाव से संपूर्ण विश्व एक बाजार के रूप में स्थापित हो रहा है जिससे भारत के वस्त्र, खाद्यान्न तथा वाहनों के कलपुर्जे आदि के निर्यात में भी काफी ज्यादा वृद्धि हुई
विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि
1991 में आरबीआई के पास केवल एक अरब डाॅलर($ )फॉरेक्स था,
जो 2020 में बढ़कर 515 अरब डॉलर हो गया है।
नकारात्मक प्रभाव
आर्थिक असमानता में वृद्धि -उदारीकरण तथा निजी करण के प्रभाव से बड़ी बड़ी व्यापारिक कंपनियां को आर्थिक छूट मिल गई परिणाम स्वरूप उनकी आय में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई जिससे आर्थिक असमानता में वृद्धि हुई जिससे अमीरों और गरीबों कीमत खाई बढ़ती गई
वर्ष 2014 की रिपोर्ट के अनुसार भारत की आय का लगभग 50% से अधिक हिस्सा भारत की केवल 10% अमीर लोगों के पास है तथा बाकी 90% लोगों के पास राष्ट्रीय आय का केवल 50% से भी कम हिस्सा है।
क्षेत्रीय विषमता में बढ़ोतरी
-वैश्वीकरण के प्रभाव से भारत के पश्चिमी तथा शहरी इलाकों का ही तेजी से आर्थिक विकास हुआ, जबकि ग्रामीण एवं बिहार सिक्किम जैसे पूर्वी राज्यों का अपेक्षाकृत कम विकास हुआ
क्योंकि क्षेत्रों से विदेशी आयात निर्यात बहुत कम होता है।
लघु उद्योगों में गिरावट 1991 के आर्थिक सुधार के प्रभाव से छोटे एवं लघु उद्योगों में गिरावट आई, क्योंकि 1.बड़े बड़े उद्योगों का एकाधिकार स्थापित हुआ जिनकी प्रतिस्पर्धा छोटे उद्योग नहीं कर पाते हैं और 2.दूसरा कारण है यह है कि आयात शुल्क में कटौती के प्रभाव से विदेशी वस्तुओं का भारत में तेजी से आयात हुआ जिससे घरेलू उद्योग की वस्तु के विक्रय में कमी आई
रोजगार विहीन अर्थव्यवस्था आर्थिक सुधारों के प्रभाव से भारत में सेवा क्षेत्र का योगदान तो काफी ज्यादा बढ़ा है किंतु प्राथमिक व द्वितीयक क्षेत्र का योगदान तुलनात्मक रूप से कम हुआ है जिससे भारत की राष्ट्रीय आय तो बड़ी है किंतु रोजगार उस गति से वृद्धि नहीं हो पाई जिस गति से होनी चाहिए अतः भारत को रोजगार विहीन अर्थव्यवस्था कहां जाता है
इसके अलावा वैश्वीकरण के प्रभाव से नवीन तकनीकी का आयात किया गया जिससे भारत के उद्योग एवं कृषि में मशीनीकरण हो गया अतः लोगों की आवश्यकता कम हुई और लोगों के रोजगार का पतन हुआ
भारत में आर्थिक सुधारों की आवश्यकता या उद्देश्य
1990 के समय विश्व में मुद्रास्पीति की स्थिति थी अतः इस मुद्रास्फीति से उबरने के लिए आर्थिक सुधारों की आवश्यकता थी।
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों की कार्यकुशलता कम होना के कारण निजीकरण उदारीकरण को बढ़ावा दिया गया।
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का अलाभकारी होना।
भारत का भुगतान संतुलन प्रतिकूल था उसे अनुकूल करने के लिए,
औद्योगिक क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे या समस्या
पर्याप्त कच्चे माल का अभाव,
उत्पादन की नवीनतम तकनीकों का अभाव
कुशल श्रमिकों का अभाव
निवेश में कमी, वित्त की समस्या
पर्याप्त अधोसंरचना की कमी
विदेशी प्रतिस्पर्धा या बड़े उद्योगों से प्रतियोगिता
उद्योगों से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या।
औद्योगिक रुग्णता की स्थिति या मन्द औद्योगिक विकास (सरकारी नीति ने दोष)
पर्याप्त कच्चे माल की उपलब्धता की समस्या-:
किसी भी उद्योग के संचालन के लिए लगातार पर्याप्त मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता होती है
किंतु निम्न कारणों से भारत में कच्चे माल की उपलब्धता है
-: भारत के कच्चे माल का विदेशों में निर्यात किया जाना।
भारत में कच्चे माल की उपलब्धता का असमान वितरण होना।
भंडारण तथा परिवहन की उपयुक्त सुविधा के अभाव करण उचित समय पर ,उचित दाम पर कच्चा माल उपलब्ध नहीं हो पाता।
कच्चे माल की उपलब्धता बढ़ाने के उपाय-:
कच्चे माल का विदेशों में निर्यात ना किया जाए बल्कि विदेशों से कच्चे माल का आयात किया जाए। एवं उत्पादित वस्तुएं ही विदेशों में भेजी जाए।
कच्चे माल की उपलब्धता वाले क्षेत्र में अधोसंरचना का विकास करके वहां पर ही उद्योगों को स्थापित किया जाए।
देश में कच्चे माल के भंडारण की सुविधा को बढ़ाया जाए, ताकि उद्योगों को सतत रूप से उचित समय पर उचित दाम पर कच्चा माल उपलब्ध हो सके।
उद्योगों में नवीनतम तकनीकों की अभाव की समस्या
कम निवेश में उत्पादन को बढ़ाने के लिए उद्योगों में नवीनतम तकनीकों का प्रयोग आवश्यक होता है क्योंकि नवीनतम तकनीकों के अभाव से लागत अधिक आ जाती है और उत्पादन कम होता है, परिणाम स्वरूप हमारी वस्तुओं की कीमत अधिक होती है और यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतियोगिता नहीं कर पाती है।
और भारत में निम्न कारणों से नवीनतम तकनीकों का अभाव है -:
भारत में औद्योगिक तकनीकी में रिसर्च एवं डेवलपमेंट तीव्र गति से नहीं हो पाना,
भारतीय प्रतिभा का विदेशों में पलायन हो जाना।
विदेशी तकनीकी काफी ज्यादा महंगी होना।
भारत मैं उद्योगिक तकनीकी के विकास के उपाय-:
औद्योगिक क्षेत्र में कम लागत से अधिक उत्पादन करने वाली तकनीकी को विकसित करने के लिए रिसर्च एंड डेवलपमेंट को बढ़ावा देना चाहिए
देश के बिजनेस प्रबंधकों एवं इंजीनियरों को उनकी योग्यता के अनुसार ज्यादा से ज्यादा वेतन देना चाहिए ताकि वे विदेशों में पलायन ना करें और देश में ही अपनी योग्यता का उपयोग करें।
अपने देश में ही औद्योगिक मशीनों का निर्माण किया जाए ना कि अन्य देशों से आयात किया जाए,
भारत सरकार के द्वारा इस दिशा में अटल इन्नोवेशन मिशन की शुरुआत की गई जो एक उल्लेखनीय कदम है।
कुशल श्रमिकों का अभाव
किसी भी उद्योग के संचालन के लिए कुशल श्रमिकों की पर्याप्त आवश्यकता होती है किंतु भारत में कुल कार्यशील जनसंख्या में से केवल 4.69 प्रतिशत जनसंख्या ही किसी एक कार्य को करने में दक्ष है।
जबकि यही आंकड़ा जापान में 80% से भी अधिक है।
भारत में अकुशल जनसंख्या के कारण
स्वास्थ सुविधाओं का अभाव
दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली
व्यवसायिक प्रशिक्षण की कमी
कुशल श्रमिकों की उपलब्धता
स्वास्थ सुविधाओं में बढ़ोतरी की जाए उन्हें भरपूर पोषण दिया जाए ताकि वे स्वस्थ रहें
सभी को व्यवसायिक शिक्षा प्रदान की जाए
लोगों को व्यवसायिक प्रशिक्षण दिया जाए
इस दिशा में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना , औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना ,महत्वपूर्ण कदम है
निवेश की कमी
निवेश का तात्पर्य व्यय की गई उस धनराशि से है जिसके द्वारा उत्पादन या उत्पादन क्षमता बढ़ती है।
और निवेश किसी भी उद्योग को स्थापित करने तथा उसका विस्तार करने की प्रथम शर्त होती है,
किंतु भारत में निवेश कम होने से औद्योगिक विकास भी कम होता है
भारत में निवेश कम होने के कारण
भारत के प्रति व्यक्ति आय तुलनात्मक रूप से कम है जिससे बचत भी कम होती है और बचत कम होने से निवेश भी कम होता है
भारत की लगभग 29% आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है,
भारत में पर्याप्त वित्तीय सुविधाओं(बैंकिंग वित्तीय जागरूकता) के अभाव से सभी लोग अपनी संपूर्ण बचत का उपयोग निवेश में नहीं कर पाते जिससे निवेश कम होता है
प्रदर्शन प्रभाव के कारण लोग अपनी बचत का उपयोग निवेश के रूप में ना करके अनावश्यक विलासिता की वस्तु खरीदने के लिए करते हैं जिससे निवेश कम हो पाता है
निवेश को बढ़ाने के उपाय
देश में पर्याप्त वित्तीय सुविधाओं का विकास किया जाए तथा लोगों में निवेश संबंधी जागरूकता फैलाई जाए ताकि सभी लोग अपनी अधिकांश बचत का उपयोग निवेश के रूप में करें,
स्पेशल इकोनामिक जोन की संख्या बढ़ाकर विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया जाए
इस दिशा में फेरा अधिनियम को फेमा अधिनियम में बदला जाना एफडीआई की 100%अनुमति , तथा मुद्रा की पूर्ण परिवर्तनीयता की स्वीकृति देना इस दिशा में उल्लेखनीय कदम है।
अधोसंरचना में कमी-:
कोई भी उद्योग तभी सफल होता है जब उसके आस पास पर्याप्त औद्योगिक अधोसंरचना विकसित हो,
औद्योगिक अधोसंरचना का तात्पर्य ऐसी अब संरचनाओं के विकास से हैं जो औद्योगिक गतिविधियों के विकास में सहायक हो, जैसे -:औद्योगिक क्षेत्र में सड़क रेल वायु परिवहन का विकास,
बिजली ,पानी की पर्याप्त सुविधा।
पर्याप्त अधोसंरचना का विकास ही विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करता है।
इसके लिए भारत सरकार द्वारा निर्णय प्रयास किए गए
सरकार द्वारा औद्योगिक अधोसंरचना युक्त क्षेत्र बनाए गए-:
भारत के अनेक स्थानों में औद्योगिक केंद्रों की स्थापना की गई,
जैसे-: पीथमपुर औद्योगिक केंद्र ,धार
मंडीदीप औद्योगिक केंद्र, रायसेन
मेघनगर औद्योगिक केंद्र, झाबुआ।
विशेष इकोनामिक जोन अधिनियम 2005 के तहत अनेकों sez बनाए गए,
इन क्षेत्रों में उत्पादकों को विशेष आर्थिक छूट दी जाती है तथा पर्याप्त औद्योगिक अधोसंरचना उपलब्ध करवाई जाती
औद्योगिक गलियारों का विकास किया गया
जैसे-: दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा।
बंगलुरु मुंबई आर्थिक गलियारा।
विदेशी उत्पादों की प्रतिस्पर्धा
-: विदेशी उत्पादों की प्रतिस्पर्धा भारतीय उद्योगों के लिए एक सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि विदेशों में (विशेषकर विकसित देशों में )उन्नत तकनीकी यंत्रों के माध्यम से वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है जो अपेक्षाकृत सस्ती होती है, जबकि भारत में परंपरागत तकनीक की से वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है जो उपेक्षाकृत महंगी होती हैं अतः भारतीय उद्योग विदेशी उत्पादों की प्रतियोगिता नहीं कर पाते और इनका धीरे-धीरे पतन होने लगता है।
समाधान
- भारत मैं भी आधुनिक तकनीकी यंत्रों के माध्यम से वस्तुओं का उत्पादन किया जाए ताकि उनकी कीमत कम रहे और ये विदेशी उत्पादों की प्रतियोगिता कर पाए।
- विदेशी वस्तुओं के आयात पर उच्च आयात शुल्क लगाया जाए,
- इस दिशा में सरकार द्वारा एंटीडंपिंग शुल्क लगाया जाता है जो विदेशी वस्तुओं के आयात को कम करने में काफी सहायक है,
उद्योगों से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या
वर्तमान समय में औद्योगिक विकास की प्रमुख समस्या यह है कि उद्योगों के विकास से पर्यावरण प्रदूषित होता जा रहा है,
औद्योगिक प्रदूषण को कम करने के लिए उद्योगों में प्रदूषण फिल्टर यंत्र लगाए जाने चाहिए उद्योगों से निकलने वाले गंदे पानी को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट द्वारा साफ करके ही नदियों में छोड़ा जाना चाहिए।
अतः उद्योग से व्यापक मात्रा में होने वाले प्रदूषण पर नियंत्रण लगाने के लिए 2010 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल अधिनियम बनाया गया जिसके तहत नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की स्थापना की गई जो उद्योगों से संबंधित प्रदूषण के मामले को निपटाता जाता है।
औद्योगिक रुग्णता-:
औद्योगिक रुग्णता का तात्पर्य किसी औद्योगिक इकाई की उस स्थिति से है जिसने वह अपनी क्षमता के अनुसार पूर्ण उत्पादन नहीं कर पाती है और लगातार हानि की स्थिति में रहने से धीरे-धीरे बंद होने की कगार पर आ जाती है।
कंपनी अधिनियम 2002 की धारा 3(46 AA) के अनुसार औद्योगिक रूग्ण इकाई वह है-:
जिसकी किसी वित्तीय वर्ष की संचित हानि , पिछले 4 वित्तीय वर्ष के औसत निवल संपत्ति मूल्य (networth)के 50% के बराबर या अधिक हो,
औद्योगिक रुग्णता के कारण
- कच्चे माल की अनुपलब्धता,
- अधोसंरचना की कमी,
- कार्यशील पूंजी की कमी
- उत्पादित माल की मांग में कमी,
- वितरण की समस्या,
- दोषपूर्ण सरकारी नीति,
औद्योगिक रुग्णता के परिणाम
औद्योगिक रुग्णता से उद्योगों का उत्पादन कम होने लगता है या उद्योग समाप्त होने लगते हैं जिससे-:
रोजगार में तेजी से कमी आती है
राष्ट्रीय आय में कमी आती है
उत्पादों की पूर्ति में कमी आती है
औद्योगिक रुग्णता से बचने के उपाय
- औद्योगिक क्षेत्र में कुशल प्रबंधन को बढ़ावा देना चाहिए
- औद्योगिक क्षेत्र की अधोसंरचना का विकास किया जाना चाहिए
- भंडारण एवं परिवहन की सुविधा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि उत्पादित मालिक को भंडारित किया जा सके और आवश्यकतानुसार पूर्ति की जा सके.
औद्योगिक रुग्णता की समस्या से बाहर निकलने के लिए वर्ष 1987 में औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (BIFR)की स्थापना की गई। जो इस दिशा में उल्लेखनीय कदम है।
MSME(लघु सूक्ष्म एवं मध्यम उद्योग)-: ;
माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज का तात्पर्य ऐसे उद्योगों से है जिन का टर्नओवर 100 करोड़ से कम होता है।
जैसे पापड़ उद्योग, हथकरघा उद्योग ,अगरबत्ती उद्योग
एमएसएमई के उद्योगों को भी तीन भागों में बांटा गया-:
सूक्ष्म उद्योग
ऐसे उद्योग जिनमें 1 करोड़ रुपए से कम का निवेश किया जाता है
तथा जिनका टर्नओवर 5 करोड से कम होता है.
लघु उद्योग
ऐसे उद्योग जिनमें 10 करोड से कम का निवेश किया जाता है
तथा जिन का टर्नओवर 50 करोड़ से कम होता है
मध्यम उद्योग
ऐसे उद्योग जिनमें 20 करोड़ से कम का निवेश किया जाता है
तथा जिन का टर्नओवर 100 करोड़ से कम होता है
वर्तमान में एमएसएमई के लगभग 99.5% उद्योग, सूक्ष्म उद्योग की श्रेणी के है
सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों का महत्व
एमएसएमई उद्योग कम लागत पर अधिक अधिक रोजगार उपलब्ध कराते है
भारत में 45% रोजगार एमएसएमई के द्वारा ही प्राप्त होता है
एमएसएमई उद्योग बड़े उद्योगों के पूरक होते हैं उनके द्वारा तैयार किए गए माल का उपयोग बड़े उद्योगों में किया जाता है।
सकल घरेलू उत्पाद में एमएसएमई का योगदान 8% से अधिक है
विनिर्माण क्षेत्र के कुल उत्पादन में लगभग 40% उत्पादन एमएसएमई के द्वारा ही होता है
एमएसएमई उद्योग का भारत के कुल निर्यात में 45% योगदान है
एमएसएमई की समस्याएं-:
इसका उत्तर मध्य प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र के चैप्टर में है।
सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल-:
भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI)
-: इसका उद्देश्य एमएसएमई क्षेत्र में वित्त पोषण की व्यवस्था करना तथा लघु उद्योगों के विकास की विभिन्न संस्थाओं के मध्य समन्वय बैठाकर लघु उद्योग के विकास को बढ़ावा देना है।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
इस योजना की शुरुआत वर्ष 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों को सस्ती दरों पर आसानी से ऋण उपलब्ध कराना है
ताकि स्वरोजगार को एवं उद्यमशीलता को बढ़ावा मिल सके।
स्किल इंडिया योजना
इसके तहत लघु उद्योगों के विकास के लिए उद्यमियों को प्रशिक्षण दिया जाता है
स्टार्टअप इंडिया
स्टैंड अप इंडिया
उद्योगों का स्थानीयकरण
किसी विशेष प्रकार के उद्योगों का एक ही स्थान में केंद्रित होना और दोनों का स्थानांतरण कहलाता है
जैसे -: मध्य प्रदेश के उज्जैन क्षेत्र में सोयाबीन की फैक्ट्रियों का केंद्रित होना।
उद्योगों की स्थानीयकरण के कारण
वहां पर कच्चे माल की उपलब्धता होना।
वहां पर बाजार की उपलब्धता होना
उस क्षेत्र का परिवहन से सीधा जुड़ाव होना।
वहां पर विद्युत जल आदि अवसंरचना विकसित होना।
भारत में सार्वजनिक उपक्रम
ऐसी औद्योगिक इकाइयां जिनका स्वामित्व व नियंत्रण सरकार के अधीन हो उन्हें सार्वजनिक उपक्रम कहा जाता है।
अर्थात ऐसी औद्योगिक इकाइयां जिसमें सरकार की 51% से अधिक हिस्सेदारी हो
सार्वजनिक उपक्रमों का मुख्य उद्देश अधिकाधिक जनकल्याण करना होता है।
सार्वजनिक उपक्रम का महत्व या आवश्यकता
निजी कंपनियों के एकाधिकार को सीमित या समाप्त करना,
विभिन्न क्षेत्रों का संतुलित औद्योगिक विकास सुनिश्चित करना।
(क्योंकि निजी कंपनियां महेश स्थापित होती हैं जहां पर औद्योगिक दशाएं विद्यमान हो पिछड़े क्षेत्र में नहीं,)
देश की सुरक्षा हेतु सुरक्षा से संबंधित उद्योगों पर सरकार को स्वामित्व आवश्यक है।
जैसे परमाणु ऊर्जा से संबंधित उद्योग
विभिन्न मूलभूत आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर सरकारी नियंत्रण रखने हेतु,
जैसे बिजली की कीमत, पेट्रोल की उचित कीमतों का निर्धारण करने हेतु ।
सार्वजनिक उपक्रमों के प्रकार
विभागीय संगठन
ऐसे संगठन जिनका संचालन किसी एक सरकारी विभाग द्वारा किया जाता है। उन्हें विभागीय संगठन कहते हैं
जैसे-:
रेल परिवहन, डाक सेवा,
सांविधिक निगम
ऐसे व्यवसायिक संस्थान जिन की स्थापना किसी अधिनियम द्वारा की जाती है
उन्हें सांविधिक निगम कहते हैं
जैसे-: भारतीय जीवन बीमा निगम,
राज्य व्यापार निगम,
सरकारी कंपनियां
वे कंपनियां जिनमें सरकार की भागीदारी 51% से अधिक होती है उन्हें सरकारी कंपनियां कहते हैं।
जैसे -: ओएनजीसी, sail, BHEL, Hindustan petroleum.
सरकारी कंपनियों के प्रकार
भारत सरकार के भारी उद्योग मंत्रालय द्वारा सरकारी कंपनियों को तीन भागों में बांटा गया है-:
मिनीरत्न कंपनी
- मिनीरत्न योजना 1997 के तहत-: ऐसी सरकारी कंपनियां जिसने लगातार तीन वर्षों तक सालाना 30 करोड़ से अधिक लाभ कमाया हो, उन्हें मिनी रत्न कंपनियों की साड़ी में रखा जाता है।
- तथा ए कंपनियां सरकार की अनुमति के बिना 500 करोड़ रुपए तक का निवेश कर सकती हैं।
- वर्तमान में 74 मिनी रत्न में कंपनियां हैं
नवरत्न कंपनी
- नवरत्न योजना 1997 के तहत-: ऐसी सरकारी कंपनियां जो पहले से मिनीरत्न कंपनियों में रजिस्टर्ड है, निर्धारित मापदंडों में 100 में से 60 अंक प्राप्त करते हैं उन्हें नवरत्न कंपनियों की साड़ी में शामिल कर लिया जाता है।
- नवरत्न कंपनियां सरकार की अनुमति के बिना 1000 करोड़ रुपए तक का निवेश कर सकती हैं।
- वर्तमान में 14 नवरत्न कंपनियां हैं
- जैसे-:। भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड(BEL),
Oil India limited.(oil)
Engineering India limited (eil).
महारत्न कंपनी
भारत में महारत्न योजना 2009 के अनुसार-: ऐसी सरकारी कंपनियां जो निम्न 6 मापदंडों को पूरा करती हों, उन्हें महारत्न कंपनियों की श्रेणी में शामिल किया जाता है-:
पहले से नवरत्न कंपनी का दर्जा प्राप्त हो।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के तहत सूचीबद्ध हो।
अंतर्राष्ट्रीय महत्व की कंपनी हो
कंपनी का पिछले 3 वर्षों का औसत वार्षिक टर्न ओवर 25000 करोड़ से अधिक हो
कंपनी का पिछले 3 वर्षों का औसत वार्षिक networth 15000 करोड़ से अधिक हो,
कंपनी का पिछले 3 वर्षों का औसत नेट प्रॉफिट 5000 करोड़ से अधिक हो।
महारत्न कंपनी सरकार की अनुमति के बिना 5000 करोड़ तक का निवेश कर सकती हैं।
वर्तमान में महारत्न कंपनियों की संख्या 10 है
जैसे भारत हेवी इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड(BHEL)
भारतीय इस्पात प्राधिकरण(SAIL)
Gail इंडिया लिमिटेड(Gail)
हिंदुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड(HPCL).
कंपनी अधिनियम 2013
वर्तमान में सभी कंपनियों का नियंत्रण एवं प्रबंधन कंपनी अधिनियम 2013 के तहत ही किया जाता है
इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान-:
कोई एक व्यक्ति अकेले ही अपनी कंपनी खोल सकता है
कंपनियों को अपना डाटा एवं सूचनाएं इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखना होगा
कंपनी को स्पष्ट बताना होगा कि कंपनी का प्रबंधक और प्रमोटर कौन है
एक निर्देशक एक साथ अधिकतम 20 प्राइवेट कंपनियों का निर्देशक हो सकता है
एक निर्देशक एक साथ अधिकतम 10 सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का निर्देशक हो सकता है।
शेल कंपनियां
शेल कंपनियों का तात्पर्य ऐसी कंपनियों से है जो केवल कागजों में ही मौजूद होती है।
इन कंपनियों का ना तो ऑफिस होता है ना ही कर्मचारी अतः
इन कंपनियों में निवेश तो किया जाता है किंतु उत्पादन ना के बराबर ही होता है
इन कंपनियों का उद्देश्य काले धन को सफेद धन में बदलना होता है।