भारत में बैंकिंग प्रणाली, एवं वित्तीय समावेशन

भारत में बैंकिंग प्रणाली

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.भारत में बैंकिंग प्रणाली, एवं वित्तीय समावेशन

बैंक-:

बैंक में वह वित्तीय संस्था है जो जनता की धन राशि को जमा करने तथा जनता को ऋण देने का कार्य करती है।

और आधुनिक आर्थिक नियोजन के युग में कृषि, उद्योग और व्यापार के विकास के लिए बैंकिंग व्यवस्था एक अनिवार्य आवश्यकता मानी जाती है।

भारत में बैंकों का विकास-: 

भारत में आधुनिक के बैंकिंग प्रणाली की शुरुआत ब्रिटिश शासन द्वारा की गई।

क्योंकि ब्रिटिश शासन का मुख्य उद्देश्य भारत में अधिकाधिक लाभ कमाना था। और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बैंकिंग प्रणाली का विकास आवश्यक था, ताकि ब्रिटिश व्यापारी अपनी धनराशि को जमा कर सकें एवं बैंकों से ऋण प्राप्त कर सकें, अतः इसीलिए ब्रिटिश शासन ने भारत में व्यापारिक बैंकों का विकास किया।

  • ब्रिटिश शासन द्वारा भारत में सर्वप्रथम 1786 में बैंक ऑफ कलकत्ता की स्थापना की गई।
  • इसके बाद 1806 में कोलकाता प्रेसिडेंसी बैंक , 1840 में मुंबई  प्रेसिडेंसी बैंक एवं 1843 में मद्रास प्रेसिडेंसी बैंक की स्थापना की गई।
  • यह तीनों प्रेसिडेंसी बैंक धनराशि जमा करने ऋण प्रदान करने के साथ-साथ मुद्रा का निर्गमन एवं प्रबंधन का कार्य भी करती थी।
  • 1921 में इन तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों को मिलाकर इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गई।
  • इसके बाद 1955 में इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का राष्ट्रीयकरण करके, इसे भारतीय स्टेट बैंक का नाम दिया गया।
  • जो वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र का सबसे बड़ा व्यापारिक बैंक है।
  • भारतीय स्वामित्व वाली पहली बैंक इलाहाबाद बैंक थी। जिसकी स्थापना 1865 में की गई।
  • जबकि भारत की पूर्णता भारतीय बैंक पंजाब नेशनल बैंक थी जिसकी स्थापना 1895 में की गई।

संपूर्ण भारत की मुद्रा एवं वित्त व्यवस्था में नियंत्रण एवं सुधार के लिए, हिल्टन यंग आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1 अप्रैलवर्ष 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक का गठन हुआ, जो भारत का केंद्रीय बैंक था , किंतु 1949 के पहले यह पूर्णता सरकारी बैंक नहीं था  अतः स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत वर्ष 1949 में भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण करके इसे सरकारी बैंक बनाया गया।

स्वतंत्रता के पश्चात बैंकों का राष्ट्रीयकरण

स्वतंत्रता के पूर्व भारत की बैंकिंग प्रणाली की सेवाएं केवल शहरी क्षेत्रों एवं बड़े व्यापारियों तक ही सीमित थी, तथा ग्रामीण एवं कृषि क्षेत्र की वित्तीय जरूरतों को पूरा नहीं करती थी।

किंतु स्वतंत्रता के उपरांत जब भारत एक समाजवादी एवं कल्याणकारी राज्य बना, तो भारत सरकार द्वारा वित्तीय समावेशन के उद्देश्य से भारत के बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।

  • ताकि बैंकिंग सेवाएं ग्रामीण एवं पिछले लोगों को भी प्राप्त हो सके,
  • सर्वप्रथम 1949 को भारत के केंद्रीय बैंक के रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का राष्ट्रीयकरण किया गया।
  • 1955 में इंपीरियल बैंक का राष्ट्रीयकरण करके उसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का नाम दिया गया।
  • 1969 में 50 करोड से अधिक संपत्ति वाले 14 व्यापारिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।
  • 1980 में 200 करोड़ से अधिक संपत्ति वाले 6 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।

उदारीकरण के बाद बैंकिंग प्रणाली

वर्ष 1991 में देश की बैंकिंग प्रणाली में सुधार लाने के लिए एम नरसिंहम की अध्यक्षता में एक समिति बनी जिसे एम नरसिंहम समिति कहते हैं

इस समिति की सिफारिशों के आधार पर निम्न बैंकिंग सुधार किए गए-: 

  • बैंकों के राष्ट्रीयकरण पर रोक लगी, क्योंकि राष्ट्रीयकृत बैंक घाटे में जा रहे थे,

  • विदेशी बैंकों को भारत में अपनी शाखा खोलने की अनुमति दी गई।

  • बैंकों की कार्यप्रणाली को आसान बनाया गया जैसे कम से कम दस्तावेज पर ऋण दिया जाना, घर-घर जाकर खाता खोलना।

  • राष्ट्रीय कृत व्यापारिक बैंकों के अलावा निजी बैंकों को भी आरबीआई से लाइसेंस प्राप्त होने लगा।

  • वित्तीय संस्थाओं के निरीक्षण का काम रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को सौंप दिया गया।

बैंकों का विलय

बैंकों की साख निर्माण(ऋण देने की क्षमता) क्षमता को बढ़ाने के लिए विभिन्न बैंकों का विलय किया जाता है,

जैसे वर्ष 1993 में भारत सरकार ने न्यू बैंक ऑफ इंडिया का पंजाब नेशनल बैंक में विलय कर दिया था।

तथा हाल ही में ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स एवं यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया पंजाब नेशनल बैंक में विलय करने की घोषणा की गई है।

इलाहाबाद बैंक का इंडियन बैंक में विलय।

भारतीय रिजर्व बैंक

संपूर्ण भारत की मुद्रा एवं वित्त व्यवस्था में नियंत्रण एवं सुधार के लिए, हिल्टन यंग आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1 अप्रैल वर्ष 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक का गठन हुआ, जो भारत का केंद्रीय बैंक था , किंतु 1949 के पहले यह पूर्णता सरकारी बैंक नहीं था  अतः स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत वर्ष 1949 में भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण करके इसे सरकारी बैंक बनाया गया।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भारत की सर्वोच्च मौद्रिक संस्था है जो भारत में मुद्रा एवं वित्त(साख) को नियंत्रित करती है।

भारतीय रिजर्व बैंक का लेखा वर्ष 1 जुलाई से 30 जून तक होता है

भारतीय रिजर्व बैंक के कार्य

मुद्रा के निर्गमन का कार्य-:

भारतीय रिजर्व बैंक ₹2 से लेकर 2000 तक के सभी नोटों को छापने का कार्य करता है और इस कार्य के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास एकअधिकार प्राप्त है।

न्यूनतम आरक्षित पद्धति(MRS)-: 

नोट छापने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को न्यूनतम 200 करोड़ रुपए का विदेशी मुद्रा भंडार संचित रखना पड़ता है जिसमें से कम से कम 115 करोड रुपए सोने के रूप में एवं शेष विदेशी मुद्रा के रूप में होना चाहिए।

बैंकों के बैंक के रूप में कार्य-:

भारतीय रिजर्व बैंक भारत का सर्वोच्च केंद्रीय बैंक है जो देश के समस्त बैंकिंग व्यवस्था पर नियंत्रण रखता है अतः इसे बैंकों का बैंक कहते हैं

आरबीआई निम्न रूपों में देश के समस्त व्यापारिक बैंक ,सहकारी बैंक तथा विकास बैंक पर अपना नियंत्रण रखता है

  • नई बैंक की स्थापना हेतु लाइसेंस प्रदान करता है

  • बैंकों के लिए नियम एवं कानून बनाता है

  • बैंकों का समय-समय पर निरीक्षण करता है

  • बैंकों के एक निश्चित कोष को सीआरआर के रूप में अपने पास रखता है

  • बैंकों को अंतिम रूप से ऋण प्रदान करता है।

सरकार के बैंकर के रूप में कार्य-: 

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के बैंकर के रूप में काम करती है

जैसे 

  • सरकार को आवश्यकता के अनुसार सार्वजनिक ऋण प्रदान करता है।

  • सरकार को वित्तीय एवं मौद्रिक नीति से संबंधित परामर्श देता है।

  • राज्य की एक निश्चित राशि भारतीय रिजर्व बैंक के पास जमा रहती है

विनिमय दर को स्थिर बनाए रखने का कार्य-:

भारतीय रिजर्व बैंक विनिमय दर को स्थिर बनाए रखने के लिए अपने पास विदेशी मुद्रा भंडार सुरक्षित रखता है, तथा कुछ मात्रा में विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय करके विनिमय दर को स्थिर बनाए रखता है

आरबीआई अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार से विदेशी मुद्रा को बेंच कर रुपए के मूल्य को बढ़ा देता है तथा जब वह विदेशी मुद्रा को खरीदता है तो रुपए का अवमूल्यन हो जाता है।

वर्तमान में भारतीय रिजर्व बैंक के पास 515 अरब डॉलर है।

मोद्रिक नीति द्वारा साख नियंत्रण का कार्य-: 

अन्य कार्य -: 

  • राष्ट्रीय आर्थिक आंकड़ों का प्रकाशन करना

  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के आर्थिक प्रतिनिधि के रूप में प्रतिनिधित्व करना।

रुपए का अवमूल्यन एवं अधिमूल्यन 

रुपए की मूल्य में गिरावट आना रुपए का अवमूल्यन कहलाता है तथा रुपए के मूल्य में बढ़ोतरी होना रुपए का अधिमूल्यन कहलाता है

और जब हम (भारत) विदेशों से विदेशी वस्तुओं (कच्चे तेल ,सोना)का आयात करते हैं तो उसके बदली हमें अपनी मुद्रा (रूपए) देनी पड़ती है जिससे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में हमारे रुपए की मात्रा या पूर्ति बढ़ती है (रुपए की मांग कम होती है) परिणाम स्वरूप रुपए के मूल्य में गिरावट आती है,

इसके विपरीत निर्यात के दौरान अन्य देश अपने पास आरक्षित रुपए हमें देता है जिससे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में रुपए की मात्रा में कमी आती है (रुपए की मांग बढ़ती है)जिससे हमारे रुपए में अधिमूल्यन होता है

 मौद्रिक नीति

मौद्रिक नीति वह नीति होती है जिसके माध्यम से देश का केंद्रीय बैंक (जैसे भारत का रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) देश की अर्थव्यवस्था के अंदर मुद्रा की पूर्ति को नियंत्रित करके मुद्रास्फीति को तथा बाजार में साख की मात्रा को नियंत्रित करता है। 

भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति के तहत निम्न उपकरणों को अपनाता है

रेपो रेट (Repo rate)-:

भारतीय रिजर्व बैंक जिस ब्याज दर पर व्यापारिक बैंकों को अल्पकालीन ऋण प्रदान करता है उस ब्याज दर को रेपो रेट कहते हैं।

वर्तमान में रेपो रेट 6.5% है।

रेपो रेट का प्रभाव

रेपो रेट घटने पर , बाजार साख का विस्तार होता है, जिससे मुद्रा की मात्रा (तलरता)बढ़ती है।

क्योंकि लोगों को कम ब्याज दर पर ऋण प्राप्त होता है इसलिए अधिक से अधिक लोग अधिक मात्रा में ऋण लेते हैं।

परिणाम स्वरूप- 

  • निवेश में वृद्धि होती है और निवेश में वृद्धि होने से उत्पादन में वृद्धि होती है रोजगार में वृद्धि होती है।

  • मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।

रिवर्स रेपो दर (reverse repo rate)-: 

भारतीय रिजर्व बैंक अपने पास व्यापारिक बैंकों की अतिरिक्त जमा राशि पर जिस दर से उन्हें ब्याज देता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

वर्तमान में रिवर्स रेपो रेट 3.35% है।

रिवर्स रेपो रेट का प्रभाव

रिवर्स रेपो रेट के घटने पर, बाजार में साख का विस्तार होता है, जिससे बाजार में मुद्रा की मात्रा बढ़ती है,

क्योंकि रिवर्स रेपो रेट घटने पर, व्यापारिक बैंक आरबीआई के पास अपनी अतिरिक्त धनराशि जमा नहीं करते, बल्कि अतिरिक्त धनराशि से अधिक अधिक लोगों को ऋण देते हैं।

परिणाम स्वरूप- 

  • निवेश में वृद्धि होती है और निवेश में वृद्धि होने से उत्पादन में वृद्धि होती है रोजगार में वृद्धि होती है।

  • मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।

नकद आरक्षित अनुपात (cash reserve ratio)-: 

प्रत्येक अनुसूचित व्यापारिक बैंक को अपनी कुल  जमा धनराशि का एक निश्चित हिस्सा नगद के रूप में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास रखना पड़ता है जिसे सीआरआर कहते हैं।

वर्तमान में नकद आरक्षित अनुपात की दर 4.5% है

नकद आरक्षित अनुपात का प्रभाव

नकद आरक्षित अनुपात घटने पर, बाजार में साख का विस्तार होता है, जिससे बाजार में मुद्रा की मात्रा बढ़ती है,

क्योंकि व्यापारिक बैंकों को रिजर्व बैंक के पास अपनी जमा धनराशि का कम हिस्सा ही रखना पड़ता है।

परिणाम स्वरूप- 

  • निवेश में वृद्धि होती है और निवेश में वृद्धि होने से उत्पादन में वृद्धि होती है रोजगार में वृद्धि होती है।

  • मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।

वैधानिक तरलता अनुपात(SLR)-: 

प्रत्येक अनुसूचित व्यापारिक बैंक को अपनी कुल जमा धनराशि का एक निश्चित अंश सरकारी प्रतिभूति, विदेशी मुद्रा आदि खरीदने के लिए रखना अनिवार्य होता है जिसका निर्धारण रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा किया जाता है, इसे SLR कहते हैं।

वर्तमान में एसएलआर rate 18% है

SLR का प्रभाव

SLR घटने पर, बाजार में साख का विस्तार होता है, जिससे बाजार में मुद्रा की मात्रा बढ़ती है,

परिणाम स्वरूप- 

  • निवेश में वृद्धि होती है और निवेश में वृद्धि होने से उत्पादन में वृद्धि होती है रोजगार में वृद्धि होती है।

  • मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।

सीआरआर में ब्याज नहीं मिलता जबकि एसएलआर में ब्याज मिलता है

बैंक दर(bank rate)-: 

भारतीय रिजर्व बैंक जिस ब्याज दर पर व्यापारिक बैंकों को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करता है उस ब्याज दर को रेपो रेट कहते हैं।

वर्तमान में रेपो रेट 4.25% है।

बैंक दर का प्रभाव

बैंक दर घटने पर , बाजार साख का विस्तार होता है, जिससे मुद्रा की मात्रा (तलरता)बढ़ती है।

क्योंकि लोगों को कम ब्याज दर पर ऋण प्राप्त होता है इसलिए अधिक से अधिक लोग अधिक मात्रा में ऋण लेते हैं।

परिणाम स्वरूप- 

  • निवेश में वृद्धि होती है और निवेश में वृद्धि होने से उत्पादन में वृद्धि होती है रोजगार में वृद्धि होती है।

  • मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।

खुले बाजार की क्रियाएं(open market operations)-:

भारतीय रिजर्व बैंक सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करके भी बाजार में साख की मात्रा या मुद्रा की मात्रा को नियंत्रित करता है

जब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया सरकारी प्रतिभूतियों को खरीदता है करता है तो बाजार में मुद्रा की मात्रा बढ़ती है अर्थात साख का विस्तार होता है।

इसके विपरीत……

व्यापारिक बैंक एवं उनके कार्य

व्यापारिक बैंक का अर्थ

ऐसी औपचारिक वित्तीय संस्थाएं, जो अपने व्यापारिक लाभ के उद्देश्य लोगों की अतिरिक्त धनराशि को जमा करती हैं तथा उन्हें ऋण प्रदान करके ब्याज के रूप में लाभ कमाती है ,उन्हें व्यापारिक बैंक कहते हैं

व्यापारिक बैंक के कार्य-: 

  • लोगों की धनराशि जमा करना

व्यापारिक बैंकों का सबसे पहला कार्य लोगों की अर्थात अपने ग्राहकों की अतिरिक्त धनराशि को जमा के रूप में स्वीकार करना होता है,

और व्यापारिक बैंक जमा धनराशि पर ग्राहकों को ब्याज भी देते हैं

व्यक्ति (बैंकों के ग्राहक) अपनी आवश्यकता के अनुसार अपनी धनराशि को जमा करने के लिए मुख्यतः निम्न खातों का प्रयोग करते हैं

चालू खाता-: वे लोग जिन्हें बार-बार अपनी जमा धनराशि को निकालना एवं डालना होता है बे चालू खाता खुलवाते हैं,

जैसे पूंजीपति उद्योगपति व्यापारी।

इस खाते में जमा धनराशि पर बहुत ही कम ब्याज मिलता है। लगभग=0.5%

 बचत खाता-: यह खाता उन लोगों के लिए होता है जो अपनी छोटी-छोटी धनराशि को हफ्ते में एक या दो बार जमा करते हैं या निकालते हैं।

स्थाई जमा खाता(fixed deposit account)-: वे लोग जो दीर्घकाल के लिए अपनी धनराशि जमा करके अधिक से अधिक ब्याज पाना चाहते हैं वे इस खाते में अपनी धनराशि को जमा करते हैं

इसमें ऊंची दर पर ब्याज मिलता है

आवर्ती जमा खाता(recurring deposit account)

वे लोग जो किस्तों के रूप में अपनी धनराशि को जमा करके बाद में ब्याज सहित बड़ी धनराशि चाहते हैं वे इस खाते को खुलवाते हैं

  • लोगों को ऋण प्रदान करना

व्यापारिक बैंक का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य अपने ग्राहकों को ऋण प्रदान करना है

  • साख का निर्माण करना

व्यापारिक बैंक अपने पास जमा धनराशि से अन्य ग्राहकों को ऋण प्रदान करके साख का निर्माण करते हैं और ऋण से प्राप्त होने वाला ब्याज ही बैंकों की आय का मुख्य स्रोत है।

  •  लॉकर की सुविधा देने का कार्य

अपने ग्राहकों के कीमती आभूषण बहुमूल्य पत्र आदि सुरक्षित रखने की सुविधा देने का कार्य भी करते हैं।

  •  धन का हस्तांतरण

व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को एक खाते से दूसरे खाते में धन का स्थानांतरण करने की सुविधा देने का कार्य भी करते हैं।

  •  अन्य कार्य

सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना।

पैसा निकलवाने के लिए एटीएम की सुविधा देना।

वित्तीय समावेशन

समावेशन-:

समावेशन का सामान्य अर्थ है सभी वर्ग के, सभी क्षेत्र के सभी लोगों की समान भागीदारी।

समावेशी विकास-:

और समावेशी विकास का तात्पर्य विकास की उस अवधारणा से है जिसमें सभी लोगों की समान भागीदारी हो ।

वित्तीय समावेशन-:

समाज के सभी वर्ग के लोगों तक वित्तीय एवं बैंकिंग सुविधाओं का लाभ पहुंचाना, वित्तीय समावेशन कहलाता है।

जैसे-: देश के सभी लोगों का खाता खोलकर उन्हें आवश्यकतानुसार 

ऋण प्रदान करना ,

ऑनलाइन भुगतान की सुविधा देना, म्यूचल फंड की सुविधा देना,

सभी लोगों को बीमा की सुविधा देना,

सभी लोगों तक सरकारी योजनाओं का आर्थिक लाभ पहुंचाना।

वित्तीय समावेशन के लाभ या महत्व

  • सभी व्यक्तियों को आसानी से कम ब्याज दर पर औपचारिक ऋण प्राप्त हो जाता है परिणामस्वरूप साहूकारों के चंगुल में फंसने से बचे रहते हैं।

क्योंकि वित्तीय समावेशन के अभाव में मजबूरी बस अनौपचारिक ऋण लेने के लिए बाध्य होते हैं।

  • वित्तीय समावेशन से सभी व्यक्तियों को विभिन्न आर्थिक योजनाओं की जानकारी प्राप्त हो जाती है अतः वे अपनी पात्रता के अनुसार सभी योजनाओं का लाभ ले पाते हैं,

साथ ही सरकार पात्र हितग्राहियों को सीधे धन राशि हस्तांतरित कर सकती है परिणाम स्वरूप मध्यस्थों की लूट पर रोक लगेगी।

  • बैंकिंग एवं वित्तीय सुविधाओं की सुलभ पहुंच से (वित्तीय समावेशन से) सभी व्यक्ति अपनी छोटी-छोटी बचतों को बैंक में जमा करते हैं जिससे उन्हें ब्याज के रूप में लाभ तो होता ही है साथ ही बैंक अन्य उद्यमियों को ऋण देते हैं जिससे निवेश को बढ़ावा मिलता है जिससे अर्थव्यवस्था का भी तेजी से विकास होता है.

  • वित्तीय समावेशन से समग्र व्यक्तियों की आय-व्यय का लेखा-जोखा बैंकों के पास रहता है और यह रिकॉर्ड राष्ट्रीयआय के लेखांकन में तथा उनकी वास्तविक आय का पता लगाने में,सहायक होता है।

  • वित्तीय समावेशन ग्रामीण अर्थव्यवस्था  को शहरी अर्थव्यवस्था से जोड़ने में सहायक है।

वर्तमान में भारत के लगभग 19 करोड़ लोगों का बैंक में खाता भी नहीं खुला है।

वित्तीय समावेशन के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

प्रधानमंत्री जनधन योजना-: 

वित्तीय समावेशन की दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों में सबसे महत्वपूर्ण कदम प्रधानमंत्री जन धन योजना को लागू करना है

यह योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वर्ष 2014 में लाई गई थी ।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य भारत के सभी व्यक्तियों को बैंकिंग सेवाओं से जोड़ने के लिए उनका बैंक में खोलना।

इस योजना के तहत बैंक खाता खोलने वाले हितग्राहियों को ₹10000 तक ओवरड्राफ्ट की सुविधा दी गई ₹30000 का जीवन बीमा की सुविधा दी गई

इस योजना के प्रभाव से भारत में लगभग 30 करोड नवीन बैंक खाते खोले गए। जोक उल्लेखनीय रिकॉर्ड था।

मुद्रा बैंक -: 

वर्ष 2015 में मुद्रा बैंक की स्थापना की थी जिसका मुख्य उद्देश्य छोटे कारोबारियों को ऋण की सुविधा प्रदान करना है इस बैंक में 100000 तक का ऋण प्रदान किया जाता है।

किसान क्रेडिट कार्ड योजना-: 

इस योजना के तहत किसानों को कृषि कार्य के लिए कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाया जाता है

वित्तीय समावेशन की चुनौतियां

  • साक्षरता की कमी

  • बैंकिंग प्रक्रिया का जटिल होना

  • गांव तथा दुर्गम क्षेत्रों पर्याप्त अधोसंरचना जैसे सड़क बिजली ना होने के कारण वहां  बैंकिंग एवं वित्तीय सुविधाओं का विकास ना हो पाना।

वित्तीय समावेशन के विकास के लिए सुझाव

  • ग्रामीण तथा दुर्गम क्षेत्रों में बैंकिंग संबंधी जागरूकता फैलाई जाए

  • एटीएम तथा बैंकिंग शाखाओं का विस्तार किया जाए

  • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (dbt) की प्रक्रिया लागू की जाए ताकि लोग प्रत्यक्ष लाभ पाने के लिए खाता खुलवाने के लिए प्रेरित हो.

  • बायोमेट्रिक एटीएम कार्ड लगवाये जाएं ताकि अनपढ़ लोग भी उनका उपयोग कर सकें

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