राष्ट्रीय आय
This page Contents
Toggleराष्ट्रीय आय का अर्थ-: किसी राष्ट्र में एक वित्तीय वर्ष में आर्थिक क्रियाओं के परिणाम स्वरुप उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के कुल मौद्रिक मूल्य को राष्ट्रीयआय कहते हैं ।
राष्ट्रीय आय की गणना का महत्व-:
राष्ट्रीय आय की गणना से अर्थव्यवस्था की वास्तविक क्षमता का पता चलता है जैसे-अर्थव्यवस्था को कितनी राजस्व प्राप्ति होती है तथा अर्थव्यवस्था की व्यय-क्षमता कितनी है
राष्ट्रीय आय की गणना के माध्यम से एक वित्तीय वर्ष में अर्थव्यवस्था की उपलब्धियों का मूल्यांकन किया जा सकता है,
राष्ट्रीय आय के आधार पर ही अर्थव्यवस्था में विभिन्न आर्थिक नीतियों तथा योजनाओं का निर्धारण किया जाता है।
राष्ट्रीय आय की गणना से विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है
जैसे विश्व में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यूएसए की मानी जाती है क्योंकि यूएसए की जीडीपी 20 ट्रिलियन डॉलर है
भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है क्योंकि भारत की जीडीपी 2.9 ट्रिलियन डॉलर की है।
भारत में राष्ट्रीय आय की गणना
भारत में सर्वप्रथम राष्ट्रीय आय का अनुमान दादाभाई नरोजी ने 1868 में लगाया था। जिसका विवरण उन्होंने अपनी पुस्तक द पॉवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया में किया है।
जबकि भारत में सर्वप्रथम वैज्ञानिक विधि(उत्पादन विधि) से राष्ट्रीय आय की गणना बीकेआर वी राव 1931-32 में की थी।
वर्तमान में भारत की राष्ट्रीय आय की गणना केंद्रीय सांख्यिकी आयोग द्वारा की जाती है जिसकी स्थापना वर्ष 1951 में की गई थी।
राष्ट्रीय आय मापने की विधियां(राष्ट्रीय आय लेखांकन)
वर्तमान में राष्ट्रीय आय मापने की मुख्यता तीन विधियां प्रचलित है-:
उत्पाद गणना विधि
आय गणना विधि
व्यय गणना विधि,
उत्पाद गणना विधि-:
इस विधि के अंतर्गत किसी देश की अर्थव्यवस्था में 1 वर्ष में प्राथमिक द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र से उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य को जोड़कर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है।
जैसे-: प्राथमिक क्षेत्र का कुल उत्पादन+द्वितीय क्षेत्र का कुल उत्पादन+तृतीय क्षेत्र का कुल उत्पादन – मूल्यह्रास = राष्ट्रीय आय।
आय गणना विधि-:
इस विधि के अंतर्गत, किसी देश की अर्थव्यवस्था में 1 वर्ष में उत्पादन के सभी साधनों को प्राप्त होने वाली आय को जोड़कर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है।
जैसे-: श्रमिकों की मजदूरी/वेतन + पूंजीपतियों का लाभ + ऋण का ब्याज + भूमि की लगान/ किराया = राष्ट्रीय आय।
व्यय गणना विधि-:
इस विधि के अंतर्गत किसी देश की अर्थव्यवस्था में 1 वर्ष में होने वाले सभी प्रकार के व्ययों एवं कुल बचतों को जोड़कर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है।
जैसे-: निजी उपभोग व्यय+सरकारी व्यय+निवेश व्यय+शुद्ध विदेशी निवेश+ कुल बचत = राष्ट्रीय आय।
वर्तमान में साधारणतः व्यय विधि द्वारा ही राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है।
राष्ट्रीय आय से संबंधित विभिन्न अवधारणा
सकल घरेलू उत्पाद
सकल राष्ट्रीय उत्पाद
शुद्ध घरेलू उत्पाद
शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद।
सकल घरेलू उत्पाद (GDP)
किसी देश की घरेलू सीमा(राजनीतिक सीमा) के अंदर एक वित्तीय वर्ष मैं उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के योग को सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं।
सकल घरेलू उत्पाद = उपभोग+ निवेश+ सरकारी व्यय + [निर्यात – आयात] ।
सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP)
किसी देश के नागरिकों द्वारा घरेलू सीमा के अंदर या बाहर एक वित्तीय वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के योग को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।
GNP=GDP-M+X
M = विदेशियों द्वारा हमारे देश से अर्जित की गई आय।
X = देशवासियों द्वारा विदेशों से अर्जित की गई आय।
शुद्ध घरेलू उत्पाद(NDP)
जब सकल घरेलू उत्पाद(gdp) मैं से उत्पादन की प्रक्रिया में उपयोग की जाने वाली मशीनों तथा पूंजी के मूल्य में आई गिरावट अर्थात मूल्यह्रास को घटा दिया जाता है तो इसके बाद शेष बची जीडीपी को शुद्ध घरेलू उत्पाद कहते हैं
NDP= GDP- मूल्यह्रास.
शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद(NNP)
जब सकल राष्ट्रीय उत्पाद में से उत्पादन के दौरान प्रयुक्त होने वाली मशीनों एवं पूंजी के मूल्य में आई गिरावट या मूल्यह्रास को घटा दिया जाता है तो उसे शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।
NNP= GNP- मूल्यह्रास.
साधन लागत(fc) एवं बाजार कीमत(mp).
साधन लागत-:
किसी वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले साधनों की लागत को उस वस्तु की साधन लागत कहते हैं।
उदाहरण के लिए यदि किसी कार को बनाने में 1000000 रुपए की लागत लगती है तो कार की साधन लागत ₹1000000 होगी।
किसी वस्तु के बाजार मूल्य से उसकी साधन लागत निकालने के लिए
FC = MP – अप्रत्यक्ष कर + सब्सिडी
बाजार मूल्य-:
किसी वस्तु का वह मूल्य जिस पर क्रेता खरीदने को तथा विक्रेता बेचने को तैयार होता है उसे उस वस्तु का बाजार मूल्य कहते हैं.
किसी वस्तु को उपभोक्ता जिस मूल्य पर खरीदता है वह उस वस्तु का बाजार मूल्य कहलाता है
किसी वस्तु की साधन लागत से उसका बाजार मूल्य निकालने के लिए
MP=FC + प्रत्यक्ष कर – सब्सिडी
वास्तविक राष्ट्रीय आय(NNP ,fc)
वास्तविक राष्ट्रीय आय का तात्पर्य साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय से है।
NNP ,fc = NNP ,mp – प्रत्यक्ष कर + सब्सिडी।
राष्ट्रीय आय में शामिल ना होने वाली मदें
राष्ट्रीय आय में केवल अंतिम उत्पादों को भी शामिल किया जाता है मध्यवर्ती वस्तुओं के मौद्रिक मूल्य को नहीं।
जैसे-: गेहूं से बनने वाली ब्रेड के मूल्य को ही राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाएगा, किंतु जिस गेहूं से ब्रेड बना है उसके उनके मूल को शामिल नहीं किया जाएगा।
राष्ट्रीय आय में केबल वित्तीय वर्ष में उत्पादित नवीन वस्तुओं की गणना की ही जाती है, पुराने वित्तीय वर्ष में उत्पादित वस्तुओं की गणना नहीं की जाती।
राष्ट्रीय आय में घरेलू सेवाओं जैसे-: कपड़े धोना खाना बनाना पत्नी द्वारा पति की सेवा किया जाना। आदि को शामिल नहीं किया जाता
राष्ट्रीय आय में हस्तांतरण भुगतान जैसे -:पेंशन ,बेरोजगारी भत्ता ,बैंकों में जमा धनराशि पर मिलने वाले ब्याज आदि को शामिल नहीं किया जाता।
गैर कानूनी गतिविधियों से प्राप्त आय जैसे कालाबाजारी जुआ आदि राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं होती।
आयकर ,निगम का आदि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
भारत में राष्ट्रीय आय के आकलन की सीमाएं-:
दोहरी गणना की समस्या-: अनेकों बार मध्यवर्ती वस्तुओं एवं अंतिम वस्तुओं दोनों के मौद्रिक मूल्य की गणना करके राष्ट्रीय आय में जोड़ दी जाती है जिससे राष्ट्रीय काफी ज्यादा बढ़ जाती है
जैसे-: ट्रैक्टर बनाने वाले लोहे की गणना लोहा उत्पादन में भी हो सकती है और ट्रैक्टर उत्पादन में भी।
लघु कुटीर तथा असंगठित क्षेत्र के उद्योगों या श्रमिकों, कृषकों की आय का लेखांकन नहीं होता है अतः इनकी आय का अनुमान लगाकर ही, राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है।
जैसे-: कुटीर उद्योग का एक उद्यमी अपने मिट्टी के बर्तन बनाकर पड़ोसी को बेंच आता है तो उसका लेखांकन नहीं हो पाता।
सीमांत किसान अपनी उपज बाजार में नहीं बैंच पाते अतः उनकी आय का लेखांकन नहीं हो पाता।
भारत के अधिकांश लोग आयकर से छूट पाने के लिए अपनी आय को कम से कम बताते हैं परिणाम स्वरूप लोगों की आय से संबंधित सटीक आंकड़े प्राप्त नहीं हो पाते जिससे सटीक राष्ट्रीय आय ज्ञात नहीं हो पाती।
भारतीय अर्थव्यवस्था में 18 से 21% धन काला धन है, उसकी गणना करना बहुत ही कठिन है।
राष्ट्रीय आय की गणना मुद्रा के रूप में की जाती है किंतु भिन्न-भिन्न स्थानों में भिन्न भिन्न परिस्थितियों में लागत का तथा बाजार का मूल्य अलग अलग होता है अतः राष्ट्रीय आय की गणना सटीक तरीके से करना कठिन होता है
भारत की राष्ट्रीय आय
भारत में राष्ट्रीय आय की गणना केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा की जाती है जिसकी स्थापना वर्ष 1951 में हुई
इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने (2015 में )आधार वर्ष 2004-5 के स्थान पर वर्तमान समय का आधार वर्ष 2011-12 को घोषित कर दिया।
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के अनुसार वर्ष 2019-20 में भारत की राष्ट्रीय आय 181 लाख करोड़ रूपए थी।