आर्थिक नीतियां
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Toggleकिसी भी देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने (जैसे महंगाई, गरीबी ,बेरोजगारी तथा राष्ट्रीय उत्पादन आदि को नियंत्रित करने) के लिए उस देश की सरकार द्वारा जो नीति अपनाई जाती हैं उसे आर्थिक नीति कहते हैं।
और प्रत्येक देश की सरकार (या प्रधान मौद्रिक प्राधिकरण)मुख्यतः तीन प्रकार की आर्थिक नीतियां बनाती हैं
राजकोषीय नीति(देश के सार्वजनिक आय एवं सार्वजनिक व्यय को नियंत्रित करने से संबंधित नीति)
मौद्रिक नीति(अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह की मात्रा को नियंत्रित करने से संबंधित नीति)
विदेशी व्यापार नीति,(विदेशी आयात एवं निर्यात को नियंत्रित करने से संबंधित नीति)
राजकोषीय नीति
देश की अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक आय ,सार्वजनिक व्यय , सार्वजनिक ऋण एवं करारोपण आदि का प्रबंधन करने के लिए, वित्त मंत्रालय द्वारा जो नीति बनाई जाती है उसे राजकोषीय नीति कहते हैं। भी
राजकोषीय नीति के उद्देश्य-:
अर्थव्यवस्था का संतुलित एवं पूँजी निर्माण द्वारा तीव्र विकास करना।
कीमतों में स्थिरता लाना अर्थात मुद्रास्फीति पर नियंत्रण स्थापित करना।(मुद्रा संकुचन की स्थिति में सरकार व्यय अधिक करके एवं कर की दर घटाकर बाजार में मुद्रा का प्रसार करती है)
रोजगार का सृजन करना। (रोजगार के सृजन हेतु सरकारी निवेश या व्यय को बढ़ा दिया जाता है)
आर्थिक समानता स्थापित करना। (अमीरों पर अधिक का लगाकर तथा गरीबों पर अधिक व्यय करके)
संतुलित क्षेत्रीय विकास करना। (इसके लिए सरकार उन क्षेत्रों में अधिक व्यय करती है जो क्षेत्र पिछड़े होते हैं।)
राजकोषीय नीति के उपकरण
कराधान
सार्वजनिक व्यय
सार्वजनिक ऋण
निवेश विनिवेश
बजट
कराधान-:
सरकार द्वारा जनता से उनकी धनराशि का एक निश्चित अंश अनिवार्य रूप से लिया जाता है जिसे कर कहते हैं
और सरकार कर की दरों में परिवर्तन करके, विभिन्न आर्थिक क्रियाओं जैसे मुद्रास्फीति उत्पादन आदि को प्रभावित करती है
कर की दरों में परिवर्तन का प्रभाव
जब सरकार करो की दर में कमी करती है, तो बाजार में मुद्रा की पूर्ति बढ़ती है एवं साख का विस्तार होता है
परिणाम स्वरूप
लोगों की बचत बढ़ती है अतः निवेश और उत्पादन बढ़ता है।
रोजगार के अवसर बढ़ते हैं
बाजार में मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न होती है।(क्योंकि लोगों की बचत अधिक होने से मांग ,पूर्ति की तुलना में तेजी से बढ़ती है)
सार्वजनिक व्यय- :
सरकार के द्वारा सभी लोगों के कल्याण के लिए जो व्यय किया जाता है उसे सार्वजनिक व्यय कहते हैं।
जैसे-: अधोसंरचना का विकास ,विद्यालय ,स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास मैं व्यय।
सार्वजनिक व्यय का प्रभाव
जब सरकार सार्वजनिक व्यय अधिक करती है , तो निवेश एवं उत्पादन बढ़ता है परिणाम स्वरूप
रोजगार में वृद्धि होती है
लोगों की आय बढ़ती है
मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न होती है (क्योंकि आय बढ़ने से बचत अधिक होगी और बचत अधिक होने से मांग अधिक होगी)
लोक ऋण-:
सरकार के द्वारा जनता से लिया जाने वाला ऋण लोक ऋण कहलाता है।
सार्वजनिक ऋण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
जब सरकार जनता से सरकारी प्रतिभूतियां बेचकर ऋण के रुप में पैसा प्राप्त करती है
तो अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा कम हो जाती है
परिणाम स्वरूप
आर्थिक मंदी की स्थिति उत्पन्न होती है।
रोजगार एवं उत्पादन में कमी आती है
बजट नीति-:
सरकार द्वारा घाटे का बजट या अधिक्य का बजट बनाए जाने की नीति को बजट नीति कहते हैं।
बजट नीति का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
मंदी की स्थिति से निपटने के लिए सरकार घाटे का बजट बनाती है जिसमें आय की तुलना में व्यय अधिक किया जाता है
परिणाम स्वरूप
उत्पादन एवं रोजगार में वृद्धि होती है
लोगों की आय बढ़ती है
मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न होती है (क्योंकि आय बढ़ने से बचत अधिक होगी और बचत अधिक होने से मांग अधिक होगी)
निवेश विनिवेश नीति
उत्पादन कार्य नहीं धनराशि लगाना निवेश कहलाता है।
जबकि इसके विपरीत जब सरकार किसी उघम में सरकारी निवेश की मात्रा को कम करती है। तो इसे भी विनिवेश कहते हैं
मुद्रा संकुचन की स्थिति से निपटने के लिए सरकार विनिवेश अधिक करती है ताकि उघम क्षेत्र का पैसा सार्वजनिक व्यय लगाकर सार्वजनिक व्यय बढ़ाया जा सके।
राजकोषीय नीति की सीमाएं
लोचपूर्ण कर प्रणाली का अभाव
सरकारी निर्णय उसके क्रियान्वयन में विलंब की समस्या।
सांख्यिकी सूचना की सटीकता का अभाव
राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति में अंतर
राजकोषीय नीति सरकार के वित्त विभाग द्वारा बनाई जाती है जबकि मध्यक नीति रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा बनाई जाती है
राजकोषीय नीति का प्रभाव सीधे जनता पर पड़ता है( जैसे यदि सरकार कर कम करती है या सार्वजनिक व्यय को बढ़ावा देती है तो जनता को सीधे लाभ होता है) जबकि मौद्रिक नीति मैं उदारता से सामान्य जनता को सीधे तौर पर प्रत्यक्ष लाभ नहीं होता(जैसे यदि आरबीआई रेपो रेट में कमी करती है तो उद्योगपति अधिक ऋण लेकर अधिक निवेश करेंगे किंतु सामान्य जनता निवेश के लिए ऋण नहीं लेती है)
राजकोषीय नीति मांग पक्ष को अधिक प्रभावित करती हैं जबकि मौद्रिक नीति पूर्ति पक्ष अर्थात निवेश को अधिक प्रभावित करती है जैसे कर की दरों में कमी होने से मांग बढ़ती है
जबकि रेपो रेट में कमी होने से निवेश बढ़ता है
राजकोषीय नीति के प्रभाव तात्कालिक होते हैं जबकि मौद्रिक नीति के प्रभाव लम्बे समय अंतराल से उत्पन्न होते हैं।
:-राजकीय कोष -:
सरकार के पास संचित कोष (fund)को राजकीय कोष कहते हैं।
राजकीय कोष तीन रूपों में होता है
संचित निधि ,लोक वित्त ,आकस्मिक निधि।
एक वित्तीय वर्ष में सरकार (सार्वजनिक- क्षेत्र) की आय एवं व्यय का लेखा-जोखा बजट कहलाता है।
राजकीय कोष(सरकारी आय) के स्त्रोत-:
राजकीय कोष के स्त्रोतों को दो भागों में बांटा जा सकता है
राजस्व प्राप्तियां,
पूंजीगत प्राप्तियां,
राजस्व प्राप्तियां (revenue receipt)-:
सरकार की वह प्राप्तियां, जिनसे न तो सरकार की देयता(liability) बढ़ती है और ना ही सरकार की परिसंपत्ति (assets)कम होती है।
जैसे-: कर (tax)से प्राप्त आय ,शुल्क (fee)से प्राप्त आय.
-: बजट अनुमान 2023 24 के अनुसार भारत की कुल राजस्व प्राप्तियां 26 लाख करोड़ है।
राजस्व प्राप्तियां दो प्रकार की होती है
कर राजस्व प्राप्तियां
-: सभी प्रकार के प्रत्यक्ष करों और अप्रत्यक्ष करों से प्राप्त आय।
गैर कर राजस्व प्राप्तियां-
विभिन्न प्रकार की शुल्कों एवं जुर्मानों से प्राप्त आय।
विभिन्न प्रकार की सरकारी सेवाओं के बदले सरकार को प्राप्त होने वाली आय जैसे रेलवे, डाक, बीमा से प्राप्त आय
दिए गए ऋण के ब्याज से प्राप्त आय
विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों से प्राप्त आय (Gail, BHEL,BEL , ONGC)
पूंजीगत प्राप्तियां (capital receipt)-:
सरकार की ऐसी प्राप्तियां जिसके कारण सरकार के देयता (liability)बढ़ जाती है या सरकारी परिसंपत्ति(assets) कम होती है
.जैसे-:
विदेशी ऋण लेने से प्राप्त आय।
आरबीआई या जनता से लिए गए ऋण से प्राप्त आय।
ब्याज में दी गयी धनराशि पुनः वापस लेने से प्राप्त आय।
विनिवेश करने से प्राप्त आय।
सरकारी संपत्ति बेचने पर प्राप्त आय।
-: बचत अनुमान 2023-24 के अनुसार भारत की कुल पूंजीगत प्राप्तियां 18.70 लाख करोड़ है।
राजकीय कोष का व्यय (सरकारी व्यय) -:
सरकार के द्वारा सभी लोगों के कल्याण के लिए जो व्यय किया जाता है उसे सार्वजनिक व्यय कहते हैं।
जैसे-: अधोसंरचना का विकास ,विद्यालय ,स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास मैं व्यय।
-: बजट अनुमान 2023 24 के अनुसार भारत का कुल सार्वजनिक 45 लाख करोड़ है।
सरकारी व्यय दो प्रकार का होता है
राजस्व व्यय
पूंजीगत व्यय
राजस्व व्यय-:
सरकार के ऐसे व्यय जिनसे सरकारी परिसंपत्तियों का सृजन (बढ़ोतरी) नहीं होता है.
सब्सिडी में व्यय
रक्षा में किया गया व्यय
सरकारी कर्मचारियों को दिए गए पेंशन ,वेतन,
कानून व्यवस्था बनाए रखने में किया गया व्यय
उधार लिए गए ऋण का ब्याज।
कल्याणकारी सरकारी योजनाओं में किया गया व्यय।
-: बजट अनुमान 2023 24 के अनुसार, भारत का कुल राजस्व व्यय 35 लाख करोड़ है।
पूंजीगत व्यय-:
सरकार के ऐसे व्यय जिसके द्वारा सरकार की परिसंपत्तियों का सृजन होता है या सरकार के दायित्व में कमी आती है।
जैसे -:
लिए गए ऋण को चुकाने में किया गया व्यय।
सरकारी संपत्ति खरीदने में किया गया व्यय
सरकारी उद्यमों में किया गया निवेश
लाभ प्रदान करने वाली परियोजनाओं में किया गया व्यय जैसी बांध परियोजना में किया गया व्यय, अधोसंरचना के विकास में किया गया व्यय।
-: बजट अनुमान 2023 24 के अनुसार, भारत का कुल पूंजीगत व्यय 10 लाख करोड़ है।
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सार्वजनिक व्यय में वृद्धि का सिद्धांत-:
एडोल्फ बेगनर -:
सार्वजनिक आय में वृद्धि के कारण लगातार सार्वजनिक व्यय बढ़ता जा रहा है, इसके अतिरिक्त कुछ अन्य कारणों से भी सार्वजनिक व्यय बढ़ रहा है-
लोकतंत्र में सरकारी कार्यों में वृद्धि।
विभिन्न लोकतांत्रिक के संस्थानों का विकास एवं संचालन के लिए वित्त की आवश्यकता ने सार्वजनिक व्यय को बढ़ाया है।
जीवन शैली में परिवर्तन। (वर्तमान में उपभोक्तावादी जीवन शैली)
वइजमैन पीकाक-:
वर्तमान की आपातकालीन परिस्थितियों ने सार्वजनिक अध्याय में वृद्धि की है। (उदाहरण- सुनामी)
राजकोषीय घाटा प्रबंधन-:
राजकोषीय घाटा-:
कुल आय(ऋण को छोड़कर) की तुलना में कुल व्यय अधिक होना।
सूत्र -: कुल व्यय – कुल आय(ऋण को छोड़कर)
बजट हनुमान 2023 24 के अनुसार भारत का राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.9% है।
राजकोषीय घाटे के प्रभाव-:
सकारात्मक प्रभाव-: राजकोषीय घाटा तब होता है जब सरकार अधिक व्यय करती है; और अधिक व्यय से निम्न लाभ है-:
अवसंरचना का विकास।
रोजगार को बढ़ावा।
प्रति व्यक्ति आय को बढ़ावा मिलता है।
उत्पादन में वृद्धि तथा निर्यात को प्रोत्साहन।
नकारात्मक प्रभाव-; आय की तुलना में अधिक व्यय किए जाने से निम्न हानियां है –
मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न होती है।
राष्ट्रीय कर्ज में वृद्धि।
राजकोषीय दुष्चक्र की स्थिति।
अर्थात एक निश्चित सीमा तक राजकोषीय घाटा लाभदायक होता है; किंतु अत्यधिक राजकोषीय घाटा नकारात्मक आर्थिक प्रभाव डालता है।
घाटा प्रबंधन के तरीके-:
1. राजकोषीय समेकन- सरकार द्वारा घाटा होने के पूर्व, अग्रिम अनुमान के अनुसार घाटे का प्रबंधन करना।
राजकोषीय समेकन के दो प्रकार हैं-
आय में वृद्धि-
नया कर लगाना।
कर की दरों में वृद्धि करना।
विनिवेश (प्राइवेटाइजेशन) करना।
वैश्विक संस्थानों से ऋण लेना।
व्यय में कमी-
सब्सिडी में कमी कर देना।
समय पर कर्ज चुका देना, ताकि ब्याज कम लगे।
कम आवश्यक पूंजीगत व्यय कम करना।
2. घाटे की वित्त व्यवस्था- सरकार द्वारा घाटा होने के पश्चात, घाटे का प्रबंध करना।
यह भी दो प्रकार की होती है-
ऋण लेना –इसके अंतर्गत सरकार अत्यधिक घाटा हो जाने पर इसका प्रबंधन करने के लिए विदेशी ऋण लेती है।
हीनार्थ प्रबंधन –इसके अंतर्गत सरकार, घाटी का प्रबंध करने के लिए घाटे के अनुपात में नए नोट छपवा देती है, किंतु इससे मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है; अतः भारत सरकार ने 1997 से इसे बंद कर दिया है।
