गरीबी(poverty)
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Toggleसामान्यतः वह व्यक्ति जो निम्न आय होने के कारण अपनी विभिन्न प्रकार की बुनियादी आवश्यकताओं (रोटी, कपड़ा ,मकान, शिक्षा की व्यवस्था करना) को पूरा करने में असमर्थ होता है, उसे गरीब कहा जाता हैं
तथा गरीबी का तात्पर्य समाज की उस स्थिति से है जिसमें समाज के लोग अपने जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ हो, परिणाम स्वरूप उनका जीवन स्तर निम्न होता है।
रंगराजन समिति की रिपोर्ट के अनुसार भारत के लगभग 29% लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं।
गरीबी की माप(प्रकार)
गरीबी के मापन की मुख्यतः दो विधियां हैं
सापेक्षिक गरीबी-:
गरीबी की वह माप जिसमें अन्य व्यक्ति अन्य समाज या अन्य देश से तुलना करके गरीबी ज्ञात की जाती है उसे सापेक्षिक गरीबी कहते हैं।
जैसे-:
जब किसी व्यक्ति या समाज का जीवन स्तर दूसरे व्यक्ति या दूसरे समाज की तुलना में नीचा (निम्न गुणवत्ता का) होता है, तो उस व्यक्ति या समाज को सापेक्षिक रूप से गरीब कहा जाता है.
निरपेक्ष गरीबी-:
गरीबी की वह माप, जिसमें निश्चित न्यूनतम बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थता या असमर्थता के आधार पर ,किसी व्यक्ति या समाज की गरीबी का निर्धारण होता है उसे निरपेक्ष गरीबी कहते हैं।
जैसे
यदि कोई ग्रामीण क्षेत्र का व्यक्ति प्रतिदिन 2400 कैलोरी भोजन प्राप्त करने में असमर्थ होता है तो उसे गरीब कहा जाता है।
और भारत में गरीबी का मापन निरपेक्ष विधि द्वारा ही किया जाता है
गरीबी रेखा
न्यूनतम जीवन निर्वाह स्तर की वह कल्पनिक विभाजक रेखा, जो यह निर्धारित करती है कि कौन गरीब है कौन गरीब नही है उसी गरीबी रेखा कहते हैं।
भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण
भारत में निर्धनता रेखा या गरीबी रेखा का निर्धारण योजना आयोग(नीति आयोग) द्वारा किया जाता है।
और गरीबी रेखा का निर्धारण करने के लिए योजना आयोग ने सर्वप्रथम 1962 में एक कार्य समूह गठित किया और
योजना आयोग कार्य समूह के अनुसार -: ₹20 मासिक को गरीबी रेखा माना गया।
अर्थात जो व्यक्ति एक माह में ₹20 से कम उपभोग व्यय करता है वह गरीब है,
Y.K. अलध समिति-1979
इस समिति की सिफारिशों के आधार पर योजना आयोग ने इस आधार पर गरीबी रेखा का निर्धारण किया कि -:ग्रामीण क्षेत्र का वह व्यक्ति, जो प्रतिदिन 2400 कैलोरी भोजन, तथा शहरी क्षेत्र का वह व्यक्ति जो प्रतिदिन 2100 कैलोरी भोजन प्राप्त करने में असमर्थ है, वह गरीब है।
इसके बाद गरीबी रेखा के निर्धारण के लिए
डीटी लकड़वाला समिति-1993
सुरेश तेंदुलकर समिति -2009
सी रंगराजन समिति- 2014
सुरेश तेंदुलकर समिति 2009 में उपभोग व्यय के आधार पर गरीबी रेखा का निर्धारण किया। इस समिति के अनुसार शहरी क्षेत्र का वह व्यक्ति जो प्रतिदिन ₹33.3(मासिक 1000 ) से अधिक तथा ग्रामीण क्षेत्र का वह व्यक्ति जो प्रतिदिन ₹27(मासिक 816) से अधिक उपभोग व्यय करता है वह गरीबी रेखा की सीमा से बाहर है अर्थात वह गरीब नहीं है।
जबकि रंगराजन समिति 2014 के अनुसार शहरी क्षेत्र का वह व्यक्ति जो प्रतिदिन 46.9 रूपए(मासिक 1407) से अधिक तथा ग्रामीण क्षेत्र का वह व्यक्ति जो प्रतिदिन ₹32.4(मासिक 912) से अधिक उपभोग व्यय करता है वह गरीबी रेखा की सीमा से बाहर है अर्थात वह गरीब नहीं है।
सरकार ने रंगराजन समिति की रिपोर्ट पर कोई कार्यवाही नहीं की ,अतः वर्तमान में गरीबी को तेंदुलकर समिति की ही गरीबी रेखा की परिभाषा के आधार पर मापा जाता है।
तेंदुलकर समिति के आधार पर वर्ष 2011-12 में भारत में 21.9% लोग गरीब थे, जबकि रंगराजन समिति के आधार पर वर्ष 2011-12 में 29.5% लोग गरीब थे।
विश्व बैंक ने विकासशील देशों में गरीबी रेखा प्रतिदिन 1.25 डॉलर प्रतिव्यक्ति आय को माना है।
भारत में गरीबी के कारण-:
ऐतिहासिक कारण-: ब्रिटिश शासन के पूर्व भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था अर्थात भारत की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी। किंतु ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजों की औपनिवेशिक नीतियों के परिणाम स्वरूप भारतीय किसान ऋणग्रस्त, एवं भूमि विहीन हो गए ,भारतीय हस्तशिल्प ,उद्योग लघु उद्योग का पतन हुआ, परिणाम स्वरूप भारत में बेरोजगारी बढ़ी और प्रति व्यक्ति आय कम हो गई जिससे अधिकांश भारतीय जनता गरीब हो गई, और यह गरीबी का दुष्चक्र आज तक चलता आ रहा।
तीव्र जनसंख्या वृद्धि-:
भारत में 1991 में लगभग 36 करोड़ जनसंख्या थी जो आज बढ़कर 135 करोड़ के करीब पहुंच चुकी है, जनसंख्या में वृद्धि होने से प्रति व्यक्ति संसाधन की उपलब्धता में कमी होती है जो गरीबी का प्रमुख कारण है।
कृषि का पिछड़ापन-: भारत एक कृषि प्रधान देश है भारत की लगभग 55% श्रम शक्ति कृषि में लगी हुई है किंतु कृषि की उत्पादकता कम होने के कारण कृषि क्षेत्र का राष्ट्रीय आय में केवल 17 प्रतिशत योगदान है परिणाम स्वरूप कृषि में निर्भर 55% लोगों की आमदनी कम होती है जिस कारण से वे गरीब है।
व्यापक बेरोजगारी-: भारत में बेरोजगारी की औसतन दर 8% है जबकि जापान जैसे देशों में बेरोजगारी की दर मात्र 3% से भी कम है
इसके साथ ही भारत में मौसमी तथा अदृश्य बेरोजगारी काफी ज्यादा पाई जाती है शकुंतला मेहरा के अध्ययन से पता चलता है कि कृषि कार्य में लगी हुई कुल श्रम शक्ति में 17% श्रम शक्ति फालतू है अर्थात कृषि कार्य में लगे 17% लोग प्रच्छन्न बेरोजगार। बेरोजगारी होने से प्रति व्यक्ति आय कम होती है परिणाम स्वरूप गरीबी की स्थिति उत्पन्न होती है।
पूंजी निर्माण दर में कम
भारत में उद्यमशीलता तथा निवेश में कमी एवं पर्याप्त अधोसंरचना के विकास ना होने के कारण पूंजी निर्माण दर काफी ज्यादा कम है।
भारत में 2019-20 में सकल पूंजी निर्माण दर 28% थी जबकि चीन में 42% ।
पूंजी निर्माण दर कम होने से उत्पादकता कम होती है और उत्पादकता कम होने से राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय कम होती है जिसके कारण गरीबी आती है
आय की असमानता-: भारत अर्थव्यवस्था पीपीटी के आधार पर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तथा जीडीपी के आधार पर विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है किंतु वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2020 के अनुसार गरीबी के मामले में भारत विश्व की 107 देशों में 62 में स्थान पर है। अर्थव्यवस्था उन्नत होने के बावजूद भी भारत में गरीबी होने का मुख्य कारण भारत में बढ़ती जनसंख्या तथा आए की समानता है,
2014 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की राष्ट्रीय आय का 50% से अधिक हिस्सा भारत के मात्र 10% अमीर लोगों के पास है और बाकी 90% लोगों के पास भारत की राष्ट्रीय आय का 50% से भी कम हिस्सा है जो भी भारत की गरीबी का एक प्रमुख कारण है।
सामाजिक एवं धार्मिक रूढ़िवादिता
भारत में अभी भी व्यापक मात्रा में कर्मकांड एवं अंधविश्वास विद्यमान है, जिस कारण से भारत के निर्धन लोग मजबूरी बस अनावश्यक कार्य पर अपना धन बहाते जैसे-: दहेज प्रथा, गंग भोज. जो भी निर्धनों की निर्धनता का प्रमुख कारण है।
गरीबी के प्रभाव
गरीबी के कारण निम्न समस्याएं उत्पन्न होती है-:
निरक्षरता की समस्या (धन के अभाव में लोग पढ़ नहीं पाते
बाल-श्रम की समस्या (बालक अपना पेट भरने के लिए श्रम करने के लिए मजबूर होते हैं
कुपोषण की समस्या
पूंजी निर्माण दर कम होने की समस्या (लोगों के पास धन नहीं होता तो बचत भी नहीं होती बचत नहीं होती तो निवेश नहीं होता निवेश ना होने से पूंजी निर्माण होता)
भारत में गरीबी कम करने के उपाय
सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए क्योंकि अत्यधिक रोजगार सृजन में सहायक है और जब रोजगार बढ़ेगा तो प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ेगी प्रति व्यक्ति आय बढ़ने से गरीबी दूर होगी।
जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाई जाए, इसके लिए दो बच्चे की नीति पर कानून बनाया जाए एवं परिवार नियोजन के प्रति लोगों को जागरूक किया जाए।
कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया जाए क्योंकि भारत की 50% से अधिक जनसंख्या कृषि कार्य में संलग्न है उनकी गरीबी तभी दूर होगी जब किसी को लाभदायक बनाया जाए और कृषि लाभदायक तभी बनेगी जब मिश्रित कृषि एवं उपयुक्त सिंचाई प्रणाली को बढ़ावा देकर कृषि उत्पादकता बढ़ाया जाए
अधोसंरचना का विकास करके निवेश को बढ़ावा दिया जाए ताकि बड़े बड़े उद्योगों फैक्ट्रियों का विकास विस्तार हो परिणाम स्वरूप रोजगार में वृद्धि हो जिससे प्रति व्यक्ति आय बढ़ेगी और गरीबी दूर होगी।
शिक्षा एवं स्वस्थ सुविधाओं का विकास व विस्तार करके,मानव संशाधन को कुशल मानव संसाधन बनाया जाए। ताकि पूंजी निर्माण दर को बढ़ावा मिले
आर्थिक समानता की स्थापना की जाए इसके लिए अमीरों पर अधिकतर लगाकर तथा गरीबों पर अधिक सार्वजनिक की नीति बनाई जाए
अनावश्यक खर्च को बढ़ावा देने वाली प्रथा पर रोक लगाई जाए
पुनः भूमि सुधार की प्रक्रिया अपनाई जाए।
गरीबी निवारण हेतु सरकारी प्रयास
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता योजना -1995
ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम 1995
स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना 1997
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना-1999
प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना -2001
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का क्रियान्वयन।
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
प्रधानमंत्री आवास योजना
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
मनरेगा योजना
अंत्योदय अन्न योजना,।