बेरोजगारी
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Toggleकिसी देश की अर्थव्यवस्था में श्रम शक्ति (16 से 64 वर्ष तक के सक्रिय लोग)का वह भाग जो कार्य करने का सामर्थ्य एवं इच्छा दोनों रखता है किंतु उसे बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य नहीं मिलता तो उसे बेरोजगार कहा जाता है
और इस स्थिति को बेरोजगारी कहा जाता है।
बेरोजगारी =
श्रम शक्ति – रोजगार में लगे हुए लोगों की संख्या।
बेरोजगारी की दर 
बेरोजगारी के प्रकार
खुली बेरोजगारी-:
खुली बेरोजगारी का तत्पर उस स्थिति से है जिसमें व्यक्ति कार्य करने का समर्थ एवं इच्छा दोनों रखता है किंतु उसे प्रचलित दरों पर किसी भी प्रकार का कार्य नहीं मिलता है
संरचनात्मक बेरोजगारी-:
संरचनात्मक बेरोजगारी का तात्पर्य बेरोजगारी की उस स्थिति से है जिसके अंतर्गत संरचना में परिवर्तन आने के कारण लोग बेरोजगार हो जाते हैं।
जैसे -: जब कंप्यूटर का प्रयोग शुरू हुआ, तो बहुत से सैनिकों को निकाल दिया गया क्योंकि उनसे कंप्यूटर का प्रयोग नहीं बनता था।
मौसमी बेरोजगारी
मौसमी बेरोजगारी का तात्पर्य बेरोजगारी की उस स्थिति से है जिसमें व्यक्ति को वर्ष के एक विशेष मौसम में तो रोजगार मिलता है किंतु अन्य मौसम में रोजगार नहीं मिलता,
जैसे-: चीनी मिलों में फसल कटाई के बात कुछ समय के लिए तो रोजगार मिलता है किंतु से समय में रोजगार नहीं मिलता न।
छिपी हुई (प्रच्छन्न)बेरोजगारी
प्रच्छन्न बेरोजगारी का तात्पर्य बेरोजगारी की उस स्थिति से है जिसमें व्यक्ति काम करते हुए दिखते तो हैं किंतु उत्पादकता में उनका कोई योगदान नहीं रहता।
जैसे-: कृषि कार्य में आवश्यकता से अधिक लोग लगे होना।
अल्प बेरोजगारी
अल्प बेरोजगारी का तात्पर्य बेरोजगारी की उस स्थिति से है जिसमें व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुरूप काम नहीं मिलता अर्थात योग्यता से कम काम मिलता है।
जैसे-: पीएचडी किए हुए व्यक्ति का क्लर्क बनना।
शैक्षिक बेरोजगारी
शिक्षित बेरोजगारी का तात्पर्य बेरोजगारी की उस स्थिति से है, जिसके अंतर्गत पढ़े लिखे लोगों को भी कार्य नहीं मिलता.
भारत में बेरोजगारी के कारण
व्यवसायिक शिक्षा प्रणाली का अभाव (भारत में जापान जैसे देशों की तरह प्रारंभिक से ही व्यवसायिक या रोजगार उन्मुख शिक्षा नहीं दी जाती जो बेरोजगारी का प्रमुख कारण है)
वर्तमान में भारत में मशीनी का बढ़ता जा रहा है (जिससे श्रम शक्ति की मांग कम होती है जो बेरोजगारी का प्रमुख कारण है क्योंकि एक मशीन 100-200 लोगों का काम अकेले कर लेती है)
तीव्र जनसंख्या वृद्धि
कृषि में निर्भरता-: भारत के अधिकांश लोग परंपरागत रूप से कृषि करते आए हैं अतः कृषकों के बच्चे भी शुरू से ही शिक्षा मैं ध्यान न देकर केवल कृषि कार्य में ध्यान देते हैं अतः वे केवल कृषि करने के योग्य रहते हैं, परिणाम स्वरूप उन्हें रोजगार नहीं मिल पाता,
व्यापक गरीबी-: भारत के लोगों की औसतन प्रति व्यक्ति आय $2000 (प्रतिवर्ष) है जबकि अमेरिका के लोगों की प्रति व्यक्ति आय $60000 प्रति व्यक्ति आय कम होने से लोग निवेश करके अपना व्यवसाय स्थापित नहीं कर पाते।
मंद औद्योगिक विकास भारत में पर्याप्त अधोसंरचना एवं कुशल श्रमिकों की कमी से तीव्र गति से औद्योगिक विकास नहीं हो रहा है , ना ही नए नए उद्योग स्थापित हो पा रहे हैं,जिस कारण से लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा।
विभिन्न सामाजिक कुरीतियां
भारत में विभिन्न सामाजिक कुरीतियां विद्यमान है जैसे जात-पात ,ऊंच-नीच जिस कारण से एक ऊंची जाति का व्यक्ति नीची जाति की कंपनी में काम करने को तैयार नहीं होता जो ऐच्छिक बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण है।
बेरोजगारी को दूर करने के उपाय
भारत में व्यवसायिक शिक्षा प्रणाली का विकास एवं विस्तार किया जाए जैसे -: प्रारंभिक स्तर के बच्चों को कोडिंग , टेक्नीशियन, कंप्यूटर आज ही सिखाया जाए
लोगों को उनकी रूचि के अनुसार किसी एक कार्य में दक्ष बनाने के लिए कौशल विकास कार्यक्रमों का और विस्तार किया जाए।
तीव्र जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाई जाए
वैज्ञानिक तरीके से कृषि करने को प्रोत्साहित किया जाए ताकि कृषि उत्पादकता बड़े और कृषि में पाई जाने वाली प्रच्छन्न बेरोजगारी कम हो।
बैंकिंग सुविधा का विस्तार किया जाए ताकि लोग अपने बच्चों को एकत्रित करके अधिक से अधिक निवेश करें और पूंजी निर्माण में दर की हो परिणाम स्वरूप रोजगार में भी वृद्धि होगी।
देश में पर्याप्त अधोसंरचना का विकास किया जाए ताकि विदेशी एवं देसी निवेश को प्रोत्साहन मिले जिससे भारत में नए नए उद्योग स्थापित होंगे और रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हैं
कुटीर एवं लघु उद्योग को बढ़ावा दिया जाए।
बेरोजगारी को खत्म करने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयास
महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी का अधिनियम- 2006
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
कौशल विकास एवं उद्यमिता के लिए राष्ट्रीय नीति 2015
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम
प्रधानमंत्री युवा योजना
ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम 1995
स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना 1997
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना-1999
महात्मागांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम
सितंबर 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम बना जिसकी शुरुआत वर्ष 2006 से की गई 2 अक्टूबर 2009 में इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम रखा गया।
इस अधिनियम में व्यक्तियों को काम करने का अधिकार दिया गया
इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान-:
प्रत्येक परिवार को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिन का रोजगार प्रदान किया जाएगा।,(अब 100 दिन की अवधि को 150 दिन कर दिया गया
रोजगार पाने के लिए आवेदन करने वाले को 15 दिन के अंदर काम दिया जायेगा अन्यथा काम ना मिलने पर रोजगार भत्ता दिया जाएगा
प्रत्येक रोजगार लाभार्थी को उसके आवास के 5 किलोमीटर के अंदर कार्य उपलब्ध करवाया जाएगा अन्यथा 5 किलोमीटर से अधिक दूरी होने पर किराया भत्ता दिया जाएगा।
कोई रोजगार का एक तिहाई रोजगार महिलाओं को प्रदान किया जाएगा
कार्य करने वाली श्रमिकों को पानी छाया चिकित्सीय सुविधा प्रदान की जाएगी।