प्राचीन भारत में भौगोलिक ज्ञान
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Toggleजानकारी के स्त्रोत -:
सिंधु घाटी सभ्यता की पुरातात्विक जानकारी।
चारों वेद।
उपनिषद, पुराण।
महाभारत रामायण।
पाणिनी की अष्टाध्याई।
कौटिल्य की अर्थशास्त्र।
प्राचीन भूगोल वेत्ताओं की रचना जैसे-
बराहमिहिर।
आर्यभट्ट।
ब्रह्मगुप्त।
भास्कराचार्य-।
परिचय-:
प्राचीन भारत के ग्रंथों में लगभग वर्तमान के समतुला सटीक भौगोलिक ज्ञान की अवधारणा मिलती है, जिसका विवरण निम्न है-:
खगोल(अंतरिक्ष)संबंधी ज्ञान-:
पुराणों में– नौ ग्रहों की कल्पना की गई है, तथा उनके रंग भी बताए गए हैं (मंगल लाल रंग का, शनि काले रंग का, बृहस्पति पीले रंग का)
वेदों में -: विषुव दिवस(संपूर्ण पृथ्वी में दिन रात बराबर) का उल्लेख है।
ऐतरेय ब्राह्मण में-: बताया गया है कि, सूर्य ना तो उदय होता है और ना ही अस्त होता है, बल्कि रात के समय दूसरी ओर चला जाता है।
आर्यभट्ट ने-: अपनी पुस्तक ‘सूर्य सिद्धांत’ में सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण का वास्तविक कारण बताया।
बराह मिहिर ने-: बताया कि चंद्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाता है और पृथ्वी सूर्य का।
वायुमंडल संबंधी ज्ञान-:
कालिदास के मेघदूत में-: छः ऋतुओं तथा मेघों की चर्चा की गई है।
1.बसंत ऋतु (मार्च-अप्रैल), 2.ग्रीष्म ऋतु, 3.वर्षा ऋतु, 4.शरद ऋतु, 5.हेमंत ऋतु, 6.शिशिर रितु।
बाल्मीकि रामायण में-: तीन (3)प्रकार के बादल तथा सात (7)प्रकार की पवनों की चर्चा की गई है।
पुराणों में-: ग्रीष्मकालीन, वर्षा कालीन तथा शीतकालीन मौसम की चर्चा की गई।
जल मंडल संबंधी ज्ञान-:
ऋग्वेद तथा यजुर्वेद में- महासागरों की संख्या 7 बताई गई है।
रामायण में-: कई स्थानों पर ज्वार-भाटा किस संकल्पना की गई है, जिसका कारण चंद्रमा को बताया गया है।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में-: महासागरीय तल में मिलने वाले मूंगा तथा मोती का वर्णन है।
स्थलमंडल संबंधी ज्ञान-:
महाद्वीपों का ज्ञान-:
पुराणों में समस्त पृथ्वी को सप्तद्वीपों में बांटा गया है
जम्मू दीप (भारतीय उपमहाद्वीप, यूरेशिया सहित)
पुष्कर द्वीप (पूर्वी चीन, पूर्वी साइबेरिया,जापान)
शक द्वीप (दक्षिण पूर्वी एशिया इंडोनेशिया सहित)
कुश द्वीप (भूमध्यसागरी देश तथा अरब प्रायद्वीप)
क्रौंच द्वीप (यूरोप)
प्लक्ष द्वीप (फारस की खाड़ी के देश)
शाल्मली द्वीप (सोमाली, मेडा गास्कर)
*इन सभी दीपों में जम्मू दीप सबके केंद्र में एवं सबसे बड़ा था।
पर्वतों का ज्ञान-:
पुराने में निम्न का उल्लेख है-:
मेरु पर्वत (पामीर)
हिमवान पर्वत(हिमालय)
माल्यवान पर्वत (सुलेमान)
निषध पर्वत (हिन्दूकुश)
हेमकूट पर्वत (कैलाश)
नील पर्वत (नीलगिरी)
*इन सभी पर्वतों में मेरु पर्वत सबसे मध्य में था, कमल की पंखुड़ी की भांति, उसके चारों ओर अन्य पर्वत स्थित थे।
नदियों का ज्ञान -:
ऋग्वेद के नदी सूक्त में – सिंधु,पुरूष्णी(रावी),अस्कनी (चिनाव),शुतुद्री(सतलुज),वितस्ता (झेलम), सरस्वती नदियों का वर्णन है।
मार्कंडेय पुराण में- यमुना, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा,कावेरी नदियों का वर्णन है।
जम्बूद्वीप का वर्णन करें ( 7 मार्क)
पुराणों में भारतीय उपमहाद्वीप को जम्बूदीप के नाम से जाना गया।
नामकरण-: जम्बू वृक्ष से हुआ।
स्थिति-: इसके पूर्व में पुष्कर द्वीप, दक्षिण पूर्व में शक द्वीप , पश्चिम में क्रौंच द्वीप, तथा दक्षिण पश्चिम में कुश द्वीप था।
सागरों की स्थिति-: उत्तर और दक्षिण में क्षरोद(खारा) सागर स्थित था।
प्रमुख देश-: मत्स्य पुराण के अनुसार जम्मू दीप 9 वर्ष(देश) में विभक्त था। (भारतवर्ष,हरिवर्ष,हिरण्यमयवर्ष,रम्यकवर्ष इलावृत, केतुमाल…आदि।)
पर्वत-: पुराने में निम्न का उल्लेख है-:
मेरु पर्वत (पामीर)
हिमवान पर्वत(हिमालय)
माल्यवान पर्वत (सुलेमान)
निषध पर्वत (हिन्दूकुश)
हेमकूट पर्वत (कैलाश)
नील पर्वत (नीलगिरी)
*इन सभी पर्वतों में मेरु पर्वत सबसे मध्य में था, कमल की पंखुड़ी की भांति, उसके चारों ओर अन्य पर्वत स्थित थे।
भारत के प्रमुख भूगोलवेत्ता एवं उनके भौगोलिक विचार-:
आर्यभट्ट-:
जन्म– चौथी सदी में पाटलिपुत्र में।
रचनाएं-: आर्यभट्टीयम एवं सूर्य सिद्धांत।
भौगोलिक विचार-:
बताया कि,पृथ्वी गोल है। और अपने अक्ष पर घूम रही है।
पृथ्वी की परिधि 24835 मील बताई, जो वर्तमान के आकलन के लगभग बराबर है।
सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण का वास्तविक कारण बताया।
वराहमिहिर-:
जन्म– उज्जैन में।
रचना -: पंचसिद्धांतिका, वृहतसंहिता,
भौगोलिक विचार-:
बताया कि चंद्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाता है और पृथ्वी सूर्य का।
पृथ्वी के किसी बिंदु से अक्षांश ज्ञात करने की विधि से परिचित थे।
ब्रम्हागुप्त-:
जन्म- भीनमाल, राजस्थान।
रचना-: बृम्हासिद्धान्त, खण्ड- खाद्य।
भौगोलिक विचार-:
पृथ्वी का व्यास की गणना की जो पृथ्वी के वास्तविक व्यास के लगभग बराबर है।
तेल जल और पारा से घूमने वाले दिक् सूचक यंत्र बनाए।
पृथ्वी के आकर्षण बल के बारे में बताया।
पृथ्वी द्वारा सूर्य के चक्कर में लगने वाले समय की गणना की और बताया कि पृथ्वी 365 दिन 6 घंटे में सूर्य का चक्कर लगाती है।
भास्कर प्रथम-:
जन्म- सातवीं सदी में महाराष्ट्र में।
रचना- महाभास्करीय,लघुभास्करीय, आर्यभट्टीयभाष्य।
भौगोलिक विचार-:
विभिन्न ग्रहों के अक्षांशीय झुकाव तथा परिक्रमण काल के बारे में बताया।
ग्रहों तथा तारों के बीच संयोजन को बताया।
विभिन्न ग्रहों के उदय एवं अस्त का विवरण दिया।
भास्कराचार्य(भास्कर द्वितीय)-:
जन्म- 12वीं सदी में,महाराष्ट्र में।
रचना-: सिद्धांत शिरोमणि,करणकुतूहल।
भौगोलिक विचार-:
पृथ्वी गोल है तथा पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण शक्ति मौजूद है।
उन्होंने संपूर्ण पृथ्वी को 360 डिग्री में विभाजित किया, इसी बाद में अक्षांश देशांतर का निर्धारण हो पाया।
{इस प्रकार,भारत प्राचीन काल से ही ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में विश्व गुरु की भूमिका निभाता आ रहा है।}