[स्वास्थ्य देखभाल एवं संरचना]
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Toggleप्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल-:
तीसरे, सतत विकास लक्ष्य का संबंधित स्वास्थ्य से है।
जिसमें प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का अहम योगदान होता है, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का तात्पर्य है- स्थानीय लोगों को स्वास्थ्य-शिक्षा तथा किफायती प्राथमिक उपचार सेवाएं देकर स्वास्थ्य में सुधार करना।
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के सिद्धांत-:
1. सामुदायिक भागीदारी- स्वास्थ्य योजना बनाने,उनका क्रियान्वयन करने तथा रखरखाव में सामुदाय कि लोगों की भागीदारी।
2.समान वितरण- सभी जाति, धर्म,अमीर-गरीब को समान रूप से स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना।
3. स्वास्थ्य संवर्धन-: इसके अंतर्गत स्वास्थ्य-शिक्षा,पोषण,स्वच्छता ,परिवार नियोजन आदि के माध्यम से स्वास्थ्य स्तर में सुधार करना।
4. उन्नत प्रौद्योगिकी- स्वास्थ्य के क्षेत्र में उन्नत प्रौद्योगिकी का प्रयोग।
5. अंतर क्षेत्रीय सहयोग – स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य में सुधार हेतु, शिक्षा क्षेत्र,कृषि क्षेत्र,
तथा रहवास क्षेत्र में सुधार।
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के तत्व-:
स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं के प्रति जागरूकता।
पर्याप्त पोषण की व्यवस्था।
सुरक्षित जल आपूर्ति एवं बुनियादी स्वच्छता।
संक्रामक रोगों के खिलाफ से टीकाकरण।
सामान्य बीमारियों का उपचार हेतु नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र की उपलब्धता।
आवश्यक दवाओं की किफायती कीमत के साथ, क्षेत्रीय उपलब्धता।
परिवार नियोजन एवं संस्थागत प्रसव की सेवाएं
भारत में स्वास्थ्य देखभाल के स्तर-:
प्राथमिक स्तर- इसके अंतर्गत आशा कार्यकर्ता , उषा कार्यकर्ता,एएनएम कार्यकर्ता तथा उप स्वास्थ्य केंद्र द्वारा प्रदान की जाने वाली स्वास्थ देखभाल शामिल है।
द्वितीय स्तर – इसके अंतर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तथा जिला अस्पतालों द्वारा प्रदान की जाने वाली चिकित्सा सेवा शामिल है।
तृतीय स्तर – इसके अंतर्गत मेडिकल कॉलेज, राज्य अस्पताल तथा एम्स आदि द्वारा प्रदान की जाने वाली उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवा शामिल हैं।
ग्रामीण चिकित्सालयों के स्तर-:
उप स्वास्थ्य केंद्र
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र
माध्यमिक स्वास्थ्य केंद्र
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र
जिला अस्पताल
उप स्वास्थ्य केंद्र-:
सामान्यता प्रत्येक 5000 से अधिक जनसंख्या वाले समतलीय, ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 3000 से अधिक जनसंख्या वाले पर्वतीय जनजातीय क्षेत्रों में एक उप स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की जाती है।
उप स्वास्थ्य केंद्र में कम से कम एक एएनएम या महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता एवं एक पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्ता का होना अनिवार्य होता है
स्वास्थ्य केंद्र के कार्य-:
सामान्य रोगों का इलाज करना।
गर्भवती महिलाओं की जांच एवं प्रसव सुविधाएं देना।
टीकाकरण एवं पल्स पोलियो अभियान चलाना।
सरकार द्वारा संचालित स्वास्थ्य संबंधी योजना एवं कार्यक्रमों की जानकारी लोगों को पहुंचाना तथा उनका क्रियान्वयन करना।
लोगों के मध्य स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता बढ़ाना।
वर्तमान में मध्यप्रदेश में 10226 उप स्वास्थ्य केंद्र हैं।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र
प्रत्येक 30,000 से अधिक जनसंख्या वाले समतलीय ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 20 हजार से अधिक जनसंख्या वाले पर्वतीय जनजातीय क्षेत्रों में 1 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की जाती है।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में न्यूनतम एक मुख्य चिकित्सा अधिकारी तथा उसकी सहायता के लिए 14 पैरामेडिकल स्वास्थ्य कर्मचारी होना आवश्यक है।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के कार्य-:
सामान्य रोगों के उपचार से संबंधित चिकित्सीय सेवा देना।
गंभीर मामलों में प्राथमिक उपचार के बाद तुरंत मरीज उच्च सुविधा वाले स्वास्थ्य केंद्र में स्थानांतरित करना।
गर्भवती महिलाओं की जांच एवं प्रसव सुविधा देना
स्थानीय स्तर पर फैलने वाली संक्रामक बीमारी की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण निरोधात्मक एवं उपचारात्मक उपाय अपनाना।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजनाओं का स्थानीय स्तर पर क्रियान्वयन करना।
स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता फैलाना जैसे स्वच्छता की जागरूकता परिवार नियोजन की जागरूकता।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र-:
सामान्यतः प्रत्येक120000 हजार से अधिक जनसंख्या वाले समतल क्षेत्रों में तथा 80,000से अधिक जनसंख्या वाले जनजातीय पर्वतीय क्षेत्रों में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की जाती है।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में न्यूनतम चार विशेषज्ञ चिकित्सक जैसे -: सर्जन ,फिजीशियन ,स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सक, बाल चिकित्सक एवं उनकी सहायता के लिए 21 पेरामेडिकल स्वास्थ्य कर्मचारी होना आवश्यक है।
मध्य प्रदेश में वर्तमान में लगभग 334 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के कार्य-:
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र द्वारा रेफर किए गए मरीजों का इलाज करना।
ऑपरेशन, एक्स-रे जैसी चिकित्सीय सुविधाएं देना।
……….।
जिला अस्पताल-:
प्रत्येक जिले के स्तर पर एक जिला चिकित्सालय बनाया जाता है, इसमें अनेकों विशेषज्ञ मौजूद होते हैं -: सर्जन ,फिजीशियन ,स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सक, बाल चिकित्सक, दंत चिकित्सक, हड्डी रोग विशेषज्ञ।
यहां पर एक्स-रे अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी ब्लड बैंक जैसी सुविधाएं मौजूद होती हैं और पृथक पृथक विषय के रोगियों के लिए पृथक पृथक कक्ष होते हैं।
चलित अस्पताल-:
दूरस्थ क्षेत्र के लोगों को उनके कार्यस्थल में जाकर स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं देने के लिए, चलित अस्पताल की सेवा शुरू की गई, इसके अंतर्गत एंबुलेंस में ही मरीज को भर्ती करने उसकी खून जांच करने उसका इलाज करने की सुविधा होती है।
Doctor and paramedical staff-:
चिकित्सक-: चिकित्सक वह व्यक्ति होता है जिसके पास बीमारियों का उपचार करने,तथा स्वास्थ्य संबंधी सलाह देने की योग्यता होती है।
सहयोगी चिकित्सक-: सहयोगी चिकित्सक का तात्पर्य उन स्वास्थ्य कर्मचारियों से है जो अस्पताल में मुख्य चिकित्सक द्वारा दिए गए निर्देश के अनुसार रोगियों के उपचार में एवं अस्पतालों की प्रशासनिक कार्य में सहायक होते हैं। जैसे-: लैबोरेट्री चिकित्सक, एक्स-रे टेक्नीशियन, पर्ची बनाने वाला स्वास्थ्य कर्मचारी, कंपाउंडर
पैरामेडिकल स्टाफ के कार्य-:
रोगियों की व्यक्तिगत जानकारी का रिकॉर्ड रखना।
चिकित्सक के निर्देश पर रोगी की जांच करना।
चिकित्सक के निर्देश पर रोगी को इंजेक्शन एवं अन्य दवाइयां देना।
ग्रामीण स्वास्थ्य-:
भारत की लगभग 70% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत है जहां पर न्यूनतम दूरी पर स्वास्थ्य केंद्रों के अभाव एवं स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त प्रशिक्षित चिकित्सकों की कमी है जिस कारण से ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश लोग समय पर मूलभूत स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने में भी वंचित रह जाते हैं।
गांव के स्वास्थ्य केंद्रों में 53% नर्सों की कमी है
भारत के 8% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त डॉक्टर एवं मेडिकल स्टाफ नहीं है तथा 39% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में लैब टेक्नीशियन की नहीं है
31% ग्रामीण जनता ऐसी है जिसे स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 30 किलोमीटर से अधिक यात्रा करनी पड़ती है।
ग्रामीण स्वास्थ्य की दुर्दशा के कारण
स्वास्थ्य केंद्रों की भौगोलिक दूरी।
स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त अधोसंरचना एवं सुविधाओं का अभाव जैसे खून की जांच का अभाव।
पर्याप्त डॉक्टर एवं सहायक स्टाफ की कमी। या डॉक्टरों का देर से आना।
ग्रामीण लोगों ने सजगता की कमी।
औषधीयों का वहनीय कीमतों पर उपलब्ध ना होना। चिकित्सकों द्वारा गुप्त ने रूप से औषधियों का बैंचा जाना।
ग्रामीण क्षेत्र में चिकित्सकों के इच्छाशक्ति की कमी।
ग्रामीण स्वास्थ्य प्रणाली को सुधारने के लिए सरकारी प्रयास-:
दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण आरोग्य केंद्र स्थापित किए गए।
सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में महिला तथा बच्चों की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनेकों आंगनबाड़ियों एवं आशा कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की गई।
ग्रामीण क्षेत्रों में पोलियो जैसी टीकाकरण अभियान चलाए जा रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास विस्तार करने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की गई।
ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को उनके कार्यस्थल तक स्वास्थ सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए चलित अस्पताल एवं जननी एक्सप्रेस(108) की योजना शुरू की गई।