कृषि संबंधित आधारभूत संरचना
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पौधों को जन्म देने वाली संरचना होती है, क्योंकि जब बीजों को मिट्टी में डालकर उपयुक्त मौसमी दशा उपलब्ध कराई जाती है, तो वह बीच पेड़ पौधे में बदल जाला है,
वर्तमान में सर्वाधिक के गुणवत्ता वाली बीज वे बीज होते हैं, जिन्हें जेनेटिकली मोडिफाइ कहा जाता है (Genetically modified seed)
जी.एम. बीज के लाभ-:
इन बीों में कीट प्रतिरोधी क्षमता अधिक होती है
उच्च पैदावार वाले बीज होते हैं
इन बीजों द्वारा अनुउत्पादक क्षेत्रों में भी फसल उगाई जा सकती है
क्योंकि इन बीजों की फसलों में आसपास की पोषण शक्ति खींचने की क्षमता अधिक होती है
जीएम बीजों की हानि-:
इन बीजों का उपयोग सिर्फ एक बार ही किया जा सकता है अतः ये बीज काफी महंगे होते हैं जिसे छोटे किसान खरीदने में सक्षम नहीं होते
ये बीज मृदा की अधिक से अधिक पोषण शक्ति को शोक लेते हैं अतः इन बीजों के उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति कम होती है जिससे पुनः उसी भूमि पर सामान्य में फसल उप जाना मुश्किल होता है
फसल एवं उसके प्रकार
फसल –
किसी एक निश्चित कृषि योग्य क्षेत्रफल में उपजाये जाने वाले एक ही प्रकार के पौधों के समूह को फसल कहते हैं,
फसल के प्रकार
मौसम के आधार पर • रबी की फसल • खरीफ की फसल • जायद की फसल •
प्रयोग के आधार पर • खाद्यान्न फसल • व्यापारिक फसल रबी की फसल
रबी की फसल- अक्टूबर-नवंबर के समय बोई जाती है तथा मार्च-अप्रैल के माह में काट ली जाती है। जैसे- गेहूं, जौ, चना, सरसों, मटर, आलू, मैसूर आदि।
खरीफ की फसल- खरीफ की फसल जून-जुलाई में बोई जाती है और अक्टूबर-नवंबर में काट ली जाती है जैसे- धान, बाजरा, मक्का, ज्वार मूंगफली, सोयाबीन।
जायद फसलें- जायद की फसल मार्च में बोई जाती है तथा जून के माह में काट ली जाती है जैसे-तरबूज, खीरा, ककड़ी, मूंग, उड़द।
खादयान फसले- वे फसलें जो उपभोग के लिए बोई जाती हैं, उन्हें खाद्यान फसले कहते हैं, जैसे: गेहूं चावल, मक्का, दाल।
व्यापारिक फसलें- वे फसलें जो व्यापारिक लाभ कमाने के उद्देश्य से बोई जाती है उन्हें व्यापारिक फसलें कहते हैं जैसे: कॉफी, चाय, रबड़, जूट, कपास, तंबाकू, गन्ना।
फसल चक्र –
किसी निश्चित कृषि योग्य क्षेत्र पर, फसलों को एक ऐसे सुनियोजित क्रम में उगाना जिससे कि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे, फसल चक्र कहलाता है
जैसे अधिक सिंचाई वाली फसलों के बाद, कम सिंचाई वाली फसलों का उत्पादन करना
अधिक खाद चाहने वाली फसलों के बाद कम खाद चाहने वाली फसलों का उत्पादन,
फसल चक्र के लाभ –
मिट्टी की उर्वरा शक्ति वृद्धि होती है कीटों पर नियंत्रण किया जा सकता है
फसल की उत्पादकता बढ़ती है बाजार व्यवस्था के अनुकूल फसल चक्र अपनाकर उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त किया जा सकता है
उर्वरक (fertilizer) –
ऐसे रासायनिक पदार्थ जो पेड़ पौधों की वृद्धि एवं विकास में सहायक होते हैं उन्हें उर्वरक कहा जाता है,
उर्वरक के प्रकार-
नाइटोजन प्रधान्य उर्वरक- नाइट्रोजन प्रधान उर्वरक के प्रमुख योगिक निम्न हैं- यूरिया, अमोनियम सल्फेट, कैल्शियम नाइट्रेट,
पोटेशियम प्रधान्य उर्वरक
इसके प्रमुख योगिक निम्न हैं पोटेशियम नाइट्रेट, पोटेशियम क्लोराइड, पोटेशियम सल्फेट।
फास्फोरस प्रधान्य उर्वरक
इसके प्रमुख योगिक निम्न है सुपर फास्फेट • मिश्रित उर्वरक जैसे-: अमोनियम सुपर फास्फेट
जैविक उर्वरक –
भूमि की उर्वरता बढ़ाने वाले ऐसे पदार्थ जो जैविक अपशिष्टों के सड़ने गलने से बनते हैं, उन्हें जैविक उर्वरक कहते हैं
एक पर्यावरण एवं मृदा हितैषी होते हैं जैविक कषि वह कृषि जिसमें विभिन्न रसायनों के स्थान पर, जैविक खाद जैसे बर्मी खाद, गोबर मूत्र से बनी खाद, जैविक कचरे से बनी खाद आदि का उपयोग करके फसलों का उत्पादन किया जाता है
जैविक खेती के लाभ-
मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है तथा बढ़ती है
फसलों या सब्जियों की गुणवत्ता भी बढ़ती है फसलें व सब्जियां रसायन मुक्त एवं पौष्टिक होती है
यह विधि पर्यावरण हितैषी है इससे हमारे इकोसिस्टम न संतुलन बना रहता है
सिंचाई-:
कृत्रिम रूप से फसल को जल प्रदान करना सिंचाई कहलाता है।
सिंचाई की आवश्यकता
निम्नलिखित कारणों से सिंचाई की आवश्यकता होती है
मानसूनी वर्षा की अनिश्चितता व अनियमितता के कारण
मानसूनी वर्षा में लंबा अंतराल होने के कारण
अपर्याप्त वर्षा होना, भारत की लगभग दो तिहाई क्षेत्र पर पर्याप्त वर्षा नहीं होती इसलिए सिंचाई करना पड़ता है मानसूनी वर्षा एक निश्चित समय अवधि (3माह) के लिए ही होती है अन्य समय अवधि में फसलों को कृत्रिम तरीके से पानी देना पड़ता है
कुछ विशेष फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए अत्यधिक पानी की आवश्यकता होती जैसे- धान, गन्ना। अतः सिंचाई करना आवश्यक होता है
सिंचाई के साधन (स्त्रोत)-:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का कोई संचित क्षेत्र 36 प्रतिशत है। और
भारत के कुल सिंचित क्षेत्र में से
45% सिंचाई नलकूप द्वारा होती है
26% नहरों दवारा
18% सिंचाई कुआं द्वारा
एवं 3.40 प्रतिशत सिंचाई तालाबो द्वारा होती है
मध्य प्रदेश का कुल 37% कृषि क्षेत्र सिंचित है।
सिंचाई के प्रमुख स्त्रोत-
तालाब –
तालाब वर्षाके जल को संग्रहण करने वाला विशाल गड्ढा होता है। भारत में तालाब द्वारा सर्वाधिक सिंचाई दक्षिण भारत में (विशेषकर तमिलनाडु में) होती है.
तलाब दवारा सिंचाई से यह लाभ होता है की बिना किसी लागत के वर्षा जल स्वत ही प्राकृतिक रूप से इनमें भर जाता है , जिनका उपयोग सिंचाई के लिए कर सकते हैं
किंतु तलाब से केवल मौसमी सिंचाई की जा सकती है क्योंकि तालाब गर्मी में सूख जाते हैं।
कुआं-
धरातल में लगभग 10 फीट ब्यास का खोदा गया गहरा गड्ढा कुंआ कहलाता है।
और भारत में कुएं द्वारा सिंचाई उन क्षेत्रों में की जाती है जहां पर भूमिगत जलस्तर ऊपर होता है
भारत में कुएं द्वारा सिंचाई मुख्यता गंगा की तटीय मैदान में की जाती है।
बोरवेल-
यह धरातल पर खोदा गया गहरा छिद्र होता है। और भारत की लगभग 40% सिंचाई नलकूप द्वारा ही की जाती है,
नलकूप एक सामान्य किसान भी खुदवाकर अपनी सिंचाई कर सकता है
नहर –
गहरी व नदियों की समान लंबी नाली को नहर कहा जाता है।
भारत में नहर सिंचाई का दूसरा सबसे अधिक लोकप्रिय साधन है
भारत में नेहरों से लगभग 26% सिंचाई होती है।
सिंचाई के विभिन्न प्रणाली
1. पंपिंग दवारा सतही सिंचाई
इस सिंचाई प्रणाली में किसी जल स्त्रोत पर विद्युत पंप रखकर, पंप के माध्यम से पाइप द्वारा खेर्तों की सतह में जल बहाया जाता है यह सिंचाई प्रणाली सघन फसल (धान, गेहूं) के लिए उपयुक्त होती है किंतु इससे पानी का अपव्यय अधिक होता है।
2. नालीनुमा सिंचाई
इस सिंचाई प्रणाली के अंतर्गत खेलों में नाली नमक क्यारियां बनाकर उनमें जल प्रवाहित किया जाता है।
यह सिंचाई प्रणाली रेखीय क्रम में लगे पौधों की फसल के लिए उपयुक्त है।
सिंचाई प्रणाली सघन फसलों के लिए उपयुक्त नहीं है
3. टपकन सिंचाई
इस प्रणाली में मुख्य पाइप को पतले पाइपों से जोड़कर तथा पतली पाइपों में माइक्रोस्प्रेयर लगाकर उन्हें पौधों की जड़ों के पास फिट किया जाता है और सिंचाई की जाती है
टपकन प्रणाली के लाभ–
जल के उपयोग की दक्षता 80 से 90% तक रहती है इसीलिए कम पानी में अधिक से अधिक क्षेत्र सिंचित किया जा सकता है, पानी का वाष्पीकरण नहीं हो पाता,
श्रम की बचत होती है,
पौधे के आसपास खरपतवार नहीं उगते क्योंकि उन्हें पानी नहीं मिल पाता,
कोई मृदा अपरदन नहीं होता,
उर्वरकों को पानी में मिलाकर फसलों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है,
टपकन प्रणाली के प्रयोग की समस्याएं
इसका उपयोग कम सघन फसलों (जैसे सब्जी के पौधे) में ही किया जा सकता है.
इसकी लागत भी अधिक होती है और इससे फिट करना काफी मुश्किल होता है
मिट्टी कंकड़ पत्थर फस जाने पर यह प्रणाली ठीक से काम नहीं करती,
4. फुहारा सिंचाई फुहारा सिंचाई प्रणाली इस सिंचाई प्रणाली में स्प्रिंकल बाल्ब द्वारा चारों तरफ पानी के फुहारा बरसा कर सिंचाई की जाती है.
इसके लाभ
जल के उपयोग की दक्षता 80% तक रहती है
इस प्रणाली का उपयोग उच्चावच वाले खेतों में भी किया जा सकता है
श्रम की बचत होती है मृदा अपरदन नगण्य में होता है
समस्याएं
लागत अधिक आती है हवा के तेज होने पर इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता
पानी का वाष्पीकरण अधिक होता है
भारत मैं सिंचाई से संबंधित समस्याएं
बरसात का अधिकांश जल बहकर समुद्र में चला जाना जिससे भूमिगत जल स्तर कम होना अंतर राज्य नदी जल विवाद होना जलाशयों में गाद जमा हो जाना
नदी बांध परियोजना का उचित रखरखाव व संरक्षण ना होने से लगभग आधा जल अपव्यय हो जाता है सिंचाई के लिए पर्याप्त विद्युत उपलब्ध ना हो पाना।
समस्याओं का समाधान
वर्षा के जल को संचित करके भूमिगत जल स्तर ऊपर बढ़ाने के लिए गहरे जलाशयों का निर्माण किया जाए तथा घरों की छतों के बरसाती पानी को पाइप द्वारा जलाशयों तक पहुंचाया जाए
अंतर राज्य जल विवाद समाप्त करने के लिए नदियों का राष्ट्रीयकरण किया जाए
प्रतिवर्ष जलाशयों की सफाई करवाई जाए नदी परियोजना का उचित रखरखाव किया जाए ताकि उनके जल का अपव्यय ना हो सिंचाई के लिए
उच्च दक्षता वाली तकनीकों का उपयोग किया जाए जैसे टपकन प्रणाली फुहारा प्रणाली
सिंचाई के लिए विद्युत मोटर चलाने हेतु सोलर सिस्टम प्लांट लगाए जाएं।
बाढ़ और सूखे क्षेत्र के मध्य संतुलन बिठाने के लिए दोनों क्षेत्रों के बीच से नहर निकाली जाए ताकि बाढ़ का पानी सूख क्षेत्र पहुंच सके,
सिंचाई के लिए भारत सरकार दवारा चलाई जाने वाली योजनाएं
प्रधानमंत्री कषि सिंचाई योजना– इस योजना के तहत हर खेत को पानी एवं प्रत्येक बूंद अधिक फसल का लक्ष्य रखा गया है
किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान इस अभियान
उद्देश्य- सोलर सिस्टम प्लांट द्वारा विद्युत प्राप्त करके सिंचाई को बढ़ावा देना है
कषि विपणन (agriculture marketing)-
कृषि विपरण में कृषि उत्पादों को संग्रहित करना, उनका परिवहन करना, उनका भंडारण करना, उनका वितरण करना, उनका प्रसंस्करण करना आदि शामिल है।
कृषि क्षेत्र से संबंधित प्रमुख संस्थान Commission for agriculture cost and price (CACP)
(कृषि लागत एवं मुल्य आयोग) कृषि उत्पादों का मूल्य निर्धारित करने के उद्देश्य से खाद्य मूल्य नीति समिति द्वारा वर्ष 1965 में कृषि मूल्य आयोग की स्थापना की गई
तथा 1985 में इस कृषि मूल्य आयोग का नाम बदलकर कृषि लागत एवं मूल्य आयोग रख दिया गया।
यह आयोग कृषि उत्पादों की न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण से संबंधित तथा कृषि विभाग से संबंधित केंद्र सरकार को सलाह देता है
न्यूनतम समर्थन मूल्य –
फसल उत्पादन के पूर्व निश्चित वह न्यूनतम मूल्य जिस पर सरकार किसानों से फसलों का क्रय करती है।
वर्तमान में 26 फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में रखा गया है
न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के लाभ
किसान फसलों के मूल्य को लेकर चिंतित नहीं रहते
किसानों को अपनी फसल का पर्याप्त मूल्य मिल पाता है
खाद्यान्न और अन्य फसलों के मूल्यों में स्थिरता लाने में सहायक है
इससे किसानों और सरकार के बीच सीधा संपर्क होता है जिससे मध्यस्थ के व्यापारी द्वारा किसानों का लाभ हानि की संभावना कम हो जाती है
किसान कॉल सेंटर
हमारे देश में किसान कॉल सेंटर का प्रारंभ वर्ष 2004 से किया गया।
यह सेंटर किसानों को कृषि क्षेत्र से संबंधित सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान देते हैं।
किसान कॉल सेंटर का टोल फ्री नंबर है:1800-180-1551
इसके अलावा विभिन्न प्रकार की कृषि संबंधी जानकारी जैसे– उन्नत बीज की जानकारी, खरपतवार की जानकारी, कृषि तकनीक की जानकारी, मौसम की जानकारी आदि उपलब्ध कराने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के मोबाइल एप्स लांच किए गए जैसे- किसान सुविधा एप, एग्री मार्केट एप, फसल बीमा ऐप, पूसा कषि एप
कषि से संबंधित प्रमख केंद्रीय योजना –
ब्याज अनदान योजना
इस योजना के तहत यदि किसान 1 वर्ष के लिए अधिकतम ₹300000 तक का कृषि ऋण लेता है तो कुल 9% ब्याज दर में से 4% ब्याज सरकार भरेगी।
किसान क्रेडिट कार्ड योजना
प्रधानमंत्री कषि सिंचाई योजना इसके तहत कृषि सिंचाई को बढ़ावा दिया जा रहा है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना इसके तहत प्राकृतिक आपदा या कीटो, फसली रोगों जैसी आपदाओं के कारण फसल में होने वाले नुकसान के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाई जाती है।
मुदा स्वास्थ्य कार्ड योजना इसके तहत नेता परीक्षा को बढ़ावा देकर मृदा को अधिक उपजाऊ एवं उर्वरक बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
मेरा गांव मेरा गौरव कार्यक्रम इस कार्यक्रम के तहत 100 किलोमीटर दूरी के अंदर के प्रत्येक 5 गांव में एक कृषि वैज्ञानिकों की टीम गठित की जाएगी जो वहां की किसानों का मार्गदर्शन करेंगी।