मध्य प्रदेश के प्रमुख प्राचीन राजवंश
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Toggleगर्दभिल्ल वंश-
यह प्राचीन कालीन मध्य प्रदेश का एक प्रमुख राजवंश था।
जानकारी के स्रोत -:
विष्णु पुराण –गंधर्व सेन का वर्णन मिलता है।
वायु पुराण – सप्तगर्भभिल्ल का वर्णन मिलता है।
जैन ग्रंथ थेरावली – मेरूतुंग की रचना ,जिसमें कल्पाचार्य तथा गर्दभिल्ल के युद्ध का वर्णन मिलता है।
कथा सरितसागर –यह सोमदेव की रचना है, जिसमें महेंद्रादित्य का वर्णन मिलता है।
भृतहरि की रचनाएं- श्रृंगार शतक, नीति शतक, वैराग्य शतक , महाभाष्यप दीपिका व वेदांत सूत्र वृति।
समयकाल-:
गर्दभिल्ल वंश का समयकाल प्रथम सदी ईसा पूर्व के आसपास रहा है।
राजधानी–: इस वंश की राजधानी उज्जैन ( मालवा) थी।
संस्थापक-: गर्दभिल्ल/महिंद्राचार्य/ गंधर्व सेन।
प्रमुख शासक-
गर्दभिल्ल/महिंद्राचार्य/ गंधर्व सेन।
भृतहरि
विक्रमादित्य
विक्रमचरित्र या धर्मादित्य
भाईल
नांगल
नाहन्द्र
गर्दभिल्ल -:
गर्दभिल्ल वंश के संस्थापक थे।
उज्जैन को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया।
देवास के पास गंधर्वपुरी नगर बसाया।
गन्धर्वी विद्या में निपुण थे।
थेरावली के अनुसार-धार के जैनाचार्य – “कालपाचार्य’ की बहन सरस्वती को गर्दभिल्ल ने बंदी बनाया, इसके विरोध में कालपाचार्य ने शकों से मिलकर गर्दभिल्ल को पराजित किया, बाद में काल्पाचार्य सातवाहन वंश में चला गया।
भृतहरि-:
गर्दभिल्ल के पुत्र थे, तथा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे।
ये अपनी पत्नी पिंगला के वियोग में संयासी बन गए थे।
भृतहरि की रचनाएं–
श्रृंगार शतक,
नीति शतक,
वैराग्य शतक ,
महाभाष्यप दीपिका
वेदांत सूत्र वृति।
विक्रमादित्य -:
न्याय, दानशीलता एवं उदारता के लिए प्रसिद्ध थे।
जन्म – 102 ईसा पूर्व में।
पिता- गर्दभिल्ल
इन्होंने 57 ईसा पूर्व में ‘विक्रम संवत’ चलाया था; जिसे कृत संवत या मालव संवत भी कहा जाता है।
शकों को पराजित करके शकारि की उपाधि धारण की थी।
सिंहासन बत्तीसी में विराजमान होने वाले राजाओं में शामिल थे।
अपने दरबार में नवरत्नों को संरक्षण दिया था , विक्रमादित्य की नवरत्न-
वराह मिहिर
वरुचि
धनवंतरी
शंकु
क्षपणक
कालिदास
बेतालभट्ट
अमर सिंह
.
नागवंश-
यह भी प्राचीन कालीन मध्य प्रदेश का एक प्रमुख राजवंश था।
नागवंश के स्रोत-
विष्णु पुराण – पद्मावती, कांतिपुर तथा मथुरा की नाग शासको का वर्णन मिलता है।
भवभूति की मालती माधव- पद्मावती के नाग राजाओं का वर्णन मिलता है।
पुरातात्विक स्रोत- विदिशा एवं पवाया से नाग वंश के सिक्के मिले हैं।
समयकाल-:
नाग वंश का शासन काल दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के समय का माना जाता है।
क्षेत्र-: विदिशा से लेकर मथुरा तक के क्षेत्र में नाग वंश का शासन था।
राजधानी- विदिशा, बाद में पद्मावती बनी।
संस्थापक- वृषनाग (विदिशा को राजधानी बनाया)
प्रमुख शासक-
वृषनाग,
भीमनाग,
स्कंदनाग,
भवनाग,
गणपति नाग,
वृषनाग-
नाग वंश का संस्थापक ,
विदिशा को अपनी राजधानी बनाया।
इसके सिक्के विदिशा से मिले हैं।
भीमनाग-
राजधानी परिवर्तन करके विदिशा से पद्मावती यानि ग्वालियर को बनाया।
भवनाग–
वाकाटक शासन प्रवरसेन के पुत्र से अपनी पुत्री का विवाह किया।
10 अश्वमेध यज्ञ करवाए।
गणपतिनाग-
नाग वंश का अंतिम शासक था।
समुद्रगुप्त ने इसे पराजित कर यहां गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया।
ओलिकर वंश-
प्राचीन कालीन मध्य प्रदेश का एक प्रमुख राजवंश।
ओलिकर वंश की जानकारी के स्रोत-
दासपुर अभिलेख – वत्सभूति द्वारा रचित है, इससे सिंहवर्मा की जानकारी प्राप्त होती है।
रिस्थल अभिलेख – यह मंदसौर में अवस्थित है, इससे प्रकाश वर्मा की जानकारी प्राप्त होती है।
सोंधरी अभिलेख- यह भी मंदसौर में अवस्थित है, इससे यशोवर्मा की जानकारी प्राप्त होती है।
समयकाल- ओलिकर वंश का समयकाल चौथी से पांचवी सदी ईसा पूर्व के आसपास रहा।
क्षेत्र-: मालवा के क्षेत्र में, राजधानी मंदसौर थी।
संस्थापक -: जयवर्मन।
प्रमुख शासक-:
जयवर्मन-यह ओलिकर वंश का संस्थापक था।
सिंहवर्मा – यह जयवर्मन का पुत्र था, तथा इसमें सिंहविक्रांत की उपाधि धारण की थी।
नरवर्मन –
विश्व बर्मन –इसने गंगाधर अभिलेख में स्वयं को स्वतंत्र शासक बताया है।
बंधुवर्मन –
इन्होंने लाट प्रदेश की रेशम बुनकरों को बुलाया था।
रेशम बुनकरों ने ही दशपुर में सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया है।
प्रकाश धर्मन –
इसने तोरमार हूण को पराजित किया था।
तथा शिव मंदिर भी बनवाया था।
तथा स्वयं भागवत प्रकाश की उपाधि धारण की थी।
यशोधर्मन-
इसने मिहिरकुल को पराजित किया था।
तथा अपने साम्राज्य का विस्तार उत्तर में हिमालय से, दक्षिण में महेंद्रगिरी तक, पूर्व में असम से, पश्चिम में अरब सागर तक, किया।
परिव्राजक राजवंश-
यह भी प्राचीन कालीन मध्य प्रदेश का एक प्रमुखराजवंश था।
जानकारी के स्रोत-
खोह अभिलेख सतना।
भूमरा अभिलेख सतना।
परिव्राजक वंश का समयकाल- परिव्राजक वंश पांचवी से छठवीं शताब्दी तक शासन किया।
परिव्राजक वंश का क्षेत्र– इस वंश का शासन मुख्य रूप से बुंदेलखंड के क्षेत्र में था, जिसकी राजधानी- पन्ना थी।
संस्थापक- देवाढ़य।
प्रमुख शासक-:
हस्तिन –
यह परिव्राजक वंश का सबसे प्रतापी शासक था।
इसने वर्तमान के पूर्वी मध्य प्रदेश यानि कि महाकौशल क्षेत्र के 18 आटविक राज्यों को जीता था।
इसने महाराज की उपाधि धारण की थी।
संक्षोभ-
परिव्राजक वंश का अंतिम ज्ञात शासक।
अपने पिता हस्तिन के 18 राज्यों को अक्षुण बनाए रखा।
उच्च कल्प वंश-
यह भी प्राचीन कालीन मध्य प्रदेश का प्रमुख राजवंश था।
जानकारी के स्रोत- कालीतलाई ताम्र लेख, जबलपुर।
समयकाल- पांचवी से छठवीं शताब्दी ईस्वी।
उच्चकल्प वंश का क्षेत्र-उच्च कप वंश का शासन क्षेत्र बखेलखंड रहा, जिसकी राजधानी उचेहरा ,(सतना) थी।
संस्थापक- ओघदेव।
प्रमुख शासक-
ओघदेव- इस वंश का संस्थापक।
कुमारदेव – ओघदेव-्का उत्तराधिकारी।
जयस्वामिनी –
व्याघ्रराज-उच्चकल्प वंश का सबसे प्रतापी शासक, वाकाटक नृपति के मांडलिक थे।