वंश/Descent एवं कुल/ Lineage-
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वंश का अर्थ-:
वंश समाज स्वीकृत वह जन्मजात पहचान है, जो हमें पूर्वजों या माता-पिता से प्राप्त होती है।
वंश की विशेषताएं-:
वंश एक समाज स्वीकृत पहचान है।
वंश का संबंध पूर्वजों से होता है।
वंश की सदस्यता जन्मजात होती है।
वंश में केवल रक्त संबंधियों को ही सम्मिलित किया जाता है।
सभी वंश संबंधों को सही सामाजिक स्वीकृति की प्राप्ति होती है
वंश के आधार पर ही विवाह संबंध, यौन संबंध एवं संपत्ति के अधिकार का निर्धारण होता है।
वंश के सदस्यों को एक निश्चित गोत्र होता है।
वंश के प्रकार-:
एक पक्षीय वंश -: जब वंश की गणना यह नामकरण, माता या पिता दोनों में से किसी एक पक्ष के आधार पर होता है।
पितृपक्षीय वंश-: जब नवजात पीढ़ी के बच्चों के वंश का नामकरण पिता पक्ष के आधार पर होता है।
उदाहरण-भारतीय हिंदू समाज।
मातृपक्षीय वंश-: जब नवजात पीढ़ी के बच्चों के वंश का नामकरण माता पक्ष के आधार पर होता है।
उदाहरण- भारत की गारो खासी एवं नायर जनजाति के समाज में।
द्विपक्षीय वंश-: जब वंश का नामकरण माता और पिता दोनों के आधार पर होता है।
उदाहरणार्थ – अफ्रीका की अशांटी और अमोर जनजाति।
समाजशास्त्र में वंश का महत्व-:
उत्तराधिकार की स्थिति के निर्धारण में सहायक।
वंशावली जानने में उपयोगी; (किसी राजा महाराजा की)
संबंधियों के प्रति कर्तव्य निर्धारण में सहायक।
विवाह के स्वरूप या लोगों के मध्य मधुरता का पता लगाने में सहायक।
उपयुक्त वैवाहिक संबंध की स्थापना में सहायक।
नवजात पीढ़ी के बच्चों के वंश निर्धारण में उपयोगी।
कुल/ Lineage-
कुल का अर्थ-:
कुल वंशों का समूह होता है, इसके सभी सदस्य परस्पर रक्त संबंधी होते हैं।
कुल की विशेषताएं-:
कुल का आकार, वंश की तुलना में अधिक बड़ा होता है।
कुल में पीडिया की संख्या स्पष्ट निर्धारित नहीं होती है।
कुल की सदस्यता जन्मजात होती है।
कुल के सदस्य परस्पर रक्त संबंधी होते हैं।
कुल के सदस्य आपस में भावनात्मक आधार पर जुड़े होते हैं; इनमें हम की भावना देखने को मिलती है।
प्रत्येक कल के सदस्य सम गोत्री होते हैं , अर्थात सभी का एक ही गोत्र होता है।
वंश तथा कुल में अंतर-:
आधार | वंश | कुल |
आकार | उपेक्षाकृत छोटा सामाजिक समूह। | उपेक्षाकृत बाद सामाजिक समूह |
विस्तार | वंश अधिक विस्तृत होते हैं, तो उन्हें कुल कहा जाता है | अनेक वंशों का समूह ही कल कहलाता है, |
आंतरिक संरचना | एक वश में अनेक वंशावलियां हो सकती हैं। | एक कुल में अनेक वंश हो सकते हैं। |
प्रचलन | सभी समाजों में प्रचलित है। | कुछ समाजों में इसका प्रचलन नहीं है |
पीढ़ियों की संख्या | इसमें पीढ़ियों की संख्या निर्धारित होती है। | इसमें पीढ़ियों की संख्या निर्धारित नहीं होती है। |
कुल का महत्व
उत्तराधिकार की स्थिति के निर्धारण में सहायक।
संबंधियों के प्रति कर्तव्य निर्धारण में सहायक।
वंशावली जानने में उपयोगी; (किसी राजा महाराजा की)
विवाह के स्वरूप या लोगों के मध्य मधुरता का पता लगाने में सहायक।
उपयुक्त वैवाहिक संबंध की स्थापना में सहायक।
नवजात पीढ़ी के बच्चों के वंश निर्धारण में उपयोगी।