गोत्र/Clan
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Toggleगोत्र का अर्थ-:
गोत्र एक पक्षी रक्त संबंधियों का वह समूह है, जो एक पूर्वज से अपनी उत्पत्ति मानता हो; यह पूर्वज वास्तविक या काल्पनिक संजीव या निर्जीव किसी भी प्रकार का हो सकता है।
गोत्र की उत्पत्ति-:
गोत्र शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ऋग्वेद में मिलता है, प्राचीन काल में चार ऋषियों के नाम पर गोत्र परंपरा प्रारंभ हुई थी।
अंगिरा
कश्यप
वशिष्ठ
भृगु।
गोत्र के लक्षण/विशेषताएं-:
एक सामान्य पूर्वज- प्रत्येक गोत्र का संबंध किसी ने किसी एक पूर्वज से होता है, यह पूर्वज मनुष्य, प्राणी ,संजीव ,निर्जीवित या काल्पनिक किसी भी प्रकार का हो सकता है।
एक पक्षीय समूह-: गोत्र में पितृपक्ष या माता पक्ष किसी एक पक्ष की सदस्यों को सम्मिलित किया जाता है।
रक्त संबंधियों का समूह-: गोत्र में केवल रक्त संबंधियों को ही शामिल किया जाता है, किंतु विवाह के बाद पत्नी का गोत्र भी पति के गोत्र के आधार पर हो जाता है।
विशिष्ट नाम-: प्रत्येक गोत्र का कोई ना कोई विशिष्ट नाम होता है जैसे- कश्यप गोत्र ,वशिष्ट गोत्र आदि।
उत्पत्ति संबंधी कथा-: प्रत्येक गोत्र की उत्पत्ति के संबंध में कोई ना कोई कथा या टोटम प्रचलित होता है।
‘हम’ की भावना-: गोत्र के सदस्यों में आपसी हम की भावना होती है।
गोत्र के प्रकार-:
पितृवंशी गोत्र – जब पिता के पक्षी से गोत्र का आधार होता है तो इसे पितृवंशी गोत्र कहते हैं।
मातृ वंशीय गोत्र-जब माता के पक्ष से गोत्र का आधार होता है तो इसे मातृ वंशीय गोत्र कहते हैं।
गोत्र का महत्व -:
उत्तराधिकार की स्थिति के निर्धारण में सहायक।
विवाह के स्वरूप या लोगों के मध्य मधुरता का पता लगाने में सहायक।
संबंधियों के प्रति कर्तव्य निर्धारण में सहायक।
वंशावली जानने में उपयोगी; (किसी राजा महाराजा की)
उपयुक्त वैवाहिक संबंध की स्थापना में सहायक।
नवजात पीढ़ी के बच्चों के वंश निर्धारण में उपयोगी।