धर्म/ religion
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Toggleधर्म का अर्थ-:
धर्म के बारे में कहा जाता है- “धारयते इति धर्म:” अर्थात, जो धारण करने योग्य है वही धर्म है।
इस प्रकार धर्म का अर्थ हुआ- नैतिक मूल्यों को धारण करते हुए, अपने कर्तव्यों का निष्ठा पूर्वक पालन करना।
उदाहरण के लिए-
विद्यार्थी का धर्म पढ़ाई करना है।
किसान का धर्म बेहतर कृषि करना।
पुत्र का धाम माता-पिता की सेवा करना है।
समाजशास्त्र दुर्खीम ने अपनी पुस्तक “द एलीमेंट्री फॉर्म्स ऑफ़ रिलीजियस लाइफ” में धर्म का सिद्धांत दिया।
दुर्खीम के अनुसार जब लोगों का समूह, किसी वस्तु या क्रिया को पवित्र मानते हुए उसके प्रति विश्वास रखता है, वहीं धर्म है।
धर्म की विशेषताएं-:
अलौकिक शक्ति मेंविश्वास-: धर्म की सबसे प्रमुख विशेषताएं है, कि-धर्म में एक ऐसी शक्ति पर विश्वास किया जाता है, जो अलौकिक एवं दिव्य चरित्र वाली होती है।
पवित्रता की धारणा- धर्म का संबंध पवित्रता से होता है, अतः धर्म से संबंधित वस्तुओं, क्रियाओं एवं पुस्तकों को पवित्र माना जाता है।
धार्मिक क्रियाएं- प्रत्येक धर्म से संबंधित कुछ कर्मकांड,पूजा पाठ आदि होते हैं।
संवेदनात्मक भावनाएं –धर्म में भावना प्रधान होता है, ना की तर्क प्रधान।
निषेध-: धर्म के अंतर्गत अनुच्छेद कर्मों का निषेध होता है जैसे– दुराचार, बेईमानी आदि।
धर्म का महत्व एवं उपयोगिता -:
नैतिकता कीस्थापना- धर्म के अंतर्गत नैतिक मूल्यों को वरीयता दी जाती है, जो नैतिकता की स्थापना में सहायक है
सामाजिक मूल्यों की रक्षा-धर्म में पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक की कल्पनाओं द्वारा, सामाजिक नियमों को बनाए रखने की बाध्यता को प्रोत्साहित किया जाता है
राष्ट्रीय एकता –एक धर्म के सभी लोग आपस में संगठित होते हैं जो राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में सहायक है।
मानसिकतनावों से मुक्ति-: धर्म के अंतर्गत भक्त ईश्वर के सम्मुख अपना सुख-दुख प्रकट करके, मानसिक तनावों से मुक्ति पाता है।
व्यक्तित्व विकास- धर्म न केवल समाज को संगठित रखता है बल्कि व्यक्तित्व के विकास में भी अहम भूमिका निभाता है।
धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियां या बदलाव-:
धार्मिक कट्टरता कम होना।
धार्मिक कर्मकांड का सरलीकरण।
मानवतावादी धर्म का विकास।
धार्मिक व्यवसायीकरण, एवं धार्मिक राजनीति को बढ़ावा मिलना।
धार्मिक तार्किकता को बल मिलना।
इस्माइल दुर्खीम का धर्म का सिद्धांत -:
समाजशास्त्र दुर्खीम ने अपनी पुस्तक “द एलीमेंट्री फॉर्म्स ऑफ़ रिलीजियस लाइफ” में धर्म का सिद्धांत दिया।
दुर्खीम के अनुसार जब लोगों का समूह, किसी वस्तु या क्रिया को पवित्र मानते हुए उसके प्रति विश्वास रखता है, वहीं धर्म है।
धर्म में अपवित्र वस्तु को पवित्र वस्तु से दूर रखने का प्रयास किया जाता है।
धर्म की शक्ति सामूहिक क्रिया में निहित होती है।
(धर्मनिरपेक्षता)
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ -:
धर्मनिरपेक्षता का शाब्दिक अर्थ है धार्मिक क्रियाकलापों व विश्वासों के प्रति तटस्थ रहना।
अर्थात व्यक्तियों को किसी एक धर्म विशेष को मानने के लिए बाध्य ना करना, बल्कि सभी धर्म के प्रति सम्मान का भाव रखना।
राधाकृष्णन के अनुसार-: धर्मनिरपेक्ष होने का तात्पर्य अधर्मी होना नहीं है, बल्कि इसका तात्पर्य पूर्णतः आध्यात्मिक होना है।
धर्मनिरपेक्ष राज्य-:
वह राज्य जिसे अपना कोई विशेष धर्म नहीं होता बल्कि वह सभी धर्म का सम्मान करता है।
उदाहरण के लिए भारत।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक धर्मनिरपेक्षता संबंधी प्रावधान किए गए हैं जो एक प्रकार का मौलिक अधिकार है।
धर्मनिरपेक्षता राष्ट्र निर्माण में बाधा के रूप में-:
धार्मिक अन्याय- धर्मनिरपेक्ष राज्य व्यक्तियों की धार्मिक मामलों में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करता इसलिए आंतरिक धार्मिक अत्याचार होते रहते हैं, जैसे- मुसलमानों में चार शादी तक की अनुमति होने से महिलाओं के प्रति अत्याचार।
धर्मनिरपेक्षता से वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा मिलता है।
राष्ट्र पहचान का खतरा- धर्मनिरपेक्षता से बहुतसंख्क लोगों के धर्म का ज्यादा बोलबाला नहीं रहता, जो राष्ट्र की धार्मिक पहचान के लिए खतरा है।
धर्म का प्रभाव
सकारात्मक प्रभाव -:
धार्मिक एकता को बढ़ावा,जो राष्ट्रीय एकता का आधार है।
नैतिकतावादी समाज की स्थापना।
सकारात्मक कर्मों की प्रेरणा।
धर्म से सामाजिक पवित्रता की प्रकृति को बढ़ावा।
धर्म संस्कृति संरक्षण में सहायक के रूप में भी भूमिका निभाता है।
नकारात्मक प्रभाव-:
धार्मिक कट्टरता , संप्रदायवाद आदि।
विभिन्न धर्म में मतभेद से आपसी झगड़े।
धार्मिक अंधविश्वास जैसे- सती प्रथा, देवदासी प्रथा का प्रचलन।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश आदि।
विवाह पर धर्म का प्रभाव
विवाह पर हिंदू धर्म का प्रभाव -:
विवाह इस धार्मिक संस्कार के रूप में माना जाना।
विधवा पुनर्विवाह का निषेध।
अंतरजातीय विवाह प्रतिबंधित।
विवाह विच्छेद पर प्रतिबंध।
सती-प्रथा का प्रचलन।
समगोत्री विवाह निषेध।
विवाह पर मुस्लिम धर्म का-:
बाल विवाह की स्वीकृति।
बहु पत्नी विवाह स्वीकृत, एक साथ चार पत्नियों रखने की छूट।
विवाह संस्कार ना होकर, समझौता माना जाना।
पर्दा प्रथा का प्रचलन।
विधवा पुनर्विवाह पर रोक।
ईसाई धर्म का प्रभाव-:
विवाह धार्मिक संस्कार नहीं होना।
अंतर्जातीय अंतर्देशीय विवाह की अनुमति।
एकल विवाह का प्रचलन।
लव मैरिज ,कोर्ट मैरिज को बढ़ावा।
वैवाहिक संबंधों की स्वतंत्रता (विवाह संबंध तोड़ने संबंधित)।